कुछ विद्वान मौर्य वंश के अंत का ठीकरा ब्राह्मणों पर फोड़कर भारत में जातिगत भेदभाव पैदा करने में लगे हुए हैं।
मौर्य डायनेस्टी के अंतिम शासक ब्रहद्रथ को उसके ही सेना पति ने मार कर सत्ता पर अधिकार प्राप्त किया था।
मोनार्की में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। परंतु हम इस घटना विशेष पर चर्चा क्यों कर रहे हैं?
श्रोताओं, इसका कारण यह है कि - कुछ लोग भारत में जनता को आपस में उलझा कर अपने राजनैतिक, एवं सामाजिक दब दबे को कायम करना चाहते हैं ।
ऐसा लगता है कि इन तथा कथित विद्वानों ने, सामाजिक विघटन का संकल्प लिया है।
इन लोगों का दावा है कि -" एक ब्राह्मण व्यक्ति द्वारा मौर्य - साम्राज्य के प्रतापी राजा ब्रहद्रथ की हत्या कर सत्ता पर हासिल की थी ।
ब्रहद्रथ मौर्य वंश से था जो निचली जाति का थी, इसी कारण उसकी एक ब्राह्मण ने हत्या कर दी ।
नव प्राचीन इतिहास से ऐसे उदाहरण देते हुए वामपंथी और प्रगतिशील लेखकों , इतिहास करो तथा नव बौद्ध समूहों द्वारा ऐसे ही मंतव्य स्थापित हैं। यह कार्य भारत को खंड-खंड करने की कोशिश ही तो है। वर्तमान में तो इसका सीधा रिश्ता जॉर्ज सोरोस तक नजर आ रहा है।
मित्रों, सच्चाई जानना चाहिए । परंतु अधूरी सच्चाई को कभी सुनना भी नहीं चाहिए।
आप जानते ही हैं कि पिछड़ी जाति के सम्राट महापद्मनंद को सत्ता से हटाने के लिए आचार्य चाणक्य ने संकल्प लिया था।
वे ब्राह्मण जाति के एक शिक्षक ने ही राष्ट्रीय हित में मौर्य वंश की स्थापना की थी । ऐसी घटनाओं को तथा कथित विद्वान अपने विचार विमर्श में कभी नहीं शामिल करते हैं।
वास्तव में जर्जर हो रहे मौर्य साम्राज्य के लिए योग्य शासक के शासन की स्थापना मात्र से संबंधित राजनीतिक मामला था ।
मौर्य वंश के अंत होने के कारणों की निष्पक्ष पड़ताल से पता चलता है कि सेना पति पुष्यमित्र शुंग ने राष्ट्रहित में ब्रहद्रथ की हत्या की थी।
दिव्यवदान में कुछ भी लिखा हो इसे हू ब हू स्वीकार करना समकालीन परिस्थितियों के अवलोकन के बाद उचित नहीं लगता।
मेरे विचार से मौर्य वंश के अंतिम राजा को सत्ता से इस कारण नहीं हटाया गया कि वह दलित था। बल्कि उसे इसलिए हटाया गया क्योंकि वह अपने राज्य के संचालन के दायित्व को निभाने में असफल था।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ब्रहद्रथ बेहद विद्वान और मानवतावादी राजा था।
उसने स्वयं बुद्ध के निवृत्ति मार्ग को प्रबलता से स्वीकार किया था।
परंतु राजा के और भी धर्म होते हैं। राजा के रूप में राजधर्म का पालन करना राजा की नैतिक जिम्मेदारी होती है।
इस अवधि में ग्रीक राजा डेमोट्रीयस के मन में मगध की सत्ता के पर अधिकार जमाने की भावना बलवती हो रही थी ।
ब्रहद्रथ ने ग्रीक राजा की योजनाओं की जानकारी को गुप्तचर सूचनाओं से मिलने के बावजूद अनदेखा किया था।
जिससे राष्ट्रभक्त सेना पति पुष्यमित्र शुंग ब्रहदत्त से असहमत थे।
ग्रीक राजा के षड्यंत्र को रोकने में उदासीनता से दुखी सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या कर दी थी । इस संबंध में इतिहासकार डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर लिखा है कि - "शुंग ने ब्रहद्रथ को धोखे से नहीं बल्कि राष्ट्र हित में जानबूझकर मारा था।"
5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है कि बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।
सोशल मीडिया एवं युटुब पर ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जा सकतें हैं कि - "पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर ब्राह्मण शासक था जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या में स्थापित कर दी थी।
बृहदत्त एक अति आध्यात्मिक एवं प्रशासनिक रूप से अकर्मण्य शासक था। जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है।
सेना पति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। जिनका उद्देश्य, केवल भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है।
राजा से डेमोट्रीयस की महत्वाकांक्षा के संबंध में पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कहा था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे. अभी कुछ करने की जरूरत नहीं है.!"
