29.9.23

गुज़रात का गरबा विश्व-व्यापी हो गया

 



जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर


`गुजरात के व्यापारियों एवं प्रवासियों  ने सम्पूर्ण भारत ही नहीं बल्कि  विश्व को अपनी संस्कृति से परिचित कराया इतना ही नहीं  उसे  सर्व प्रिय भी बना दिया.

गरबा गुजरात से निकल कर भारत के सुदूर प्रान्तों तथा विश्व के उन देशों तक जा पहुंचा है जहाँ भी गुजराती परिवार जा बसे हैं , 

एक  महिला मित्र प्रीती गुजरात सूरत से हैं उनको मैंने कभी न तो देखा किंतु   कला रुझान को परख कर पहले आरकुट फिर फेसबुक पर  मित्र बन गयीं हैं ,वे मुझसे अक्सर गुजरात के  सूरत, गांधीनगर, भरूच, आदि के बारे में अच्छी जानकारियाँ देतीं है . मेरे   विशेष आग्रह पर मुझे सूरत में   हुए गरबे का फोटो सहजता से भेज दिए .

एक लेखिका  गायत्री शर्मा बतातीं हैं कि  "गरबों की शान पारंपरिक पोशाकों से  चार-गुनी हो जाती है. इनमें महिलाओं के लिए चणिया-चोली और पुरुषों के लिए  केडि़या" गरबा आयोजनों में देखी जा सकती  है।

आवारा बंजारा ब्लॉग  पर प्रकाशित  पोस्ट गरबा का जलवा  में लेखक ने स्पष्ट किया है :-" गुजरात नौवीं शताब्दी में चार भागों में बंटा हुआ था, सौराष्ट्र, कच्छ, आनर्ता (उत्तरी गुजरात) और लाट ( दक्षिणी गुजरात)। इन सभी हिस्सों के अलग अलग लोकनृत्य लोक नृत्यों  गरबा, लास्या, रासलीला, डाँडिया रास, दीपक नृत्य, पणिहारी, टिप्पनी और झकोलिया की मौजूदगी गुजरात के सांस्कृतिक वैभव को मज़बूती प्रदान करती है । 

अब सवाल यह उठता है कि करीब करीब मिलती जुलती शैली के बावजूद  सिर्फ़ गरबा या डांडिया की ही नेशनल या इंटरनेशनल छवि क्यों बनी। शायद इसके पीछे इसका – गरबे के आकर्षक परिधान एवं नवरात्री पूजा-पर्व है।"

एक दूसरा  सच यह भी है कि- व्यवसायिता का तत्व गरबा को प्रसिद्द कर रहा है. फिल्मों में गरबे को , एवं चणिया-चोली केडि़या के आकर्षक उत्सवी परिधान की मार्केटिंग रणनीति ने गरबे  को वैश्विक बना दिया है.”

दूसरी ओर अंधाधुंध व्यवसायिकता से नाराज  ब्लॉग लेखक संजीत भाई की पोस्ट में गरबे की व्यावसायिकता से दूर रखने की वकालत की गई है. 

ब्लॉग पोस्ट पर  भाई संजय पटेल की  टिप्पणी उल्लेखनीय है कि  "संजीत भाई;गरबा अपनी गरिमा और लोक-संवेदना खो चुका है । उनका कहना है कि मैने तक़रीबन बीस बरस तक मेरे शहर के दो प्रीमियम आयोजनो में बतौर एंकर शिरक़त की . अब दिल खट्टा हो गया है. सारा तामझाम कमर्शियल दायरों में सिमटा हुआ लगता  है. पैसे का बोलबाला है इस पूरे खेल में और धंधे साधे जा रहे हैं.'' 

संजय जी की टिप्पणी एक हद तक सही किंतु मैं थोडा सा अलग  सोच रहा हूँ कि व्यवसायिकता में बुराई क्या अगर गुजराती परिधान लोकप्रिय हो रहें है , 

गरबा ही नहीं गिद्दा,भांगडा,बिहू,लावनी,सभी को सम्पूर्ण भारत ने सामूहिक रूप से स्वीकारा है केवल गरबा ही नहीं ये अलग बात है कि गरबा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के सहारे सबसे आगे हो गया ।

इन दिनों अखबार  समूहों  ने भी  गरबे को गुजरात से बाहर अन्य प्रान्तों तक ले जाने की सफल-कोशिश की हैं । 

इंदौर के  गरबा दल की 2008 में  , मस्कट में हुई प्रस्तुति गज़ब थी. . अब कनाडा, बेल्जियम, यूएसए, सहित विश्व के कई देशों में लोकप्रिय हुआ  तो यह भारत के लिए गर्व की बात है ।

