9.10.15

क्रांतिकारी लेखक थे मुंशी प्रेमचंद : फ़िरदौस ख़ान

मुंशी प्रेमचंद क्रांतिकारी रचनाकर थे. वह समाज सुधारक और विचारक भी थे. उनके लेखन का मक़सद सिर्फ़ मनोरंजन कराना ही नहीं, बल्कि सामाजिक कुरीतियों की ओर ध्यान आकर्षित कराना भी था. वह सामाजिक क्रांति में विश्वास करते थे. वह कहते थे कि समाज में ज़िंदा रहने में जितनी मुश्किलों का सामना लोग करेंगे, उतना ही वहां गुनाह होगा. अगर समाज में लोग खु़शहाल होंगे, तो समाज में अच्छाई ज़्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा. मुंशी प्रेमचंद ने शोषित वर्ग के लोगों को उठाने की हर मुमकिन कोशिश की. उन्होंने आवाज़ लगाई- ऐ लोगों, जब तुम्हें संसार में रहना है, तो ज़िंदा लोगों की तरह रहो, मुर्दों की तरह रहने से क्या फ़ायदा.

मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले के गांव लमही में हुआ था. उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल और माता का नाम आनंदी देवी था. उनका बचपन गांव में बीता. उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फ़ारसी की शिक्षा हासिल की. 1818 में उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. वह एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापन का कार्य करने लगे और कई पदोन्नतियों के बाद वह डिप्टी इंस्पेक्टर बन गए. उच्च शिक्षा उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की. उन्होंने अंग्रेज़ी सहित फ़ारसी और इतिहास विषयों में स्नातक किया था. बाद में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में योगदान देते हुए उन्होंने अंग्रेज़ सरकार की नौकरी छोड़ दी.

प्रेमचंद ने पारिवारिक जीवन में कई दुख झेले. उनकी मां के निधन के बाद उनके पिता ने दूसरा विवाह किया. लेकिन उन्हें अपनी विमाता से मां की ममता नहीं मिली. इसलिए उन्होंने हमेशा मां की कमी महसूस की. उनके वैवाहिक जीवन में भी अनेक कड़वाहटें आईं. उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ था. यह विवाह उनके सौतेले नाना ने तय किया था. उनके लिए यह विवाह दुखदाई रहा और आख़िर टूट गया. इसके बाद उन्होंने फ़ैसला किया कि वह दूसरा विवाह किसी विधवा से ही करेंगे. 1905 में उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह कर लिया. शिवरानी के पिता ज़मींदार थे और बेटी का पुनर्विवाह करना चाहते थे.  उस वक़्त एक पिता के लिए यह बात सोचना एक क्रांतिकारी क़दम था. यह विवाह उनके लिए सुखदायी रहा और उनकी माली हालत भी सुधर गई. वह लेखन पर ध्यान देने लगे. उनका कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ, जिसे ख़ासा सराहा गया.

उन्होंने जब कहानी लिखनी शुरू की, तो अपना नाम नवाब राय धनपत रख लिया. जब सरकार ने उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन ज़ब्त किया. तब उन्होंने अपना नाम नवाब राय से बदलकर प्रेमचंद कर लिया और उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से ही प्रकाशित हुआ.  कथा लेखन के साथ उन्होंने उपन्यास पढ़ने शुरू कर दिए. उस समय उनके पिता गोरखपुर में डाक मुंशी के तौर पर काम कर रहे थे. गोरखपुर में ही प्रेमचंद ने अपनी सबसे पहली साहित्यिक कृति रची, जो उनके एक अविवाहित मामा से संबंधित थी. मामा को एक छोटी जाति की महिला से प्यार हो गया था. उनके मामा उन्हें बहुत डांटते थे. अपनी प्रेम कथा को नाटक के रूप में देखकर वह आगबबूला हो गए और उन्होंने पांडुलिपि को जला दिया. इसके बाद हिंदी में शेख़ सादी पर एक किताब लिखी. टॊल्सटॊय की कई कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया. उन्होंने प्रेम पचीसी की भी कई कहानियों को हिंदी में रूपांतरित किया, जो सप्त-सरोज शीर्षक से 1917 में प्रकाशित हुईं. इनमें बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दंड, पंच परमेश्वर, नमक का दरोग़ा, उपदेश, परीक्षा शामिल हैं. प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में इनकी गणना होती है. उनके उपन्यासों में सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, वरदान, निर्मला, ग़बन, कर्मभूमि, कृष्णा, प्रतिज्ञा, प्रतापचंद्र, श्यामा और गोदान शामिल है. गोदान उनकी कालजयी रचना मानी जाती है. बीमारी के दौरान ही उन्होंने एक उपन्यास मंगलसूत्र लिखना शुरू किया, लेकिन उनकी मौत की वजह से वह अधूरा ही रह गया. उनकी कई रचनाएं उनकी स्मृतियों पर भी आधारित हैं. उनकी कहानी कज़ाकी उनके बचपन की स्मृतियों से जुड़ी है. कज़ाकी नामक व्यक्ति डाक विभाग का हरकारा था और लंबी यात्राओं पर दूर-दूर जाता था. वापसी में वह प्रेमचंद के लिए कुछ न कुछ लाता था. कहानी ढपोरशंख में वह एक कपटी साहित्यकार द्वारा ठगे जाने का मार्मिक वर्णन करते हैं.

