16.1.21

एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार क्या सचमुच हुई फिशिंग का शिकार ?

NDTV  की पत्रकार निधि राजदान इन दिनों चर्चा में है। यदि वर्तमान में एनडीटीवी की भूतपूर्व पत्रकार कहा जाना ज्यादा उपयुक्त होगा क्योंकि निधि ने 2020 में ही एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया। 43 वर्ष की उम्र में एक शानदार स्टेटस पाने के बाद अचानक एनडीटीवी को छोड़ना विचारणीय मुद्दा तो था लेकिन कोविड-19 की आपाधापी में यह मुद्दा गंभीरता से नोटिस नहीं किया गया। बीबीसी से लेकर तमाम मीडिया चैनल्स जहां एक और निधि राजदान को फिशिंग का विक्टिम मान रहे हैं वहीं दूसरी ओर आज निधि ट्रोलिंग के मामले में सबसे बड़ी शिकार साबित हुई है। ऑप इंडिया चैनल वाले अजीत भारती हो या यूट्यूब पर लाइव चैनल चलाने वाले वन मैन प्रोड्यूसर है सभी ने अपनी अपनी भड़ास निकाली। 
   निधि राजदान के बारे में एक वीडियो यह भी आया कि उनके द्वारा पहले झूठ बोला गया और अब जब सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रही हैं साथ ही हावर्ड यूनिवर्सिटी से इनके विरुद्ध लीगल एक्शन की तैयारी हो रही है तो  निधि स्वयं को विक्टिम साबित करने की कोशिश कर रही हैं। जहां तक मेरा मानना है के निधि राजदान ने विषय को गंभीरता से समझे बिना कथित ईमेल का परीक्षण किए बिना शेखी बघारने के चक्कर में खुद को इस मामले में उलझा लिया है। मित्रों जब भी आपको आप को लुभावने मेल मिलें तो हमें सबसे पहले उस ई-मेल  का आईपी ऐड्रेस ऑनलाइन चेक कर लेना चाहिए चाहे आप तकनीकी के कितने भी कच्चे खिलाड़ी हैं आपको आईपी एड्रेस चेक करने वाली सैकड़ों वेबसाइट इस दिशा में मदद कर सकती हैं। दैनिक जीवन में ई संदेशों का आना-जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है 2006  में जब मैं इंटरनेट से जुड़ा था तब ही मुझे इस बात का ज्ञान हो चुका था कि किसी भी तरह की धोखेबाजी से बचने के लिए सबसे पहले हमें किसी भी लिंक वेबसाइट ई-मेल के आईपी एड्रेस को चेक कर लेना चाहिए।
कोशिश यही कर लेनी चाहिए कि इस तरह के लुभावने संदेशों पर प्रथम दृष्टया विश्वास न किया जाए।

15.1.21

नेशनल न्यूज़ पर दहाड़ा जबलपुर का शेर

न्यू्ज नेशन से साभार
        आज मकर संक्रांति के दिन न्यूज नेशन राष्ट्रीय चैनल पर "N.C.E.R.T. की 12वीं की इतिहास की पुस्तक में षड्यंत्र पूर्वक शामिल किए गए तथ्य जिसमें मुगलों को मंदिरों के विनाशक के साथ पुनर्निर्माण कर्ता बताया गया है" विषय पर एक डिबेट का आयोजन किया गया । इस डिबेट मेंं एम यू के फिरोज साहब वामपंथी प्रोफेसर सतीश प्रकाश, प्रोफेसर बद्रीनारायण  मौलाना  अली कादरी  प्रोफ़ेसर संगीत रागी , शुबही खान प्रोफेसर बद्रीनारायण के साथ जबलपुुुर प्रोफेसर डॉ आनंद राणा ने भी हिस्सा लिया। बहस  के मुद्दे पर केवल सतीश प्रकाश को छोड़कर सभी नियंत्रित रहे । 

   वर्तमान में भारत के इतिहास को लेकर एक लंबी बहस छिड़ चुकी है। देश में यह स्वीकार आ गया कि आजादी के बाद जब इतिहास लिखने की बात आई तो तत्सम कालीन नीति नियंताओं इस भय से कि भविष्य में कहीं  धर्म एवं संप्रदाय को मानने वालों  के बीच में वैमनस्यता पैदा ना हो ऐसा इतिहास लिखा जाए। इस बिंदु पर जाकर मेरा मस्तिष्क अचानक बुद्धिहीनता पर चकित हो जाता है। मित्रों जैसे ही पत्रकार दीपक चौरसिया ने जो देश की बहस को संचालित कर रहे थे डॉ आनंद राणा को कनेक्ट किया आनंद राणा ने बतौर साक्ष्य प्रभाव कारी वक्तव्य में बताया कि मुगलों ने खास तौर पर औरंगजेब ने तो कभी भी उज्जैन के महाकाल की पूजा के लिए संसाधन या धन उपलब्ध नहीं कराया। एनसीईआरटी पुस्तकों में इस संबंध में जो भी लिखा है गलत है । महाकाल के पुजारी ने भी इस बात की पुष्टि कि आक्रांताओं से बचाव के उद्देश्य से महाकाल की प्रतिमा को गुफा में सुरक्षित कर दिया गया था। मित्रों सभी जानते हैं कि 16 अप्रैल 1669 को बाकायदा मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिया था। और वर्तमान में एनसीईआरटी की किताबों में अगर यह पढ़ाया जाता है कि औरंगजेब ने मंदिरों के प्रबंधन के लिए खास इंतजाम किए थे कुल मिलाकर यह झूठ है और इस झूठ को ज्ञान के हित में केवल किताबों से विलोपित कर देना चाहिए बल्कि ऐसी किताब लिखने वालों की किताबें ही प्रतिबंधित कर देनी चाहिए। पूरी बहस में जहां एक ओर मुस्लिम मत को मानने वाले औरंगजेब के कृत्य से असहमत थे वही  कुतर्क का पुलिंदा किए हुए प्रोफेसर सतीश प्रकाश उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी को भी नकार रहे थे ।  आयातित विचारधारा  मानने वाले और  अपने ही एजेंडे  को आगे रखने वाले प्रोफेसर सतीश प्रकाश को बेनकाब होता देख आश्चर्यचकित नहीं हूं बल्कि जबलपुर के शेर आनंद राणा की जबरदस्त अभिव्यक्ति के प्रति प्रफुल्लित अवश्य हूं।

 

12.1.21

बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड यू के फ़ॉर पोट्रेट में शामिल हुई स्वामी विवेकानंद की 8 हज़ार वर्ग फ़ीट अनाजों से बनी रंगोली

