29.3.15

रामायण काल की पुष्टि न करने में विकी पीडिया ज्ञान कोष एक प्रमुख षडयंत्र कारी भूमिका में

अक्सर सनातन विरोधी राम को एक काल्पनिक नायक मान कर अपने अपने तर्क उन पर लिखे साहित्य के आधार पर करते हैं  जो सर्वथा गलत है । राम सूर्यवंश के 64 वें सम्राट थे इस तथ्य को सिरे से खारिज करने वाले लोग राम थे ही नहीं कह कर जहां एक ओर सत्य सनातन को नकारते वहीं दूसरी ओर स्वयं के नवोन्मेषित पंथ को वास्तविक धर्म साबित करने की कोशिश में जुटे हैं । यहाँ हमें 94 सूर्यवंशीय सम्राटों की सूची मिली है । अगर हम आज की औसत उम्र का से लगभग दूना अर्थात 100 वर्ष मानें तो प्रत्येक राजा का ने कम से कम 30 वर्ष से 50 वर्ष आयु पूर्ण होने तक राज्य किया ही होगा । यहाँ किसी भी सूर्यवंशी राजा की असामयिक मृत्यू का विवरण किसी धार्मिक ग्रंथ में नहीं है महाभारत काल के पूर्व केवल सूर्यवंशीय सम्राटों का राज्य लगभग उनकी औसत उम्र से आधी अवधि अर्थात  अर्थात 9400 वर्ष का आधा 4700 वर्ष निर्धारित करना चाहिए ये वो युग था जब सूर्यवंशीयों ने भारत भूमि ही नहीं वरन लगभग  आधे विश्व   विस्तारित था । यहाँ वैदिक कालीन समयावधि को जो ईसा के 1500 से 1000 वर्ष पुरानी कही जा रही है अमान्य करने योग्य ही  है । हमारे वेदों के  रचनाकाल में भाषा लिपि अंकन करने की  एवं आंकलन करने की प्रणाली अपने चरम पर थी । वेद पुराण उपनिषद ब्राह्मण, वेदांग,  आरण्यक, सूत्र साहित्य, आदि रचे गए । ये श्रुत भी थे ........... जो व्यक्ति से व्यक्ति अंतरित हुए  एवं लिपि-बद्ध भी हुए । किन्तु तकनीकी ज्ञान एवं संसाधनों के अभाव में इनका मौलिक रूप  संरक्षण न हो पाना  ऐसे साहित्य को अत्यधिक विस्तार न दे सका । ऐसा  सारा साहित्य वाचक परंपरा के जरिये अधिक विस्तारित हुआ किन्तु ताड़ पत्रों पर लिखा हुआ साहित्य या तो क्षतिग्रस्त हुआ अथवा उसे बलात क्षतिग्रस्त किया गया । जिस तरह यहूदी सभ्यता को एक षडयंत्र के तहत समाप्त किया गया अथवा जैसे हालिया वर्षों में बुद्ध की प्रतिमाओं तक को नेस्तनाबूत किया हाल ही में आई एस आई एस द्वारा भी यही सब कुछ किया गया है । यानी वो सब कुछ खत्म कर दो जिसका सृजन हमने नहीं किया । परंतु नवोन्मेशी पंथ श्रुत परंपरा (वाचिक-प्रणाली  ) से गोया अपरिचित है अथवा मूर्ख हैं वे अब तक  ये न जान सके कि  दक्षिण भारत का रामायण लेखक भी राम को अयोध्या में ही जन्मा बताता है संस्कृत वाले कवि ने भी यही कहा , तुलसी ने भी यही माना । यानी समकालीन बाल्मीकी , एवं  कालांतर के सारे कवि एक मतेन इसी बात पर सहमत थे कि राम कोई काल्पनिक चरित्र न थे वरन बाकायदा वे अयोध्या में जन्मे थे इसकी पुष्टि मुगल काल में लिखी रामायण से भी होती है जो छत्तीसगढ़ में लिखी गई इसे छत्तीसगढ़  कोरबा में आर्कियोलोजिकल म्यूजियम  में देखा जा सकता है । इस संबंध में आजतक की ये रिपोर्ट देखें जो इस आलेख के लिखते समय तक इस यू आर एल http://aajtak.intoday.in/story/chhattisgarh-mughals-ramlila-found-in-urdu-1-797900.html पर मौजूद हैं ।
    मुगल काल में भी इस कृति को राजकोप का शिकार नहीं बनाया अर्थात मुगल राजाओं में राम को लेकर कोई दुविधा न थी । न ही वे राम को कपोल कल्पित नायक मानते थे ।
        पृथ्वी से गृहों की दूरी,  ग्रहों की चाल, रोगों का इलाज़, औषधि  , साहित्य व्याकरण, राजनीति, योग,  जब हमारे आदि ग्रन्थों के अनुसार मानी हैं तो राम के काल को अमान्य  करना शुद्ध रूप से अतिवाद का उदाहरण है ,     इस अतिवाद में विकी पीडियाज्ञान कोष एक प्रमुख षडयंत्रकारी भूमिका में है । यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अँग्रेजी विकीपीडिया ज्ञान कोष ने भी रामायण काल को उल्लेखित नहीं किया है । अगर कोई प्रयास भी होते हैं तो इस ज्ञान कोष के कर्ताधर्ता सीधे सीधे विकी से पन्ना हटा देते हैं ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है ।
मेरे मतानुसार  ईसा के  50 हज़ार वर्ष पूर्व के भारत के इतिहास पुनर्निर्धारण कराते हुए रामायण काल एवं महाभारत काल  की गणना कर दौनो ही काल-खण्डों को इतिहास में आधिकारिक रूप से अंकित कराया जावे  जाए ताकि विकी जैसी पूर्वाग्रही साइट्स निम्नानुसार भ्रामक जानकारी मुहैया कराने का षडयंत्र बंद हो अथवा ऐसी वेबसाइट्स को तुरंत प्रतिबंधित किया जावे

