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गुरुवार, सितंबर 10, 2015

कम से कम हिन्दी भाषा को सियासी परिधि से मुक्त रखिये राजेश जोशी जी

 भारत में साहित्यकारों का एक विशेष वर्ग खुमारी के संसाधनों की कमी के चलते राजधानी में दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के एन पहले भोपाल में एक प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी कुंठा वमन करता नज़र आ रहा है . उनकी ही भाषा में कहा जाए तो इस प्रेस वार्ता में उनके विषय चुक गए हैं अब उनको हिन्दी में बाज़ार नजर आ रहा है . आरोप बहुत लगाए गए पर सब सियासी अधिक नज़र आ रहे हैं जिन मुद्दों का साहित्य से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं ... !  
       ‘हिंदी जगत: विस्तार एवं संभावनाएं’ के मुख्य बिंदु पर होने वाले इस सम्मलेन को सियासी मुद्दों की परिधि में घेरने की कोशिश बेमानी है . राजेश जोशी साहब जैसे विद्वान साहित्यकार जाने किस मज़बूरी में हैं मेरी उनको सलाह है कि कम से कम हिन्दी  सम्मलेन को सियासत से मुक्त रखिये  राजेश जोशी जी  . आपने व्यवस्था को कभी सुझाया  होगा ... शायद कि - हिन्दी को क़ानून की भाषा बनाओ .. ? हो सकता है कहा हो ........ ? पर पहले कोई नतीज़ा निकला.. ?  कैसे निकलता ....... उसे तो आज निकलना था. प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा है कि -"न्याय - प्रक्रिया की भाषा हिन्दी हो सकती है . "  क्या इससे पहले आपकी आवाज़ सुनी गई ? सुनी गई होती तो शायद कुछ बदलाव नज़र आता . 
         भारत की भाषाई विविधताओं के चलते हिन्दी ही नहीं अन्य  भारतीय भाषाओं  के साथ बेहद दुर्व्यवहार हुए हैं ... भाषाई आधार पर विद्वेशात्मकता को एक उदाहरण के रूप में  देखा जा सकता है .  
              32 सालों से विदेशों में होने वाले सम्मेलनों में कौन कौन आमन्त्रण पाते और जाते थे इसका पुनरावलोकन कर लीजिये महाशय . इस बात का भी मूल्यांकन लगे हाथ कर लेना जी कि इससे कितने लाभ हुए इस मुद्दे पर हम आप को विचार करना चाहिए . हिन्दी अगर बाज़ार, रोटी, कपड़ा और मकान की भाषा बनाती है तो आपको सर दर्द किस बात का .. मुझे लगता है कि आप लोगों को  चीथड़ो से लिपटा भारत देखना पसंद है ताकि कोई विदेशी फिल्मकार आए और एक स्लमडॉग मिलेनियर टाइप की फिल्म बनाकर जय है जय सुनवाए .. .
        मुझे तो लग रहा है कि आप नहीं चाहते ही नहीं  कि न्याय-प्रक्रिया की भाषा हिन्दी हो .. तो शायद आप रुढियों को तोड़ने के इच्छुक नहीं हैं . मैं सर्वहारा को सर्वजीता देखना चाहता हूँ ...... आप उसे सर्वहारा बनाए रखना चाहते हैं ताकि आपके हाथ में मुद्दा सदैव रहे . मुझे मालूम है आप पूछेंगे कि इस सम्मलेन से क्या हिन्दी की स्थिति में सुधार आएगा तो मित्र जानिये अवश्य सूत्रपात हो जाएगा .  तकनीकी से अवसर मिलते हैं अवसर से रोज़गार .... रोज़गार से रोटी जिसके हिमायती सब हैं आप मैं हम सब ......   
       माओ के देश देश से ही सीख लीजिये दुनिया का बड़ा बाज़ारवादी बन गया है . बाज़ार युद्ध रोकता है तो बाज़ार उम्दा है . बाज़ार रोटी देता है तो और भी बेहतर है , बाज़ार ज़िंदा रखता है तो सबसे अच्छा है . पर बाज़ार अथवा कोई भी  केवल व्यवस्था को ध्वस्त करे कदापि स्वीकार्य न होगा . 

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