1.12.08

तय करो की वोट बचाना है या की देश ?

"मेरे प्रिय "
वंदे-मातरम
यदि देश की अस्मिता और देश को बचाना है- तो चलिए इस
देश को चुनावी अखाडे में तब्दील होने से बचाएं , सब के सब
एक सुर में गायें "शुजलाम सुफलाम् मलयज शीतलाम "
हम को तय कराना ही होगा
"तय करो की वोट बचाना है या की देश "
इस पोस्ट की चर्चा की हरिभूमि ने अपने नियमित कालम "ब्लॉग की दुनिया से " में ०२/१२/२००८ को हरिभूमि का आभार ब्लॉग-चर्चा के लिए और पोस्ट को शामिल कराने के लिए

30.11.08

आ मीत लौट चलें

आ ओ मीत लौट चलें गीत को सुधार लें
वक़्त अर्चना का है -आ आरती संवार लें ।
भूल हो गई कोई गीत में कि छंद में
या हुआ तनाव कोई , आपसी प्रबंध में
भूल उसे मीत मेरे सलीके से सुधार लें !
छंद का प्रबंध मीत ,अर्चना के पूर्व हो
समेटी सुरों का अनुनाद भी अपूर्व हो,
अपनी एकता को रेणु-तक प्रसार दें ।
राग-द्वेष,जातियाँ , मानव का भेद-भाव
भूल के बुलाएं पार जाने एक नाव !
शब्द-ध्वनि-संकेत सभी आज ही सुधार लें !
इस गीत में सच आज जो बात कहनी चाही थी कौन सुनता इस गीत का संदेश खो गया था कुछ ने वाह वाह करके मेरी आवाज़ भुला दी कुछ अर्थ खोजते रहे फ़िर निरर्थक समझ के छोड़ दिया . कुछ के लिए तो फिजूल था कवि । मेरी यानी कवि की आत्मा को मारने वालो "तुम समझो देश तुम्हारे लिए खिलौना कतई न बने इस बात का तमीज इस भारत नें सीख लिया है "
आज मैं एक सूची जारी करना चाहता हूँ :- इसे स्वीकारना ही होगा
  1. भारत में कोई भी व्यक्ति या समुदाय किसी भी स्थिति में जाति, धर्म,भाषा,क्षेत्र के आधार पर बात करे उसका बहिष्कार कीजिए ।
  2. लच्छेदार बातों से गुमराह न हों ।
  3. कानूनों को जेबी घड़ी बनाके चलने वालों को सबक सिखाएं ख़ुद भी भारत के संविधान का सम्मान करें ।
  4. थोथे आत्म प्रचारकों से बचिए ।
  5. जो आदर्श नहीं हैं उनका महिमा मंडन तुंरत बंद हो जो भी समुदाय व्यक्ति ऐसा करे उसे सम्मान न दीजिए चाहे वो पिता ही क्यों न हो।
  6. ईमानदार लोक सेवकों का सम्मान करें ।
  7. भारतीयता को भारतीय नज़रिए से समझें न की विदेशी विचार धाराओं के नज़रिए से ।
  8. अंधाधुंध बेलगाम वाकविलास बंद करें ।
  9. नकारात्मक ऊर्जा उत्पादन न होनें दें ।
  10. देश का खाएं तो देश के वफादार बनें ।
  11. किसी भी दशा में हुई एक मौत को सब पर हमला मानें ।
  12. देश की आतंरिक बाह्य सुरक्षा को अनावश्यक बहस का मसला न बनाएं प्रेस मीडिया आत्म नियंत्रण रखें ।
  13. केन्द्र/राज्य सरकारें आतंक वाद पे लगाम कसने देश में व् देश के बाहर सख्ती बरतें । पुलिस , गुप्तचर एजेंसीयों को सतर्क,सजग,निर्भीक रखें उनका मनोबल न तोडें ।

