14.12.14
12.12.14
शिव की आँखें खुलीं थी उस रात में !
रास्ते
खोजते भीगते भागते, जिसके दर पे थे उसने
बचाया नहीं
कागज़ों पे लिखे
गीत सी ज़िंदगी- जाने क्या क्या हुआ उस रात में ?
तेज़ धारा बहा ले
गई ज़िंदगी रेत से बह रहे थे नगर के नगर –
क्रुद्ध बूंदों
ने छोड़ा नहीं एक भी, शिव की आँखें खुलीं थी उस रात में !
हर तरफ़ चीखतीं
भयातुर देहों को तिनका भी मिला न था इक हाथ में-
बोलिये क्या
लिखें क्या सुनें क्या कहें- जो बचा सोचता ! क्यूं बचा बाद में ?
जो कुछ भी हुआ था
वज़ह हम ही थे- पर सियासत को मुद्दों पे मुद्दे मिले.
बेरहम चैनलों पे लोग थे, गिद्धों की तरह आदमी थे
जुटे-
काटकर अंगुलियां मुद्रिका ले गये हाथ काटे गये चूड़ियों के
लिये
निर्दयी लोगों के
इस नगर में कहो क्या लिखूं, शब्द छुपते हैं आघात में .
मत कहो गीत गीले
होते नहीं, अबके गीले हुये हैं वो बरसात में...
* गिरीश बिल्लोरे ”मुकुल”
8.12.14
Bhopal : A Prayer For Rain के निर्देशक हैं जबलपुर के डाक्टर रवि कुमार शकरगाए
इस वक्त में दुनियां की सबसे चर्चित फिल्म "Bhopal
: A Prayer For Rain " का निर्देशन लेखन जबलपुर के अनिवासी भारतीय चिकित्सक ने
किया है ।
मुझे स्मरण हो आया अपने स्वर्गीय मित्र क्रिकेटर
स्व. डाक्टर संजय श्रीवास्तव का जिनके डा. रवि बाल
सखा है । डा. रविकुमार राइट टाउन जबलपुर
निवासरत शकरगाए परिवार सदस्य हैं यह परिवार नार्मदीय ब्राह्मण परिवारों में से एक है
जो बहुधा संयुक्त परिवार की मिसाल होते हैं । पिता
श्री मदन मोहन शकरगाए स्वयं सेवानि:वृत बुजुर्ग
हैं परंतु वृद्ध होने का एहसास वे होने नहीं देते । नार्मदीय ब्राह्मण समाज में
सतत सक्रिय शकरगाए दादा जी गायकी के शौकीन हैं आज भी गीत भजन गाते हैं , जब मन हुआ यात्रा पर कुल मिला कर आत्मसाहस के साथ ज़िंदादिली के साथ जीवन
का आनंद लेते शकरगाए जी के मन में उत्साह का संचार होना स्वाभाविक है .... डा. रवि
का जन्म 11 अक्टूबर 1961 को मध्यप्रदेश के बैरागढ़ भोपाल में हुआ ।
प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा भी भोपाल में ही हुई ।
घर के मुखिया की सरकारी नौकरी के चलते
समूचा परिवार को 1976 में जबलपुर आया । संस्कारधानी की
तासीर ही कला साधना के सबसे अनुकूल है युवा विद्यार्थी
रविकुमार की प्रतिभा को निखारने का मौका यहीं मिला ।
मेरे मित्र
स्व. ( डा.) संजय श्रीवास्तव मुझे इनकी
रुचियों के बारे में बताया करते थे । मुझे पता था कि डा. रवि का नाता चिकित्सा से तो
है ही पर वे थियेटर में भी रुचि रखते हैं किन्तु इंग्लैण्ड के सेंट मेरी एवं सेंट
जांस हास्पिटल्स के पीडियाट्रिशियन डा.
रवि फिल्म निर्माण से अभी भी जुड़े हैं इस बात से अनभिज्ञ रहा हूँ । परिजनों के अनुसार नाटक एवं लेखन में डॉ. रवि
की विशेष रूचि एवं वर्तमान कार्यों की पुष्टी हुई है । माँ श्रीमती कुसुम ने बताया कि – “ रवि विश्व
में अपनी फिल्म साधना को स्थापित करना चाहते हैं , रचनात्मकता
उनके जीवन की अभिन्न ज़रूरत है ”
डा. रवि शकरगाए
ने नेताजी सुभाषचंद्र मेडिकल कालेज से एम बी बी एस की डिग्री हासिल कर मूलचंद
हास्पिटल दिल्ली में इटर्नशिप करने के बाद 1988 में M. D.
