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शनिवार, सितंबर 12, 2015

दसवें वैश्विक हिन्दी सम्मेलन पर कुमारेन्द्र सिंह सेंगर की प्रारम्भिक रपट

श्री कुमारेन्द्र सिंह सेंगर 
दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन, २०१५ का आयोजन ३२ वर्ष बाद भारत देश में १०-१२ सितम्बर को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित हुआ. इस सम्मलेन में सहभागिता करने का अवसर मिला. पहले दिन देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सम्मलेन का उद्घाटन किया गया. रामधारी सिंह दिनकर सभागारमें हुए उद्घाटन सत्र में अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने हिन्दी के विकास पर, उसके संवर्धन पर, अन्य भाषाओं के शब्दों के स्वीकार्य पर, डिजिटल दुनिया में हिन्दी के अधिकाधिक उपयोग आदि पर जोर दिया. उनके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वागत भाषण, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मलेन की प्रस्तावना और आभार व्यक्त वी० के० सिंह द्वारा किया गया. उद्घाटन सत्र में ही दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन से सम्बंधित डाक टिकट का लोकार्पण किया गया. इसके साथ-साथ गगनांचल पत्रिका के विशेषांक का, सम्मलेन की स्मारिका और एक पुस्तक प्रवासी साहित्य : जोहान्सवर्ग से आगेका विमोचन किया गया.
.         उद्घाटन सत्र के पश्चात् सम्मलेन को विभिन्न सत्रों में विभक्त किया गया. १२ विषयों में बंटे सत्र विभिन्न सभागारों में संपन्न हुए. विदेश नीति में हिन्दी’, ‘प्रशासन में हिन्दी’, ‘विज्ञान क्षेत्र में हिन्दी’, ‘संचार एवं सूचना प्रोद्योगिकी में हिन्दी’, ‘विधि तथा न्याय क्षेत्र में हिन्दी और भारतीय भाषाएँ’, ‘बाल साहित्य में हिन्दी’, ‘अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिन्दी’, ‘हिन्दी पत्रकारिता और संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता’, गिरमिटिया देशों में हिन्दी’, विदेश में हिन्दी शिक्षण’, ‘विदेशियों के लिए भारत में हिन्दी अध्यापन की सुविधाऔर देश और विदेश में प्रकाशन : समस्याएं एवं समाधानविषयों में रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर सभागार’, ‘अलेक्सई पेत्रोविच वरान्निकोव सभागार’, ‘विद्यानिवास मिश्र सभागारऔर कवि प्रदीप सभागारनामक सभागारों में देश-विदेश के विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये.
.             पूर्व सम्मेलनों के मुकाबले वर्तमान सम्मलेन में एक विशेष तथ्य ये सामने आया कि इस सम्मलेन में विभिन्न सत्रों में पढ़े गए विभिन्न पत्रों, उन पर विभिन्न श्रोताओं की तरफ से आई टिप्पणियों, प्रतिक्रियाओं को एक रिपोर्ट के रूप में सत्रानुसार सम्मलेन के तीसरे दिन ही श्रोताओं के सामने रखा जायेगा. जिसमें पुनः उन पत्रों के वाचकों और श्रोताओं की ओर के प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित किया जायेगा. इसके आधार पर ही हिन्दी विकास सम्बन्धी विभिन्न नीतियों को अपनाया जायेगा, उन्हें लागू किया जायेगा. अभी तक के सम्मेलनों में विभिन्न सत्रों की रिपोर्ट्स सम्मलेन समाप्ति के काफी दिनों बाद सामने आती थीं, जिस कारण से वक्ताओं, श्रोताओं, प्रतिनिधियों आदि की प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो पाती थी. इसके अतिरिक्त एक विशेष बात ये भी देखने में आई कि विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता के लिए विभिन्न मंत्रालयों के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों के साथ-साथ अपने-अपने क्षेत्र के पारंगत लोगों को बनाया गया. इससे सम्बंधित विभागों में हिन्दी विकास सम्बन्धी नीतियों को लागू करने में सहजता होगी.
