14.9.21

भारतीय भाषाओं के उन्नयन के साथ हिंदी का विकास संभव है

*हिंदी अमिय रसधार*
अमिय रसधार भाषा प्रांजल प्रवासी मोहित कर लेती है। इस भाषा में देशज और विदेशी शब्दों का सम्मिश्रण की भाषा के प्रवाह को विचलित नहीं करता। देशज भाषाएं बोलियां हिंदी का कलेवर मजबूत और उसके सौंदर्य वृद्धि कारक होते हैं। हिंदी का विरोध इन दिनों दक्षिण भारतीय भाषा के बोलने वालों द्वारा किया जा रहा है। जबकि हिंदी 1950 के बात से उपेक्षा का शिकार रही है। यह सब राजनीतिक कारण है जो साहित्य के विरुद्ध जाते हैं। भाषाओं में आपसी विरोध पैदा करना भारत के लिए एक सबसे दुखद पहलू है विघटन के आधार में जाति संप्रदाय और भाषा क्षेत्रवाद का योगदान होता है। जबकि भारत को समझने के लिए हमें हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को समृद्ध करना होगा। कल रात्रि अर्थात 13 सितंबर 2021 को एक सामूहिक चर्चा में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हिंदी भाषा किसी भाषा का विरोध नहीं करती बल्कि हिंदी भाषा का निर्माण ही सभी भाषाओं के सम्मान के लिए किया गया है। आज मुझे व्यवहार राजेंद्र सिंह याद आ रहे हैं आज उनका जन्मदिन है राजभाषा का दर्जा दिलाने उनके योगदान को भुलाना बहुत मुश्किल है। वह जबलपुर से थे और जबलपुर की परिभाषा एक शब्द संस्कारधानी में निहित है। राजभाषा हिंदी अब रोटी की भाषा भी है ऐसी स्थिति में तमिल भाषी स्नेही भाइयों का हिंदी भाषा के विरुद्ध झंडा बरदारी करना केवल राजनीतिक विद्रूपता का परिचायक है। अब हिंदी में इतना साहित्य लिखा जा चुका है कि वह विश्व की सर्वाधिक प्रतिष्ठित भाषाओं में अपना स्थान नियत कर चुकी है। सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान आज के दौर की जरूरत है। कल रात्रि ट्विटर पर भोजपुरी बोली को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की बात की जा रही थी। 1973 से जारी यह आंदोलन मंथर गति से चल रहा है। मेरा मत यह था कि -" मालवी बुंदेली निमाड़ी बघेली छत्तीसगढ़ी ऐसी कई बोलियां हैं जिसके पास अपने टेक्स्ट उपलब्ध है। इन्हें भी आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए" 
भारतीय भाषाओं के उन्नयन के साथ हिंदी का विकास संभव है यह भी मेरा
अभिमत है । किसी एक भाषा को जो वर्तमान में बोली के स्वरूप में है आगे लाना और उसके लिए आंदोलन करना उतना प्रभावी नहीं होगा जितना की समस्त भारतीय भाषाओं को जो छूट गई है उन्हें आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने के लिए इस आधार पर प्रयास करना चाहिए। सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहिए कि वर्तमान में नवीन शिक्षा नीति में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा है और सबसे प्रभावशाली भाषाएं जैसा ऊपर मैंने सूची दी है के हिसाब से उन्हें आठवीं अनुसूची में शामिल कर लेना चाहिए। भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने के आंदोलन का मुख्य आधार है कि मारीशस में जब भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है तो क्यों नहीं भारत में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता आठवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाए। मांग अपनी जगह ठीक है लेकिन शेष सभी भाषाओं को शैक्षणिक संदर्भ में विशेष रूप से आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की प्रार्थना करनी चाहिए ना की ऐसा कोई मुद्दा बढ़ाना चाहिए ताकि भाषाई विवाद पर कोई राजनीतिक फसाद खड़ा हो जाए हिंदी दिवस पर सभी हिंदी प्रेमियों को शुभकामनाओं सहित भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए जय हिंदी जय हिंदुस्तान का नारा बुलंद करने की जरूरत है।

*Dismantle Hinduism : सनातन के विरुद्ध आधारहीन वैश्विक अभियान ... भारतीय दार्शनिक और चिंतक शुतुरमुर्ग बने !* आर्टिकल 01

*Dismantle Hinduism : सनातन के विरुद्ध आधारहीन वैश्विक अभियान ... भारतीय दार्शनिक और चिंतक शुतुरमुर्ग बने !*
     इन दिनों सनातन के खिलाफ अमेरिका में लगभग 40 यूनिवर्सिटीज मिलकर एक बहुत बड़ा आयोजन कर रही है जो सनातन धर्म या हिंदुत्व के विरुद्ध एक नैरेटिव सेट करने का प्रयास है। मैं इस प्रयास की घोर निंदा करता हूं और भारतीय समाज को आगाह कर देना चाहता हूं कि अगर यही परिस्थितियां बनी रही तो प्रत्येक भारतीय को शस्त्र उठाना आवश्यक हो जाएगा। भारत विस्तार वादी धर्म का प्रवर्तक भूभाग नहीं है। भारत सनातन मान्यताओं को आत्मसात करने के लिए किसी पर दबाव नहीं डालता। फिर तथाकथित आयातित विचारक भारत के खिलाफ उसके चिंतन के विरुद्ध इतना बड़ा अभियान क्यों चला रहे हैं और हमारे बुद्धिजीवी शुतुरमुर्ग क्यों है।
इन सब बातों को समझने के लिए सबसे पहले हम भारतीय सनातन व्यवस्था और धर्म के विभिन्न पहलू उजागर करते हैं और यह भी कोशिश करते हैं कि आप तक हम सनातन के मूल तत्व को संप्रेषित कर सकें।
भारतीय दर्शन का आधार सनातन क्या है यह सबसे पहले समझना जरूरी है। सनातन धर्म व्यवस्था है जो आदि से अनंत तक विस्तारित है परिवर्तनशील है। कुछ लोगों का मत है कि सनातन धर्म नहीं एक परंपरा या सटीक व्यवस्था है।
आइए सबसे पहले  हम धर्म को समझ लेते हैं
धर्म क्या है...?

