12.7.21

एनसीईआरटी को भेजे गए प्रस्ताव

एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रमों में परिवर्तन परिवर्तन एवं संवर्धन बाबत
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपेक्षित विषयांतर्गत बिंदुओं पर निम्नानुसार बिंदु नवीन पाठ्यक्रम में जोड़े जाने की जरूरत है विषय वार हम क्रमागत रूप से अनुरोध करते हैं कि कृपया समस्त बिंदुओं में हमारी इन सुझावों को यथोचित स्थान देने की कृपा कीजिए
नवीन शिक्षा नीति के तहत अथवा उसके पूर्व निम्नानुसार पाठ्यक्रम परिवर्धन परिवर्तन संवर्धन की अपेक्षा है
1 :- गणित
[  ] जब क्षेत्रीय भाषाओं का अध्ययन भी कराया जाना है ऐसी स्थिति में गणना प्रणाली में कम से कम पांचवी कक्षा तक संस्कृत की गणना प्रणाली को केवल इस उद्देश्य से शामिल किया जाना प्रस्तावित है ताकि विद्यार्थी को संस्कृत के शब्दों को सुनने समझने का अवसर प्राप्त हो ।
[  ] यथासंभव वैदिक गणित को भी स्थान देना प्रस्तावित है
2 : विज्ञान
[  ] सामान्यतः वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग माना जाता है। परंतु तकनीकी का विकास भारत के संदर्भ में बहुत पहले हो चुका है। जैसे समय का अनुमापन करना वार्षिक कैलेंडर का निर्माण यह सब नक्षत्र विज्ञान पर आधारित होने के बावजूद बच्चों को इस बात का ज्ञान नहीं होता कि- भारत की नक्षत्र आधारित काल गणना प्रणाली कितनी वैज्ञानिक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय नक्षत्र विज्ञान संबंधी तथ्यों को माध्यमिक शिक्षा स्टार्टअप के विद्यार्थियों को बता देना आवश्यक होगा ।
3 :- इतिहास
[  ] भारतीय इतिहास में रामायण महाभारत के कालानुक्रम को समाप्त कर दिया गया है। यह कोई धार्मिक व्यवस्था नहीं थी महाभारत और रामायण काल के पर्याप्त सबूत उपलब्ध है। इस संदर्भ में रामायण एवं महाभारत कालीन विवरणों को स्वीकृति देनी चाहिए।
[  ] भारत का इतिहास मौर्य काल से प्रारंभ नहीं होता है बल्कि उससे पहले रामायण के बाद महाभारत काल के उपरांत महाजनपदों का विवरण प्राचीन इतिहास के रूप में भारतीय आदि ग्रंथों में मौजूद है । इसलिए आवश्यक है कि भारतीय इतिहास को ईशा के 1500 वर्षों तक सीमित ना रखा जाए। पाठ्यक्रम में सिंधु घाटी सभ्यता तथा वैदिक कालीन सरस्वती नदी के विलुप्त होने के इपोक अर्थात समय बिंदु को जो 8000 वर्ष पूर्व का है को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इस संबंध में कई वैज्ञानिकों ने तथा इतिहासकारों ने बहुत बड़े-बड़े काम किए हैं इनमें एक नाम वेदवीर आर्य का भी है जिनकी किताबों क्रमशः the chronology of India from Manu To Mahabharata, एवम the chronology of India Mahabharat to mediaeval era में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर विस्तृत विश्लेषण है। इसके अलावा भी आईआईटी कानपुर एवं कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास के संबंध में शोध पत्र तैयार किए गए हैं का विवरण पाठ्यक्रमों में शामिल करना चाहिए।
[  ] वर्तमान में किसी को भी जैन एवं बुद्ध मतों के कालखंड के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं है अतः इस पर नवीनतम शोध कार्यों को ध्यान में रखते हुए विस्तार से जानकारी प्राथमिक शिक्षा के उपरांत सम्मिलित की जा सकती है ऐसा हम प्रस्तावित करते हैं।
4:-भारतीय वैदिक समाज के संबंध में कोई भी विवरण भारत के विद्यार्थियों तक पहुंचाने का ना तो कोई प्रयास किया गया है और ना ही विवरण पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। इस विसंगति को दूर करना भी बहुत आवश्यक है।
[  ] इसके अतिरिक्त इस्लामिक ईसाई कंटेंट  को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन ने स्वीकारा है परंतु समकालीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर ना तो ऐतिहासिक कंटेंट उपलब्ध है और ना ही इसका कोई भी सही विवरण इतिहास में सम्मिलित नहीं है। अर्थात 4004 वर्ष पूर्व भारत की सभ्यता को 0 साबित करना सिद्ध होता है। जबकि सिंधु घाटी सभ्यता के अंत की स्थिति अर्थात लगभग 5000 तक के प्रमाण 2019 तक हरियाणा में मिल चुके हैं। सिंधु घाटी सभ्यता आज की से 5000 वर्ष पूर्व चरम पर थी जिसका उदाहरण धोलावीरा के नगर निर्माण अवशेषों से ज्ञात हुए हैं जबकि अभी मात्र 10 से 12% तक के अवशेष चिन्हित किए गए हैं।। अतः यह माना जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान समय से 5000 वर्ष समाप्त हुई है। परंतु किसका प्रारंभ निश्चित तौर पर 16000 वर्ष पूर्व हुआ था। इसके प्रमाण में उदाहरण स्वरूप आदरणीय विष्णु श्रीधर वाकणकर जी के कार्यों के माध्यम से समझा जा सकता है।
[  ] वर्तमान शिक्षा प्रणाली में केवल उत्तर भारतीय राज्य व्यवस्था तथा संस्कृति का विवरण दर्ज है वह भी विशेष रूप से मुगलकालीन। जबकि दक्षिण भारत के राज्यों का राजवंशों का उल्लेख या तो नहीं है और यदि है अभी तो संक्षिप्त रूप से। अतः संपूर्ण भारत के इतिहास के विवरण को पाठ्यक्रम में किसी न किसी रूप में शामिल किया जावे ऐसा हम प्रस्तावित करते हैं।
[  ] यहां भारतीय सामाजिक व्यवस्था धार्मिक ना होकर सर्वाधिक सेक्युलर है। दक्षिण भारत में शैव वैष्णव शाक्त, आदि आदि कई संप्रदाय प्रतिष्ठित थे। किंतु उनका समेकन अर्थात एकीकरण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया। ऐसे विवरण भी शैक्षिक पाठ्यक्रम में ना होने से भारतीय विद्यार्थियों को ही भारत को समझने में भारी चूक हो रही है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र को अर्थशास्त्र जैसे विषय से बाहर रखा है । शून्य और दशमलव प्रणाली के संदर्भ में जिन भारतीय विद्वानों का योगदान रहा है उसके बारे में बच्चों को जानकारी ही नहीं है।
हमारे ऐतिहासिक व्यक्तित्व
भारत के ऐतिहासिक व्यक्तित्व से परिचित कराने के लिए 1977 के आसपास तक सहायक वाचन जैसी पुस्तकें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से चला करती थी। जिसमें पंचतंत्र जातक कथाएं महापुरुषों की जीवनी या आदि कंटेंट शामिल हुआ करता था जो वर्तमान में पाठ्यक्रम से बाहर है। कृपया ऐसे विवरणों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की कृपा कीजिए।
6:- भाषा विकास
वर्तमान में भाषा विकास संबंधी कोई कंटेंट अर्थात पाठ्य सामग्री बच्चों को नहीं पढ़ाई जा रही है। संस्कृत विश्व की समस्त भाषाओं की जननी है यह तथ्य हम बहुत बाद में आकर समझे जबकि संस्कृत के बारे में हमें प्रारंभ से ही जानकारी होनी चाहिए थी। हमें संस्कृत को एक विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल कर देना चाहिए। परंतु संस्कृत को किसी भी स्तर पर पर्याप्त संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ है जो वापस प्रदान करना चाहिए।
[  ] भाषाओं के विकास के संबंध में भी कंटेंट पाठ्यक्रम में प्रस्तुत करना आवश्यक है।
[  ] प्राचीन इतिहास मौर्य वंश से प्रारंभ होकर वहीं कहीं समाप्त हो जाता है । जबकि मोहम्मद साहब के समकालीन राजा दाहिर का कहीं भी जिक्र नहीं है इतिहास से बाहर रखने का औचित्य क्या है यह हमारी समझ से परे है। अतः आपसे अनुरोध है कि राजा दाहिर के अतिरिक्त उसके पूर्व तथा पश्चात में विभिन्न विदेशी यात्रियों विशेष तौर पर चीनी यात्रियों एवं पर्शियन मुस्लिम विद्वान यात्रियों द्वारा लिखे गए विवरणों का पाठ्यक्रम में शामिल होना जरूरी है।
        मान्यवर उपरोक्त अनुसार प्रस्ताव सादर हमारी ओर से प्रस्तुत है
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