सुना है कि- अब तो गरबे के लिए महिला साथी की व्यवस्था भी फीस देकर प्राप्त की जाने लगी है. ।

संजय पटेल जी की शिकायत जायज है. वे गुजराती हैं तथा  गरबे के बदले  स्वरुप से नाराज हैं उनका मत है कि- "चौराहों पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स, गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी करवाते नौजवान,  देर रात को गरबे के बाद (तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ों के साथ जुगलबंदी करते चिल्लाते नौजवान, घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती कमसिन-जवान बेटियाँ इसके अलावा गरबे  के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली, इवेंट मैनेजमेंट के चोचले,  रोज़ अख़बारों में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें, देर रात गरबे से लौटती हुड़दंग मचाती नौजवान पीढी और तो और  डीजे की  कानफ़ोडू आवाज़ें जिनमें से  गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम है. मुम्बईया  फ़िल्मी स्टाइल का संगीत,  बेसुरा संगीत संजय पटेल जी की नाराज़गी की मूल वज़ह है. 

गरबे  के नाम पर बेतहाशा भीड़ से ट्रैफिक जाम,  ...लोगों के लिए कष्ट देने वाला साबित हुआ है.

 रिहायशी इलाक़ों के मजमें धूल,ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण बीमारों, शिशुओं,नव-प्रसूताओं को तकलीफ़ देता है. उस पर नेतागिरी के जलवे । मानों जनसमर्थन जुटाने  के लिये एक राह  खुल गई हो 

नवरात्रों में देवी की आराधना प्रमुख है .अब यह भक्ति-आराधना आयोजनों की चमक-दमक के बीच खो सी गई है.  

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न्यूयार्क के ब्लॉगर भाई चंद्रेश जी ने इसे अपने ब्लॉग Chandresh's IACAW Blog (The Original Chandresh), गरबा शीर्षक से पोष्ट छापी है जो देखने लायक है कि न्यूयार्क के भारत वंशी गरबा के लिए कितने उत्साही हैं

27.9.23

आर एल वी का परीक्षण कर इसरो ने भारत को गौरवान्वित किया था


* चंद्रयान 3 लॉन्चिंग के पहले आर एल वी का परीक्षण कर इसरो ने भारत को गौरवान्वित किया*
*गिरीश बिल्लौरे मुकुल*
इन दिनों chandrayaan-3 चर्चा में है इसके पूर्व सबसे कम खर्च पर मंगल की भूमि पर यान पहुंचाकर इसरो ने विश्व को चकित कर दिया था। आप भी चकित हो जाएंगे यह जानकर कि एक और कारण है जो इसरो को यशस्वी बनाता है । जी हां
2 अप्रैल 2023 प्रातः 7:15 पर इसरो ने एक प्रयोग किया।  जो री यूजेबल लॉन्च व्हीकल RLV के नाम से जाना जाता है, को सफलतापूर्वक आकाश से जमीन पर उतारा। यद्यपि इस तरह का प्रयोग एलन मस्क ने नासा के सहयोग से 2018 में कर दिया था।
  भारत के इसरो ने यह प्रयोग इस उद्देश्य से किया है ताकि  भारत द्वारा भेजे गए एसएलवी रॉकेट का कचरा अंतरिक्ष में बेकार न जाए। भारत के इसरो ने   एक प्रोटोटाइप लॉन्चिंग व्हीकल को कर्नाटक के चित्रदुर्ग नामक स्थान से 2 अप्रैल 2023 प्रातः 7:15 पर आकाश में चिनूक हेलीकॉप्टर के माध्यम से भेजा। यह प्रयोग  डीआरडीओ भारतीय एयर फोर्स कब संयुक्त प्रयोग था।
  आपने चंद्रयान में दो साइड बूस्टर देखे होंगे इन बूस्टर्स का कार्य है मुख्य रॉकेट एवम उस पर लगे यंत्र को आकाश में  निर्धारित स्थान तक भेजा जाना। वर्तमान में ये केवल एक बार प्रयोग में लाए जा सकते हैं।  इसके बाद इन बूस्टर्स को अंतरिक्ष में कचरे के रूप में बिखर जाना होता है।
    हाल के दिनों में विश्व के 12 प्रक्षेपण स्टेशन इस चिंता से परेशान है कि अंतरिक्ष कुछ ही वर्षों में सैटेलाइट भेजने अथवा अन्य ग्रहों पर अपने रोवर लैंडर भेजने तथा अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों से कचरा घर बन जाएगा। इससे अन्य कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होना स्वभाविक होंगी।
   भारतीय वैदिक दर्शन स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस क्रम में नासा के बाद इसरो ने प्रोटोटाइप को आकाश में लगभग 5 किलोमीटर ऊंचाई पर भेजकर वापस जमीन पर गिराया फिर ये प्रोटोटाइप अपने प्रयोग स्थल पर सीधा वापस आता है । कंप्यूटर कमांड के सहारे इस प्रोटोटाइप को प्रयोग स्थल के रनवे पर उतारा गया। इसकी स्पीड कम करने के लिए पैराशूट का भी उपयोग किया गया। इसरो प्रयास में है कि भविष्य में इस तरह के यान बनाए जाएं जो मूल रॉकेट को सपोर्ट करके वापस भूमि पर लौटे और उनका पुन: उपयोग किया जा सके
भविष्य में भारत का इसरो निश्चित रूप से कम खर्च में ऐसे बूस्टर व्हीकल जिन्हें री यूजेबल लॉन्चिंग व्हीकल RLV बनाने में सफल होने वाला देश बन सकता है। इस दिशा में अमेरिका की नासा तथा चीन की स्पेस एजेंसी भी कार्य कर रही है।

