9.10.10

भ्रष्टाचार के कब्ज़े में व्यवस्था : सूचना के अधिकार का खुल के प्रयोग हो

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh85AAeZ_-sOshEB5fPDAafGHa164zgYZXqFtC550hUVdV1PYfxv-0fboZYhRvWutux0AD8M8rVD9ZiSAJ79DGQ3hqVt-sJ5HkgbqVuSzLhyphenhyphenRKYSUfq01thotUMaTiFDI6_LE86YzI3u7UM/s320/corruption.jpgभ्रष्टाचार एक गम्भीर समस्या है इस हेतु क्या प्रयास हों अथवा होने चाहिये इस सम्बंध में सरकारी इंतज़ाम ये हैं :- केन्द्रीय सतर्कता आयोग, भारत:- केन्द्रीय सूचना आयोग, भारतएन्टी-करप्शन ब्यूरो, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, १९८८  T HE PREVENTION OF CORRUPTION ACT, 1988 किंतु कितने कारग़र हैं इस पर गौर करें तो हम पाते हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं. कारण जो भी हो  राज्य सरकारों ने भी अपने स्तर पर अपने ढांचे में इन व्यवस्थाओं को शुमार किया है. इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा ? वास्तव में ऐसा नहीं हुआ.
http://sadhanabhartipravah.com/sadhna/images/stories/right-to-information-act.jpgजहां तक राजनैतिक परिस्थियों का सवाल है वे इसके प्रतिकूल नज़र नहीं आ रहीं फ़िर किस तरफ़ से पहल हो आम आदमी सोचता है तो तुरंत मीडिया को अपना मान बैठता है पर इसे प्रबंधित करना अब आसान है. तो फ़िर क्या करें कैसे होगा इस समस्या का निदान और कैसे निपटेंगे हम इस समस्या से
क़ानूनी प्रावधानों से हट कर भी कुछ सार्थक-प्रयास भारत विश्व में किस नम्बर का भ्रष्ट देश है यह कहना आसान नहीं. बस सरकारी महक़मों मे भ्रष्ट आचरणों की परिपाटी हो ऐसा है नहीं. वास्तव में ईमानदार वही जिसे मौक़ा नहीं मिला.मुझे मेरे एक मित्र ने बताया :-"अमुक अखबार की प्रतियां सदैव  अमुक स्थान पर  समोसे वाले के ठेलों पर बेच देता है उस अखबार का कर्मचारी" यूं तो ये घटना हमारे  लिये कोई खास मायने नहीं रखती किंतु "भ्रष्टाचार के लोक व्यापीकरण का उदाहरण  है " ऐसा कौन सा संगठन होगा जहां ऐसे उदाहरण हों जहां यह दिखाई दे कि वहा सभी खुश और ईमानदार हैं. तब कौन सा हथियार है जिसके अनुप्रयोग से इस शत्रु का शमन हो
मेरे दृष्टिकोण मे:- इसे एक मांग पत्र भी कह सकतें हैं आप
  1. नागरिक सूचना के अधिकारों  (आर टी आई ) का खुल कर निर्भीकता से प्रयोग करें , इसका लाभ  व्यक्तिगत एवम सामूहिक रूप से  उठाया जा सकता है .
  2. सामाजिक साम्य इसे रोक सकता है इस बिंदू को  साम्यवाद  की वक़ालत से न जोड़ें  वरन न्यूनतम आवश्यकताओं की सतत आपूर्ति के लिये राज्य की भूमिका को नियत करना ज़रूरी है. जो आगे चल के आर्थिक विषमताओं की समाप्ति की दिशा में उठाया कारगर क़दम होगा जो फ़ौरी तौर पर आवश्यक है
  3. गला काट व्यवसायिकता की समाप्ति , अंधाधुंध विज्ञापन बाज़ी पर नियंत्रण .
  4. चिकित्सा,शिक्षा, भोजन,कपड़ा ,आवास सुविधाएं सहज सरल सामान्य कीमतों  पर मुहैया हो. 
  5. उत्पादकता आधारित वेतन व्यवस्था लागू हो. 
  6. भूमि पर सरकार का कठोर नियंत्रण 
  7.  न्याय पाना अपेक्षा कृत आसान हो 
  8. ग्रामीण-विकास.(अन्य विकास विभागों की )/स्वास्थ्य/शिक्षा/पुलिस/ राजस्व आदि विभागों की कार्यप्रणाली में बदलाव फ़ौरी तौर पर ज़रूरी है. आम नागरिक  स्वयम भी भ्रष्ट तरीके अपना कर राज्य के धन एवम सुविधाओं का लाभ येन केन प्रकारेण प्राप्त करना बंद करें
  9. विकास की गतिविधियां प्रशासनिक-मोड से अलगकर मिशन-मोड को सौंपी जावें. 
      

