2.10.08

गाँधी के लिए एक कविता


सच एक सपनीला सवाल जो तुमने

कविता कही है

किया है एक सवाल

जो उठाती है
सवालों पे सवाल

परतें विचारों के झरोखे खोल देतीं है !

सब जानते हैं उस बूडे आदमी ने बता दिया था

की अहिंसा में सत्य में कितना वज़न होता है

महात्मा गांधी , जो कभी नही टूटे

आज तक विश्व-को दिशा देते हैं

"हे,राम"

गुजरात का बापू विश्व को एक सूत्र में बाँध रखने

वाला बापू आज भी समीचीन है

लादेन तुम जान लो इस काया ने अपने

आचरण से /सत्य के साथ

विश्व को सामंतों को हिला दिया था

क्या धरती की रक्षा के लिए तुम

एक पल को इस गांधी की तस्वीर निहारने की

क्षमता रखते हो.....?

शायद वो माद्दा तुम में नहीं

तो ठीक है

हममें तुम को यह समझाने का

सामर्थ्य है ।

अगर बापू-पथ तुम्हारी नज़र में सही न हो

सत्य तुमको पसंद न हो तो भी एक बार इसे समझने की

कोशिश करो

आज ईद पर तुमसे यही इल्तजा है !

{चित्र:प्रीटी,गुजरात/गूगल बाबा से आभार सहित }

1.10.08

ईद मुबारक हो



जो चाहो तो आज से शुरू कर सकते हो एक

विश्वासी जीवन

मत जियो ऐसा

आभासी जीवन जो

तकसीम कर देता है

पहले दिलों को

फ़िर नक्शों को

फ़िर

फ़िर क्या............?

यहीं से ख़त्म होती है सुकून भरी ज़िंदगीयाँ !

"जिंदगियाँ"

वो जो आभास और अब्बास के बीच फर्क नहीं करतीं

वो जो

रेशमा सी रौशन मुस्कराहट बिखेरती हैं
हाँ जी

वो जो

टाँगे पर स्टेशन से घर तक
ले कर आतीं है
"रमजान-चचा"
ने नाम से
तो कहीं इकबाल की पहचान
से पहचानी जातीं हैं ।

खालिक के सूट के बगैर
कोई दूल्हा "दूल्हा" नहीं बनता
इदरीस के घर की
"तुक्क -तुक्क,तॉय-तॉय"
आवाज़ के बिना मुहल्ले में भोर
नहीं सुहाती थीं ।

इनके विशवास कम न हों
सत्य का आभास बेदम न हो
मीत इस ईद में भी ईद का
उछाह कम न हो


ब्लॉग पर प्रकाशित चित्र के लिए किसी भी पाठक को उसके स्वत्व को लेकर कोई अधिकार हो तो कृपया मुझे मेल कीजिए

बाबा हरभजन सिंह :एक कविता






तुम्हारा संकल्प
इन गद्दारों को भी कोई सबक दे
जो इस देश को देश में
तकसीम कर रहें हैं
बाबा सच तो ये है की
इस मुल्क की सरहद को
कोई छू नहीं सकता
फ़िर भी ये देश अन्दर से पुख्ता हो
देश में कई देश उगाने तैयार
भाषा-धर्म-जाती,के नाम
पर सियासत का व्यापार
रोकने एक बार आ जाओ .....!!

30.9.08

युद्ध ज़रूरी है.....

"कुरान " में गीता में रामायण में
सभी में लिखा है -युद्ध ज़रूरी है ?
जी हाँ युद्ध ज़रूरी है लगातार ज़रूरी है
कितनी भी संकरीं क्यों न हो
इस ज़रूरी जंग में
विचारों की सेना इन्हीं गलियों से निकलें
यहीं से शुरू होगा युद्ध
दिलों को जीतने का
हताशा के रीतने का
"कबीर" से पूछो युद्ध के लिए
साखियाँ कितनी ज़रूरी हैं
युद्ध के लिए कितना ज़रूरी है जुड़ना
सारथि भी कृष्ण का सा सर्वहारा हो
####
कुछ भी अन्तिम सत्य नहीं है
तो युद्ध ही क्यों .....?
धर्म-युद्ध,
युद्ध-धर्म
की परिभाषा जाने बगैर हम युद्ध रत क्यों
युद्ध ही ज़रूरी है
तो चलो बचपन
किसी बचपन के आँसू पौंछें
किसी जवानी की सिसकन को रोकें

29.9.08

लावण्यम्` ~अन्तर्मन्` पर लता जी का जन्म दिन










<=स्वर्गीय इश्मित सिंह और लता मंगेशकर जी







भारत रत्न लता जी

: लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`पर प्रकाशित पोस्ट ,सुश्री लता मंगेशकर जी , , के ७९ वें जन्म दिन पर बेहद भावपूर्ण,सूचना प्रद,संस्मरण,सा मनोहारी बन पड़ी है।

दीदी लता जी के प्रति आपकी भावनाएं एक करोड़ भारतीयों की भावनाएं हैं आपको सादर नमन

मेरी और से स्वर साधिका को समर्पित कविता
सुर सरगम से संयोजित युग
तुम बिन कैसे संभव होता ?
कोई कवि क्यों कर लिखता फिर
कोयल का क्यों अनुभव होता...?
****************
विनत भाव से जब हिय पूरन
करना चाहे प्रभु का अर्चन.
ह्रदय-सिन्धु में सुर की लहरें -
प्रभु के सन्मुख पूर्ण समर्पण ..
सुर बिन नवदा-भक्ति अधूरी - कैसे पूजन संभव होता ?
*********************
नव-रस की सुर देवी ने आके
सप्तक का सत्कार किया !
गीत नहीं गाये हैं तुमने
धरा पे नित उपकार किया!!
तुम बिन धरा अधूरी होती किसे ब्रह्म का अनुभव होता ..?