11.7.21

जनसंख्या नियंत्रण ही नहीं जनसंख्या प्रबंधन की अवधारणा को अपनाना होगा

 

         मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत की जनसंख्या 139 करोड़ होकर विश्व की जनसंख्या 17.58% पर आ चुकी है और यह वह समय है जब हम किन से मात्र कुछ लाख कम है  अर्थात जनसंख्या के मामले में अगर भारत और चीन की जनसंख्या मिला दी जाए तो विश्व की आबादी की एक दशक में 50% हिस्सेदारी आने में आसानी से पहुंच जाएगी। यह दोनों हितेश आने वाले दो-तीन दशक में अपने सारे संसाधन खो सकते हैं ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

          विश्व के कुछ प्रमुख राष्ट्रों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका जनसंख्या विश्व की जनसंख्या में 5% यूनाइटेड किंगडम  .0 8%, जर्मनी की जनसंख्या 1.07% फ्रांस 0.85% इटली 0.78% है। यह सारे देश लगभग भारत और चीन से अधिक जन सुविधा संपन्न देश हैं। यहां उन देशों का विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया है जो खाड़ी के देश है वे आर्थिक रूप से बेहद समृद्ध होने के साथ-साथ जन सुविधा संपन्न है।

          भारत ने जनसंख्या को  जनशक्ति के रूप में स्वीकारा है। अतः भारत को भविष्य के 50 वर्षों की कार्य योजना तैयार करने की जरूरत है। विभिन्न रिपोर्ट के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2% से 1.3% के बीच रहेगी। और यह वार्षिक वृद्धि दर भारतीय जनसंख्या को भारत के नागरिकों की औसत उम्र 72 वर्ष की तुलना में अत्यधिक कही जा सकती है।

                                            जनसंख्या वृद्धि की दर



          यह सर्वोच्च सत्य है की भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2.5 % से कम होकर 1.8% के आसपास रह गई है। तो आप सोचते होंगे कि किन कारणों से जनसंख्या अधिनियम लाने चाहिए?

सवाल स्वाभाविक है। पर आपने आर्टिकल के प्रारम्भ को ध्यान से देखा कि- भारत और चीन अगले कुछ दशक में विश्व की जनसंख्या के 50 % हो जाएगी। और इन दौनों राष्ट्रों को 3 से 4 गुना अधिक संसाधनों की जरूरत होगी। फिर प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादों के उपभोक्ताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन में तेज़ी से प्राकृतिक अस्थिरता बढ़ेगी । जैसा प्राचीन इतिहास में दर्ज़ है।  

          अत: भारत की जनसंख्या जनशक्ति अवश्य है किंतु रोजगार एवं उत्पादकता में इस जनसंख्या की भागीदारी वर्तमान संदर्भ में एवं आगामी 50 वर्षों के लिए  चिंता  का विषय है।
          भारतीय जनशक्ति के लिए आर्थिक संसाधनों एवं उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे रहने के स्थान शुद्ध पानी उत्पादित खाद्य सामग्री और इसके अलावा राज्य की ओर से प्रदत्त शैक्षणिक विकास चिकित्सा एवं आंतरिक सुरक्षा संसाधनों को बढ़ती हुई जनसंख्या नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी ऐसा मेरा मानना है।