7.10.10

आओ थोडा सोचे----एक बच्चे की तरह

कभी-कभी बच्चे ऐसी सीख दे जाते हैं कि हम सोचने पर मजबूर हो जाते है- कि हम ऐसे क्यों नही है? क्यों हमारी सोच बडे होने पर संकीर्ण होती जाती है। अपनी गलती को स्वीकार करने मे कितनी देर लगा देते है हम
मै एक स्कूल में काम करती हूँ , इसलिए बच्चों से ही मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है-------
कई बार बच्चे स्कूल में झगडते रहते हैं ----मेडम इसने "ऐसा " कहा----नो मेडम, इसने पहले कहा , किसी से भी पूछ लिजिए ।----और हम उनके झगडे को , सुलझाने को पूछते रहते हैं----क्यो आपने "ऐसा" कहा?----नो मेडम----फ़िर दूसरे से भी वही सवाल---- क्यों आपने?---नो मेडम!!!!! तो फ़िर झगडा क्यों?
और इसके बाद उन्हें वही कहानी सुना देते है----कि एक बार एक संत किसी पेड के नीचे बैठे थे ।एक आदमी आकर उन्हे गंदी-गंदी गाली देता है फ़िर भी वे शांत बैठे रहते है , थोड़ी देर बाद वो आदमी थक कर चला जाता है । उसके जाने के बाद सब उस संत से पूछते है----आपको वो इतनी गालीयाँ दे रहा था ,आपने उससे कुछ कहा क्यों नही? वे संत जबाब देते है----
" मैने गालीयाँ उससे ली ही नहीं , वो तो उसके पास ही रह गई।"
( हम बडे ये बात क्यों नहीं समझ पाते कि किसी के कुछ कह देने से कोई फ़र्क नही पडता अगर हम सही हैं तो हमेशा सही ही रहेंगे )
पर इस बार ऐसा नहीं हुआ था ५ वीं कक्षा के कुछ बच्चों की शिकायत एक बच्चे के बारे मे थी ----
---मेडम, इसने गंदी बात बोली।
---क्यों ?
---नो मेडम-
--- फ़िर ये सब क्यों कह रहे है?---
---मेडम ये हमारा झूठा नाम फ़ंसा रहे है--- किसी से भी पूछ लिजिए----
---वो क्यों? (तभी बाकी बच्चे बोल पडे मेडम ये क्लास में भी ऐसे ही बोलता है।और तब तक मैं भी जान चुकी थी कि इसी बच्चे की गलती है।)
मैंने बच्चे से कहा- ठीक है आप जिससे कहेंगे उससे पूछ लेंगे , और पहले बाकी बच्चों से पूछा----चलो कौन इसकी तरफ़ है? हाथ उठाओ ----- ( किसी भी बच्चे ने हाथ नही उठाया ) ,
मैंने पूछा इसका बेस्ट फ़्रेंड कौन है? सबने एक बच्चे की ओर इशारा किया । मैंने उससे पूछा----क्यों आप बताओ?----बच्चा बडी ही मासूमियत से ना मे सिर हिलाकर बोला----कभी-कभी तो गंदी बात बोलता है ये मेम ।
अब मैंने उस बच्चे की ओर देखा और कहा----आप ही किसी की ओर इशारा कर दो जिस पर आप को भरोसा हो कि वो आपकी तरफ़ बोलेगा । बच्चे ने नजरें झुका ली---बोला हम बोलते हैं  गंदी बात ।
-
--तो??? अछ्छी बात है ???
---नो मेम-----सॉरी -----
इससे क्या होगा???,सजा तो आपको लेना पडेगी । कुछ सोच कर मैने सजा सुनाई----आप आज खेलोगे नहीं ,मैदान से बाहर ही खडे रहोगे । ठीक है??? , उसने हाँ मे सिर हिलाया , ,
इतनी आसानी से सजा मान लेने पर मैने आगे कहा----और सुनो अगले हफ़्ते इसी पिरियड मे अगर एक भी बच्चा तुम्हारी तरफ़ हो गया तो तुम्हें खेलने मिलेगा , और यदि एक भी बच्चे ने कहा- कि आपने फ़िर से गंदी बात बोली है तो आप बाहर ही खडे रहोगे ठीक है??? बच्चे ने फ़िर हाँ मे सिर हिलाया ।
मैने सभी बच्चों को हिदायत दी कि सब सच ही बताएंगे मुझे। मै इस बात को भूल ही गई थी ।अगली बार जब उस क्लास का गेम्स पिरियड आया बच्चे मेरे पास आते ही बोले मेडम इस पूरे हफ़्ते में इसने किसी को भी बुरा नहीं बोला है , और अगर गलती से बोला भी है तो सॉरी कहा है

