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मंगलवार, जून 22, 2021

प्राचीन यूनान में ईश्वर के आँसू कहलाने वाले हीरे की कहानी मध्यप्रदेश में लिखी जा रही है...!"

पाठकों आज से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आर्टिकल लिखना प्रारंभ कर रहा हूं । आज का विषय सामान्य अध्ययन अंतर्गत मध्य प्रदेश खनिज हीरा से संबंधित है।
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विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से यह आर्टिकल लिखा गया है। यह आर्टिकल केवल भारतीय डायमंड इंडस्ट्री अर्थात हीरा उद्योग के संबंध में संक्षिप्त जानकारी के तौर पर युवाओं के लिए प्रस्तुत है। 
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यूनानी मान्यता अनुसार ईश्वर का आंसू है हीरा
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हीरा एक ऐसा कार्बनिक पदार्थ है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से बहुमूल्य रत्न होने के दर्जे पर सदियों से कायम है। प्राचीन यूनानी सभ्यता ने हीरे को उसकी पवित्रता को और उसकी सुंदरता को देखते हुए ईश्वर के आंसू तक की उपमा दे दी है ।
    विश्व में भारत और ब्राज़ील के अलावा अमेरिका में भी हीरे का प्राकृतिक एवं कृत्रिम उत्पादन किया जाता है।
भारत के गोलकुंडा में सबसे पहले हीरे की खोज की गई थी और वह भी 4000 वर्ष पूर्व। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान  ही भारत भारत का कोहिनूर हीरा ब्रिटिश खजाने में जा पहुंचा था। जी हां मैं उसी कोहिनूर हीरे की बात कर रहा हूं जो महारानी के मुकुट  में लगा हुआ है वह हीरा गोलकुंडा की खदान से ही हासिल किया गया था। भारत में उड़ीसा छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हीरे की मौजूदगी है। सबसे ज्यादा मात्रा में इस रत्न की मौजूदगी मध्य प्रदेश में है। अगर बक्सवाह कि हीरा खदानों ने काम करना शुरू कर दिया तो विश्व में भारत हीरा उत्पादन में श्रेष्ठ  स्थान पर होगा। एक अनुमान के मुताबिक रुपए 1550 करोड़ वार्षिक राजस्व आय का स्रोत होगी यह परियोजना।
    हीरे को यूनान सभ्यता के लोग ईश्वर के आंसू कहा करते थे और आज भी यही माना जाता है। पिछले कुछ दिनों से ईश्वर के इन आंसुओं की कहानी मध्यप्रदेश में लिखी जा रही है। हालांकि यह कहानी 20 साल पहले शुरू हुई थी और 2014 से 2016 तक चला  इसका मध्यातर । 2017 के बाद से इस डायमंड स्टोरी का दूसरा भाग शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं धरना प्रदर्शन पर्यावरण के मुद्दे वन्य जीव संरक्षण जैसे कंटेंट इसमें सम्मिलित हो रहे हैं। कुल मिला के संपूर्ण फीचर फिल्म सरकार की मंशा को देखकर लगता है वर्ष 2022 तक इस फिल्म का संपन्न हो जाने की संभावना है। छतरपुर जिले की बकस्वाहा विकासखंड में 62.64 हेक्टेयर जमीन किंबरलाइट चट्टाने मौजूद है और जहां यह चट्टानें मौजूद होती हैं वहां हीरे की मौजूदगी अवश्यंभावी होती है। इन चट्टानों से हीरा निकालने के लिए लगभग 382 हेक्टेयर जमीन उपयोग में लाई जाएगी।.