रेवा टी वी के लिए सिमरन जी द्वारा मेरा साक्षात्कार

 

27.8.23

ईश्वर का आंसू : हीरा

#Diamond #Gods, #tears , #Greek #Civilization, ,
हीरा एक ऐसा कार्बनिक पदार्थ है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से बहुमूल्य रत्न होने के दर्जे पर सदियों से कायम है। प्राचीन यूनानी सभ्यता ने हीरे को उसकी पवित्रता को और उसकी सुंदरता को देखते हुए ईश्वर के आंसू तक की उपमा दे दी है ।
    विश्व में भारत और ब्राज़ील के अलावा अमेरिका में भी हीरे का प्राकृतिक एवं कृत्रिम उत्पादन किया जाता है।
भारत के गोलकुंडा में सबसे पहले हीरे की खोज की गई थी और वह भी 4000 वर्ष पूर्व। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान  ही भारत भारत का कोहिनूर हीरा ब्रिटिश खजाने में जा पहुंचा था। जी हां मैं उसी कोहिनूर हीरे की बात कर रहा हूं जो महारानी के मुकुट  में लगा हुआ है वह हीरा गोलकुंडा की खदान से ही हासिल किया गया था। भारत में उड़ीसा छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हीरे की मौजूदगी है। सबसे ज्यादा मात्रा में इस रत्न की मौजूदगी मध्य प्रदेश में है। अगर बक्सवाह कि हीरा खदानों ने काम करना शुरू कर दिया तो विश्व में भारत हीरा उत्पादन में श्रेष्ठ  स्थान पर होगा। एक अनुमान के मुताबिक रुपए 1550 करोड़ वार्षिक राजस्व आय का स्रोत होगी यह परियोजना।
    हीरे को यूनान सभ्यता के लोग ईश्वर के आंसू कहा करते थे और आज भी यही माना जाता है। पिछले कुछ दिनों से ईश्वर के इन आंसुओं की कहानी मध्यप्रदेश में लिखी जा रही है। हालांकि यह कहानी 20 साल पहले शुरू हुई थी और 2014 से 2016 तक चला  इसका मध्यातर ,  2017 के बाद से इस डायमंड स्टोरी का दूसरा भाग शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं धरना प्रदर्शन पर्यावरण के मुद्दे वन्य जीव संरक्षण जैसे कंटेंट इसमें सम्मिलित हो रहे हैं। कुल मिला के संपूर्ण फीचर फिल्म सरकार की मंशा को देखकर लगता है वर्ष 2022 तक इस फिल्म का संपन्न हो जाने की संभावना है। छतरपुर जिले की बकस्वाहा विकासखंड में 62.64 हेक्टेयर जमीन किंबरलाइट चट्टाने मौजूद है और जहां यह चट्टानें मौजूद होती हैं वहां हीरे की मौजूदगी अवश्यंभावी होती है। इन चट्टानों से हीरा निकालने के लिए लगभग 382 हेक्टेयर जमीन उपयोग में लाई जाएगी।.
   किंबरलाइट चट्टानों की पहचान आज से लगभग 21 वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलियन कंपनी द्वारा की गई थी। कहते हैं कि 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे बक्सवाहा के जंगलों से निकलेंगे ।
   शासकीय सर्वेक्षण के अनुसार 215875 पेड़ बक्सवाहा के जंगलों में मौजूद है।
पन्ना में उपलब्ध 22 लाख कैरेट हीरे में से 13 लाख कैरेट हीरे निकाल लिए गए हैं तथा कुल 9 लाख  कैरेट हीरे अभी शेष है उन्हें नाम और वर्तमान में बक्सवाहा के जंगल में अनुमानित हीरे इस खनन की तुलना में 15 गुना अधिक होगी।
  buxwaha बक्सवाह  की हीरा खदानों से हीरा निकालने के लिए ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो को 2006 में टेंडर दिया हुआ था और इस कंपनी ने 14 साल पहले इस टैंडर को हासिल किया लगभग 90 मिलियन रुपए खर्च भी किए। कंपनी को प्रदेश सरकार ने 934 हेक्टर जमीन पर काम करने का ठेका दिया था। जबकि रियो टिंटो के द्वारा काम समेटने के बाद 62.64 हेक्टेयर भूमि से हीरे निकालने के लिए 382 हेक्टेयर जंगल को साफ करना पड़ेगा। जैसा पूर्व में बताया है कि उक्त क्षेत्र में 215875 वृक्षों को काटा जाएगा यदि यह क्षेत्र 934 सेक्टर होता तो इसका तीन से चार गुना अधिक वृक्षों को काटना आवश्यक हो जाता । मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के इन ज़िलों  जैसे पन्ना और छतरपुर में पानी की उपलब्धता की कमी रही है जिसकी पूर्ति के लिए अस्थाई और कृत्रिम तालाब बनाने की व्यवस्था कंपनी द्वारा की जावेगी।
   वर्तमान में हीरा खनन करने के लिए आदित्य बिरला ग्रुप ने 50 साल के लिए बक्सवाहा के 382 हेक्टेयर जंगल में काम करने का टेंडर हासिल किया है। आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी  एक्सेल माइनिंग कंपनी द्वारा प्रस्तावित परियोजना में कार्य किया जाएगा।