      इतिहास में धर्म  का विवरण रखने का औचित्य क्या है ? यह प्रश्न मैंने अपने आप से भी लिखने के पूर्व किया। लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ कि मानव कुछ ना कुछ विशेष गुण धर्म के साथ विकसित होता है। जब विज्ञान की ओर मनुष्य का ध्यान ही नहीं था पाषाण से लौह, और फिर लौह से अन्य धातु युग तक की यात्रा बिना किसी अनुशासनिक प्रणाली के संभव नहीं है। चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो या फिर कबीले में रहने की व्यवस्था। और यही जीवन व्यवस्था उसे यानी मनुष्य जाति को आवश्यकता और उसकी पूर्ति के लिए अन्वेषण एवं अविष्कार की प्रेरणा देती है। अति आवश्यक है कि हम धर्म के इस बिंदु को अवश्य पढ़ें। और जाने कि किन परिस्थितियों में मनुष्य ने अपने आप को आदिम युग से सभ्य मानव के रूप में विकसित कर दिया…?

    

धर्म की परिभाषाओं को आपने देखा भी होगा । यहां फिर से लिखने की जरूरत नहीं है। फिर भी मैं अपने नजरिए से धर्म को क्या समझता हूं वह बता देता हूं मौजूदा परिभाषा भी प्रस्तुत हैं । 

   मेरे नजरिए से धर्म-"ईश्वरीय आस्था युक्त परिवर्तनशील वैज्ञानिक प्रक्रिया है..!°
• धर्म में जड़त्व तो नहीं बल्कि प्रगति शीलता के बिंदुओं का समावेश होता है और ये बिंदु रिचुअल्स और मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ सिंक्रोनाइज होते हैं, ऐसा व्यक्ति ही धार्मिक कहलाता है जो स्वयं से पृथक एक शक्ति को स्वीकार करता है उस शक्ति को ब्रह्म अथवा ईश्वर तत्व की संज्ञा दी जाती है।

• धर्म देश काल परिस्थिति के अनुसार लागू होता है, क्योंकि उसकी प्रकृति ही परिवर्तनशील है।
• ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार ने वाला धर्म की परिभाषा को समझ सकता है । 
• जो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है वह कुछ प्रक्रियाओं का पालन करता है।
• केवल पूजा प्रणाली ही धर्म नहीं है। किंतु पूजा प्रणाली धर्म का एक हिस्सा है। ऋग्वेद इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जहां जो देता है अर्थात वह देवता है और ऋग्वेद के मंत्रों जिसे हम ऋचा कहते हैं अर्थ को समझना होगा। हवन या यज्ञ एक और वायुमंडल की शुद्धता का प्रयोग है तो दूसरी ओर जीवन यापन के लिए प्राप्त होने वाले संसाधनों के लिए उन देने वाले यानी देवताओं के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन भी है। वेद में उस सरस्वती नदी का जिक्र आया है, जो वर्तमान में विलुप्त है उसी देवता माना है तो उसे यज्ञ के माध्यम से आहुतियां देने का अनुमान लगाया गया जबकि वेदों में जिस सरस्वती का देवी स्वरूप आह्वान किया गया है वह बुद्धि के दाता सरस्वती यानी शारदा है ना कि सरस्वती। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि नदियां जीवित होती हैं ना कि देव स्वरूप। इसकी पुष्टि में विद्वान आचार्य मृगेंद्र विनोद जी द्वारा प्रस्तुत विवरणों को देखा जाए तो पता चलता है कि सरस्वती नदी का यज्ञ नदी के तट पर जाकर ही किया जाता था और यह लगभग 18 वर्ष में पूर्ण होता था ना कि यज्ञ आहुति के द्वारा सरस्वती नदी का आह्वान किया जाता था।

• धर्म में मान्यताओं को देश काल परिस्थितियों के अनुसार  बदलाव की सुविधा मौजूद है ।

• धर्म किसी संस्थान का डॉक्ट्रिन नहीं होता। आप सोचते होंगे कि ईश्वर की आराधना करने की प्रक्रिया डॉक्ट्रिन नहीं है ..? प्रक्रिया डॉक्ट्रिन है पर धर्म डॉक्ट्रिन नहीं है। जैसे आपके शरीर में बहुत सारे अंग है परंतु अंग आप नहीं है बल्कि आप अपने अंगों का समुच्चय हैं। धर्म क्योंकि प्रक्रिया नहीं है घर एक अवधारणा है और उस अवधारणा को करने समझने देखने के लिए प्रक्रियाओं की जरूरत होती है अतः केवल प्रक्रिया ही धर्म नहीं हो सकती।                            

सबसे पहले हम  विचार करतें हैं कि हम  सनातनी है अर्थात हम  हिंदू धर्म के मानने वाले हैं । इसका अर्थ यह है कि सनातन व्यवस्था में एक व्यवस्था जो आस्था के साथ ईश्वर पर विश्वास करती है उस तक (ईश्वर तक) पहुंचने के प्रयत्नों को बल देती है ।

   अंततः यह यह कहना और मानना ही होगा कि :- "धर्म एक व्यवस्था है जो आस्था के साथ नैसर्गिक है। सनातन है अर्थात कंटीन्यूअस है और इसमें मानवता के घटक देश काल परिस्थिति के अनुसार समावेशित होते रहते हैं ।"

     सनातन में रूढ़िवाद मौजूद नहीं है । सनातन का बड़ी नदी का प्रांजल प्रवाह है जिसमें कई छोटी नदियां क्रमशः शामिल होती जाती हैं और मुख्य नदी किसी भी सहायक नदी का विरोध नहीं करती। 

    रूढ़ियां सनातन धर्म में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं, अतः सनातन में विमर्श या वार्ताएं होती हैं यही वार्ताएं अंतिम निर्णय पर पहुंचती है ऐसे निर्णय बाधाओं को तोड़ते हैं।

         ऐसा लगता है यहां रूढ़ियों की परिभाषा देने की जरूरत नहीं है आप जानते हैं रूढ़ियाँ क्या होतीं हैं ? 

सनातन रूढ़ियों को तोड़ता है। सनातन  विकल्प की मौजूदगी को स्वीकारता है। उदाहरण के तौर पर एक कहावत है- फूल नहीं तो फूल की पत्ती चढ़ा दीजिए प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। इस कथन का अर्थ है कि विकल्पों को उपयोग में लाया जाए।

 मनु स्मृति के अनुसार धर्म की परिभाषा

 धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं। 

चलिए अब धर्म की कुछ परिभाषाओं को देखते हैं-"धर्म का परिभाषा क्या हैं?"