ग्रामीण कलाकार सतीश गुर्जर ग्राम कुकराबद जिला हरदा  एक ऐसे लोग कलाकार हैं जो अनाज का उपयोग कर विशालकाय पोट्रेट बनाते हैं। विगत सप्ताह उन्होंने अपनी 60 सदस्यीय टीम के साथ स्वामी विवेकानंद की तस्वीर रंगोली के माध्यम से हरदा डिग्री कॉलेज कंपाउंड में बनाई। इस कलाकृति के निर्माण में टीम को 3 दिन लगे। बनाई गई कृति में लगभग 50 क्विंटल अनाज का उपयोग किया गया। प्रत्यक्षदर्शी श्रीमती शुभा पारे एवं श्री राजेन्द्र गुहे बताया कि इस अनाज से बनी रंगोली को देखने विवेकानंद जयंती यानी आज 12 जनवरी 2021 से 13 जनवरी 2021 तक का समय निर्धारित है।  बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड फ़ॉर पोट्रेट यू के  में अब तक इस श्रेणी में 8000 वर्ग फीट की कृति नहीं बनी थी जिसे श्री सतीश गुर्जर एवं उनके साथियों ने बनाया। कलेक्टर हरदा तथा हरदा की विधायक उद्घाटन के मौके पर विशेष रूप से उपस्थित रहे हैं।
इस कलाकृति में 10 सदस्य के रूप में
बिल्लोरे परिवार की की एक बेटी का नाम भी दर्ज हो गया है ।   नार्मदीय ब्राह्मण समाज  की बिटिया कु. सलोनी बिल्लौरे  टिमरनी पिता स्व. श्री कृष्ण कांत बिल्लौरे निवासी टिमरनी भी इस में सदस्य के रूप में सम्मिलित है।

10.1.21

कन्फ्यूज़्ड बचपन (हास्य व्यंग्य)

*1960 से 1980 तक जन्मे*
इस श्रेणी के बच्चे कन्फ्यूजन की सीमाओं से आगे तक कन्फ्यूज़ड थे। पिटने के बाद पता चलता था कि हम क्यों पीटे गए थे । हमारे गाल पिटते पिटते *गलवान* तथा पीठ  पिटते पिटते *शक्ति पीठ* बन गईं हैं ।
हमाये शरीर मैं भगवान ने सुनने के लिए कान दिए हैं। लेकिन हमारे पेरेंट्स ने इन्हें दवा दबाकर विकासशील बना दिया है अभी तक पूर्ण विकसित नहीं हो पाए हैं।
गदेलियां तो मास्साब ने छड़ी पड़े छम छम विद्या एक घमघम  के सूत्र वाक्य को प्रूफ करने में प्रयोग में लाई गई । हम 1960 से लेकर 1980 तक की पैदाइशें पप्पू गुड्डू टिंकू मुन्ना छोटे गुड्डू बड़े गुड्डू छोटा पप्पू बड़ा पप्पू आदि नाम से अलंकृत हो जाते थे । 
  कई बार तो भ्रम होता था हम मनुष्य प्रजाति में हैं या गधा प्रजाति के प्राणी है क्योंकि जिसे देखो वह हमें गधा घोषित करने पर पूरी ताकत लगा देता था।
    हमारे दौर में ट्यूशन सिर्फ गधे बच्चे पढ़ने जाते थे। अपने आप को होशियार बताने के चक्कर में 19 का पहाड़ा आज तक याद नहीं कर पाए पर रट्टा बकायदा मारा करते थे।
  हमारी एक बुआ जी थी उन्हें तो ऐलान कर दिया था कि पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो इसकी शादी भैंस से कर देंगे । अब भैंस से शादी ना हो इस डर से रट्टा जोर से मारते थे । 
  कंचा भंवरा गपनी  और बेवजह आवारागर्दी करते अगर बाबूजी ने देख लिया तो समझो कयामत का दिन वही था। बाद में जाकर पता चला कि कयामत का दिन इतनी जल्दी नहीं आने वाला। कयामत का दिन अल्लाह ताला डिसाइड करेंगे। असलम ने बताया था तब फिर अपन थोड़ा निडर होने लगे।
   हम क्या देखेंगे क्या नहीं देखेंगे हमें क्या करना है हमें क्या खाना है इसका डिसीजन हमें नहीं करना चाहिए यह हमें सख्त हिदायत थी। फिर भी हमने बड़े भाई साहब कहानी को बड़े ध्यान से पढ़ा अरे हां वही कहानी जिसमें बड़े भाई साहब बाद में कनकव्वा उड़ाने चल पड़ते हैं। कहानी पढ़ने के बाद हमने महसूस किया कि हमसे ज्यादा कष्ट तो हमारे पूर्वज भोग चुके हैं हो सकता है हमारे मां-बाप भी यही भोग चुके हैं तभी तो ऐसी रिवायत चली आ रही है...!
और फिर हम शांत हो जाते । रईसजादों से दोस्ती करना वर्जित विषय था। हां मध्यमवर्गीय और हमसे लोअर क्लास के बच्चों से मित्रता में कोई रुकावट की योजना नहीं थी । और यहीं से शुरू होता है समाज की प्रगतिशील का आरंभ क्योंकि जातिभेद से परे ले जाता यह दृष्टिकोण माता पिता की आदर्श भावना को परिभाषित करता था। उनका यह कहना होता था कि बाहर से जब घर आओ तो हाथ पैर अवश्य धो लिया करो।
 आठवीं क्लास में जाकर फुल पैंट नसीब हुई उसकी वजह थी की फुल पैंट बनवाने में ज्यादा खर्च लगता है। फुल पेंट से याद आया कि गुप्ता जी के बच्चे बिल्लोरे जी के बच्चे शुक्ला जी के बच्चे जैन साहब के बच्चे अलग अलग पहचान में आ जाते थे।  शर्ट के मामले में तो कम से कम यह कहा जा सकता था कि -" लगता है बच्चों को थान पर लिटा कर बापू जी ने दर्जी से कपड़ा कटवा दिया।
 पेंट तो सामान्यतः काली या डार्क कलर की होती थी और शर्ट जिसे बुश शर्ट कहते थे वह हर परिवार के अलग-अलग रंग के रहते थे। गुप्ता जी के बच्चे स्लेटी कलर के कपड़े पहनते थे तो बाकी अन्य बच्चों के रोज पहने जाने वाले कपड़े अलग-अलग रंगों के परिवार के मुखिया के डिसीजन पर आधारित से हुआ करते थे। 
        कल ही इंजीनियर वरिष्ठ मित्र संजय त्रिपाठी बता रहे थे पिताजी कपड़ों को ढीला बनवाते थे और अगर दादाजी आ गए तो कुछ ढीला और करवा देते थे खास तौर पर शर्ट की बाहें पेंट की कमर पेंट की लंबाई आदि आदि। अब फुल साइज की लंबे बाहों का उपयोग बांह ढांकने के लिए तो होता ही था, पर सर्दियों में बड़ी लाभकारी सिद्ध होती थी । अब आप समझदार हैं रुमाल तो तब हुआ नहीं करते थे वैकल्पिक रुमाल के रूप में आस्तीन से बेहतर और क्या हो सकता था ?
  मजेदार बात यह हुई की एक हुनरमंद टेलर ने हमसे हमारी पुरानी हाफ पेंट मंगाई मामला गोसलपुर का है। एक पेंट का पीछे वाला हिस्सा खराब था जिसे आप दक्षिणावर्त्य कह सकते हैं वैसे हम उसे अपनी सुविधा के लिए अंग्रेजी में साउथ एवेन्यू मॉल कहते हैं। 
  तो सुनिए उस कलाकार टेलर मास्टर ने दोनों पेंट के बेकार हिस्सों को अलग अलग कर दिया और सुरक्षित बचे हिस्सों को एक साथ जोड़ दिया और यह कपड़ों के मामले में मेरी जिंदगी का अनूठा इन्वेंशन था। और जब मित्रों ने पूछा है ऐसा क्यों..!
हमने बता दिया यह फैशन आने वाली है और हमारे टेलर मास्टर ने बताया है कि भविष्य में राजेश खन्ना ऐसे ही कपड़ों में नजर आएंगे। बात आई गई हो गई ना तो राजेश खन्ना उस तरह की पैंट पहन कर आए ना ही पेंटल जूनियर महमूद ने कभी दो रंग वाली वैसी पैंट पहनी। टेलर मास्टर का इन्वेंशन उसी डिजाइन के बाद समाधि में विलीन हो गई।
        उस समय बच्चे जूते नहीं पहनते थे। उन दिनों केवल में दो  आर्थिक स्तर होते थे एक गरीब और एक अमीर । इस तरह बच्चे भी दो भाग में विभक्त थे ।
    गरीब बच्चे सामान्य स्लीपर जिसे आप हवाई चप्पल कहते हैं कहते हैं और जिनके मां बाप थोड़ा आर्थिक स्थिति से मजबूत थे उनके बच्चे करोना या बाटा के स्लीपर पहनते थे। घड़ी तो घर में दो थी एक अलार्म घड़ी जो रेडियो के ऊपर रखी रहती थी ।  दूसरी रिस्टवाच जो हमारे पिताजी के हाथ में जो शायद किसी को बाद में देनी पड़ी थी। परिवार की ही एक सदस्या ने भैया से कहा था- तुम्हारे तो #फादरअली के पास भी टाइम पास नहीं है । उस दिन बाबूजी , बाबू जी से फादरअली हो गए शब्द तो मजेदार था लेकिन जिस मुंह ने उसे व्यक्त किया  वह मुंह मसूर की दाल की भी काबिल नहीं है । जुबान से निकली बात न वो वापस ग्रहण कर पाई और ना हमने ऐसा होने दिया।उस दिन हमने तय कर लिया था कि अब हम वह हासिल करेंगे जो तुम यानी अपमानित करने वाले लोग जिंदगी भर हासिल नहीं कर सकते। 
    तब हमें पता चला की जिंदगी में किसी भी तरह का कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए।
कुछ बड़ा होने पर एक शब्द गूंजता था पार्थ युद्ध करो जीवन का हर पल युद्ध है, जीवन युद्ध है जो दुनिया रूपी इस कुरुक्षेत्र से होता रहता है  किससे कोई नहीं बचता। जीवन के इस कुरुक्षेत्र में वही विजेता होता है जो अहर्निश युद्ध करता है ऐसा युद्ध जो रक्त नहीं बहाता परंतु युद्ध रत पार्थों का जीवन उजला बनाता है। 
     
