28.4.16

“विचार कुम्भ हेतु सेमीनार दिनांक 26 अप्रैल 16”

भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक  एवं राजनैतिक परिपेक्ष्य में महिलाओं के समग्र विकास की अवधारणा को आकार देने के लिए जन्म से ही उसे एक शक्ति-कलश के रूप में सशक्त करने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता .  आशय यह कि कन्या के जन्म से ही उसे सामान्य नज़रिये से समझाने की जरूरत है . भारत में स्त्रियों को लेकर एक ऐसा विचार समाज और परिवारों में व्याप्त है कि “महिला सक्षम नहीं होती !”
सच भी है क्योंकि हमने उसे सक्षम होने के अवसर दिए ही नहीं .

   अगर हमारा समाज और समाज की परम्पराएं नारी को “शक्ति-कलश” के रूप में मान्यता दे तो ये तय है कि भारतीय भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक  एवं राजनैतिक परिस्थियों में तेज़ी से सकारात्मक बदलाव आ ही जावेंगें .  ऐसा कदापि नहीं है कि प्राचीनकाल में नारी शक्ति का स्रोत न थी. पर भारतीय समाज पर  मध्यकालीन परिस्थितियों पर गहरा असर हुआ है . जिसके चलते महिलाओं को वैदेशिक आक्रमण से अप्रवित रखने के उद्देश्य से कुछ सीमाएं निर्धारित की गई किन्तु उनको अत्यधिक सीमित करने के कई और भी कारण सामने आते हैं . जिनमें  पुरुष प्रधान सोच कहीं न कहीं प्रमुख रही है . किन्तु बदलाव समयानुसार बेहद ज़रूरी हैं  इस तथ्य को अब अधिक देर तक अनदेखा नहीं किया जा सकता . जबकि भारत में तथा मध्य-प्रदेश में 2001 के सापेक्ष 2011  लिंगानुपात में  +10 देखा गया जबकि सर्वाधिक सकारात्मक स्थिति चंडीगढ़ एवं दिल्ली में +45 एवं  पांडिचेरी और मिजोरम की रही जहां  लिंगानुपात में  +37 का अंतर देखा गया . मध्यप्रदेश की स्थिति अभी भी बेहद नाज़ुक न होकर भी चिंतनीय अवश्य है . इसके लिए हमें कारगर कदम उठाते हुए बालिकाओं के प्रति सोच में व्यक्तिश: नज़रिया बदल देने की आवश्यकता है . ताकि हर नारी समग्र विकास का किसी न किसी रूप में हिस्सा बन जाएं { स्रोत- विकी}
राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास के लिए महिलाओं के योगदान को कम आंकना सर्वथा अनुचित है ये सच है कि सामाजिक प्रतिरोधी व्यवस्थाओं के कारण महिलाओं का योगदान अपेक्षाकृत कम दिखाई दिया . स्पष्ट कहें तो विकास के सन्दर्भ  महिलाओं के योगदान का मूल्यांकन बेहद पाजिटिव रूप से रेखांकित नहीं किया जाता . जबकि आप गंभीरता से एक परिवार की गृहणी की दिनचर्या पर गौर करें तो
Ø गृहणी दिनभर में घर के भीतर 50 किलोमीटर से अधिक पैदल चलती है,
Ø 99% कार्य महिला के हिस्से में आते हैं
Ø आहार-स्वास्थय के लिए उसकी प्राथमिकताएं आज भी सर्वोच्च नहीं हैं .
Ø सामान्यतया परिवार के सामाजिक आर्थिक निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी एवं दखल का
   प्रतिशत 25 से अधिक नहीं है
Ø महिलाओं के निर्णय पर पुरुष एवं परिवार के सयाने लोगों की सहमति अनिवार्य मानी जाती है
Ø बेहतर प्रबंधक होने के बावजूद महिलाओं के प्रबंधकीय कौशल को सकारात्मक स्वीकृति नहीं
   मिलती
       ये कुछ उदाहरण हैं जो महिलाओं की वर्तमान स्थिति को दर्शाते हैं . जो यह समझाने के लिए पर्याप्त है  कि – “अर्थचक्र में महिला नेपथ्य में हैं ”
अत: उसे नेपथ्य से निकाला जाना है . ताकि उसकी भूमिका को सटीक तौर पर  विकास के रडार पर रखकर नीतियाँ बनाईं जावे. यद्यपि  ये उदाहरण बेहद पारिवारिक से  हैं  पर  साफ़ तौर  पर  विकास चक्र  से  सम्बंधित हैं . अत: महिला  को  उसके  जन्म  से ही  प्राथमिकता के  क्रम पर  रखा जाना है ताकि  विकास एवं अर्थचक्र में न केवल उसकी भूमिका को पहचान  मिले ताकि उसके प्रति  सामाजिक नज़रिए में  सकारात्मक रूप बदलाव स्पष्ट हो .
       सामान्यरूप से समाज में नववधुओं को “पुत्रवती भव:” कहकर  आशीर्वाद दिया जाता है . किन्तु  किसी में  “पुत्रीवती भव:” कहकर आशीर्वाद देने का साहस नहीं होता .
       “यह स्थिति  सामाजिक सोच में सकारात्मक बदलाव न आ पाने की  सूचक है ..!!”
कैसे बदलेगी ऐसी परिस्थियां  ?
कब बदलेंगी ये सोच ?
कौन बदल सकता है ...?
कैसे बदलेगी ऐसी परिस्थियां  ?
पुत्री के जन्म को पुत्र के जन्म के समतुल्य माना जाकर
दहेज़ जैसी कुरीतियों के स्थान पर योग्यता को महत्व देकर
 इन परिस्थितियों में  बदलाव सहज है ..
कब बदलेंगी ये सोच ?
 “जब जन्म देने वाले दंपत्ति के मन में  सकारात्मक सोच होगी ”
कौन बदल सकता है ...?
समुदाय स्वयं इस बदलाव को ला सकता है
 एक समुदाय बदलाव लाने के लिए क्या करे 
समुदाय में ऐसे बदलाव तेज़ी आने चाहिए इस हेतु व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं . महिला सशक्तिकरण संचालनालय ने वैचारिक बदलाव के लिए सोशल-एक्टिव-फ़ोर्स के रूप में शौर्या दलों का ढांचा तैयार कर दिया है . दलों को  प्रशिक्षण की ज़रुरत को भी पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है . इन समूहों को कार्यसंचालन के लिए
Øवित्तीय व्यवस्था आवश्यक है . कम से कम रूपए 5000 /- हर 6 माह के  अंतराल से देना प्रस्तावित
Øदलों  को सतत रूप से नियमो, अधिनियमों, योजनाओं, कार्यक्रमों की जानकारी दी जाती रहे
Øदलों को एक एन जी ओ के रूप में पंजीकृत करना
Øदलों  को स्व सहायता समूह के रूप में विकसित करते हुए उनको कम से कम एक आर्थिक गतिविधि जैसे सेनेटरीनेपकिंस के उत्पादन , शासकीय कार्यक्रमों में भोजन प्रदायक इकाई के तौर विकसित किया जा सकता  है .
          शौर्या-दलों को उत्पादक अथवा विपणन {मार्केटिंग} इकाई बनाकर उसे निजी एवं संस्थागत आय प्राप्त कराने से शासकीय अनुदान का प्रतिशत प्रारम्भिक रूप से प्रस्तावित  राशि से आधा किया जा सकता है .
