9.6.14

कुपोषण से निज़ात पाने सोच बदलो ..

केवल सुव्यवस्था न
संदेश भी तो है 
बच्चों की भाषा बोलना और
समझना ज़रूरी है 
                    मध्य-प्रदेश में कुपोषण से निज़ात पाने एक ऐसी अनोखी कार्ययोजना सामने आई है जिसने एक रास्ता दिखा दिया कि कुपोषण निवारण के लिये परिवारों को पोषण के महत्व, उसके तरीक़ों कि किस तरह से कुपोषण का शमन किया जा सकता है.  बाल विकास सेवाओं के मिशन मोड में आने के बाद मध्य-प्रदेश की सरकार ने जिस तरह से मार्च महीने की पहली से बारहवीं तारीख तक स्नेह-शिविरों का आयोजन किया उससे चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. विभागीय दावों के अनुरूप 01 मार्च 2012 से 12 मार्च 2012 तक अत्यधिक कम वज़न वाले बच्चों के वज़न में 200 ग्राम का न्यूनतम इज़ाफ़ा होना था किंतु 40% बच्चों का इस अवधि में वज़न  उससे कहीं अधिक यानी 400 ग्राम तक का वज़न बढ़ा जो एक चौंकने वाला परिणाम है. . व्यवस्था के खिलाफ़ आदतन वाकविलास करते रहने वाले लोग अथवा नैगेटिव सोच वालों के लिये यह कहानी आवश्यक है ....
हां, इसी घर में कम वज़न
वाला बच्चा रहता है.
       कुपोषण के संदर्भ में आठ बरस पूर्व की घटना का स्मरण करना चाहूंगा कि  पूर्व मेरे एक पत्रकार जी ने मुझ पर सवालों की बौछार कर दी उनने अपने बेहतर किताबी  एवम खबरिया मालूमात के आधार पर मुझे कठघरे में खड़ा करने की  कोशिश की . मेरे पास उनके सवालों का ज़वाब न था. मध्यप्रदेश के जबलपुर में तैनाती थी मेरी लगभग 28 वार्डों की मलिन बस्तियों में चल रहे मात्र 215 आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिये कुपोषण से जूझना  हर केंद्र को एक हज़ार के आसपास की आबादी देखनी होती थी .  रिक्शे वालों, मज़दूरों के घरों में ही नहीं निम्न एवं सीमांत मध्य-वर्ग के परिवारों में बाल-पोषण आदतों के प्रति उदासीनता तब ज़ोरों पर थी. साफ़ पानी, खानपान से ज़्यादा धन का अनावश्यक कार्यों में प्रयोग करना शहरी एवम ग्रामीण बस्तियों में समान रूप से  मौज़ूद था भी और है भी . पत्रकार भाई को खुला न्यौता दिया कि आप- मेरा पार्ट देखने किसी भी बस्ती में चलें चुनौती भी है कि मेरा पार्ट उतना बुरा न होगा जितना कि आप समझ रहें हैं.. शीतलामाई क्षेत्र को मित्र ने स्वयं चुना . नियत तिथि और समय पर हम मौज़ूद थे हमने साथ साथ घर घर का दौरा किया . सवाल पूछे गए अगली सुबह के अखबार में एक बड़ी स्पेशल रिपोर्ट “ उनकी प्राथमिकता शराब है बच्चे नहीं...!” शीर्षक से छपी . निष्कर्ष था अपनी आमदनी  एक रुपए का 15% हिस्सा भी बच्चों पर खर्च नहीं करते लोग. लोगों की स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा को दोयम मानतें हैं. प्रसव के दौरान  आयरन गोलियां न लेना, उत्सव प्रवास शराब पर अधिक धन व्यय करना कुपोषण का कारण साबित हुआ . साबित ये भी हुआ कि खान पान की आदतों में भ्रांतियां एवम खानपान के तरीकों में अनियमितता अटी पड़ीं हैं. बच्चे बार बार बीमार होते हैं.. पर पानी अनुपचारित ही पिलाया जाता है.  
छै बरस पहले  मीडिया ने कुपोषण जनित बाल एवम शिशु मृत्यु पर आधारित समाचारों को प्रकाशित किया उच्च न्यायालय जबलपुर पीठ ने भी इस संबंध में सरकार से जवाब तलब किया फलत: स्वास्थ्य एवम बाल विकास सेवा विभाग ने अपनी पड़ताल तेज़ की .
स्थल भ्रमणों से स्पष्ट हुआ कि लोग बच्चों एवम उनकी माताओं के पोषण एवम स्वास्थ्य को लेकर अत्यधिक उदासीन थे .
 इस तथ्य की पुष्टि के लिये विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त संचालक श्री हरीश अग्रवाल के खालवा विज़िट के घटना क्रम का उल्लेख आवश्यक हो गया है जिनका उल्लेख करते हुए वे हम सबको बैठकों कहा करते  थे कि “अतिरिक्त आहार खिलाना    खालवा के लोगों ने तब उनको बताया था कि – “हमारे बच्चे फ़िर पैदा हो सकते हैं किंतु अगर हमने बैल खो दिये तो हमारा पालन हार कौन होगा. हम दूसरा बैल कैसे खरीदेंगे हम ग़रीब हैं.. हम आपके किसी भी केंद्र में न बच्चे को भेज सकते न ही हमारे परिवार से कोई जा सकता”
असामयिक मौत की कगार पर बैठे बच्चे के पिता ने कहा – कि हम आपको समय दे ही नहीं सकते हमारी प्राथमिकता आय अर्जित करना है .  
  सरपंच का कथन तो और भी विष्मयकारी लगा उनको – “आप चालीस बच्चों की बात कर रहें हैं पिछले साल तो अस्सी बच्चे मरे थे. ”.. इन उद्दहरणों का हवाला देते हुए श्री अग्रवाल कहा करते थे – कि सामुदायिक सोच को बदलो संकल्प लो तो सही सुविधा देने के साथ सोच बदलने संकल्प लेना ही होगा.  
    इन सभी परिस्थियों पर न केवल भारत सरकार की नज़र है. बल्कि मध्यप्रदेश सरकार के बाल विकास संचालनालय की सूक्ष्म अनवेषी अधिकारी श्रीमति नीलम शम्मी राव ने सुपोषण स्नेह शिविरों  की छै माही कार्ययोजना तैयार की है. छै माह तक चलने इस कार्यक्रम की शुरुआत होती है स्नेह शिविर से. जो चार या उससे अधिक अति कम वज़न के बच्चों के लिये एक ऐसे स्थान पर लगाए जाते हैं हैं जहां परिस्थितियां शिविर लगाने अनुकूल हो.      
            बच्चों को  उनकी माताओं के साथ बुलवाया जाता है. प्रात: दस बजे से शाम पांच बजे तक बच्चों के तीन बार आहार दिया जाता है. दिन भर महिलाओं को मनोरंजक गतिविधियों के साथ साथ पोषण शिक्षा दी जाती है. बच्चों के बढ़ते हुए वज़न को देख कर और अधिक उत्साहित होती हैं महिलाएं.
प्रमुख सचिव महिला बाल विकास श्री बी आर नायडू  आशांवित ही नहीं बल्कि परिणामों से खुश हैं पर उनकी चिंता ये है कि – अगले छै माह तक सिलसिला जारी रहे तो  
स्नेह शिविर के अच्छे परिणाम देने वाले जिले डिंडोरी और कटनी में क्या हुआ