 

भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास
पाषाण युग (७०००३००० ई.पू.)
कांस्य युग (३०००१३०० ई.पू.)
लौह युग (१२००२६ ई.पू.)
मध्य राज्य (१२७९ ईसवी)
देर मध्ययुगीन युग (१२०६१५९६ ईसवी)
प्रारंभिक आधुनिक काल (१५२६१८५८ ईसवी)
अन्य राज्यों (११०२१९४७ ईसवी)
औपनिवेशिक काल (१५०५१९६१ ईसवी)


 अंत में ये कविता 
पीली वाली उलटी छतरी
धूप भरी छतरी
गरम गरम हवाएँ .................
विचारों में अगन
खबरों से झुलसते
खबरों से झुलसाते लोग
इस गर्मी ये सब होने वाला है ................
पर
हम जो लक्ष्य संधानते हैं .
हम हर बाधा को  तोड़ना  जानते हैं ..............
हमारी माँ
ने जब हम गर्भस्थ   थे 
चक्रव्यूह भेदना सुना नहीं 
लिखा है चक्रव्यूह भेदना 
हमारे माथे पर इतिहास ने जो लिखा है 
उसे हम सुधारते हैं 
हम वनवास  में भी 
रावण को संहारते हैं 


28.3.15

खुला खत : विषधर मित्र के नाम



 प्रिय अभिन्न मित्र विषधर जी 
                        मधुर-स्मृतियाँ 
    प्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।भैये.....साफ-साफ सुन लो- "दुनियाँ में तुम से बड़े वाले हैं खुले आम घूम रहें हैं तुम्हारा तो विष वमन का एक अनुशासन है इनका....?" 
            जिनका कोई अनुशासन है ही नहीं ,यार शहर में गाँव में गली में कूचों में जितना भी विष फैला है , धर्म-स्थल पे , कार्य स्थल पे , और-तो-और सीमा पार से ये बड़े वाले लगातार विष उगलतें हैं....मित्र मैं इसी लिए केवल तुमसे संबंध बनाए रखना चाहता हूँ ताकि मेरे शरीर में प्रतिरक्षक-तत्व उत्पन्न  विकसित हो सके. जीवन भर तुम्हारे साथ रह कर कम से कम मुझे इन सपोलों को प्रतिकारात्मक फुंकारने का अभ्यास तो हों ही गया है।भाई मुझे छोड़ के कहीं बाहर मत जाना । तुम्हें मेरे अलावा कोई नहीं बचा सकता मेरी आस्तीनों में मैनें कईयों को महफूज़ रखा है। तुम मेरी आस्तीन छोड़ के अब कहीं न जाना भाई.... ।
            देखो न आज़ कल तुम्हारे विष के महत्व को बहु राष्ट्रीय कम्पनीयां महत्व दे रहीं हैं.वे  तुम्हारे विष को डालर में बदलने के लिए लोग तैयार खड़े हैं जी । सुना है तुम्हारे विष की बडी कीमत है । तुम्हारी खाल भी उतार लेंगें ये लोग , देखो न हथियार लिए लोग तुम्हारी हत्या करने घूम हैं । नाग राज़ जी अब तो समझ जाओ । मैं और तुम मिल कर एक क्रांति सूत्र पात करेंगें । मेरी आस्तीन छोड़ के मत जाओ मेरे भाई।