मै सुनकर हैरान रह गई , एक छोटे से बच्चे ने , जो कक्षा मे औसत दर्जे का कहलाता था ,
अपनी इच्छाशक्ति के बल पर कम समय मे ही खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया था । अपनी एक गलती को आदत बनने से रोक दिया था उसने । क्या हम , बडे होकर भी , अपनी बुरी आदतों---जैसे सिगरेट , बीडी पीना , नशा करना , झूठ बोलना , अपशब्द बोलना , बेईमानी करना ( अनगिनत हो सकती है ---अपने मे ढूँढिए ) आदी -आदी छोड नही सकते ???

6.10.10

"असफ़लता"


मां ने कहा था सदा से असफ़ल लोगों जीवन हुये के दोषों को अंवेषण करने का खुला निंमंत्रण है..... लोगों के लिये. कोई भी न रुकता पराजित के मन की समकालीन परिस्थियों को समझने बस दोष दोष और दोष जी हां यहीं से शुरु होती हैं ग्लानि जो कभी कुंठा तो कभी बगावत और कभी अपराध की यात्रा अथवा कभी पलायन . बिरले पराजित ही स्वयम को बचा पातें हैं. इस द्वंद्व से यक़ीन कीजिए....मां ने सही ही तो कहा था .

3.10.10

अवकाश आवेदन

पूज्य एवम प्रियवर
सादर-अभिवादन
विगत कई माहों से शासकीय कार्य दबाव एवम अत्यधिक कार्य से मुझे ब्लागिंग के साथ न्याय करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.यह कार्य  न तो उचित है और न ही इसे मान्य किया जावेगा. चिंतन उर्जा विहीन ब्लाग लिखने की  चिंता से  लिखी गई पोस्ट का स्तर कैसा होगा आप सब जानते हैं. आपसे एक माह तक दूर रहूंगा यद्यपि अर्चना चावजी मिसफ़िट पर तथा दिव्य-नर्मदा वाले आचार्य संजीव वर्मा सलिल भारत-ब्रिगेड पर आते रहेंगे उनको आपका स्नेह मिलेगा मुझे यक़ीन है. 
आपको मेरी याद आये तो मेल ज़रूर कीजिये
सादर
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

1.10.10

जिन्दगी का गीत ---मेरे साथ गाइये

 सुनिये---शुक्रवार,२४अक्तूबर २००८ को पोस्ट की गई दिगंबर नासवा जी की ये रचना---ज़िंदगी का गीत