Pediatrics के
लिए लन्दन गए । वहीं Child
Heart Specialist की
उपाधि प्राप्त की. डा. रवि की पत्नी श्रीमती मेरली भी
जीवन साथी होने के साथ साथ उनके प्रतिभावान व्यक्तित्व की हमकदम हैं ।
“भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन का निर्माण एवं प्रदर्शन
“
चर्चित फिल्म भोपालः ए प्रेयर फॉर रेन को बनाने में आठ साल लगे यह फिल्म लगभग पांच बरस पहले बनके तैयार हो चुकी
थी. इसका प्रदर्शन पहली बार सितंबर 2014 को अमेरिका में किया गया । फिर 7
नवंबर 2014 को अमेरिका में छोटे पैमाने पर किया गया । वहां इसे कैलिफोर्निया, लास एंजलिस, शिकागो सहित कई स्थानो पर
प्रदर्शित करने की मांग की गई है । अमेरिकी फिल्म समीक्षक एवं दर्शक इस
फिल्म को टायटेनिक के समतुल्य मानते हैं ।
भारत में प्रदर्शन
: -
भारत में फिल्म का प्रदर्शन गैस हादसे की तीसवीं बरसी पर 3 दिसंबर
2014 को भोपाल के आशिमा
मॉल के सिनापोलिस थियेटर किया
गया । अगले ही दिन यानी 4 दिसंबर
2014 को इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग में सलमान खान , रितिक रौशन, रितेश
देशमुख , महेश
भट्ट आदि मौजूद थे । स्मरण हो की इस फिल्म को देखने के बाद मुख्यमंत्री श्री
शिवराज सिंह ने प्रदेश में कर मुक्त करने की घोषणा भी की है ।
समीक्षकों की नज़र में
एक अन्य फिल्म
समीक्षक *स्टेसी यंट्स ने कहा कि – “मैं इस फिल्म को कोई रेटिंग अंक नहीं दे रहा हूँ क्योंकि यह फिल्म
रेटिंग वाले मानदंड से सर्वथा ऊपर है ।”
काबिले गौर तथ्य आपके सामने लाना ज़रूरी है कि - कांस एवं टोकियो फिल्म त्यौहारों में ही नहीं वरन स्विटज़रलैंड में भी इसे अनूठी फिल्म माना है. यद्यपि हम
अभी इसे देख नहीं पाए हैं. जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि अमेरिकी फिल्म समीक्षक एवं दर्शक इस फिल्म को टायटेनिक के
समतुल्य मानते हैं इस फिल्म को देखने के बाद मैं निर्विवाद रूप से पुष्टि करता हूँ कि रवि भाई में
भविष्य में निर्देशक के रूप में हालीवुड के चुनिन्दा श्रेष्ठ
निर्देशकों में से एक होंगे । घटना के बाईस बरस बाद रवि जी के दिमाग में मिक बनाम भोपाल
वाला घटनाक्रम तैर गया और उनने आर्थिक विकास की अंधी भागमभाग के दौर को बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के साथ सतर्क व्यवहार के लिए फिल्म के जरिये आगाह किया तो मान लेना चाहिए
कि लेखक के रूप में रवि जी का विज़न अधिक सक्रिय
है ।
फ़िल्मकार रवि ने अपनी
फिल्मकारी की श्रेष्ठता उत्कृष्ट 2001 में बनाई लघु फिल्म My other
wheelchair is a porshe में ही सिद्ध कर दी है ।
नियोमी केंटोन की नज़र
में यह फिल्म – स्लम डाग मिलेनियर एवं ट्वेलव ईयर अ स्लेव से बेहतर है ।
[ *स्टेसी यंट्स :
"I cannot g ive this film a rating,
as it is so much more than that. I can only simply say it is important that
everyone see this devastating tale, to learn, to know, to feel and to act." { देखें - Stacey Yount's Special Review – Bhopal: A Prayer For Rain } ]
मैं भारतीयों को लेकर अत्यधिक आशावादी हूँ मुझे मालूम है कि पंद्रह वर्षों में भारत सम्पूर्णविश्व में अपनी सोच समझ एवं ज्ञान की शक्ति के सहारे सर्वोत्तम साबित होंगे । तब डा.रवि कुमार शकरगाए का अपना मुकाम हॉलीवुड में सबसे अलग होना तय है ।
डा. रविकुमार शकरगाए
का फिल्मों में
योगदान
निर्देशक के रूप में
2001 : My other wheelchair is a porshe (Short Film )
लेखक के रूप
में
निर्माता
Uproot (short film )