उन्होंने अपने उपन्यास और कहानियों में ज़िंदगी की हक़ीक़त को पेश किया. गांवों को अपने लेखन का प्रमुख केंद्रबिंदु रखते हुए उन्हें चित्रित किया. उनके उपन्यासों में देहात के निम्न-मध्यम वर्ग की समस्याओं का वर्णन मिलता है. उन्होंने सांप्रदायिक सदभाव पर भी ख़ास ज़ोर दिया. प्रेमचंद को उर्दू लघुकथाओं का जनक कहा जाता है. उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख और संस्मरण आदि विधाओं में साहित्य की रचना की, लेकिन प्रसिद्ध हुए कहानीकार के रूप में. उन्हें अपनी ज़िंदगी में ही उपन्यास सम्राट की पदवी मिल गई. उन्होंने 15 उपन्यास, तीन सौ से ज़्यादा कहानियां, तीन नाटक और सात बाल पुस्तकें लिखीं. इसके अलावा लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र लिखे और अनुवाद किए. उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. उनकी कहानियों में अंधेर, अनाथ लड़की, अपनी करनी, अमृत, अलग्योझा, आख़िरी तोहफ़ा, आख़िरी मंज़िल, आत्म-संगीत, आत्माराम, आधार, आल्हा, इज़्ज़त का ख़ून, इस्तीफ़ा, ईदगाह, ईश्वरीय न्याय, उद्धार, एक आंच की कसर, एक्ट्रेस, कप्तान साहब, कफ़न, कर्मों का फल, कवच, क़ातिल, काशी में आगमन, कोई दुख न हो तो बकरी ख़रीद लो, कौशल, क्रिकेट मैच, ख़ुदी, ख़ुदाई फ़ौजदार, ग़ैरत की कटार, गुल्ली डंडा, घमंड का पुतला, घरजमाई, जुर्माना, जुलूस, जेल, ज्योति,झांकी, ठाकुर का कुआं, डिप्टी श्यामचरण, तांगेवाले की बड़, तिरसूल तेंतर, त्रिया चरित्र, दिल की रानी, दुनिया का सबसे अनमोल रतन, दुर्गा का मंदिर, दूसरी शादी, दो बैलों की कथा, नबी का नीति-निर्वाह, नरक का मार्ग, नशा, नसीहतों का दफ़्तर, नाग पूजा, नादान दोस्त, निर्वासन, नेउर, नेकी, नैराश्य लीला, पंच परमेश्वर, पत्नी से पति, परीक्षा, पर्वत-यात्रा, पुत्र- प्रेम, पूस की रात, प्रतिशोध, प्रायश्चित, प्रेम-सूत्र, प्रेम का स्वप्न, बड़े घर की बेटी,  बड़े बाबू, बड़े भाई साहब,  बंद दरवाज़ा, बांका ज़मींदार, बूढ़ी काकी, बेटों वाली विधवा, बैंक का दिवाला, बोहनी, मंत्र, मंदिर और मस्जिद, मतवाली योगिनी, मनावन, मनोवृति, ममता, मां, माता का हृदय, माधवी, मिलाप, मिस पद्मा, मुबारक बीमारी, मैकू, मोटेराम जी शास्त्री, राजहठ, राजा हरदैल, रामलीला, राष्ट्र का सेवक, स्वर्ग की देवी, लेखक, लैला, वफ़ा का ख़ंजर, वरदान, वासना की कड़ियां, विक्रमादित्य का तेगा, विजय, विदाई, विदुषी वृजरानी, विश्वास, वैराग्य, शंखनाद, शतरंज के खिलाड़ी, शराब की दुकान, शांति, शादी की वजह, शूद्र, शेख़ मख़गूर, शोक का पुरस्कार, सभ्यता का रहस्य, समर यात्रा, समस्या, सांसारिक प्रेम और देशप्रेम, सिर्फ़ एक आवाज़, सैलानी,  बंदर, सोहाग का शव, सौत, स्त्री और पुरुष, स्वर्ग की देवी, स्वांग, स्वामिनी, हिंसा परमो धर्म और होली की छुट्टी आदि शामिल हैं. साल 1936 में उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन को सभापति के रूप में संबोधित किया था. उनका यही भाषण प्रगतिशील आंदोलन का घोषणा-पत्र का आधार बना. प्रेमचंद अपनी महान रचनाओं की रूपरेखा पहले अंग्रेज़ी में लिखते थे. इसके बाद उन्हें उर्दू या हिंदी में अनुदित कर विस्तारित करते थे.

प्रेमचंद सिनेमा के सबसे ज़्यादा लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं. उनकी मौत के दो साल बाद के सुब्रमण्यम ने 1938 में सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई. प्रेमचंद की कुछ कहानियों पर और फ़िल्में भी बनी हैं, जैसे सत्यजीत राय की फ़िल्म शतरंज के खिलाड़ी. प्रेमचंद ने मज़दूर फ़िल्म के लिए संवाद लिखे थे. फ़िल्म में एक देशप्रेमी मिल मालिक की कहानी थी, लेकिन सेंसर बोर्ड को यह पसंद नहीं आई. हालांकि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब में यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई. फ़िल्म का मज़दूरों पर ऐसा असर पड़ा कि पुलिस बुलानी पड़ गई. आख़िर में फ़िल्म के प्रदर्शन पर सरकार ने रोक लगा दी. इस फ़िल्म में प्रेमचंद को भी दिखाया गया था. वह मज़दूरों और मालिकों के बीच एक संघर्ष में पंच की भूमिका में थे. 1977  में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से एक तेलुगु फ़िल्म बनाई, जिसे सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फ़िल्म का राष्ट्रीय प्रुरस्कार मिला. 1963 में गोदान और  1966 में ग़बन उपन्यास पर फ़िल्में बनीं, जिन्हें ख़ूब पसंद किया गया. 1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था.

8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर रोग से मुंशी प्रेमचंद की मौत हो गई. उनकी स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के मौक़े पर  30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया. इसके अलावा गोरखपुर के जिस स्कूल में वह शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई. यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है. प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी. उनके बेटे अमृत राय ने भी क़लम का सिपाही नाम से उनकी जीवनी लिखी.

30.9.15

खुद को नया विस्तार देने जा रहा हूँ



खुद को नया विस्तार देने जा रहा हूँ
 तय नहीं मंजिल मगर मैं जा रहा हूँ .