ज़िंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए
यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए
शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर
स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए
दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर
दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए
मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर
रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए
चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी
आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए
आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला
सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए



एक बेहतरीन रचना को वाक़ई गुनगुनाना चाहिये.  एक गज़ब रचना है प्रस्तुति में जो भी कमीं हो अवश्य बताएं
सादर अर्चना चावजी

29.9.10

"पश्चाताप : आत्म-कथ्य"

[DSC00080.JPG]वीजा जी के इस बात से "सौ फ़ीसदी सहमत हूं. l"और घरेलू हिंसा के सम्दर्भ में इन प्रयासों को गम्भीरता से लेना चाहिये.मुझे इस बात को एक व्यक्तिगत घटना के ज़रिये बताना इस लिये ज़रूरी है कि इस अपराध बोध को लेकर शायद मैं और अधिक आगे नहीं जा सकता. मेरे विवाह के कुछ ही महीने व्यतीत हुए थे . मेरी पत्नी कालेज से निकली लड़की अक्सर मेरी पसंद की सब्जी नहीं बना पाती थीं. जबकि मेरे दिमाग़ में परम्परागत अवधारणा थी पत्नी सर्व गुण सम्पूर्ण होनी चाहिये. यद्यपि मेरे परिवार को परम्परागत अवधारणा पसंद न थी किंतु आफ़िस में धर्मेंद्र जैन का लंच बाक्स देख कर मुझे हूक सी उठती अक्सर हम लोग साथ साथ खाना खाते . मन में छिपी कुण्ठा ने एक शाम उग्र रूप ले ही लिया. घर आकर अपने कमरे में पत्नी को कठोर शब्दों (अश्लील नहीं ) का प्रयोग किये. लंच ना लेने का कारण पूछने पर मैंने उनसे एक शब्द खुले तौर पर कह दिया :-"मां-बाप ने संस्कार ही ऐसे दिये हैं तुममें पति के लिये भोजन बनाने का सामर्थ्य नहीं ?" किसी नवोढ़ा को सब मंज़ूर होता है किंतु उसके मां-बाप का तिरस्कार कदापि नहीं. बस क्या था बहस शुरु.और बहस के तीखे होते ही सव्यसाची यानी मेरी माँ ने कुंडी खटखटाई और मुझसे सिर्फ़ इतना कहा "शायद मैं ही तुमको संस्कार ठीक से न दे सकी..!"

इस बात का गहरा असर हुआ. नौंक-झौंक जो झगड़े में तब्दील हुई थी बाक़ायदा खत्म हो गई. किंतु तनाव बाक़ी था. जो अनबन में तब्दील हो गया. मां खुद मेरे लिये  लंच बना के रखतीं. पन्द्रह दिन बाद एक दिन मैने  भोजन की खूब तारीफ़ की.मेरे संयुक्त परिवार के सारे लोग मेरी इस बात को सुन कर ठहाके मार रहे थे . क्या बड़े भैया क्या दीदियां. बाबूजी की हंसी तो रोके न  रुक रही थी.  मुझे फ़िर आहिस्ता से माने ने कहा : बरसों से मेरे हाथ का खाना खाने वाले तुमको स्वाद में अंतर नहीं नज़र आया . मैने कहा - बा,बिलकुल नहीं, मां बोली :- एक हफ़्ते से सुलभा ही टिफ़िन तैयार कर रही है. बस फ़िर क्या था श्रीमति जी के सामने हम हो गए नतमस्तक. पश्चाताप से लबालब हम ने तुरंत रविवार अपनी सास जी से मिलने का तय कर लिया. श्रीमति जी से यह भी कहा मुझे गुस्से में ध्यान न था कि मेरे ससुर साहब नहीं हैं. सास जी कितनी भोली है मुझे उनसे माफ़ी मांगनी चाहिये. श्रीमति जी कुछ बोल पातीं कि मां ने कहा:"कितना भी संकट हो दु:ख हो पीड़ा हो सिर्फ़ आत्म नियंत्रण रखो कभी किसी के लिये अपशब्द न कहो.. पश्चाताप के जल से  मन-मानस को पावन करो विचार मंजूषा को  को धो लो  "
घरेलू हिंसा के इर्द गिर्द कुछ ये ही बातें हैं जिनका समय रहते इलाज़ ज़रूरी होता है. यदि यह होता है तो वास्तव में कितना पावन हो जाता है जीवन.
आज़ मुझे को यक़ीन  नहीं होता सुलभा जी के हाथों बनाए भोजन पर . इतना स्वादिष्ट और पोषक कि वाह है न महफ़ूज़ क्यों भाई बवाल..... आपको तो याद है न वो चटकारे
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बाक़ी सभी मित्र मित्राणिया खाने  पर सादर
आमंत्रित हैं मेरे बाज़ू में खड़ी सुलभा जी कह रहीं हैं ...
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"एक मुलाकात, एक फ़ैसला"

