3.10.22

नजर और नजरिया

  
द्वारपाल ने उससे कठोर शब्दों में पूछा _" कौन हो भाई, फटे कपड़े कपड़ों में कहां घुसे  आ रहे हो...? यह राज महल है यहां दरबार है यहां केवल उनको प्रवेश मिलेगा जो राज सेवक हों अथवा जिन्हें राजा ने बुलाया हो..!
   वह अकिंचन व्यक्ति अपने ज़ेब से रुक्का निकालता है, तथा दरबान को दिखाता है।
   दरबान अपने वरिष्ठ अधिकारी से परामर्श करके कहता है कि-" यह आमंत्रण तुम किसी से चुरा कर लाए हो ना जाओ भाग जाओ अब मुंह ना दिखाना फिर..!"
   इस चेतावनी के बाद यह निर्धन व्यक्ति वापस लौट जाता है। कुछ देर बाद सजा संवरा युवक पहरेदार को अपना आमंत्रण दिखाता है और महल में प्रवेश कर देता है।
   हुआ यूं था कि राजा ने प्रतिभाशाली लोगों को आमंत्रित किया था अपने साथ भोजन करने। जिसके लिए बाकायदा आमंत्रण भेजे गए थे और प्रतिभाशाली कलाकार आए।
   राजा अपने राज्य के इन महान कलाकारों को प्रोत्साहित किया कोई मूर्तिकार था कोई चित्रकार था उन कवि था तो कोई वक्ता था कोई मधुर तान छेड़ता तो मानो स्वर्ग में इंद्र अपनी सभा में बैठे हो और गंधर्व ब्रह्म की आराधना का शाम गायन कर रही हूं । दिनभर यह क्रम चलता रहा राजा को इन कलाकारों की प्रतिभा पर गर्व होने लगा और वह नतमस्तक हुआ राजा  मुक्त हस्त दान करता चला गया।
   जब भोजन की बारी आएगी तब सभी एक पंगत में बैठे हुए थे। राजा स्वयं भोजन परोस रहे थे और अचानक वे सुदर्शन युवक के बाजू में जाकर बैठ गए।
   युवक सहित अन्य कलाकारों  की प्रतिभा से वाकिफ तो थे। युवक के साथ भोजन करते हुए तुम्हें कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था।
   यह क्या? राजा चकित रह गए राजा ने कहा-" आप अपनी पगड़ी पर दिवाली क्यों लगा रहे हैं अरे यह क्या आपने तो अपनी कुर्ते  को खिलाने लगे ।
    राजन, मुझे मेरी पोशाक की वजह से आपके द्वारपाल ने भगा दिया था। मैं सामान्य वस्त्र पहना था इनमें कुछ फटे वस्त्र भी थे। मेरी पादुका भी खंडित थी। आपके प्रहरियों ने मुझे तब लौटा दिया था। दूसरी बार में नगर सेठ के पुत्र जो मेरे मित्र हैं उनसे यह सब लेकर आया। तब प्रहरियों ने मुझे बिल्कुल नहीं रोका, पूरे सम्मान के साथ मुझे राज महल में प्रवेश किया है।
  हे भूपति... मेरा मूल्यांकन जिस आधार पर हुआ है और जिसे देख कर आपके प्रहरियों ने मुझे महल में प्रवेश दिया है यह महान है कि मैं? निसंदेह मेरे वस्त्र महान है श्रेष्ठ वरना आपके प्रहरियों के मन में ऐसी कोई भावना ना होती।
    राजा शर्म से सर झुका कर बोले-" जिस राष्ट्र में गंधर्व का को सम्मान नहीं मिलता यह सृजन हीन कांति हीन राष्ट्र होते हैं। युवक मैं तुमसे क्षमा चाहता हूं।
    यह कहानी फिर कहानी है पुराना कथानक है सब जानते हैं कोई इनके पात्र के रूप में मिर्जा गालिब को रख देता है तो कोई अन्य किसी को। परंतु यह सत्य है कि वेशभूषा आज की भाषा में कहें तो अपीरियंस के आधार पर यह तय किया जाता है कि हमें क्या करना है।
   आपकी कीमत आपकी नौकरी के स्तर तथा आपके आर्थिक बैकग्राउंड से आती जाती है । वरिष्ठ पदों पर रहने वाले व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति भले ही वह वैशाख नंदन क्यों ना हो उनका सम्मान करने में इसी को अपराध बोध महसूस नहीं होता। मुझे दफ्तर से आने जाने के लिए एक ऑटो आता है । सोसाइटी का दरबान पहले दो-तीन दिनों तक उस ऑटो वाले से अभद्रता से व्यवहार करता था।
इसकी अभद्रता इस हद  तक पहुंच गई सोसाइटी के पोर्च में मुझे उतारने के लिए ऑटो वाले ने जैसे ही ऑटो खड़ा किया तुरंत वह दरबान चीख पड़ा ऑटो बाहर लेकर आओ । यह दुनिया की रीत है दुनिया उनकी पतंगों की तरह है जो चमकते दीपक के इर्द-गिर्द घूमते हैं और उसमें जलकर मर भी जाते हैं। आपकी सादगी को कोई पसंद नहीं करता बस इतनी सी बात नहीं है यह आपकी सादगी को बर्दाश्त भी नहीं कर सकते।

चर्चिल गांधी से ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत को घृणा के भाव से देखते थे..!