            मुझे गिरीश कहतें हैं कदाचित शिव का पर्याय है जो गले में आभूषण की तरह तुमको गले में सजाये रहते हैं हम तो बस तुमको आस्तीन में बसा लेना चाहतें हैं. ताकि वक्त ज़रूरत अपनी उपलब्धियों के वास्ते पक्के-वालेमित्रों के सीनों पर लोटने तुमको भेज सकूं . ये पता नहीं किस किस को सीने पे लोटने की अनुमति दे रहे हैं आज़कल ?
       तुम जानते हो न कि अब अपनी आस्तीन कटवाने वाले शोले फिल्म के ठाकुर साब ज़िंदा नहीं हैं और न ही गब्बर ...... इन दौनों से मैं प्रभावित भी नहीं हूँ साथ ही दुनियाँ में कोई भी ऐसा जन्मा नहीं कि वो सामने से आकर आस्तीन काटे......... अलबत्ता पीठ में छुरा अवश्य भौंकने वाले सर्वत्र हैं ..... अपनी पीठ जंगली भैंसे की पीठ से भी मज़बूत है ..... मंहगाई ने हमारी खुल के कुटाई की है ................ कुटते- पिटते हम बेहद मज़बूत हो गए हैं । अब देखो न भैया सौ रुपए के सौदे सुलफ में हमको तीस रूपल्ली का माल हासिल हो पाता है ................. टैक्स, करप्शन, डण्डीबाजी, में सत्तर का मटेरियल गुम जाता है । ससुरा पेट्रोल पंप जाओ तो आधा  लीटर तक की डण्डीबाजी सहज ही हो जाती है ......... बचा साढ़े चार लीटर पेट्रोल उस पर टेक्स, मिलावट , यानी दुपहिये को बीमार कर देने वाली व्यवस्था तय है । इसे देखेगा भी कौन पंप के मालिक आम आदमी तो होते नहीं यानी पूरा हिसाब लगाओ तो पक्के में घाटा हमको ही है । उस पर हमारे मुंह से किसी बगावत की कोई आवाज़ नहीं निकाल पाती भाई... हमारी “न्यूसेंस-वैल्यू” है भी कहाँ ? न हम गुंडे न मवाली, न नेता, न छात्र नेता, उस पर तुम्हारी तरह के बिना रीढ़ वाला होने का आरोप हम पर ही है .............. हमारा चिंतन क्रिकेट की हार जीत , सियासी बकवास, फिल्मी गासिप, तक सीमित है । भाई तुम होते तो आत्मबल होता, शक्ति होती, फुफकारने का नालेज होता ........
            प्रिय विषधर, अब बताओ तुम्हारे बिना मेरा रहना कितना मुश्किल है.  कई दिनों से कुछ दो-पाया विषधर मुझे हड़काए रहे  हैं मारे डर के कांप रहा हूं. अकेला जो हूं ..... हम तुम मिलकर शक्ति का भय दिखायेंगे . तुम्हारा विष ओर मेरा दिमाग मिल कर निपट लेंगें दुनियां से इसी लिये तो दोस्त तुमसे अनुरोध कर रहा हूं दोस्त ज़ल्द खत मिलते ही चले आओ ......वरना मुझे तुमको वापस लाने के सारे तरीके मालूम हैं.           
 

