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सोमवार, अगस्त 16, 2021

और अमेरिकी राष्ट्रपति वीकेंड अवकाश पर हैं

और जो बाइडन अवकाश पे हैं..!

अमेरिकन रक्षा मंत्री लायड जेंमस ऑस्टिन आज इसलिए अमेरिका में आकस्मिक बैठक में शामिल हुए क्योंकि जो बायडन अवकाश पर हैं । और इधर काबुल से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना देश छोड़कर बाहर चले गए। कहां गए कैसे गए इन समाचारों के आने तक कल शायद फिलहाल यह कहा जा रहा है कि वी तजाकिस्तान के दुशांबे शहर चले गए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनकी फैमिली भारत में आई है खैर जल्दबाजी होगा इस पर कोई टिप्पणी करना।

सौहेल शाहीन जो तालिबान के प्रवक्ता  है ने स्पष्ट कर दिया है कि चीन के साथ तालिबान के संबंध है वे TV9 के संवाददाता दिनेश गौतम के साथ बात कर रहे थे। शाहीन बताते हैं कि तालिबान एट्रोसिटी के खिलाफ है। पर वे इस्लामिक अफगानिस्तान को बनाना चाहते हैं। वह महिलाओं को मुसलमानी संस्कारों के अनुकूल ही अधिकार देने के पक्ष में भी नजर आते हैं। बच्चों के लिए वे कमिटेड होने का दावा कर रहे हैं। वे भारत की सराहना करते हुए नजर आए स्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के संदर्भ में। तालिबान का कहना है कि हम शांतिप्रिय हैं हम किसी के खिलाफ नहीं है। हमारा पाकिस्तान से कोई लेना देना नहीं है। अगर यह तालिबान का आधिकारिक बयान है तो यह देखना होगा कि पाकिस्तान में  बाकी गई मिठाइयों का अर्थ क्या है ?