          भारतीय संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ जनसंख्या प्रबंधन के संदर्भ में भी फुलप्रूफ माइक्रो प्लानिंग की जरूरत है। वर्तमान में कोविड-19 टीकाकरण में अब तक कई देशों की जनसंख्या से दुगनी कई देशों की जनसंख्या के बराबर कई देशों की  जनसंख्या की तुलना में कई गुना अधिक वैक्सीनेशन दिए जा चुके हैं परंतु फिर भी हमारी उपलब्धि 50% तक नहीं पहुंच पाई है।

          राज्य की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा चिकित्सा और रक्षा मूल रूप से आवासी व्यवस्था के साथ राष्ट्र वासियों को ब्लड कराएं। परंतु यदि इस गति से जनसंख्या बढ़ेगी तो आने वाले 50 वर्षों में भारत की जनसंख्या ना केवल राजकीय संसाधनों का लाभ उठा सकेगी और ना ही प्राकृतिक संसाधनों का पर्याप्त रूप से रसास्वादन कर सकेगी।

          विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रत्येक परिवार को व्यक्तिगत तौर पर बिना किसी लोभ लालच के जनसंख्या प्रबंधन को महत्व देना ही होगा। भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों द्वारा जनसंख्या प्रबंधन की दिशा में कारगर कदम उठाए हैं परंतु यह व्यवस्था बेहद कारगर नहीं रहेगी अगर जनसंख्या वृद्धि ना रुके तो। हम पड़ोसी देश पाकिस्तान से तुलना करें तो उनकी जनसंख्या मात्र 22 या 23 करोड़ है। यद्यपि उसका जनशक्ति नियोजन और प्रबंधन बेहद घटिया स्तर का होने के कारण वहां स्वास्थ्य शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं नकारात्मक आंकड़े प्रदर्शित करती है। परंतु भारतीय प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था करने वालों का हुनर काबिले तारीफ है कि उनके द्वारा इस देश को संभावित खतरे से बाहर निकाल लिया।

          भारतीय योजनाकारों ने एक  प्रभावशाली व्यवस्थापन कर संसाधनों की आम नागरिक तक पहुंच को वर्तमान परिस्थितियों में बरकरार रखा है यह कुशल प्रबंधकीय विशेषज्ञता का बिंदु है। परंतु सब दिन होत ना एक समाना के सिद्धांत को भी ध्यान में रखना होगा। 

 

9.7.21

वामन मेश्राम का भ्रम जाल : राहुल सांकृत्यायन का कमाल...!

     शुंग वंश का शासक पुष्यमित्र शुंग
              185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के 
 ब्राह्मण सम्राट पुष्यमित्र शुंग महानायक थे न कि खलनायक

                                    गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

              185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के शासक ब्रहदत्त की प्रशासनिक और कमजोर व्यवस्था बुद्धिस्ट निवृत्ति मार्ग के प्रति अतिशय मोह के कारण तथा ग्रीक राजा डेमोट्रीयस  के षड्यंत्र को ना रोकने की इच्छा के कारण सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या की ना कि धोखे से मारा यह तथ्य डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर विवरण लिखा है। राहुल सांस्कृत्यायन ने  कल्पना की कि हो सकता है पुष्यमित्र शुंग ही राम के तुल्य माना जाता  हो .  

इससे एक विद्वान बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने तुरंत अपनी अभिव्यक्ति में पुष्यमित्र शुंग को अयोध्या का राजा बता दिया। और उन्होंने इसे गलत तरीके से जनता के बीच में प्रस्तुत किया। 5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।

पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध जो भी इतिहास में दर्शाया गया है उस पर पुनर्विचार करना बहुत जरूरी है वरना वर्तमान समय में नव बौद्ध एवं कथित दलित चिंतक भारतीय सामाजिक संरचना को विघटित  करने में सर्वोपरि होंगे।

वर्तमान में आपको वामन मेश्राम के कुछ ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जाते हैं कि पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर शासक था जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दी और उनकी तुलना मर्यादा पुरुषोत्तम राम से  कर दी है। यह पूरी तरह से काल्पनिक और वोल्गा के से गंगा तक के लेखक राहुल सांकृत्यायन की एक परिकल्पना है जो उन्होंने अपनी कृति के प्रभा कथानक में कुछ इस तरह वर्णित किया है .  (देखें प्रभा कथाक्रम 11 समय अवधि 50 ईसवी पेपरबैक संस्करण वोल्गा से गंगा तक पृष्ठ क्रमांक 161 पैराग्राफ दो)

    “इसमें तो कोई शक नहीं कि अश्वघोष में बाल्मीकि के मधुर काव्य का रसास्वादन किया। कोई ताज्जुब नहीं कि यदि बाल्मीकि शुंग वंश के आश्रित कवि रहे होजैसे कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के और शुंगवंश की राजधानी की महिमा बढ़ाने के लिए उन्होंने  दशरथ की राजधानी वाराणसी से बदलकर साकेत या अयोध्या कर दी और राम के रूप में सम्राट पुष्यमित्र या अग्निमित्र की प्रशंसा की- वैसे ही जैसे कालिदास ने रघुवंश में रघु और कुमारसंभव के कुमार के नाम से पिता पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और कुमारगुप्त की।

एक जिम्मेदार लेखक जो गली गली भटका हो और जानकारियां एकत्र की है की कलम यह क्या लिख रही है समझ से परे है। वैसे तो यह एक कयास मात्र है लेकिन इस स्टेटमेंट से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि-" भारत के साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने ना तो भारतीय इतिहास के साथ ईमानदारी बरती और ना ही साहित्य के प्रति ईमानदार रहे हैं और उन्होंने एक ऐसा वक्तव्य जारी कर दिया जिस का दुरुपयोग वामन मेश्राम जैसे अध्ययन हीन अनाड़ी व्यक्ति ने करना प्रारंभ कर दिया इसकी पुष्टि आप यूट्यूब पर 5 मार्च 2019 को अपलोड किए गए वीडियो पर कर सकते हैं।

