1.10.08

ईद मुबारक हो



जो चाहो तो आज से शुरू कर सकते हो एक

विश्वासी जीवन

मत जियो ऐसा

आभासी जीवन जो

तकसीम कर देता है

पहले दिलों को

फ़िर नक्शों को

फ़िर

फ़िर क्या............?

यहीं से ख़त्म होती है सुकून भरी ज़िंदगीयाँ !

"जिंदगियाँ"

वो जो आभास और अब्बास के बीच फर्क नहीं करतीं

वो जो

रेशमा सी रौशन मुस्कराहट बिखेरती हैं
हाँ जी

वो जो

टाँगे पर स्टेशन से घर तक
ले कर आतीं है
"रमजान-चचा"
ने नाम से
तो कहीं इकबाल की पहचान
से पहचानी जातीं हैं ।

खालिक के सूट के बगैर
कोई दूल्हा "दूल्हा" नहीं बनता
इदरीस के घर की
"तुक्क -तुक्क,तॉय-तॉय"
आवाज़ के बिना मुहल्ले में भोर
नहीं सुहाती थीं ।

इनके विशवास कम न हों
सत्य का आभास बेदम न हो
मीत इस ईद में भी ईद का
उछाह कम न हो


ब्लॉग पर प्रकाशित चित्र के लिए किसी भी पाठक को उसके स्वत्व को लेकर कोई अधिकार हो तो कृपया मुझे मेल कीजिए

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

ईद मुबारक!!

नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाऐं.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सलम वकेकुम मिया
कैसे है
आपको भी इद मुबारक

राज भाटिय़ा ने कहा…

आपको भी ईद मुबारक!!! ओर सभी पढने वालो को भी ईद मुबारक.
धन्यवाद

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Dada
Allaah sabhee ko nekee or aman ka sandesh de
ID MUBAARAK

Wow.....New

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