   बक्सवाहा की खदानों में काम करने के लिए 15.9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत प्रतिदिन होगी जबकि बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी का अभाव सदा से ही रहा है। इस संबंध में कंपनी क्या व्यवस्था करती है यह आने वाला भविष्य ही बताएगा। पेड़ों के कटने के बाद वैकल्पिक व्यवस्थाएं क्या है इस पर भी सवालों का उत्तर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लंबित याचिका के माध्यम से प्राप्त हो ही जाएगा। अन्य परिस्थितियों के असामान्य ना होने की स्थिति में इस परियोजना की विधिवत शुरुआत 2022 तक संभावित है।  पर्यावरणविद यह मानते हैं कि प्राकृतिक वनों के काटने के बाद इस क्षेत्र में मौजूदा वाटर टेबल का स्तर गिर जाएगा। साथ ही वन्यजीवों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस संबंध में पर्यावरणविद और स्थानीय युवा सोशल मीडिया खास तौर पर ट्विटर पर अभियान चला रहे हैं। जबकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बक्सवाहा से संबंधित डीएफओ का कहना है कि-" इस परियोजना से स्थानीय लोगों को रोजगार की उम्मीदें बढ़ी है वे इस परियोजना का विरोध नहीं करते।"
    एक्टिविस्टस द्वारा लगातार पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रतीकात्मक आंदोलन शुरू कर दिए गए हैं। 
हीरे को तापमान गायब कर सकता है ? 
    हीरे के बारे में कहा जाता है कि अगर इसे ओवन में रखकर 763 डिग्री पर गर्म किया जाए तो हीरा गायब हो सकता है। क्योंकि हीरा एक कार्बनिक पदार्थ है जो ऑक्सीजन की मौजूदगी में अपना अस्तित्व खो देता है
 वैसे ऐसी रिस्क कोई नहीं लेगा। हीरे के मालिक होने का एहसास ही अद्भुत होता है।
ग्रेट डायमंड इन द वर्ल्ड - जब हीरे का एक कण अर्थात उसका सबसे छोटा टुकड़ा भी मूल्यवान होता है तब ग्रेड डायमंड कितने बहुमूल्य होंगे इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। कहते हैं कि दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील की खदानों से विश्व के महानतम हीरों को निकाला और तराशा गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कलिनन हीरा (Cullinan Diamond) है जो 1905 में दक्षिण अफ्रीका की खदान से निकाला गया। 3106 कैरेट से अधिक भार का है जो ब्रिटेन के राजघराने की संपत्ति के रूप में उनके संग्रहालय में रखा है ।
तक ढूंढ़ा गया दुनिया का सबसे दूसरा बड़ा अपरिष्कृत हीरा 1758 कैरेट का हीरा  सेवेलो डायमंड (Sewelo Diamond) । जिसका अर्थ है दुर्लभ खोज।
    औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश राजघराने को यह भ्रम था कि भारत का कोहिनूर हीरा अगर क्राउन में लगा दिया जाए तो ब्रिटिश शासन का सूर्यास्त कभी नहीं होगा। बात सही की थी कि सूर्योदय ब्रिटिश उपनिवेश में कहीं ना कहीं होता रहता था । परंतु राजघराने में यह मिथक उनकी राजशाही के अंत ना होने के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। और महारानी ने अपने मुकुट पर कोहिनूर जड़वा लिया ।
   भारत का एक सबसे अधिक वजन वाला हीरा ग्रेट मुगल गोलकुंडा की खान से 1650 में  प्राप्त हुआ। जिसका वजन 787 कैरेट का था ।
  इस हीरे का आज तक पता नहीं है कि यह हीरा किस राजघराने में है एक अन्य हीरा जिसे अहमदाबाद डायमंड का नाम दिया गया जो पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर 1626 में बाबर ने प्राप्त किया था। इस दुर्लभ हीरे की अंतिम नीलामी 1990  में लंदन के क्रिस्ले ऑक्सन हाउस हुई थी।
द रिजेंट नामक डायमंड, सन 1702 में गोलकुंडा की खदान से मिला हीरा 410 कैरेट के वजन का था। कालांतर में यह हीरा नेपोलियन बोना पार्ट  ने हासिल किया। यह हीरा अब 150 कैरेट का हो गया है जिसे पेरिस के लेवोरे म्यूजियम में रखा गया है।
  विकी पीडिया में दर्ज जानकारी के अनुसार  ब्रोलिटी ऑफ इंडिया का वज़न 90.8 कैरेट था।  ब्रोलिटी कोहिनूर से भी पुराना  है, 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी ने खरीदा। आज यह कहाँ है कोई नहीं जानता। एक और गुमनाम हीरा 200 कैरेट  ओरलोव है  जिसे १८वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिर की एक मूर्ति की आंख से फ्रांस के व्यापारी ने चुराया था। कुछ गुमनाम भारतीय हीरे: ग्रेट मुगल (280 कैरेट), ओरलोव (200 कैरेट), द रिजेंट (140 कैरेट), ब्रोलिटी ऑफ इंडिया (90.8 कैरेट), अहमदाबाद डायमंड (78.8 कैरेट), द ब्लू होप (45.52 कैरेट), आगरा डायमंड (32.2 कैरेट), द नेपाल (78.41) आदि का नाम शामिल है ।