22.11.08

शनिचरी - निठल्ले के साथ चिट्ठो का चिट्ठा


" शनिचरी":- सुबह संदेशा भर लाई कि

महाशक्ति समूह की चिंता को पाठकों स्पर्श न करना सिद्ध कर गया समंदर की हवाएं अब तरो-ताज़ा नहीं करतीं. हैं किंतु कोई यदि ये कहे कि- सर्द मौसम... और तुम्हारी यादें... तो बाक़ी मौसमों में क्या करतें हैं जी ? हाँ शायद इंतजारकर रहें होंगे इस मौसम का . युवाओं में विवाह के प्रति बढ़ती अनास्था की समस्या को देखते हुए सबकी चिंता जायज़ है न इसी लिए तो समाचार मिलता है कि- “ दो वर्ष में तीस हजार युवाओं को मिलेगा रोजगार ? अच्छी खबरिया ले आएं हैं इसे पड़कर. कुंवारी बेटी के बाप दूसरे समाचार से प्रभावित है. सभी कहतें है सूर्य उदय हो गया है . जयश्री का ब्लॉग सच देखने काबिल हैफ़ैमिली डॉक्टर की ज़रूरत है कबाड़खाने को. सियासी मैदान में ज़मीन तलाशती औरतें और इस समाचार के साथ पुरूष घरेलू कामकाज सीखरहे है, इस मसले पर ब्लॉग लिखने जा रहे हैं कुछ ख़बर चुनाव क्षेत्र से : संवाद दाता ताऊ भेज रहें है ज़रूर बांचिए '

जय शनि देव

13.11.08

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग

यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .

********

एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए

मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए

झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !

********

युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा

महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा

हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !

********

सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे

इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !

अपने दिल में बस इस भय की सुनो 'सियासी-पलती आग ?


हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग

10.11.08

"ज्ञानरंजन जी अब पहल बंद कर देंगे "

-->

पंकज स्वामी गुलुश नें बताया की ज्ञान जी ने अपना निर्णय सुना ही दिया की वे पहल को बंद कर देंगे कबाड़खाना ने इस समाचार को को पहले ही अपने ब्लॉग पर लगा दिया था. व्यस्तताओं के चलते या कहूं तिरलोक सिंह होते तो ज़रूर यह ख़बर मुझे समय पर मिल गई होती लेकिन इस ख़बर के कोई और मायने निकाले भी नहीं जाने चाहिए . साहित्य जगत में यह ख़बर चर्चा का बिन्दु इस लिए है की मेरे कस्बाई पैटर्न के शहर जबलपुर को पैंतीस बरस से विश्व के नक्शे पर अंकित कर रही पहल के आकारदाता ज्ञानरंजन जी ने पहल बंद कराने की घोषणा कर दी .
पंकज स्वामी की बात से करने बाद तुंरत ही मैंने ज्ञान जी से बात की .ज्ञान जी का कहना था :"इसमें हताशा,शोक दु:ख जैसी बात न थी न ही होनी चाहिए .दुनिया भर में सकारात्मक जीजें बिखरीं हुईं हैं . उसे समेटने और आत्मसात करने का समय आ गया है" पहल से ज्ञानरंजन से अधिक उन सबका रिश्ता है जिन्होंने उसे स्वीकारा. पहल अपने चरम पर है और यही बेहतर वक़्त है उसे बंद करने का . हाँ,पैंतीस वर्षों से पहल से जो अन्तर-सम्बन्ध है उस कारण पहल के प्रकाशन को बंद करने का निर्णय मुझे भी कठोर और कटु लगा है किंतु बिल्लोरे अब बताओ सेवानिवृत्ति भी तो ज़रूरी है.
ज्ञान जी ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा :-"हाँ क्यों नहींपहल की शुरुआत में तकलीफों को मैं उस तरह देखता हूँ की बच्चा जब उम्र पता है तो उसके विकास में ऐसी ही तकलीफों का आना स्वाभाविक है बच्चे के दांत निकलने में उसे तकलीफ नैसर्गिक रूप से होती है,चलना सीखने पर भी उसखी तकलीफों का अंदाज़ आप समझ सकते हैं "उन घटनाओं का ज़िक्र करके मैं जीवन के आनंद को ख़त्म नहीं करना चाहता. सलाह भी यही है किसी भी स्थिति में सृजनात्मकता-के-उत्साह को कम न किया जाए. मैं अब शारीरिक कारण भी हैं पहल से अवकाश का 


-->
ब्लागर्स के लिए ज्ञान जी का कहना है 
:"पहल का विराम कोई अन्तिम विराम नहीं है 
सकारात्मकता के साथ स्वयं के और समाज के 
विकास के ढेरों दरवाज़े खुले हैं कभी भी कभी भी
 सकारात्मकता को विराम नहीं मिला 
            हमें चाहिए कि सकारात्मकता 
             को साथ लेकर आगे बढें  जो जो भी 
             करें बेहतर करें !