मध्य-प्रदेश का आखिरी जिला डिंडोरी छत्तीसगढ़ के एकदम नज़दीक है. आर्थिक गतिविधियों का अभाव यहां के लोगों को "आर्थिक-प्रवास" के लिये बाहर भेजता है घर के घर खाली हो जाते हैं. म.प्र., छत्तीसगढ़, मुम्बई, दिल्ली, यहां तक कि पंजाब हरियाणा तक के लिये इनके प्रवास होते हैं. गांव में रह जाते हैं नन्हे-मुन्ने अगर उनके घर में कोई सम्हालने वाला हुआ तो. सरकार यहीं से उनकी सेवा का ज़िम्मा उठाती है
       जाकर पोषण सन्देश देना बेहद ज़रूरी है. संदेश देने वालों की योग्यता को परखने . मानिटरिंग करने आए राकेश जी अतिप्रसन्न इस लिये हुए क्योंकि हमारी श्रीमति दीप्ति पाराशर "पोषण सहयोगिनी" के ज्ञान स्तर में कोई कमी न थी . सुपरवाईज़र कौतिका को सब कुछ मालूम था कि बिना सिखाए कुछ भी संभव नहीं है.
लाल सूट में बैठी जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी ने मुख्यालय से आए श्री आनंद स्वरूप शिवहरे को जो बताया उससे साफ़ हो गया कि चयन एवम प्रशिक्षण में योग्यता को महत्व दिया था.
मुख्यालय के दल ने किया
परीक्षण 
बारीक पड़ताल के बाद निरीक्षण एवम मूल्यांकन पर आने वाली टीम ने पाया कि वाक़ई 15 में से 03 बच्चे तीस दिन में ही कुपोषण से मुक्ति पा गए. 11 बच्चों को नियमित रूप से वज़न बढ़ा है. जबकि गम्भीर कुपोषण श्रेणी के मात्र 8 बच्चे शेष हैं  जो अगस्त-सितम्बर 2014 तक कुपोषण की ज़द से बाहर आ ही जाएंगें.  ऐसा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमति पुष्पा श्रीवास का मानना है.
इस क्रम में कटनी जिले की बहोरीबंद बाल विकास परियोजना के इंचार्ज सतीष पटेल ने बताया कि हमने 09 शिविरों में  102 बच्चों को जोड़ा जिनमें से 82% बच्चों का वज़न 200 ग्राम से 400 ग्राम तक बढ़ा  शेष बच्चों का वज़न बढ़ेगा और वे अगले छै माह में खतरे से बाहर वाली सीमा रेखा में अवश्य आएंगे.
अच्छे परिणाम से प्रेरित हुई चंद्रावती
बहोरीबंद  परियोजना के नैगवां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता चंद्रवती गौड़ ने स्वप्रेरणा से अपने केंद्र ग्राम को स्नेहशिविर लगा कर सुपोषित कर दिया है . वे चाहतीं हैं कि अब जो तीन बच्चे मध्यम कम वज़न की श्रेणी में हैं को सामान्य वज़न श्रेणी में ले आया जावे .