मैं अकेला ही तो आया था यहाँ –
इक जुड़ा दूजा जुड़ा फिर कारवां ....
बात जो थी कल में अब वो कहाँ –
सबके ज़ेहन में पनपते आसमाँ !
     निकल के घर से बताने ये ही सबको आ रहा हूँ !!
:::::::::::::::::
मखमली  बिस्तर  की  जुगतें  मत लगा -  
शूल की शैया सजा दे, तेग से तकिया बना !
अतिथि हूँ आपका, कुछेक-दिन का साथ है –
फिर वही यायावरी है और तड़पती आवाज़ है
      मीत, अब में जा रहा हूँ गीत भी ले जा रहा हूँ !!
:::::::::::::::::
सच कहूं संघर्ष हूँ !  संघर्ष का परिणाम हूँ .
झुका न जो सच कभी, वो टूटता अंजाम हूँ !
गीत पीडा के मुझे अब दिल से गाने दीजिये –
पल हैं जितने पास मेरे मुस्कुराने दीजिये !!
     पीर इतनी है कि अब मैं मुस्कुराने जा रहा हूँ !!
                       गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”




27.9.15

बालभवन में मेरा रचनात्मक एक साल

बालभवन जबलपुर के संचालक (सहायक-संचालक स्तर ) के पद पर पूरे #365 दिन 26 सितम्बर 15  हो चुके हैं . बालभवन में इस सफल एक साल के मौके पर  आज ज़रा सी पर्सनल बात करने का हक़ तो है न ..  आज से नई पारी पर हूँ  . आशीर्वाद दीजिये  मैंने से मुझे हम बनाने में मुश्किल से एक माह लगा और फिर शुरू हुई हम व हमारी कार्ययात्रा . सबसे पहले हमें  हमारी पहचान को बनाना था सो कोशिश की भुत झटके मिले . विरोधियों का रडार हमारे सिगनल कैच करता उसका अधकचरा विश्लेषण करता और नकारात्मक वैचारिक प्रवाह को उत्प्रेरित करता पर जब भी वार होता हम सम्हाल लेते हम सम्हाल सकते थे तो सम्हाल लिया ... मैं ये वो अकेले न सम्हाल पाते 01  नवम्बर को मानस भवन सभागार में अचानक बच्चों ने वो कमाल कर दिखाया जो किसी ने सपने में भी न सोचा था . फिर शहीद-स्मारक में   14 नवम्बर 14 को हमारी टीम ने जो किया [ जिसे रोकने की भरपूर कोशिशें की  थीं ] . वो अविस्मरनीय रहा . बच्चों की टीम ने बिना धन खर्च किये ऐसे प्रेरक कार्यक्रम को आकार दे दिया जो आज भी मेरे मानस से हटाए न हट सका है . . क्रम जारी रहा प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया सबने सच्ची कोशिशें मुक्तकंठ  सराहीं ... कई बच्चों ने मिलकर बनाई एक पेंटिंग का लोकार्पण 14 नवम्बर 14 को हुआ था उसे बच्चों के आग्रह पर श्रीमती प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव आई जी महिला सेल की मदद  श्रीमती सुरेखा परमार के सहयोग से  बच्चों नें मुख्यमंत्री जी को नारीशक्ति की प्रतीक शक्तिरूपा पेंटिंग  भेंट की जो यादगार  पल था . आज भी मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री निवास पर पेंटिंग लगी हुई है .  कहने को बहुत कुछ है पर आत्मप्रशंसा शर्मिन्दा कर देती है . फिर भी कुछ तो कहूंगा 
पूरे एक साल में हमने जो किया वो हमारे ब्लॉग किलकारी पर दर्ज हैhttp://kilakari.blogspot.in/
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इसके अलावा पर भी मिल जाएगा . 


‪#‎टाकशो‬ ‪#‎स्ट्रीटप्ले‬ ‪#‎लाडो_मेरी_लाडो_एलबम‬ और सामाजिक मुद्दों पर अपनी भागीदारी . आभार सभी का ..... ख़ास तौर पर उनका जो चुनौती देते रहे हम मज़बूत होते रहे ... हमने व्यक्तिगत सार्वजनिक अपमान को भी सम्मान से स्वीकारा . हमने सहयोग की सुबह की ओर हमेशा निहारा . हमारे साथ जुडीं मित्रों की शुभकामनाएं ... कुछ दूर चले ही थे की उतावले सहयोगी हाथों ने हमें आगे आने के लिए चीयर अप किया .. चुनौतियां पराजित हुईं ...... शून्य से बिंदु बिन्दु प्रकाश हमारा पथ प्रदर्शक हुआ .. जो जुड़ा सो जुड़ा ...... जो जुदा हुआ वो जुड़ सकता है हम पूर्वाग्रही कतई नहीं ....... आइये नव-सर्जन करें ...... कला जो जीवन का सौन्दर्य है उसे निखारें कल की दुनिया को संवारें ........

                सामाजिक मुद्दों पर अपनी भागीदारी . आभार सभी का ..... ख़ास तौर पर उनका जो चुनौती देते रहे हम मज़बूत होते रहे ... हमने व्यक्तिगत सार्वजनिक अपमान को भी सम्मान से स्वीकारा . हमने सहयोग की सुबह की ओर हमेशा निहारा . हमारे साथ जुडीं मित्रों की शुभकामनाएं ... कुछ दूर चले ही थे की उतावले सहयोगी हाथों ने हमें आगे आने के लिए चीयर अप किया .. चुनौतियां पराजित हुईं ...... शून्य से बिंदु बिन्दु प्रकाश हमारा पथ प्रदर्शक हुआ .. जो जुड़ा सो जुड़ा ...... जो जुदा हुआ वो जुड़ सकता है हम पूर्वाग्रही कतई नहीं ....... आइये नव-सर्जन करें ...... कला जो जीवन का सौन्दर्य है उसे निखारें कल की दुनिया को संवारें ........

26.9.15

पब्लिक सेक्टर , प्राइवेट सेक्टर और अब पर्सनल सेक्टर से हो सकता है विश्व के 1.3 बिलियन गरीबों का भला

मित्रो यह भाषण यथा प्राप्त प्रस्तुत है जिसका  विश्लेषण  मिसफिट के आगामी अंक में प्रस्तुत  किया जावेगा . 