हीरो की तराशी :- बहुमूल्य रत्न हीरा कुशल कारीगरों द्वारा तराशा जाता है। विश्व के 90% हीरो की तराशी का काम जयपुर में ही होता है।
हीरे का सौंदर्य और उसकी पवित्रता के कारण लोगों में लालच का होना स्वावभाविक हो जाता। धरती के लगभग आधे गोले पर साम्राज्य होने के बावजूद ब्रिटेन की महारानी में कोहिनूर का लालच कर बैठीं । दूसरी ओर  मिस्टर चौकसी इस रत्न के धंधे में अपनी नैतिकता खो बैठा। अखंड भारत से लेकर मध्यकाल और स्वतंत्रता के पूर्व तक के भारत में कोहिनूर के कितने तबादले हुए इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
    आज से लगभग 10 वर्ष पहले मेरे मित्र  कुशल गोलछा जी ने मुझे एक डायमंड दिया और कहा कि इसे आप खरीदिए । उस जमाने में लगभग ₹30000 की कीमत का वह डायमंड मेरी क्रय क्षमता से कई गुना अधिक था। मेरे कॉमन मित्र श्री धर्मेंद्र जैन से मैंने उसे खरीदने मैं असमर्थता दिखाइए। श्री गोलछा ने कहा आप हजार या पांच सौ देते रहिए पर आप यह हीरा पहने रहिये।
    परंतु बिना लालच किए मात्र 1 महीने लगभग हीरे 18 कैरेट सोने की  अंगूठी जड़ा हीरा मुझे आज भी याद आ रहा है। दो-तीन साल पहले जब कुशल जी से उस हीरे के वर्तमान मूल्य पर चर्चा हुई  तब उनने कहा था- अब उस हीरे की कीमत कम से कम ₹100000 तो होना ही चाहिए। आपको ले लेना था इसमें कोई शक नहीं कि हीरा सदा के लिए होता है आज भी वह हीरा याद आता है परंतु हीरे के बारे में मेरा हमेशा से एक ही नजरिया रहा है कि उसकी पवित्रता बेईमान बना देती है, और यह सब ऐतिहासिक रूप से सत्य है।

21.8.23

सॉफ्ट पावर की ताकत मध्यमवर्ग ने बढ़ाई है..!