हर प्राचीन लिखा हुआ सत्य हो ऐसा कैसे हो सकता। बिना पुष्टि किए हुए जातियों का ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से वामन मेश्राम में एक त्रुटि पूर्ण वक्तव्य दिया है . ऐसा नहीं है कि यह वक्तव्य केवल एक बार दिया गया है उनके कई सारे ऐसे वीडियो हैं जिनमें उन्होंने यह भ्रामक जानकारी प्रसारित की है।ईसा के सौ पचासी वर्ष पूर्व यवन भारत पर आक्रमण करने के लिए आमादा थे जिसका प्रमुख कारण था मौर्य डायनेस्टी का कमजोर पड़ जाना।

बृहदत्त एक ऐसा अकर्मण्य शासक था जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है। सेनापति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। और उनका उद्देश्य केवल और केवल भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है। जब राजा से इस संदर्भ में पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कथन था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे..!"

फिर भी पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई। उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले। बौद्ध साधु ने यह स्वीकारा कि जब उन्होंने उन्हें बुद्धिस्ट बन जाने का आश्वासन दिया था। इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बुद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कह कर दिया। इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर जाने के लिए कह दिया। पुष्यमित्र  को यह अपमान  राष्ट्र की रक्षा के लिए सहना पड़ा ।

एक दिन सेनापति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजभवन से बाहर कहीं मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहासुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया। स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए पुष्यमित्र ने सत्ता पर अपना अधिकार उद्घोषक किया। इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियन अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था । पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियन और उसकी सेना को जो अब ज्यादा उत्साह से सिंधु नदी के तट तैयार थी पर हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।

फिर पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी जिसे एक तत्सम कालीन भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।

पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया ये यज्ञ पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपादित कराए। और यज्ञ के दौरान एक युद्ध में पंजाब में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ।

भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन भ्रमित बौद्ध साधुओं को जेल में रखा। और उन मठों को नेस्तनाबूद किया जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही है। 

यह सत्य है कि अपने 36 वर्षीय शासनकाल में पुष्यमित्र के पास इतनी शक्ति थी कि वह भारत भूमि से बुद्धिस्ट का समापन कर देता परंतु सांची के स्तूप इस बात की गवाही देते हैं कि उन स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से स्तूप के इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री बनाई गई और यह बाउंड्री शुंग वंश के काल में ही बनी है।

शुंग-वंश के कार्यकाल में की सामाजिक व्यवस्था
शुंग वंश के काल में कर्म वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई। मनु स्मृति का लिपिबद्ध करण इसी युग में करने की स्थिति का वर्णन ग्रंथों एवं लब्ध जानकारियों में मिलता है।

आप सब जानते हैं के पुष्यमित्र शुंग के पुत्र क्रमष: अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ। शुंग वंश ने केवल उन्हीं राजाओं को अपने अधीन किया या उन्हें सत्ता से अलग कर दिया जो ऐसे बुद्धिस्ट राजा थे जिन्हें जनता और विकास की बातें ना तो समझ में आती थी और ना ही वे बुद्ध धर्म के अत्यधिक प्रभाव में आकर प्रशासनिक कल्याणकारी कार्यों को निष्पादित नहीं कर पा रहे थे।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ या बृहदत्त की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है।

वह ब्राह्मण था लेकिन वह सेनापति होने के नाते क्षत्रिय था। वामन मेश्राम विश्व अमन करते हुए भोली भाली जनता को यह समझाते हैं के पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अब वर्तमान परिस्थिति में आप ही निर्णय लेने की राष्ट्रद्रोह की सजा क्या होनी चाहिए..?

वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने के पूर्व 370  ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था.

यद्यपि इतिहास को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करने वालों की कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी करने लगें हैं. इस आलेख का आलेखन आम भारतीयों को “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है न कि रोमिला थापर, इरफान हबीव जैसे इतिहासकारों के ऐनक से ...!”


    

  

 

    