**गिरीश बिल्लोरे मुकुल

25.9.08

पता नहीं उनको ज़टिल क्यों लगे मलय ?

जिनको मलय जटिल लगें उनको मेरा सादर प्रणाम स्वीकार्य हो मुझे डाक्टर साहब को समझाने का रास्ता दिखा ही दिया उन्होंने जिनको मेरे पड़ोसी मलय जी जटिल लगते हैंलोगो का मत था की मलय जी पक्के प्रगतिशील हैं वे धार्मिक सामाजी संसकारों की घोर उपेक्षा करतें हैं .....हर होली पे मलय को रंग में भीगा देखने का मौका गेट नंबर चार जहाँ मलय नामक शिव की कुटिया है में मिलेंगे इस बार तो गज़ब हो गया मेरी माता जी को पितृ में मिलाना पिताजी ने विप्र भोज के लिए मलय जी को न्योत लिया मुझे भी संदेह था किंतु समय पर दादा का आना साबित कर गया की डाक्टर मलय जटिल नहीं सहज और सरल है
अगर मैं नवम्बर की २९वीं तारीख की ज़गह १९ को पैदा होता तो हम दौनो यानी दादा और मैं साथ-साथ जन्म दिन मनाते हर साल खैर..........!
हाँ तो जबलपुर की लाल मुरम की खदानें जहाँ थीं [अभी कुछ हैं शायद ]उसी सहसन ग्राम में १९ -११-१९२९ को जन्में मलय जी की जीवन यात्रा बेहद जटिल राहों से होकर गुज़री है किंतु दादा की यात्रा सफल है ये सभी जानते हैंदेश भर में मलय को उनकी कविता ,कहानी,की वज़ह से जाना जाता हैजो इस शहर का सौभाग्य ही तो है की मलय जबलपुर के हैंवे वास्तव में सीधी राह पे चलते हैं , उनको रास्तों में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के
प्रबंध करते नहीं बनतेवे भगोडे भी नहीं हैं सच तो ये है कि "शिव-कुटीर,टेली ग्राफ गेट नंबर चार,कमला नेहरू नगर निवासी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक टेंट हाउस नहीं चलाते , बस पडतें हैं लिखतें हैं जैसे हैं वैसे दिखतें हैं
उनसे मेरा वादा है "दादा,आपके रचना संसार पर मुझे काम करना है "
उन्होंने झट कहा "आप,जैसा चाहो ......................!"
ज्ञानरंजन जी के पहल प्रकाशन से प्रकाशित मलय जी की पुस्तक ''शामिल होता हूँ '' में ४२ कवितायेँ इस कृति से जिसमें उनकी १९७३ से १९९१ के मध्य लिखी गई कविताओं से एक कविता के अंश का रसास्वादन आप भी कीजिए
"पानी ही बहुत आत्मीय "
पानी
अपनी तरलता में गहरा है
अपनी सिधाई में जाता है
झुकता मुड़ता
नीचे की ओर
जाकर नीचे रह लेता है
अंधे कुँए तक में
पर पानी
अपने ठंडे क्रोध में
सनाका हो जाता है
ठंडे आसमान पर चढ़ जाता है
तो हिमालय के सिर पर
बैठकर
सूरज के लिए भी
चुनौती हो जाता है
पर पानी/पानी है
बहुत आत्मीय
बहुत करोड़ों करोड़ों प्यासों का/अपना
रगों में खून का साथी /हो बहता है
पृथ्वी-व्यापी जड़ों से होकर
बादल की खोपडी तक में
वही होता है-ओर अपने
सहज स्वभाव के रंगों से
हमको नहलाता है
सूरज को भी/तो आइना दिखाता है
तब तकरीबन पानी
समय की घंटियाँ बजाता है
और शब्दों की
सकेलती दहार में कूदकर
नदी हो जाने की /हाँक लगाता है
पानी बहा जा रहा है
पिया जा रहा है जिया जा रहा है

मलय जी की यह रचना लम्बी है पाठकों के लिए एक अंश छाप रहा हूँ आप सुधि पाठक चाहेंगे तो शेष भाग अगली पोस्ट में प्रकाशित कर ही दूंगा,
मुझे यकीन है कि "रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ..."को विस्तार देती या रचना आपको पसंद आयी होगी ............और हाँ मलय जी जटिल नहीं हैं इस बात की पुष्टि आप ख़ुद ही कर सकतें हैं.......


23.9.08

आ ओ ! मीत लौट चलें




आ ओ मीत लौट चलें गीत को सुधार लें
वक़्त अर्चना का है -आ आरती संवार लें ।
भूल हो गई कोई गीत में कि छंद में
या हुआ तनाव कोई , आपसी प्रबंध में
भूल उसे मीत मेरे सलीके से सुधार लें !
छंद का प्रबंध मीत ,अर्चना के पूर्व हो
समवेती सुरों का अनुनाद भी अपूर्व हो,
अपनी एकता को रेणु-रेणु तक प्रसार दें ।
राग-द्वेष,जातियाँ , मानव का भेद-भाव
भूल के बुलाएं पार जाने एक नाव !
शब्द-ध्वनि-संकेत सभी आज ही सुधार लें !

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