परिवार का परिचय
पिता - श्री मदन मोहन शकरगाए, सेवा नि:वृत शासकीय अधिकारी,
अधिवक्ता, एवं गायक
माता – श्रीमती कुसुम शकरगाए गृहणी
भाई –
v श्री ब्रजभूषण शकरगाए, पत्रकार , जबलपुर,
v श्री चंद्रभूषण शकरगाए, पत्रकार एवं प्रबंधन क्षेत्र में , जबलपुर
v डा. रविकुमार पीडियाट्रिक्स एवं फ़िल्मकार , हालीवुड / लंदन
v श्री विवेक आनंद शकरगाए , टोरंटो
v श्री भारत भूषण शकरगाए, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के
प्रबंधकीय – विभाग में सेवारत
7.12.14
मेरा मानना है कि उच्च दर्जे की आय अर्जित कर सकेंगे हिन्दी ब्लागर : रवि रतलामी
हिन्दी के मशहूर ब्लागर श्री रविशंकर श्रीवास्तव जिनको हम रविरतलामी के नाम से जानते हैं गूगल की विज्ञापन नीति से से उत्साहित हैं । उनका मानना है कि भविष्य में ब्लागिंग रोजगार का जरिया हो सकती है । इस सिलसिले में उनसे हुई बातचीत का पॉडकास्ट सुनिए .....
गूगल की हिन्दी ब्लागिंग के लिए विज्ञापन नीति पर अनूप शुक्ल फुरसतिया जी का वक्तव्य
गूगल की हिन्दी ब्लागिंग के लिए विज्ञापन नीति पर अनूप शुक्ल फुरसतिया जी का वक्तव्य पॉडकास्ट के रूप में प्रस्तुत है -
SoundCloud Dot Com Cirish_Billore V/s Furasatiya
SoundCloud Dot Com Cirish_Billore V/s Furasatiya
सुनो साक़ी ! अपनी पायलों में ताज़गी लाना ।
न मैखाने का पैमाना,
न पैमाने का मैखाना
कोई नाता नहीं इनमें गर सूना हो मैखाना
।
यही समझाने आया हूँ कि हर रिश्ते में
कारण है –
ये दुनियाँ इक तिजारत है इसे जब चाहो
को अज़माना ।।
***************
मयकश आने वाला है सुराही सामने लाओ
सुनो साक़ी ! अपनी पायलों में ताज़गी लाना
।
उसे जो हो पसंदीदा -
गज़ल वो साज पे गाओ -
उसी की हो यकीं ये उसको हर कतरे से समझाना ।।
**********************
बिना मयकश के मैखाना उजड़ी इक इबारत है
कौन साक़ी ?
कैसा प्याला ?
सुराही क्या ?
क्या मैखाना ?
कवि कोई कैसे लिखता जीवन की मधुशाला
...?
मयकश है तो मधुशाला मयकश है तो पैमाना
।।
**********************
24.11.14
बाल गायिका जयालक्ष्मी में मौज़ूद सुरसाधना के दैवीय गुण
16. नवंबर 2014 को एक वीडियो अचानक मुझे फ़ेसबुक पर देखने को मिला. फ़ेसबुक
पर अलाहाबाद के किसी सदस्य श्री महेश सेठ जी ने शेयर किया था. वीडियो में एक बेटी ने पंडित नरेंद्र शर्मा के गीत
“सत्यं शिवम सुंदरम ” गाया था. अनोखी आवाज़ उम्र भी कोई खास नहीं. मुझे लगा नौ-दस
बरस से अधिक क्या होगी.
हम सभी हतप्रभ थे, आवाज़ अनोखी एवम रेशमी सी.. अटूट संभावनाओं से भरी इस
आवाज़ को बहुतों ने सुना. उसी दिन से मेरी तलाश [ जो सिर्फ़ नेट तक सीमित थी ] शुरु हुई. सरस्वती की कृपा पात्र बेटी के बारे में जानने की
इच्छा बलवति हुई. वीडियो एंबेड कर तुरंत किलकारी ब्लाग [ http://kilakari.blogspot.in ] चस्पा कर दिया. रोज़ उसे सुनने
लगा. हज़ारों लोगों को यह आवाज़ मोहित करती है
. फ़िल्म सत्यं-शिवम-सुंदरम का यह गीत वास्तव में पंडित नरेंद्र शर्मा का कालजयी गीत
है. लता दीदी के मानस भाई पंडित नरेंद्र शर्मा ने यह गीत तब लिखा जब स्वयं उनके अंतस
का कवि सत्य की तलाश में शब्दों से अक्षरों से भाव प्रदेश में संवाद कर रहा होगा. तब
शायद स्वयं शिव ने उनमें समा कर इस गीत की रचना की होगी. गीत विशुद्ध रूप से जीवन का
दर्शन है, अध्यात्म है, उनकी पुत्री मेरी चिट्ठाकार मित्र श्रीमति लावण्या शाह ने इस
गीत के रचना काल एवम रचना काल की परिस्थियों पर ज़िक्र किया था जिसका सार ये है कि गीत
एक महान आध्यात्मिक-अभिव्यक्ति है.