4.7.21

Understanding Swami Vivekananda

दुनिया में जो भी कुछ घटता है वह सब उन महापुरुषों के संदेशों से व्यवस्थित हो सकता है जो का यही संदेश है। स्वामी विवेकानंद को याद करना आज.. 
    अभी लेकिन उनकी स्मृतियां इतनी मीठी कि किसी को बांटने में मुझे उस बच्चे की तरह असहजता हो रही थी जैसे किसी बच्चे को अपनी सबसे प्रिय वस्तु बांटने के लिए कहा जाए। परंतु" हर दिन नया दिन है हर रात नई रात..!"- का अनुसरण करते हुए लगा कि कुछ लिख दिया जाए कुछ बांट दिया जाए। आज मैं बच्चों से बात करना चाहता हूं बच्चों से बात करने का उद्देश्य यह है कि वह जाने भारत विश्व में इतना चर्चित राष्ट्र क्यों है। बच्चों भारतीय दर्शन एक ऐसा जीवन प्रदर्शन है.. जिसे विश्व के दर्शन यानी फिलासफी की नीव कहा जा सकता है। मैंने बचपन में एक कवि की कविता सुनी थी जिसने उन्होंने कहा था कि- आज दुनिया में जो भी कुछ है इसकी फाउंडेशन में भारतीय फिलासफी है।
    विवेकानंद जी के बारे में आप कितना जानते हैं मुझे नहीं मालूम। स्वामी विवेकानंद जी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुए जब उन्होंने शिकागो में अपना भाषण दिया। उन्होंने भारतीय सनातन धर्म पर अपनी टिप्पणी अपने भाषण में बहुत सतर्कता एवं आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत की थी। आज मैं आपको सलाह दूंगा कि एक बार अनिवार्य रूप से विवेकानंद के उस भाषण को गूगल से सर्च करके अवश्य पढ़ें। बच्चों शायद आप जानते होंगे कि भारत अपनी संस्कृति का विकास ईशा के 3500 वर्ष पूर्व हुआ आपके पापा मम्मी भी यही जानते हैं। परंतु नवीनतम खोजों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह एक भ्रम है जो चलाया गया है। भारतीय समाज का विकास आज से लगभग 20000 वर्ष पूर्व हुआ है। इसके वैज्ञानिक और तथ्यात्मक साक्ष्यों  scientific and factual evidence के आधार पर यह कहा जा सकता है। मेरे सहित बहुत से लोगों ने इस पर रिसर्च कर लिया है।
    बच्चों भारतीय धर्म सनातन धर्म कहलाता है। जिसके मूल आधार में विश्व बंधुत्व यानी विश्व के प्रत्येक व्यक्ति में आपसी भाईचारे का मौलिक सिद्धांत उल्लेखित है। स्वामी विवेकानंद ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने सामाजिक विषमताओं और आर्थिक विषमताओं पर भी चिंतन किया। उनका मत था कि वेद वाक्य जिसमें यह कहा गया है कि सर्वे जना सुखिनो भवंतु को वास्तविक रूप में समाज में दिखना चाहिए। इसके लिए वे अमेरिका में नहीं रुके बल्कि भारत आकर संपूर्ण भारत की यात्रा की और लोगों को जागृत किया। उनका यह मानना था कि चाहे दुनिया कितनी भी वितरित हो जाए सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ना है। आपको उनके जन्म और मृत्यु का विवरण नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं जन्म की तारीख और समय: 12 जनवरी 1863, कोलकातामृत्यु की जगह और तारीख: 4 जुलाई 1902, बेलुर मठ, हावड़ा अब देखिए 1863 से 1902 तक कुल 39 वर्ष का जीवनकाल और महान उपलब्धियां है ना अद्भुत बात...! 
  स्वामी विवेकानंद के जन्म से सन 2063 में उनकी हमारे बीच अनुपस्थिति के 200 वर्ष लगभग पूर्ण हो जाएंगे और तब भी उनके प्रतिपादित सिद्धांत के साथ-साथ शिक्षाएं अकाट्य रहेगी। स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन को आगे ले जाना आपकी जिम्मेदारी है। जिस तरह अमेरिकन अपने राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को भुला नहीं पाती उसी तरह भारत में बहुत सारे आईकॉनिक व्यक्तित्व हुए हैं जिन्हें भूल जाना भारत की दुर्दशा को आमंत्रित करने के बराबर होगा। मुझे मालूम है कि यह आर्टिकल बहुत लंबा होने से आपको पढ़ने में तकलीफ होगी। परंतु आज आपको पढ़ना होगा विवेकानंद योगी होने के बाद लोगों के बीच गए जबकि वे अपने व्यक्तिगत एक के लिए हिमालय की ओर नहीं गए। उनकी चिंता थी कि भारत का अगर कोई भी बच्चा भूखा रहता है तो उन्हें चैन से रहने की आवश्यकता नहीं है। वह शिक्षा चरित्र निर्माण और राष्ट्रप्रेम को सर्वोच्च धर्म मानते थे। भारत को अगर आप आज अच्छा देखना चाहते हैं तो आप गलत हैं आपको यह ध्यान रखना होगा कि भारत भविष्य में भी अच्छा रहे आज को हम बेहतर बनाएं कल को बेहतर बनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। स्वामी विवेकानंद ने ना केवल अपने दौर को बेहतर बनाने की कोशिश की बल्कि कुछ ऐसा कर दिया जिसके कारण आज आप स्वतंत्र भारत के मुस्कुराते हुए बच्चे बने हो। अभी आर्थिक विषमता आए हैं सामाजिक मुद्दे हैं जिनके कारण हम कभी कभी या अक्सर चिंतित और दुखी रहते हैं। स्वच्छता सद्भावना सामाजिक ऊंच-नीच का भेद और निजी स्वार्थ इन बिंदुओं पर वेदांत के सिद्धांतों पर सरल विश्लेषण करने वाले स्वामी विवेकानंद के दर्शन यानी फिलासफी को समझना जरूरी है। रोटी कपड़ा मकान जरूरी है तो सामाजिक विकास के लिए समतामूलक दर्शन यानी फिलासफी की जरूरत है। बच्चों सच कहूं वेदों में कहीं भी जाति प्रथा मेरे पढ़ने में नहीं आती है। जब फाह्यान और व्हेनसांग भारत आए थे तो उन्होंने कहा था कि भारत इसलिए महान है क्योंकि यहां समतामूलक समाज है सोचिए पांचवी छठवीं शताब्दी में आने वाले इन यात्रियों ने भारत के बारे में साफ-साफ लिखा था और वह भी वापस चीन जाकर। अर्थात उन पर कोई मानसिक दबाव नहीं था। इससे यह तो प्रमाणित हो जाता है कि भारत विश्व बंधुत्व और समता मूलक समाज के रास्ते पर चलता है। आप जब स्कूल जाते हैं तो क्या आप जाति बिरादरी और संप्रदाय को देखते हैं नहीं देखते ना तो बस यही है भारत के सनातन दर्शन का आधार। अंग्रेजों ने इस बात को ठीक उसी तरह समाज में फैलाने की कोशिश की जैसा वह करते हैं। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल  ने भारत के नागरिकों से बहुत नकारात्मक व्यवहार किया था। वे भारतीयों को दूसरे दर्जे का विश्व नागरिक समझते थे। विंस्टन चर्चिल सबसे बड़े नस्लवादी व्यक्ति थे यह अलग बात है कि उन्होंने हिटलर की तरह यहूदियों पर जैसा अत्याचार किया जाता है वैसा नहीं किया परंतु विचारों से वह व्यक्ति मेरे अध्ययन के अनुसार बहुत क्रूर था। जबकि स्वामी विवेकानंद का दर्शन पढ़ने समझने के बाद आप बच्चे भविष्य में ना तो हिटलर को स्वीकारेंगे और ना ही चर्चिल को। एक और बात स्वामी विवेकानंद के बारे में बताता हूं उनका मानना था सत्य पर अडिग रहना इसी सत्य को पकड़कर चलना चाहे समाज से आप किसी भी तरह की असहमतियाँ झेलते रहे परंतु सत्य के लिए सहते रहना झेलते रहना। महामना स्वामी विवेकानंद को शत शत नमन।