आधुनिक महानायक महात्मा गांधी ने कहा था कि हम उस भावी विश्व के लिए भी चिंता करें जिसे हम नहीं देख पाएंगे। जब-जब विश्व ने एक साथ आकर भविष्य के प्रति अपने दायित्व को निभाया है, मानवता के विकास को सही दिशा और एक नया संबल मिला है।
सत्तर साल पहले जब एक भयानक विश्व युद्ध का अंत हुआ था, तब इस संगठन के रूप में एक नई आशा ने जन्म लिया था। आज हम फिर मानवता की नई दिशा तय करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। मैं इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मलेन के आयोजन के लिए महासचिव महोदय को ह्रदय से बधाई देता हूँ। एजेंडा 2030 का विजन महत्वाकांक्षी है और उद्देश्य उतने ही व्यापक हैं। यह उन समस्याओं को प्राथमिकता देता है, जो पिछले कई दशकों से चल रही हैं। साथ ही साथ यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के विषय में हमारी परिपक्व होती हुई सोच को भी दर्शाता है।
यह ख़ुशी की बात है कि हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सब से ऊपर है। आज दुनिया में 1.3 बिलियन लोग गरीबी की दयनीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। हमारे सामने प्रश्न केवल यह नहीं है कि गरीबों की आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाये और न ही यह केवल गरीबों के अस्तित्व और सम्मान तक ही सीमित प्रश्न है। साथ ही यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी मात्र है, ऐसा मानने का भी प्रश्न नहीं है। अगर हम सब का साझा संकल्प है कि विश्व शांतिपूर्ण हो, व्यवस्था न्यायपूर्ण हो, और विकास सतत हो। गरीबी के रहते यह कभी भी सम्भव नहीं होगा। इसलिए गरीबी को मिटाना हम सबका पवित्र दायित्व है।
भारत के महान विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का केंद्र अन्त्योदय रहा है। UN के एजेंडा 2030 में भी अन्त्योदय की महक आती है। भारत दीनदयाल जी के जन्मशती वर्ष को मनाने की तैयारी कर रहा है, तब यह निश्चित ही एक सुखद संयोग है।
भारत एन्वायरमेंटल गोल के अंतर्गत क्लाइमेट चेंज और सस्टेनेबल कन्जंपशन को दिए गये महत्व का स्वागत करता हैं। आज विश्व आइसलैंड स्टेट्स की चिंता कर रहा है। ऐसे राष्ट्रों के भविष्य पर ध्यान केंद्रित करता है, यह स्वागत योग्य है। इनके इको सिस्टम पर अलग से लक्ष्य निर्धारण, मैं उसे एक अहम कदम मानता हूँ।
मैं ब्लू रिवॉल्यूशन का पक्षधर हूं, जिसमें हमारे छोटे- छोटे आइसलैंड राष्ट्रों की रक्षा एवं समृद्धि, सामुद्रिक संपत्ति का नयोचित उपयोग और नीला आसमान, ये तीनों बातें सम्मलित हैं। हम भारत के लोगों को लिए ये संतोष का विषय है कि भारत ने विकास का जो मार्ग चुना है, उसके और UN द्वारा प्रस्तावित सस्टेनेबल डेवलप गोल्स के बीच बहुत सारी समानताएं हैं। भारत जब से आजाद हुआ, तब से गरीबी से मुक्ति पाने का सपना हम सबने संजोया है। हमने गरीबों को सशक्त बनाकर गरीबी को पराजित करने का मार्ग चुना है। शिक्षा एवं स्किल डेवलपमेंट हमारी प्राथमिकता है। गरीब को शिक्षा मिले और उसके हाथ में हुनर हो, यह हमारा प्रयास है।
हमने निर्धारित समय सीमा में फाइनेंशियल इन्क्लूजन पर मिशन मोड में काम किया है। 180 मिलियन नए बैंक खाते खोले गए। यह गरीबों का सबसे बड़ा एम्पावरमेंट है। गरीबों को मिलने वाले लाभ सीधे खाते में पहुंच रहे है। गरीबों को बीमा योजनाओं का सीधे लाभ मिले, इसकी महत्वाकांक्षी योजना आगे बढ़ रही है।
भारत में बहुत कम लोगों के पास पेंशन सुविधा है। गरीबों तक पेंशन की सुविधा पहुंचे, इसलिए पेंशन योजनाओ के विस्तार का काम किया है। आज गरीब से गरीब व्यक्ति में गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की उमंग जगी है। नागरिकों के मन में सपने सच होने का विश्वास पैदा हुआ है।
विश्व में आर्थिक विकास की चर्चा दो ही सेक्टर तक सीमित रही है। या तो पब्लिक सेक्टर की चर्चा होती है या प्राइवेट सेक्टर की चर्चा होती है। हमने एक नए सेक्टर पर ध्यान केंद्रित किया है और वह है पर्सनल सेक्टर। भारत के लिए पर्सनल सेक्टर का मतलब है इंडिविजुअल इंटरप्राइज, जिसमें माइक्रो फाइनेंस हो, इनोवेशन हो, स्टार्ट अप की तरह नया मूवमेंट हो।
सबके लिए आवास, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ और स्वच्छता हमारी प्राथमिकता हैं। ये सभी एक गरिमामय जीवन के लिए अनिवार्य हैं। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ठोस योजना और एक निश्चित समय सीमा तय की गई है। महिला सशक्तिकरण हमारे विकास कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसमें हमने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओइसे घर-घर का मंत्र बना दिया है।
हम अपने खेतों को अधिक उपजाऊ तथा बाजार से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ बना रहे हैं। साथ ही प्राकृतिक अनिश्चितताओं के चलते किसानों के जोखिमों को कम करने के लिए अनेक कदम उठाये जा रहे हैं।
हम मैन्यफैक्चरिंग को रिवाइव कर रहे हैं। सर्विस सेक्टर में सुधार कर रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हम अभूतपूर्व स्तर पर निवेश कर रहे हैं और अपने शहरों को स्मार्ट, सस्टेनेबल तथा जीवंत डेवलपमेंट सेंटर के रूप में विकसित कर रहे हैं। सम्रद्धि की ओर जाने का हमारा मार्ग सस्टेनेबल हो, इसके लिए हम कटिबद्ध है। इस कटिबद्धता का मूल निश्चित रूप से हमारी परम्परा और संस्कृति से जुड़ा होना है। लेकिन साथ ही यह भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दिखाती है।