ज्ञान जी पूरे उछाह के साथ पहल का प्रकाशन बंद कर रहें हैं किसी से कोई दुराग्रह
वितृष्णा,वश नहीं . पहल भारतीय साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित एवं पठित ऐसी पत्रिका है जो कल इतिहास बन के सामने होगी बकौल मलय:"पहल,उत्कृष्ट विश्व स्तरीय पत्रिका इस लिए भी बन गई क्योंकि भारतीय रचना धर्मिता के स्तरीय साहित्य को स्थान दिया पहल में . वहीं भारत के लिए इस कारण उपयोगी रही है क्योंकि पहल में विश्व-साहित्य की श्रेष्ठतम रचनाओं को स्थान दिया जाता रहा'' मलय जी आगे कह रहे थे की मेरे पास कई उदाहरण हैं जिनकी कलम की ताकत को ज्ञान जी ने पहचाना और साहित्य में उनको उच्च स्थान मिला,
प्रेमचंद के बाद हंस और विभूति नारायण जी के बाद "वर्तमान साहित्य के स्वरुप की तरह पहल का प्रकाशन प्रबंधन कोई और भी चाहे तो विराम लगना ही चाहिए ऐसी कोशिशों पर पंकज गुलुश से हुई बातचीत पर मैंने कहा था "
इस बात की पुष्टि ज्ञान जी के इस कथन से हुई :-गिरीश भाई,पहल का प्रकाशन किसी भी स्थिति में आर्थिक कारणों,से कदापि रुका है आज भी कई हाथ आगे आएं हैं पहल को जारी रखे जाने के लिए . किंतु पहल के सन्दर्भ में लिया निर्णय अन्तिम है. 
  • ज्ञान जी अब क्या करेंगें ?
  • ज्ञान जी ने क्यों पहल बंद कर दी 
  • ज्ञान जी की पहल; का विकल्प 
  • इनमें से अधिकाँश मुद्दों पर ज्ञान जी ने ऊपर स्पष्ट कर दिया है किंतु एक बार प्रथम बिन्दु की और सुधि पाठकों का ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा ज्ञान जी ने कहा:-"As a councilor i am available " ज्ञान जी ने यह भी कहा मुझे और सृजन करना है वो तो करूंगा ।
  • पहल के विकल्प के सम्बन्ध में ज्ञान जी का कथन है : "जो भी होगा अच्छा होगा ऐसा नहीं है कि पहल के बाद सब कुछ ख़त्म हो गया "
आज क्या बीस दिन से लगातार पहल को लेकर ज्ञान जी के पास फोन आ रहें हैं उन में आफर भी शामिल हैं । किंतु दृड़ता से सबसे कृतज्ञता भरे शब्दों में स्नेह बिखेरते ज्ञानरंजन संपृक्त विद्वान या कहूं महर्षि भाव से दृड़ता से अपने निश्चय का निवेदन कर ही लेते हैं । 