3.7.21

The Virgin River Narmada


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*Scientific and Geological facts about Narmada*
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*Narmada is the virgin river because she never cross her limit and limitations. According to pauranik text and description Narmada was only the river we called brahmacharini*

नर्मदा अति प्राचीन नदी है इसका निर्माण हिमालय के निर्माण से भी पहले हुआ है। आप सभी जानते हैं कि लगभग 4.50 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी नामक ग्रह का निर्माण हुआ वास्तव में सूर्य की हलचल से निकला हुआ आग का लावा जिसमें गैस और तरल खनिज मौजूद थे साथ ही अंतरिक्ष में गतिमान भौतिक वस्तुएं पृथ्वी के कक्ष में स्थापित हो गई। और पृथ्वी अपनी कक्षा में गर्म लावा बॉल की तरह है अपनी अक्ष पर घूमने वाली गति के कारण गुरुत्वाकर्षण बल पैदा करती है। यह प्रक्रिया लगभग 10000000 साल तक चलती है। पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होती है किंतु अचानक एक पिंड पृथ्वी से टकरा जाता है जिससे चंद्रमा का उदय भी होता है। पृथ्वी के अंदर का लावा उसके टकराने से बहुत ऊंचाई तक जाता है और एक निश्चित दूरी पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में बंध जाता है। जो पिंड पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में अथवा किसी भी ग्रह के गुरुत्वाकर्षण में बंध जाए तो वह अपनी कक्षा स्थापित कर लेता है। तथा उसके चक्कर लगाने लगता है।
  सुधि जनो इस घटना के लाखों साल बाद पृथ्वी की ऊपरी परत यानी प्लेट्स में परिवर्तन होता है। और यह प्लेट एक दूसरे से टकराती है जब भारत के दक्षिणी हिस्से में यह टकराव होता है तो हिमालय का निर्माण होता है साथ ही साथ निचले भाग में सिलवट पड़ती है ऐसी ही सिलवट नर्मदा और ताप्ती सहित दक्षिण भारत की के निर्माण का कारण बनी है। नर्मदा के संदर्भ में कहा जाए तो अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक जो सलवट बनी नर्मदा है नर्मदा की विशेषता यह है कि नर्मदा अपनी सीमाएं नहीं तोड़ती। जो अपनी सीमा नहीं छोड़ता वह ब्रम्हचर्य का पालन करता है वैज्ञानिक कारण यही है उसे चिर कुमारी मानने का । 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