भारत के मध्यम वर्ग की ताकत ने ने किया है भारत को गौरवान्वित 
अमेरिकी उपराष्ट्रपति एवं यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री भी भारतीय मूल के हैं । 
यह तो पॉलिटिकल स्टेटस प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के लोग हैं इसके अतिरिक्त विश्व के बड़े अंतरराष्ट्रीय कंपनीयों एवं उद्योग घरानों में भारतीय मूल के लोगों की मौजूदगी भारत को गौरव प्रदान करती है।
अमेरिका में होने जा रहे 2025 के आम चुनाव में राष्ट्रपति के तौर पर जिस नाम का जिक्र हो रहा है उन्हें विवेक रामास्वामी कहते हैं। विवेक रामास्वामी एक भारतीय मूल के अमेरिकन बिजनेसमैन हैं।
  ऐसी क्या बात है भारतीयों में जो उन्हें अन्य लोगों से खास बनाती है?
इस बात की पड़ताल करें तो पता चलता है कि-
[  ] दक्षिण एशियाई मूल के सभी नागरिक बेहद मेहनती है तथा ईमानदार भी। विशेष रूप से भारतीय डायस्पोरा ने यूरोपीय देशों में अपना खास स्थान बना रखा है।
[  ] भारतीय मूल के लोगों में ज्ञान के साथ कार्यक्षमता और उनका पूछ राष्ट्र के प्रति सकारात्मक रवैया विश्व को प्रभावित एवं आकर्षित करता है।
[  ] भारतीयों की विशेषता है कि वह देश काल परिस्थिति के अनुसार स्वयं को अनुकूलित कर लेते हैं। यह भी एक कारण है कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए वे महत्वपूर्ण घटक बन जाते हैं।
[  ] ऐसा नहीं है कि आज के दौर में ही भारतीयों ने विश्व पर अपना प्रभाव छोड़ा है बल्कि प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर मध्यकालीन ऐतिहासिक परिस्थितियां बताती है कि-" भारतीयों का सम्मान उस दौर में भी विश्व करता रहा है। प्राचीन एवं मध्य कल में भारतीय व्यापार वाणिज्य विश्व के व्यापार वाणिज्य का 30 प्रतिशत से अधिक रहा है।" लुटेरों के कारण पिछले 1300 वर्षों में भारतीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक विस्तार में कमी अवश्य हुई है।
[  ] ईसा पूर्व 600 वर्षों की स्थिति देखी जाए तो जहां दक्षिण एवं उत्तर पूर्व एशियाई भूमि भागों पर भारतीय संस्कृति का विस्तार चोल वंश ने किया वहीं दूसरी ओर पूर्वी तथा मध्य एशिया तक महात्मा बुद्ध के धम्म का विस्तार हुआ है, इसे इतिहास प्रमाणित करता है। यह अलग बात है कि अवेस्ता के प्रभाव से सीरिया से बुद्धिज्म को वापस आना पड़ा।
[  ] वर्तमान परिस्थितियों में 1980 के बाद से भारतीय मध्य वर्ग ने जिस तरह से त्याग और प्रतिबद्धता के साथ अपना विकास किया है उसके परिणाम स्वरूप भारत का सॉफ्ट पावर वैश्विक रूप से समादरित हुआ है।
[  ] विज्ञान साहित्य संस्कृति एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भारत के सॉफ्ट पावर ने स्वयं को अभी प्रमाणित कर दिया। इस क्रम में कोविद महामारी का जिक्र करना जरूरी है। क्योंकि इसी अवधि में भारत मददगार के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने में सफल रहा।
[  ] मध्यमवर्ग के बारे में आयातित विचारधारा के लोग नकारात्मक टिप्पणियां 1990 तक करते रहे हैं। मैंने कई विद्वानों को सुना है जो मध्यवर्ग की निंदा किया करते थे। मध्यवर्ग ने इन सब बातों को अनसुना करते हुए अपने सॉफ्ट पावर को प्रोत्साहित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मध्यमवर्ग हमेशा से ही शिक्षा के प्रति आकृष्ट रहा है। पॉलिटिकल परिस्थितियों में उसकी भूमिका एक शांतिपूर्ण सहयोगी के रूप में रही है। इसी मध्यवर्ग के बच्चों ने अगले दो दशकों में जिस तरह से स्वयं को स्थापित किया तथा विदेशों में जाकर अपने अस्तित्व को स्थापित कर दिया काबिले तारीफ है।
         जहां तक मैंने अध्ययन किया तो पाया कि अफ्रीका के कई देश तथा अन्य उपनिवेश जो फ्रांस जर्मनी इंग्लैंड के उपनिवेश हुआ करते थे वह आज भी विदेशी व्यवस्था से बाहर नहीं निकल पाए हैं। अब तो वह लगभग उसी स्थिति में है जैसा की उपनिवेश के समय वे किसी देश की कॉलोनी थे। जबकि भारत ने स्वयं को बदला है। प्रजातंत्र संविधान के साथ-साथ विकास में सब की भागीदारी के सिद्धांत को अपना कर भारतीय समाज सुदृढ़ से अति सुदृढ़ता की ओर अग्रसरित है।
   ऐसा नहीं है कि हम पूर्ण रूप से वैश्विक प्रभाव छोड़ रहे हैं ! क्योंकि हमारे पास अभी वर्ग संघर्ष जातिय भेदभाव शेष है। इसे समाप्त करना तथा एकात्मता के साथ विकास की गतिविधियों को आगे लाना हमारा नागरिक कर्तव्य है और राष्ट्र धर्म भी यही है।
  एक दौर था जब भारत की टीम ओलंपिक खेलों में बमुश्किल कुछ हासिल कर पाती परंतु अब खिलाड़ियों ने भारत को तीनों धातुओं के मेडल जीत कर गौरव प्रदान किया है। कुल मिलाकर अब भारत जिस स्थिति में आया है उसका मूलभूत कारण है भारत का मध्यम वर्ग जो भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूती प्रदान करता है।

