9.8.15

आज का मीडिया तेज़ और कटीला है किसी को नहीं छोड़ता

खुद को आत्मिक संवाद के लिए अवसर देना ही चाहिए .... खुद को अगर आप ने खुद को ऐसा अवसर न दिया तो तय है कि आप स्वयं को शुचिता न दे पाएंगें .खुद को पावन करने का सबसे आसान तरीका है आत्म-विश्लेषण करने वालों को न तो किसी प्रीचर की ज़रुरत होती न ही आध्यात्म के नाम पर आडम्बर कर  रहे पाखण्ड के पुरोधाओं की . 
आत्मअन्वेषण के लिए कोई चढ़ावा देना किसी का पिछलग्गू नहीं बना होता हम अगर ऐसा करते हैं तो पठित मूर्ख हैं . जन्म एक अदभुत घटना है तो तो मृत्यु उससे अनुपम उपहार . इन दौनों घटनाओं के बीच के "जीवन" को संवारने की कोशिश में हम फंस जाते हैं तिलिस्म फैलाने वालों के दुश्चक्र में . जहां धन,समय,श्रम, खर्च कर एक कल्ट में समा जाते हैं. बहुत देर बाद पता चलता है कि जिसे हमने अपने आप को शुचिता पूर्ण बनाने का दायित्व सौंपा था वो एक व्यापारी है . तो स्थिति भिन्न होती है . हम न किसी से कुछ कह पाते किसी की सुनने में भी हमको शर्मिन्दगी होती है. आज का मीडिया तेज़ और कटीला है किसी को नहीं छोड़ता न आसाराम को न राधे को सब कुछ शीघ्र साफ़ हो जाता है . तब आप जो किसी के अनुयाई होते हैं स्तब्ध और स्पीचलैस हो जाते हैं .  आत्म-विश्लेषण कर शुचिता की ओर  एक एक कदम बढायें. 

वर्तमान की भौतिकवादी मीडिया -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