महायोगी हनुमान जी ही रामदुलारे क्यों..? : नमःशिवाय अरजरिया

एक सामान्य नाम की तरह 'रामदुलारे' आम जनों के लिए एक नाम की प्रतीति कराता है। लेकिन भाव जगत के लोगों या जो शब्द में भी ब्रह्म खोजते हैं, के लिए यह नाम बड़ा अनूठा है। ईश्वर की महकती अनुकंपा या प्रीति प्राप्त करने का पर्याय है यह नाम। रामदुलारे का शाब्दिक अर्थ है जो राम का दुलारा अर्थात प्रिय हो। अधिकांश साधक भी भगवतप्रेमी या रामप्रेमी होते हैं अर्थात राम को स्नेह करते हैं, परंतु रामदुलारे की अभिव्यक्ति को तो स्वयं श्रीराम स्नेह करते हैं। राम के चरित्र के अद्भुत चितेरे गोस्वामी तुलसीदास की लेखनी में त्रुटि से भी कोई शब्द निरर्थक नहीं आता। वह प्रियता की श्रेणी के आधार पर मानस में शब्दों का विन्यास बिखेरते है। किसी स्थान पर 'प्रिय' तो किसी स्थान पर 'अतिप्रिय' तो कहीं 'अतिशय प्रिय' एवं अन्यत्र 'प्राणप्रिय' शब्दों का प्रयोग करते हैं। उत्तर कांड के 32 में दोहे के पूर्व वह 'रामदुलारे' हनुमान जी के लिए 'परमप्रिय' विशेषण का प्रयोग करते हैं।
लक्ष्मणजी के लिए-
'लक्ष्मण धाम राम प्रिय'
अयोध्या वासियों के लिए-
अति प्रिय मोह यहां के वासी।
वानरों के लिए-
ताते मोहि तुम 'अतिप्रिय' लागे
भरत के लिए-
भरत 'प्राणप्रिय' पुन लघु भ्राता।
विभीषण के लिए-
सुन लंकेश सकल गुन तोरे।
तातें तुम 'अतिशय प्रिय' मोरे।।
जानकी जी के लिये-
जनक सुता जग जननी जानकी
'अतिशय प्रिय' करुनानिधान की।।
हनुमान जी के लिये-
भ्रातन्ह सहित राम एक बारा।
 संग 'परमप्रिय' पवन कुमारा।। 
आखिर क्या कारण रहा होगा कि परिजनों के लिए मानस मर्मज्ञ प्रिय एवं प्राणप्रिय विशेषणों का प्रयोग करते है जबकि विभीषण जैसे मित्र के लिए अतिशय प्रिय विशेषण का प्रयोग करते हैं। इनसे भी अधिक हनुमान जी जैसे परिकरों के लिए 'परमप्रिय' विशेषण का प्रयोग मानसकार ने किया है। हनुमानजी के उद्दात्त चरित्र के संबंध में मुझ जैसे अल्पमति व्यक्ति जिसमें लेखन का एक भी गुण नहीं है, परम प्रिय विशेषण के प्रयोग हेतु यह कारण उचित जान पड़ा कि हनुमान जी ने सर्व भावों से अपने आराध्य जगदीश्वर श्रीराम का भजन किया। उत्तरकांड में मानसकार इसका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं-
"पुरुष नपुंसक नारि वा, जीव चराचर कोई।
 सर्व भाव भज कपट तजि, मोहि परम प्रिय सोई।।
अर्थात स्त्री, पुरुष, नपुंसक या कोई भी चर जीव या यहाँ तक कि अचर पदार्थ भी यदि संपूर्ण भाव से भगवान का जाप या स्मरण सतत रूप से करता है तो वह भगवान का परम प्रिय  बन जाता है। ऐसा श्री रामचंद्र स्वयं अपने भ्राताओं से कह रहे हैं। हनुमान जी जैसा नाम स्मरण करने वाला जीव चर या अचर संसार में कोई दूसरा नहीं हुआ। वेद, पुराण एवं आगम से लेकर जैन एवं बौद्ध साहित्य में भी ऐसा दूसरा उदाहरण नहीं मिलता है। मानसकार तुलसी लिखते भी हैं-
"सुमरि पवनसुत पावन नामू।
अपने वश कर राखे रामू।। 
वनवास काल में जब श्रीराम महर्षि वाल्मीकि से अपने निवास स्थान के बारे में जानना चाहते हैं तो महर्षि भी कहते हैं कि आप ऐसे व्यक्तियों के हृदय में निवास करें जो काम,क्रोध,मोह,मान,मद,लोभ एवं क्षोभ जैसे मानसिक विकारों से परे हो। जिनके हृदय में कपट, दंभ एवं माया नहीं बसती है। है रघुनाथ तुम ऐसे जीवो के हृदय में निवास करो।
"काम,क्रोध,मद, मान ना मोहा।
लोभ न क्षोभ न राग न द्रोहा।।
जिनके कपट दंभ नहि माया।
तिनके हृदय वसहु रघुराया।।"
हनुमान जी के पास ना तो माया है और ना ही क्रोध। क्रोध यदि है भी तो राम काज को पूर्ण करने के लिए। माया वानरों की ओर देखती भी नहीं है। नारद जब वानर का स्वरूप धारण कर विश्व मोहिनी के स्वयंवर में गए तो माया रूपी विश्व मोहिनी ने नारद की ओर देखा भी नहीं। हनुमानजी आजीवन ब्रह्मचारी हैं। काम उन से कोसों दूर है। उनके हृदय में तो राम है। कहा गया है- 'जहां राम तंह काम नहि'। हनुमान जी के तो हृदय में काम के रिपु राम धनुर्वाण धारण किए बैठे हैं। हनुमान जी सदैव लघु या अतिलघु रूप में रहते हैं अतः दंभ या अहंकार का प्रश्न ही नहीं है। इसी प्रकार हनुमान जी कपट राग एवं द्वेष से भी पूर्णत: विरत है। अतः वह राम दुलारे है।
महर्षि वाल्मीकि जी यह भी कहते हैं कि, हे रघुनाथ जो आपको ही माता, पिता, गुरु, सखा एवं स्वामी सभी भावों से स्मरण करें, उसके मन मंदिर में आप जानकी जी और लखनलाल के साथ निवास करें। यदि हनुमत चरित्र का विहंगावलोकन करें तो उन्होंने श्री राम को प्रथम परिचय में ही 'स्वामी' कहकर संबोधित किया। उन्होंने सखा मानकर ही श्रीराम एवं सुग्रीव की मित्रता कराई। भगवान श्रीराम ने उन्हें स्वयं 'सुत' नाम से संबोधित किया। अर्थात श्रीराम उनके लिए पिता सदृश्य हैं। इसी प्रकार हनुमान जी ने श्रीराम से प्रथम मुलाकात में ही माता की बुद्धि का आरोपण कर अपने पोषण की अपेक्षा की। यही नहीं आंजनेय ने श्रीराम जी को गुरु मानकर उनसे भजन का उपाय पूछा और श्रीराम ने अनंतर में गुरु की भूमिका का निर्वाह करते हुए उन्हें अनन्यता का उपदेश दिया। मानस में यह सभी भाव है-
"स्वामि सखा पितु मातु गुरु, जिनके सब तुम तात।
 मन मंदिर तिनके वसहु, सीय सहित दोउ भ्रात।।"
कठिन भूरि कोमल पद गामी।
कवन हेतु विचरहु वन स्वामी।।
सुनु सुत तोहि उरिन में नाहीं।
देखउँ करि विचार मन माहीं।
सेवक, सुत, पति, मातु भरोसे।
रहइ असोच बनइ प्रभु पोसे।।
तापर में रघुवीर दोहाई।
जानउँ नहिं कछु भजन उपाई।।
"सो अनन्य जाके असि, मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर, रूप स्वामी भगवंत।।"
हनुमान जी के राम दुलारे बनने का एक कारण यह भी था कि उन्होंने समस्त प्रकार की ममताओं का त्याग कर अपनी ममता राघवेंद्र के श्री चरणों से बांध ली थी। सुंदरकांड में जगदीश्वर श्रीराम स्वयं विभीषण से कहते हैं कि ममतायें दश हैं और जो भी व्यक्ति समस्त दशों प्रकार की ममताओं को एकत्रित कर मेरे चरणों से ममता की रस्सी को बांध देता है, ऐसा संत पुरुष सदैव मेरे हृदय में रहता है।
"जननी जनक बंधु सुत दारा।
तन धन भवन सुहद परिवारा।।
सबके ममता ताग बटोरी।
मम पद मनहिं बाँध बरि डोरी।।"
संसार में विरले लोग ही होते हैं जो इन दश ममताओं में से किसी एक को छोड़ पाते हैं। भरत जी ने मां की ममता छोड़ी, पिता की ममता का त्याग लक्ष्मण जी ने किया, भाई की ममता का त्याग विभीषण ने किया, सुत की ममता महाराज मनु ने त्यागी, रामजी के लिए पत्नी(सती) का त्याग योगेश्वर शिव ने किया। भगवान राम के लिए तन का त्याग महाराज दशरथ जी ने किया, श्री राम के लिए धन का त्याग श्रृंगवेरपुर के राजा गुह ने किया, भवन अयोध्यावासियों ने त्यागा, सुग्रीम ने सुहदों को छोड़कर श्री राम को मित्र बनाया तथा मुनिजनों एवं संतों ने श्रीराम के लिए अपना परिवार त्याग दिया। इस प्रकार अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग ममता का त्याग किया। धन्य है, महावीर हनुमान जिन्होंने दशों की दशों ममताएं अपने आराध्य कौशलाधीश के लिए त्याग दी, या यूं कहें कि उन्हें ये दशों ममताएँ बांध ही न सकीं।
 मेरे एक बौद्धिक मित्र ने कहा कि हनुमानजी ज्ञानियों में अग्रणी है तथा बुद्धि में वरेण्य है। इसीलिए वह रामदुलारे हैं। क्योंकि प्रत्येक राजा अपने साथ ज्ञानी एवं बुद्धिमान सचिव या सेनापति रखना चाहता है। प्रथमत: तो मुझे उनकी बात सही लगी।सामान्य राजे-महाराजे के लिए यह तर्क उचित भी है। परंतु श्रीराम तो चराचर जगत के स्वामी अर्थात जगदीश्वर है। उनके तो भृकुटी विलास मात्र से सृष्टि में कंपन होने लगता है। ऐसी दशा में लगा कारण कुछ पृथक है। आचार्य रजनीश कहते हैं कि माने गए संबंध, मित्रता तथा गुरु आदि के संबंध नाभि से जुड़े होते हैं । यह संबंध हृदय के संबंधों से प्रबल होते हैं। भगवान श्री राम के लक्ष्मण, भरत एवं जानकी आदि के संबंध हृदय के थे। परंतु विभीषण एवं हनुमान से संबंध नाभि या मणिपुर चक्र से जनित थे। मुझे ओशो का तर्क उचित लगा। वस्तुतः हम भले ही मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क को सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग माने, परंतु यह नाभि या नाभि जनित ऊर्जा पर ही आधारित होता है। बिलकुल वैसे ही जैसे कि भवन में शिखर के स्थान पर नींव या वृक्ष में पुष्प के स्थान पर जड़ महत्वपूर्ण होती है। वही व्यक्ति अधिक स्वस्थ माना जाता है जिसकी श्वांस-प्रश्वांस गहरी हो अर्थात नाभि तक आती जाती हो।
नाभि स्थान को यौगिक परंपरा में मणिपुर चक्र कहते हैं वस्तुतः यह मां(शक्ति) का धाम या निवास होता है। जन्म के समय जननी से इसी से हमारा संबंध रहता है। यदि जननी उत्कृष्ट साधिका है, तथा उसके चक्र जागृत है तो उसका जनन भी उत्कृष्ट होगा। हनुमान जी महाराज की माँ अंजना पूर्व जन्म में वायुदेव की अप्सरा पत्नी के साथ शिव की परम भक्त थीं। अतः आंजनेय में जन्मन: भक्ति योग का प्रकट होना स्वभाविक ही था। यदि जन्मना मणिपुर चक्र जागृत नहीं है तो साधना,तप या योग से उसे जागृत किया जा सकता है। आंजनेय की जैविक माता से इतर पालक, पोषक एवं संरक्षक माता जनकनंदिनी जानकी थी। जानकीदुलारे महावीर ने अपनी भक्ति, ज्ञान एवं कर्म से जनकनंदिनी के वरदपुत्र का दर्जा प्राप्त कर अष्टसिद्धियां एवं नवनिधियों के अधिष्ठान होने का वरदान प्राप्त किया। माता जानकी ने हीं उन्हें 'रामदुलारे' होने का आशीर्वाद दिया। यही कारण है कि हनुमान जी राम दुलारे है।
"अजर अमर गुणनिधि सुत होहू। करहु बहुत रघुनायक छोहू।।"
!ॐ नमः शिवाय!
नमःशिवाय अरजरिया
संयुक्त कलेक्टर जबलपुर।

