एक कविता : फ़ेसबुक से / प्रस्तुति रीता ज़मींदार क़ानूनगो

तब टूटती थी प्लेट
बचपन में तुमसे
अब माँ से टूट जाये
तो कुछ भी ना कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे गुब्बारा
बचपन में माँ से
अब माँ चश्मा मांगे
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे चॉकलेट
बचपन में माँ से
अब माँ मांगे दवाई
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब डाटती थी माँ
शरारत होती थी तुमसे
अब वो सुन ना सके
तो बुरा उसे ना कहना..
👓🍫🍏
जब चल नहीं पाते थे तुम
माँ पकड़ के चलाती थी
अब चल ना पाए वो
तो सहारा तुम देना..
👓🍫🍏
जब रोते थे तुम
माँ सीने से लगाती थी
अब सह लेना दुःख तुम
माँ को रोने ना देना..
👓🍫🍏
जब पैदा हुए थे तुम
माँ तुम्हारे पास थी
जब माँ का अंतिम वक़्त हो
उसके पास तुम रहना.

Rita Zamindar Kanungo 

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