   तालिबान प्रवक्ता शाहीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रों से शांतिपूर्वक सह अस्तित्व को दर्जी देने की बात दोहराई है।
   अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होना अलग मुद्दा है। मुद्दा यह है कि अमेरिकन एडमिनिस्ट्रेशन और स्वयं राष्ट्रपति जो बाइडन सप्ताहांत अवकाश पर है। इसी स्थिति से स्पष्ट होता है कि-"बाइडन प्रशासन 20 साल तक अजीबोगरीब स्थिति में एक तरह से अफगान पर शासन करते रहे हैं तथा उन्होंने वहां की मिलिट्री को अपनी रक्षा के काबिल भी नहीं बनाया। स्पष्ट है कि अमेरिका की तालिबान नीति बहुत स्पष्ट नहीं रही। खैर इन सब बातों से अलग हम देखें कि इस समय तालिबान के आने से अफगानिस्तान की जनता अपने मानव अधिकार के लिए बेहद चिंतित और परेशान है। प्राप्त सूचनाओं से स्पष्ट होता है कि लगभग 8000 शरणार्थी कनाडा में शरण दिए जाएंगे भारत भी 20 से 25 हजार शरणार्थियों को शरण दे सकता है । यद्यपि भारतीय विदेश मंत्रालय क्या तय करता है उसके आधिकारिक बयान का सबको इंतजार है।
   9/11 के घटनाक्रम के बावजूद अमेरिकी प्रशासन का दृष्टिकोण विचारणीय है। अगर वे तालिबान को छूट देते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश जा रहा है कि- हिंसा और आतंक के खिलाफ अमेरिका ने कबूतर की तरह आंख बंद कर ली है।
इस क्रम में आप यह जानकर चकित हो जाएंगे कि - "अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने अफगान सेना को वर्तमान स्थिति का जिम्मेदार ठहराया है..!"
   इससे यह सिद्ध हो जाता है कि - "अमेरिका कहीं न कहीं अपनी अफगान पॉलिसी के क्रियान्वयन में असफल साबित हुए हैं !"
   यूएस एम्बेसडर काबुल छोड़ना कम से कम यही साबित करता है।
   आज अर्थात 15 अगस्त 2021 के घटनाक्रम में हामिद करजई ने अपनी तीन बेटियों के साथ ही वीडियो संदेश जारी करते हुए अफगानी जनता की सुरक्षा की गुजारिश की है। साथ ही काबुल एयरपोर्ट पर अफरा तफरी का माहौल शाम तक जारी रहा है।
वर्तमान में तालिबान के प्रवक्ता शाहीन जो भी कहें उनके कथन से ना तो विश्व समुदाय और नाही स्वयं अफगानी जनता सहमत है।
   उधर नाटो ने भी इस बात को गंभीरता से लिया है। क्योंकि पेंटागन ने स्पष्ट कर दिया है तालिबान से उसी भाषा में बात की जाएगी जिस भाषा में तालिबान चाहता है। हम सबको याद रखना होगा दोहा के साल भर पूर्व अमेरिका की सैन्य वापसी की सहमति के बाद आखरी तिथि 30 सितंबर 2021 तक सेना वापस करने के प्रोसेस के दौरान ही तालिबान ने 3 जुलाई 2021 को यूएस सेना के बग्राम एयरवेज को खाली करते ही अपनी काबुल यात्रा प्रारंभ कर दी थी। 3 जुलाई 2021 से 15 अगस्त 2021 तक तालिबान के लड़ाकों का सत्ता अभियान से अफगानी  जनता तालिबान से ज्यादा कहीं अफगान सेना से और अशरफ गनी प्रशासन से नाराज नजर आए।
उधर भारत की विदेश नीति सफल होती नजर आ रही है कि किसी के फटे में टांग क्यों डालना। पर तारिक फतेह इसी नीति से खासा खीझे हुए नजर आए ।
   तारिक फतेह को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान और चीन की शह पर तालिबान की काबुल यात्रा एक तरह से भारत के हस्तक्षेप योग्य नहीं है। भारत अनावश्यक अपने हथियार और सैनिकों को सूली पर नहीं चढ़ाएगा। लेकिन भारत इस मुद्दे पर शांत है ऐसा नहीं है भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका जाएंगे इस समाचार फ़्लैश होते ही समझ में आ जाना चाहिए कि भारत भारत के हित में जो  होगा वह कदम उठाएगा।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
[  ] तालिबान ने 22,000 से अधिक हमले किए
[  ] इन हमलों में 5587 आम नागरिक मारे गए जिनमें 650 महिलाएं और 925 बच्चे भी शामिल है
[  ] 15 अगस्त के पूर्व तक लगभग 11500 से अधिक अफगानी नागरिकों ने अफगान से पलायन किया
[  ] तालिबान ने सबसे पहले पाकिस्तान ईरान और चीन बॉर्डर पर अपना दबदबा कायम किया। यहां चाणक्य की उस नीति का अनुपालन किया जिसमें चाणक्य ने दूसरी बार नंद साम्राज्य को बॉर्डर से समाप्त करने की कोशिश की।
[  ] विश्व समुदाय अमेरिका के कदम से असहमति इसलिए है क्योंकि अमेरिका ने बिना किसी व्यवस्थित तरीके के तालिबान की जनता को दुखी और बेसहारा छोड़ दिया। परंतु यूरोप से इस संबंध में कोई खास रिएक्शन नजर नहीं आया है।
[  ] तालिबान के साथ चीन का अवसरवादी रिश्ता बावजूद यह जानते हुए कि चीन में मुसलमानों की स्थिति क्या है वहां उईगर मुस्लिम संकट में हैं । इस घटना से मुस्लिम उम्मा के कॉन्सेप्ट को टूटते हुए आप देख सकते हैं।
[  ] मुस्लिम समुदाय के रहनुमा होने का दावा करने वाले तुर्की के राष्ट्र प्रमुख एर्दोगान, की चुप्पी कई सारे सवाल खड़ा करती है ।
[  ] ओआईसी राष्ट्रों ने ना तो अफगान की पीड़ित मानवता के लिए कोई खास कदम उठाए और ना ही तालिबान को मुस्लिम समुदाय के हित में काम करने को कहा। यह अलग बात है कि स्वयं तालिबान अफगान जनता के खिलाफ बहुत अधिक हिंसक इस बार नजर नहीं आए। कुछ हद तक तालिबान बदला बदला नजर अवश्य आया है परंतु उसके बदलाव का स्थायित्व अविश्वसनीय है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
        

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