Ø लिंगानुपात नकारात्मक न हो इस हेतु लिंग परीक्षण को कठोरता से रोकना होगा.  इस हेतु  हमारे “शौर्या दलों” को अधिक प्रभावी एवं परिणाम मूलक भूमिका देनी आवश्यक है. शौर्या दल आंगनवाड़ी सेवाओं एवं स्वास्थ्य सेवाओं के साथ सिन्क्रोनाइज़ होकर कार्य कर सकते हैं ताकि इकाई स्तर यानी ग्राम अथवा नगरीय स्तर पर प्रत्येक प्रसव जन्म में परिवर्तित हो अगर जन्म के समय शिशु जीवित न हो
§तो उसका लिंग एवं जीवित न रहने की  वजह स्पष्ट हो.
§ग्राम अथवा वार्ड  में बालिकाओं के जन्म को सकारात्मक  रूप से ग्राह्य करने की प्रवृति को बढ़ावा मिले.
§स्वास्थ्य विभाग निजी नर्सिंग होम्स, सोनोग्राफी सेंटर्स पर कड़ी निगरानी रखें
§मातृशिशु रक्षा कार्ड की जानकारियाँ आनलाइन की जा सकतीं हैं . ताकि जहां नवजात बालिका मृत्यु दर में  ज़रा सी भी  नकारात्मकता देखी जाए उस क्षेत्र को तुरंत अलर्ट ज़ोन  में  रखकर कारणों को ज्ञात करने का प्रयास हो .
§प्रत्येक संभावित प्रसव की निगरानी के लिए पूर्वोक्त अनुसार आँगनवाड़ी कार्यक्रम एवं शौर्या दल को वर्क फ़ोर्स के रूप में कार्य करना होगा
§दो प्रसवों के मध्य  ऐसा हो कि दोनों जन्मों में लगभग तीन साल का अंतर बना रहे 
बालिका के जन्मोपरांत लाडली-लक्ष्मी योजना का लाभ सहजता से मुहैया कराया जा रहा है . लेकिन सामाजिक सोच में बदलाव के लिए  ऐसी पारिवारिक भेंट शौर्या-दलों के ज़रिये हों जिसका मुख्य एजेंडा बालिका के स्वास्थ्य उसकी शिक्षा एवं बालिका को पुत्र संतान की तरह ही विकसित करने की प्रेरणा से ओतप्रोत होना आवश्यक है . शौर्यादलों ऐसे परिवारों को  हर क्षेत्र की  महिला आइकान {अगर स्थानीय हो तो बेहतर होगा} की जानकारी दें ताकि परिवार बेटी को लेकर  सिर्फ बेटी की शादी को प्राथमिक  मुद्दा न मानकर बेटी के सामाजिक,आर्थिक, विकास के लिए तैयार करने पर सर्व प्रथम चिंतित हो . उसकी शिक्षा-दीक्षा, कौशल विकास के  सन्दर्भ में सोचे. यह भी तय करे कि भविष्य में अगर कोई विपरीत परिस्थिति हो तो उसका मुकाबला बेटी कैसे करेगी ? कुल मिला कर बेटी को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करे .
            5 वर्ष की आयु तक बालिकाओं को आँगनवाडी से मिलाने वाली सेवाएं गुणवत्ता पूर्ण रहें तदुपरांत शालाओं में उनको पर्याप्त समानता के अवसर  शैक्षिकेत्तर गतिविधियों में भी दिए जावें . जैसे उनमें नेतृत्व का गुण प्रदान करने एवं निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करने के अतिरिक्त प्रयास हों . बालिकाएं में  स्वयं ही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा तो सहज विकास में उसकी भागीदारी  सुनिश्चित हो सकेगी .      
लिंगानुपात में सकारात्मक बदलाव की दर को तीव्रता देने की कोशिश के साथ साथ “स्वागतम लक्ष्मी” योजना को स्कूल चलो अभियान के लिए शिक्षा विभाग के साथ समन्वय स्थापित करते हुए उसमें ICDS सेवाओं की तरह शौर्या-दलों को भी जोड़ देना आवश्यक है . जिससे शिक्षा के प्रति अधिकाधिक “वर्क-फ़ोर्स” जुटे और अभियान 99 % सफल हो .
कक्षा 06 से 08 तक जूनियर बालिका क्लब का शालाओं गठन कराकर अतिरिक्त गतिविधियों के रूप सृजनात्मक गतिविधियों यथा संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला, हस्तकला, पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर  पर उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों को अधिक रुचिकर बनाया जाना चाहिए . सांस्कृतिक हस्तक्षेप से शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में सफलता सहज ही प्राप्त होती है. इसके प्रमाण स्वरुप “आई सी डी एस बरगी, एवं बालाघाट जिले की परियोजनाओं में प्रयोग के तौर पर लागू किये गए कार्यक्रम गोद-भराई, अन्न-प्रासन, जन्म-दिवस, तथा किशोरी क्लब” की गतिविधियों के विकसित स्वरुप “मंगल-दिवस” से आँगनवाड़ी कार्यक्रम के क्रियान्वयन को सुदृढ़ता मिलना है.
कक्षा 09  से 12 तक सीनियर बालिका क्लब का शालाओं गठन कराकर संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला, हस्तकला, पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर  पर उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों के साथ साथ स्वास्थ्य एवं पोषण शिक्षा, मार्शल-आर्ट, क़ानून एवं योजनाओं की जानकारी बालिकाओं को अवश्य दी जावे. ताकि वे किसी ऐसे बिंदु से अनभिज्ञ न रहें जो उनके सशक्तिकरण के लिए आवश्यक हो
   लिंगानुपात में सकारात्मक बदलाव की दर को तीव्रता देने की कोशिश के साथ साथ “स्वागतम लक्ष्मी” योजना को स्कूल चलो अभियान के लिए शिक्षा विभाग के साथ समन्वय स्थापित करते हुए उसमें ICDS सेवाओं की तरह शौर्या-दलों को भी जोड़ देना आवश्यक है . जिससे शिक्षा के प्रति अधिकाधिक “वर्क-फ़ोर्स” जुटे और अभियान 99 % सफल हो .
कक्षा 06 से 08 तक जूनियर बालिका क्लब का शालाओं गठन कराकर अतिरिक्त गतिविधियों के रूप सृजनात्मक गतिविधियों यथा संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला, हस्तकला, पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर  पर उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों को अधिक रुचिकर बनाया जाना चाहिए . सांस्कृतिक हस्तक्षेप से शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में सफलता सहज ही प्राप्त होती है. इसके प्रमाण स्वरुप “आई सी डी एस बरगी, एवं बालाघाट जिले की परियोजनाओं में प्रयोग के तौर पर लागू किये गए कार्यक्रम गोद-भराई, अन्न-प्रासन, जन्म-दिवस, तथा किशोरी क्लब” की गतिविधियों के विकसित स्वरुप “मंगल-दिवस” से आँगनवाड़ी कार्यक्रम के क्रियान्वयन को सुदृढ़ता मिलना है.
कक्षा 09  से 12 तक सीनियर बालिका क्लब का शालाओं गठन कराकर संगीत, कथोपकथन, संवाद-संचरण,रंगोली, चित्र कला, मेंहदी, शिल्प कला, हस्तकला, पाककला , जिसके विशेषज्ञ स्थानीय स्तर  पर उपलब्ध हों की सेवाएं लेकर साले गतिविधियों के साथ साथ स्वास्थ्य एवं पोषण शिक्षा, मार्शल-आर्ट, क़ानून एवं योजनाओं की जानकारी बालिकाओं को अवश्य दी जावे. ताकि वे किसी ऐसे बिंदु से अनभिज्ञ न रहें जो उनके सशक्तिकरण के लिए आवश्यक हो
  हमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि 50% से अधिक बालिकाएं इंटरनेट पर सकारात्मक रूप से जुड़ें . इसके लिए प्रत्येक हायर सैकेंडरी शाला में इंटरनेट से सम्बंधित प्रारम्भिक ज्ञान अनिवार्य रूप से कराया जावे .
प्रबंधकीय प्रशिक्षण :- स्वरोजगार की सबसे बड़ी बाधा उत्पादन एवं विक्रय के लिए  प्रबंधकीय कौशल का अभाव है . इस हेतु राज्य शिक्षा केंद्र अथवा किसी विश्वविद्यालय में एक से तीन  माह का कुटीर लघु-उत्पादक इकाई, के लिए शार्ट टर्म प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार कराया जाकर बालिकाओं को प्रशिक्षण का अवसर “एन जी ओ” के माध्यम से पंचायत स्तर पर दिया जा सकता है .   
सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज़, बालविवाह, नतारा, विधवा-विवाह की अस्वीकृति, आदि के विरुद्ध जनमानस बनाने ओपीनियन-लीडर्स, कलाकारों, लोक-कला दलों, आकाशवाणी, दूरदर्शन , सिनेप्लेक्स, आदि का उपयोग सहज ही किया जा सकता है .
प्रदेश में चलने वाले निजी इलेक्ट्रानिक एवं ऍफ़ एम रेडियो, आदि को  प्रति दिन महिला एवं बालिका सशक्तिकरण पर केन्द्रित योजनाओं एवं स्वनिर्मित कार्यक्रमों के प्रसारण हेतु बाध्यता के लिए नियम एवं  क़ानून बनाना संभव है .
राज्य-विधिक सेवा प्राधिकरण के विधिक साक्षरता कार्यक्रम को सपोर्ट देने की आवश्यकता है . साथ ही  प्रत्येक जिले स्तर एवं सब डिविज़न स्तर पर “गौरवी” की तरह एक ही स्थान पर बहु आयामी सेवा केंद्र आवश्यक हैं .   
हमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि 50% से अधिक बालिकाएं इंटरनेट पर सकारात्मक रूप से जुड़ें . इसके लिए प्रत्येक हायर सैकेंडरी शाला में इंटरनेट से सम्बंधित प्रारम्भिक ज्ञान अनिवार्य रूप से कराया जावे .
प्रबंधकीय प्रशिक्षण :- स्वरोजगार की सबसे बड़ी बाधा उत्पादन एवं विक्रय के लिए  प्रबंधकीय कौशल का अभाव है . इस हेतु राज्य शिक्षा केंद्र अथवा किसी विश्वविद्यालय में एक से तीन  माह का कुटीर लघु-उत्पादक इकाई, के लिए शार्ट टर्म प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार कराया जाकर बालिकाओं को प्रशिक्षण का अवसर “एन जी ओ” के माध्यम से पंचायत स्तर पर दिया जा सकता है .   
सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज़, बालविवाह, नतारा, विधवा-विवाह की अस्वीकृति, आदि के विरुद्ध जनमानस बनाने ओपीनियन-लीडर्स, कलाकारों, लोक-कला दलों, आकाशवाणी, दूरदर्शन , सिनेप्लेक्स, आदि का उपयोग सहज ही किया जा सकता है .
प्रदेश में चलने वाले निजी इलेक्ट्रानिक एवं ऍफ़ एम रेडियो, आदि को  प्रति दिन महिला एवं बालिका सशक्तिकरण पर केन्द्रित योजनाओं एवं स्वनिर्मित कार्यक्रमों के प्रसारण हेतु बाध्यता के लिए नियम एवं  क़ानून बनाना संभव है .
राज्य-विधिक सेवा प्राधिकरण के विधिक साक्षरता कार्यक्रम को सपोर्ट देने की आवश्यकता है . साथ ही  प्रत्येक जिले स्तर एवं सब डिविज़न स्तर पर “गौरवी” की तरह एक ही स्थान पर बहु आयामी सेवा केंद्र आवश्यक हैं .   
 उषा-किरण योजना के  क्रियान्वन के लिए संरक्षण अधिकारियों के रूप में काम करने के लिए अब खंड महिला सशक्तिकरण अधिकारियों की सेवाएं अनिवार्य करने के लिए उनके खंड-स्तरीय कार्यालयों की स्थापना एवम उनमे आवश्यक अमले की पदस्थापना अत्यावश्यक हो गई है.
एन जी ओ :- शौर्या दलों का अब सम्पूर्ण प्रदेश में गठन हो चुका है . उनके लिए गतिविधीयों संचालन हेतु अब वित्त पोषण की आवश्यकता को देखते हुए उनको एक आदर्श बाय-लाज के साथ पंजीकृत किया जा सकता है. ताकि वे विभाग द्वारा निर्धारित  अनुदान प्राप्त करते हुए एक वैधानिक सहायक संस्था के रूप में “महिला-सशक्तिकरण” के लिए काम करें . यह अनुदान उनकी बैठकों, स्टेशनरी, आदि के व्ययों की भरपाई हेतु  किया जा सकता है.  
 महिलाओं को पैतृक अचल सम्पतियों के प्राप्त करने एवं अधिकारों को संरक्षित  लिए आवश्यक कानूनी प्रावधानों में बदलाव अपेक्षित हैं
1.विधवा, परित्यक्ता बहन, भाभी, पुत्रवधू,  अथवा विधवा माँ से सम्पति अनापत्ति बेहद भावात्मक रूप हासिल कर लेने की घटनाएं आमतौर पर घटित होतीं हैं . ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस हेतु ग्रामसभाओं को ये अधिकार देने होंगे कि विधवा, परित्यक्ता बहन, अथवा विधवा माँ द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र सार्वजनिक रूप ग्रामसभा रखे जावें एवं उनका पुष्टिकरण हो . ग्राम सभा में पुष्टि करते समय ग्रामसभा अनापत्ति प्रमाण पत्र के गुण - दोषों का व्यापक परीक्षण करे तदुपरांत ही सम्पति के विक्रय अथवा अन्य प्रकार से अंतरण का अनुमोदन अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा दिया जावे . शहरी क्षेत्र में सम्पूर्ण अधिकार अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को दिए जा सकते हैं .
2.पैतृक संपत्ति का बंटवारा / विक्रय :- किसी भी स्थिति में पैतृक संपत्ति का बंटवारा विक्रय पिता अथवा माता की मृत्यु के एक माह बाद ही हो ताकि भावनात्मक स्थितियों लाभ न लिया जा सके . सामान्यत: यह प्रक्रिया संपत्ति धारक की मृत्यु के तुरंत बाद की जाती है .   
महिलाओं के अधिकारों की रक्षा, उनके लिए बनाई एवं चलाई जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लिए  स्थानीय, जिला एवं राज्य-स्तर पर नोडल विभाग के रूप में महिला सशक्तिकरण  को चिन्हित किया जा सकता है   इसे नियमों में शामिल किया जाना प्रस्तावित है
परामर्श
 सुश्री नीतू पांडे, एक्टिविस्ट 
 श्रीमति विजश्री खन्ना , रंगकर्मी एवं  फिल्म  निर्माता, निर्देशक
 श्रीमति अर्चना ठाकुर , जर्नलिस्ट
 सुश्री अपर्णा असाटी, युवा विचारक एवं उद्यमी
 श्रीमति आरती साहू , शौर्या दल सदस्य  
   