धर्म संस्कृत भाषा का शब्द हैं जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं। "धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यहभी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि-

 "धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:  धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं (मनु स्मृति)

[  ] जैमिनी मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र में धर्म का लक्षण हैं लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म के लक्षण  हैं।

[  ] वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु व्यक्ति समष्टि  के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में  जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि जैसे बिंदुओं को धर्म माना हैं तो प्रजा का पालन और रक्षण राजा का धर्म तथा राजाज्ञा का पालन करना प्रजा का धर्म बताया गया है ।

[  ] आध्यात्मिक संदर्भों में व्यक्ति में अंतर्निहित भावों जैसे धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों बचाव, हरण का त्याग, शौच शुद्धता, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि एवम ज्ञान, विद्या, सत्य, अक्रोध आदि को धर्म के लक्षण के रूप में निरूपण किया है। सदाचार परम धर्म हैं

[  ] महाभारत में कहा है कि-

  "धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा:..!

    अर्थात जो धारण योग्य है फलतः 

    जिसे प्रजाएँ धारण करती हैं- धर्म हैं।"

[  ]  कणाद ने धर्म का लक्षण यह किया हैं- "यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:"

    अर्थात सामष्टिक रुप से सामाजिक अभ्युदय यानी विकास जिसे अंग्रेजी में डेवलपमेंट कहां गया है । वह धर्म है और आराधना योग आदि प्रणालियों को अपनाकर आत्मोत्तथान करने की प्रक्रिया धर्म का लक्षण है।

[  ]  स्वामी दयानंद के अनुसार धर्म की परिभाषा -जो पक्षपात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार हैं उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत का अधर्म हैं।-

[  ] स्वामी जी कहते हैं कि "पक्षपात रहित न्याय आचरण सत्य भाषण आदि युक्त जो ईश्वर आज्ञा वेदों से अ-विरुद्ध हैं, उसको धर्म मानता हूँ !

महर्षि दयानंद धर्म के पालन के लिए किए गए कार्यों और कृत कार्य के लिए प्राण उत्सर्ग तक प्रस्तुत रहने के धर्म को स्वीकार करने का आग्रह करते हैं।

           कार्ल मार्क्स ने  सनातन धर्म के दार्शनिक पक्ष यहां तक कि लाक्षणिक पक्ष को पढ़ा ही नहीं था। कार्ल मार्क्स वे नास्तिक थे । जो उनकी च्वाइस थी। वे चर्च के राजनीतिक प्रभाव एवम हस्तक्षेप के विरुद्ध थे। वे संप्रदाय के डाक्ट्रिनस के नजदीक ज्यादा रहे हैं, इसलिए उन्होंने धर्म को अफीम की संज्ञा दी है। अगर कार्ल मार्क्स भारतीय दर्शन को समझ ही लेते तो इस वाक्य का जन्म ना होता जिस का दुरुपयोग आयातित विचारधारा के पैरोकार वामपंथ द्वारा भारत में किया जाता है ।

धर्म की परिभाषाएं लाक्षणिक  हैं । धर्म को लक्षणों एवम उसमें शामिल सात्विक प्रक्रियाओं के जरिए पहचाना जा सकता है। 

    सुधि पाठकों धर्म Dharm एक वह शब्द है जो Religion से अलग है । 

  Oxford dictionary एवम हिंदी डिक्शनरी  में से धर्म Dharma शब्द को religion अर्थात संप्रदाय के रूप में नहीं रखना चाहिए। धर्म और संप्रदाय शब्द मूल रूप से प्रथक प्रथक हैं । 
संप्रदाय का तात्पर्य क्या है..?

अब तक आपने जाना कि डिक्शनरी में तो सम्प्रदाय को धर्म कहा जाता है ।परंतु एक तथ्य यह भी है कि भारत में मौजूद सनातन धर्म के व्यापक विश्लेषण के साथ साथ धर्म की परिभाषा को उसके स्वरूप एवम लक्षण के आधार या एंगल से  समझने के बावजूद ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में उसे रिलीजन ही लिखा है !

       धर्म की परिभाषा महर्षि गौतम / महाभारत में भी दी है, इस एक पंक्ति की परिभाषा को पुन: देखें- “जो धारण करने योग्य हो वह धर्म है !” 

   क्या इस परिभाषा को समग्र रूप से स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए ? अवश्य मिलनी चाहिए क्योंकि यह परिभाषा सुनिश्चित करने के लिए सुव्यवस्थित  तथा स्थापित सारभूत सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक सत्य एवं तथ्य है ।

  मूल रूप से धर्म की परिभाषा  का और अधिक गहराई से  अध्ययन कर विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि

[ 1 ] भौतिक रूप से प्राप्त शरीर और उसको संचालित करने वाली ऊर्जा जिसे प्राण कहा जा सकता है के द्वारा...

[ 2 ] धारण करने योग्य को ही धारण किया जाता है। उदाहरणार्थ नित्य प्रातः उठना प्राणी का भौतिक धर्म है, परंतु यह ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर के सोने और जागने की अवधि को सुनिश्चित करती है । जागते ही शरीर के अंदर जीवंत भाव धरती से उस पर अपने पैर रखने के लिए अनुमति चाहते हैं तथा उसे प्रणाम करते हैं यह क्रिया संस्कार है । शरीर को भौतिक रूप से एक धर्म का निर्वहन करना है वह धर्म है दैनंदिन कर्मशील रहना।

[3] पिता,माता, गुरु, भाई, बहन , पत्नी, अधिकारी, सिपाही, सेवक, आदि के रूप में जो धारण करने योग्य हो को धर्म कहा जाना एक स्थापित नैरेटिव है, जो कि एक   सनातन प्रक्रिया है सामान्य  रूप से जब हम में वाणी समझ भाव का विकास नहीं हुआ था तब भी हम शरीर को सुलाते थे और जगाते भी रहे होंगे...! फिर हम जागृत अवस्था में आहार के लिए भटकते भी होंगे आहार हासिल करने के लिए शरीर कुछ कार्य अवश्य करता होगा। यहां आहार की उम्मीद करना कामना है और आहार के लिए श्रम करना पुरुषार्थ है। यह व्यवस्था ही रही थी, जब हमारा धर्म कामना और अर्जन पर केंद्रित रहा ।