सत्यम-शिवम- सुंदरम के टायटल गीत को लेकर मेरी मान्यता ये है कि - किसी भी गायक के लिये इतना शुभ होता है कि तुरंत उसे आशीर्वाद मिलता है.. फ़िल्म सत्यं-शिवम-सुंदरम के हिट होने में इस गीत का अविस्मरणीय अवदान किसी से छिपा नहीं है.
आभास जोशी जैसे वर्स्टाइल सिंगर को इसी गीत ने ऊर्ज़ा दी थी . सिंगर्स चाहें तो आज़मा कर देख सकते हैं.
केरल के अलप्पी जिले के पल्लीपुरम की 11 वर्ष की जयलक्ष्मी 03.03.2003
को जन्मी. मां प्रीता जयकुमार से सुर साधना का पहला पाठ सीखा . पिताश्री जयकुमार [ एक्स सर्विसमैन भारतीय सेना ] लेकिन जयलक्ष्मी के गुरु ने ज्यों ही वाट्सअप पे अपलोड किया वीडियो तुरंत
वायरल हो गया. इसे डा. कुमार विश्वास ने हाथौं हाथ लिया और प्रमोट भी किया .
प्रशांत ने भी किया कमाल –
पल पल इंडिया की मानें तो व्हाट्सएप्प से पहले किसी परिचित के माध्यम से मुंबई
में रहनेवाले वाइस ओवर आर्टिस्ट और प्ले बेक सिंगर प्रशांत जी को यह वीडियो प्राप्त
हुआ था.उन्होंने 17 नवंबर को इसे यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया.प्रशांत ने ही उस आवाज़ में सुनहरे कल को जाना पहचाना और ठाना कि इस आवाज़ को जन जन तक पहुंचाएं . प्रशांत ने इसे यू ट्यूब के अलावा सोशल मीडिया फ़ेसबुक, व्हाट्सएप्प, और अपने मेल से निरंतर कैम्पेनिंग की . बावज़ूद इसके कि वे तेज़ बुखार में थे. प्रशांत जी ने चार रात दिन और
रातें जगते-जगते आज बुखार से होने की खबर की पुष्टि करते हुये मुझे फ़ोन पर आज बताया
कि –“मैं बिटिया की योग्यता पर मोहित एवम भावुक इस हद तक था कि उसे किसी न किसी तरह
एक मुक़ाम हासिल हो.. आज़ मैं बेहद खुश हूं.. ” सोशल-मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
यू ट्यूब चैनल के यूज़र पवन आर चावला यह वीडियो छै दिन पहले अपलोड कर चुके थे. किंतु प्रशांत ने उसे लोगों तक बांटने का ज़िम्मा लिया .
जया लता जी को आदर्श मानती है.
लता जी ने बेटी जया की तारीफ़ करते हुए रियाज़ पर ज़ोर देने सलाह के साथ आशीर्वाद दिया
.
ज़ी टी.वी. ने सुर की संभावना जया को पब्लिक के सामने पेश किया बेशक अद्वितीय
काम किया. टीम को बधाईयां . किंतु ज़ी टी.वी. पर मौज़ूद जस्पिंदर नरूला एवम लता दी की
सलाह को पूरा परिवार एवं स्वयं जया को माननी होगी … कि यश सदा मानस से हटा देना चाहिये
. ताकि साधना जारी रहे. महान कलाकार होने का भ्रम साधना को खंडित कर देती है. ललित्या सी.ई.ओ. रेडरिबन म्यूज़िक ने अपने " रेडरिबन म्यूज़िक कंपनी " से एक एलबम निकालने की घोषणा भी की है.
सपना अवस्थी ने आवाज़ में परिवर्तन की ओर आगाह करते हुए.. सलाह दी है कि
साधना सदा जारी रहे .