 

14.8.23

गुमशुदा चारपाई उर्फ खटिया : योगेश उपाध्याय

चारपाई यानी खटिया का  कमर दर्द, सर्वाइकल और चारपाई... के बीच एक गहरा संबंध है। संबंध तो किसी किसी  दुराचरी दुष्ट से भी है जिसकी खटिया खड़ी हो जाती है या कर दी जाती है .. आइए जानते हैं खटिया के गुण योगेश उपाध्याय जी से...   
हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे..सोने के लिए खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वज क्या लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे ? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं। चारपाई भी भले कोई साइंस नहीं है, लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है। उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है। जब हम सोते हैं, तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खू'न की जरूरत होती है। क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।दुनिया में जितनी भी आरामकुर्सियां देख लें, सभी में चारपाई की तरह जोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपड़े की जोली का था, लकड़ी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया है। चारपाई पर सोने से कमर और पीठ का दर्द का दर्द कभी नही होता है। दर्द होने पर चारपाई पर सोने की सलाह दी जाती है। डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है, उसमें रोग के कीटाणु पनपते हैं, वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती। चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक है। खटिये को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं। अगर किसी को डॉक्टर Bed Rest लिख देता है तो दो-तीन दिन में उसको English Bed पर लेटने से Bed -Soar शुरू हो जाता है । भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है । चारपाई पर  Bed- Soar नहीं होता क्योंकि इसमें से हवा आर-पार होती रहती है । गर्मियों में इंग्लिश Bed गर्म हो जाता है इसलिए AC की अधिक जरुरत पड़ती है जबकि सनातन चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है ।बान की चारपाई पर सोने से सारी रात Automatically सारे शरीर का Acupressure होता रहता है । गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनंद ही और है। ताज़ी हवा, बदलता मौसम, तारों की छांव,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है । हर घर में एक स्वदेशी बाण की बुनी हुई (प्लास्टिक की नहीं ) चारपाई होनी चाहिए। आज सनातन के सामने विज्ञान भी नतमस्तक है...