[ इस आलेख में प्रस्तुत विचार लेखक के हैं जिसे बिना संपादित किये मूल-रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है ]
                              मीडिया जगत से जुड़े लोग कुछ उस तरह के हो गए हैं जैसे पुराने समय में एक राज्य का महामंत्री। शायद इस कहानी को अधिकाँश लोग नहीं सुने होंगे। उस कहानी का सार यहाँ प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। कहानी के अनुसार उक्त राज्य में अकाल पड़ गया था प्रजा में त्राहि-त्राहि मची थी। यह बात राजा के कानो तक नहीं पहुँची थी। राजा जब भीं भरी सभा में अपने खास महामंत्री से पूछता कि बताओ राज्य की प्रजा का क्या हाल है? तब महामंत्री उत्तर देता कि हे राजन, राज्य में दूध घी की नदियाँ बह रही हैं प्रजा खुशहाल है।
                           इसके बावजूद राजा को गुप्तचरों ने राज्य में अकालकी जो विभीषिका प्रस्तुत किया उससे राजा का मन विचलित हो गया। मुलतः वह एक दिन अचानक अपने खास गुप्तचरों के साथ राज्य भ्रमण पर निकल पड़ा। हालात जो दिखाई दिए उससे राजाको अन्दर ही अन्दर महामंत्री के मिथ्या और भ्रामक संवाद से क्रोध भी आया। दूसरे दिन भरी सभा में राजा ने फरमान जारी कर दिया कि महामंत्री जो राजकीय सुख-सुविधाएँ प्रदान की गई हैं वह वापस ली जाएँ। राजा के हुक्म की तामील हुई और महामंत्री को प्रदत्त सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गईं।
दरबार बैठता है। राजा ने महामंत्री से पूछाँ अब बताओ राज्य में कैसा चल रहा है .....? महामंत्री ने कहा सरकार अवर्षण से सूखा पड़ गया है। राज्य में दुर्भिक्ष आ गया है। नदी नाले सूख गए हैं, प्रजा भूखो मर रही है। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची है। महामंत्री के इस उद्बोधन से उपस्थित सभा सदों को घोर आश्चर्य हुआ लेकिन राजा खामोश था। क्योंकि वह जानता था कि महामंत्री को इस बात का एहसास तब हुआ जब उनकी सभी राजकीय सुविधाएँ वापस ले ली गई थी। राजा ने तत्काल आदेश जारी किया कि महामंत्री अविलम्ब राज्य की प्रजा का ध्यान दें और हरहाल में जनता को कोषागार से धन निकालकर जीने के लिए समस्त सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँं।
                             ठीक उसी तरह से अब मीडिया और उससे जुड़े स्वार्थी तत्व कृत्य करने लगे हैं जैसे उस राज्य का महामंत्री कर रहा था। मसलन पेड न्यूज का प्रकाशन/प्रसारण वह भी अच्छी-खासी कीमत के एवज में ये लोग करने लगे हैं। अवाम की चिन्ता नहीं है। ये स्वंय सुख-सुविधा संपन्न हैं इसलिए इनको सुविधाएं मुहैया कराने वालों की फिक्र ज्यादा रहती है। विधुत संकट, किसानों में सिंचाई के लिए पानी का संकट और अन्य कष्टोंें का प्रकाशन तभी होता है जब इनके पृष्ठों में खबरों का अकाल रहता है।
                                                  मीडिया स्वार्थपूर्ति हेतु संघर्ष समिति के रूप में कार्य करने लगी है, ऐसा देखा, पढ़ा और महसूस किया जा सकता है। अकबर इलाहाबादी का शेर याद आने लगा है- न तीर निकालो-न तलवार निकालो, गर दुश्मन हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। अकबर साहेब ने यह उस जमाने में कहा था जब मीडिया का एक ही स्वरूप प्रचलित था वह था अखबार (प्रिण्ट)। अब तो प्रिण्ट इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया का जमाना चल रहा है। बहरहाल कुछ भी हो इस समय मनी/मीडिया/माफिया का गठजोड़ कायम है। ऐसी स्थिति में मीडिया और इससे सम्बद्ध लोगों को अवाम की पीड़ा का एहसास नहीं हो रहा है। ज्यादा क्या लिखूँ/कहूँ आप सब समझदार हैं और समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है।
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

3.8.15

कुत्ता बन्दर से अलहदा है बॉस....!



 कुत्ता
 बन्दर 
मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं इन कुत्तों से न ही युधिष्टिर की तरह लगाव . कुत्ते कुत्ते हैं इंसान इंसान . बन्दर बन्दर होता है गदहा गदहा ... अब भला इन पर  अनावश्यक रूप चर्चा क्यों की जाए. पर जब बारबार ये दावे होते हैं कि कुत्ता स्वामी-भक्त होता है बात मेरे गले नहीं उतरती . इसके पीछे कई कारण हैं .
उनमें से एक वाकया भी महत्वपूर्ण कारण है जो  मुझे याद आ रहा है
हुआ यूं कि  .... एक बार डिंडोरी जाते वक्त शहर से निकलते ही आस्थावश मैंने नाश्ते के लिए रखे केले बंदरों को खिलाने की गरज से कार से बाहर फैंके संयोगवश एक छोटे बन्दर के हाथ केला लग गया. आसपास शक्तिशाली से दिखने वाले बंदरों नें मेरी तरफ देखा अवश्य किन्तु छोटे बन्दर के हाथ से किसी ने भी केला छीना नहीं.
यात्रा जारी थी कुंडम  के पहले मेरे  मित्र साहू जी के ढाबे पर अपने घर का नाश्ता करने का मेरी नियमित अभ्यास था . साहूजी के ढाबाकर्मी ताज़ी सौंधी चाय ले आते साहूजी स्वयं मीठी बुन्देली में मुझसे बात करना नहीं चूकते .
तभी दो कुत्ते नज़दीक आए बफादार सरकारी मुलाजिम की मानिद दम हिला रहे थे . हमने भी परांठे के दो हिस्से किये . फैंक दिए उनके आगे . दौनों टुकड़ों पर दमदार कुत्ते ने हक़ ज़माया . कमजोर वाले ने झपटना चाहा तो दमदार गुर्राया .
कुत्ते जो अपनी बिरादरी के सगे नहीं होते वे आपके वफादार कैसे हो सकते हैं .
  वास्तविकता ये है कि कुत्ते कुत्ते होते हैं . वो अपरिचित परिस्थिति व्यक्ति आकृति को अनुकूल न समझ कर भौंकते हैं उस पर हमला करतें हैं . आप हो कि गदहे की तरह भेजा स्तेमाल न कर पाए ... कि कुत्ते आत्म-भय वश भौंकतें हैं न कि स्वामी भक्ति में .
गिरीश”मुकुल”
Jabalpur  