मै उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूँ जहां धरती को मां कहते हैं और मानते हैं। वेद उद्घोष करते हैं-
माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या
ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
हमारी योजनाएं महत्वाकांक्षी और उद्देश्यपूर्ण हैं, जैसे
·         अगले 7 वर्षों में 175 गीगावॉट रिन्यूबल एनर्जी की क्षमता का विकासएनर्जी इफिशिएंसी पर बलबहुत बड़ी मात्र में वृक्षारोपण का कार्यक्रम
कोयले पर विशेष टैक्स
परिवहन व्यवस्था में सुधार
शहरों और नदियों की सफाई
वेस्ट टू वेल्थ की मूवमेंट
मानवता के छठे हिस्से का सस्टेनेबल डेवलपमेंट समस्त विश्व के लिए तथा हमारी सुंदर वसुंधरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से यह दुनिया कम चुनौतियों और व्यापक उम्मीदों वाली दुनिया होगी, जो अपनी सफलता को लेकर अधिक आश्वस्त होगी। हम अपनी सफलता और रिसोर्सेज दूसरों के साथ बांटेंगे। भारतीय परम्परा में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है।
उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुंबकम
उदार बुद्धि वालों के लिए तो सम्पूर्ण संसार एक परिवार होता हैकुटुंब है
आज भारत, एशिया तथा अफ्रीका और प्रशांत महासागर से अटलांटिक महासागर में स्थित छोटे छोटे आइसलैंड स्टेट्स के साथ डेवलपमेंट पार्टनर के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है।
सस्टेनेबल डेवलपमेंट सभी देशों के लिए राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का विषय है। साथ ही उन्हें नीति निर्धारण के लिए विकल्पों की आवश्यकता होती है। आज हम यहां संयुक्त राष्ट्र में इसलिए हैं, क्योंकि हम सभी यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी अनिवार्य रूप से हमारे सभी प्रयासों के केंद्र में होनी चाहिए। फिर चाहे यह डेवलपमेंट हो या क्लाइमेट चेंज की चुनौती हो।
हमारे सामूहिक प्रयासों का सिद्धांत है कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉसिबिलिटी।
अगर हम क्लाइमेट चेंज की चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे निजी सुख को सुरक्षित करने की बू आती है। लेकिन यदि हम क्लाइमेंट जस्टिस की बात करते हैं तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं में सुरक्षित रखने का एक संवेदनशील संकल्प उभरकर आता है।
क्लाइमेंट चेंज की चुनौती से निपटने में उन समाधानों पर बल देने की आवश्यकता है, जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकें। हमें एक वैश्विक जन-भागीदारी का निर्माण करना होगा, जिसके बल पर टेक्नोलॉजी, इन्नोवेशन और फाइनेंस का उपयोग करते हुए हम क्लीन और रिन्यूबल एनर्जी को सर्व सुलभ बना सकें। हमें अपनी जीवनशैली में भी बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि ऊर्जा पर हमारी निर्भरता कम हो और हम सस्टेनेबल कंजंप्शन की ओर बढ़े। साथ ही एक ग्लोबल एजूकेशन प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है, जो हमारी अगली पीढ़ी को प्रकृति के रक्षण एवं संवर्धन के लिए तैयार करे।
मैं आशा करता हूँ कि विकसित देश डेवलपमेंट और क्लाइमेट चेंज के लिए अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे।
मैं यह भी आशा करता हूँ कि टेक्नोलॉजी फेसिलिटेशन मैकेनिज्म, टेक्नोलॉजी और इन्नोवेशन को विश्व के कल्याण का माध्यम बनाने में सफल होगा। यह मात्र निजी लाभ तक सीमित नहीं रह जाएंगे।
जैसा कि हम देख रहे हैं, दूरी के कारण चुनौतियों से छुटकारा नहीं है। सुदूर देशों में चल रहे संघर्ष और अभाव की छाया से भी वे उठ खड़ी हो सकती हैं। समूचा विश्व एक दूसरे से जुड़ा है, एक दूसरे पर निर्भर है और एक दूसरे से सम्बंधित है। इसलिए हमारी अंतरराष्ट्रीय सांझेदारिओं को भी पूरी मानवता के कल्याण को अपने केंद्र में रखना होगा। सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में भी सुधार अनिवार्य है, ताकि इसकी विश्वसनीयता तथा औचित्य बना रह सके। साथ ही व्यापक प्रतिनिधित्व के द्वारा हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अधिक प्रभावी रूप से कर सकेंगे।
हम एक ऐसे विश्व का निर्माण करें, जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस करे, उसे अवसर उपलब्ध हों और सम्मान मिले। हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए अपने पर्यावरण को और भी बेहतर स्थिति में छोड़ कर जाएं। निश्चित रूप से इससे अधिक महान कोई और उद्देश्य नहीं हो सकता। परन्तु यह भी सच है कि कोई भी उद्देश्य इससे अधिक चुनौतीपूर्ण भी नहीं है।
आज 70 वर्ष की आयु के संयुक्त राष्ट्र में हम सबसे अपेक्षा है कि हम अपने विवेक, अनुभव, उदारता, सहृदयता, कौशल एवं तकनीकी के माध्यम से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करें।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम ऐसा कर सकेंगे। अंत में मै सबके कल्याण की मंगल कामना करता हूं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु: मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।
सभी सुखी होंसभी निरोगी होंसभी कल्याणकारी होकिसी को भी किसी प्रकार का दु:ख न हो।
इसी मंगल कामना के साथ आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद!