       चलिये देखें इधर का दृश्य   
अनौपचारिक शिक्षा : ग्राम संगवा में 

Post by Girish Mukul.)

6.6.14

“जबलपुर संभाग में सुपोषण लाने जिला स्तर पर बने एक्शन प्लान की पड़ताल “


जबलपुर में जून 2014 को आयोजित
बैठक मैराथन बैठक में जिलों नें रखीं कार्य योजनाएं प्रमुख सचिव महिला बाल विकास, श्री बी आर नायडू, आयुक्त जबलपुर संभाग श्री दीपक खांडेकर, कलेक्टर श्री विवेक पोरवाल (जबलपुर), श्रीमति छवि भारद्वाज़, (डिंडोरी) श्री लोकेश जाटव,(मंडला) बी. किरण गोपाल (बालाघाट), भरत यादव (नरसिंहपुर),  सहित सभी जिलों के कलेक्टर्स, मुख्य कार्यपालन अधिकारी छिंदवाड़ा  के अलावा राज्य स्तर से आये अधिकारी संयुक्त संचालक श्री महेंद्र द्विवेदी, उपसंचालक  श्री दीपक संकत, श्री विशाल मेढ़ा, सहायक संचालक श्री आनंद शिवहरे, श्री गोविंद सिंह रघुवंशी, श्री हरीश माथुर, श्री पियूष मेहता,  श्री बालमुकुंद शुक्ला, उपस्थित थे.