राष्ट्र के प्रति सम्मान रखने वाले सेनापति पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई।
उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले।
बौद्ध भिक्षुओं ने शुंग के समक्ष यह स्वीकार किया कि - यवन सैनिकों ने उन्हें बौद्ध बन जाने का आश्वासन दिया था। इस कारण यमन सैनिकों को बौद्ध मठ में हमने आश्रय दिया।
भिक्षुओं की इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बौद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दिया।
जो बौद्ध भिक्षु मारे गए थे वे भिक्षुओं के वेष में वे यूनानी सैनिक ही थे।
इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर निकलना का आदेश दे दिया।
पुष्यमित्र को यह अपमान जवानों से मौर्य साम्राज्य की रक्षा के लिए सहना पड़ा ।
एक दिन सेना पति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजधानी से बाहर आखेट के दौरान मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहा सुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया
स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर सत्ता पर अधिकार जमा लिया।
इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियस अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था ।
पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियस और उसकी यूनानी सेना पर अचानक हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।
इसके पश्चात पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी , वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी। जिसे तब भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।
पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया । ये यज्ञ महान व्याकरण आचार्य पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपन्न कराए थे।
पुष्यमित्र शुंग यज्ञ के माध्यम से विदेशियों को भारत से हटाना चाहते थे। अश्वमेध यज्ञ के दौरान एक युद्ध में समकालीन अखंड भारत के पंजाब क्षेत्र में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ था।
पुष्यमित्र शुंग के जातिवादी होने का आरोप लगाने वाले लोगों ने फाह्यान के संबंध में कुछ कम पढ़ा है।
पांचवी शताब्दी में पुष्यमित्र शुंग के बाद चीनी यात्री फाह्यान ने बुद्धिस्म के अस्तित्व पर जो विचार रखे हैं वह आप सब जानते हैं।
फ़ाह्यान वैशाली में स्थित हीनयान और महायान संप्रदायों के मठों का जिक्र किया है।
फ़ाह्यान ने अपनी किताब में धर्म आधारित अथवा जाति आधारित संघर्ष का वर्णन नहीं किया है।
फिर भी यदि ऐसे कुछ प्रमाण कमिटेड विद्वान प्रस्तुत करते हैं तो उनके बौद्धिक श्रम महत्वपूर्ण हो सकता है।
राष्ट्र के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन केवल भ्रमित बौद्ध साधुओं को बंदी गृहों में रखा था.. न कि सभी बौद्ध भिक्षुकों को किसी भी तरह की यंत्रणा दी गई थी।
साथ ही यह कहना युक्ति संगत हो सकता है कि पुष्यमित्र शुंग ने उन मठों को नेस्तनाबूद किया हो जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही होगी।
अगर पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धम्म समाप्त करना ही होता तो वह अपनी 36 वर्षीय कार्यकाल में ही कर देता। अपने राष्ट्र धर्म को निभाते हुए सांची और भरहुत के स्तूपों का जीर्णोद्धार कराया गया तथा पुष्यमित्र शुंग ने स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से उनके इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री वाल बनवाईं थीं।
शुंग वंश के काल में कर्म फल वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई।
शुद्ध मनुस्मृति भी इसी काल में लिपिबद्ध की गई थी।
आप सब जानते हैं कि पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ ।
सॉन्ग डायनेस्टी के मंत्री कण्व ने देवभूति की हत्या कर दी थी ।
पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ अर की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है। यह तो एक राजनीतिक घटनाक्रम है।
