26.8.15

मुस्काती अक्सर दिखती है – ज्यों पट सजतें हों स्वागत के

जब  माँ सोती तब अय पलको
कुछ भी हो तुम झुंझलाना मत .
 लब जैसे हो तुम वैसे ही रहना
अनजाने में इतराना मत –..

वो थक के चूर हुई जब भी
सबकी चिंता से ताकत ले । 
मुस्काती अक्सर दिखती है
ज्यों द्वार  सजें हों स्वागत के

 अय सपने मत जाना उन तक
जो सबके सपने दिनभर लखती .
वो देवी जो इस भोर से उस तक
सबका हो भला यही तकती .


वो अनुभूति वो स्मृति से 
जाए तो रोने लगता हूँ 
उसकी गोदी में सर रखके 

खुद को ही खोने लगता हूँ  ।


उसकी यादों में डूबा तो -
नयनों से फिर माणिक छलके 
अपनी बेटी को देख देख -
मीत हुए फिर हम हलके !!

  

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