मलयाली भाषी इस बिटिया जैसी प्रतिभाएं कम नहीं हैं. पर इनको पहचान दिलाने
में ऐसी ही पहल होनी जाहिये . रीयलिटी शोज़ प्रतिभाएं सामने ला रहे हैं किंतु उनकी अपनी व्यवसायिक मज़बूरियां हैं. सीमा हैं…
17.11.14
14.11.14
तुमको नेवलों से बचाना मेरा फ़र्ज़ है..
मैं अपनी प्राप्त सांसें गिन रहा हूं ..
तुम अपनी गिनो ..
रोज़िन्ना सोचता हूं
तुम क्यों गिनते हो इस उसकी सांस
क्या सर्वशक्तिमान हो
मेरी नियति का नियंता तुम नहीं हो
जहां मैं हूं वहां तुम कहीं नहीं हो ..
भला क्या मालूम कि
तुम कितनी गिन पाते हो मेरी सांसें..
जानते हो आर्त हृदय से सदा ही तीर निकलते हैं
तुम हो कि सुई चुभते ही हो जाते हो बदहवास ..
तुम उन में शुमार हो जो वमन करते हो विष
और मैं वो हूं जो तुमको आस्तीन में
सम्हाल के रखता हूं..
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
मुझसे डरो मत
मुझमें विषदंत नहीं हैं
मां के स्तनों में अमिय ही तो था
जो मैने छक के पिया है..
पिता का दिया विशाल फ़लक
हां मित्र मैने हक़ से लिया है..
तुम्हारे पास सायुध आया हूं
तुममें बसे विषधर को मिटाने
मेरे गीत मेरे आयुध हैं..
जो विषधर के खिलाफ़ हैं..
चलो निकाल दो विषग्रंथियां
जो अंतस के विषधर की संगत से तुममें ऊग आईं हैं
मित्र तुमको नेवलों से बचाना मेरा फ़र्ज़ है..
तुम्हारी मित्रता मुझपे कर्ज़ है...
तुम अपनी गिनो ..
रोज़िन्ना सोचता हूं
तुम क्यों गिनते हो इस उसकी सांस
क्या सर्वशक्तिमान हो
मेरी नियति का नियंता तुम नहीं हो
जहां मैं हूं वहां तुम कहीं नहीं हो ..
भला क्या मालूम कि
तुम कितनी गिन पाते हो मेरी सांसें..
जानते हो आर्त हृदय से सदा ही तीर निकलते हैं
तुम हो कि सुई चुभते ही हो जाते हो बदहवास ..
तुम उन में शुमार हो जो वमन करते हो विष
और मैं वो हूं जो तुमको आस्तीन में
सम्हाल के रखता हूं..
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
मुझसे डरो मत
मुझमें विषदंत नहीं हैं
मां के स्तनों में अमिय ही तो था
जो मैने छक के पिया है..
पिता का दिया विशाल फ़लक
हां मित्र मैने हक़ से लिया है..
तुम्हारे पास सायुध आया हूं
तुममें बसे विषधर को मिटाने
मेरे गीत मेरे आयुध हैं..
जो विषधर के खिलाफ़ हैं..
चलो निकाल दो विषग्रंथियां
जो अंतस के विषधर की संगत से तुममें ऊग आईं हैं
मित्र तुमको नेवलों से बचाना मेरा फ़र्ज़ है..
तुम्हारी मित्रता मुझपे कर्ज़ है...
13.11.14
भारतवंशियों का अमेरिका में बढ़ता प्रभाव और पाकिस्तानी मीडिया की छटपटाहट
श्री सत्य नडेला |
बाबी ज़िंदल |
पाकिस्तानी मीडिया पर प्रसारित एक विशेष प्रसारण में अमेरिकी प्रशासन में भारतीय मूल के लुसियाना के गवर्नर बाबी ज़िंदल एवं साउथ कैरलिना की गवर्नर निकी हैली के नाम का प्रभाव पूर्ण ढंग से ज़िक्र किया. बाबी ज़िंदल को को भविष्य में (2016 के अमेरिकी चुनाव ) में अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना का उल्लेख करते हुए चिंता व्यक्त की है कि यू.एस. की पालिसी में प्रो-भारतीय सिद्धांतों को वज़न मिलेगा.
भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों की बढ़ती साख और पाकिस्तानीयों की वर्तमान परिस्थिति पर केंद्रित कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए सी ई ओ माइक्रोसाफ़्ट का ज़िक्र करते हुए कहा कि बड़ी कम्पनियों में भारतीय मूल के लोगों की भागीदारी बढ़ी है. स्मरण हो कि श्री सत्य नडेला, सी ई ओ माइक्रोसाफ़्ट हैं.