[4] आदि काल से अब तक यानी सनातन जारी यह व्यवस्था शनै: शनै: विकास के बावजूद हमारी व्यवस्था और हमारे डीएनए में मौजूद है। हम रात को सोना नहीं भूलते और सुबह जागना नहीं भूलते विशेष परिस्थितियों को छोड़कर शरीर अपना धर्म निभाता है । फिर धीरे-धीरे विकास के साथ शारीरिक संरचना में सूक्ष्म शरीर का एहसास मनुष्य ने किया अर्थात मनुष्य सोचने लगा और फिर उसी सोच के आधार नियमों को धारित या उन से विरत रहने लगा । सनातन यानी प्रारंभ से ही तय हो गया कि क्या धारित करना है और क्या धारित नहीं है ।

       धारित करने और ना करने का मूलभूत कारण जीवन क्रम को सुव्यवस्थित स्थापित करना था।

    धर्म यानी जीवन की व्यवस्था को चलाने के लिए क्या धारण करना है क्या धारण नहीं करना है के बारे में आत्म विमर्श या अगर वह समूह में रहने लगा होगा तो सामूहिक विमर्श अवश्य किया होगा। मनुष्य ने तब ही तय कर लिया होगा कि क्या खाना है क्या नहीं खाना है कैसे रहना है स्वयं की अथवा अपने समूह की रक्षा किस प्रविधि से करना है समूह में आपसी व्यवहार कैसे  करना है ?

    एक लंबी मानसिक मंत्रणा के बाद तय किया होगा। धर्म का प्रारंभ यहीं से होता है।

    आप एक कुत्ता पालते हैं अथवा अन्य कोई पशु पालते हैं आपका उनके लालन-पालन का उद्देश्य सर्वथा धर्म सम्मत होता है। अगर उस पालतू पशु को आप घर में छोड़कर जाते हैं तो आप चिंतित रहते हैं कि उसे भोजन कराना है अब आप उस पशु के लिए कमिटेड हैं और आप  निश्चित समय सीमा में लौटते हैं ऐसी व्यवस्था करते हैं कि आपके पालतू पशु को समय पर भोजन मिल जाए । और आप इसके लिए प्रतिबद्ध है स्वामी के रूप में यही आपका धर्म है। जब आप पशु के लिए इतना कमिटेड है तो आप अपनी पत्नी और संतानों के लिए भी कमिटेड होंगे ही पति के रुप में आपका यह कमिटमेंट आपका धर्म है।

    अपने कमिटमेंटस को पूरा करने के लिए आपके यत्न प्रयत्न अर्थ का उपार्जन अब करने लगे हैं पहले हम-आप जब आदिमानव थे तब आप क्या करते रहे होंगे ?

तभी आप अगर ऐसी व्यवस्था में रह रहे होंगे तो भी अपने धर्म का निर्वाह जरूर कर रहे थे। क्योंकि तब आपका धर्म था जन की संख्या में वृद्धि करना।  उसके लिए आपके पुरुषार्थ का द्वितीय तत्व काम यानी कामना यानी उम्मीद जो आवश्यकता अनुसार  जुटानी होती थीं पर अपना श्रम और सामर्थ्य लगाते थे।

ईश्वर अथवा ब्रह्म की कल्पना ईश उपनिषद में कुछ इस तरह से की है

"पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।।

    !!ॐ शांति: शांति: शांतिः !!

  ब्रह्म जो अदृश्य है, वह अनंत और पूर्ण है। उसी पूर्ण यानी ब्रह्म से पूर्ण जगत की  उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व विस्तारित हुआ है। और यही विस्तार अनंत के होने का प्रमाण है। 

    अलौकिक ब्रह्म की कल्पना यानी निर्गुण ब्रह्म की कल्पना के साथ साथ सगुण ब्रह्म की कल्पना सनातन इसलिए करता है ताकि उस क्रिया का अभ्यास किया जा सके जिसे साधना अथवा अनुष्ठान और सीधे शब्द में कहें तो योग कहते हैं।
   योग ध्यान सगुण ब्रह्म से निर्गुण ब्रह्म तक पहुंचने का सरपट मार्ग है।  यह किसी परम ब्रह्म परमात्मा का आदेश नहीं है क्योंकि ब्रह्म में निहित तत्व ऊर्जा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ब्रह्म निरंकार है। अनंत है इस अनंत में ऊर्जा का अकूत भंडार है।
   निर्गुण ब्रह्म की पूजा बहुत सारे लोग करते हैं और यह दावा करते हैं कि वे ही मात्र ब्रह्म के संदेशवाहक हैं । वास्तव में यह एक सतत परा भौतिक क्रिया है ब्रह्म को एक ओर स्वयं आकारहीन माना जाता है वही लोग यह कहते हैं कि ईश्वर ने मुझे यह कहने के लिए जमीन पर भेजा है कि दुनिया के नीति नियमों का संचालन करने के लिए नियमों का निर्धारण करो । वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है अगर यह सत्य है तो आप और हम रोज ब्रह्म से साक्षात्कार करते हैं हजारों हजार विचार मस्तिष्क में संचालित होते हैं ।
हमको मस्तिष्क में प्राप्त होने वाले ये बेतार से संदेश  कौन भेजता है ?
    मैं आस्तिक हूं तो मैं मानता हूं कि ईश्वर यह संदेश मुझे भेज रहे हैं। फल:स्वरूप मैं स्वयं का और हम सब स्वयं के देवदूत हैं  ऐसा मेरा मत है और यही मैं मानता हूं । 
क्रमशः जारी
     

9.9.21

युवा कृषि वैज्ञानिक डॉ आकाश पारे राजकीय सम्मान के साथ तमिलनाडु सरकार ने विदा किया