9.11.08

एक थे तिरलोक सिंग जी

एक व्यक्तित्व जो अंतस तक छू गया है उनसे मेरा कोई खून का नाता तो नहीं किंतु नाता ज़रूर था कमबख्त डिबेटिंग गज़ब चीज है बोलने को मिलते थे पाँच मिनट पढ़ना खूब पङता था लगातार बक-बकाने के लिए कुछ भी मत पढिए ,1 घंटे बोलने के लिए चार किताबें , चार दिन तक पढिए, 5 मिनट बोलने के लिए सदा ही पढिए, ये किसी प्रोफेसर ने बताया था याद नहीं शायद वे राम दयाल कोष्टा जी थे ,सो मैं भी कभी जिज्ञासा बुक डिपो तो कभी पीपुल्स बुक सेंटर , जाया करता था। पीपुल्स बुक सेंटर में अक्सर तलाश ख़त्म हों जाती थी, वो दादा जो दूकान चलाते थे मेरी बात समझ झट ही किताब निकाल देते थे। मुझे नहीं पता था कि उन्होंनें जबलपुर को एक सूत्र में बाँध लिया है। नाम चीन लेखकों को कच्चा माल वही सौंपते है इस बात का पता मुझे तब चला जब पोस्टिंग वापस जबलपुर हुयी। दादा का अड्डा प्रोफेसर हनुमान वर्मा जी का बंगला था। वहीं से दादा का दिन शुरू होता सायकल,एक दो झोले किताबों से भरे , कैरियर में दबी कुछ पत्रिकाएँ , जेब में डायरी, अतरे दूसरे दिन आने लगे मलय जी के बेटे हिसाब बनवाने,आते या जाते समय मुझ से मिलना भूलने वाले व्यक्तित्व ..... को मैंने एक बार बड़ी सूक्ष्मता से देखा तो पता चला दादा के दिल में भी उतने ही घाव हें जितने किसी युद्धरत सैनिक के शरीर,पे हुआ करतें हैं। कर्मयोगी कृष्ण सा उनका व्यक्तित्व, मुझे मोहित करने में सदा हे सफल होता..... ठाकुर दादा,इरफान,मलय जी,अरुण पांडे,जगदीश जटिया,रमेश सैनी,के अलावा,ढेर सारे साहित्यकार के घर जाकर किताबें पढ़वाना तिरलोक जी का पेशा था। पैसे की फिक्र कभी नहीं की जिसने दिया उसे पढ़वाया , जिसके पास पैसा नहीं था या जिसने नही दिया उसे भी पढवाया कामरेड की मास्को यात्रा , संस्कार धानी के साहित्यिक आरोह अवरोहों , संस्थाओं की जुड़्न-टूटन को खूब करीब से देख कर भी दादा ने इस के उसे नहीं कही। जो दादा के पसीने को पी गए उसे भी कामरेड ने कभी नहीं लताडा कभी मुझे ज़रूर फर्जी उन साहित्यकारों से कोफ्त हुई जिनने दादा का पैसा दबाया कई बार कहा " दादा अमुक जी से बात करूं...? रहने दो ...? यानी गज़ब का धीरज सूरज राय "सूरज" ने अपने ग़ज़ल संग्रह के विमोचन के लिए अपनी मान के अलावा मंच पे अगर किसी से आशीष पाया तो वो थे :"तिरलोक सिंह जी " इधर मेरी सहचरी ने भी कर्मयोगी के पाँव पखार ही लिए। हुआ यूँ कि सुबह सवेरे दादा मुझसे मिलने आए किताब लेकर आंखों में दिखना कम हों गया था,फ़िर भी आए पैदल सड़क को शौचालय बनाकर गंदगी फैलाने वाले का मल उनके सेंडील मे.... मेन गेट से सीदियों तक गंदगी के निशान छपाते ऊपर गए दादा. अपने आप को अपराधी ठहरा रहे थे जैसे कोई बच्चा गलती करके सामने खडा हो. इधर मेरा मन रो रहा था की इतना अपनापन क्यों हो गया कि शरीर को कष्ट देकर आना पड़ा दादा को .संयुक्त परिवार के कुछ सदस्यों को आपत्ति हुयी की गंदगी से सना बूडा आदमी गंदगी परोस गया गेट से सीडी तक . सुलभा के मन में करूणा ने जोर मारा . उनके पैर धुलाने लगी .

7.11.08

मेरा संसार :ब्लॉग कहानी भाग 02

छवि-साभार :शैली खत्री के ब्लॉग बार -बार देखो से
समय चक्र ने रुकना कहाँ सीखा यदि समय रुक जाना सीख लेता तो कितना अजीब सा दृश्य होता . प्रथम प्रीत का मुलायम सा एहसास मेरे जीवन में आज भी कभी उभर आता है . मधुबाला सी अनिद्य सुन्दरी जीवन में प्रवेश करती है . चंचला सुनयनी मेरी प्रिया का वो नाम न लूंगा जो है उसे क्षद्म ही रखना उसका सम्मान है . चलिए सुविधा के लिए उसे "मधुबाला" नाम दे दिया जाए .दब्बू प्रकृति का मैं किसी मित्र के अपमानजनक संबोधन से क्षुब्ध कालेज की लायब्रेरी में किताब में मुंह छिपाए अपने आप को

पढ़ाकू साबित कर रहा था. तभी मधु जो मेरे पीछे बैठी मेरे एक एक मूवमेंट पर बारीकी से निगाह रख रही थी बोल पड़ी :'क्या हुआ ?....रो क्यों रहे हो ?'

'कुछ तो नहीं ?'

नहीं,दीपक से कोई कहा सुनी हो गई ?

नहीं तो .........! विस्मित मैं उससे छुटकारा पाने की गरज से क्लास अटैंड करने का बहाना करके निकल गया. मधु मेरा पीछा करते-हुए सीडियों से उतर रही थी ,

कर मधु ने अपने जन्म दिन का न्योता दिया . और मेरी हाँ सुनते ही मुझे पीछे छोड़ते आगे निकल गयी.मेरी पीड़ा प्रथम आमंत्रण से रोमांच में बदल गयी. मन ही मन आहिस्ता आहिस्ता सपनों की आवाजाही शुरू हो गयी.