*चर्चिल गांधी से ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत को घृणा के भाव से देखते थे..!*
   *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
   उपनिवेश के रूप में भारत को  शोषित करने वालों में ब्रिटिश क्रॉउन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का नाम सर्वोपरि है। वे भारत को राष्ट्र कभी नहीं मानते थे। भारत के सामंतों और बादशाहों के  कुकृत्यों के कारण चर्चिल के मस्तिष्क में भारत को एक कमजोर भूखंड के रूप में स्वरूप नजर आता था। परंतु जैसे जैसे  भारत की विशेषताओं का ज्ञान उनको होने लगा तो वह भारत को एक तरफ से अपमानित करने का कोई अवसर नहीं चूकते थे। अपने मंतव्य को पूर्ण करने के लिए उन्होंने भारत की परिभाषा देते हुए कहा-" भारत कोई राष्ट्र नहीं है बल्कि पृथ्वी का एक टुकड़ा है जैसे महाद्वीप होते हैं जैसे महासागर होते हैं।"
   चर्चिल का चिंतन भारत के अध्यात्म से घबराकर चिंता में बदल गया था। भारत की बौद्धिक संपदा चर्चिल के मस्तिष्क को हिला देने का आधार थी। महात्मा गांधी से विंस्टन चर्चिल आत्मिक विद्वेष रखते थे। वह गांधी जी को पाखंडी बूढ़ा इत्यादि शब्दों से संबोधित करते हुए उनके अनशन को भी संदिग्ध मानते थे। यह वही वक्त था जब महात्मा जी को आगा खां पैलेस में गिरफ्तार कर रखा गया था । सुधी पाठकों जानिए कि महात्मा गांधी ने बंगाल की दुर्दशा देखते हुए 21 दिन के कठोर उपवास की घोषणा की और इस उपवास में वह मौत के साथ आंख मिचोली करते रहे। यह वही दौर था जब कोलकाता और संपूर्ण बंगाल में फसल ही नहीं हुई थी। तब बंगाल की जनता दाने-दाने को मोहताज हो गई थी। विंस्टन चर्चिल ने भारत को घृणा के भाव से देखते हुए भारत के अकाल पीड़ित लोगों की जीवन संभावनाओं को समाप्त करने का जैसे संकल्प ही ले लिया था। चर्चिल ने ब्रिटिश कॉलोनी भारत के अकाल पीड़ित क्षेत्रों में घृणास्पद शब्दों का प्रयोग करते हुए भारत में खाद्यान्न की आपूर्ति रोक दी थी। विंस्टन चर्चिल के दौर में सर्वाधिक शोषण भारत का हुआ। वह गांधी जी के विरुद्ध पूरी तरह से तैयार था। आज भी बहुतेरे लोग गांधी जी से असहमति रखते हैं रखना चाहिए कोई आपत्ति नहीं परंतु गांधी का हद से ज्यादा जिद्दी होना ही उनकी ताकत थी। गांधी जी ने भारतीय जनता को आत्मनिर्भरता का सूत्र दिया। महात्मा थे वे तभी तो वह यह सब कर पाए। स्वदेशी जागरण का बीड़ा उठाने वाले महात्मा गांधी ने कपास और तकली के छोटे से सस्ते से यंत्र के जरिए बता दिया कि तुम अपने शरीर को खुद ढक सकते हो। मैनचेस्टर में लगे कल कारखानों से आयातित हो रहे कपड़े को स्वीकार मत करो एक वृद्ध क्रश काय व्यक्ति की आवाज क्यों मानी गई? उसका कारण था गांधी का आत्मिक रूप से पवित्र होना। आप बगैर किसी भी बच्चे को बुलाएंगे तो संभवतः बच्चा नहीं आ पाएगा आने में आनाकानी करेगा परंतु जैसे ही कोई मां अपनी संतान को पुकारती है बच्चा दौड़ा दौड़ा मां की गोद में जाकर बैठ जाता है। गांधी की स्थिति भी लगभग वही थी। मैं नहीं जानता तब क्या ऐसी स्थिति रही होगी? परंतु इतना अवश्य जानता हूं मेरी नानी सभी देवताओं की पूजा करने के साथ-साथ अंत में गांधी बाबा की जय जरूर बोलती थी। नानी के दिवंगत हुए 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है। पर भी अच्छी खासी परिपक्व उम्र में दिवंगत हुए परंतु गांधी जी के प्रति उनका आदर भाव अविस्मरणीय है।
   यह बात और है कि मैं एक गांधी जी को 100% स्वीकार नहीं करता परंतु मेरे मन में थी गांधी के प्रति वही अगाध श्रद्धा है जो मेरे पूर्वजों के लिए मेरे मन में है। गांधी कभी नहीं मरते गांधी के विरुद्ध लाखों गोडसे खड़े हो तो भी गांधी को हम तब तक जीवंत रख सकते हैं जब तक की यह दुनिया जीवंत है। गांधी भारतीय दर्शन की व्याख्या हैं गांधी जीवन की वास्तविकता भी हैं।
   विंस्टन चर्चिल पश्चिमी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में पढ़ा लिखा व्यक्ति था तो महात्मा भारतीय दर्शन और अहिंसा का अभी दुर्ग.. !
    अपनी 40 साल के सार्वजनिक जीवन में गांधी के चिंतन को देखने से लगता है कि कोई भी शोषण करने वाला गांधी से घबराता है। 75 वर्ष बीत गए गांधी ने स्वच्छता के बारे में जो बात कही उसका महत्व हम लोगों को समझ में आ रहा है। महात्मा का सानिध्य भारत को मिला विश्व एक आध नंगे शरीर को तब भी महान मानता था और अब भी उसे महान बताता है। यह सच है कि मैं औरों की तरह गांधी जी से 100% सहमति व्यक्त नहीं कर सकता। चाहे आप ब्रह्मांड में उनके जीवन दर्शन पर गहन समझाएं लिख दे परंतु एक प्रयोगवादी व्यक्तित्व को पूर्णत: स्वीकार लेना मेरे लिए असमंजस की स्थिति है। गांधी जी और सबसे ऊपर वाले स्तर के लोगों से भी ऊपर थे परंतु मुझे आज भी शत-प्रतिशत से कार्य हो यह जरूरी नहीं है। थे
        स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की जन्म तिथि पर उन्हें शत शत नमन करते हुए इस महान व्यक्ति के मानवीय गुणों की सराहना किए बिना कैसे रह जा सकता है?
       *वैज्ञानिक नियम  है बड़े पेड़ के नीचे छोटे पेड़ों का विकास और उद्धव से होता है*  परम पूज्य लाल बहादुर शास्त्री के मूल्यांकन के मद्देनजर कुछ ऐसा ही हुआ है। भारत है ही अद्भुत राष्ट्र जहां बांसुरी बजाने के वाले के पीछे आज तक लोग चल रहे हैं जहां धोती पहनने वाले के पीछे पूरा का पूरा हिंदुस्तान घूम रहा है, वही एक कद काठी में अत्यंत सामान्य व्यक्ति के लिए इतना प्रेम? जिस का बखान करना मुश्किल हो जाए। इस व्यक्ति में जिसे हम जय जवान जय किसान का उद्घोष करते हैं  नैतिकता का बल था कि एक आवाज पर लोगों ने व्रत रखना प्रारंभ कर दिया।
इसके पीछे एक कहानी थी 1965 के युद्ध में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉनसन ने उन्हें खुलेआम धमकाया था-" कि यदि पाकिस्तान के खिलाफ आपने युद्ध नहीं रोका तो अमेरिका पीएल 480 समझौते के तहत भेजे जाने वाली लाल गेहूं की आपूर्ति बंद कर देंगे।"
   आपको याद होगा कि उसी दौर में भारत में कृषि उत्पादन विभिन्न कारणों से बहुत कम हुआ करता था। एक ओर शास्त्री जी ने भारतीय सेना का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जय जवान का नारा दिया तो दूसरी ओर उन्होंने जय किसान कहते हुए नागरिकों का आह्वान किया कि-" हम अन्न की बचत करें, अगर संभव हो तो व्रत भी रखें। ताकि भारत के उन नागरिकों की भूख मिट सके जिन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है।
शास्त्री जी के इस कार्य की पुष्टि करते हुए उनके बड़े पुत्र अनिल शास्त्री ने बताया था कि - मां ललिता शास्त्री शहीद दिन उन्होंने अचानक प्रश्न पूछा क्या आप एक शाम सामूहिक उपवास करवा सकती हैं?
