18.8.21

अफगानिस्तान की महिलाओं और बच्चों का ईश्वर ही मालिक है...

अफगानिस्तान में अमेरिका की फौज वापसी से साबित हो गया है कि अमेरिका ने बहुत जल्दबाजी की है अफगानिस्तान को छोड़ने में। अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने से पहले मित्र राष्ट्रों जैसे नाटो संधि में संबद्ध राष्ट्रों भारत सहित दक्षिण एशियाई राष्ट्रों से वार्ता अवश्य करनी थी। समय सीमा सुनिश्चित होने के बाद अमेरिका को अपने साजो सामान के साथ वापसी करनी थी ना कि हेलीकॉप्टर एयरक्राफ्ट और बंदूक इत्यादि छोड़कर। अगर अमेरिका ने यह तय ही कर लिया था कि उसे अफगानिस्तान में केवल उन्हें निशाना बनाना है जो कि 9/11 के जिम्मेदार हैं ... तो उन्हें ओसामा बिन लादेन की हत्या के उपरांत तुरंत ही अफगानिस्तान छोड़ देना था। जो गार्डन का यह फैसला चिंतन योग्य नहीं होकर चिंता के लायक है।

[  ] कहा जाता है कि आज उन महिलाओं ने प्रोटेस्ट किया जो अफगानिस्तान में रह गई हैं इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान की मनसा संदिग्ध है।
[  ] महिलाओं को काम करने की आजादी देने वाला तालिबान एक शर्त लगाता है की महिलाओं को वही कार्य करने की अनुमति होगी जो शरिया के अनुकूल हो ।
[  ] आपने कुछ ऐसे दृश्य देखे होंगे कि तालिबान इस तरह से महिलाओं के पोस्टरों पर काला रंग पूछ रहे थे इससे सिद्ध होता है कि महिलाओं के अधिकारों के लिए तालिबान कितने सजग हैं।
[  ] तालिबान का चिंतन एक संप्रदाय विशेष का चिंतन है और रवीश कुमार जैसे पत्रकार मोदी जी और आम भारतीय जनता से कह रहे हैं कि हम भारतीय हिंदू मुस्लिम एकात्मता के खिलाफ वातावरण निर्माण कर रहे हैं। ग्राउंड रियलिटी कुछ और है जो एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के दृष्टिकोण से बिल्कुल मैच नहीं करती।
[  ] रवीश कुमार ने अपने वक्तव्य नुमा रिपोर्ट में यह पूछा है कि-"मोदी जी अथवा भारत सरकार तालिबान को अब आतंकवादी कहेगी या नहीं.. ?" एक पत्रकार का ऐसा बौद्धिक चिंतन बौद्धिक स्तर को परिभाषित करने में सक्षम है। जब अंतरराष्ट्रीय संवेदनशील परिस्थितियां हो तब बुद्धिमान पत्रकार को इस तरह के सवाल नहीं करने चाहिए जो उनके किसी अन्य प्रकार के नैरेटिव को विकसित करने की तथा उसे स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जाए।
[  ] इस बीच आज यानी 17-18 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम सिख और हिंदू अफगानीयों को शरण देंगे साथ ही वे अपने अफगानी भाइयों बहनों को सहयोग करेंगे।
[  ] विगत दो दिवसों से जिन दृश्यों को हमने टेलीविजन के जरिए देखा उसमें महत्वपूर्ण दृश्य एक यह भी है कि दिल्ली में निवास करने वाले काबुली वाले आंसू बहा रहे हैं और अपने परिवार अपने वतन को याद कर रहे हैं मुझे भी वह गीत याद आ रहा है जो शायद आप भी गुनगुन आएंगे ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान।
[  ] इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अफगानिस्तान की स्थिति सामान्य होने की कल्पना कोई भी नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो नहीं बावजूद इसके कि तालिबान प्रवक्ता भले ही कितना दावा करें कि वह सामान्य जनजीवन बाहर करने का वादा करते हैं विश्वास योग्य नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो में एक पुराना वीडियो जो सोशल मीडिया पर ताजा वीडियो के रूप में बताया गया है प्रस्तुत कर रहा हूं वह भी इस उद्देश्य से की तालिबानी सोच को विश्व को समझने की जरूरत है।
हमें भारत सरकार पर और हमारे नेतृत्व पर कम से कम वर्तमान में विश्वास करना ही होगा और करना चाहिए

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