   तमिलनाडु  के तंजौर में पदस्थ जबलपुर मूल के कृषि वैज्ञानिक डॉ आकाश पारे जिनका बचपन जबलपुर में बीता था निधन दिनांक 7 सितंबर 2021 को तंजौर में हो गया  । पंडित लज्जा शंकर झा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के सेवानिवृत्त स्वर्गीय शिक्षक श्री प्रकाश चंद्र पारे एवं हितकारिणी विद्यालय परिवार की शिक्षिका श्रीमती लीला पारे के कनिष्ठ पुत्र श्री आकाश पारे बचपन से ही मेधावी छात्र रहें है ।
वेब पंडित लज्जा शंकर झा मॉडल हाई स्कूल के छात्र थे। उनकी, शिक्षा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्री  , तथा  डॉक्ट्रेट की डिग्री , तदोपरांत तंजावुर से एक और विषय में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ आकाश ने कम समय में ही कृषि उत्पादन एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा दिखानी प्रारंभ कर दी थी। तंजावुर यूनिवर्सिटी में बतौर सहायक प्राध्यापक और फिर प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। बड़े भाई विकास एवं डॉ आकाश ने बचपन से ही  अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे। डॉ आकाश की रिसर्च आधारित पुस्तकें विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रमुखता से पढ़ी जाती हैं। कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान के लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। उनका बेहद कम उम्र में जाना भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान एवं कृषि विकास के क्षेत्र में एक अध्याय का रुक जाना है। डॉ आकाश ना केवल तमिलनाडु सरकार के लिए बल्कि संपूर्ण भारत के लिए वह अति महत्वपूर्ण युवा कृषि वैज्ञानिक के रूप में जाने पहचाने जाते रहे हैं। 40 वर्षीय डॉक्टर आकाश विगत 3 माह से लंगस कैंसर से पीड़ित रहे तथा उनका निधन 7 सितंबर 2021 को तंजावूर में इलाज के दौरान हो गया। डॉ आकाश का जाना हमारी एवं राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है।
   डॉ आकाश अपने पीछे अपनी मां पत्नी श्रीमती अदिति एवं दो बच्चों को छोड़ गए हैं। नार्मदेय ब्राह्मण समाज जबलपुर शोकाकुल परिवार को इस गहन दुख को सहने की शक्ति के लिए प्रभु से प्रार्थनारत हैं । 

31.8.21

बलोच युवाओं के लापता का सवाल पर यू एन ओ की रहस्यमयी चुप्पी.....!

       सिंध देश और बलूचिस्तान के नागरिक इन दिनों पाकिस्तान के आर्मी प्रशासन से बेहद परेशान और दुखी हैं। आर्मी प्रशासन जब देखो तब इन समुदायों को बिना किसी अपराध के घर से उठाकर

  ले जाता है और बरसो उनकी कोई खोज खबर नहीं मिलती  भी है तो किसी सड़क के किनारे क्षत-विक्षत मृत देह के रूप में या कमजोर शरीर वाले ना पहचान में आने वाले व्यक्ति के रूप में। जब यह पूछा गया कि क्या आप ऐसे ही कोई फिगर शेयर कर सकते हैं जिससे हम अनुमान लगा सके कि बलोच युवाओं को टॉर्चर किया जा रहा है ?
बलूच एक्टिविस्ट ने बताया कि-" जब से तालिबान संकट प्रारंभ हुआ है 3000 से अधिक डेड बॉडी बरामद हुई हैं तथा लापता युवाओं की संख्या 50000 से अधिक  है।

Text Box: दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान, ईरान के दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिस्तान तथा बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत तक फैला हुआ है, लेकिन इसका अधिकांश इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है। इसी इलाके में अधिकांश बलूच आबादी रहती है। यह सबसे गरीब और उपेक्षित इलाका भी है। सीधी भाषा में कहें तो बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान, दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर अफगानिस्तान और पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। सबसे बड़ा हिस्सा तकरीबन पाकिस्तान के कब्जे में है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस और तेल के भंडार पाए गए हैं।सामरिक दृष्टि से बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह ईरान, अफगान और भारत को टारगेट करने के लिए अच्छा बेस बन सकता है।
(साभार विश्ववार्ता के आलेख ‘अखंड भारत’ के गांधार ‘बलूचिस्तान’ में मानवाधिकारों का योजनाबद्ध उल्लंघन लेखक डा. राधेश्याम द्विवेदी
)


   बलोच एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि पाकिस्तान की अदालतों में उनके परिजनों को जिन्हें घर से उठाया जाता है के संबंध में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं फाइल की जातीं हैं परंतु उन पर बहुत धीमी गति से निर्णय आते हैं और निर्णय कुछ इस तरह आते हैं कि पाकिस्तान आर्मी उन्हें नियमों के आधार पर प्रस्तुत करें।
और जो अपील है संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकार कार्यालय को प्रस्तुत की गई है उस पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानव अधिकार कार्यालय बहुत धीमी गति से विमर्श करता है तथा यह भी उल्लेखनीय है कि प्रक्रिया इतनी जटिल है अगर  प्रॉपर प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई यह सूचना देता है कि अमुक व्यक्ति को पाकिस्तानी आर्मी ने अगवा कर लिया है तथा पाकिस्तानी पुलिस ने एफ आई आर लिखने तक से इनकार कर दिया है तो वह पर्याप्त नहीं है इसके लिए यूनाइटेड नेशन द्वारा प्रक्रिया गत कारणों से विचार नहीं किया जाता नाही उस पर किसी तरह का एक्नॉलेजमेंट भेजा ही जाता है।
बलोच और सिंध देश के एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि विश्व का कोई भी देश उनके समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा है। जब उनसे यह प्रश्न किया गया कि क्या मुस्लिम उम्मा जैसे फैक्टर के चलते हुए भी आपको कभी किसी इस्लामिक राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया इस पर बलोच एक्टिविस्ट का कहना था कि- हमने अपनी स्वतंत्रता के लिए कभी भी ना तो संप्रदाय का सहारा लिया है और ना ही भविष्य में कभी लेंगे इस कारण से ही हमें किसी भी मुस्लिम राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया।



बलूचिस्तान के और सिंध के एक्टिविस्ट भारतीय व्यवस्था और जनता के समर्थन की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं। यूनाइटेड नेशन के मानवाधिकार कार्यालय बलूच एवं सिंध मानव अधिकार पर प्राप्त आवेदनों पर विचार ना करना चिंता का विषय है। यूएन की इस रहस्यमई चुप्पी का अर्थ क्या हो सकता है यह तो यूनाइटेड नेशंस ही जाने परंतु यह तय होना बहुत कठिन नहीं है कि यूनाइटेड नेशन उनके खिलाफ किस्तों में हो रहे घातक आक्रमण को जिनोसाइट का दर्जा नहीं देते ! किसी भी एक एक्स्ट्रा जुडिशल किलिंग को मॉसकिलिंग का दर्जा देना एक सही कदम होता है। परंतु पाकिस्तान को इतना अभयदान क्यों मिलता है यह समझ से परे है।