ललिता शास्त्री जी ने हां में उत्तर दिया, उत्तर सुनकर उन्होंने आकाशवाणी के माध्यम से भारत की जनता से 1 दिन के उपवास की अपील की। पतली सी आवाज भारतवंशियों की दिल को छू गई थी। मित्रों मेरी उम्र के लोगों की उम्र उस वक्त 4 या 5 वर्ष की रही होगी। हम नहीं जानते थे कि भारत की आर्थिक स्थिति क्या है? भारत में गेहूं की उपज कैसी है? परंतु जो मूल रूप से किसान परिवार से आते हैं ऐसे मित्रों को याद होगा कि उन दिनों भारतीय कृषि व्यवस्था और उसमें सरकार की भागीदारी सकारात्मक नजर नहीं आती थी। क्योंकि घर के पास आजादी के बाद अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने सुव्यवस्थित करने के लिए कुछ भी बेहतर न था। एक घटना कभी किसी अखबार मैं प्रकाशित हुई थी जिसमें महान व्यक्तित्व के धनी शास्त्री जी के छोटे पुत्र ने स्वीकारा- प्रधानमंत्री के रूप में बाबूजी को एक लग्जरी कार इंपाला मिली हुई थी। सुनील शास्त्री जी ने उनके सचिव से उस कार की मांग की और वे भ्रमण पर निकल गए। अगले दिन शास्त्री जी ने नाश्ते की टेबल पर सुनील शास्त्री जी को डाटा नहीं बल्कि सुनील शास्त्री को ड्राइवर को बुलाने के लिए भेजा। ड्राइवर से पूछा गया कि गाड़ी कितने किलोमीटर चली थी? ड्राइवर ने बताया 14 या 15 किलोमीटर। शास्त्री जी का प्रश्न था कि क्या गाड़ी के चलने का हिसाब किताब किसी लाग बुक में मेंटेन करते हैं ड्राइवर ने बताया हां हम गाड़ी को जहां ले जाते हैं वहां का आने जाने का समय और किलोमीटर गाड़ी की लॉग बुक में भरते हैं। इस सूचना प्राप्ति के बाद माता ललिता शास्त्री से कहा-" गाड़ी के उपयोग का अधिकार हमें नहीं है हम केवल सरकारी कार्य के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं। फिर भी अगर उपयोग हो चुका है तो सचिव को उतनी राशि दे दी जावे ताकि वह खजाने में जमा हो जाए। इससे सुनील शास्त्री सहित पूरे परिवार को यह शिक्षा मिली कि हमें शासकीय सुविधाओं का दुरुपयोग नहीं करना है निजी इस्तेमाल के लिए तो बिल्कुल नहीं ।
   आप सब ने अयूब खान का नाम सुना होगा। पाकिस्तानी जनरल अयूब खान ने शास्त्री जी के एयरक्राफ्ट में बैठते समय अपने लोगों की ओर देखते हुए शास्त्री जी का मखौल उड़ाते हुए कहा था-" यह व्यक्ति कमजोर प्रधानमंत्री है। इससे बात करना बहुत आवश्यक नहीं महसूस करता।"
 ताशकंद में पूज्य शास्त्री जी के निधन के उपरांत उनके अंतिम संस्कार में भाग लेने यही अयूब खान भारत आए और उन्होंने भारत और पाकिस्तान आपसी संबंधों में सुधार का प्रतीक निरूपित किया था शास्त्री जी को।
   हरित क्रांति और सेना में बदलाव के प्रणेता पूज्य लाल बहादुर शास्त्री की जन्म जयंती पर उनके महा निर्वाण पर टिप्पणी नहीं करूंगा न ही उस रहस्य के भीतर आपको जाने को कहूंगा, परंतु पड़ोसी देशों के साथ हमारे युद्ध के निर्णय को श्रेष्ठ अवश्य बताऊंगा आप को स्वीकारना होगा कि यदि वह छोटी सी पर्सनालिटी वाला महान व्यक्ति युद्ध की घोषणा ना करता तो शायद हम आज इस श्रेष्ठ युग में इतराते न पाते । सच मायने में आजाद भारत में किसान को पहचानने वाला यदि वहीं था जवान के महत्व को पहचानने वाली ताकत उन्होंने ही हासिल की थी । बताओ भला शरीर से अति साधारण कद काठी का होना वैचारिक रूप से असाधारण होने का अनुपम उदाहरण थे। मैंने इस बार व्यौवहार  राजेंद्र सिंह जी से कहा था-" दादाजी मेरा आप पर आकर्षण केवल इसलिए है कि आप साहित्यकार हैं ऐसा नहीं है। आप पर आकर्षित होने का कारण आपके व्यक्तित्व में सहजता सरलता की झलक पूज्य लाल बहादुर शास्त्री के समतुल्य है।" एक किशोर द्वारा की गई तुलना से प्रभावित व्यौवहार  राजेंद्र सिंह जी अपलक  मुझे देखते रहे और फिर आशीष आशीर्वाद दिया था उन्होंने।
   परम पूज्य शास्त्री जी को शत शत नमन मैं 100% शास्त्री बनना चाहूंगा क्योंकि वे अत्यधिक प्रयोगवादी नहीं थे न ही जिद्दी थे , पूज्य शास्त्री जी महात्मा गांधी की तरह सरल सहज दिव्य दर्शक थे ,वे भारत का भविष्य का निर्धारण कर चुके थे आज आप देखिए विश्व भारत की ओर उसकी जवानों की ताक़त और भारत को फूड सिक्योरिटी प्रदान करने की ताकत  समक्ष नतमस्तक हो कर देख रहा है। जरा सा विषय अंतर होते हुए आपको सूचित करना चाहता हूं पूज्य शास्त्री जी के व्यवहार से प्रेरित होकर 1964 में ही मनोज कुमार ने उपकार फिल्म का निर्माण प्रारंभ कर दिया था। इस फिल्म में भारत की तत्सम कालीन कृषि समस्या का स्वरूप स्पष्ट हुआ है।
  मैं यह नहीं कहता कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के नाम का परिवर्तन कर दिया जाए क्योंकि वे भ महान विचारक थे
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे परंतु मैं चाहूंगा कि कृषि कर्मणा जैसे पुरस्कार  पूज्य प्रधानमंत्री शास्त्री जी के नाम पर भी होनी चाहिए।       हमें अपने पूर्वजों का स्मरण करते रहना जरूरी है। इन पुरखों ने देश के लिए क्या नहीं किया सीमित साधनों में उनके असीमित प्रयासों को अस्थाई अनियंत्रित विचारधारा आयातित विचारधारा की स्थापना के लिए गलत तरीके से प्रचारित किया है।
    विंस्टन चर्चिल का गांधी के प्रति विद्वेष युग युग तक निंदनीय रहेगा। चर्चिल कुंठित थे, उनको लगता था अगर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ गई तो यूरोप का क्या होगा पश्चिम का क्या होगा?
    देर सबेर भारत की प्रतिष्ठा का बढ़ना स्वभाविक था। आप देख रहे हैं होगी वही रहा है। 16000 वर्ष ईसा पूर्व से जारी भारत की गतिशीलता मात्र ढाई से तीन हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को स्पर्श तक नहीं कर पाई। भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यता और संस्कृति का लेखा जोखा गलत लाइन से सेट करने वाला ब्रिटिश क्रॉउन अब हतप्रभ है। यूरोप की मजबूरी है जी वह भारत का पुनरीक्षण करें और नए रिश्ते कायम हों। हो भी यही रहा है । विश्व की सोशियो  इकोनामिक पॉलीटिकल परिस्थितियों को देखा जाए तो भारत आज भी उसी तरह महत्वपूर्ण है जैसा लगभग 800 वर्ष पूर्व हुआ करता था। मेरे मित्र कहा करते हैं कि- "कदाचित हमारे सॉफ्टवेयर में बदलाव आ गया है?" मित्र समीर शर्मा इस आर्टिकल के जरिए बता देना चाहता हूं चार वेद पांच पुराण महाभारत भगवत गीता अरण्यक उपनिषद् के अलावा गांधी और शास्त्री जैसे महान विचारकों का भारत सॉफ्टवेयर बनाता है दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है उसके सॉफ्टवेयर में किसी भी तरह की मिलावट और गड़बड़ी की कल्पना मत कीजिए।