जय सनातन धर्म, जय श्रीराम, जय गोविंदा ✨🙏💖🕉️

3.8.23

पाकिस्तान में अधिकार सम्पन्न महिलाएं

 "अधिकार संपन्न कलस जनजाति की महिलाएं...!"
पाकिस्तान में महिला अधिकारों को लेकर हम सब केवल इतना जानते हैं कि वहां महिलाओं को अधिकार नहीं है। परंतु हिंदूकुश पर्वत माला में निवास कर रही कलस जनजाति जिसकी जनसंख्या 2018 के मुताबिक केवल 4000 थी जो अब बढ़कर लगभग 6000 है। कलस जन जाति में महिलाओं की स्थिति पाकिस्तान के अन्य स्थानों की अपेक्षा बेहतर है। यह जनजाति अफगानिस्तान पाकिस्तान सीमा पर कैलाश वैली के नाम से प्रसिद्ध है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा राज्य के चितराल जिले बुमबुरेत,रूमबुर,बिरर, नामक स्थानों में 
कलस जनजाति निवास करती है।
अफगानिस्तान में नूरिस्तानी जनजाति भी इसी जनजाति की एक शाखा है।
कलस जनजाति महिला प्रधान जनजाति है जहां किसी की मृत्यु पर एक अजीबो गरीब रस्म भी अदा की जाती है। पाकिस्तान में इस जनजाति को काफिर माना जाता है।
इस जनजाति में मृत्यु के समय मृत्यु भोज के रूप में बकरियों की बलि देकर अधिक से अधिक दूरदराज के गांवों मैं रहने वाले लोगों को खिलाया जाता है। जनजाति के लोगों का मानना है कि वह किसी को भी हंसी खुशी के साथ विदा करने पर विश्वास रखते हैं।
लोगों का मानना है कि यह जनजाति सिकंदर के साथ ईरान से अखंड भारत में आई थी तो कुछ लोग यह मानते हैं कि डीएनए के हिसाब से वह हिंदुस्तान से पलायन करके पहाड़ियों पर निवास करने लगी है। इस जनजाति के तीन त्यौहार होते हैं एक त्योहार शीत ऋतु प्रारंभ होने के पहले मनाया जाता है जिसमें अपने आराध्य से यह आव्हान किया जाता है कि यह शीत ऋतु उन्हें सुख प्रदान करें। यह त्यौहार जोशी त्यौहार कहलाता है। दूसरा त्यौहार शीत ऋतु के उपरांत मनाया जाता है जिसे उचाव कहते हैं, यह शीत ऋतु के समाप्त होने के उपरांत मनाया जाता है और ईश्वर को इस त्यौहार के माध्यम से उत्सव मना कर धन्यवाद दिया जाता है और यह कहा जाता है कि आपने इस शीत ऋतु में हमें सुरक्षा दी हम आपके आभारी हैं। एक अन्य त्यौहार जिसे कैमोस कहते हैं यह 14 दिनों तक मनाया जाता है। यह त्यौहार युवाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। युवा लड़कियां अपना मनपसंद पति चुनती है और  उसके घर चली जाती है। उसके कुछ दिनों के बाद वर पक्ष की ओर से वधु के घर उपहार भेज कर विवाह की पुष्टि की जाती है।
  यह परंपरा हमारे देश के छत्तीसगढ़ की जनजातियों में प्रचलित घोटूल व्यवस्था की तरह ही है।
जन्म के समय प्रसूता को गांव के बाहर बने एक भवन में 14 से 15 दिन तक रखा जाता है। वहां पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। रजस्वला लड़कियों एवं महिलाओं  को भी 3 से 4 दिन तक इसी भवन में रहना होता है।
  कलस जनजाति के परिवार ताजा फल सूखे मेवे तथा अनाज में गेहूं आधारित व्यंजन उपयोग में लाते हैं।
कलस जनजाति के परिवारों में औसत उम्र पाकिस्तान की आबादी की औसत उम्र से अधिक होती है।
इस संबंध में अपनी बात कहते हुए जनजाति की एक लड़की ने बताया कि हम प्रकृति से प्राप्त भोजन ग्रहण करते हैं तथा हमेशा प्रसन्न रहने की कोशिश करते हैं साथ ही हम किसी का अपमान नहीं करते इस कारण ही हम सुंदर और लंबी उम्र पाते हैं।
  कलस जनजाति अपने लिए कपड़े स्वयं बनाते हैं यहां महिलाओं की पोशाक बहुत सुंदर तरीके से डिजाइन की जाती है। कलस जनजाति की महिलाएं चितराल जिले के चितराल नगर बाजार से कपड़े  खरीद अपनी पोशाक तैयार करती हैं।
पाकिस्तान के लोग इन्हें अपवित्र मानते हैं क्योंकि यहां के लोग शराब का सेवन करते हैं तथा महिलाओं को अधिक अधिकार प्राप्त हुए हैं जो पाकिस्तानी संस्कृति के विरुद्ध है।कलस जनजाति के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस जनजाति में महिलाएं स्वच्छंद यौनाचार में संलिप्त है। इस तरह की अफवाह एवं असमानता को देखते हुए जनजाति के लोग पाकिस्तान से आने वाले सैलानियों से नाराज हैं।
पाकिस्तान में जनजाति विकास के लिए कोई सरकारी कार्यक्रम के बारे में अब तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई।
कलस जनजाति का धर्म- इनका धर्म भारतीय, हिंद-ईरानी धर्मों से मिलता जुलता है। कलस  एकेश्वरवाद को मानते हैं। पैगंबरवाद पर इनका विश्वास नहीं है।
    कुछ लोगों की मान्यता है कि इस जनजाति के लोग सिकंदर के सैनिकों के वंशज हैं तथा इनका धर्म यूनानी है। नवीनतम रिसर्च से ज्ञात होता है कि यह प्राचीन भारतीय ईरानी परिवारों से संबंध हैं।

पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में इनकी संख्या कम होना स्वभाविक है इस जनजाति से धर्म परिवर्तन हुआ है। इस जनजाति के लोग धर्म परिवर्तन को गलत मानते हैं। संस्कृति बची हुई है उसमें संघर्षशील परिवारों का महत्वपूर्ण योगदान है यह चकित कर देने वाला तथ्य है।

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