26.3.15

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर

 

            विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर है जिसका मूल कारण विकलांगता से ग्रसित व्यक्ति इस कानून से अनभिज्ञ है । आज भी विकलांगों के प्रति सकारात्मक भाव रखने वालों का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम ही है ।  साथ ही विकलांगों को स्वयं भी  विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011की जानकारी कम ही है । यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को अधिकारों के संरक्षण, एवं उनके हनन के लिए विधिसम्मत   समस्त उपचारों की व्याख्या करता है । अपवादों के अलावा भारतीय कानून विश्व के सबसे पारदर्शी एवं सहज एवं बोधगम्य कानून कहे जाते हैं । किन्तु इनसे अधिकतम दस या बीस फीसदी  लोग वाकिफ होते हैं ये हमारी विधिक साक्षरता एवं स्वाधिकारों के प्रति जागरूकता का जीवंत उदाहरण । वास्तविकता यह भी है भारत के आम नागरिक का अधिकतम वक्त अनावश्यक अथवा कम महत्वपूर्ण  विषयों पर जाया होता है । बहरहाल विकलांग व्यक्तियों के लिए बने "विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011"    भारत ने विकलांगता ग्रसित व्यक्तियों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के समझौते (United Nation’s Convention on rights of person with disabilities/UNCRPD)  को पुष्टिकृत कराते हुए  विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भारत संघ द्वारा उनके  अधिकार, समानता, विकास, तथा  उनके सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्धता प्रकट की है ।  
                        इसके लिए, यह प्रस्तावित है कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम में-
क)     सभी विकलांग व्यक्तियों को समानता तथा पक्षपातहीनता की गारंटी मिले,
ख)    सभी विकलांग व्यक्तियों की कानूनी क्षमता को मान्यता दी जाय तथा ऐसे कानूनी क्षमता के व्यवहार जहां कही भी आवश्यक हो सहयोग दिया जाय,
ग)     विकलांग महिलाओं द्वारा सामना की जा रही बहुत सारी एवं बदतर भेदभाव को ध्यान में रखते हुए लैंगिक दृष्टिकोण अधिकारों तथा कार्यक्रम हस्तक्षेप दोनों में आरंभ किया जाय,
घ)     विकलांग बच्चों के विशिष्ट दुर्बलता को मान्यता देना और यह सुनिश्चित करना कि उनके साथ अन्य बच्चों जैसा ही समानता के आधार पर व्यवहार हो,
ङ)      घर में पड़े रहने वाले विकलांग व्यक्तियों, संस्थानों में विकलांगताग्रसितों तथा अत्यधिक सहायता की आवश्यकता सहित व्यक्तियों के साथ भी विशेष कार्यक्रम हस्तक्षेप अनिवार्य रुप से लागू हों,
च)     एक विकलांगता धिकार अभिकरण की स्थापना हो, जो विकलांगताग्रसित व्यक्तियों के साथ सक्रिय भागीदारी करते हुए विकलांगता नीति और कानूनों के निर्माण की सुविधा उपलब्ध करवाए, विकलांग व्यक्तियों के साथ भेदभाव बरतने वाले संरचनाओं को हटाए तथा इस अधिनियम के अन्तर्गत जारी किए गए मानकों तथा मार्गदर्शन के समुचित अनुपालन का नियमन करे ताकि इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त सभी अधिकारों के संरक्षण, उन्नयन तथा उपभोग की गारंटी सुनिश्चित हो सके।
छ)     गलत समझे जानेवाले कार्यो तथा आचरण के विरुद्ध नागरिक एवं आपराधिक मामलों को विनिर्देशित करे।
                       भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता (व्यक्तिगत), समानता तथा बन्धुत्व सुनिश्चित करता है, तथा विकलांगताग्रसित नागरिक भी भारत के मानवीय विविधता के एक अनिवार्य अंग है ।
1.  यह कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा पर हस्ताक्षर किए हें तथा उसकी अभिपुष्टि कि है और इस प्रकार एक अन्तर राष्ट्रीय घोषणा में मान्यता प्राप्त अधिकारों को प्रोन्नत करने, संरक्षण देने के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित की है,
2.  विकलांगताग्रसित व्यक्तियों को निम्न अधिकार प्राप्त हैं:
1.  पूर्ण सहभागिता एवं समावेश सहित सत्यनिष्ठा, गरिमा, तथा सम्मान का,
2.  मानवीय विविधता का उपभोग मानवीय अन्तर्निभरता का,
3.  शर्मिन्दगी, अपशब्द अथवा अन्य किसी प्रकार से अशक्तिकरण तथा रूढ़िबद्धता से मुक्त जीवनयापन का अधिकार उपलब्ध कराता है ।