  

28.7.15

एक सदी का अवसान

कलाम साहब ने कहा था - मेरी मृत्यु पर अवकाश घोषित न हो आप उस दिन अधिक कार्य करें .
मानवता के पुजारी एवं शताब्दी के युगयोगी ने साबित किया कि कितना सहज है धारा से शिखर की यात्रा मगर उससे भी सहज और सरल है "सहज और सरल" होना । मेरे देश के बच्चे जो उनसे मिले हैं निसंदेह भाग्यशाली थे । हमारे कानों में बस मिसाइल मैं के सन्देश अनवरत जारी रहेंगे । हम घंटो सोचते रहें तो भी शब्द नहीं मिल रहे । सदियों लिखेंगे तो भी अनोखा व्यक्तित्व  के बारे में लिख न पाएंगे । समंदर की स्याही से कल्पतरु की कलम से अनंत आकाश पर लिखी जाती रहेगी उनकी अमरगाथा तब भी हम पूर्ण न लिख पाएंगे । भला आकाश जैसे महान के बारे में लिखने की शक्ति मुझ में तो नहीं

27.7.15

अभिव्यक्ति के अधिकार का पुनरावलोकन ज़रूरी है ?


संचार माध्यमों से  ज्ञात हो रहा है कि  कुछ हस्तियों ने  याकूब मेनन की फांसी पर दया का अनुरोध आपको प्रेषित किया है . साथ ही कुछ लोग माननीय सर्वोच्च  न्यायालय के निर्णय पर टिप्पणी तक की है .
माननीय सर्वोच्च  न्यायालय के निर्णय पर टिप्पणीयाँ एक नकारात्मक स्थिति निर्मित करतीं हैं .
 इस देश की अस्मिता अखंडता को चुनौती देना न्याय व्यवस्था के तहत जारी निर्णयों को सार्वजनिक फोरम पर उठाना सर्वथा न्यायिक-व्यवस्था एवं संवैधानिक व्यवस्था को निरुत्साहित करने की कोशिश है .
        किसी भी राष्ट्रद्रोह में शामिल किसी भी हिस्से के अपराध को उतना ही जघन्य माना जाना चाहिए जितना की मुख्य षडयंत्रकारी माना जाना चाहिए  . स्पष्ट है कि देशद्रोह के मैकैनिज़म में शामिल हो कोई भी पुर्जा चाहे तो अपराध को कारित होने से रोक सकता है . याकूब अगर प्रथम दिन से ही चाहता तो वह इस जघन्य अपराध को रोक सकता था . लिहाजा वो टाइगर मेनन के सामान ही दोषी है . जैसा पूरे मुकदमें  में प्रस्तुत एवं  साबित हुआ . अत: प्रोसीज़रल चूकों को आधार पर अथवा किसी भी अन्य कारण प्रस्तुत समस्त दया याचिकाएं स्वीकार्य योग्य नहीं हैं .
      जब अपराध की स्वीकारोक्ति एवं पुष्टि हो चुकी है तब मर्सी आवेदन न केवल उचित है बल्कि न्यायहित में नहीं है .
        अगर आप अन्य किसी देश के नागरिक होते तो क्या होता -  
        भारत में अभिव्यक्ति के अधिकार का इतना भयंकर दुरुपयोग कि लोग राजद्रोह को भी भावनात्मकता से जोड़ दिया जाता है . पूरी कानूनी कार्यवाई पूरी हो जाने के बाद भी छिद्रान्वेषण किया जा रहा है. जबकि पडौसी मुल्क में ही देखें आज़ादी की लड़ाई के लिए आगे आए लोगों को रात अँधेरे घरों से अगवा कर ख़त्म कर दिया जाता है . भारत में कम से कम ये स्थिति तो नहीं हैं

