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शुक्रवार, सितंबर 25, 2015

"वास्तविकता ये है कि लोग अति कुंठित होते जा रहे हैं"

  • बुकर सम्मान पाने वाली अरुंधती जैसी प्रतिष्ठित लेखन कर्म में जुटीं लेखिका गांधी को नकार रहीं हैं . 
  • हर कोई किसी दूसरे के धार्मिक रिचुअल्स को खारिज कर रहा है 
  • पाकिस्तानी टीवी पर अन्य धर्मों के खिलाफ विषवमन कर रहा है 
  • यानी जिसे देखिये अपने अपने स्केल लेकर भारत में सौजन्यता बिगाड़ने में सक्रीय हैं . 
  • प्रधान मंत्री  की यात्राओं को लेकर फूहड़ मज़ाक करते लोग 
     इस सब बातों को लेकर आज मैंने एक ट्विट किया -"वास्तविकता ये है कि लोग अति कुंठित होते जा रहे हैं...!" 
पर न जाने क्यों आज़कल कुछ लोग न जाने क्यों मेरे ट्विटस और फेसबुकिया पोस्टों को सर्वथा व्यक्तिगत मान के मुझे नसीहत देने तक पर उतारू हो जाते हैं .  सो हम ठहरे लेखक लिख ही देते हैं ऐसों के लिए ... लिख देते हैं वो भी बुन्देली मैं - 
                                                                             - "बड्डा आज जे लिख गया कल उसने वो लिक्खा था .. !"
अब बताओ भैया अगर हम कछु लिखें तो का इन ओरों पूछ खें लिखबी का .. ! हमाओ लिक्खो कोई कलेऊ नैंयाँ जो कि तुमाए हिसाब सेई बनै .. हम हमाए हिसाब से लिख रए हैं तुम तुमाओ हिसाब किताब से नोनों डिस्टेंस बना लो भैज्जा ... ऊंसई कई मौकन में तुमें हम कन्नी काटट देखो है.
दोस्तन में नातेदारी में सब कहूँ का का बगरान बगाराओ है हमें सब कछु मालूम है. बा दिना “.....” में  टेक्सी में कित्ती उल्टी-सीधी गदत थे हमें सब मालूम पड़ गओ है . जब तुम दिगंबर करे गए तो अपनो साउथ-एवेन्यू छिपाए फिरत हो . मूँ सुई छिपाए फिर रए हो . बो तो टेक्सी बारो जो हमाओ पक्को चेला हतो फोन पे तुमाई हुलिया बताखै पूछ कि साब का करें ? हम बोले छोड़ दो नातर बो इत्तो लतियातो ........
बड्डा हरौ सुन लो कान खोल के हम होल-इंडिया के सोसल मुद्दन पे कभौं कभौं लिख देत हैं . तुम ओरों पे कलम चला कें तुमखों अमर करबो हमाई फितरत नैयाँ .... बड्डा हरो बड्दन हरो अपनी गैल पकड़ो और निकल जाओ हमाए रस्ते पे न बैठियो हम लेखक हैं हम कछु लिक्खें तुमाए काजे नै लिखबी लिखबी हम सबके लाने .. दुनिया जहान के लाने लिखत हैं ... सो लिखत हैं . हमाई बात को मतलब समझ गए समझ गए तो उन्दा न समझे तो निकल पड़ो 

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