ब्रहद्रथ के शासन काल में समूचा भारत आंतरिक कलह और अराजकता का शिकार हो चुका था ।
पुष्यमित्र शुंग ने संपूर्ण भारत को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से कमजोर शासक की हत्या की थी।
आज की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता अगर किसी से सहमत नहीं है तो उसे अपने वोट से वंचित कर देती है। और उसे सत्ता से अलग कर देती है।
शुंग जन्म से एक ब्राह्मण था, लेकिन सेना पति था । शुंग के ब्राह्मण होने पर भी विभिन्न मत है। इतिहासकार इस पर एक राय नहीं है। जब यह स्थिति है तो ब्राह्मणों के प्रति दुराग्रह की भावना फैलाने वाले तथा कथित विद्वान ऐसा क्यों कर रहे हैं ? यह गंभीर विचारणीय विषय है।
सनातनी वर्ण व्यवस्था के अनुसार सामाजिक व्यवस्था के संचालन हेतु रक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाला क्षत्रिय ही होता था । तदनुनुसार पुष्यमित्र शुंग एक क्षत्रिय था।
वामन मेश्राम भोली भाली जनता को यह समझाते हैं , कि पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अगर ऐसा हुआ होता तो शुंग डायनेस्टी के समाप्त होने के बावजूद कई शताब्दी तक बौद्ध धम्म भारत में फलता फूलता रहा।
वामन मेश्राम कभी भी सांस्कृतिक निरंतरता पर विचार नहीं करते।
न ही वे मुस्लिम आक्रांताओं के बल पूर्वक पथ परिवर्तन के प्रयासों पर भी टिप्पणी नहीं करते। वे मिहिर कुल के मामले में भी शांत है। जिसने बौद्ध धम्म को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।
वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने से पहले 370 ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था.
यद्यपि इतिहास में हेर फेर करके मनपसंद मंतव्य स्थापित करने वालों की कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी खोलने लगे हैं।
इस विचार को आपके समक्ष रखने का उद्देश्य “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है । हम चाहते हैं कि किसी खास एजेंडे को स्थापित करने वाले नजरिये का समापन हो।
मौर्य डायनेस्टी के अंतिम शासक ब्रहद्रथ को उसके ही सेना पति ने मार कर सत्ता पर अधिकार प्राप्त किया था।
मोनार्की में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। परंतु हम इस घटना विशेष पर चर्चा क्यों कर रहे हैं?
श्रोताओं, इसका कारण यह है कि - कुछ लोग भारत में जनता को आपस में उलझा कर अपने राजनैतिक, एवं सामाजिक दब दबे को कायम करना चाहते हैं ।
ऐसा लगता है कि इन तथा कथित विद्वानों ने, सामाजिक विघटन का संकल्प लिया है।
इन लोगों का दावा है कि -" एक ब्राह्मण व्यक्ति द्वारा मौर्य - साम्राज्य के प्रतापी राजा ब्रहद्रथ की हत्या कर सत्ता पर हासिल की थी ।
ब्रहद्रथ मौर्य वंश से था जो निचली जाति का थी, इसी कारण उसकी एक ब्राह्मण ने हत्या कर दी ।
नव प्राचीन इतिहास से ऐसे उदाहरण देते हुए वामपंथी और प्रगतिशील लेखकों , इतिहास करो तथा नव बौद्ध समूहों द्वारा ऐसे ही मंतव्य स्थापित हैं। यह कार्य भारत को खंड-खंड करने की कोशिश ही तो है। वर्तमान में तो इसका सीधा रिश्ता जॉर्ज सोरोस तक नजर आ रहा है।
मित्रों, सच्चाई जानना चाहिए । परंतु अधूरी सच्चाई को कभी सुनना भी नहीं चाहिए।
आप जानते ही हैं कि पिछड़ी जाति के सम्राट महापद्मनंद को सत्ता से हटाने के लिए आचार्य चाणक्य ने संकल्प लिया था।
वे ब्राह्मण जाति के एक शिक्षक ने ही राष्ट्रीय हित में मौर्य वंश की स्थापना की थी । ऐसी घटनाओं को तथा कथित विद्वान अपने विचार विमर्श में कभी नहीं शामिल करते हैं।
वास्तव में जर्जर हो रहे मौर्य साम्राज्य के लिए योग्य शासक के शासन की स्थापना मात्र से संबंधित राजनीतिक मामला था ।
मौर्य वंश के अंत होने के कारणों की निष्पक्ष पड़ताल से पता चलता है कि सेना पति पुष्यमित्र शुंग ने राष्ट्रहित में ब्रहद्रथ की हत्या की थी।
दिव्यवदान में कुछ भी लिखा हो इसे हू ब हू स्वीकार करना समकालीन परिस्थितियों के अवलोकन के बाद उचित नहीं लगता।
