माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
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माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
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एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
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युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
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सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो 'सियासी-पलती आग ?
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग
टिप्पणियाँ
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
" its really amezing, so thoughtfull"
Regards
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग
बहुत सुंदर और गहरे भावो से भरी कविता ! बहुत शुभकामनाएं !
धन्यवाद
Tau ji
Sameer bhai
Raj dada ji
aap sabhee ka abhaaree hain
सर्वप्रथम तो इस बात का आभार
की आप ने पढ़ के टिप्पणी की है!
सच यह सुखद संदेश ही है .
अशोक का शोक हमारे जीवन पथ
परिवर्तन का बिम्ब है .
थोदा आत्म चिंतन ही था मेरी अपनी दशा है
जो अशोक से बिम्बित हुई
सादर अभिनन्दन
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www.discobhangra.com
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो 'सियासी-पलती आग
वाह! क्या खुब! "ज़िंदा न-ईमान रहे " अच्छी प्रस्तुती!!
हार्दीक मगल भावना!
कृपया मेरे ब्लोग पर पधारे, आपसे विचारो कि अपेक्षा!
महावीर सेमलानी(जैन)
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
behad behtareen .dil se niklee huee aur dil ko choone waalee panktiyaan.
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग.
kitnee maarmik abhivyakti hai mukul bhai ye aapkee. dil ko chhoo gayee bhai.