उनका कहना यह भी है कि जब से सीपैक का मामला चल रहा है तब से पाकिस्तान की आर्मी बलोच आवाम के मुखालिफ है। हाल में कुछ आक्रमणकारियों ने चीनी कंपनियों के एक वाहन पर हमला किया था और उस संदेह में मासूम बलोची युवाओं को बंदी बनाया गया है।
  एक्टिविस्ट मानते हैं कि उन्हें (चीनियों को) गिरफ्तार युवाओं को मार कर  दिखा देंगे और फिर उनसे भीख में डॉलर हासिल कर लेंगे।
कुल मिलाकर मानवता खतरे में है और मानवता के विरुद्ध कदम उठाने वाली पाकिस्तान आर्मी के सामने पाकिस्तान की तथाकथित डेमोक्रेटिक सरकार यहां तक की न्याय व्यवस्था भी बेहद दीन हीन सिद्ध हो रही है।
   स्पेस में सिंध देश के एक्टिविस्ट एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यह कहते सुने गए कि हम भारत की शरण में आना चाहते हैं। तो दूसरी ओर बलोच लोगों का कहना है कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से प्रभावित है हम आपके ही अंग हैं। ऐसी स्थिति में देखना है कि भारत के बुद्धिजीवी पत्रकार योजनाकार और सामाजिक मानवतावादी विचारक क्या सोचते हैं जहां तक मेरी व्यक्तिगत राय है मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को किसी भी देश में हो रहे मानव अधिकार अतिक्रमण पर ऐसे निर्णय बहुत जल्दी देने चाहिए ताकि संबंधित सरकार को समझ में आ जाएगी निरीह अजंता का भी कोई शुभचिंतक है।
   (यह आर्टिकल ट्विटर पर जारी स्पेस में सुने वक्तव्य एवं विचारों पर आधारित है )

18.8.21

अफगानिस्तान की महिलाओं और बच्चों का ईश्वर ही मालिक है...

अफगानिस्तान में अमेरिका की फौज वापसी से साबित हो गया है कि अमेरिका ने बहुत जल्दबाजी की है अफगानिस्तान को छोड़ने में। अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने से पहले मित्र राष्ट्रों जैसे नाटो संधि में संबद्ध राष्ट्रों भारत सहित दक्षिण एशियाई राष्ट्रों से वार्ता अवश्य करनी थी। समय सीमा सुनिश्चित होने के बाद अमेरिका को अपने साजो सामान के साथ वापसी करनी थी ना कि हेलीकॉप्टर एयरक्राफ्ट और बंदूक इत्यादि छोड़कर। अगर अमेरिका ने यह तय ही कर लिया था कि उसे अफगानिस्तान में केवल उन्हें निशाना बनाना है जो कि 9/11 के जिम्मेदार हैं ... तो उन्हें ओसामा बिन लादेन की हत्या के उपरांत तुरंत ही अफगानिस्तान छोड़ देना था। जो गार्डन का यह फैसला चिंतन योग्य नहीं होकर चिंता के लायक है।

[  ] कहा जाता है कि आज उन महिलाओं ने प्रोटेस्ट किया जो अफगानिस्तान में रह गई हैं इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान की मनसा संदिग्ध है।
[  ] महिलाओं को काम करने की आजादी देने वाला तालिबान एक शर्त लगाता है की महिलाओं को वही कार्य करने की अनुमति होगी जो शरिया के अनुकूल हो ।
[  ] आपने कुछ ऐसे दृश्य देखे होंगे कि तालिबान इस तरह से महिलाओं के पोस्टरों पर काला रंग पूछ रहे थे इससे सिद्ध होता है कि महिलाओं के अधिकारों के लिए तालिबान कितने सजग हैं।
[  ] तालिबान का चिंतन एक संप्रदाय विशेष का चिंतन है और रवीश कुमार जैसे पत्रकार मोदी जी और आम भारतीय जनता से कह रहे हैं कि हम भारतीय हिंदू मुस्लिम एकात्मता के खिलाफ वातावरण निर्माण कर रहे हैं। ग्राउंड रियलिटी कुछ और है जो एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के दृष्टिकोण से बिल्कुल मैच नहीं करती।
[  ] रवीश कुमार ने अपने वक्तव्य नुमा रिपोर्ट में यह पूछा है कि-"मोदी जी अथवा भारत सरकार तालिबान को अब आतंकवादी कहेगी या नहीं.. ?" एक पत्रकार का ऐसा बौद्धिक चिंतन बौद्धिक स्तर को परिभाषित करने में सक्षम है। जब अंतरराष्ट्रीय संवेदनशील परिस्थितियां हो तब बुद्धिमान पत्रकार को इस तरह के सवाल नहीं करने चाहिए जो उनके किसी अन्य प्रकार के नैरेटिव को विकसित करने की तथा उसे स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जाए।
[  ] इस बीच आज यानी 17-18 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम सिख और हिंदू अफगानीयों को शरण देंगे साथ ही वे अपने अफगानी भाइयों बहनों को सहयोग करेंगे।
[  ] विगत दो दिवसों से जिन दृश्यों को हमने टेलीविजन के जरिए देखा उसमें महत्वपूर्ण दृश्य एक यह भी है कि दिल्ली में निवास करने वाले काबुली वाले आंसू बहा रहे हैं और अपने परिवार अपने वतन को याद कर रहे हैं मुझे भी वह गीत याद आ रहा है जो शायद आप भी गुनगुन आएंगे ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान।
[  ] इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अफगानिस्तान की स्थिति सामान्य होने की कल्पना कोई भी नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो नहीं बावजूद इसके कि तालिबान प्रवक्ता भले ही कितना दावा करें कि वह सामान्य जनजीवन बाहर करने का वादा करते हैं विश्वास योग्य नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो में एक पुराना वीडियो जो सोशल मीडिया पर ताजा वीडियो के रूप में बताया गया है प्रस्तुत कर रहा हूं वह भी इस उद्देश्य से की तालिबानी सोच को विश्व को समझने की जरूरत है।
हमें भारत सरकार पर और हमारे नेतृत्व पर कम से कम वर्तमान में विश्वास करना ही होगा और करना चाहिए

16.8.21

और अमेरिकी राष्ट्रपति वीकेंड अवकाश पर हैं

और जो बाइडन अवकाश पे हैं..!