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

9.1.21

अंग्रेज़ भारत से क्यों भागे.? लेखक :- श्रीमन प्रशांत पोळ

 

*मुंबई का नौसेना आंदोलन* 
-   प्रशांत पोळ 
द्वितीय विश्वयुध्द के बाद की परिस्थिति सभी के लिए कठिन थी. ब्रिटन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल भारत को स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं थे. वे अपनी युवावस्था में भारत में रह चुके थे. ब्रिटीश आर्मी में सेकेंड लेफ्टिनंट के नाते वे मुंबई, बंगलोर, कलकत्ता, हैदराबाद आदि स्थानों तैनात थे. नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में उन्होंने अफगान पठानों के विरोध में युद्ध भी लडा था. १८९६ और १८९७ ये दो वर्ष उन्होंने भारत में गुजारे. भारत की समृद्धि, यहां के राजे - रजवाडे, यहां के लोगों का स्वभाव… यह सब उन्होंने देखा था. यह देखकर उन्हें लगता था कि अंग्रेज भारत पर राज करने के लिये ही पैदा हुए हैं. इसलिये द्वितीय विश्वयुद्ध के समय विंस्टन चर्चिल की ओर से सर स्टेफोर्ड किप्स को भारतियों का सहयोग प्राप्त करने के लिए भारत भेजा गया. इस क्रिप्स मिशन ने भारतीय नेताओं को यह आश्वासन दिया गया की युद्ध समाप्त होते ही भारत को सीमित स्वतंत्रता दी जाएगी. 

इस आश्वासन को देने के बाद भी चर्चिल, भारत से अंग्रेजी सत्ता को निकालना नहीं चाहते थे. किंतू २६ जुलाई १९४५ में, ब्रिटन में आम चुनाव हुए और इस चुनाव में चर्चिल की पार्टी परास्त हुई. क्लेमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी चुनाव जीत गई. 

*लेबर पार्टी ने भी चुनाव जीतने के पश्चात भारत को स्वतंत्रता देने की घोषणा नहीं की. किंतू २६ जुलाई १९४५ और १८ जुलाई १९४७ (जब स्वतंत्र भारत के बिल को ब्रिटन की संसद ने और राजघराने ने स्वीकृति दी), इन दो वर्षों में तीन बडी घटनाएँ घटी, जिनके कारण अंग्रेजों को यह निर्णय लेने के लिये बाध्य होना पडा.* 

इनमे से पहली घटना थी, १९४६ के प्रारंभ में ‘शाही वायुसेना’ में ‘विद्रोह’. 

जनवरी १९४६ मे, ‘रॉयल एयर फोर्स’, जो आर ए एफ के नाम से जानी जाती थी, के जवानों ने असंतोष के चलते जो आंदोलन छेड़ा, उसमे वायुसेना के ६० अड्डों (एयर स्टेशन्स) में स्थित ५०,००० लोग शामिल थे.

इस आंदोलन की शुरुआत हुई ब्रह्मरौली, अलाहाबाद से. आंदोलन (हड़ताल) के इस समाचार के मिलतेही, कराची के मौरिपुर एयर स्टेशन के २,१०० वायुसैनिक और कलकत्ता के डमडम एयर स्टेशन के १,२०० जवान इस आंदोलन के साथ जुड़ गए. इसके बाद यह आंदोलन वायुसेना के अन्य अड्डों पर, अर्थात कानपुर, पालम (दिल्ली), विशाखापटनम, पुणे, लाहौर आदि स्थानों पर फैलता गया. कुछ स्थानों पर यह आंदोलन कुछ घंटों में समाप्त हुआ, तो अलाहाबाद, कलकत्ता आदि स्थानों पर इसे समाप्त होने में चार दिन लगे.   

*दूसरी घटना थी फरवरी १९४६ का ‘नौसेना विद्रोह..!’*

घटना के पहले अनेक दिनों से, भारतीय नौसेना में बेचैनी थी. इसके अनेक कारण थे. विश्वयुद्ध समाप्त हुआ था. ब्रिटन की हालत बहुत खराब हो गई थी. आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी. इस कारण अपनी नौकरी रहेगी या नहीं यह शंका नौसेनिकों के मन में आना स्वाभाविक था. अधिकारियों तक यह बात पँहुची भी थी. किंतू ब्रिटिश नौसेना से या ब्रिटिश सरकार से, इस बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिये गए थे. और न हीं कोई टिप्पणी की गई थी. नौसैनिकों के वेतन में असमानता, सुविधाओं का अभाव ये कारण भी थे. लेकिन इससे भी बड़ा कारण था, आजाद हिन्द सेना के अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किले में चल रहा कोर्ट मार्शल. इससे पहले भी ब्रिटिश सेना ने कलकत्ता में आजाद हिन्द सेना के अधिकारियों को मृत्युदंड दिया था. *भारतीय सैनिकों की सहानुभूति आजाद हिन्द सेना के सेनानियों के साथ थी.*   

इस सभी बातों का विस्फोट हुआ १८ फरवरी १९४६ को, मुंबई की ‘गोदी’ में, जब किनारे पर खडी एचएमआईएस (हिज मॅजेस्टिज इंडियन शिप) ‘तलवार’ के नौसैनिकों ने निकृष्ट दर्जे के भोजन और नस्लीय भेदभाव के विरोध में आंदोलन छेड दिया. उस समय नौसेना के २२ जहाज मुंबई बंदरगाह पर खडे थे. उन सभी जहाजों को यह संदेश गया और उन सभी जहाजों पर आंदोलन का शंखनाद हुआ. ब्रिटिश अधिकारियों को उनके बॅरेक्स में बंद कर दिया गया. और नेताजी सुभाषचंद्र बोस का बडा सा चित्र लेकर, हजारों की संख्या में इन नौसैनिकों ने एक ‘केंद्रिय नौसेना आंदोलन समिती’ बनाई और इस आंदोलन की आग फैलने लगी. 

