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गुरुवार, मार्च 26, 2015

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर

 

            विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर है जिसका मूल कारण विकलांगता से ग्रसित व्यक्ति इस कानून से अनभिज्ञ है । आज भी विकलांगों के प्रति सकारात्मक भाव रखने वालों का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम ही है ।  साथ ही विकलांगों को स्वयं भी  विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011की जानकारी कम ही है । यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को अधिकारों के संरक्षण, एवं उनके हनन के लिए विधिसम्मत   समस्त उपचारों की व्याख्या करता है । अपवादों के अलावा भारतीय कानून विश्व के सबसे पारदर्शी एवं सहज एवं बोधगम्य कानून कहे जाते हैं । किन्तु इनसे अधिकतम दस या बीस फीसदी  लोग वाकिफ होते हैं ये हमारी विधिक साक्षरता एवं स्वाधिकारों के प्रति जागरूकता का जीवंत उदाहरण । वास्तविकता यह भी है भारत के आम नागरिक का अधिकतम वक्त अनावश्यक अथवा कम महत्वपूर्ण  विषयों पर जाया होता है । बहरहाल विकलांग व्यक्तियों के लिए बने "विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011"    भारत ने विकलांगता ग्रसित व्यक्तियों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के समझौते (United Nation’s Convention on rights of person with disabilities/UNCRPD)  को पुष्टिकृत कराते हुए  विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भारत संघ द्वारा उनके  अधिकार, समानता, विकास, तथा  उनके सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्धता प्रकट की है ।  
                        इसके लिए, यह प्रस्तावित है कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम में-
क)     सभी विकलांग व्यक्तियों को समानता तथा पक्षपातहीनता की गारंटी मिले,
ख)    सभी विकलांग व्यक्तियों की कानूनी क्षमता को मान्यता दी जाय तथा ऐसे कानूनी क्षमता के व्यवहार जहां कही भी आवश्यक हो सहयोग दिया जाय,
ग)     विकलांग महिलाओं द्वारा सामना की जा रही बहुत सारी एवं बदतर भेदभाव को ध्यान में रखते हुए लैंगिक दृष्टिकोण अधिकारों तथा कार्यक्रम हस्तक्षेप दोनों में आरंभ किया जाय,
घ)     विकलांग बच्चों के विशिष्ट दुर्बलता को मान्यता देना और यह सुनिश्चित करना कि उनके साथ अन्य बच्चों जैसा ही समानता के आधार पर व्यवहार हो,
ङ)      घर में पड़े रहने वाले विकलांग व्यक्तियों, संस्थानों में विकलांगताग्रसितों तथा अत्यधिक सहायता की आवश्यकता सहित व्यक्तियों के साथ भी विशेष कार्यक्रम हस्तक्षेप अनिवार्य रुप से लागू हों,
च)     एक विकलांगता धिकार अभिकरण की स्थापना हो, जो विकलांगताग्रसित व्यक्तियों के साथ सक्रिय भागीदारी करते हुए विकलांगता नीति और कानूनों के निर्माण की सुविधा उपलब्ध करवाए, विकलांग व्यक्तियों के साथ भेदभाव बरतने वाले संरचनाओं को हटाए तथा इस अधिनियम के अन्तर्गत जारी किए गए मानकों तथा मार्गदर्शन के समुचित अनुपालन का नियमन करे ताकि इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त सभी अधिकारों के संरक्षण, उन्नयन तथा उपभोग की गारंटी सुनिश्चित हो सके।
छ)     गलत समझे जानेवाले कार्यो तथा आचरण के विरुद्ध नागरिक एवं आपराधिक मामलों को विनिर्देशित करे।
                       भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता (व्यक्तिगत), समानता तथा बन्धुत्व सुनिश्चित करता है, तथा विकलांगताग्रसित नागरिक भी भारत के मानवीय विविधता के एक अनिवार्य अंग है ।
1.  यह कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा पर हस्ताक्षर किए हें तथा उसकी अभिपुष्टि कि है और इस प्रकार एक अन्तर राष्ट्रीय घोषणा में मान्यता प्राप्त अधिकारों को प्रोन्नत करने, संरक्षण देने के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित की है,
2.  विकलांगताग्रसित व्यक्तियों को निम्न अधिकार प्राप्त हैं:
1.  पूर्ण सहभागिता एवं समावेश सहित सत्यनिष्ठा, गरिमा, तथा सम्मान का,
2.  मानवीय विविधता का उपभोग मानवीय अन्तर्निभरता का,
3.  शर्मिन्दगी, अपशब्द अथवा अन्य किसी प्रकार से अशक्तिकरण तथा रूढ़िबद्धता से मुक्त जीवनयापन का अधिकार उपलब्ध कराता है ।

                 विकलांग व्यक्तियों के लिए बनाए गए इस अधिनियन के क्रियान्वयन में मध्य-प्रदेश मात्र एक ऐसा राज्य बना जहां नौकरी में 6 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया गया । किन्तु आज भी अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को दिशा एवं गति देना अत्यंत्य अनिवार्य है ।   
                 विकलांगों के पुनर्वास से अधिक आवश्यकता है उनको विकास की मूल धारा से जोड़ा जाए । जिस तरह अ. जा. / अ. ज. जा.  सहित अन्य वीकर सिगमेंट के सशक्तिकरण के  प्रति सरकार अत्यधिक संवेदित है ठीक उसी तरह विकलांगों के  सशक्तिकरण के  लिए भी तत्परता पर ध्यान देना आवश्यक प्रतीत हो रहा है ।
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