3.10.22

नजर और नजरिया

  
द्वारपाल ने उससे कठोर शब्दों में पूछा _" कौन हो भाई, फटे कपड़े कपड़ों में कहां घुसे  आ रहे हो...? यह राज महल है यहां दरबार है यहां केवल उनको प्रवेश मिलेगा जो राज सेवक हों अथवा जिन्हें राजा ने बुलाया हो..!
   वह अकिंचन व्यक्ति अपने ज़ेब से रुक्का निकालता है, तथा दरबान को दिखाता है।
   दरबान अपने वरिष्ठ अधिकारी से परामर्श करके कहता है कि-" यह आमंत्रण तुम किसी से चुरा कर लाए हो ना जाओ भाग जाओ अब मुंह ना दिखाना फिर..!"
   इस चेतावनी के बाद यह निर्धन व्यक्ति वापस लौट जाता है। कुछ देर बाद सजा संवरा युवक पहरेदार को अपना आमंत्रण दिखाता है और महल में प्रवेश कर देता है।
   हुआ यूं था कि राजा ने प्रतिभाशाली लोगों को आमंत्रित किया था अपने साथ भोजन करने। जिसके लिए बाकायदा आमंत्रण भेजे गए थे और प्रतिभाशाली कलाकार आए।
   राजा अपने राज्य के इन महान कलाकारों को प्रोत्साहित किया कोई मूर्तिकार था कोई चित्रकार था उन कवि था तो कोई वक्ता था कोई मधुर तान छेड़ता तो मानो स्वर्ग में इंद्र अपनी सभा में बैठे हो और गंधर्व ब्रह्म की आराधना का शाम गायन कर रही हूं । दिनभर यह क्रम चलता रहा राजा को इन कलाकारों की प्रतिभा पर गर्व होने लगा और वह नतमस्तक हुआ राजा  मुक्त हस्त दान करता चला गया।
   जब भोजन की बारी आएगी तब सभी एक पंगत में बैठे हुए थे। राजा स्वयं भोजन परोस रहे थे और अचानक वे सुदर्शन युवक के बाजू में जाकर बैठ गए।
   युवक सहित अन्य कलाकारों  की प्रतिभा से वाकिफ तो थे। युवक के साथ भोजन करते हुए तुम्हें कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था।
   यह क्या? राजा चकित रह गए राजा ने कहा-" आप अपनी पगड़ी पर दिवाली क्यों लगा रहे हैं अरे यह क्या आपने तो अपनी कुर्ते  को खिलाने लगे ।
    राजन, मुझे मेरी पोशाक की वजह से आपके द्वारपाल ने भगा दिया था। मैं सामान्य वस्त्र पहना था इनमें कुछ फटे वस्त्र भी थे। मेरी पादुका भी खंडित थी। आपके प्रहरियों ने मुझे तब लौटा दिया था। दूसरी बार में नगर सेठ के पुत्र जो मेरे मित्र हैं उनसे यह सब लेकर आया। तब प्रहरियों ने मुझे बिल्कुल नहीं रोका, पूरे सम्मान के साथ मुझे राज महल में प्रवेश किया है।
  हे भूपति... मेरा मूल्यांकन जिस आधार पर हुआ है और जिसे देख कर आपके प्रहरियों ने मुझे महल में प्रवेश दिया है यह महान है कि मैं? निसंदेह मेरे वस्त्र महान है श्रेष्ठ वरना आपके प्रहरियों के मन में ऐसी कोई भावना ना होती।
    राजा शर्म से सर झुका कर बोले-" जिस राष्ट्र में गंधर्व का को सम्मान नहीं मिलता यह सृजन हीन कांति हीन राष्ट्र होते हैं। युवक मैं तुमसे क्षमा चाहता हूं।
    यह कहानी फिर कहानी है पुराना कथानक है सब जानते हैं कोई इनके पात्र के रूप में मिर्जा गालिब को रख देता है तो कोई अन्य किसी को। परंतु यह सत्य है कि वेशभूषा आज की भाषा में कहें तो अपीरियंस के आधार पर यह तय किया जाता है कि हमें क्या करना है।
   आपकी कीमत आपकी नौकरी के स्तर तथा आपके आर्थिक बैकग्राउंड से आती जाती है । वरिष्ठ पदों पर रहने वाले व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति भले ही वह वैशाख नंदन क्यों ना हो उनका सम्मान करने में इसी को अपराध बोध महसूस नहीं होता। मुझे दफ्तर से आने जाने के लिए एक ऑटो आता है । सोसाइटी का दरबान पहले दो-तीन दिनों तक उस ऑटो वाले से अभद्रता से व्यवहार करता था।
इसकी अभद्रता इस हद  तक पहुंच गई सोसाइटी के पोर्च में मुझे उतारने के लिए ऑटो वाले ने जैसे ही ऑटो खड़ा किया तुरंत वह दरबान चीख पड़ा ऑटो बाहर लेकर आओ । यह दुनिया की रीत है दुनिया उनकी पतंगों की तरह है जो चमकते दीपक के इर्द-गिर्द घूमते हैं और उसमें जलकर मर भी जाते हैं। आपकी सादगी को कोई पसंद नहीं करता बस इतनी सी बात नहीं है यह आपकी सादगी को बर्दाश्त भी नहीं कर सकते।

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