गीत हूँ कि छंद हूँ मधुप या मकरंद हूँ
एक हर्फ़ हूँ कहो या कि पूरा ग्रंथ हूँ ...?
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सृष्टि के श्रृंगार को सृष्टि ने मुझे रचा
जन्मते ही प्रश्न था – माँ कहो मैं क्यूं रचा ?
आँचरा बिखेर के –
अमिय कलश लगा दिया
प्रश्न करते होंठों को – माँ ने चुप करा लिया .
तब जाना देह
नहीं अंतर्संबंध हूँ ...!
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जो चाहा मिल गया अनचाहा छोड़ के
नाते कुछ नवल बने हर अगले मोड़ पे .
जो छूटा जाने दो, नया कुछ तो साथ है
आगे तक लाने में विगत का ही हाथ है
बाहर शांत सही
अंतस से द्वंद्व हूँ...!
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अभिनय मैं अभिनेता कथा भी कथानक हूँ
गीतों का शब्द कभी शब्द का नियामक हूँ
संग साथ चलो मेरे हाथ राह में छोडो ...?
जैसी तुम चाहो, वैसी ही धुन जोड़ो ... ?
खुद ही रंगरेज़ हूँ खुद का मैं रंग हूँ ...!
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