मेरे विचार से मौर्य वंश के अंतिम राजा को सत्ता से इस कारण नहीं हटाया गया कि वह दलित था। बल्कि उसे इसलिए हटाया गया क्योंकि वह अपने राज्य के संचालन के दायित्व को निभाने में असफल था।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ब्रहद्रथ बेहद विद्वान और मानवतावादी राजा था।
उसने स्वयं बुद्ध के निवृत्ति मार्ग को प्रबलता से स्वीकार किया था।
परंतु राजा के और भी धर्म होते हैं। राजा के रूप में राजधर्म का पालन करना राजा की नैतिक जिम्मेदारी होती है।
इस अवधि में ग्रीक राजा डेमोट्रीयस के मन में मगध की सत्ता के पर अधिकार जमाने की भावना बलवती हो रही थी ।
ब्रहद्रथ ने ग्रीक राजा की योजनाओं की जानकारी को गुप्तचर सूचनाओं से मिलने के बावजूद अनदेखा किया था।
जिससे राष्ट्रभक्त सेना पति पुष्यमित्र शुंग ब्रहदत्त से असहमत थे।
ग्रीक राजा के षड्यंत्र को रोकने में उदासीनता से दुखी सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या कर दी थी । इस संबंध में इतिहासकार डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर लिखा है कि - "शुंग ने ब्रहद्रथ को धोखे से नहीं बल्कि राष्ट्र हित में जानबूझकर मारा था।"
5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है कि बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।
सोशल मीडिया एवं युटुब पर ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जा सकतें हैं कि - "पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर ब्राह्मण शासक था जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या में स्थापित कर दी थी।
बृहदत्त एक अति आध्यात्मिक एवं प्रशासनिक रूप से अकर्मण्य शासक था। जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है।
सेना पति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। जिनका उद्देश्य, केवल भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है।
राजा से डेमोट्रीयस की महत्वाकांक्षा के संबंध में पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कहा था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे. अभी कुछ करने की जरूरत नहीं है.!"
राष्ट्र के प्रति सम्मान रखने वाले सेनापति पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई।
उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले।
बौद्ध भिक्षुओं ने शुंग के समक्ष यह स्वीकार किया कि - यवन सैनिकों ने उन्हें बौद्ध बन जाने का आश्वासन दिया था। इस कारण यमन सैनिकों को बौद्ध मठ में हमने आश्रय दिया।
भिक्षुओं की इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बौद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दिया।
जो बौद्ध भिक्षु मारे गए थे वे भिक्षुओं के वेष में वे यूनानी सैनिक ही थे।
इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर निकलना का आदेश दे दिया।
पुष्यमित्र को यह अपमान जवानों से मौर्य साम्राज्य की रक्षा के लिए सहना पड़ा ।
एक दिन सेना पति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजधानी से बाहर आखेट के दौरान मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहा सुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया
स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर सत्ता पर अधिकार जमा लिया।
इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियस अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था ।
पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियस और उसकी यूनानी सेना पर अचानक हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।
इसके पश्चात पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी , वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी। जिसे तब भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।
पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया । ये यज्ञ महान व्याकरण आचार्य पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपन्न कराए थे।
पुष्यमित्र शुंग यज्ञ के माध्यम से विदेशियों को भारत से हटाना चाहते थे। अश्वमेध यज्ञ के दौरान एक युद्ध में समकालीन अखंड भारत के पंजाब क्षेत्र में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ था।
