11.7.21

जनसंख्या नियंत्रण ही नहीं जनसंख्या प्रबंधन की अवधारणा को अपनाना होगा

 

         मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत की जनसंख्या 139 करोड़ होकर विश्व की जनसंख्या 17.58% पर आ चुकी है और यह वह समय है जब हम किन से मात्र कुछ लाख कम है  अर्थात जनसंख्या के मामले में अगर भारत और चीन की जनसंख्या मिला दी जाए तो विश्व की आबादी की एक दशक में 50% हिस्सेदारी आने में आसानी से पहुंच जाएगी। यह दोनों हितेश आने वाले दो-तीन दशक में अपने सारे संसाधन खो सकते हैं ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

          विश्व के कुछ प्रमुख राष्ट्रों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका जनसंख्या विश्व की जनसंख्या में 5% यूनाइटेड किंगडम  .0 8%, जर्मनी की जनसंख्या 1.07% फ्रांस 0.85% इटली 0.78% है। यह सारे देश लगभग भारत और चीन से अधिक जन सुविधा संपन्न देश हैं। यहां उन देशों का विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया है जो खाड़ी के देश है वे आर्थिक रूप से बेहद समृद्ध होने के साथ-साथ जन सुविधा संपन्न है।

          भारत ने जनसंख्या को  जनशक्ति के रूप में स्वीकारा है। अतः भारत को भविष्य के 50 वर्षों की कार्य योजना तैयार करने की जरूरत है। विभिन्न रिपोर्ट के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2% से 1.3% के बीच रहेगी। और यह वार्षिक वृद्धि दर भारतीय जनसंख्या को भारत के नागरिकों की औसत उम्र 72 वर्ष की तुलना में अत्यधिक कही जा सकती है।

                                            जनसंख्या वृद्धि की दर



          यह सर्वोच्च सत्य है की भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2.5 % से कम होकर 1.8% के आसपास रह गई है। तो आप सोचते होंगे कि किन कारणों से जनसंख्या अधिनियम लाने चाहिए?

सवाल स्वाभाविक है। पर आपने आर्टिकल के प्रारम्भ को ध्यान से देखा कि- भारत और चीन अगले कुछ दशक में विश्व की जनसंख्या के 50 % हो जाएगी। और इन दौनों राष्ट्रों को 3 से 4 गुना अधिक संसाधनों की जरूरत होगी। फिर प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादों के उपभोक्ताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन में तेज़ी से प्राकृतिक अस्थिरता बढ़ेगी । जैसा प्राचीन इतिहास में दर्ज़ है।  

          अत: भारत की जनसंख्या जनशक्ति अवश्य है किंतु रोजगार एवं उत्पादकता में इस जनसंख्या की भागीदारी वर्तमान संदर्भ में एवं आगामी 50 वर्षों के लिए  चिंता  का विषय है।
          भारतीय जनशक्ति के लिए आर्थिक संसाधनों एवं उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे रहने के स्थान शुद्ध पानी उत्पादित खाद्य सामग्री और इसके अलावा राज्य की ओर से प्रदत्त शैक्षणिक विकास चिकित्सा एवं आंतरिक सुरक्षा संसाधनों को बढ़ती हुई जनसंख्या नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी ऐसा मेरा मानना है।

          भारतीय संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ जनसंख्या प्रबंधन के संदर्भ में भी फुलप्रूफ माइक्रो प्लानिंग की जरूरत है। वर्तमान में कोविड-19 टीकाकरण में अब तक कई देशों की जनसंख्या से दुगनी कई देशों की जनसंख्या के बराबर कई देशों की  जनसंख्या की तुलना में कई गुना अधिक वैक्सीनेशन दिए जा चुके हैं परंतु फिर भी हमारी उपलब्धि 50% तक नहीं पहुंच पाई है।

          राज्य की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा चिकित्सा और रक्षा मूल रूप से आवासी व्यवस्था के साथ राष्ट्र वासियों को ब्लड कराएं। परंतु यदि इस गति से जनसंख्या बढ़ेगी तो आने वाले 50 वर्षों में भारत की जनसंख्या ना केवल राजकीय संसाधनों का लाभ उठा सकेगी और ना ही प्राकृतिक संसाधनों का पर्याप्त रूप से रसास्वादन कर सकेगी।

          विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रत्येक परिवार को व्यक्तिगत तौर पर बिना किसी लोभ लालच के जनसंख्या प्रबंधन को महत्व देना ही होगा। भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों द्वारा जनसंख्या प्रबंधन की दिशा में कारगर कदम उठाए हैं परंतु यह व्यवस्था बेहद कारगर नहीं रहेगी अगर जनसंख्या वृद्धि ना रुके तो। हम पड़ोसी देश पाकिस्तान से तुलना करें तो उनकी जनसंख्या मात्र 22 या 23 करोड़ है। यद्यपि उसका जनशक्ति नियोजन और प्रबंधन बेहद घटिया स्तर का होने के कारण वहां स्वास्थ्य शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं नकारात्मक आंकड़े प्रदर्शित करती है। परंतु भारतीय प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था करने वालों का हुनर काबिले तारीफ है कि उनके द्वारा इस देश को संभावित खतरे से बाहर निकाल लिया।

          भारतीय योजनाकारों ने एक  प्रभावशाली व्यवस्थापन कर संसाधनों की आम नागरिक तक पहुंच को वर्तमान परिस्थितियों में बरकरार रखा है यह कुशल प्रबंधकीय विशेषज्ञता का बिंदु है। परंतु सब दिन होत ना एक समाना के सिद्धांत को भी ध्यान में रखना होगा। 

 

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