25.9.15

"वास्तविकता ये है कि लोग अति कुंठित होते जा रहे हैं"

  • बुकर सम्मान पाने वाली अरुंधती जैसी प्रतिष्ठित लेखन कर्म में जुटीं लेखिका गांधी को नकार रहीं हैं . 
  • हर कोई किसी दूसरे के धार्मिक रिचुअल्स को खारिज कर रहा है 
  • पाकिस्तानी टीवी पर अन्य धर्मों के खिलाफ विषवमन कर रहा है 
  • यानी जिसे देखिये अपने अपने स्केल लेकर भारत में सौजन्यता बिगाड़ने में सक्रीय हैं . 
  • प्रधान मंत्री  की यात्राओं को लेकर फूहड़ मज़ाक करते लोग 
     इस सब बातों को लेकर आज मैंने एक ट्विट किया -"वास्तविकता ये है कि लोग अति कुंठित होते जा रहे हैं...!" 
पर न जाने क्यों आज़कल कुछ लोग न जाने क्यों मेरे ट्विटस और फेसबुकिया पोस्टों को सर्वथा व्यक्तिगत मान के मुझे नसीहत देने तक पर उतारू हो जाते हैं .  सो हम ठहरे लेखक लिख ही देते हैं ऐसों के लिए ... लिख देते हैं वो भी बुन्देली मैं - 
                                                                             - "बड्डा आज जे लिख गया कल उसने वो लिक्खा था .. !"
अब बताओ भैया अगर हम कछु लिखें तो का इन ओरों पूछ खें लिखबी का .. ! हमाओ लिक्खो कोई कलेऊ नैंयाँ जो कि तुमाए हिसाब सेई बनै .. हम हमाए हिसाब से लिख रए हैं तुम तुमाओ हिसाब किताब से नोनों डिस्टेंस बना लो भैज्जा ... ऊंसई कई मौकन में तुमें हम कन्नी काटट देखो है.
दोस्तन में नातेदारी में सब कहूँ का का बगरान बगाराओ है हमें सब कछु मालूम है. बा दिना “.....” में  टेक्सी में कित्ती उल्टी-सीधी गदत थे हमें सब मालूम पड़ गओ है . जब तुम दिगंबर करे गए तो अपनो साउथ-एवेन्यू छिपाए फिरत हो . मूँ सुई छिपाए फिर रए हो . बो तो टेक्सी बारो जो हमाओ पक्को चेला हतो फोन पे तुमाई हुलिया बताखै पूछ कि साब का करें ? हम बोले छोड़ दो नातर बो इत्तो लतियातो ........
बड्डा हरौ सुन लो कान खोल के हम होल-इंडिया के सोसल मुद्दन पे कभौं कभौं लिख देत हैं . तुम ओरों पे कलम चला कें तुमखों अमर करबो हमाई फितरत नैयाँ .... बड्डा हरो बड्दन हरो अपनी गैल पकड़ो और निकल जाओ हमाए रस्ते पे न बैठियो हम लेखक हैं हम कछु लिक्खें तुमाए काजे नै लिखबी लिखबी हम सबके लाने .. दुनिया जहान के लाने लिखत हैं ... सो लिखत हैं . हमाई बात को मतलब समझ गए समझ गए तो उन्दा न समझे तो निकल पड़ो 

20.9.15

नार्मदीय ब्राह्मण समाज के प्रादेशिक समागम में बुजुर्गों समाज सेवियों , महिलाओं एवं युवा प्रतिभाओं को सम्मानित


जबलपुर / दिनांक 19 सितम्बर 15
नार्मदीय लोक पत्रिका प्रकाशित करने वाले नार्मदीय लोकसेवा ट्रष्ट इंदौर द्वारा नार्मदीय ब्राम्हण समाज जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 19 सितम्बर 15 को एक सम्मान सराहना कार्यक्रम का आयोजन किया कलेक्टर शहडोल श्री मुकेश शुक्ल (IAS), की अध्यक्षता एवं श्री काशीनाथ उपाध्याय (खंडवा ) के मुख्य आतिथ्य एवं डा. एस डी उपाध्याय (अध्यक्ष, नार्मदीय ब्राह्मण समाज जबलपुर), श्री मदन सराफ (इंदौर), श्री आर. बी शर्मा, श्री गोविन्द गुहा (भोपाल) के विशेष आतिथ्य में संपन्न हुआ . प्रादेशिक स्तर के इस आयोजन का मूल उद्देश्य नार्मदीय लोक सेवा ट्रस्ट इंदौर द्वारा नियतकालिक मासिक-पत्रिका “नार्मदीय-लोक” के माध्यम से संवाद मे निरंतरता बनाए रखना एवं नार्मदीय समाज के वरिष्ठ आधार स्तंभों एवं मातृशक्ति को सम्मानित एवं समादरित करना तथा युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना रहा है
कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा माँ नर्मदा के पूजन-अर्चन हुआ तदुपरांत नार्मदीय समाज जबलपुर के कलाकारों ने चरणबद्ध संगीतमय प्रस्तुतियां दीं . एवं समस्त अतिथियों का नार्मदेय परिवार जबलपुर के सदस्यों ने स्वागत स्वरुप वैज्ञानिक तरीके से विकसित अनुपम मीठी तुलसी के पौधे एवं स्मृति चिन्ह ,नार्मदीय-दर्पण (डायरेक्टरी ) आदि प्रदान किये गए . साथ ही श्रीमती ललिता उपाध्याय एवं श्रीमती शशिबाला पारे नार्मदीय महिला मंडल ने श्रीमती नीरजा शुक्ला एवं श्रीमती आशा सराफ का स्वागत अभिनंन्दन किया गया
. अपने अध्यक्षीय उदबोधन में श्री मुकेश शुक्ल जी ने सामाजिक समरसता एवं मूल्यों के संरक्षण का आव्हान करते हुए कहा कि-“हमारा समाज स्वयमेव इतना जागरूक है कि दहेज़ जैसी कुरीति एवं अशिक्षा के अन्धकार से पूर्णत: विमुक्त है . देश प्रदेश एवं विश्व के विभिन्न देशों में सेवारत नार्मदीय युवाओं का अपने कार्यों के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों के संवर्धन का आव्हान किया.” उन्हौने आगे कहा कि –“नार्मदीय समाज प्रोग्रेसिव है प्रतिभाओं से भरा है बस हमारी कमी है संख्या बल जिसे जबलपुर नार्मदीय समाज के अध्यक्ष द्वारा “हम-सब” की अवधारणा दी है यही अवधारणा सामाजिक विकास का मूलाधार है .
वरिष्टजनों महिलाओं एवं युवाओं के सम्मान को त्रिवेणी का स्वरुप मानते हुए उन्हौने कहा कि-“ जो हम तक न आ सकें उन तक हमें पहुंचकर उनको सम्मानित एवं प्रशस्ति संवर्धन करना ही चाहिए ताकि नार्मदीय समाज पारस्परिक भावनात्मक-बंधन प्रगाढ़ हो सकें क्योंकि प्रजातंत्र में संख्याबल का महत्व है सामाजिक विकास का आधार संख्याबल भी है ”
सपरिवार समारोह में पधारे श्री शुक्ल ने कहा कि वे अकेले ही इस समारोह में आ सकते थे किन्तु अपने बच्चों को सामाजिक समरसता का अनुदर्शन कराते हुए उनमें संस्कारों का बीजारोपण करना उनका मूल कर्तव्य है ..
जबलपुर में नार्मदीय-सामाजिक-भवन के निर्माण हेतु समाज द्वारा भूखंड हेतु प्रयास के लिए हर संभव सहयोग देने हेतु आश्वस्त किया
जे एन के वि वि अधारताल जबलपुर स्थित कृषक भवन में आयोजित इस गरिमामय कार्यक्रम में 75 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ समाज सेवियों क्रमश: श्रीयुत काशीनाथ जी अमलाथे, श्री काशीनाथ बिल्लोरे , डा. एम. बी. पारे , श्री मनोहर जोशी, श्री मदन मोहन शकरगाए, श्री बी के शर्मा, श्री रमेश शर्मा, बुज़ुर्ग महिलाओं क्रमश: श्रीमती कृष्णा देवी पारे, श्रीमती प्रेम बाई पारे , श्रीमती शांता पाराशर , श्रीमती शारदा जोशी, श्रीमती गायत्री साकल्ले, श्रीमती राधा बाई काशिव के साथ साथ कुमारी जया चंद्रायण (शिक्षा) कुमारी अग्रिमा गुहा (राष्ट्रीय खेल) श्री संजय बिल्लोरे (पावर-लिफ्टिंग) कुमारी श्रद्धा बिल्लोरे ( गायन कला), के क्षेत्र में राष्ट्रीय , अंतर्राष्ट्रीय सम्मान पाने वाले युवा भी सम्मानित हुए.
इस अवसर पर संरक्षक श्री काशीनाथ बिल्लोरे द्वारा सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं श्री काशीनाथ अमलाथे द्वारा “नार्मदीय-लोक” को सम्मान पत्र भेंट किया गया .
कार्यक्रम में खंडवा, इंदौर, होसंगाबाद, भोपाल, हरदा, टिमरनी, खरगौन, शहडोल, कटनी, के प्रतिनिधियों के अलावा नार्मदीय छात्र सहायक ट्रस्ट के पदाधिकारी मौजूद थे .
कार्यक्रम के आयोजन में श्री सतीश बिल्लोरे (उपाध्यक्ष), सचिव श्री संजय पारे , श्री  दिनेश साकल्ले (सम्पादक नार्मदीय लोक इंदौर) महिला मंडल सचिव श्रीमती ललिता उपाद्ध्याय उपाध्यक्ष श्रीमती लीला पारे , श्री अरुण एवं विकास टेमले , श्री राजेश बिल्लोरे , श्री मनोज काशिव, श्री उमेश पगारे, कुमारी पलक डोंगरे , कुमारी अणिमा केसरे, कुमारी अंकिता शर्मा , श्री योगेश चंद्रायण , यश पारे , जयंत चंद्रायण आदि सहयोग उल्लेखनीय है .

