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बुधवार, सितंबर 30, 2015

खुद को नया विस्तार देने जा रहा हूँ



खुद को नया विस्तार देने जा रहा हूँ
 तय नहीं मंजिल मगर मैं जा रहा हूँ .

मैं अकेला ही तो आया था यहाँ –
इक जुड़ा दूजा जुड़ा फिर कारवां ....
बात जो थी कल में अब वो कहाँ –
सबके ज़ेहन में पनपते आसमाँ !
     निकल के घर से बताने ये ही सबको आ रहा हूँ !!
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मखमली  बिस्तर  की  जुगतें  मत लगा -  
शूल की शैया सजा दे, तेग से तकिया बना !
अतिथि हूँ आपका, कुछेक-दिन का साथ है –
फिर वही यायावरी है और तड़पती आवाज़ है
      मीत, अब में जा रहा हूँ गीत भी ले जा रहा हूँ !!
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सच कहूं संघर्ष हूँ !  संघर्ष का परिणाम हूँ .
झुका न जो सच कभी, वो टूटता अंजाम हूँ !
गीत पीडा के मुझे अब दिल से गाने दीजिये –
पल हैं जितने पास मेरे मुस्कुराने दीजिये !!
     पीर इतनी है कि अब मैं मुस्कुराने जा रहा हूँ !!
                       गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”




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