खुद को आत्मिक संवाद के लिए अवसर देना ही चाहिए .... खुद को अगर आप ने खुद को ऐसा अवसर न दिया तो तय है कि आप स्वयं को शुचिता न दे पाएंगें .खुद को पावन करने का सबसे आसान तरीका है आत्म-विश्लेषण करने वालों को न तो किसी प्रीचर की ज़रुरत होती न ही आध्यात्म के नाम पर आडम्बर कर रहे पाखण्ड के पुरोधाओं की .
आत्मअन्वेषण के लिए कोई चढ़ावा देना किसी का पिछलग्गू नहीं बना होता हम अगर ऐसा करते हैं तो पठित मूर्ख हैं . जन्म एक अदभुत घटना है तो तो मृत्यु उससे अनुपम उपहार . इन दौनों घटनाओं के बीच के "जीवन" को संवारने की कोशिश में हम फंस जाते हैं तिलिस्म फैलाने वालों के दुश्चक्र में . जहां धन,समय,श्रम, खर्च कर एक कल्ट में समा जाते हैं. बहुत देर बाद पता चलता है कि जिसे हमने अपने आप को शुचिता पूर्ण बनाने का दायित्व सौंपा था वो एक व्यापारी है . तो स्थिति भिन्न होती है . हम न किसी से कुछ कह पाते किसी की सुनने में भी हमको शर्मिन्दगी होती है. आज का मीडिया तेज़ और कटीला है किसी को नहीं छोड़ता न आसाराम को न राधे को सब कुछ शीघ्र साफ़ हो जाता है . तब आप जो किसी के अनुयाई होते हैं स्तब्ध और स्पीचलैस हो जाते हैं . आत्म-विश्लेषण कर शुचिता की ओर एक एक कदम बढायें.