नमस्कार र्मै अर्चना चावजी मिसफ़िट-सीधीबात पर आप सभी का स्वागत करती हूँ, आइये आज आपकी मुलाकात जिस ब्लॉगर से करवा रही हूँ सुनिए उन्हीं की एक रचना उन्हीं की आवाज में ---



मै आभारी हूँ रचना बजाज जी की जिन्होंने मिसफ़िट-सीधीबात के लिए अपना अमूल्य समय दिया। रचना जी का ब्लाग "मुझे भी कुछ कहना है "की ब्लागर रचना बजाज…मूलत: मध्यप्रदेश की हैं. अभी नासिक (महा.) मे रहती हैं. जीवन के उतार चड़ाव के बीच दुनिया भर के दर्द को समझने और शब्दों में उतारने वाली रचना जी की लेखनी की बानगी पेश है...

रोटी -२

रोटी -२ इसलिये कि एक बार पहले भी मै रोटी की बात कर चुकी हूं…. आज फ़िर करना पड़ रही है……
बात वही पुरानी है,
गरीबों की कहानी है,
मुझे तो बस दोहरानी है..
इन दिनो दुनिया भर मे भारत के विकास की तूती बोलती है,
लेकिन देश के गरीबों की हालत हमारी पोल खोलती है….
विकास के लिये हमारे देश का मजदूर वर्ग अपना पसीना बहाता है,
लेकिन देश का विकास उसे छुए बगैर, दूर से निकल जाता है…
भारत आजादी के बाद हर क्षेत्र मे आगे बढ़ा है,
लेकिन उसका गरीब आदमी अब भी जहां का तहां खडा है….ं
हमारे देश मे अमीरी और गरीबी के हमेशा ही दो धड़ रहे हैं,
अमीर सरकार के गोदामों मे अनाज के कई सौ बोरे सड़ रहे हैं……
सरकारी नीतियां बहुत ही अनसुलझी हैं,
गरीब की रोटी उसकी नीतियों मे ही उलझी है…..
गांव के किसान गरीब नत्था को आमिर खान की ’पीपली लाइव” मे
सिर्फ़ एक्टिंग भर नही करना है,
बल्कि अपनी जान देकर उसे सचमुच मे मरना है…

26.9.10

एक मुलाक़ात प्रशांत श्रीवास्तव के साथ

''मिसफ़िट : सीधीबात पर पिछले दिनों आपने प्रशांत श्रीवास्तव की ग़ज़ल देखी और प्रशांत भाई को दुलारा मैं आपका आभारी हूं, आज प्रशांत भाई आपसे मुलाक़ात के लिये हाज़िर हैं  पेशे-ख़िदमत प्रशांत भाई का इन्टरव्यू यू-ट्यूब के ज़रिये (भाग एक=यूट्यूब पर सीधे देखने क्लिक कीजिये "इधर"