28.9.22

सांप्रदायिकता बुरी चीज नहीं है

    विचार या विचार समूह संप्रदायिकता का  स्वरूप है । दूसरे शब्दों में सांप्रदायिकता विचार अथवा विचार समूह का पर्यायवाची है। सांप्रदायिकता के विस्तार की प्रवृत्ति किसी भी देश के लिए खतरे की घंटी है। सामाजिक परिस्थितियों एवं सांस्कृतिक निरंतरताएं तथा सभ्यता के विकास  अनुक्रम को नुकसान पहुंचाने वाला सांप्रदायिकता का विस्तार मूल दार्शनिक और अध्यात्मिक सिद्धांतों का अवसान करता है।
   संप्रदायिकता अस्पृश्य नहीं है, परंतु इसका विस्तार करने का प्रयास अवश्य अस्पृश्य और अग्राह्य है। कोई भी संप्रदाय सम्मान  विचारधाराओं का ऐसा  स्वरूप होता है.जिसमें आध्यात्मिक तत्वों का मिश्रण होता है। बात बहुत कठिन नहीं है इसे आसानी से समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए आपके मन में ऐसी प्रक्रिया आकार लेती है जिससे  आप एक ऐसे विश्व की कल्पना कर रहे हैं जो सद्भावना और सहिष्णुता को कायम करने के प्रयास करता है और सफल भी रहता है। इसके लिए आप अपने विचार का संप्रेषण किसी दूसरे को करेंगे कोई दूसरा तीसरे को करेगा कोई तीसरा चौथे को करेगा और इसका विस्तार चैन सिस्टम से बहुत अधिक हो जाता है। आपका विचार बुद्ध की तरह विस्तारित होने लगता है और आप एक  स्प्रिचुअल व्यक्ति के रूप में स्थापित हैं..!
  यह स्थिति आपके जीवन काल में व्यवस्थित रूप से चलती है परंतु दीर्घकाल में आपके अनुयाई आपके विचार को इधर-उधर थोपते नजर आते हैं। कई कई बार आपके अनुयाई शस्त्र के बल पर तो कई बार लोग लालच देकर अपने संप्रदाय को विस्तार देना चाहते हैं। मेरी नजदीक घटित एक घटना के उदाहरण से  आपको समझाना चाहता हूं ।
   एक परिवार में मां को कैंसर हो गया था । उस कैंसर की पतासाजी चिकित्सकों ने की और परिवार को बताया कि यह महिला कुछ दिनों के लिए इस दुनिया में रह सकती है इसका जाना प्रभावित है यह अधिक दिनों तक आपके साथ रह नहीं सकती । एक संप्रदाय के एक अनुयाई ने जो अब संप्रदाय को विस्तारित करने प्रचारक बन चुका था, उस परिवार से संपर्क करता है और उसे कुछ धनराशि तथा कुछ अभिमंत्रित पानी इत्यादि के सेवन की सलाह देता है। इसके पहले वह व्यक्ति के परिवार की मूल साधना के संसाधनों को एक कपड़े में बांधकर  ताक पर रख देने का आदेश देता है। कैंसर लाइलाज रोग है। आप सब जानते हैं कि कैंसर में जीवन की प्रत्याशा बहुत कम ही होती है जिसे न के बराबर कहा जा सकता है। वास्तव में उस महिला को कैंसर न था कुछ दिनों में महिला स्वस्थ हो गई। परंतु पूरा का पूरा परिवार दूसरे संप्रदाय के मूल्यों और सिद्धांतों को मानने लगा। किस विचार को मानना है या उसे त्यागना है इसका अधिकार मनुष्य का है इसमें कोई शक नहीं परंतु यहां में उस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा करना चाहता हूं जिसने झूठ बोलकर भावात्मकता को आधार बनाकर अपने संप्रदाय का विस्तार किया।
  एक और उदाहरण बहुत नजदीक से मुझे देखने को मिला। मेरे अधीनस्थ कर्मचारी की संतान का मानसिक संतुलन अक्सर बिगड़ जाया करता है। ऐसी स्थिति में जहां से राहत की सूचना मिलती है वहां पर  किसी का भी जाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस क्रम में अधीनस्थ कर्मी ने बताया कि-" अमुक व्यक्ति का परिवार उसकी संतान की इस बीमारी का अंत कर सकता है।"
   मैं जानता था कि यह केवल एक छलावा और झूठा आश्वासन है। फिर भी किसी भी दुखी व्यक्ति को मना करके उसकी आत्मा को आहत ना करने के उद्देश्य से मैंने उससे उस प्रक्रिया को देखने का यह उस प्रक्रिया में शामिल होने का यह कहते हुए नैतिक रुप से समर्थन किया कि-" इस बात का ध्यान रखना कि तुम अपनी संस्कृति और पैतृक आचरण वंशानुगत परंपराओं का पालन करते रहना।""
       कर्मचारी ने कहा ऐसा नहीं होगा वह लोग बहुत विश्वसनीय हैं वह ऐसा ऑफर भी नहीं देंगे।"
     अधीनस्थ कर्मचारी के विश्वास का सम्मान करते हुए उसे अवकाश दिया । इस व्यक्ति ने स्वास्थ्य सुधार के लिए कुछ सत्रों का आयोजन किया। कर्मचारी की सुल्तान का स्वास्थ उस कालखंड में ठीक रहा। ऐसा अक्सर होता भी रहा है। परंतु कर्मचारी को ऐसा प्रतीत हुआ कि इलाज के लिए आयोजित सत्रों से ही लाभ मिल रहा है। मुझे वह अधीनस्थ कर सूचित किया करता था कि हां मेरी संतान अब पहले से बेहतर है।