//झलकियाँ //
• कार्यक्रम के पूर्व दोपहर में श्री काशीनाथ अमलाथे जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में होटल गेलेक्सी में दोपहर के भोज में समस्त अतिथिगण एवं वरिष्ट नागरिक मंच के सदस्यों की उपस्थिति रही
• 89 वर्षीय वयोवृद्ध गंगातुल्य पूज्या कृष्णा बाई पारे ने सम्मान पर अभिभूत होते हुए कहा - “ यह मेरे जीवन के लिए अप्रतिम अनुभव है . ”
• श्री काशीनाथ अमलाथे ने कहा कि- अपने जीवन में जितने भी सम्मानं समारोह देखे उन सबकी तुलना में आज संपन्न समारोह अद्वितीय है जिसका श्रेय जबलपुर नार्मदीय ब्राह्मण समाज एवं नार्मदीय लोक को जाता है
• श्रीमती शांता देवी पाराशर ने कहा –“अपने सत्तर वर्षीय जबलपुर निवास में आज अत्यधिक खुशी मिलीं जब सामाजिक स्तर पर इतना आत्मिक आयोजन हुआ हो जिसमें महिलाओं बच्चों को भी सम्मानित किया गया हो
• वयोवृद्ध श्रीमती पुष्पा जोशी, श्री रामनारायण जोशी ,श्री राधेश्याम श्याम शर्मा अस्वस्थयता के कारण समारोह में शामिल न हो सके
• नार्मदीय समाज जबलपुर की भारी संख्या में उपस्थिति से अभिभूत होकर श्री शुक्ला , श्रीमती नीरजा शुक्ला तथा बच्चों ने उपस्थित समुदाय के बीच जाकर व्यक्तिगत संवाद स्थापित किया
• दौनो संस्थाओं ने एक दूसरे के प्रति कृतज्ञता के साथ आयोजन को सफल बताते हुए पत्रिका से जुड़ने के सफल प्रयास को आगे बढ़ने के लिए संकल्प लिया