बाल विकास कार्यक्रम के मिशन मोड में आने के बाद  कुपोषण को समाप्त कर सुपोषण लाने की कार्ययोजना जिला स्तर पर बनायी जायेगी। इसके लिए समुदाय आधारित प्रयासोंपोषण आहार कार्यक्रम को प्रभावी और शाला पूर्व शिक्षा को असरदार बनाने के निर्देशप्रमुख सचिव महिला एवं बाल विकास श्री बी.आरनायडूसंभागायुक्त दीपक खांडेकर और आयुक्त आई.सी.डी.एस नीलम शम्मी राव द्वारा जबलपुर में आयोजित संभागीय समीक्षा बैठक में जिला कलेक्टर्स द्वारा प्रस्तुत कार्ययोजना की समीक्षा की गई. 
बैठक में संभाग के जिलों के कलेक्टर्समहिला एवं बाल विकासविभाग के जिला स्तरीय अधिकारी,परियोजना अधिकारीस्वास्थ्यविभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारीसंयुक्त संचालकस्वास्थ्य और भोपाल से आये अधिकारी मौजूद थे।
जिला कलेक्टर्स द्वारा अपने जिले की शिशु एवं पोषण विकासकार्ययोजना प्रस्तुत की गयी। मंडला जिले की सूचना प्रौद्योगिकीआधारितडिंडौरी जिले के समुदाय आधारित प्रस्तावोंछिंदवाड़ा  जिले केसमुदाय स्वास्थ्य अन्य विभिन्न क्षेत्रों के समन्वय पर आधारित तथाकटनी जिले की स्वास्थ्य आधारित कार्ययोजना को विशेष सराहना मिली। संभाग के अन्य जिलों की कार्ययोजनाओं को सराहा गया। सभीकार्ययोजनायें जिले की परिस्थिति और जरूरत को देखते हुए तैयार कीगयी थीं।
आयुक्त आईसीडीएस ने सुपोषण अभियान के अच्छे परिणामबताये। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं की सूची तैयार कर पोषणप्रदान करने की शुरूआत कर दी जानी चाहिए। जन्म के साथ ही सुपोषणके लिए सभी जरूरी प्रयासों को करना जरूरी है। इसके लिए स्वास्थ्यविभाग के साथ बेहतर समन्वय स्थापित कर कार्य करना होगा। जन्मलेने वाले हर बच्चे का पंजीयन एवं पोषण का रिकार्ड होना चाहिए।जबलपुर संभाग में संभागायुक्त दीपक खांडेकर द्वारा तीनों विभागों केसंयुक्त प्रयास से हुए सर्वे से कार्य योजना बनाने में मिली सहूलियत काउल्लेख किया गया। कुपोषित बच्चों के चिन्हांकननियमित वजन लेने,वजन लेने वाली मशीन की उपलब्धता की जरूरत रेखांकित की गयी।
बैठक में कहा गया कि शिशु के पोषण के साथ जरूरी है कि शालापूर्व शिक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए। बाल चौपाल में अभिभावकों केसाथ चर्चा एवं जागरूकता की जरूरत रेखांकित की गयी। आंगनवाड़ी केंद्रोंके भवन के लिए बजट आवंटन पर चर्चा हुई।
प्रमुख सचिव श्री नायडू ने बताया कि महिला एवं बाल विकासविभाग द्वारा मुख्यमंत्री सामुदायिक क्षमता विकास कार्यक्रम शुरू कियाजा रहा है। जिसका उद्देश्य समाजसेवी गुण वाले व्यक्तियों में क्षमताविकास कर उन्हें अवसर प्रदान करना है। इस कार्यक्रम से उनके द्वारा किएगए कार्य को पहचान मिलेगी तथा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। बताया गयाकि यह तीन वर्ष का प्रशिक्षण कार्यक्रम होगा। जिसमें प्रशिक्षणार्थियों कोविश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र प्रदान किया जायेगा। हर जिलेके लिए निर्धारित सीट में 18 से 45 वर्ष अवस्था तक की 75 प्रतिशतमहिलायें तथा 25 प्रतिशत पुरूष आवेदन कर सकेंगे। चयन कलेक्टर द्वाराचयन प्रक्रिया अपना कर किया जाएगा। यह कार्य जून-जुलाई माह मेंसंपन्न होगा। योजना का पूरा विवरण स्वास्थ्य एवं महिला एवं बालविकास विभाग के सूचना पटल पर चस्पा किया जाएगा।
   प्रमुख सचिव श्री नायडू ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने भीख मांगनेवाले बच्चों के लिए चिंता व्यक्त की है इस हेतु खुले आश्रय-गृह की स्थापना पर बल देते हुए नायडू ने कहा कि भारत सरकार ने प्रत्येक स्ट्रीट  बच्चे पर एक लाख रुपए व्यय करेगी . जिला कलेक्टर्स यथा शीघ्र एन.जी.ओ अथवा रेडक्रास सोसायटी से प्रस्ताव भेजें ताक़ि भारत सरकार को स्वीकृति के लिये प्रस्ताव भेजे जा सकें.   
                 बदलेगा लाड़ली लक्ष्मी का स्वरूप
प्रमुख सचिव महोदय ने कहा कि –“लाड़ली लक्ष्मी योजना के  स्वरूप को बरकरार रखते हुए सरकार अब कुछ ऐसे परिवर्तन करने जा रही है जिससे अट्ठारह साल बाद लाड़ली को मैट्रिक पास होने के बाद परिपक्कवता निधि प्राप्त हो सकेगी, योजना में लम्बित आनलाइन फ़ीडिंग का कार्य समय रहते पूर्ण कर लिया जावे ताकि सरलीकरण के साथ योजना के लाभ से कोई भी बालिका लाभ से वंचित न रह सके.  ”
डिंडोरी मंडला, छिंदवाड़ा, कटनी की कार्ययोजनाएं चर्चित रहीं . 