   किंबरलाइट चट्टानों की पहचान आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलियन कंपनी द्वारा की गई थी। कहते हैं कि 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे बक्सवाहा के जंगलों से निक लेंगे ।
   शासकीय सर्वेक्षण के अनुसार 215875 पेड़ बक्सवाहा के जंगलों में मौजूद है।
पन्ना में उपलब्ध 22 लाख कैरेट हीरे में से 13 लाख कैरेट हीरे निकाल लिए गए हैं तथा कुल 9 लाख  कैरेट हीरे अभी शेष है उन्हें नाम और वर्तमान में बक्सवाहा के जंगल में अनुमानित हीरे इस खनन की तुलना में 15 गुना अधिक होगी।
  buxwaha बक्सवाह  की हीरा खदानों से हीरा निकालने के लिए ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो को 2006 में टेंडर दिया हुआ था और इस कंपनी ने 14 साल पहले इस टैंडर को हासिल किया लगभग 90 मिलियन रुपए खर्च भी किए। कंपनी को प्रदेश सरकार ने 934 हेक्टर जमीन पर काम करने का ठेका दिया था। जबकि रियो टिंटो के द्वारा काम समेटने के बाद 62.64 हेक्टेयर भूमि से हीरे निकालने के लिए 382 हेक्टेयर जंगल को साफ करना पड़ेगा। जैसा पूर्व में बताया है कि उक्त क्षेत्र में 215875 वृक्षों को काटा जाएगा यदि यह क्षेत्र 934 सेक्टर होता तो इसका तीन से चार गुना अधिक वृक्षों को काटना आवश्यक हो जाता । मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के इन ज़िलों  जैसे पन्ना और छतरपुर में पानी की उपलब्धता की कमी रही है जिसकी पूर्ति के लिए अस्थाई और कृत्रिम तालाब बनाने की व्यवस्था कंपनी द्वारा की जावेगी।
   वर्तमान में हीरा खनन करने के लिए आदित्य बिरला ग्रुप ने 50 साल के लिए बक्सवाहा के 382 हेक्टेयर जंगल में काम करने का टेंडर हासिल किया है। आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी  एक्सेल माइनिंग कंपनी द्वारा प्रस्तावित परियोजना में कार्य किया जाएगा।
   बक्सवाहा की खदानों में काम करने के लिए 15.9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत प्रतिदिन होगी जबकि बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी का अभाव सदा से ही रहा है। इस संबंध में कंपनी क्या व्यवस्था करती है यह आने वाला भविष्य ही बताएगा। पेड़ों के कटने के बाद वैकल्पिक व्यवस्थाएं क्या है इस पर भी सवालों का उत्तर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लंबित याचिका के माध्यम से प्राप्त हो ही जाएगा। अन्य परिस्थितियों के असामान्य ना होने की स्थिति में इस परियोजना की विधिवत शुरुआत 2022 तक संभावित है।  पर्यावरणविद यह मानते हैं कि प्राकृतिक वनों के काटने के बाद इस क्षेत्र में मौजूदा वाटर टेबल का स्तर गिर जाएगा। साथ ही वन्यजीवों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस संबंध में पर्यावरणविद और स्थानीय युवा सोशल मीडिया खास तौर पर ट्विटर पर अभियान चला रहे हैं। जबकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बक्सवाहा से संबंधित डीएफओ का कहना है कि-" इस परियोजना से स्थानीय लोगों को रोजगार की उम्मीदें बढ़ी है वे इस परियोजना का विरोध नहीं करते।"
    एक्टिविस्टस द्वारा लगातार पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रतीकात्मक आंदोलन शुरू कर दिए गए हैं। 
हीरे को तापमान गायब कर सकता है
    हीरे के बारे में कहा जाता है कि अगर इसे ओवन में रखकर 763 डिग्री पर गर्म किया जाए तो हीरा गायब हो सकता है। वैसे ऐसी रिस्क कोई नहीं लेगा। हीरे के मालिक होने का एहसास ही अद्भुत होता है।
ग्रेट डायमंड इन द वर्ल्ड - जब हीरे का एक कण अर्थात उसका सबसे छोटा टुकड़ा भी मूल्यवान होता है तब ग्रेड डायमंड कितने बहुमूल्य होंगे इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। कहते हैं कि दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील की खदानों से विश्व के महानतम हीरों को निकाला और तराशा गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कलिनन हीरा (Cullinan Diamond) है जो 1905 में दक्षिण अफ्रीका की खदान से निकाला गया। 3106 कैरेट से अधिक भार का है जो ब्रिटेन के राजघराने की संपत्ति के रूप में उनके संग्रहालय में रखा है ।