वरिष्ठ पेटी ऑफिसर मदन सिंह और वरिष्ठ सिग्नल मॅन एम एस खान, सर्वानुमती से इस आंदोलन के नेता चुने गए. दूसरे दिन १९ फरवरी को इन नौसैनिकों के समर्थन में मुंबई बंद रही. कराची और मद्रास के नौसैनिकों ने भी आंदोलन में शामिल होने की घोषणा की. ‘केंद्रीय नौसेना आंदोलन समिती’ के द्वारा एक मांगपत्र जारी किया गया, जिसमें प्रमुख मांगें थी : 

_१. इंडियन नॅशनल आर्मी (INA) और अन्य राजनैतिक बंदियों को रिहा किया जाए._
_२. इंडोनेशिया से भारतीय सैनिकों को हटाया जाए._ 
_३. अफसरों के पद पर केवल भारतीय अधिकारी ही रहे. अंग्रेज नहीं._ 

नौसैनिकों का आंदोलन यह सारे ब्रिटिश आस्थापनाओं में, जहां जहां भारतीय सैनिक तैनात थे, वहां फैलने लगा. एडन और बहारीन के भारतीय नौसैनिकों ने भी आंदोलन की घोषणा की. एचएमआईएस तलवार पर उपलब्ध दूरसंचार उपकरणों की सहायता से आंदोलन का यह संदेश सभी नौसैनिक अड्डों पर और जहाजों पर पँहुचाया जा रहा था. 

एचएमआईएस तलवार के कमांडर एफ. एम. किंग ने, इन आंदोलन करने वाले सैनिकों को ‘सन्स ऑफ कुलीज एंज बिचेस’ कहा, जिसने इन आंदोलन की आग में घी डाला. लगभग बीस हजार नौसैनिक कराची, मद्रास, कलकत्ता, मंडपम, विशाखापट्टनम, अंदमान - निकोबार आदि स्थानों से शामिल हुए. 

आंदोलन प्रारंभ होने के दूसरे ही दिन, अर्थात १९ फरवरी को कराची में भी आंदोलन की ज्वालाएं धधक उठी. कराची बंदरगाह मे, मनोरा द्वीप पर ‘एचएमआईएस हिंदुस्तान’ खड़ी थी. आंदोलनकारियों ने उस पर कब्जा कर लिया. बाद में पास में खड़ी ‘एचएमआईएस बहादुर’ इस जलपोत को भी अपने अधिकार में ले लिया. इन जहाजों से अंग्रेज़ अधिकारियों को उतारने के बाद, ये नौसैनिक मनोरा की सड़कों पर अंग्रेजों के विरोध में नारे लगाते हुए घूमने लगे. मनोरा के स्थानिक रहिवासी भी बड़ी संख्या में इस जुलूस में शामिल हो गए. 

वहाँ के स्थानिक आर्मी कमांडर ने, बलूच सैनिकों की एक प्लाटून, इस तथाकथित ‘विद्रोह’ को कुचलने के लिए मैदान में उतारी. परंतु बलूच सैनिकों ने गोली चलाने से इंकार किया. बाद में अंग्रेजों के विश्वासपात्र, गोरखा सैनिकों को इन आंदोलनकारी सैनिकों के सामने लाया गया. लेकिन गोरखा सैनिकों ने भी गोली चलाने से मना किया. 

अंततः संपूर्ण ब्रिटिश सैनिकों की प्लाटून को लाकर, इन आंदोलनकारियों को घेरा गया. ब्रिटिश सैनिकों ने इन आंदोलनकारी सैनिकों पर निर्ममता पूर्वक गोली चलाई. जवाब में नौसैनिकों ने भी गोलीबारी की. लगभग चार घंटे यह युध्द चलता रहा. छह सैनिकों की मृत्यु हुई और तीस घायल हुए. यह समाचार कराची शहर में हवा की गति से फैला. तुरंत श्रमिक संगठनों ने ‘बंद’ की घोषणा की. कराची शहर ठप्प हो गया. शहर के ईदगाह में ३५,००० से ज्यादा लोग इकठ्ठा हुए और अंग्रेजों के विरोध में घोषणाएँ देने लगे. 

इससे पहले भी, १९४५ में कलकत्ता में नौसेना के सैनिकों में असंतोष पनपा था, जिसका कारण था, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ जाने वाले सैनिकों पर किया गया कोर्ट मार्शल. मुंबई के आंदोलन से कुछ पहले, कलकत्ता में ही रशीद अली को मृत्युदंड देने के कारण नौसैनिकों में बेचैनी थी, जो मुंबई आंदोलन के माध्यम से बाहर निकली. 

इन सैनिकों को ‘रेटिंग्स’ (Ratings) कहा जाता था. आंदोलन के दुसरे और तिसरे दिन ये सैनिक पूरी मुंबई में लॉरियों में भरकर घूम रहे थे. रास्ते में जो भी अंग्रेज दिखा, उसे पकडने का भी प्रयास हुआ. *१९ और २० फरवरी को मुंबई, कलकत्ता और कराची पूरी तरह से ठप हुए थे. सब कुछ बंद था. पूरे देश में, अनेक शहरों में छात्रों ने इन नौसैनिकों के समर्थन में कक्षाओं का बहिष्कार किया.*

किनारों पर खड़े कुल ७८ जहाज, नौसेना के २० बडे तल (नौसैनिक अड्डे) और लगभग २० हजार नौसैनिक इस आंदोलन में शामिल थे. 

२२ फरवरी को मुंबई में  यह आंदोलन चरम सीमा तक पँहुचा. मुंबई का कामगार वर्ग, इन नौसैनिकों के समर्थन में आगे आया. पुन: मुंबई बंद हुई. सारे दैनिक व्यवहार ठप्प हुए. लोकल्स को आग लगाई गई. 

जब ब्रिटिश सेना ने, वायुसेना को मुंबई भेजना चाहा, तो अनेक सैनिकों ने मना कर दिया. फिर आर्मी की एक बटालियन को मुंबई में उतारा गया. तीन दिन तक आंदोलन की यह आग फैलती रही. अंग्रेजी शासन ने इन आंदोलनकारी नौसैनिकों से वार्तालाप करने के लिये वल्लभभाई पटेल और जिन्ना से अनुरोध किया. इन दोनों के आश्वासन पर २३ फरवरी १९४६ को, आंदोलन करने वाले नौसैनिकों ने आत्मसमर्पण किया और १८ फरवरी से प्रारंभ हुआ यह नौसेना का आंदोलन शांत हुआ. 