26.5.14

“मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी.. ईश्वर की शपथ.... !"

      मित्रो, देश एक अनोखे नुक्कड़ पर आ कर हतप्रभ था चकित कर देने वाले किसी परिणाम के लिये सवाल बार बार देख रहा था. सवाल थे :-
“अब क्या.होगा..!”  
“सब कैसे.होगा..!”  
“ये सब कौन करेगा भई..!”

मित्रो सवाल हल हो चुके हैं उत्सव भी मना लिया. अब आपके पास आईकान है.. न .. न भाई.. अब आईकान्स हैं. अपने कई आलेखों में आईकान के अभाव की.. चिंता मैने व्यक्त भी की थी अपने आलेखों में. 
           आपको याद होगा कि अन्ना के आंदोलन के दौर में  “अन्ना” एक आईकान के रूप में नज़र आए . पर मुझे ऐसा कुछ खास न लगा  न ही मुझ सा अदना लेखक उनको आइकान मान रहा था. इसके कई कारण थे जिसमें सबसे अव्वल था एक  क्योंकि उनके अभियान  से एक सज्जन को जब करीब से जाना और जानने  के तुरंत बाद मुझे एहसास हो गया था कि अन्ना के इर्दगिर्द जुड़ाव शायद आकस्मिक और हड़बड़ाहट  का जुड़ाव था. अथवा अन्ना जी का लक्ष्य केवल मुद्दे को हवा देना मात्र रहा हो जो भी हो वे आईकान बनने में असफ़ल  रहे.. कारण जो भी हो आईकान की ज़रूरत यानी एक पोत के लिये दिशासूचक की ज़रूरत थी . अचानक मोदी को सामने गया.. थोड़ी अचकचाहट के साथ भारतीय जनता जनार्दन में अंतर करंट प्रवाहित हो गया. ढाबे वाला ड्रायवर जो पंजाब और यूपी से लौट रहा था उसने एहसास दिला दिया कि क्या होने जा रहा है वैसा ही हुआ. ये अलग बात थी कि मैं और खाना खा रहे लोगों ने बेहद सामान्य ढंग से लिया. जो भी हुआ गोया तय कर लिया था कि क्या करना है. आपको याद होगा कि किसी राजा ने राज्य के लोगों से टंकी को  भरने दूध मंगाया पर सब ने पानी लाए ये सोच कि मेरे एक लोटे पानी लाने से क्या होगा सब तो दूध ही लाएंगें.. और सबके सबों ने पानी से  भर दी टंकी... इस बार सबने दूध से लबालब कर दिया टंकी को .. दूध लाने वालो आपसे एक अपेक्षा है कि - सिर्फ़ दूध इस लिये लाएं हैं कि कल उनके लिये दूध से बनी मिठाईयां.. मिलने लगेंगी. 
                                 प्रिय देशवासियो, अब केवल एक वोट का मामला नहीं देश को हर मोर्चे पर अव्वल लाने के लिये आत्म आचरणों में बदलाव लाना ही होगा .. अब नल की टोंटी न चुराना, मुफ़्त में सरकारी इमदाद को न लूटना, सरकारी कर्मचारी के रूप में सतत काम करना . बिना बारी और पात्रता के येनकेन प्रकारेण लाभ लेने की लालच छोड़ना होगा. अब सिगमेंट में जीना छोड़ना होगा. देश वासियो....धर्म आधारित व्यवस्था की अपेक्षा न करेंगें.. जाति के समूह के.. समुदाय के भाषा के  नफ़े नुकसान का मीजान न लगाना वरना आप को फ़िर उन्ही दिनों की ओर लौटना होगा.. जिनसे आप उकता रहे थे. इस आलेख का आशय पूर्णतया आप समझ ही रहे होगे... शायद नहीं तो साफ़ साफ़ समझ लीजिये ... अब व्यक्तिगत लाभ के भाव को त्याग कर सार्वभौमिक विकास के भाव को आत्मसात करना होगा. 