                 विकलांग व्यक्तियों के लिए बनाए गए इस अधिनियन के क्रियान्वयन में मध्य-प्रदेश मात्र एक ऐसा राज्य बना जहां नौकरी में 6 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया गया । किन्तु आज भी अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को दिशा एवं गति देना अत्यंत्य अनिवार्य है ।   
                 विकलांगों के पुनर्वास से अधिक आवश्यकता है उनको विकास की मूल धारा से जोड़ा जाए । जिस तरह अ. जा. / अ. ज. जा.  सहित अन्य वीकर सिगमेंट के सशक्तिकरण के  प्रति सरकार अत्यधिक संवेदित है ठीक उसी तरह विकलांगों के  सशक्तिकरण के  लिए भी तत्परता पर ध्यान देना आवश्यक प्रतीत हो रहा है ।
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24.3.15

तो कैसे बनेंगी बेटियाँ स्त्रीशक्ति ? :- -रीता विश्वकर्मा


यहाँ पूर्व प्राप्त तीन संवादों पर अपनी टिप्पणी दे ही रहे थे कि इसी बीच उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में तीन लड़कियों की निर्मम हत्या काण्ड का समाचार मिलते ही मनःस्थिति असामान्य हो गई। यहाँ बता दें कि देवरिया जिले के बरहज थाना क्षेत्र में बीते शनिवार को एक साथ तीन लड़कियों के शव बरामद हुए थे। मृत लड़कियों की उम्र 18, 14 व 9 वर्ष थी। हालांकि इस तीहरे हत्याकाण्ड में संलिप्त दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, शेष दो की तलाश की जा रही है।
इस प्रकरण में बताया गया है कि उक्त तिहरे हत्याकाण्ड की मूल वजह मुख्य हत्यारोपी का एकतरफा प्यार बताई गई है। तीनों मृतक किशोरियाँ एक ही गाँव की रहने वाली सहेलियाँ थीं। बरहज क्षेत्र के ग्राम पैना के रहने वाले धीरज गौड़ नामक एक युवक के बुलाने पर गाँव के बाहर स्थित खोह नाले के पास गई थी, जहाँ चार दरिन्दों ने बेरहमी से उनकी गला रेतकर हत्या कर दिया। इस घटना का मुख्य हत्यारोपी सोनू हरिजन नामक एक युवक बताया गया है, जिसने होली के दिन 18 वर्षीया युवती को रंग लगाने की कोशिश किया था, जिसका उक्त किशोरी ने विरोध किया था। इसे लेकर सोनू के साथ उसकी काफी नोकझोंक भी हो गई थी। यह प्रकरण पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन गया था, तभी से सोनू हरिजन बदले की आग में जल रहा था।
उक्त युवती की हत्या कर अपने साथियों की मदद से लाश ठिकाने लगाने की उसने ही योजना बनाई। 18 वर्षीया लड़की की हत्या के बाद घटना का राजफाश न हो इस लिए वहशी दरिन्दों द्वारा मृतका की दोनों सहेलियों की भी निर्मम हत्या कर दी गई। अवसाद की गहरी खाईं में गिरे दिलजले सोनू हरिजन नामक युवक ने जिस तरह से तिहरे हत्याकाण्ड की साजिश रची, पुलिस द्वारा उसका खुलासा होने का समाचार सुन/पढ़कर मन कसैला हो गया और मन में तरह-तरह के विचार उठने लगे।
क्या ऐसे पुरूष प्रधान समाज में जहाँ छल, कपट, आज्ञानता और अवसाद के चलते लोग लड़कियों के साथ कुछ ऐसा ही बर्ताव करेंगे जो सदियों से चला आ रहा है, तब हम कैसे मान लें कि नारी का सशक्तिीकरण हो गया है। लोग बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं जैसे नारे पर अमल करने लगे हैं। महिलाएँ जागरूक बन गई है, और निर्भया बनकर नारी शक्ती की मिशाल पेश करते हुए वीरांगना बनकर स्वयं की रक्षा कर सकती है?