       

21.4.16

दृढ़ता कभी नहीं रोती और अन्य दो कविताएँ

दृढ़ता कभी नहीं रोती 
मैं एक अहर्निश अविरल सा शोकगीत
मृत्यु छंद में आबद्ध जीवंत हूँ जीवट हूँ 
मरता हूँ तो भी सवालखिया हाथी सा
जीता हूँ तो भी बेशकीमती पाखी सा 
मेरी एक एक बूँद जमीं पर गिरती है 
फिर जी उठता हूँ रक्तबीज जो हूँ । 
यातनाएं मुझे कुंठित नहीं कर जातीं
मृत्यु मुझे पाशबंधित नहीं कर पाती
मैं एक अवस्था हूँ एक व्यवस्था हूँ 
अत्यधिक सहने की चुप रहने की 
आपने किसी स्तूप के पत्थर को 
देखा है कभी रोते सुबकते ?
कभी तुमने देखा है
शेर शावकों हिरणों को 
बुद्ध से विलगते हुए 
नहीं न 
दृढ़ता कभी नहीं रोती 
मृदुल मुस्काती हुई 
छेड़ देती है शोकगीत 
दुनिया रोती है पर मैं
जो सुदृढ़ हूँ व्यवस्था हूँ 
जो रोती नहीं 
आप दुनिया हो रोते हो 
रोते रहोगे मेरे नाम पर .
खिलखिलाकर हँसना मना है
तुम औरत हो
तुम किन्नर हो
तुम अपाहिज हो
गंभीर बनो तुम्हारे मुँह से निकली हँसी ठीक नहीं
मनु-स्मृति में लिखा है
मत बैठाओ अपाहिजों को पंगत में संगत में
किसी ने क्या खूब कहा है
अक्ल हर बात को जुर्म बना देती है .
बेशक ... फाड़  दो ऐसा साहित्य
अग्राह्य कर दो हो जाओ तथागत
निर्विकार शांत
बनाओ ऐसा समाज जिसका
लक्ष्य हो  “निर्माता की रक्षा की जगह निर्माण की रक्षा का”
कबीर ने कहा था न
“मरी खाल से लोहा भस्म हो जाता है ”
मत रुलाओ अकिंचनों को
मत करो षडयंत्र
जीने दो ....... सांस उसकी है उसे दी है  निर्माता ने

जब भी मिलता है यश
अब जब भी मिलता है यश
प्रवाहित ........
नर्मदा की धार में कर देता हूँ
यश जिसे रोको तो एक लबादा बन जाता है
उतरता नहीं धुल में सना हो तो भी
स्टेटस सिम्बल सा चस्पा रहता है .. !
दिलो दिमाग पर
घर के बैठक खाने में सैल्फ बनवा कर सजा देता था ..
 इस दीवाली मुफ्त में रद्दी वाले को
काम वाली बिटिया को को दे दिए तमगे स्मृति चिन्ह
सब कुछ ........ कुछ नए आ गए हैं ....... इस दीवाली फिर निकाल दूंगा..
अहंकार से बचने ........ क्योंकि
अब जब भी मिलता है यश
प्रवाहित  जो कर देता हूँ
नर्मदा की धार में ....






