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मंगलवार, जुलाई 28, 2015

एक सदी का अवसान

कलाम साहब ने कहा था - मेरी मृत्यु पर अवकाश घोषित न हो आप उस दिन अधिक कार्य करें .
मानवता के पुजारी एवं शताब्दी के युगयोगी ने साबित किया कि कितना सहज है धारा से शिखर की यात्रा मगर उससे भी सहज और सरल है "सहज और सरल" होना । मेरे देश के बच्चे जो उनसे मिले हैं निसंदेह भाग्यशाली थे । हमारे कानों में बस मिसाइल मैं के सन्देश अनवरत जारी रहेंगे । हम घंटो सोचते रहें तो भी शब्द नहीं मिल रहे । सदियों लिखेंगे तो भी अनोखा व्यक्तित्व  के बारे में लिख न पाएंगे । समंदर की स्याही से कल्पतरु की कलम से अनंत आकाश पर लिखी जाती रहेगी उनकी अमरगाथा तब भी हम पूर्ण न लिख पाएंगे । भला आकाश जैसे महान के बारे में लिखने की शक्ति मुझ में तो नहीं

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