*काँग्रेस और मुस्लिम लीग ने इस आंदोलन का विरोध किया था.* 

इस आंदोलन में ग्यारह नौसैनिक और एक अफसर मारा गया था. सौ से ज्यादा नौसैनिक और ब्रिटिश सोल्जर्स जखमी हुए थे. 

इस आंदोलन के थमने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने इन आंदोलनकारी सैनिकों पर कडाई के साथ कोर्ट मार्शल की कार्यवाही की. ४७६ सैनिकों की ‘पे एंड पेंशन’ समाप्त की. *दुर्भाग्य से, देढ वर्ष के बाद जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब इन निलंबित सैनिकों को भारतीय नौसेना में नहीं लिया गया. इनका अपराध इतना ही था, कि आंदोलन करते समय इन सैनिकों ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के चित्र लहराए थे !*
-   प्रशांत पोळ 
#स्वराज्य@75; #Swarajya@75; #स्वराज्य75 ; #Swarajya75 क्रमश:......

7.1.21

इसरो विज्ञानी तपन मिश्रा और वैज्ञानिकों की सुरक्षा की प्रासंगिकता

इसरो के वैज्ञानिक तपन मिश्रा
ने दावा किया है कि उनको मारने की कोशिश की गई । आप उन स्थितियों को स्मरण कीजिए जब हमारे देश के महान वैज्ञानिक संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए । जी हां स्वर्गीय विक्रम साराभाई जी । आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार ..चार साल में देश के 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत 2009 से 2013 तक कि अवधि में हुई ।
  मित्रो अब सरकार को इन वैज्ञानिकों की सम्पूर्ण सुरक्षा अवश्य ही कर लेनी चाहिए । 
उम्मीद है इस नैरेटिव को एक जुट होकर स्थापित करने की ज़रूरत है । 

4.1.21

देहदान : की उच्चतम अनुकरणीय पहल

जबलपुर की चिंतनधारा शिक्षा, सँस्कृति, सामाजिक-सरोकारों में गहरी रुचि के तत्व मौज़ूद हैं । वे उन लोगों के लिए अत्यंत भावात्मक रूप से संवेदनशील हैं जो त्याग के लिए ततपरता प्रदर्शित करते हैं । श्रीमती अर्चना और श्री विकास खंडेलवाल ने 2021 के पहले दिन देहदान का संकल्प लिया । कलेक्टर जबलपुर श्री शर्मा  ने देहदान करने वाले परिवारों के बीच मनाया !
      नया वर्ष बारह दिन में 15 लोगों ने किया देहदान जबलपुर - नए साल में समाज के लिए कुछ करने के उद्देश्य से जिले में देहदान अभियान के सूत्रधार एवं प्रणेता कलेक्टर  श्री कर्मवीर शर्मा की पहल से प्रेरित होकर जवाहर गंज गढाफाटक  निवासी विकास खंडेलवाल एवं उनकी पत्नी अर्चना खंडेलवाल, द्वारका नगर निवासी पुष्पराज और हाथी ताल निवासी श्रीमती रेखा हिरानी ने अपने परिवार के साथ आज कलेक्टर के समक्ष मरणोपरांत शरीर दान करने का इच्छा पत्र सौपा। 
 जिले में देहदान अभियान के सूत्रधार एवं प्रणेता कलेक्टर कर्मवीर शर्मा की पहल से प्रेरित होकर अब तक 15 लोगों ने देहदान करने की सहमति का फॉर्म भर कर दिया है। जिनमें  श्रीमती अर्चना एवम विकास खंडेलवाल के अलावा  न्यू शास्त्री नगर निवासी पत्रकार अनिल जैन कलेक्टर कार्यालय के चौकीदार राजेश गौड, चेरीताल निवासी श्रीमती सावित्री गुप्ता, शंकर शाह नगर निवासी अनिल मरावी, कांटी बेलखेड़ा निवासी एडवोकेट राकेश दुबे, आदिवासी विकास से रिटायर क्षेत्र संयोजक अरुण कुमार तिवारी, आधारताल निवासी विजय कुमार सेन, जवाहर गंज निवासी सुशील कुमार तिवारी, गोपाल बाग निवासी डी के शर्मा, श्रीमती माधुरी शुक्ला और श्री मधुसूदन शुक्ला शक्ति नगर निवासी के हैं ।
देहदान का संकल्प लेने वाले विकास खंडेलवाल ने कहा की मानव का शरीर जीते जी तो उपयोगी रहता है और मृत्यु के पश्चात शरीर के प्रमुख अंग दूसरों के काम भी आते हैं। श्री खंडेलवाल ने कहा कि कलेक्टर श्री शर्मा की प्रेरणा से मैं और मेरी पत्नी आज नए वर्ष में दान देकर बहुत ही खुशी महसूस कर रहे हैं कि उनका शरीर मरने के बाद लोगों के काम आयेगा।
इस अवसर पर कलेक्टर श्री कर्मवीर शर्मा ने नये वर्ष पर देहदान का संकल्प लेने वाले सभी लोगों की तारीफ की। उन्होंने बताया कि 12 दिनों में 15 लोगों ने देहदान का संकल्प फॉर्म भरकर दिया है। उन्होंने आम जनता से अपील की है कि इच्छुक व्यक्ति अपनी पासपोर्ट फोटो और आधार कार्ड की फोटो कॉपी के साथ  कलेक्ट्रेट कंट्रोल रूम कक्ष-9 पर पहुंच कर निर्धारित फॉर्म भर कर जमा कर सकते हैं

जन्मदिन पर करूंगी देहदान
आज नव वर्ष पर अपने माता पिता के साथ आई गढाफाटक निवासी श्रेया 18 वर्ष से कम उम्र की होने के कारण देहदान का  फॉर्म नहीं भर पाई। श्रेया ने कलेक्टर श्री कर्मवीर शर्मा से मुलाकात करके कहा कि आपने यह बहुत अच्छा अभियान छेड़ा है। अब मैं 13 अगस्त को अपना 18 वां जन्मदिन पर आकर देहदान का संकल्प पत्र सौंपूंगी।

अविष्कारक लुइस ब्रेल को मृत्यु के 100 साल बाद राजकीय सम्मान

4 जनवरी 1809 में जन्मे ब्रेल जन्म से नेत्र दिव्यांग नहीं थे बल्कि दुर्घटना बस अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे और फिर जानते ही हैं आप सब की आवश्यकता आविष्कार की जननी है उन्होंने एक अद्भुत अन्वेषण किया और स्पर्श प्रणाली से शब्दों को अक्षरों को पढ़ना सहज हो सके इसलिए ब्रेल लिपि का विकास किया और इससे विश्व के हर एक व्यक्ति को जो नेत्र दिव्यांग है एक नई दिशा मिली । लुइस ब्रेल 6 जनवरी 1852 में इस दुनिया को छोड़ कर चले गए ।
फ्रांस की सरकार ने लुईस ब्रेल के कार्य को अत्यधिक गौरवपूर्ण निरूपित करने के लिए सांकेतिक रूप से सम्मानित करने एवं यह तथ्य स्थापित करने के लिए कि-" किसी कार्य के लिए किसी को सम्मान देना सर्वोपरि है, उनके शव को कब्रगाह से निकालकर पुन: राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया । 
फ्रांसीसी अन्वेषक लुइस ब्रेल को शत शत नमन आज उनका जन्म दिवस है और 6 जनवरी 1852 को महाप्रस्थान...!