20.4.16

सिलोचन यानी पंकचर जोड़ने वाला साल्यूशन पीने वाले बच्चे

अंकित साहू और अमिय यादव बीच में बच्चा
जो साल्यूशन के नशे का आदी है . 
आप चौंकते नहीं हो जब अपने सुकुमार बच्चे को स्कूटर कार  स्कूल छोड़ने या लेने जा रहे हों तब कोई बच्चा ठीक उसी उम्र का   . आप सोचिये जबलपुर नगर के बच्चे जब नशे की लत के गिरफ्त में हैं तो महानगरों की स्थिति क्या होगी. यह सब उन बच्चों के साथ हुआ करता है जिनके अभिभावक श्रमिक हैं जो सामाजिक सांस्कृतिक मूल धारा से बाहर इस वज़ह से क्योंकि वे अशिक्षित हैं .  उनका लक्षय दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम साथ में पुरुष की थकान के नाम पर शराब की व्यवस्था करना होता है. बावजूद इसके कि सरकारी स्कूल मौजूद हैं , उसके पहले आंगनवाडी सेवाओं का विस्तार है पर दिहाड़ी के लिए आए मज़दूर का जीवन 3 बिन्दुओं पर  शहर में  टिका हुआ होता है . दो वक्त की रोटी, शराब, और सामाजिक मूलधारा से अलगाव. बहुधा ये लोग रिक्शा चलाते हैं पर अब ऑटो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट एवं  कैब के दौर में ये रिक्शे वाले बहुत मुश्किल में हैं  . इनकी पत्नियां भी मज़दूरी अथवा झाड़ू-पौंछा आदि घरेलू काम में संलग्न होतीं हैं . बस ज़रा सा पैसा  दो वक्त की रोटी, शराब, में ख़त्म ... बच्चों के लिए तो मंदिर का दरवाज़ा,  सड़क का किनारा, कूड़े का ढेर ही  स्कूल  है . जहां जीवन जीने के लिए एक अर्थशास्त्र सीखते हैं ये बच्चे . कूड़े से प्लास्टिक और पन्नी बीन कर अथवा भीख मांगकर , कुछ पैसा घर में माँ को थमा देते हैं , कुछ पैसा  चुपके से बचाकर कंचे का जुआ , नशीला गुटखा, पंकचर जोड़ने वाले साल्यूशन को पीना, जैसे काम में लाते ये हैं बच्चे . इसके अलावा भी बच्चे हैं जो नर्मदा में कूदकर नारियल और चुन्नी खोज के लाते हैं . वापस दूकानदार उनको खरीदता है और फिर उनको  बिक्री के लिए तैयार बच्चों पर भी नज़र नहीं पड़ी किसी की . पड़ती भी है तो माँ रेवा के दर्शन से मोक्ष की लालसा लिए लोग क्यों इन मुद्दों पर सोचेंगे ? इन मुद्दों पर अंकित सरीखे  मूर्ख युवक सोचते हैं समझदार तो भीख देकर , छोटू चाय लाना बोलकर कुछ पैसा देकर मुंह मोड़ लेते हैं . क्यों नहीं हम सोचने को मज़बूर हैं कि इन बच्चों  को राष्ट्र और की मूलधारा में लाना है .  शायद हम सब इस बिंदु पर अत्यधिक लापरवाह हो चुके है किन्तु ऐसे दौर में भी  ज्ञानेश्वरी दीदी जैसी एक संत से मिलकर आपको लगेगा की संवेदनाएं अभी ज़िंदा हैं . 
 इस क्रम में एक कहानी ये भी देखिये 
 दिनांक 17 अप्रैल 16 रात्रि 11 बजे के आसपास जबलपुर के इंजीनियरिंग के विद्यार्थी अंकित साहू  और उनके मित्र सहयोगी गौरव एवं अमिय यादव  को माढ़ोताल थाना अंतर्गत साल्यूशन पीते हुए मिले बच्चे को पुलिस की मदद से बाल गृह भेजा गया है . इस कार्रवाई के दौरान CWC सदस्य श्री अरुण जैन मौजूद थे . अंकित के मन में नशे की गिरफ्त में आ चुके  बच्चों को को लेकर बेहद दर्द है . उसे भीख माँगते बच्चों की दशा भी नहीं देखी जाती . उसके चेहरे पर अजीब सा दर्द देखता हूँ. जब वो इन बच्चों पर विमर्श करता है .    

पिछले दिनों अंकित साहू मुझे फोन पर  बताया कि शहर से लगे  सूरतलाई क्षेत्र  के अधिकाँश बच्चे भीख माँगते हैं . स्कूल जाने की उम्र में इस तरह धन कमाने को मज़बूर बचपन के लिए एक बैचेनी लिए मुझे जब फोन किया तो मैंने तुरंत जिला बाल कल्याण अधिकारी श्री अखिलेश मिश्र को अवगत कराया . आश्वस्त हूँ कि वे शीघ्र अपेक्षित कार्रवाई अवश्य करेंगे .

16.4.16

वामअंग फरकन लगे 03

 
  इधर भारतीय जनमानस बाबा साहब को समझ ही रहे हैं कि   बाबा साहब पर लालियों के दावे पर मोहर लगाने नागपुर में कन्हैया के बयान पर आधारित वक्तव्य को एक पोर्टल ने  कुछ इस तरह छापा है  संघ संसद नहीं, 'मनुवादसंविधान नहीं
उन्होंने कहा, 'संघ संसद नहीं है और 'मनुवादसंविधान नहीं है।कन्हैया ने कहा कि मोदी सरकार जेएनयू जैसे शैक्षणिक संस्थानों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रही है और अपनी विचारधारा थोप रही है और छात्रों को उस गुनाह के लिए प्रताड़ित कर रही हैजो उन्होंने किया ही नहीं है ।
कन्हैया ने इन आरोपों का भी खंडन किया कि जेएनयू परिसर में भारत विरोधी नारे लगाए गए थे। इन्हीं नारों की वजह से राजद्रोह के आरोप में दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। भाषण के बाद संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, 'मोदी सरकार ने मुझे राजद्रोह के आरोप में फंसाकर बड़ी गलती की और मीडिया का इस्तेमाल मुझे राष्ट्र विरोधी के तौर पर पेश करने के लिए किया और मुझे जेल में डाल दिया।' उन्होंने कहा कि वह और अन्य लोग किसी भी कीमत पर जेएनयू की स्वायत्तता को बहाल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं ।
संघ संसद नहीं है - सच है कि संघ संसद नहीं है न ही संघ इस तरह का कोई दावा करता है न ही करेगा कि संघ संसद है . संसद संसद है संघ संघ है . सबका अपना अपना काम है . संघ ने "भारतसंघ" से ऊपर होने का दावा कभी किया भी कहाँ हैं आपकी नज़र में कोई ऐसा उदाहरण हो तो अवश्य बताएं  . मनुस्मृति पर आधारित हमारा समृद्ध संविधान है ही कहाँ ....? आप जिस बिम्ब को उकेरना चाहते हो वो एक काल्पनिक एवं युवा अवस्था की फैंटेसी मात्र है .  
  कन्हैया आप युवाओं को और समाज को  गुमराह करने की कोशिश अवश्य कर है इस तथ्य को कह  "संघ संसद नहीं है और 'मनुवादसंविधान नहीं है" जो सब जानते हैं मानते भी हैं पर आपका कथन  वर्त्तमान सन्दर्भों में सर्वथा गैरज़रूरी एवं बचकाना है . इससे बेहतर ये होता कि आप दलितों के मन में देशप्रेम की ज्वाला उकसाते ... पर आपका एजेंडा राष्ट्र का स्वाभिमान न होकर  है कुंठित मानव-शक्ति का सृजन करना है .  जिसकी झलक आपने 8 मार्च 16 के भाषण में सेना को बलात्कारी करार देकर दिखाई जिससे प्रेरणा से  अलगाववादी कश्मीर में सैनिक को बनकर में जलाने पर आमादा थे .
बाबा साहेब को नए सिरे से समझने एवं समझाने के अवसर पर पता नहीं क्यों "वामअंग फरकन लगे ?"  
वैसे मेरी नज़र में तुम गैर ज़रूरी हो पर  लेखक हूँ सही रास्ता बताना स्वाभाविक था सो बता दिया ........ मर्जी तुम्हारी मेरे बच्चे ....... 