अमेरिकन रक्षा मंत्री लायड जेंमस ऑस्टिन आज इसलिए अमेरिका में आकस्मिक बैठक में शामिल हुए क्योंकि जो बायडन अवकाश पर हैं । और इधर काबुल से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना देश छोड़कर बाहर चले गए। कहां गए कैसे गए इन समाचारों के आने तक कल शायद फिलहाल यह कहा जा रहा है कि वी तजाकिस्तान के दुशांबे शहर चले गए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनकी फैमिली भारत में आई है खैर जल्दबाजी होगा इस पर कोई टिप्पणी करना।

सौहेल शाहीन जो तालिबान के प्रवक्ता  है ने स्पष्ट कर दिया है कि चीन के साथ तालिबान के संबंध है वे TV9 के संवाददाता दिनेश गौतम के साथ बात कर रहे थे। शाहीन बताते हैं कि तालिबान एट्रोसिटी के खिलाफ है। पर वे इस्लामिक अफगानिस्तान को बनाना चाहते हैं। वह महिलाओं को मुसलमानी संस्कारों के अनुकूल ही अधिकार देने के पक्ष में भी नजर आते हैं। बच्चों के लिए वे कमिटेड होने का दावा कर रहे हैं। वे भारत की सराहना करते हुए नजर आए स्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के संदर्भ में। तालिबान का कहना है कि हम शांतिप्रिय हैं हम किसी के खिलाफ नहीं है। हमारा पाकिस्तान से कोई लेना देना नहीं है। अगर यह तालिबान का आधिकारिक बयान है तो यह देखना होगा कि पाकिस्तान में  बाकी गई मिठाइयों का अर्थ क्या है ?

   तालिबान प्रवक्ता शाहीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रों से शांतिपूर्वक सह अस्तित्व को दर्जी देने की बात दोहराई है।
   अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होना अलग मुद्दा है। मुद्दा यह है कि अमेरिकन एडमिनिस्ट्रेशन और स्वयं राष्ट्रपति जो बाइडन सप्ताहांत अवकाश पर है। इसी स्थिति से स्पष्ट होता है कि-"बाइडन प्रशासन 20 साल तक अजीबोगरीब स्थिति में एक तरह से अफगान पर शासन करते रहे हैं तथा उन्होंने वहां की मिलिट्री को अपनी रक्षा के काबिल भी नहीं बनाया। स्पष्ट है कि अमेरिका की तालिबान नीति बहुत स्पष्ट नहीं रही। खैर इन सब बातों से अलग हम देखें कि इस समय तालिबान के आने से अफगानिस्तान की जनता अपने मानव अधिकार के लिए बेहद चिंतित और परेशान है। प्राप्त सूचनाओं से स्पष्ट होता है कि लगभग 8000 शरणार्थी कनाडा में शरण दिए जाएंगे भारत भी 20 से 25 हजार शरणार्थियों को शरण दे सकता है । यद्यपि भारतीय विदेश मंत्रालय क्या तय करता है उसके आधिकारिक बयान का सबको इंतजार है।
   9/11 के घटनाक्रम के बावजूद अमेरिकी प्रशासन का दृष्टिकोण विचारणीय है। अगर वे तालिबान को छूट देते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश जा रहा है कि- हिंसा और आतंक के खिलाफ अमेरिका ने कबूतर की तरह आंख बंद कर ली है।
इस क्रम में आप यह जानकर चकित हो जाएंगे कि - "अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने अफगान सेना को वर्तमान स्थिति का जिम्मेदार ठहराया है..!"
   इससे यह सिद्ध हो जाता है कि - "अमेरिका कहीं न कहीं अपनी अफगान पॉलिसी के क्रियान्वयन में असफल साबित हुए हैं !"
   यूएस एम्बेसडर काबुल छोड़ना कम से कम यही साबित करता है।
   आज अर्थात 15 अगस्त 2021 के घटनाक्रम में हामिद करजई ने अपनी तीन बेटियों के साथ ही वीडियो संदेश जारी करते हुए अफगानी जनता की सुरक्षा की गुजारिश की है। साथ ही काबुल एयरपोर्ट पर अफरा तफरी का माहौल शाम तक जारी रहा है।
वर्तमान में तालिबान के प्रवक्ता शाहीन जो भी कहें उनके कथन से ना तो विश्व समुदाय और नाही स्वयं अफगानी जनता सहमत है।
   उधर नाटो ने भी इस बात को गंभीरता से लिया है। क्योंकि पेंटागन ने स्पष्ट कर दिया है तालिबान से उसी भाषा में बात की जाएगी जिस भाषा में तालिबान चाहता है। हम सबको याद रखना होगा दोहा के साल भर पूर्व अमेरिका की सैन्य वापसी की सहमति के बाद आखरी तिथि 30 सितंबर 2021 तक सेना वापस करने के प्रोसेस के दौरान ही तालिबान ने 3 जुलाई 2021 को यूएस सेना के बग्राम एयरवेज को खाली करते ही अपनी काबुल यात्रा प्रारंभ कर दी थी। 3 जुलाई 2021 से 15 अगस्त 2021 तक तालिबान के लड़ाकों का सत्ता अभियान से अफगानी  जनता तालिबान से ज्यादा कहीं अफगान सेना से और अशरफ गनी प्रशासन से नाराज नजर आए।
उधर भारत की विदेश नीति सफल होती नजर आ रही है कि किसी के फटे में टांग क्यों डालना। पर तारिक फतेह इसी नीति से खासा खीझे हुए नजर आए ।
   तारिक फतेह को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान और चीन की शह पर तालिबान की काबुल यात्रा एक तरह से भारत के हस्तक्षेप योग्य नहीं है। भारत अनावश्यक अपने हथियार और सैनिकों को सूली पर नहीं चढ़ाएगा। लेकिन भारत इस मुद्दे पर शांत है ऐसा नहीं है भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका जाएंगे इस समाचार फ़्लैश होते ही समझ में आ जाना चाहिए कि भारत भारत के हित में जो  होगा वह कदम उठाएगा।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
[  ] तालिबान ने 22,000 से अधिक हमले किए
[  ] इन हमलों में 5587 आम नागरिक मारे गए जिनमें 650 महिलाएं और 925 बच्चे भी शामिल है
[  ] 15 अगस्त के पूर्व तक लगभग 11500 से अधिक अफगानी नागरिकों ने अफगान से पलायन किया
[  ] तालिबान ने सबसे पहले पाकिस्तान ईरान और चीन बॉर्डर पर अपना दबदबा कायम किया। यहां चाणक्य की उस नीति का अनुपालन किया जिसमें चाणक्य ने दूसरी बार नंद साम्राज्य को बॉर्डर से समाप्त करने की कोशिश की।
[  ] विश्व समुदाय अमेरिका के कदम से असहमति इसलिए है क्योंकि अमेरिका ने बिना किसी व्यवस्थित तरीके के तालिबान की जनता को दुखी और बेसहारा छोड़ दिया। परंतु यूरोप से इस संबंध में कोई खास रिएक्शन नजर नहीं आया है।
[  ] तालिबान के साथ चीन का अवसरवादी रिश्ता बावजूद यह जानते हुए कि चीन में मुसलमानों की स्थिति क्या है वहां उईगर मुस्लिम संकट में हैं । इस घटना से मुस्लिम उम्मा के कॉन्सेप्ट को टूटते हुए आप देख सकते हैं।
[  ] मुस्लिम समुदाय के रहनुमा होने का दावा करने वाले तुर्की के राष्ट्र प्रमुख एर्दोगान, की चुप्पी कई सारे सवाल खड़ा करती है ।
[  ] ओआईसी राष्ट्रों ने ना तो अफगान की पीड़ित मानवता के लिए कोई खास कदम उठाए और ना ही तालिबान को मुस्लिम समुदाय के हित में काम करने को कहा। यह अलग बात है कि स्वयं तालिबान अफगान जनता के खिलाफ बहुत अधिक हिंसक इस बार नजर नहीं आए। कुछ हद तक तालिबान बदला बदला नजर अवश्य आया है परंतु उसके बदलाव का स्थायित्व अविश्वसनीय है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
        