  इस बात की जानकारी उसने सत्र के आयोजकों को भी दी। बस फिर क्या था आयोजक उसके पैतृक गांव तक पहुंच गए। और परिवार को इस बात के लिए तैयार करने लगे कि वे अपनी आस्था का केंद्र बदल दें। घर की धार्मिक पुस्तकों को लपेटकर ऐसे स्थान पर रख दें जहां सामान्य रूप से जाना आना नहीं होता है। उस समय एक कर्मचारी और उसका परिवार चकित रह गया। और उसने स्पष्ट रूप से मना भी कर दिया।
   अबकी बार वह जब सप्ताहांत के अवकाश से लौटकर आया तो उसने मुझे घटना का विस्तार से विवरण दिया। उसने यह भी स्वीकारा कि-" सर आपका संदेह सत्य था।
   मैंने कहा कि यदि इन सारी प्रक्रियाओं से दुनिया को स्वस्थ किया जा सकता था तो कोविड-19 के लिए इससे मुफीद और क्या होता।।
    जो जो संप्रदाय अपनी मान्यताओं को प्रतिस्थापित करने के लिए इस तरह के प्रयास करते हैं उन संप्रदायों का स्थायित्व कब तक बना रहेगा मुझे संदेह है। आपको भी संदेह करना चाहिए।
   हाल ही में एक जिले में कुछ लोग एक खास वर्ग की आबादी को इकट्ठा करके उन्हें ज्ञान ध्यान की बातें बता रहे थे । सब कुछ ठीक चलता रहा अधिकारों पर बात हुई कर्तव्यों पर बात हुई सामाजिक विसंगतियों पर बात हुई सभी बातों को गंभीरता से सुना गया। उस समुदाय ने वक्ताओं के उस अनुरोध का तीखा विरोध तक किया जबकि समुदाय को मौजूदा आस्था से विमुक्ति का आग्रह वक्ताओं ने किया ।
    महात्मा गौतम बुद्ध के सिद्धांत और उनके समकालीन तथा बाद के अनुयाई आध्यात्मिकता का प्रचार करते रहे इससे बौद्ध मत के विस्तार समकालीन अखंड भारत बौद्ध मत सीरिया तक पहुंच गया था। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं यह इतिहास में दर्ज है। इसके पूर्व सनातन व्यवस्था अपनी खूबी के कारण ही विश्व में विस्तारित रही है ऐसा मेरा मानना है।
   उपरोक्त कथनों का आशय यह है कि
[  ] जो विचार या विचार समूह जिस भूखंड में विस्तारित होता है या हो रहा हो उसे उस भूखंड की कालगत परिस्थितियों के साथ अनुकूलन करना होगा। तभी वह विचार या विचारों का समूह स्थायित्व प्राप्त कर सकता है।
[  ] कोई भी विचार या विचार समूह तलवार के जोर पर अगर स्थापित भी कर दिया जाए तो दीर्घकाल में  उसका समापन सुनिश्चित है।
[  ] देश काल परिस्थिति के  साथ साथ जो  विचार या विचार समूह में परिवर्तनशीलता का गुण नहीं होता वह विचार अथवा विचार समूह भी अधिकतम कुछ शताब्दियों तक ही जीवित रह सकता है।
          भारत में शैव, वैष्णव,शाक्त, वैदिक,स्मार्त, बौद्ध, जैन, के अलावा कई और भी ज्ञात अज्ञात विचार स्थाई हैं। पारस्परिक आपसी वैमनस्यता देखने को कभी नहीं मिलती। चार्वाक तथा रक्ष संस्कृति की विचारधारा को छोड़कर सभी उपरोक्त वर्णित विचार सांस्कृतिक परंपराओं की निरंतरता के साथ जीवंत है इनमें आपसी  विद्वेष देखा नहीं गया ।
  द्वैत अद्वैत, द्वैताद्वैत, के सिद्धांत भी चिर स्थाई से हो गए हैं। कबीर अकाट्य है तो रहीम और मिर्जा गालिब का अध्यात्मिक दर्शन आज भी विद्यमान है।
   यवन भी चाहते थे कि वे बलपूर्वक अपनी सांस्कृतिक निरंतरता को भारत में स्थापित कर देंगे। परंतु ऐसा हो ना सका। ऐसा होना संभव भी न था होता भी कैसे भारत एक भौगोलिक संरचना नहीं है इसकी अपनी सांस्कृतिक निरंतरता है सामाजिक व्यवस्था है।
    यहां बिना नाम लिए संकेतों में स्पष्ट करना आवश्यक है कि-" जिस विचार में लचीलापन ना हो परिवर्तनशीलता का गुण ना हो वह न तो बलपूर्वक विस्तार पाता है और ना ही छल या कपट पूर्वक। लोभ लालच देकर तो उसके स्थायित्व को बनाए रखना बहुत मुश्किल होगा।"
   तय आपको करना है कि आप अपने विचार को विस्तारित करने अथवा विचार समूह को विस्तारित करने के लिए कौन सा तरीका अपनाते हैं वैसे तो यह सब जरूरी भी नहीं है क्योंकि सर्वोपरि है एकात्मता का महत्वपूर्ण सूत्र। जो सर्वे जना सुखिनो भवंतु अथवा विश्व बंधुत्व का नवनीत है। अंत में सिर्फ इतना जानना जरूरी है कि-" संप्रदायिकता बुरी चीज नहीं है बल्कि सांप्रदायिक होना और उसे
बल अथवा छल कपट से विस्तार करने की कोशिश गलत है अग्राह्य है ।