तक ढूंढ़ा गया दुनिया का सबसे दूसरा बड़ा अपरिष्कृत हीरा 1758 कैरेट का हीरा  सेवेलो डायमंड (Sewelo Diamond) । जिसका अर्थ है दुर्लभ खोज।
    औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश राजघराने को यह भ्रम था कि भारत का कोहिनूर हीरा अगर क्राउन में लगा दिया जाए तो ब्रिटिश शासन का सूर्यास्त कभी नहीं होगा। बात सही की थी कि सूर्योदय ब्रिटिश उपनिवेश में कहीं ना कहीं होता रहता था । परंतु राजघराने में यह मिथक उनकी राजशाही के अंत ना होने के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। और महारानी ने अपने मुकुट पर कोहिनूर जड़वा लिया ।
   भारत का एक सबसे अधिक वजन वाला हीरा ग्रेट मुगल गोलकुंडा की खान से 1650 में  प्राप्त हुआ। जिसका वजन 787 कैरेट का था ।
  इस हीरे का आज तक पता नहीं है कि यह हीरा किस राजघराने में है एक अन्य हीरा जिसे अहमदाबाद डायमंड का नाम दिया गया जो पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर 1626 में बाबर ने प्राप्त किया था। इस दुर्लभ हीरे की अंतिम नीलामी 1990  में लंदन के क्रिस्ले ऑक्सन हाउस हुई थी।
द रिजेंट नामक डायमंड, सन 1702 में गोलकुंडा की खदान से मिला हीरा 410 कैरेट के वजन का था। कालांतर में यह हीरा नेपोलियन बोना पार्ट  ने हासिल किया। यह हीरा अब 150 कैरेट का हो गया है जिसे पेरिस के लेवोरे म्यूजियम में रखा गया है।
  विकी पीडिया में दर्ज जानकारी के अनुसार  ब्रोलिटी ऑफ इंडिया का वज़न 90.8 कैरेट था।  ब्रोलिटी कोहिनूर से भी पुराना  है, 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी ने खरीदा। आज यह कहाँ है कोई नहीं जानता। एक और गुमनाम हीरा 200 कैरेट  ओरलोव है  जिसे १८वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिर की एक मूर्ति की आंख से फ्रांस के व्यापारी ने चुराया था। कुछ गुमनाम भारतीय हीरे: ग्रेट मुगल (280 कैरेट), ओरलोव (200 कैरेट), द रिजेंट (140 कैरेट), ब्रोलिटी ऑफ इंडिया (90.8 कैरेट), अहमदाबाद डायमंड (78.8 कैरेट), द ब्लू होप (45.52 कैरेट), आगरा डायमंड (32.2 कैरेट), द नेपाल (78.41) आदि का नाम शामिल है ।

हीरो की तराशी :- बहुमूल्य रत्न हीरा कुशल कारीगरों द्वारा तराशा जाता है। विश्व के 90% हीरो की तराशी का काम जयपुर में ही होता है।
हीरो का सौंदर्य और उनकी पवित्रता हीरों का दुर्गुण यह है। विश्व साम्राज्य होने के बावजूद ब्रिटेन की महारानी में कोहिनूर का लालच कर बैठीं । तो मिस्टर चौकसी रत्न के धंधे में अपनी नैतिकता खो बैठा।
    आज से लगभग 10 वर्ष पहले मेरे मित्र  कुशल गोलछा जी ने मुझे एक डायमंड दिया और कहा कि इसे आप खरीदिए । उस जमाने में लगभग ₹30000 की कीमत का वह डायमंड मेरी क्रय क्षमता से कई गुना अधिक था। मेरे कॉमन मित्र श्री धर्मेंद्र जैन से मैंने उसे खरीदने मैं असमर्थता दिखाइए। श्री गोलछा ने कहा आप हजार या पांच सौ देते रहिए पर आप यह हीरा पहने रहिये।
    परंतु बिना लालच किए मात्र 1 महीने लगभग हीरे 18 कैरेट सोने की  अंगूठी जड़ा हीरा मुझे आज भी याद आ रहा है। दो-तीन साल पहले जब कुशल जी से उस हीरे के वर्तमान मूल्य पर चर्चा हुई  तब उनने कहा था- अब उस हीरे की कीमत कम से कम ₹100000 तो होना ही चाहिए। आपको ले लेना था इसमें कोई शक नहीं कि हीरा सदा के लिए होता है आज भी वह हीरा याद आता है परंतु हीरे के बारे में मेरा हमेशा से एक ही नजरिया रहा है कि उसकी पवित्रता बेईमान बना देती है, और यह सब ऐतिहासिक रूप से सत्य है।

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