निक्की हैली मान. प्रधानमंत्री जी के साथ |
यू.एस. प्रशासन में नीतिगत फ़ैसले लेने वाले ओहदेदारों पुनीत तलवारी, निशा विश्वाल, राजीव शाह, सुश्री अजिता राज़ी , (स्वीडन में अमेरिकी राज़दूत ) विक्रम सिंह, फ़रीद परेरा, जसमीत आहूजा, का ज़िक्र किया. यहां तक कि अमेरिकी मीडिया में फ़रीद ज़कारिया, विकास बज़ाज, ज़ेन मीर, संजय गुप्ता की उपस्थिति का भी ज़िक्र किया गया. इस स्थिति के सापेक्ष पाकिस्तानी मूल के नागरिकों के घटते अस्तित्व यहां तक कि संवेदनशील जगहों में पाकिस्तानी लोगों के संघर्ष पर पीढा भी कहीं इशारों इशारों तो कभी खुल के सामने आई. उन्हैं दर्द है कि पाकिस्तान को आतंक का प्रश्रयदाता देश मान कर पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ़ विश्व के लोगों के व्यव्हार में परिवर्तन आया है इसे आप पाकिस्तानी यूथ के दर्द समझ पाएंगे https://www.youtube.com/watch?v=JCewOLDd5Dc . विकसित देशों में पाकिस्तान पर विश्वास की कमी इस का मूल कारण है. पाकिस्तानी प्रसारण में बेहद हताशा थी कि पाकिस्तानी मूल के अमेरिकन अपनी सार्थक उपस्थिति साबित नहीं कर पा रहे हैं ....? हालांकि वे मान रहे थे कि पाकिस्तान की सियासत इसकी ज़िम्मेदार है. जबकि एक लाइन में कहा जाए तो यह कहना ग़लत न होगा कि- " पाकिस्तान की विश्वश्नीयता में आई कमीं का खामियाज़ा है " ये मानना है पाक़िस्तानी युवाओं का जो पाकिस्तानी आंतरिक एवम वैश्विक नगैटिव परिस्थियों के चलते बाहरी देशों में अपमानित हो रहे हैं.
जहां तक भारतीय मूल के लोगों की बात की जाए तो स्पष्ट रूप से भारतीय सामाजिक औदार्यपूर्ण संरचना, कर्मशीलता, एवं सहिष्णुता आज़ादी के बाद भी भारतवंशीयों के काम आई है. अपनी कर्मशीलता एवम बुद्धि-ज्ञान के बलबूते पर जहां भी जाते हैं यक़ीन मानिये छा जाते हैं. और जहां अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराते हैं तो थरथराहट अवश्य हो ही जाती है.
भारत में अमेरिका के राज़दूत के रूप में रिचर्ड राहुल वर्मा भी बराक ओबामा की रिपब्लिकन एवम विपक्षी दल डेमोक्रेट्स के बीच समान रूप से पसंदीदा हैं.
विकी पीडिया पर प्रकाशित जानकारी के अनुसार 2010 के अमेरिकी सेंसस में भारतीय मूल के मात्र .9% यानि मात्र एक प्रतिशत के आसपास अमेरिका में मौज़ूद हैं. सोचिये अगर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की जनसंख्या में 9% का इज़ाफ़ा और हो जाए तो पाकिस्तान में कितनी हाय तौबा मच जाएगी
_____________________________________________________________
पाकिस्तानी टी वी हिन्दुस्तान के नागरिकों के ज़ज़्बे को सराहते हैं
चर्चा देखने के लिये इस लिन्क का उपयोग भी किया जा सकता है
लिन्क :- https://www.youtube.com/watch?v=gNEcZ83nzfw
..........................................................................................................
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पाकिस्तानी टी वी हिन्दुस्तान के नागरिकों के ज़ज़्बे को सराहते हैं
इस चर्चा में देखिये
Indians in US are smarter than Pakistanis
_____________________________________________________चर्चा देखने के लिये इस लिन्क का उपयोग भी किया जा सकता है
लिन्क :- https://www.youtube.com/watch?v=gNEcZ83nzfw
..........................................................................................................