मथुरा में बेटी पढ़ाओ के नाम पर पिता ने हाथ-पैर बांधकर पुत्री को पहुँचाया स्कूल

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तीकरण और  फिर स्त्री शक्ति, तेजस्विनी, निर्भया, वीरांगना आदि बनाने के लिए प्रयासरत सरकार और सरकारी नारा, साथ ही स्वयं सेवी संस्थाएँ। मीडिया की सभी विधाओं में हो रहा इसका तेजी से प्रचार-प्रसार। बावजूद इन सबके न तो समाज चेत रहा है, और न ही हम जागरूक हो रहें हैं। यह तो आम बात हो गई है कि बेटियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले माता-पिता और अभिभावक अब भी पुरानी सदी की तरह ही रूढ़िवादी संस्कार युक्त माहौल में जी रहे हैं।
अधिकांश माँ-बाप ऐसे हैं, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन को अंगीकार करते हुए अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए तत्पर देखे जाते हैं। कुछ मामले ऐसे भी प्रकाश में आए हैं जिनमें माँ- बाप द्वारा स्कूल जाने से कतराने वाली अपनी बच्चियों को जबरिया स्कूल भेजने का अजीबो-गरीब तरीके अपनाए जा रहे हैं। इसी तरह का एक मामला मथुरा में चर्चा का विषय बन गया है। इस चर्चित मामले का विवरण कुछ इस तरह हैं। गत 14 मार्च को थाना हाईवे क्षेत्र के सौंख रोड स्थित नगलामाना निवासी भगवत नामक एक पिता अपनी सात वर्षीया पुत्री पूनम को मोटर साइकिल पर रस्सी से बांधकर स्कूल ले गया था। पूनम पढ़ने से कतराती थी, और स्कूल जाने में आना-कानी करती थी। उसके पिता भगवत ने तब उसे उक्त तरीके से स्कूल भेजा था।
हालाँकि यह मामला महिला आयोग में गया था, जिसे बाद में पुलिस ने बाल संरक्षण अधिनियम की धाराओं में बदल दिया। मीडिया द्वारा हाथ-पैर बांधकर बेटी को मोटर साइकिल पर लादकर ले जाते हुए पिता भगवत की फोटो प्रकाशित की थी, जिससे थाना हाईवे पुलिस सक्रिय होकर एन.सी.आर. दर्ज कर भगवत को गिरफ्तार कर शान्तिभंग में चालान कर दिया था। थाने में आरोपी भगवत ने पुलिस को बताया था कि उसका मकसद सही था, लेकिन तरीका गलत था। वह अपनी बेटियों को अच्छी तालीम दिलाने के लिए फिक्रमन्द है।


-रीता विश्वकर्मा
सम्पादक
रेनबोन्यूज डॉट इन
8765552676

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अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...