27.9.22

बाप की साली :मौसी क्यों नहीं..?

 
         गिरीश बिल्लोरे मुकुल 

   मैं उस महान लेखक का नाम भूल गया हूं परंतु उनकी लिखी गई कहानी का कथानक याद है। 
सामान्य रूप से हम अपने कहे हुए  शब्दों असर को गहराई से नहीं जानते, और तो और हम अपने किए गए कृत्य का प्रभाव क्या पड़ेगा इसका अनुमान नहीं लगा पाते। 
हरिहरन की गायक गजल मुझे बहुत पसंद आती है शायद आपने भी सुनी होगी-
" जब कभी बोलना 
मुख्तसर बोलना
वक़्त पर बोलना
मुद्दतों सोचना....
  इसमें कोई शक नहीं बोलने से पहले और कुछ करने से समझ लेना चाहिए कि-" हमारे मुंह से निकले शब्द कितने सकारात्मक असर छोड़ते हैं अथवा उनका कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ?
हां तुम्हें बता रहा था कि, बात बहुत पुरानी है उस वक्त शायद हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। कॉलेज के कैंपस से जुड़ी एक कहानी कैरेक्टर हॉस्टल में खाना बनाने या साफ सफाई करने का काम किया करती थी। पूरे स्टूडेंट्स उसे बाप की साली कहकर परेशान किया करते थे । ऐसा नहीं था कि इस कहानी की पात्र जिसे लोग बाप की साली कहते थे उसे छात्र पसंद नहीं करते थे परंतु ऐसा अलंकरण  महिला पात्र को बहुत दु:खी कर देता था, वह चिढ़ जाया करती थी । यह प्राकृतिक है कि जो व्यक्ति किसी शब्द या कार्य विशेष चिड़ता हो  है उसके सामने वही कार्य शब्द के दोहराव की आदत लोगों में होती है। युवा कुछ ज्यादा ही इस तरह की हरकतें किया करते हैं।
   ऐसा ही होता था उस महिला को हॉस्टल में रहने वाली सभी युवा बाप की साली कहकर परेशान किया करते थे। गांव से एक विद्यार्थी जब शहर आया और हॉस्टल में उसने उस महिला को मौसी शब्द से अलंकृत किया तो माहौल का बदल जाना स्वभाविक था ।
   हमें किसी से भी संवाद करने के पहले इसी तरह के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। संवादों में अत्यधिक क्रूरता उपेक्षा अथवा अपमानजनक संवाद करना निसंदेह प्रत्युत्तर का कारण होता है। आप नहीं समझ पाएंगे कि प्रत्युत्तर कैसा होगा?
  मुंह से निकला हुआ शब्द तरकस से निकला हुआ तीर और अबके संदर्भों में कहा जाए तो- "दागी हुई मिसाइल कभी वापस नहीं आती..!"
  हम अक्सर अधिकारियों को देखते हैं वह क्या बोल जाते हैं उन्हें खुद ही नहीं मालूम यह अलग बात है कि दिल से कई सारे ऑफिसर खराब नहीं होते परंतु ऑफिसर होने का लबादा उनके मस्तिष्क तक प्रभावित कर देता है। और फिर जब भी बोलते हैं तो उन्हें यह होश नहीं रहता कि - "वे ही ऑलमाइटी याने सर्वशक्तिमान नहीं है..!"
  मशहूर शायर चुके ने कहा है-
"नुक़रई खनक के सिवा क्या मिला शकेब..
कम कम वह बोलते हैं जो गहरे हैं पेट के"
   आप भी फौरन प्रतिक्रिया देने वालों की मनोदशा और उनकी मानसिक स्तर को आसानी से समझ सकते हैं। अक्सर जो लोग किसी भी मुद्दे पर त्वरित टिप्पणी कर देते हैं वह टिप्पणी सटीक  होगी यह कहना मुश्किल है । 
   कुछ कहने अथवा करने के पहले उसके प्रभाव का आंकलन करना बहुत जरूरी है। और जब भी आप संवादी हो तो वक्तव्य नपे तुले और सटीक होनी चाहिए। अपमानजनक शैली में बात करना किसी की योग्यता का नहीं वरन अयोग्यता का उदाहरण होता है।
   अक्सर लंबी लंबी बातों में भूत परोसना एक अंतराल में मस्तिष्क के रडार पर आपको संदिग्ध यूएफओ की तरह पोट्रेट कर देता है।
  मुझे विश्वास है कि इस बिंदु पर भी हम चिंतन करेंगे और चिंता भी।