पुष्यमित्र शुंग के जातिवादी होने का आरोप लगाने वाले लोगों ने फाह्यान के संबंध में कुछ कम पढ़ा है।
पांचवी शताब्दी में पुष्यमित्र शुंग के बाद चीनी यात्री फाह्यान ने बुद्धिस्म के अस्तित्व पर जो विचार रखे हैं वह आप सब जानते हैं।
फ़ाह्यान वैशाली में स्थित हीनयान और महायान संप्रदायों के मठों का जिक्र किया है।
फ़ाह्यान ने अपनी किताब में धर्म आधारित अथवा जाति आधारित संघर्ष का वर्णन नहीं किया है।
फिर भी यदि ऐसे कुछ प्रमाण कमिटेड विद्वान प्रस्तुत करते हैं तो उनके बौद्धिक श्रम महत्वपूर्ण हो सकता है।
राष्ट्र के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन केवल भ्रमित बौद्ध साधुओं को बंदी गृहों में रखा था.. न कि सभी बौद्ध भिक्षुकों को किसी भी तरह की यंत्रणा दी गई थी।
साथ ही यह कहना युक्ति संगत हो सकता है कि पुष्यमित्र शुंग ने उन मठों को नेस्तनाबूद किया हो जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही होगी।
अगर पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धम्म समाप्त करना ही होता तो वह अपनी 36 वर्षीय कार्यकाल में ही कर देता। अपने राष्ट्र धर्म को निभाते हुए सांची और भरहुत के स्तूपों का जीर्णोद्धार कराया गया तथा पुष्यमित्र शुंग ने स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से उनके इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री वाल बनवाईं थीं।
शुंग वंश के काल में कर्म फल वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई।
शुद्ध मनुस्मृति भी इसी काल में लिपिबद्ध की गई थी।
आप सब जानते हैं कि पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ ।
सॉन्ग डायनेस्टी के मंत्री कण्व ने देवभूति की हत्या कर दी थी ।
पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ अर की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है। यह तो एक राजनीतिक घटनाक्रम है।
ब्रहद्रथ के शासन काल में समूचा भारत आंतरिक कलह और अराजकता का शिकार हो चुका था ।
पुष्यमित्र शुंग ने संपूर्ण भारत को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से कमजोर शासक की हत्या की थी।
आज की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता अगर किसी से सहमत नहीं है तो उसे अपने वोट से वंचित कर देती है। और उसे सत्ता से अलग कर देती है।
शुंग जन्म से एक ब्राह्मण था, लेकिन सेना पति था । शुंग के ब्राह्मण होने पर भी विभिन्न मत है। इतिहासकार इस पर एक राय नहीं है। जब यह स्थिति है तो ब्राह्मणों के प्रति दुराग्रह की भावना फैलाने वाले तथा कथित विद्वान ऐसा क्यों कर रहे हैं ? यह गंभीर विचारणीय विषय है।
सनातनी वर्ण व्यवस्था के अनुसार सामाजिक व्यवस्था के संचालन हेतु रक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाला क्षत्रिय ही होता था । तदनुनुसार पुष्यमित्र शुंग एक क्षत्रिय था।
वामन मेश्राम भोली भाली जनता को यह समझाते हैं , कि पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अगर ऐसा हुआ होता तो शुंग डायनेस्टी के समाप्त होने के बावजूद कई शताब्दी तक बौद्ध धम्म भारत में फलता फूलता रहा।
वामन मेश्राम कभी भी सांस्कृतिक निरंतरता पर विचार नहीं करते।
न ही वे मुस्लिम आक्रांताओं के बल पूर्वक पथ परिवर्तन के प्रयासों पर भी टिप्पणी नहीं करते। वे मिहिर कुल के मामले में भी शांत है। जिसने बौद्ध धम्म को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।
वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने से पहले 370 ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था.
यद्यपि इतिहास में हेर फेर करके मनपसंद मंतव्य स्थापित करने वालों की कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी खोलने लगे हैं।
इस विचार को आपके समक्ष रखने का उद्देश्य “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है । हम चाहते हैं कि किसी खास एजेंडे को स्थापित करने वाले नजरिये का समापन हो।