    

25.5.14

नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम को अग्रिम शुभकामनाऎं.


                      प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का व्यक्तित्व मानो उदघोषित कर रहा है  कि  शून्य का विस्फ़ोट हूं..!!  एक शानदार व्यक्तित्व जब भारत में सत्तानशीं होगा ही तो फ़िर यह तय है कि अपेक्षाएं और आकांक्षाएं उनको सोने न देंगीं. यानी कुल मिलाकर एक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले सबसे पीछे वाले को देखना और उसके बारे में कुछ कर देने के गुंताड़े में मशरूफ़ रहना ... बेशक सबसे जोखिम भरा काम होगा. बहुतेरे तिलिस्म और  ऎन्द्रजालिक परिस्थितियां निर्मित  होंगी. जो सत्ता को अपने इशारों पर चलने के लिये बाध्य करेंगी. परंतु भाव से भरा व्यक्तित्व अप्रभावित रहेगा इन सबसे ऐसा मेरा मानना है. 
                              शपथ-ग्रहण समारोह में आमंत्रण को लेकर मचे कोहराम के सियासी नज़रिये से हटकर देखा जावे तो साफ़ हो जाता है कि - दक्षेस राष्ट्रों में अपनी प्रभावी आमद को पहले ही झटके में दर्ज़ कराना सबसे बड़ी कूटनीति है. विश्व को भारत की मज़बूत स्थिति का संदेश देना भी तो बेहद आवश्यक था जो कर दिखाया नमो ने. सोचिये नवाज़ साहब को पड़ोसी के महत्व का अर्थ समझाना भी तो आवश्यक था यानी पहला पांसा ही सटीक अंक लेकर आया . 
                               इस बार भारतीय प्रज़ातांत्रिक रुढ़ियों एवम कुरीतियों पर जनता ने जिस तरह वोट से  हमला कर पुरानी गलीच मान्यताओं को  नेत्सनाबूत किया है उसे देख कर भारतीय आवाम का विकास की सकरात्मक दृष्टि के सुस्पष्ट संकेत मिले हैं साथ ही  प्रजातांत्रिक मान्यताएं  बेहद मज़बूत हुईं हैं . अब वक़्त है सिर्फ़ और सिर्फ़ राष्ट्र के बारे में सोचना जो भी करना राष्ट्र हित में करना. 
                              अब व्यक्ति और परिवार गौड़ हैं. समुदाय सर्वोपरि. चुनने वालों  की अपेक्षा है  नरेंद्र मोदी सरकार से आंतरिक स्वच्छता और बाह्य-छवि   का विशेष ध्यान रखा जावे. यद्यपि सत्ता मद का कारक होती है पर आत्मोत्कर्ष से सत्ता से अंकुरित मद को ऊगने से पूर्व ही मिटाया जा सकता है. मोदी जी से ये अपेक्षाएं तो हैं हीं. 
                भारतीय औद्योगिक घरानों को बढ़ावा देकर रोटी कपड़ा मकान  के लिये रोज़गार बढ़ाने के मौके देना सर्वोच्च प्राथमिकता हो . शिक्षा और चिकित्सा राज्य के अधीन एवम सस्ती हों. विकास का आधार भूखे को भीख देना किसी भी अर्थशास्त्रीय सिद्धांत का अध्याय नहीं है.. सरकार इस तरह की कोई योजना न लाए जिनसे भिखमंगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो बल्कि उन कार्यक्रमों को लाना ज़रूरी है जिनकी वज़ह से रोज़गार पैदा हों .. लेकिन एक बात सत्य है कि  भारत में दो पवित्र कार्य व्यावसायिक दुष्चक्र में फ़ंस चुके हैं.. एक शिक्षा दूजी चिकित्सा... सरकार को इस पर लगाम कसनी ही होगी... 
               भारतीय आंतरिक शांति के लिये नक्सलवाद का समूल खात्मा, एक अहम चुनौती है. पूर्वोत्तर राज्यों में पनपते अलगाववादी प्रयास, के अलावा वे सारे बिंदु जो  आंतरिक शांति को क्षति पहुंचा रहे हैं को निशाने पर लेना ही होगा. भारतीय संविधान में दी गई कुछ रियायतों की समीक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिंदू है. 
                  
