सुनिये---शुक्रवार,२४अक्तूबर २००८ को पोस्ट की गई दिगंबर नासवा जी की ये रचना---ज़िंदगी का गीत
ज़िंदगी का रंग हो वो गीत गाना चाहिए
यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए
शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर
स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए
दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर
दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए
मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर
रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए
चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी
आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए
आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला
सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए
एक बेहतरीन रचना को वाक़ई गुनगुनाना चाहिये. एक गज़ब रचना है प्रस्तुति में जो भी कमीं हो अवश्य बताएं
सादर अर्चना चावजी
यूँ कोई भी गीत नही गुन-गुनाना चाहिए
शहर पूरा जग-मगाता है चरागों से मगर
स्याह मोड़ पर कोई दीपक जलाना चाहिए
दोस्तों की दोस्ती पर नाज तो करिये मगर
दुश्मनों को देख कर भी मुस्कुराना चाहिए
मंज़िलें को पा ही लेते हैं तमाम राहबर
रास्ते के पत्थरों को भी उठाना चाहिए
चाँद की गली मैं सूरज खो गया अभी अभी
आज रात जुगनुओं को टिम-टिमाना चाहिए
आदमी और आदमी के बीच का ये फांसला
सुलगती सी आग है उसको बुझाना चाहिए
एक बेहतरीन रचना को वाक़ई गुनगुनाना चाहिये. एक गज़ब रचना है प्रस्तुति में जो भी कमीं हो अवश्य बताएं
सादर अर्चना चावजी