3.1.21

ज्योतिर्मय चिंतक : माँ ज्योति बा फुले आलेख प्रोफेसर आनंद राणा इतिहासकार

          ज्योतिर्मय चिंतक 
        माँ ज्योति बा फुले 
आधुनिक भारत की प्रथम महिला शिक्षक, मराठी आदिकवयित्री,नारी शिक्षा और सुधार की प्रथम महानायिका -वीरांगना सावित्री बाई फुले 🙏🙏 "या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता..विद्या रुपेण संस्थिता..सावित्री रुपेण संस्थिता.. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:" अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 
     लेखक प्रो. आनंद राणा
    🙏 🙏 🙏🙏🙏🙏🙏
19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका को जानते हैं? ये थीं महाराष्ट्र में जन्मीं सावित्री बाई फुले जिन्होंने अपने पति दमित चिंतक समाज सुधारक ज्योति राव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया. आइए जानें सावित्री बाई फुले के जीवन के बारे में कि किस तरह उन्होंने अपने संघर्ष से मंजिल पाई। सावित्रीबाई ने छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल और विधवा विवाह निषेध के खिलाफ पति के साथ काम कियाखुद पढ़ीं ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले, नारी शिक्षा की अग्रणी बनींसावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए तब स्कूल खोले जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था। 19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका को जानते हैं? ये थीं महाराष्ट्र में जन्मीं सावित्री बाई फुले जिन्होंने अपने पति दलित चिंतक समाज सुधारक ज्योति राव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया. आइए जानें सावित्री बाई फुले के जीवन के बारे में कि किस तरह उन्होंने अपने संघर्ष से मंजिल पाई.सावित्रीबाई फुले 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थ‍ित नायगांव नामक छोटे से गांव में पैदा हुई थीं. महज 9 साल की छोटी उम्र में पूना के रहने वाले ज्योतिबा फुले के साथ उनकी शादी हो गई. विवाह के समय सावित्री बाई फुले पूरी तरह अनपढ़ थीं, तो वहीं उनके पति तीसरी कक्षा तक पढ़े थे. जिस दौर में वो पढ़ने का सपना देख रही थीं, तब दलितों के साथ बहुत भेदभाव होता था. उस वक्त की एक घटना के अनुसार एक दिन सावित्री अंग्रेजी की किसी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तभी उनके पिताजी ने देख लिया. वो दौड़कर आए और किताब हाथ से छीनकर घर से बाहर फेंक दी. इसके पीछे ये वजह बताई कि शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही है, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप था. बस उसी दिन वो किताब वापस लाकर प्रण कर बैठीं कि कुछ भी हो जाए वो एक न एक दिन पढ़ना जरूर सीखेंगी.
वही लगन थी कि एक दिन उन्होंने खुद पढ़कर अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. बता दें, साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी. वहीं, अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था. उन्‍होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीड़ितों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की.स्कूल के लिए निकलीं तो खाए पत्थर! 
बताते हैं कि ये वो दौर था कि सावित्रीबाई फुले स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे. उन पर गंदगी फेंक देते थे. सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था. सावित्रीबाई फुले एक कवयित्री भी थीं. उन्हें मराठी की आदि कवयित्री के रूप में भी जाना जाता था.कुरीतियों के खिलाफ उठाई आवाज
सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया. सावित्रीबाई ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया.
सावित्रीबाई फुले के पति ज्‍योतिराव फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई थी, तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कामों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया था. उसके बाद सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च, 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई. उनका पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने- लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मणवादी ग्रंथों को फेंकने की बात करती थीं.उनकी शिक्षा पर लिखी मराठी कविता का हिंदी अनुवाद पढ़ें
"जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं
इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो
दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो "🙏 🙏
सत्यशोधक समाज की स्थापना की! 
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को कराया गया. 28 नवंबर 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी. ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई. उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया. सावित्रीबाई एक निपुण कवयित्री भी थीं. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है. वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं. सावित्री बाई फुले इस देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी... अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 🙏 🙏 प्रेषक - डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 💐 💐

2.1.21

बीबीसी की कोविड19 वैक्सीन पर जबरदस्त रिपोर्ट

विकिपीडिया में मौज़ूद जानकारी के अनुसार अमीनो अम्ल, वे अणु हैं जिनमें अमाइन तथा कार्बोक्सिल दोनों ही ग्रुप पाएं जाते हैं। इनका साधारण सुत्र H2NCHROOH है। इसमें R एक पार्श्व कड़ी है। जो परिवर्तनशील विभिन्न अणुओं का ग्रूप होता है। कार्बोक्सिल (-COOH) तथा अमाइन (-NH2) ग्रूप कार्बन परमाणु से लगा रहता है। अमीनो अम्ल प्रोभूजिन के गठनकर्ता अणु हैं। बहुत सारे अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंधन द्वारा युक्त होकर प्रोभूजिन बनाते हैं। प्रोभूजिन बनाने में 20 अमीनो अम्ल भाग लेते हैं।यह प्रोभूजिन निर्माण के कर्णधार होते हैं। प्रकृति में लगभग बीस अमीनों अम्लों का अस्तित्व है। प्रोभूजिन अणुओं में सैंकड़ों या हजारों अमीनो अम्ल एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोभूजिन में प्रायः सभी अमीनो अम्ल एक विशेष अनुक्रम से जुड़े रहते हैं। विभिन्न अमीनो अम्लों का यही अनुक्रम प्रत्येक प्रोभूजिन को उसकी विशेषताएं प्रदान करता है। 
        अमीनो अम्लों का यही विशिष्ट अनुक्रम डी एन ए के  न्यूक्लोटाइडस  के क्रम से निर्धारित होता है।
प्रोटीन क्या है -प्रोटीन मानव शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व हैं।  वे शरीर के ऊतकों के निर्माण खंडों में से एक हैं और ईंधन स्रोत के रूप में भी काम कर सकते हैं। ईंधन के रूप में, प्रोटीन  कार्बोहाइड्रेट के रूप में अधिक ऊर्जा घनत्व प्रदान करता है: प्रति ग्राम 4 किलो कैलोरी (17 केजे ); इसके विपरीत, लिपिड प्रति ग्राम 9 किलो कैलोरी (37 kJ) प्रदान करते हैं। पोषण संबंधी दृष्टिकोण से प्रोटीन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू और परिभाषित विशेषता इसकी अमीनो अम्ल संरचना है। 
  उपरोक्त  विवरण से स्पष्ट है कि मनुष्य की जटिल बायोलॉजिकल संरचना का आधार प्रोटीन ही है । जो क्रीचर के शरीर के मेंटेनेंस के लिए भी अत्यंत आवश्यक है । 
       आपने पढ़ा या सुना होगा कि -"डीएनए के निर्माण कर्ता प्रोटीनस की सुव्यवस्थित संरचना ही बेहतर स्वास्थ्य के लिए जवाबदार है ।" 
   बायोटेक्नोलॉजी के ज्ञाताओं की प्रोटीन एवम डीएनए  की संरचना को पढ़ने की ललक ने कोविड19 के विरुद्ध सफलता पूर्वक टीके विकसित कर लिए हैं ।
बीबीसी की एक रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि-"कोविड19 का वायरस जिस प्रोटीन पर सवार होकर शरीर में आसानी से प्रवेश करने में सफल रहा उसी का प्रयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने एंटीबॉडी उत्पन्न करने का रास्ता निकाल लिया । 
    यूँ तो काय विज्ञानी 50 वर्षों से प्रोटीन जनित शरीर में मौज़ूद 20 अमीनो एसिडस के संरचनाओं पर खास तौर पर काम कर रहे थे । परन्तु सफलता कोविड19 के संघर्ष में की गई टीके की खोज के कारण मिली । 
   विद्वान यह भी मानते हैं कि- डीएनए की संरचना में प्रोटीन्स की अव्यवस्थित संरचना होने से एनीमिया,सिकलसेल, थैलेसीमिया, तथा आक्सीजन की ब्रेन में अनियमित आपूर्ति से अल्माइजर, जैसी समस्याओं के  निदान के लिए इलाज की ज़रूरत वैसे भी थी । कोविड19 के साथ  तेज़ी इसके इलाज के लिए किए गए प्रयासों से प्रारम्भिक रूप से संरचना को समझने में सफलता से कायिक चिकित्सा की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव की स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता । स्पाई प्रोटीन कोविड19 के वायरस को शरीर में प्रवेश के लिए सहायक है । और इसी प्रोटीन की मदद से बायोटेक्नोलॉजी के विद्वानों ने टीका बनाया है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा । 
    प्रोटीन, डीएनए,अमीनो अम्ल, की व्यवस्था को पढ़ने के बाद वैज्ञानिक इस बात के लिए उत्साहित हैं कि - अगर शरीर में मौज़ूद एवम संचारित अमीनो एसिड लाल रक्त कणिकाओं के आकार, उनके पैटर्न, आदि के अध्ययन से चिकित्सा विज्ञान में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव लाया जा सकता है । 
बीबीसी हिंदी द्वारा प्रसारित दुनिया जहान में संदीप सोनी की खोजपूर्ण रपट को देखा जा सकता है । 
लिंक - फेसबुक पर https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/1218664235194743/
यूट्यूब पर https://youtu.be/Slio1pC2IOQ 
प्रस्तुति- गिरीश बिल्लोरे मुकुल
    