10.4.16

सोशल मीडिया पर वायरल अभिशप्त गंधर्व : केशवलाल जी

आपको कभी लगता है कि सही ही है कि असाधारण प्रतिभा का धनी कोई गंधर्व शापित होकर क्या करता होगा कैसा रहता होगा इस धरती पर तो  आप इस कथा को अवश्य देखिये . श्री लंका में सैन्य कर्मियों का मनोरंजन करने वाले पिता से संगीत विरासत में पाकर केशव ने अपना हाथ हारमोनियम पर आज़माना और तब के गीतों को गाना  शुरू किया तो युवती सोनी बाई के इश्क में गिरफ्त हो गए . सोनी खुद संगीत की रसिक थीं . तब उनकी  उम्र 17 साल की थी. माया नगरी मुंबई तबकी बम्बई में वी. शांताराम के स्टूडियो के बाहर हारमोनियम पर फुदकतीं अँगुलियों ने शांताराम जी को मोहित कर लिया था.

केशव -सोनी           फोटो साभार :- राहुल राउत 

उनके लिए काम मुक़र्रर हुआ.नागिन में संगीत सहयोग दिया. परिवार के लिए नौकरी  न  स्वीकारंना केशव जी का ही निर्णय था . श्री केशव जी ने लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जी के साथ भी काम किया.
 फिर पूना में फुटपाथी केशव  सपत्नीक  सडकों पर गीत गाकर मुश्किल से जीवन जी रहे थे कि एक दिन उन पर आनंद सराफ नाम के बैंक कर्मी की नज़र पड़ी फिर क्या था बैंक कर्मियों ने एक सहायतार्थ शो रख कर उनकी मदद की . शो के निदेशक थे श्री आशोक भारुक आर्केष्ट्रा के संचालक . और लोगों ने स्टेंडिंग ओबेशन देकर इस गंधर्व को सराहा. साथ ही उनको मिला 75 हज़ार रुपये की राशि प्रदान की गई. ये वो समय था जब श्री केशवलाल एवं सोनी बाई  को उम्र के आख़िरी पडाव में एक नशेमन नसीब होना था.   अभिशप्त गंधर्व केशव को गणेश मंडलों एवं सहयोगियों की मदद से एक लाख बीस हजार की रकम हासिल हो चुकी थी . और एस आर ए योजना के तहत उनको चौथे माले पर एक फ्लेट मिला. जहां वे अब सुकून से रह रहें हैं . पर उनका संगीत पुणे में आज भी गूंजता है .... अपनी अँगुलियों की ताकत के लिए ईश्वर की कृपा  मानते हैं .  
केशव अपनी पत्नी को अपना और खुद को पत्नि  का अनुपूरक मानते हैं .  
केशव पर  रोचक साहू ने एक डाक्यूमेंट्री A Bohemian Musician - Award winning FTII Documentary फिल्म भी बनाई .  जिसे आप https://www.youtube.com/watch?v=QspCH-4ttlE&nohtml5=False लिंक पर देख सकते हैं .         