(भाग दो :"यू ट्यूब पर देखने इधर क्लिक कीजिये"
और एक मधुर गीत सुनना चाहें तो

बाकी सब आल इस वेल

21.9.10

प्रशांत श्रीवास्तव शानू की ग़ज़ल

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4GSyNnePq47uhbixle_3_mAn0ujrQtZ0aYOF805URlPu2134PCHaRtt5wAjBU9L6X8qbgjDEmG9mRiDf7_IGOjOB5RY0tYusl7uOJhF5PsIva0wC44MXRuPMHZV_vdJfvHWON3vS2Wh0/s1600-r/Madhya_Pradesh_Map_2001.jpg                   मेरे अज़ीज़ मित्र इस वक़्त मध्य-प्रदेश सरकार के राजस्व महक़मे में तहसीलदार का ओहदा रखते हैं. तमाम सरकारी कामकाज़ के साथ हज़ूर के दिल में छिपा शायर नोट शीट, आर्डरशीट से इतर बहुत उम्दा काम ये कर रहें हैं कि अपने दिल में बसे शायर को सरकारी मसरूफ़ियत का हवाला देकर रुलाते नहीं. बाक़ायदा ग़ज़ल लिखते हैं. मौज़ूदा हालातों से जुड़े रहतें हैं.  रौबदार विभाग के  नाजुक़ ख्याल अफ़सर की ग़ज़ल की बानगी नीचे स्कैन कर पेश है. पसंद आयेगी ज़रूर मुझे यक़ीन है. कौमी एकता के इर्दर्गिर्द  घूमते विचारों को करीने से संजोता है शायर प्रशांत और बुन लेता है एक गज़ल 

मुन्डी भेजो मुंडी

मनीष भाई के भेजे गए एस एम एस वाकई बेहद मजेदार होते होते हैं नमूना देखिये :-
  • एक अपहर्ता ने श्रीमति ”क” का अपहरण कर पति श्री ख को उसकी अंगुलि के एक हिस्से के साथ संदेश भेजा-”मैने तुम्हारी बीवी का अपहरण किया है बतौर प्रूफ़ अंगुली भेज रहा हूं बीवी को ज़िन्दा ज़िन्दा चाहते हो तो पचास लाख भेजो ”पति ने तुरंत उसी पते पे उत्तर भेजा :”इस सबूत से  प्रूफ़ नही होता कि वो मेरी ही पत्नी की अंगुली है कोई बड़ा प्रूफ़ भेजो भाई ..... मुन्डी भेजो मुंडी  ”
  • आप भी चाहें तो भेज सकतें है क्या कोई जोक याद नहीं ? कोई बात नहीं इधर जाएँ =>"JOKS"

20.9.10

इलैक्ट्रानिक मीडिया को आत्म नियंत्रित होना ही होगा

  1.   मीडिया को आत्म नियंत्रित होना होगा 
  2.    भारतीय संविधान पर आस्था रखने वाले निर्णय से अविचलित होंगे 
  3.    सायबर कैफ़े पर सतत निगरानी ज़रूरी 
  4.    अवांछित/संदिग्ध गतिविधियों सूचना देने पुलिस को अवश्य दी जावे 
  5.    किसी भी उकसाउ भड़काउ बयान बाज़ी से बचिये (विस्तार- से इधर देखिये )

अरे दिमाग पे असर कैसे होगा तुम्हारे दौनो कानों की घुटने से दूरी नापी कभी ?