श्री नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम  को अग्रिम शुभकामनाऎं.   

18.5.14

“मोदी विजय : पाकिस्तानी मीडिया की टिप्पणियां”

भारतीय सियासी तस्वीर बदलते ही पड़ौसी देशों में हलचल स्वभाविक थी. हुई भी... बीबीसी की मानें तो पाकिस्तानी अखबारों ने उछलकूद मचानी शुरू कर दी है. मोदी को कट्टरपंथी बताते हुए कट्टरपंथी राष्ट्र पाकिस्तान का मीडिया आधी रोटी में दाल लेकर कूदता फ़ांदता नज़र आ रहा है. मोदी विजय पर पाकिस्तानी मीडिया बेचैन ही है.. अखबारों को चिंता है कि –“ कहीं मोदी सरकार 370,राम मंदिर निर्माण, कामन सिविल कोड पर क़दम न उठाए ”
 अखबार अपने आलेखों में सूचित करते नज़र आते हैं कि “मोदी ने  विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा है..!” यानी सिर्फ़ विकास की बात करें ... तो ठीक ही है.. !
            पाकिस्तान जो भारत जैसे वास्तविक प्रजातंत्र से कोसों दूर की चिंता बेमानी और अर्थहीन प्रतीत होती है. उम्मत अखबार ने तो सीमा पार करते हुए मोदी को कसाई का दर्ज़ा दे रहा है. इसे पाक़िस्तानी प्रिंट मीडिया की कुंठा-ग्रस्तता एवम हीनभावना से ग्रस्तता के पक़्क़े सबूत मिल रहे हैं.
            नवाए-वक़्त को कश्मीर मुद्दे पर चचा चीन की याद आ रही है. भारत इस मुद्दे पर न तो कभी सहमत था न ही होगा.
       पाक़िस्तानी मीडिया को भारत में मुस्लिमों की सही दशा का अंदाज़ा नहीं है. तभी तो आधी अधूरी सूचनाओं पर आलेख रच देते हैं. भारत के मुसलमान पाकिस्तान की तुलना में अधिक खुश एवम खुशहाल हैं. किसी भी देश को भारतीय जनता के निर्णय पर अंगुली उठाने का न तो हक़ है न ही उनके मीडिया को . ज़रूरत तो अब इस बात की है कि भारत में विकास को देखें उसका अनुसरण करें.. और अपने अपनी आवाम को खुश रखें.
सहअस्तित्व की अवधारणा पडौसी का सर्वश्रेष्ठ धर्म है ...!!पाकिस्तान को ये मानना ही होगा. 

17.5.14

मोदी विजय पर एक ग़ैर सियासी टिप्पणी “सम्मोहक चाय वाला...!”