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देश के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी की क्या स्थिति है, हिन्दी को लेकर क्या मानसिकता है ये किसी से भी छिपा नहीं है किन्तु व्यक्तिगत रूप से सामानांतर सत्रों में हमें जो बात अच्छी लगी वो ये कि विदेश से आये कई प्रतिनिधियों ने उस देश में वहाँ के निवासियों और वहाँ रह रहे भारतीयों की हिन्दी के प्रति मानसिकता को सामने रखा. ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, अरब देश, हंगरी, अमेरिका आदि देशों में हिन्दी के प्रति चल रहे विभिन्न क़दमों की जानकारी मिली. सम्मलेन में हंगरी, थाईलैंड, नार्वे, चीन, जापान, बांग्लादेश, फिजी, युगांडा आदि देशों से आये लोगों से मिलने का अवसर मिला. उनके हिन्दी के प्रति प्रेम को जानने, समझने, हिन्दी फिल्मों के विदेशों में हिन्दी भाषा के संवर्धन में सहायक होने के बारे में पता चला.
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इसके अतिरिक्त सम्मलेन के विशालकाय पंडाल में हिन्दी : कल, आज और कलशीर्षक से एक प्रदर्शनी पंडाल भी बनाया गया था. इसमें विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी की विकास यात्रा को दर्शाया गया था. पुस्तकों, कंप्यूटर, इंटरनेट आदि के माध्यम से हिन्दी की विकास-यात्रा को दर्शाया जाना अपने आपमें अद्भुत लगा. इसके ठीक सामने बने प्रदर्शनी पंडाल में मध्य प्रदेश की जानकारी विभिन्न मनमोहक चित्रों, साहित्यकारों के चित्रों, पुस्तकों के द्वारा प्रदर्शित किया गया था. सम्मलेन का आकर्षण मुख्य प्रवेश द्वार’, ‘रामधारी सिंह दिनकर सभागार’, ‘हिन्दी की अमर ज्योतिरहे. मुख्य प्रवेश द्वार पर हिन्दीको विशाल अक्षरों में लिखा गया था, जिसमें को मुख्य प्रवेश द्वार बनाया गया था. इसी तरह दिनकर सभागारकी दीवार और कई द्वारों को पुस्तकों के चित्रों और पुस्तकों द्वारा सजाया गया था.
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विभिन्न वक्ताओं द्वारा विभिन्न विषयों पर जानकारी मिली किन्तु कई सत्रों में कई वक्ता अपने विषय से भटकते देखे गए. ऐसे में श्रोताओं द्वारा की गई तीव्र और सार्थक प्रतिक्रियाओं ने सत्रों को जीवंत बनाये रखा. वक्ताओं के साथ-साथ श्रोताओं, प्रतिनिधियों की सक्रियता, टिप्पणियों ने सत्रों को सार्थकता प्रदान की. सम्मलेन के तीसरे और अंतिम दिन विभिन्न सत्रों के निर्धारित विषयों पर प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट पर वक्ताओं, श्रोताओं आदि की प्रतिक्रिया भी अपने आपमें बहुत कुछ कहेगी. कई नामी-गिरामी, बड़े-बड़े साहित्यकारों का न होना भी सम्मलेन के सम्बन्ध में विवादों को जन्म देता है. एक ऐसे देश में जहाँ बहुतायत में लोग खुद को लेखन से जुड़ा हुआ बताते हैं, कविता-कहानी आदि के नाम पर स्वयं को साहित्यकार बताने से नहीं चूकते हैं वहाँ समझना होगा कि ये सम्मलेन हिन्दी से सम्बंधित है न कि साहित्य से. ऐसे में प्रथम दृष्टया सम्मलेन में किसी हिन्दी भाषा विज्ञानी का न होना भी दिखाई दिया. साथ ही हिन्दी भाषा पर आधारित किसी सत्र विशेष का न होना भी अखरा. बहरहाल चंद कमियों को ज्यादा तूल न दिया जाये तो दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मलेन विशेष अनुभूति तो करवाता ही है, ऐसे वैश्विक आयोजनों का मेजबान अपने देश के होने का गौरव महसूस होता है, इन आयोजनों में सहभागिता करने का एहसास भी महसूस किया जा सकता है.
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