        भारत में जब जहीन लोग इस तरह क काम में सक्रीय पाए जाते हैं तो लगता है कि अभिव्यक्ति के अधिकार का पुनरावलोकन ज़रूरी है ? भारतीय संवैधानिक इंतज़ाम के सन्दर्भ में कोई भी टिप्पणी जिससे  विश्व में गलत सन्देश जा रहा हो . 

26.7.15

अंतस में खौलता लावा


चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ....!!
तब जब तुम्हारी बातों की सुई
मेरे भाव मनकों के छेदती
तब रिसने लगती है अंतस पीर  
भीतर की आग  –
तब पीढ़ा का ईंधन पाकर
तब युवा हो जाता है यकायक “लावा”
तब अचानक ज़ेहन में या सच में सामने आते हो
तब
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ....!!
मुस्कुराकर ....... अक्सर .........
मुझे ग़मगीन न देख
तुम धधकते हो अंतस से
पर तुम्हें नहीं आता –
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपकाना ....!!
तुममें –मुझसे बस यही अलहदा है .
तुम आक्रामक होते हो
मैं मूर्खों की तरह  टकटकी लगा   
अपलक तुमको निहारता हूँ ...
और तुम तुम हो वही करते हो जो मैं चाहता हूँ ......
धधक- धधक कर खुद राख हो जाते हो
फूंक कर मैं ........
फिर उड़ा देता हूँ .........
अपने दिलो-दिमाग से तुम्हारी देह-भस्म
जो काबिल नहीं होती भस्म आरती के ...
                       #गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”


24.7.15

खुद ही रंगरेज़ हूँ खुद का मैं रंग हूँ ...!

गीत हूँ कि छंद हूँ  मधुप या  मकरंद हूँ
एक हर्फ़ हूँ कहो या कि पूरा ग्रंथ हूँ ...?
..............
सृष्टि के श्रृंगार को सृष्टि ने मुझे रचा
जन्मते ही प्रश्न था – माँ कहो मैं क्यूं रचा ?
आँचरा बिखेर के  – अमिय कलश लगा दिया
प्रश्न करते होंठों को – माँ ने चुप करा लिया .
    तब जाना देह नहीं अंतर्संबंध हूँ ...!
..............
जो चाहा मिल गया अनचाहा छोड़ के
नाते कुछ नवल बने हर अगले मोड़ पे .
जो छूटा जाने दो, नया कुछ तो साथ है
आगे तक लाने में विगत का ही हाथ है
    बाहर शांत सही अंतस से द्वंद्व हूँ...!
..............
अभिनय मैं अभिनेता कथा भी कथानक हूँ
गीतों का शब्द कभी शब्द का नियामक हूँ
संग साथ चलो मेरे हाथ राह में छोडो ...?
जैसी तुम चाहो, वैसी ही धुन जोड़ो   ... ?
    खुद ही रंगरेज़ हूँ  खुद का मैं रंग हूँ ...!
..............
  

  

Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...