पिता के पुत्र होने का एहसास छोड़िए

 
यह वाक्य मेरे लिए सदा से ही घृणास्पद रहा है। इस वाक्य के मेरे कानों में पड़ते ही मेरा मस्तिष्क क्रोध से भर गया था, और आज तक शिलालेख की तरह अंकित भी है। खैर यह मेरा अपना चिंतन है कदाचित कुछ लोगों का भी हो लेकिन जो पुत्र के पिता होते हैं वे केवल अहंकार के पिटारे से अधिक मुझे कुछ नजर नहीं आते।
   पुत्र संतान का गौरव अर्जित कराना तो सदियों से जारी है। भारत जैसे सनातनी देश में भारतीयों को यह जानकारी नहीं है कि भारत में शक्ति पूजा होती है। बेटियों के बिना कुछ भी नहीं बेटी दिवस पर विमर्श के लिए यह विषय जानबूझकर मैंने उन अल्प बुद्धि अभिभावकों के लिए चुना है जो केवल बेटों को अपना श्रेष्ठ संसाधन मानते हैं। जबकि मेरा दृष्टिकोण इससे इतर है। यह इसलिए नहीं कि -" ईश्वरीय संयोग से मैं बेटियों का पिता हूं बल्कि इसलिए कि मैंने हर मोर्चे पर बेटियों को सफल होते देखा है।"
   अक्सर घर के बड़े बूढ़े बुजुर्ग लोग किसी की संतान बेटी होने पर शोक ग्रस्त हो जाते हैं। इन बुजुर्गों ने ना तो वेदों का अध्ययन किया होता है और ना ही वे यह जानते कि वेदों के निर्माण में ऋषिकाओं का विशेष योगदान रहा है। ज्यादा दूर नहीं ऋग्वेद के कुछ अंश को पढ़ ले तो सब कुछ साफ हो जाएगा।
मुझे-"पुत्र के पिता बोध की जरूरत नहीं है। अगर मुझे संतान से प्रेम है तो यह सब तथ्य द्वितीयक हो जाते हैं।"
   आज मैं इस बात का रहस्योद्घाटन करना चाहता हूं कि पुत्र संतान का जनक या जननी होना गौरव और गरिमा की बात नहीं है बल्कि एक अच्छी संतान का जनक या जननी होना गौरव की बात है।
   भारतीय समाज को समझना चाहिए कि उसकी विरासत में बहुत कुछ ऐसा है जो यह सिद्ध करता है कि बेटियां भी बेटों के समकक्ष हैं। यह ऐतिहासिक और हमारी सांस्कृतिक निरंतरता के अन्वेषण से स्पष्ट हो जाता है। मुझे घटना याद आ रही है कि एक पुत्र संतान का पिता अपने पुत्र के विवाह के समय पुत्र के पिता और माता का दायित्व अपने भाई पर छोड़ना चाहता था। उसका यह कहना था कि मैंने यह दायित्व तुम्हें  इसलिए देना चाहता हूं क्या कि तुम्हें क्योंकि मैं  तुम्हें भी पुत्र बोध हो सके।
   छोटे भाई का इंकार कर देना साहस का कार्य था। उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब ईश्वर ही नहीं चाहते कि मुझे ऐसा कोई बोध हो तो फिर आप ऐसा प्रयास क्यों कर रहे हैं? और फिर मैं तो पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य समझता हूं।
   समाज का नकारात्मक चिंतन आप सकारात्मक दिशा की ओर जाता नजर आ रहा है। बिटिया दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं देकर आपसे आग्रह करूंगा कि कृपया बेटियों को लेकर किसी भी तरह की मानसिक ग्रंथि ना पाले। कृपया उसे एक संतान के रूप में देखें आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप अपनी संतानों का विभाजन पुत्र  या पुत्री के रूप में करें।
  मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरे भांजे के विवाह के समय उसके  ससुर बेहद भावुक होकर मुझसे मिले और उन्होंने कहा हम आपके कृतज्ञ हैं और हमसे कोई कमी रह गई हो तो क्षमा कीजिए।
  मैंने पूछा- "आज आपने कन्यादान किया है न..?"
उनका उत्तर था- हां.. !
मेंरा प्रतिप्रश्न-" अर्थात दाता तो आप हो न ? तो फिर आपका हाथ हमारे हाथों के ऊपर है हम याचक हैं। याचक का स्तर हमेशा ही दाता से नीचे होता है मैं आपको प्रणाम करना चाहता हूं आपको प्रणाम है।
    भाव से परिपूर्ण पुत्री संतान के उस पिता को इस संवाद से जो प्रसन्नता हुई होगी उसका आंकलन करना बहुत मुश्किल है। पर मुझे विश्वास है कि-" इस तो कैसे संवाद से आप सबके मस्तिष्क में संतान के प्रति विभेद के दृष्टिकोण का अंत अवश्य हो जाएगा।"
  सुधि पाठक आप सबको नमन करते हुए  आत्मिक अनुरोध करना चाहता हूं-" आप पुत्र संतान , उत्कंठा में भ्रूण हत्याएं रोक दीजिए और अपनी पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य ही मानिए। वंश केवल पुत्रों से नहीं चलता है, यह समाज का गलत दृष्टिकोण है। वंश पुत्रियां भी आगे नहीं जाती है यह वैज्ञानिक सत्य है। आप की संतान में आपका डीएनए है और वह डीएनए अनंत काल तक जीवित रहता है उसका स्थानांतरण होता रहता है। तो आप किस आधार पर कहते हैं कि वंश पुत्र ही चलाते हैं यह एक उत्तराधिकारी व्यवस्था हो सकती है लेकिन वैज्ञानिक और अध्यात्मिक व्यवस्था यह नहीं है जिसे आपने अपने मस्तिष्क को कूड़ेदान बनाकर संभाल कर रखा है।
 


 

25.9.22

Fall in LIC share prices, loss of middle class

*Institutional investment is needed on the falling stock of LIC, otherwise the loss is only the loss of the middle class shareholders.*
The BPO of Life Insurance Corporation of India was issued at Rs 949. But this stock has fallen to ₹ 648 with a terrible fall of 32%.
This is the result of the biggest weakness of Life Insurance Corporation of India's management.
Traders who intervene in the stock market consider this fall as a permanent decline.
The middle class took the shares of Life Insurance Corporation of India all over India.The middle class had reposed their trust in LIC given the tagline of their hard earned money with life and after life.
There is no doubt that this organization i.e. Life Insurance Corporation of India has expertise in the matter of sales, but this skill is not working in the stock market.Life Insurance Corporation of India appears to be the weakest in finance management.
Senior officers of Life Insurance Corporation, who directly intervene in the management, are busy explaining to their subordinate officers that - "It is a conspiracy by the elements of business competition, due to which the shares fell."
Blaming others for the fall in LIC's stock is a classic example of business weakness. The most unfortunate thing is that the fall in the stock prices of Life Insurance Corporation of India is a sad situation for thousands of middle class families.In fact the middle class people had unwavering trust in their LIC agent in this promotion.LIC agents also do not have much knowledge regarding stock marketing. 
Gautam Adani holds 10% of LIC's stock.Adani also has companies that are involved in other businesses.Despite this Adani Group of Companies has also received loan from State Bank of India.This is definitely a matter of concern.
Overall, this attempt to mobilize capital from the market is giving very negative results due to weak managerial ability. 
We can only pray that God can compensate the financial loss of the middle class people.