6.4.16

वामअंग फरकन लगे 02 - बाबा रामदेव ने क्या बदला ? : ज्योति अवस्थी

वामअंग फरकन लगे 01

के लिए आपका स्नेह मुझे प्रेरक लग रहा है .  वामअंग फरकन लगे 02 में मैं समुदाय से मिले आलेख को पेश कर रहा हूँ ...... उम्मीद है आपको पसंद आएगा . इस आलेख को प्रेषित किया है   सुश्रीज्योति अवस्थी जी ने उनका अग्रिम आभार 
आज वाट्सएप पर एक मित्र ने बाबा रामदेव जी की तस्वीरों को कोलाज़ बना के पोस्ट किया. तस्वीर पोस्ट कर वे बाबा को अपमानित करना चाहते हैं और सभी भारतीयों को दुखी ताकि प्रोवोग हों और एक अस्थिर वातावरण की पृष्ठभूमि तैयार हो पर वाट्सएप पर दूसरा सृजन भी मिला .... इस आलेख के ज़रिये जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वामअंग क्यों फड़क रहे हैं .......... 
रामदेव जी की बहुत सी आलोचनाएं आती है बाजार में,ढेरों शिकायते हैं....वो तो ख़त्म नहीं होंगी पर चूँकि आलोचक अपनी बात कहते हैं तो मैं भी कहूँगी अपनी बात.....
बाबा रामदेव का ठीक ठीक उद्भव तो याद नहीं मुझे पर 1996 में ग्वालियर से पढाई करके कानपुर लौटी तो पापा जबरदस्त प्रशंसक हो चुके थे बाबा रामदेव के, आज की तरह संचार के साधनों तक इतनी आसान पहुँच नहीं थी पर दोपहर में मोहल्ले की महिलाओं की बैठक में,पापा के दोस्तों के साथ लगते ठहाकों में बाबा रामदेव गूँज रहे होते थे, योग आसनों पर चर्चा थी,कहीं दमे का बाबा का बताया गया इलाज था कहीं आँखों की तेज रौशनी का नुस्खा। एक हरिश्चंद्र अंकल जी वाली आंटी तो बाबा रामदेव की बुराई करने वाले का मुंह नोच लें इतनी खूंखार हो गयी थीं क्योंकि उन्हें दमा में बहुत आराम मिला था उनके बताये नुस्खे से....
बाबा रामदेव ने ठन्डे के नाम पर बोतलबंद पेयों और सौंदर्य उत्पादों से हमें आगाह किया और ठंडा मतलब सिर्फ कोकाकोला ही नहीं रहा बल्कि लस्सी और गन्ने का रस भी हो गया।फेयर एंड लवली से अधिक क्षमतावान मलाई और हल्दी जैसी आम से रसोई में मिलने वाली चीजें हो गयीं।उन्होंने स्वदेशी के प्रति लोगों का सोया आत्मसम्मान जगाया,उन्होंने स्वदेशी के प्रति लोगों की झिझक ख़त्म की,महंगे विदेशी उत्पादों के मुकाबले हमारे उत्पाद किसी से कम नहीं थे ये हमने जाना भी और खुद को कमतर आंकने की प्रव्रत्ति का त्याग भी किया। इसमें आलोचना जैसा कुछ नहीं था पर फिर भी जिनके अंदर भारत को आत्मनिर्भर या खुश देख के जलन होती है उन्होंने जहर उगला ही।
फिर आलोचना की असली वजह आई-पतंजलि। स्वदेशी की अवधारणा पर बना पतंजलि विश्वविद्यालय और स्वदेशी उत्पादों की एक बड़ी श्रृंखला। आलोचक(भारत स्वाभिमान को हर यत्न से दबाने वाले) चिल्लाने लगे, ये तो कारोबारी है कारोबार करना चाहता था इसलिए इतनी भूमिकाएं गढ़ीं।चलिए हम मान लेते हैं ये सत्य था पर यदि ये सत्य भी है तो आपको दिक्कत क्या है? वे कह रहे थे आप मिले जुले अनाज का आटा खाओ, (डॉक्टर भी अब वही कह रहे हैं) आप पिसवाईए सब मिला कर,पर ये जो आजादी के बाद पीढ़ी तैयार हुई थी न बाबा को भी पता था कि इसे समझ सब कुछ आ भी जाये तो ये अपने लिए इतनी मेहनत करने से तो रही। वे आटा ले आये.... ready made.... आपको नहीं लेना मत लो कोई बन्दूक की नोंक पर तो दे नही रहे बाबा, उन्होंने कहा आप हल्दी चन्दन मुल्तानी मिटटी के लेप से गोरे हो जायेंगे तो अगर आपसे रोज ये लेप नहीं बनता तो आप उनकी कांति क्रीम ले आओ,और नहीं लानी तो मत लाओ कोई जबरदस्ती तो है नहीं,जहाँ इतने उत्पाद हैं वहां एक और सही।उन्होंने कहा कोकाकोला टॉयलेट क्लीनर है, जो बाद में सिद्ध भी हुआ। अभी पिछले दिनों बेटी के विद्यालय में आई चिकित्सकों की एक टीम आई उन्होंने अभिभावकों को आगाह किया कि वे अपने बच्चों को सभी तरह के fast food और cold drinks से दूर रखें अन्यथा न सिर्फ बच्चों की कार्य क्षमताएं प्रभावित हो रही हैं बल्कि वे समय से बहुत पहले शारीरिक रूप से विकसित भी हो रहे हैं।अब अगर आपको बच्चों के बालहठ भीं पूरे करने हैं और उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान देना है तो बाबा ने आपको स्वदेशी पेय पदार्थों का विकल्प दिया,आपको लेना हो लो नहीं तो टॉयलेट साफ़ ही कर लो। कोई जबरदस्ती तो है नहीं। बाबा ने कहा आंवला स्वास्थ्य के लिए रामबाण है,पर अपने कसैले स्वाद के कारण आपसे खाया नहीं जाता तो मुरब्बा बना लो। आपसे 48 घंटे चूने के पानी में भिगो के फिर काँटों से गोद के आंवले का मुरब्बा बनता हो तो बना लो वरना बाबा ने विकल्प दिया सीधे खरीद लो। आपको नहीं लेना मत लो,किसी ने मजबूर तो नहीं किया।आज भी वे देशी नुस्खे बताते समय दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं में ही औषधियां खोज लाते हैं आपको उसमे नुकसान होता हो तो मत प्रयोग करिये।
बाबा रामदेव ने स्वदेशी को स्वाभिमान से सिर्फ जोड़ा ही नहीं बल्कि बजाय उपदेश मात्र देने के उसे सही सिद्ध करने के लिए काम भी किया। उन्होंने वामपंथ के खतरे से अनजान एक पूरी पीढ़ी को न सिर्फ स्वदेशी की भावना के प्रति बल्कि स्वयं अपने प्रति भी सम्मान सिखाया।
आज हर सुबह न सिर्फ पार्कों में बल्कि घरों के drawing rooms में योग एक आम दैनिक और आवश्यक कार्य है बल्कि कभी सिर्फ सेक्स और शाहरुख़ बेचने वाले बॉलीवुड की बिक्री को भी योग ने प्रभावित किया। तमाम बॉलीवुड बालाओं के शून्य आकार में योग power योगा बन के केंद्रीय भूमिका निभाने लगा।लस्सी,फलों के रस और दूध बेचते दुकानदारों के पास भी भीड़ लगने लगी।इससे न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक असर पड़ा बल्कि छोटे दुकानदारों को आर्थिक लाभ भी पहुँचने लगा।सुबह लोग चाय के साथ गेहूँ का अर्क और लौकी का रस भी पीने लगे। विकसित भारत,शिक्षित भारत,आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत स्वस्थ भारत से होगी लोगों को समझ आने लगा।
अब आपकी एक और तकलीफ कि खुद को बाबा कहने वाला आदमी राजनीति में क्यों रूचि लेता है?क्यों भई?समाज के लिए निहायत अनुपयोगी,अनपढ़,गंवार,विदूषक,हर काम से भागने वाले लोग, सिर्फ चापलूसी,चाकरी,गुंडागर्दी,खानदानी दौलत के बल पर हमारे संसद में हमारे प्रतिनिधि बन सकते थे तो स्वयं को अपनी मेहनत के दम पर बिनां किसी पारिवारिक विरासत के समाज को एक उपयोगी दिशा देने वाला क्यों नहीं राजनीति में दखल दे सकता था? मेरे और आपके जैसे बिना किसी हैसियत वाले लोग यहाँ सोशल मीडिया पर मोदी से लेकर ओबामा तक को सलाह देते हैं, देश कैसे चलना चाहिए इस पर विशेषज्ञ विचार प्रस्तुत करते हैं और करने भी चाहिए, ये देश सरकार से पहले हमारा है तो इसकी हर आयाम पर उन्नति हो इसके लिए हर एक को अपनी भागीदारी सुनिश्वित करनी चाहिए तो बाबा रामदेव ने की क्या गलत किया? उन्होंने अक्षम और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर प्रश्न किया तो क्यों गलत था? सन्त अपने हिस्से के सांसारिक सुखों का त्याग करते हैं पर अपनी माता का नहीं और देश को हम माँ मानते हैं आपको तो उस पर भी आपत्ति है (बनी रहे)
यहाँ एक पूरी गोट बिछा के हमारे विश्वास और भावनाओं को मोहरा बना के सर्वथा अनुपयोगी, हर काम को अधूरा छोड़ के भागने वाले,जिसका सकारात्मक समाज और देश के लिए कोई योगदान भी नहीं था ऐसे व्यक्ति को विदेशों से धन और योजनाएं आयातित करके योजनाबद्ध तरीके से राजनीति का मुकुट पहना दिया गया जो व्यक्ति हर विभाग में अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता सिद्ध करके आया वह दिल्ली का सम्राट बन के बैठ गया आपको आपत्ति नहीं हुई। क्यों? क्योंकि वो भारत को बदलने नहीं पुनः सुलाने की व्यवस्था में लगा था। वह भारत के मुफ्तखोरी के चरित्र को और स्पष्ट बनाना चाहता था। और यही आप चाहते थे।
और निंदक गुरु जी कहते हैं
पतंजलि के उत्पादों से यूनी लीवर और कोलगेट पामआलिव जैसी आंग्ल-अमेरिकन MNS,s को क्या कष्ट है? इस पहलू से भी देखना पड़ेगा। हम विश्व के विशालतम उपभौक्ता हैं। इन विदेशी कम्पनियों के हित में पानी पी पीकर पतंजलि को कोस रहे लोग कौन हैं?पहचानिए! ये बाबा रामदेव के विरोधी भाड़े के लोग किसके पेरोल पर हैं? यूनिलीवर, कोक, पेप्सी के या कोलगेट पामोलिव के। मुफ्त सेवा तो अपने बाप की न करें ये लोग।
आपको तकलीफ बाबा रामदेव से और हर उस व्यक्ति से है जो भारत को सक्षम बनाना चाहेगा।आपकी तकलीफ हमें और,और पुनः पुनः सफल करेगी। आपको बाबा रामदेव पसंद नहीं आप स्वतंत्र हैं पर अब आपको विषवमन नहीं करने दिया जायेगा ये तय है।