जन्मदिन के दिन जब मई मधु के घर पहुंचा.जन्मदिन का उपहार जो उसने खोला तो मधु का परिवार बेहद प्रसन्न हुआ मेरे उपहार चयन को ले कर होता भी क्यों न साहित्यिक किताबें थीं जो मधु के पिता जी को आकर्षित कर रहीं थी . इससे अधिक वे मुझे पुत्री के निरापद मित्र होने का खिताब दे चुके थे मन ही मन . जन्मदिन की संक्षिप्त पारिवारिक पार्टी में मै अपने आप को मिसफिट पा रहा था. किंतु मधु के पापा थे की मुझसे चर्चा करने लगे . बमुश्किल मैं उनसे इजाज़त पा सका था उस दिन . मधु बाहर तक छोड़ने आयी मुझे रिक्शा लेना था सो थोड़ा गेट पर चर्चा करने का अवसर भी मिला उसे बस अवसर मिलते ही मधु बोल पड़ी :- लड़कियों को गिफ्ट भी नहीं देना आता बुद्धू कहीं के ?

मैं अवाक उसे अपलक देखता रहा कि एक ऑटो सर्र से निकल गया . तभी मधु ने एक फूल जो अपने साथ लाई थी मुझे दिया मैंने पूछा "ये क्या है ? "

फ़िर वही ,बुद्धू ...ये रिटर्न गिफ्ट है.........! साॅरी तुमको तो रामायण गीता देना थी .

तत्क्षण मेरे अंर्तमन का युवक प्रगट हो गया और मैं बोल पड़ा :"सुनो मधु , मेरा अन्तिम लक्ष्य सिर्फ़ ये.....नहीं है मैं सब जानता हूँ जो तुम कहना चाह रहीं हो लेकिन सही समय पर ही सही काम करना चाहिए अभी हम मित्र ही हैं एक दूसरे के "

ठीक है लेकिन फ़िर मिलोगे तो मुझे तुम से बात करनी है ?

"ज़रूर,किंतु समय की प्रतीक्षा तो करनी ही होगी तुमको "

ठीक है....! पर याद रहे अगले जन्म-दिन के पहले ?

"कोशिश करूंगा ...!"

समय को रोकना आपकी तरह मुझे भी नहीं आता । आए भी तो समय को ख़ुद रुकना आता है क्या......! और समय को रुकना भी आ जाए तो क्या समाज रुकना चाहता है न ही चाहेगी मधुबाला कि उसका अगला जन्म दिन ठीक उस तारीख को न हो । माँ -बाबूजी भी तो चाहते थे कि बेटों की शादियाँ तभी हों जब कि उनकी बेटियाँ ब्याह जाएँ हम घर के अनुशासन को भंग भी नहीं करना चाहते थे । अपने लिए तो सभी जीतें हैं किंतु माँ बाप के सपनों और उनकी आकांक्षाओं के विरुद्ध बिगुल भी नहीं बजाना है इसी सोच को लेकर हम अनुशासित रहे ।हो सकता है कि पिछडेपन की निशानी थी हमारी औरों की नज़रों में ......हम संतुष्ट थे। मधु की -इज़हारे तमन्ना पर अपना रिअक्शन न देना अच्छा था या बुरा ,सही था या ग़लत मुझे मेरा कवि बार बार कहता -"पता तो करो किसी नायिका से कोई भी नायक ऐसा बर्ताव नहीं करता कभी "

'' राम ने भी तो '

राम ने क्या अनुशासन तोडा़ था परिवार का , नहीं उनने तो सिर्फ़ धनुष तोडा था वो जो सशक्त आयुध था , उसका जिसने स्वयं कामदेव को उद्दंडता का सबक सिखाया था । राम ने कभी कोई मर्यादाएं नहीं तोडी । मन ऐसी स्थिति में पीर से सराबोर हुआ कवि तब जागा और रच दिया प्रीतगीत

साथ ही उस दौर में लिखी गयी इस तरह , रचना करना कैसे सीखा मुझे नहीं मालूम किन्तु ऐसा ही है चिंतनघट से जब भाव रस पीया तो ऐसी ही कविता निकली दिल से अपनी चिंता के पैमानों से कुछ पी कर ऐसी कविता कभी न कह पाता । मेरी कवितायेँ सुनाने वालों में मधु भी होती किंतु कविताओं से बेखर ही होती थी वो उसे केवल एक प्रीतगीत ही पसंद था । वैसी कविता लिखने का आग्रह कई बार किया मुझसे न लिखा गया । मेरी कवितायेँ को बूडों़ की कविताएँ होने का आरोप मिला मुझे बुरा नहीं लगा था आज भी वो चुलबुली सी खनकती आवाज़ सुनाई देती है मुझे । आप सोच रहें है न कि उस नायिका का क्या हुआ ? क्या मैं...............?

फ़िर कभी बताउगा अगली किश्त में ये सवाल आप पर ही छूड़ता हूँ कि आप अंदाज़ लगाएं अगली पोस्ट तक ........!



Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...