मिलिट्री तख्तापलट खबर और ग्लोबल टाइम्स खामोश..?


शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
  विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
  भारतीय खबर रटाऊ मीडिया को बैठे-बिठाए मसाला मिल गया परंतु तथ्यात्मक जानकारी मीडिया हाउसेस में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अनुपलब्ध रही है।
आइए हम बताते हैं कि किन कारणों से यह खबर इन दिनों विश्व के समानांतर, मीडिया न्यू मीडिया अथवा सोशल मीडिया पर वायरल है कि चीन में मिलिट्री तख्तापलट हो चुका है?
[  ] जब भी चीन के मामले में कोई खबर सुर्खियों में आती है तब ग्लोबल टाइम्स उसे तुरंत रिस्पॉन्ड करता है। परंतु इस खबर के संदर्भ में ग्लोबल टाइम्स की चुप्पी का अर्थ मौन स्वीकृति लक्षण तो नहीं?
[  ] शंघाई  को-ऑपरेशन संगठन की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आज सहज रूप में देखा तथा उसका उल्लेख भी किया।
[  ] एक पत्रकार जेनिफर जैंग ने ऐसा वीडियो रिलीज किया जिसमें 80 किलोमीटर तक मिलिट्री के ट्रक बीजिंग की ओर जाते हुए नजर आए। इस वीडियो को पाकिस्तानी यूट्यूबर आरजू अकादमी ने प्रमुखता के साथ अपने दैनिक शो में प्रेजेंट किया है। यद्यपि वे अपने शो में इस मिलिट्री कू की पुष्टि नहीं कर रही थीं।
[  ] इस तख्तापलट का श्रेय जाता है चीन के पूर्व राष्ट्रपति एवं पूर्व प्रधानमंत्री को जिनका नाम क्रमशः हू जिंग ताओ एवम वें ज़िया हो है । खबरें यह भी हैं कि इन दोनों में समरकंद में हुई s.c.o. सम्मिट में ही सी जिनपिंग को सुरक्षा एजेंसियों से गिरफ्तार करवा लिया था।
[  ] समाचार यह भी गर्म है कि-" चीन की एक सेना अधिकारी ली क्यांग मिंग चीन के अगले राष्ट्रपति होंगे।
[  ] अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस समाचार की भी पुष्टि की है कि समिति के उपरांत होने वाले डिनर के पहले ही चाइना के राष्ट्रपति चीन के लिए रवाना हो चुके थे वह भी डिनर में शामिल हुए बिना।
[  ] सूचना माध्यम यह भी बताते हैं कि-" शी जिनपिंग को हाउस अरेस्ट कर दिया गया है।"
[  ] विश्व मीडिया का ध्यान चीन से विश्व में जाने वाली 60% फ्लाइट के उड़ान ना भर सकने को भी इस मिलिट्री तख्तापलट का संकेत माना है। कहा जाता है कि किंतु विश्व भर में 9584 एयरक्राफ्ट विदेशों के लिए उड़ ना सके।
[  ] रूस ने इनको पावर आफ साइबेरिया नाम से जानी जाने वाली पाइप लाइन के जरिए तेल देने पर अस्थाई तौर से रोक लगा दी है।
  उपरोक्त परिस्थितियों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि-" चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब सत्ता विहीन हो चुके हैं। चीन की संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को केवल दो बार राष्ट्रपति बनने की व्यवस्था है परंतु शी जिनपिंग का यह प्रयास रहा कि वे आजीवन चीन के राष्ट्रपति रहेंगे। यह तथ्य पूरा विश्व जानता है और चीन के महत्वाकांक्षी लोगों के मन में शी जिनपिंग का यह सपना बरसों से खटक रहा है। इस कारण भी तख्तापलट की इन खबरों से इंकार नहीं किया जा सकता ?
*यदि यह मिलिट्री कू हुआ है तो उसका कारण क्या है?*
   मीडिया रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार किया जाए तो आप पाएंगे ताइवान मुद्दे पर चीन के राष्ट्रपति की चुप्पी को लेकर चीन की आर्मी पी एल ए अर्थात पीपल्स लिबरेशन आर्मी राष्ट्रपति के खिलाफ है। दूसरी ओर चीन में आर्थिक संकट तथा आंतरिक आर्थिक अस्थिरता का दोषी भी शी जिनपिंग को माना जा रहा है। साथ ही चीन के नागरिक अब अधिक मुखर हो गए हैं वह शी जिनपिंग के कोविड कालीन प्रबंधन से बेहद नाराज दिखाई दे रहे हैं।
इसके अतिरिक्त चीन का अंतर्राष्ट्रीय रसूख भी इन दिनों तेजी से अपेक्षा कृत कमजोर हुआ है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो विश्वव्यापी इस अफवाह को पूरी तरह से अफवाह नहीं कहा जा सकता? और इसे हूबहू स्वीकारना भी ठीक नहीं है जब तक की कोई आधिकारिक घोषणा ना हो।
  *शी जिनपिंग के कार्यकाल में शाइनो-इंडिया रिलेशनशिप*
    भारत की ओर से चीन के साथ मैत्री संबंध के प्रयास हमेशा ही सकारात्मक रहे हैं परंतु चीन पर डोकलाम घटना के बाद चीन से रिश्ते नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए थे। अंततः चीन को अपनी रणनीति से भारत के समक्ष झुकना पड़ा। पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते व्यवसायिक रूप से मजबूत रहे हैं परंतु चीन की श्रीलंका और पाकिस्तान सहित अफ्रीकन देशों के साथ आर्थिक धोखेबाजी से पूरा विश्व चीन के विरोध में है। भारत का स्टैंड जियोपोलिटिक्स में मजबूत होता नजर आता है तो उसका कारण है-"चीन के विश्व के महत्वपूर्ण देशों से रिश्तो में खटास..!" विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों में भारत भी शामिल है आप सहज अंदाज लगा सकते हैं कि चीन के साथ हमारा संबंध सामान्य से कमजोर ही रहा है।
   यदि यह खबर सत्य है तो ऊपर दिए गए समस्त कारणों के आधार पर ही सत्य होगी परंतु हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि भारत के प्रति कीमती विदेश नीति सकारात्मक और भावात्मक नहीं है।

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