बलोच युवाओं के लापता का सवाल पर यू एन ओ की रहस्यमयी चुप्पी.....!

       सिंध देश और बलूचिस्तान के नागरिक इन दिनों पाकिस्तान के आर्मी प्रशासन से बेहद परेशान और दुखी हैं। आर्मी प्रशासन जब देखो तब इन समुदायों को बिना किसी अपराध के घर से उठाकर

  ले जाता है और बरसो उनकी कोई खोज खबर नहीं मिलती  भी है तो किसी सड़क के किनारे क्षत-विक्षत मृत देह के रूप में या कमजोर शरीर वाले ना पहचान में आने वाले व्यक्ति के रूप में। जब यह पूछा गया कि क्या आप ऐसे ही कोई फिगर शेयर कर सकते हैं जिससे हम अनुमान लगा सके कि बलोच युवाओं को टॉर्चर किया जा रहा है ?
बलूच एक्टिविस्ट ने बताया कि-" जब से तालिबान संकट प्रारंभ हुआ है 3000 से अधिक डेड बॉडी बरामद हुई हैं तथा लापता युवाओं की संख्या 50000 से अधिक  है।

Text Box: दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान, ईरान के दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिस्तान तथा बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत तक फैला हुआ है, लेकिन इसका अधिकांश इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है। इसी इलाके में अधिकांश बलूच आबादी रहती है। यह सबसे गरीब और उपेक्षित इलाका भी है। सीधी भाषा में कहें तो बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान, दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर अफगानिस्तान और पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। सबसे बड़ा हिस्सा तकरीबन पाकिस्तान के कब्जे में है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस और तेल के भंडार पाए गए हैं।सामरिक दृष्टि से बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह ईरान, अफगान और भारत को टारगेट करने के लिए अच्छा बेस बन सकता है।
(साभार विश्ववार्ता के आलेख ‘अखंड भारत’ के गांधार ‘बलूचिस्तान’ में मानवाधिकारों का योजनाबद्ध उल्लंघन लेखक डा. राधेश्याम द्विवेदी
)


   बलोच एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि पाकिस्तान की अदालतों में उनके परिजनों को जिन्हें घर से उठाया जाता है के संबंध में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं फाइल की जातीं हैं परंतु उन पर बहुत धीमी गति से निर्णय आते हैं और निर्णय कुछ इस तरह आते हैं कि पाकिस्तान आर्मी उन्हें नियमों के आधार पर प्रस्तुत करें।
और जो अपील है संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकार कार्यालय को प्रस्तुत की गई है उस पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानव अधिकार कार्यालय बहुत धीमी गति से विमर्श करता है तथा यह भी उल्लेखनीय है कि प्रक्रिया इतनी जटिल है अगर  प्रॉपर प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई यह सूचना देता है कि अमुक व्यक्ति को पाकिस्तानी आर्मी ने अगवा कर लिया है तथा पाकिस्तानी पुलिस ने एफ आई आर लिखने तक से इनकार कर दिया है तो वह पर्याप्त नहीं है इसके लिए यूनाइटेड नेशन द्वारा प्रक्रिया गत कारणों से विचार नहीं किया जाता नाही उस पर किसी तरह का एक्नॉलेजमेंट भेजा ही जाता है।
बलोच और सिंध देश के एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि विश्व का कोई भी देश उनके समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा है। जब उनसे यह प्रश्न किया गया कि क्या मुस्लिम उम्मा जैसे फैक्टर के चलते हुए भी आपको कभी किसी इस्लामिक राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया इस पर बलोच एक्टिविस्ट का कहना था कि- हमने अपनी स्वतंत्रता के लिए कभी भी ना तो संप्रदाय का सहारा लिया है और ना ही भविष्य में कभी लेंगे इस कारण से ही हमें किसी भी मुस्लिम राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया।



बलूचिस्तान के और सिंध के एक्टिविस्ट भारतीय व्यवस्था और जनता के समर्थन की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं। यूनाइटेड नेशन के मानवाधिकार कार्यालय बलूच एवं सिंध मानव अधिकार पर प्राप्त आवेदनों पर विचार ना करना चिंता का विषय है। यूएन की इस रहस्यमई चुप्पी का अर्थ क्या हो सकता है यह तो यूनाइटेड नेशंस ही जाने परंतु यह तय होना बहुत कठिन नहीं है कि यूनाइटेड नेशन उनके खिलाफ किस्तों में हो रहे घातक आक्रमण को जिनोसाइट का दर्जा नहीं देते ! किसी भी एक एक्स्ट्रा जुडिशल किलिंग को मॉसकिलिंग का दर्जा देना एक सही कदम होता है। परंतु पाकिस्तान को इतना अभयदान क्यों मिलता है यह समझ से परे है।


उनका कहना यह भी है कि जब से सीपैक का मामला चल रहा है तब से पाकिस्तान की आर्मी बलोच आवाम के मुखालिफ है। हाल में कुछ आक्रमणकारियों ने चीनी कंपनियों के एक वाहन पर हमला किया था और उस संदेह में मासूम बलोची युवाओं को बंदी बनाया गया है।
  एक्टिविस्ट मानते हैं कि उन्हें (चीनियों को) गिरफ्तार युवाओं को मार कर  दिखा देंगे और फिर उनसे भीख में डॉलर हासिल कर लेंगे।
कुल मिलाकर मानवता खतरे में है और मानवता के विरुद्ध कदम उठाने वाली पाकिस्तान आर्मी के सामने पाकिस्तान की तथाकथित डेमोक्रेटिक सरकार यहां तक की न्याय व्यवस्था भी बेहद दीन हीन सिद्ध हो रही है।
   स्पेस में सिंध देश के एक्टिविस्ट एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यह कहते सुने गए कि हम भारत की शरण में आना चाहते हैं। तो दूसरी ओर बलोच लोगों का कहना है कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से प्रभावित है हम आपके ही अंग हैं। ऐसी स्थिति में देखना है कि भारत के बुद्धिजीवी पत्रकार योजनाकार और सामाजिक मानवतावादी विचारक क्या सोचते हैं जहां तक मेरी व्यक्तिगत राय है मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को किसी भी देश में हो रहे मानव अधिकार अतिक्रमण पर ऐसे निर्णय बहुत जल्दी देने चाहिए ताकि संबंधित सरकार को समझ में आ जाएगी निरीह अजंता का भी कोई शुभचिंतक है।
   (यह आर्टिकल ट्विटर पर जारी स्पेस में सुने वक्तव्य एवं विचारों पर आधारित है )

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