1.1.21

भारतीय उद्योगपतियों के पीछे क्यों पड़े हैं एक्टिविस्ट..?

【भारतीय उद्योगपति जो  भारतीय एक्टिविस्टों को असहनीय हैं 】
 आर्थिक विकास के लिए जरूरी है, उत्पादन और उसका उपभोग और उत्पादित वस्तुओं का वैश्विक एवं आंतरिक विपणन ।  भारतीय कंपनियां विशेष रूप से रिलायंस एवं अदानी इन दिनों जनता के गुस्से का शिकार हैं। 

  भारत में रिलायंस और अदानी ग्रुप के विरुद्ध वातावरण निर्माण करने के पीछे एक खास वर्ग  भारत में भारतीय कंपनियों को हतोत्साहित करने के लिए  एक खास  तरीके से काम कर रही है । उनका अपना एजेंडा है बाबा रामदेव अंबानी एवं अदानी द्वारा स्थापित उत्पादक समूह को क्षतिग्रस्त करना । 
किसान आंदोलन के 1 माह से अधिक समय बीतते हुए एक तथ्य सामने आया है जो यह साबित करता है कि-"भारतीय कंपनियों को इतना हतोत्साहित कर दीजिए कि की वे ना तो सक्रिय रूप से उत्पादन कर सके नाही विश्व व्यापार के लायक हो सकें"
किसान आंदोलन में एक नैरेटिव तेजी से फैलाया गया कि भारत सरकार ने यह तीन कानून केवल बाबा रामदेव अदानी और अंबानी जैसे व्यापारियों को लाभान्वित करने के लिए बनाए हैं।
आज अचानक  नीरव  जॉनी जी के ब्लॉग पर नजर गई । 
तो पता चला कि हम भारतीय उत्पादन क्षमता को नजर अंदाज करके किस तरह से विदेशी कंपनियों को पालपोस रहे हैं । उसके पहले आपको बता देना आवश्यक है कि हम अपने दैनिक जीवन में सुबह से शाम तक जितने भी विदेशी प्रोडक्ट खरीदते हैं उनका लाभ भारतीय भारतीय जीडीपी की गिरावट का एकमात्र कारण है विदेशी निर्भरता वह भी डेंली यूज़ के उत्पादों के लिए। इसका दोष भारत सरकार को यह कह कर दिया जाता है.. कि सरकार की आर्थिक नीतियां गलत हैं ? चिंतन का विषय है कि विदेशी कंपनियों द्वारा उत्पादित विभिन्न उत्पादों के प्रति आप का आकर्षण एक उपभोक्ता के रूप में कुछ अधिक है। साउथ एशिया के भूतपूर्व गुलामों को यूरोप सदा से ही आकर्षित करता रहा है। विश्व व्यापार संगठन की संधि पर हस्ताक्षर करने के उपरांत आप बहुत आराम से विदेशी उत्पादों को भारत में खरीद पा रहे हैं। यहां तक कि आपको इन्हें खरीदने के लिए गुमराह किया जाता है।  उत्पादन कंपनियों एवं सरकार के बीच सांठगांठ का आरोप लगाया जाता है यह नैरेटिव भारतीय अर्थव्यवस्था भुगतान संतुलन और जीडीपी के लिए नेगेटिव फैक्टर के रूप में देखता हूं मित्रों मैं अक्सर स्थानीय उत्पादन और उनके अनुकूल स्थानीय बाजार में खपत का पक्षधर हूं । परंतु मध्यम वर्ग एक ऐसी मूर्खतापूर्ण स्थिति से गुजर रहा है जहां वह विदेशी कंपनियों  के उत्पादन  का उपभोक्ता बाजार बनाने में स्वयं को झोंक देता है जो ना तो राष्ट्र के हित में है नाही भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में नीरज जी के आर्टिकल से मैंने आपके बीच में लाने की कोशिश की है आप समझ जाएंगे कि आप कितना विदेशी उत्पादों पर आकृष्ट हैं और देश में रिलायंस के टावर तोड़ने रामदेव की बेइज्जती करने तथा अदानी को गाली देने कितना सक्रिय नजर आते हैं। नीचे दिए प्रोडक्ट आप उपयोग करते हैं किंतु कभी भी आपने यह नहीं देखा होगा कि इन कंपनियों के विरुद्ध किसी भी आंदोलन में कोई भी खड़ा हुआ हो मेरा मानना है यूरोपियन और चाइनीस कंपनियों द्वारा स्लीपर सेल के माध्यम से सबसे खतरनाक ढंग से ग्रोथ कर रही पतंजलि अदानी और रिलायंस कंपनियों के विरुद्ध वातावरण निर्माण का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय कंपनियों कीी सूची यहां क्लिलिक करें नीरव जानी का ब्लॉग
कोलगेट, हिंदुस्तान यूनिलीवर ( पहले हिन्स्तान लीवर ), क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, एम, सिबाका, एक्वा फ्रेश, एमवे, ओरल बी, क्वांटम आदि । कोलगेट, क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, सिबाका, अक्वा फ्रेश, ओरल-बी, हिंदुस्तान लीवर ।
हिंदुस्तान यूनिलीवर, लो’ओरीअल , लाइफ ब्वाय , ले सेंसि, डेनिम, चेमी, डव, रेविओं, पिअर्स, लक्स, विवेल, हमाम, ओके, पोंड्स, क्लिअर्सिल, पमोलिवे, एमवे, जोनसन बेबी, रेक्सोना, ब्रिज , डेटोल ।
विदेशी:: हेलो, कोलगेट, पामोलिव, हिंदुस्तान यूनिलीवर, लक्स, क्लिनिक प्लस, रेव्लों, लक्मे, पी एंड जी , हेड एंड शोल्डर, पेंटीन, डव, पोंड्स, ओल्ड स्पेस, शोवर तो शोवर, जोहानसन बेबी ।
ओल्ड स्पाइस, पामोलिव, पोंड्स, जिलेट, एरास्मिक, डेनिम, यार्डली
जिलेट, सेवन ‘ओ’ क्लोक, एरास्मिक, विल्मेन, विल्तेज आदि
हिंदुस्तान यूनिलीवर, फेअर एंड लवली, लक्मे, लिरिल, डेनिम, रेव्लों, पी एंड जी, ओले, क्लिएअर्सिल, क्लिएअर्तोन, चारमी, पोंड्स, ओल्ड स्पाइस, डेटोल , जॉन्सन अँड जॉन्सन, व्रेंग्लर, नाइकी, ड्यूक, आदिदास, न्यूपोर्ट, पुमा, राडो, तेग हिवर, स्विसको, सेको, सिटिजन, केसिओ कमल, नटराज, किन्ग्सन, रेनोल्ड, अप्सरा, पारकर, निच्कोल्सन, रोतोमेक, स्विसएअर , एड जेल, राइडर, मिस्तुबिशी, फ्लेअर, यूनीबॉल, पाईलोट, रोल्डगोल्ड, कोका कोला, पेप्सी, फेंटा स्प्राईट, थम्स-अप, गोल्ड स्पोट, लिम्का, लहर, सेवन अप, मिरिंडा, स्लाइस, मेंगोला, निम्बुज़ , लिप्टन, टाइगर, ग्रीन लेबल, येलो लेबल, चिअर्स, ब्रुक बोंड रेड लेबल, ताज महल, गोद्फ्रे फिलिप्स, पोलसन, गूद्रिक, सनराइस, नेस्ले, नेस्केफे, रिच , ब्रू,
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केडबरी, बोर्नविटा , होर्लिक्स, न्यूट्रिन, विक्स, मिल्किबर, इक्लेअर्स , मंच, पार्क, डेरिमिल्क, बोर्नविले, बिग बबल, एलपेनलिबें, सेंटरफ्रेश, फ्रूट फ्रेश, परफीती , मेगी, हेंज, नौर , डोमिनोज, पिज्जा हट , फ्रिन्तो-ले , के एफ़ सी, एक्वाफिना, किनली, बिल्ले, पुरे लाइफ, एवियन, सेन पिल्ग्रिमो, पेरिअर , बूस्ट, पोलसन, बोर्नविटा, होर्लिक्स, प्रोतिनेक्स, स्प्राउट्स, कोमप्लैन,
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पुमा, बाटा, पॉवर, बीएमसी, एडीडास, नाइकी, रिबोक, फीनिक्स, लाबेल, चेरी ब्लोसम, कीवी, ली कूपर, रेड चीफ, कोलंबस, 

