न मैखाने का पैमाना,
न पैमाने का मैखाना
कोई नाता नहीं इनमें गर सूना हो मैखाना
।
यही समझाने आया हूँ कि हर रिश्ते में
कारण है –
ये दुनियाँ इक तिजारत है इसे जब चाहो
को अज़माना ।।
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मयकश आने वाला है सुराही सामने लाओ
सुनो साक़ी ! अपनी पायलों में ताज़गी लाना
।
उसे जो हो पसंदीदा -
गज़ल वो साज पे गाओ -
उसी की हो यकीं ये उसको हर कतरे से समझाना ।।
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बिना मयकश के मैखाना उजड़ी इक इबारत है
कौन साक़ी ?
कैसा प्याला ?
सुराही क्या ?
क्या मैखाना ?
कवि कोई कैसे लिखता जीवन की मधुशाला
...?
मयकश है तो मधुशाला मयकश है तो पैमाना
।।
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