4.4.16

वामअंग फरकन लगे 01

इस आलेख का जय श्रीराम से कोई वास्ता नहीं न ही तुलसीबाबा से . न ही उनके इस काव्यांश से . हाँ अर्थ अवश्य निकलेगा 
लेखक हूँ लिखूंगा . लिखना मेरा धर्म है . तुम्हारी नींद अल्लसुबह खुल जाती है तो क्या मैं भी सुबह सकारे उठ जाऊं. न बाबा न मुझे रात प्रेत घेर लेते हैं बोलते हैं लिखो वरना........ वरना क्या ........... ?
वरना कुछ नहीं बस यूं ही हम तो मज़ाक कर रहे हैं . चलो उनने कहा तो लिक्खे देता हूँ . 
                 रविवार का अवकाश ख़त्म कर मैंने अपने दफ्तर में कई दुश्मन पैदा कर लिए बरसों से जो चला आ रहा है .  रविवार का अवकाश हमने तोड़ दी नाराज होंगे ही . खैर  बात किधर से शुरू करूँ  ...... सूरज भाई की किताब पढ़ रहा था. उनकी एक गज़ल  शेर मन को भाया. भाई तो पूरी ग़ज़ल गई है......   पर ये देखिये क्या खूब लिखा है - 
"खुद परस्ती में बाँट गया इंसां
आज कितना सिमट गया  इंसां"
             वाकई पूरी ग़ज़ल में एक और शेर है जो दिल को बार बार यह करने के लिए मज़बूर किया करता है कि अब सूरज राय जी की अंगुलियाँ चूम लेना जिनने कलम पकड़ के ये लिखा -
       दायरा  बढ़  गया है  बातों  का 
       और सोचों से घाट गया  इंसां .
                    सुबह सकारे वाट्सएप पर अलग स्टाइल  सुप्रभात कहने वाला शायर बेहद तीखा है . तीखा इस वज़ह से है क्योंकि वो सचाई उगल रहा है . वो कह रहा है 
      मयकदे का ख़याल आते ही 
      मस्जिदों से पलट गया  इंसां
                      मित्रो मुझे मुनादी कर कर के बदनाम मत करो सूरज भाई ने कहा वही मैं सपाट लहजे में साफ़ साफ़ वाट्सएप फेसबुक पे कहा करता हूँ कि भाई व्यापक  सोचिये, खुदपरस्त मत बनिए, मयकदे का खयाल ज़ेहन में न आने दीजिये वरना लक्ष्य से भटक जाओगे तो मुझे पता नहीं क्या क्या कह देते हैं . 
                    सुबह कुछ मित्रों को बताया कि भाई अंधेरों से मत लिपटो ........ हमारा काम अवसाद में जीना नहीं है न ही हम अवसादी लाल हैं. अपनी चेतना में आयातित विचारों को जगह मत दो जो छत्तीसगढ़ में मज़लूम लोगों के खून से सफ़ेद कपड़ों को लाल बना कर ध्वज का रूप दे तो कुछ भाई लोग इत्ते खफा होगे कि बस लगे मुझे गरियाने. भाई ........ बाएँ अंग को फड़कने मत दो किसी अंग को भी फड़कने मत दो . ज़िंदा रहो ज़िंदा रहने दो बरसों से किसी की हाफ-पेंट को "चड्डी" और उसे पहने हों को "चड्डीधारी" कह माखौल उड़ा के क्या कहना चाह रहे हो यही न कि आप इस उस की चड्डी झांकते फिरते हो . मित्र मछलियाँ आकाश में न कभी उड़ीं न कभी उडेंगी . सिगमेंट में जीना छोड़ दो . ये सबसे बड़ी साम्प्रदायिकता है . मत बांटो गैर ज़रूरी पर्चे , न ही किताबों के वो अंश जो रिलिवेंट नहीं तो क्या मैं धर्मांध हूँ. न मेरी जाकिर अली रज़नीश से कोई लड़ाई है न महफूज़ मुझसे मिले बिना लखनऊ वापस जाते हैं तो युद्ध कहाँ हैं ......... आपकी अक्ल से युद्द उपज रहे हैं अब्दुल आज भी सरस्वती वन्दना में शामिल है. चन्दन आज भी अलाव कूद रहा है वो दौनो दोस्त हैं वो युद्ध नहीं परसते वो मिलके क्रिकेट खेलते हैं रानीताल मैदान में या शहीद स्मारक ग्राउंड में . 
                 तुम हो कि माचिस लिए घूम रहे हो शहर की फिजा बिगाड़ने में . तुमको डर है न कि कौमें एक न हों जाएं ? मेरे हिसाब से डर रहे हो..... मिल गए तो तुम्हारे खोमचे पलट जाएंगें ... मुझे मालूम है ........ तुम्हारी हरकतों से अब्दुल हई "अंजुम" साब ने बहुत पहले चेता दिया था -
                  तेज़ चलने वाली है हवा अंजुम
                  बुझा के चिराग अंगनाई में रखिये . 
        क्यों फरकन लगे न ........ 



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