31.12.20

कोशिशें सदा बड़ी ही होतीं हैं..!

    जन्मपर्व पर हार्दिक बधाई
            बेटी शिवानी
एफिल टॉवर, हिमालय, एवरेस्ट, या और अनंत ऊँचाईयाँ
कभी भी बड़ी नहीं ...!
बड़ी होती हैं...
उम्मीदें... 
अरे नहीं यह भी नहीं !
बड़े होते हैं संकल्प..!
ओह.. 
ये भी आधा अधूरा सच है..!
बड़ी होती हैं.. सफलताएं ..
उफ़ ये क्या ?
यह तो आधे से भी कम सच है
बड़ी होतीं हैं..
कोशिशें..! 
जो हज़ारों रिजेक्शन के 
बाद  
सतत संलग्नता  
सफल बनातीं हैं
हाँ... सकारात्मक दिशा 
की कोशिशें
सदा बड़ी ही होतीं हैं
जन्मपर्व पर हार्दिक बधाई शिवानी बेटा..!

30.12.20

मेरी फुदक चिरैया का हत्यारा माओ


  18 मार्च 1958 से 18 मार्च 1960 तक एक मूर्ख नेता ने मेरी फुदक चिरैया का सामूहिक हत्या का अभियान छेड़ दिया इस मूर्ख नेता का नाम था माओ ।
    यह एहसान फरामोश अति स्वाभिमानी और अपने कैलकुलेशंस को श्रेष्ठ मानने वाला नेता था। पता नहीं क्यों इस भटके हुए संहारक मस्तिष्क में एक गणित उभरा और वह गणित था देश की अर्थव्यवस्था को यूरोपियन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था से बेहतर बनाना।
यह जिस आईडियोलॉजी से आता है उस आईडियोलॉजी में मौलिक रूप से यह विचार समाहित होता है कि अगर कुछ हुआ है... तो उसका उत्तरदाई बिना कोई अवश्य है ।  बस एक दिन बैठे बैठे गुणा भाग करते हुए इसने अंदाज लगाया-" यह जो गौरैया है ना साल भर में  4•5 किलोग्राम अनाज चट कर जाती है । और चूहे भी अनाज चट कर जाते हैं अगर हम इन चिड़ियों को मार दें तो  बहुत सा अनाज बचेगा और वह अनाज बाजार में बेचकर अर्थव्यवस्था को पुख्ता किया जा सकता है । कैलकुलेशन सही था लेकिन परिणाम के बारे में सोचा ही नहीं गया। मेरी फुदक चिरैया उन कीट पतंगों को भी चट कर जाती है जो माओ के देश के खेत में फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। और वह इस बात का भी अंदाज नहीं लगा पाया कि यह जो टिड्डी दल है ना उस पर भी नियंत्रण करती है मेरी फुदक चिरैया...!!
एक मूर्खतापूर्ण निर्णय जिसने क्या जनता क्या सेना क्या इंटेलेक्चुअल्स और क्या पुलिस और प्रशासन सब के सब ऐसे इंवॉल्व हो जैसे कोई उत्सव मनाया जा रहा है।
     हो सकता है कि उनको भारत में भी कुछ लोग मेरी फुदक चिरैया से नाराज रहने लगे हो..😢😢 असंभव कुछ भी नहीं वैसे भी यह मूर्खों के शब्दकोश का शब्द है। भारत एसे कुछ लोगों को अपने देश में रहने की इजाजत देता है जो मेरी फुदक चिरैया से नाराज हैं ।
      ग्रेट स्पैरो मूवमेंट  में  जनता की जिम्मेदारी थी  कि वह  मक्खी  मच्छर चूहे और  गौरैया को समूल नष्ट कर दें । मैंने इस मूवमेंट का नाम बदल रखा था मैं इसे *मेरी गौरिया के खिलाफ आतंकवाद* नाम देता हूं ।
                जानते हैं उसके बाद क्या होगा 1960 के आते-आते इकोसिस्टम अर्राकर गिर गया । खेतों में उगने वाले अनाज को कीड़े और टिड्डी दल बिना किसी दबाव के निपटाने लगे। करोड़ों चीनी वासियों को भूखमरी और शिकार होना पड़ा था...!
कोविड-19 वायरस के जन्मदाता देश में जो ना हो वह थोड़ा है ।
   

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