12.11.14
वर्ल्डविज़न का भारत की छवि को गिराने वाला आपत्तिजनक ई संदेश
आज एक मेल देखा. वर्ल्ड विज़न www.worldvision.in मेल का स्नेपशाट देखिये
लाल रंग से रेखांकित लाइन के पढ़ते ही लगा जैसे कि देश में भयावह स्थिति आ गई जो वर्ल्ड विज़न के अलावा अन्य किसी के विज़न में नहीं हैं. एक स्थापित एन जी ओ के रूप में यह संस्थान प्रभावी कार्य भले कर रहा हो पर बच्चों के भूखे रहने के नाम पर स्पांसर शिप मांगना किस हद तक सही है. मेरी तरह की मेललिस्ट में कई देशी-विदेशी लोगों के पते होंगे जहां ये मेल पहुंच रहे होंगे. और लोग भारत में भूख की स्थिति पाए जाने की बात से सहमत हो गए होंगे तथा प्रेरित होकर स्पांसर-शिप के लिये तत्पर भी होंगे । मेरा खुला आग्रह है कि वर्ल्ड विज़न www.worldvision.in इस तरह के विज्ञापन तुरंत बंद कर सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त करे। इस संस्था ने कहीं भी अपना मेल पता वेब पर अंकित नहीं किया है. जो एक आपत्ति-जनक बिंदु है.
_______________________________
प्रति
वर्ल्ड विज़न टीम
World Vision India
No. 16, VOC Main Road,
Kodambakkam, Chennai - 600
024.
हार्दिक-शुभकामनाएं
आपका ई संदेश मिला . आपके बाल कल्याण के लिये कार्य करने की सराहना अवश्य करता
हूं किंतु आपके द्वारा जो स्पांसरशिप के लिये संदेश दिया है घोर आपत्तिजनक है.
मेल संदेश के प्रारंभ में ही Feed a Hungry Child लिखा जाकर दान मांगना
सर्वथा ग़लत एवं भारत की छवि को धूमिल करना है. खासकर मध्य-प्रदेश सहित
भारत
में शायद ही कोई ऐसा प्रांत हो भूखे बच्चों वाली स्थिति होगी. भारत में बाल
विकास सेवाऎं, बाल-गृह, अनाथ बच्चों के लिये आश्रम संचालन हेतु अनुदान, शासकीय
तौर पर मुहैया कराए जाते हैं साथ ही विभिन्न धर्मों की धार्मिक, आध्यात्मिक
,
सामाजिक संस्थाएं बिना इस तरह के वाक्यों के सहारे कार्य कर रहें हैं. अगर आप
सर्वे करें तो निश्चित ही आप पाएंगे कि लाखों नागरिक बिना किसी प्रदर्शन के
बच्चों के लिए भोजन आवासीय शिक्षा आदि के लिये प्रायोजक भी हैं .मैंने अपने सार्वजनिक जीवन एवं सरकारी सेवा के कालखंड में आपके द्वारा इंगित स्थिति नहीं पाई है. आप के इस मेल से मुझे घोर आपत्ति है.
कृपया मेरी आहत भावना के प्रति सहिष्णुता पूर्वक नज़रिया रखिये.
सादर
अनवरत शुभ की कामनाओं के साथ
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
स्वतंत्र-लेखक, विचारक, साहित्यकार
9.11.14
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे..!!
गो
हाथ को जुम्बिश नहीं हाथों में तो दम है
रहने
दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे…!
|
बात यूं तो एहसास करने की है. लिखना भी नहीं चाहता पर क्या करूं लेखक जो ठहरा लिखे बिना काम भी तो नहीं चलता.कब तक छिपाए बैठूंगा अपना दर्द सीने में जो मेरा मित्र है . सोचता हूं कि आत्महिंसा कितनी ज़ायज़ है ?
उत्तर मिलता है- मात्रा में पूछोगे तो कहूंगा कि लेशमात्र भी नहीं अवधि में ? तो निमिष मात्र भी नहीं....कदापि नहीं..!
तो क्या लड़ जाऊं ..?
न इसकी ज़रूरत ही नहीं है.. !
तो क्या करूं..
बस खुद से बातें करो खुद को प्रेम से समझाओ.. और जिसने तुम पर अनाधिकृत दबाव डाला है उसे एहसास करा दो कि - भाई, अब सीमाएं पार होती नज़र आ रहीं हैं.. मेरे खिलाफ़ होते अपने आचरण में बदलाव लाओ. अत्यधिक सहनशीलता दिखाने की ज़रूरत नहीं. क्यों कि यही है "आत्म-हिंसा..!"
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
मित्रो, एक मित्र के सार्वजनिक आचरण से आघातित हो मैने स्वयं से सलाह ली. फ़िर वही किया . क्योंकि खुद पर हो रही हिंसा का प्रतिहिंसक हो ज़वाब देना गलत है सो बेहतर है कि आत्महिंसा के मूलकारण की ओर खिलाफ़ क़दम ताल की जावे पूरी दृढ़ता से.. किया भी यही मैने .