2.7.21

भारतीय इतिहास सुधार हेतु एनसीईआरटी सुझाव मांगे15 जुलाई तक अंतिम तिथि सुनिश्चित की

*राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद यानी एनसीईआरटी द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित कार्य की अपेक्षा की गई है। भारतीय इतिहास के गलत प्रस्तुतीकरण पर यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा भी कुछ सिलेबस परिवर्तित किए जा रहे हैं। वर्तमान में 30 जून 2021 तक भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम में बहुत विवरणों को शामिल करना था। किंतु जनता की विशेष मांग के आधार पर एनसीईआरटी ने इसकी तिथि बढ़ाकर 15 जुलाई कर दी गई है। जबलपुर से या महाकौशल क्षेत्र से दो महान व्यक्तित्व को इतिहास अजीत महतो नहीं मिला है। आप सब से अनुरोध है कि कृपया महारानी दुर्गावती एवं रानी अवंती बाई के इतिहास से संबंधित विवरण सटीक तथ्यों एवं जानकारी के आधार पर  आर्टिकल अवश्य भेजें। महाकौशल क्षेत्र से महारानी लक्ष्मी बाई एवं महारानी अवंती बाई का इतिहास एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हो सके। इस आर्टिकल को काल्पनिक रूप से नहीं लिखना है।*
एनसीईआरटी का ईमेल आईडी गूगल में सर्च किया जा सकता है। इतना व्यापक चिंतन आज तक एनसीईआरटी ने कभी भी प्रस्तुत नहीं किया। आपसे अनुरोध है कि ऐसे ही भारतीय भौगोलिक परिस्थिति परिवर्तन के मुद्दे पर नर्मदा घाटी के निर्माण और उसके इतिहास पर भी वैज्ञानिक आधार पर आर्टिकल लिखे जा सकते हैं।
एनसीईआरटी का वेबसाइट लिंक 
https://ncert.nic.in/index.php?ln=
सादर 
गिरीश बिल्लोरे

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...