12.9.15

दसवें वैश्विक हिन्दी सम्मेलन पर कुमारेन्द्र सिंह सेंगर की प्रारम्भिक रपट

श्री कुमारेन्द्र सिंह सेंगर 
दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन, २०१५ का आयोजन ३२ वर्ष बाद भारत देश में १०-१२ सितम्बर को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित हुआ. इस सम्मलेन में सहभागिता करने का अवसर मिला. पहले दिन देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सम्मलेन का उद्घाटन किया गया. रामधारी सिंह दिनकर सभागारमें हुए उद्घाटन सत्र में अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने हिन्दी के विकास पर, उसके संवर्धन पर, अन्य भाषाओं के शब्दों के स्वीकार्य पर, डिजिटल दुनिया में हिन्दी के अधिकाधिक उपयोग आदि पर जोर दिया. उनके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वागत भाषण, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मलेन की प्रस्तावना और आभार व्यक्त वी० के० सिंह द्वारा किया गया. उद्घाटन सत्र में ही दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन से सम्बंधित डाक टिकट का लोकार्पण किया गया. इसके साथ-साथ गगनांचल पत्रिका के विशेषांक का, सम्मलेन की स्मारिका और एक पुस्तक प्रवासी साहित्य : जोहान्सवर्ग से आगेका विमोचन किया गया.
.         उद्घाटन सत्र के पश्चात् सम्मलेन को विभिन्न सत्रों में विभक्त किया गया. १२ विषयों में बंटे सत्र विभिन्न सभागारों में संपन्न हुए. विदेश नीति में हिन्दी’, ‘प्रशासन में हिन्दी’, ‘विज्ञान क्षेत्र में हिन्दी’, ‘संचार एवं सूचना प्रोद्योगिकी में हिन्दी’, ‘विधि तथा न्याय क्षेत्र में हिन्दी और भारतीय भाषाएँ’, ‘बाल साहित्य में हिन्दी’, ‘अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिन्दी’, ‘हिन्दी पत्रकारिता और संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता’, गिरमिटिया देशों में हिन्दी’, विदेश में हिन्दी शिक्षण’, ‘विदेशियों के लिए भारत में हिन्दी अध्यापन की सुविधाऔर देश और विदेश में प्रकाशन : समस्याएं एवं समाधानविषयों में रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर सभागार’, ‘अलेक्सई पेत्रोविच वरान्निकोव सभागार’, ‘विद्यानिवास मिश्र सभागारऔर कवि प्रदीप सभागारनामक सभागारों में देश-विदेश के विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये.
.             पूर्व सम्मेलनों के मुकाबले वर्तमान सम्मलेन में एक विशेष तथ्य ये सामने आया कि इस सम्मलेन में विभिन्न सत्रों में पढ़े गए विभिन्न पत्रों, उन पर विभिन्न श्रोताओं की तरफ से आई टिप्पणियों, प्रतिक्रियाओं को एक रिपोर्ट के रूप में सत्रानुसार सम्मलेन के तीसरे दिन ही श्रोताओं के सामने रखा जायेगा. जिसमें पुनः उन पत्रों के वाचकों और श्रोताओं की ओर के प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित किया जायेगा. इसके आधार पर ही हिन्दी विकास सम्बन्धी विभिन्न नीतियों को अपनाया जायेगा, उन्हें लागू किया जायेगा. अभी तक के सम्मेलनों में विभिन्न सत्रों की रिपोर्ट्स सम्मलेन समाप्ति के काफी दिनों बाद सामने आती थीं, जिस कारण से वक्ताओं, श्रोताओं, प्रतिनिधियों आदि की प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो पाती थी. इसके अतिरिक्त एक विशेष बात ये भी देखने में आई कि विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता के लिए विभिन्न मंत्रालयों के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों के साथ-साथ अपने-अपने क्षेत्र के पारंगत लोगों को बनाया गया. इससे सम्बंधित विभागों में हिन्दी विकास सम्बन्धी नीतियों को लागू करने में सहजता होगी.
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देश के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी की क्या स्थिति है, हिन्दी को लेकर क्या मानसिकता है ये किसी से भी छिपा नहीं है किन्तु व्यक्तिगत रूप से सामानांतर सत्रों में हमें जो बात अच्छी लगी वो ये कि विदेश से आये कई प्रतिनिधियों ने उस देश में वहाँ के निवासियों और वहाँ रह रहे भारतीयों की हिन्दी के प्रति मानसिकता को सामने रखा. ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, अरब देश, हंगरी, अमेरिका आदि देशों में हिन्दी के प्रति चल रहे विभिन्न क़दमों की जानकारी मिली. सम्मलेन में हंगरी, थाईलैंड, नार्वे, चीन, जापान, बांग्लादेश, फिजी, युगांडा आदि देशों से आये लोगों से मिलने का अवसर मिला. उनके हिन्दी के प्रति प्रेम को जानने, समझने, हिन्दी फिल्मों के विदेशों में हिन्दी भाषा के संवर्धन में सहायक होने के बारे में पता चला.
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इसके अतिरिक्त सम्मलेन के विशालकाय पंडाल में हिन्दी : कल, आज और कलशीर्षक से एक प्रदर्शनी पंडाल भी बनाया गया था. इसमें विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी की विकास यात्रा को दर्शाया गया था. पुस्तकों, कंप्यूटर, इंटरनेट आदि के माध्यम से हिन्दी की विकास-यात्रा को दर्शाया जाना अपने आपमें अद्भुत लगा. इसके ठीक सामने बने प्रदर्शनी पंडाल में मध्य प्रदेश की जानकारी विभिन्न मनमोहक चित्रों, साहित्यकारों के चित्रों, पुस्तकों के द्वारा प्रदर्शित किया गया था. सम्मलेन का आकर्षण मुख्य प्रवेश द्वार’, ‘रामधारी सिंह दिनकर सभागार’, ‘हिन्दी की अमर ज्योतिरहे. मुख्य प्रवेश द्वार पर हिन्दीको विशाल अक्षरों में लिखा गया था, जिसमें को मुख्य प्रवेश द्वार बनाया गया था. इसी तरह दिनकर सभागारकी दीवार और कई द्वारों को पुस्तकों के चित्रों और पुस्तकों द्वारा सजाया गया था.
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विभिन्न वक्ताओं द्वारा विभिन्न विषयों पर जानकारी मिली किन्तु कई सत्रों में कई वक्ता अपने विषय से भटकते देखे गए. ऐसे में श्रोताओं द्वारा की गई तीव्र और सार्थक प्रतिक्रियाओं ने सत्रों को जीवंत बनाये रखा. वक्ताओं के साथ-साथ श्रोताओं, प्रतिनिधियों की सक्रियता, टिप्पणियों ने सत्रों को सार्थकता प्रदान की. सम्मलेन के तीसरे और अंतिम दिन विभिन्न सत्रों के निर्धारित विषयों पर प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट पर वक्ताओं, श्रोताओं आदि की प्रतिक्रिया भी अपने आपमें बहुत कुछ कहेगी. कई नामी-गिरामी, बड़े-बड़े साहित्यकारों का न होना भी सम्मलेन के सम्बन्ध में विवादों को जन्म देता है. एक ऐसे देश में जहाँ बहुतायत में लोग खुद को लेखन से जुड़ा हुआ बताते हैं, कविता-कहानी आदि के नाम पर स्वयं को साहित्यकार बताने से नहीं चूकते हैं वहाँ समझना होगा कि ये सम्मलेन हिन्दी से सम्बंधित है न कि साहित्य से. ऐसे में प्रथम दृष्टया सम्मलेन में किसी हिन्दी भाषा विज्ञानी का न होना भी दिखाई दिया. साथ ही हिन्दी भाषा पर आधारित किसी सत्र विशेष का न होना भी अखरा. बहरहाल चंद कमियों को ज्यादा तूल न दिया जाये तो दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मलेन विशेष अनुभूति तो करवाता ही है, ऐसे वैश्विक आयोजनों का मेजबान अपने देश के होने का गौरव महसूस होता है, इन आयोजनों में सहभागिता करने का एहसास भी महसूस किया जा सकता है.
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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...