9.8.21

पेड़ों को राखी बाँधे हम इस रक्षाबंधन पर

#सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन पर्यावरण की जागरूकता के लिए
💐💐💐💐
आयोजन का नाम
#सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन 
दिनांक 22 अगस्त 2021
स्थान आपके द्वारा चिन्हित कोई भी स्थान
💐💐💐💐
आपसे अनुरोध है कि दिनांक 22 अगस्त 2021 को रक्षाबंधन के अवसर पर सात रंग के रेशमी अथवा सूती धागों से एक राखी बनाकर कम से कम एक वृक्ष को अवश्य बांधने का कार्य कीजिए। यह राखी पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों के लिए हमारा आभार व्यक्त करने का एक तरीका होगा । 
तथा #सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन लिख कर अपना वीडियो या सेल्फी वीडियो, अथवा सेल्फी फोटो विभिन्न सोशल मीडिया माध्यम पर पोस्ट कीजिए। इस आह्वान को जन जन तक पहुंचाइए 
💐💐💐💐
भारतीय दर्शन एवं सनातन संस्कृति  में 7 का बड़ा  महत्व है। उदाहरण के तौर पर
रेशम के सात रंगों के सूत्र से बना रक्षा सूत्र पृथ्वी की भौगोलिक अवस्था में भारत जिसे सप्तसेंधव कहा है, वैदिक सात-ऋषि एवं तारामंडल के सप्तऋषि, सूर्य की सप्त रश्मियां जिन्हें हम सूर्य के साथ घोड़े कहते हैं, सामवेद अनुसार सप्तस्वर , तारसप्तक, सतरंग, सातदिन,  का बोध देने वाली रक्षा बंधन का आव्हान है। 
  रक्षाबंधन एक आध्यात्मिक पर्व है। यह केवल भाई बहनों के लिए ही नहीं बल्कि उन सबके प्रति विश्वास पैदा करने वाला पर्व है जो रक्षक के रूप में चिन्हित होते हैं । जैसे राजा देवता शस्त्र घर पति पत्नी आदि। परंपराओं के अनुसार रक्षाबंधन राजा को पुरोहित द्वारा यजमान के ब्राह्मण द्वारा, भाई के बहिन द्वारा और पति के पत्नी द्वारा दाहिनी कलाई पर किया जाता है। संस्कृत की उक्ति के अनुसार
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं। प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना। इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का बंधन है। इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है। सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है।
रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक भी पढ़ने की परम्परा है.....
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।। 
कोविड-19 के दूसरे दौर में हमें ऑक्सीजन का संकट हुआ है। और वर्तमान में ऑक्सीजन का संकट संपूर्ण पृथ्वी पर छाया हुआ है। पृथ्वी में ऑक्सीजन की मात्रा धीरे धीरे कम हो रही है। इसका मूल कारण है कि हम प्रकृति के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। वनों का कम होना ऑक्सीजन की कमी का मुख्य आधार है। आइए इस वर्ष हम इसे एक ऐसे संस्कार के रूप में अपने मस्तिष्क में सम्मिलित करने का प्रयास करेंगे कि हम  जंगल और वृक्ष के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करें। इस वर्ष 22 अगस्त 2021 को रक्षाबंधन का यह पवित्र धार्मिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक पर्व है। इस दिन हमें केवल सात रंगों के रेशमी अथवा सूती धागों से रक्षाबंधन तैयार करना है। इसका आकार घर में लगी तुलसी अथवा किसी भी उपयुक्त पेड़ के अनुकूल होना चाहिए। ऐसे *सप्तसूत्रीय रक्षाबंधन* को हम सबसे पहले अपने आराध्य को चढ़ाने के बाद पौधों वृक्षों को जाकर बांधे। यह कोई कठिन कार्य नहीं है बल्कि यह कार्य एक संदेश देगा कि हम पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति मानसिक रूप से समर्पित हैं। तो आइए इस सामाजिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक इवेंट को बनाए तथा वृक्ष या पौधे को रक्षाबंधन बांधते हुए अपनी फोटो अथवा वीडियो अपने सोशल मीडिया आईडी जैसे फेसबुक टि्वटर इंस्टाग्राम यूट्यूब कू लिंक्डइन आईडी से #सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन के साथ प्रस्तुत करें। यह कार्य ना तो कठिन है नाही वर्जित है। किसी भी संप्रदाय के लोग भी जो पेड़ और पर्यावरण के प्रति आस्थावान है वे स्वैच्छिक रूप से यह कार्य कर सकते हैं। बच्चों बुजुर्गों भाइयों बहनों अथवा कोई भी व्यक्ति इस कार्य को सकते हैं।

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...