हरिवंशराय जी के पोते हैं जो कहेंगे वो हम सुनेंगे बोलते हैं अब बोलने के लिये किसी भाषा की ज़रूरत नहीं "What an idea sir ji...!!"  इस बिन्दु पर मन में विचार चल रहा था कि अचानक एक अज़नवी मेरे एन सामने आ खड़ा हुआ बोलने लगा तुमाए मन की बात का खुलासा कर दूं...?
मुझे लगा परम ज्ञानी की परीक्षा क्यों न लूं सो हां कर दी 
वो बोला :- सेलवा के एड की बात सोचत हौ न बाबू...?
हां लोग काहे इन झूठी बात को मानत ह्वें  दादू....? इ झुट्टा ह्वै ... कम्पनी जुट्ठी ह्वे हामाए फ़ोनवा का मीटर ऐसने घूमत है कि बस बिना बात कै ४०० सौ रुपिया ज़ादा का बिल थमा देवत है कम्पनी ?
दादू बोला :- मूरुख ब्लागर उही तो वो बोलत ह्वै...? वो चेतावनी दैके समझा रहा है  कम्पनी का फ़ण्डा ''अब बोलने के लिये किसी भाषा की ज़रूरत नहीं समझे बिना बोले का पैसा लगेगागुरु ''
हम चकरा गये कि कित्ती दूर से दादू कौड़ी लाया होगा सो हमने पूछा :- दादू, आप ओकर हर बात मानत  हौ ...
हम उसकी का उसके बाप दादा सबकी मानत हैं मधुशाला से शराबी तक दादू ने ये कहते हुए कांधे पे टंगे खादी के झुल्ले से बाटल निकाली और पूछा:- पियोगे..?
”न..”
न सुनते ही गटगट अद्धी .... आधी कर दी  और टुन्न होके बोला :-उनकी बात हम न सुनें ऐसा हो ही नहीं सकता . दिलो दिमाग पर छा जाने वाले इस एड में बिटवा जो कहा ओकर बहुतै बड़ा अर्थ निकलत है..... पिछले दिन आप कौ याद आवे ज़रा फ़्लेश बेक म जावें .... संसद मा यही तो हुआ था "........जी " के बोलने जौन  ज़रूरत थी वो पूरी हुई..... अब उकील साहबान को लेओ बोलने की खातिर जितना दिये उससे कम बोले हम बोले हज़ूर थोड़ा अऊर बोलते हमारी तरफ़ से कोरट को समझ आ जाती बात ...?
उकील साब बोले:- अगली बार बोलेंगे, समझत नाईं हौ अरे अभी सगरा बोल देते तो अगल पेशी म का बोलते बोलो..?
सुन कय हज़ूर हमाई तौ बोलती बंद हवे लगी... हम का बोलते बोलो भैया..
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पीछा छुड़ाने की गरज़ से हम बोले दादू तुम जाओ हम को भी जाने दो हमको काम है... दादू फ़ुर्र से गायब तभी समीर लाल का फ़ोन बज़ा बोले:- गिरीश भाई, नवम्बर में आ रहा हूं..."
”जी स्वागत है, और बैटरी लो क्या पूरी बंद हो गई ” हम बिना किसी विचार को लिये घूमने की गरज़ से आगे बड़ने ही वाले थे कि मुआं दादू फ़िर आ टपका आते ही पूछने  लगा :-"काहे बायें कान में फ़ुनवा काहे चिपकाए थे "
.हम बोले:- एक शोध से पता चला है कि ’दाएं कान में फ़ोन लगाने से दिमाग़  पर नेगैटिव रेज़ का असर होता है..?
दादू:- अरे दिमाग पे असर कैसे होगा तुम्हारे दौनो कानों  की घुटने से दूरी नापी कभी ?
हम गरियाने ही वाले थे कि फ़िर दादू फ़ुर्र ...
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वैसे दादू ने ठीक ही कहा हम ज़्यादातर इधर उधर की बातों जैसे सियासत, नेता, धार्मिक उन्माद जैसे विषयों भोंथरी चिन्ता करते हैं.... जबकी खुशहाल वतन के बारे में शायद कम सोचते हैं. ज़रा सोचिये कित्ता वक्त ज़ाया करतें  हैं हम सियासी दांवपेंच , व्यवस्था को गरियाने , फ़िल्मी सितारों की गासिप, अड़ोसी-पड़ोसी रिश्तेदारों की निन्दा आदि पर लनभग नब्बे प्रतिशत है न .. तब हम यक़ीन कीजिये घुटने से सोचतें हैं.....

Wow.....New

Is everything predestined ? Dr. Salil Samadhia

आध्यात्मिक जगत के बड़े से बड़े प्रश्नों में एक है  - क्या सब कुछ पूर्व निर्धारित है ?  (Is everything predestined ? ) यदि हां , तॊ...