फलस्वरूप मित्र ने मुझे फ़ेसबुक पर अनफैंड कर लिया. उसका निर्णय मुझे अच्छा लगा. चूंकि मैं हिंसक नहीं हूं अतएव मैने अपनी ओर से सहज समझाइश से इतर कुछ भी नहीं किया.
साथ ही मैं उन रिश्तों को ढोना भी नहीं चाहता जो सिरे से अप्रिय हों. पर व्यवसायिक मज़बूरियां हों कि उनको जीवंत रखा जावे. इन मज़बूरियों के सामने घुटने टेक होना आत्महिंसा है.
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
मुझे अच्छी तरह याद है.. कुछ लोग मेरी शिकायतें लेकर ओहदेदारों तक जा पहुंचे. सबके सब जब एक्सपोज़ हुए तो मैने उनसे पूछा भी. पर उनके झूठ बोलते चेहरों को माफ़ करना ही मैने उचित समझा क्योंकि जब मैं उनमें से कुछेक से पूछ रहा था तो चचा ग़ालिब बोले :-
मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे?
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे
. मै जानता हूं कि दुनिया का असली चेहरा यही है. इससे इतर कुछ भी नहीं और फ़िर दुनियां मेरे लिये क्या है इस बारे में चचा ग़ालिब मेरे जन्म के पहले ही लिख चुके हैं :-
बाजीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनियाँ मेरे आगे
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे..!!
मित्रो ये फ़साना है मेरा न हमारा हमारे इर्दगिर्द बारहा ये फ़साना मुसलसल ज़ारी है ईमां और कुफ़्र के बीच के सवाल पर कुछ न कहो शांत रहे मन जो कहे वो करो चचा ग़ालिब की मानो यक़ीनन खूब सही कहा है उनने कि सदा ईमान को मित्र बनाए रखो
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
क'अबा मेरे पीछे है क़लीसा मेरे आगे
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अब रात का तीन बज़ चुका है सोना भी ज़रूरी है... चलो सोता हूं किसी की नींद उड़ा के.. पर अब आत्महिंसा न होने दूंगा.. मिसफ़िट हूं आप कहां फ़िट करेंगे इस वाक़्ये को आप जाने ..... अब तो बस चचा का ये शेर गुनगुनाके सो जाऊंगा
(भले वो मेरे बारे में खूज़ खबर ले )
नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क़ से गुज़रा
क्यूँ कर कहूँ लो नाम न उसका मेरे
आगे .
8.11.14
एक कविता : फ़ेसबुक से / प्रस्तुति रीता ज़मींदार क़ानूनगो
तब टूटती थी प्लेट
बचपन में तुमसे
अब माँ से टूट जाये
तो कुछ भी ना कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे गुब्बारा
बचपन में माँ से
अब माँ चश्मा मांगे
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे चॉकलेट
बचपन में माँ से
अब माँ मांगे दवाई
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब डाटती थी माँ
शरारत होती थी तुमसे
अब वो सुन ना सके
तो बुरा उसे ना कहना..
👓🍫🍏
जब चल नहीं पाते थे तुम
माँ पकड़ के चलाती थी
अब चल ना पाए वो
तो सहारा तुम देना..
👓🍫🍏
जब रोते थे तुम
माँ सीने से लगाती थी
अब सह लेना दुःख तुम
माँ को रोने ना देना..
👓🍫🍏
जब पैदा हुए थे तुम
माँ तुम्हारे पास थी
जब माँ का अंतिम वक़्त हो
उसके पास तुम रहना.
Rita Zamindar Kanungo
बचपन में तुमसे
अब माँ से टूट जाये
तो कुछ भी ना कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे गुब्बारा
बचपन में माँ से
अब माँ चश्मा मांगे
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे चॉकलेट
बचपन में माँ से
अब माँ मांगे दवाई
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब डाटती थी माँ
शरारत होती थी तुमसे
अब वो सुन ना सके
तो बुरा उसे ना कहना..
👓🍫🍏
जब चल नहीं पाते थे तुम
माँ पकड़ के चलाती थी
अब चल ना पाए वो
तो सहारा तुम देना..
👓🍫🍏
जब रोते थे तुम
माँ सीने से लगाती थी
अब सह लेना दुःख तुम
माँ को रोने ना देना..
👓🍫🍏
जब पैदा हुए थे तुम
माँ तुम्हारे पास थी
जब माँ का अंतिम वक़्त हो
उसके पास तुम रहना.
Rita Zamindar Kanungo
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