 गुजरात के बड़नगर रेल्वे-स्टेशन पर  एक चाय बेचने वाले का बेटा .जो खुद चाय बेचता.. शीर्ष पर जा बैठा भारतीय सांस्कृतिक आध्यात्मिक और धार्मिक आख्यानों में चरवाहे कृष्ण वनचारी राम.. को शीर्ष तक देखने वालों के लिये कोई आश्चर्य कदाचित नहीं . विश्व चकित है.. विरोधी भ्रमित हैं .. क्या हुआ कि कोई अकिंचन शीर्ष पर जा बैठा .. ! भ्रम था उनको जो मानते हैं.. सत्ता धनबल, बाहुबल और छल से पाई जाती है... ! क्या हुआ कि अचानक दृश्य बदल गए .. लोगों को क्या हुआ सम्मोहित क्यों हैं.. इस व्यक्ति का सम्मोहक-व्यक्तित्व सबको कैसे जंचा.. सब कुछ  ज़ादू सरीखा घट रहा था.. मुझे उस दिन आभास हो गया कि कुछ हट के होने जा रहा है.. जब उसने एक टुकड़ा लोहे का मांग लौह पुरुष की प्रतिमा के वास्ते चाही थी. संकेत स्पष्ट था ... एक क्रांति का सूत्रपात का जो एक आमूलचूल परिवर्तन की पहल भी रही है.
                    कितना महान क्यों न हो प्रेरक किंतु जब तक प्रेरित में ओज न हो तो परिणाम शून्य ही होना तय है. इस अभियान में मोदी जी के पीछे कौन था .... ये सवाल तो मोदी जी या उनके पीछे का फ़ोर्स ही बता सकता है किंतु मोदी में निहित अंतस के फ़ोर्स पर हम विचार कर सकते हैं कि मोदी में एक ज़िद थी खुद को साबित करने की. नरेंद्र मोदी जी ने बहुत आरोह अवरोह  देखे हैं.. चाय की केतली कप-प्लेट और चाय ले लो चाय की गुहारना उनके जीवन का पहला एवम महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम था. दो वर्ष का हिमालय प्रवास आध्यात्मिक उन्नयन के लिये था जो उनका दूसरा महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम कहा जा सकता है.  
तभी तो उनकी , उनके  अन्य प्रतिस्पर्धियों किसी तरह की तुलना गैरवाज़िव हो चुकी है. राहुल जी को निर्माण के उस कसाव से न गुज़रने की वज़ह से उनमें पूरे इलेक्शन कैंपेनिंग में सम्मोहित करने वाला भाव चेहरे पर नज़र न आया. न ही केज़रीवाल न कोई और भी ... आप वीडियो क्लिपिंग्स देखें तो नमो की संवादी शैली आपको मोहित करती लगेगी ऐसा असर तत्कालीन प्रधानमंत्री त्रय  श्रीयुत अटलबिहारी बाजपेई, चंद्रशेखर जी एवम  स्व.इंदिरा जी छोड़ा करते थे . मुझे अच्छी तरह याद है अटलजी, इंदिरा जी और श्री चंद्रशेखर जी जिनको सुनने जनमेदनी स्वेच्छा से उमड़ आती थी. डेमोक्रेटिक संदर्भ में देखा जावे तो – अच्छा, वक़्ता के वक्तव्य में केवल शब्द जाल का बुनकर हो ऐसा नहीं है. आवाम अपने लीडर में परिपक्क्वता देखना चाहती है . उसके संवादों में खुद का स्थान परखती है. उसका सामर्थ्य अनुमानती है तब चुनती है. मेरे इर्द-गिर्द कई लोग आते हैं जो चुगली करता है निंदा करता है उससे मेरा रिश्ता न जाने क्यों टूट जाता है जो कर्मशील होता है उसे पढ़ लेता हूं उसपर विश्वास करता हूं.. मुझ सरीखे करोड़ों होंगे जो कर्मशीलता को परखते होंगें .
कर्मशीलता का संबंध आत्मिक उत्कंठा से है जो भाव एवम बुद्धि की धौंकनी में तप कर जब शब्द बनती है और ध्वनि पर सवार होकर विस्तारित होती है तो एक सम्मोहन पैदा होता है. आरोप,चुगलियां, हथकण्डे, अनावश्यक (कु) तर्कों से सम्मोहन पैदा ही नहीं होता. प्रज़ातांत्रिक संदर्भों में सम्मोहन पैदा करने वाला केवल कर्मठ ही हो सकता है.  अन्य किसी में सामर्थ्य संभव ही नहीं. वक्ता के रूप में मैने भी सैकड़ों बार देखा है श्रोताओं को सम्मोहित करना आसान नहीं . इसके लिये वक्तव्य के कंटेंट में फ़ूहड़ता और मिथ्या अस्वीकार्य कर दी जाती है. मुझे याद नहीं कि इंदिरा जी, बाजपेई जी, चंद्रशेखर जी, के भाषणों में लांछनकारी शब्द रहे थे. उनके संवाद शांत और अनुशासित हुआ करते थे. अटल जी बोलते तो एक एक शब्द अगले शब्द के प्रति जिग्यासु बना देता था. और फ़िर शब्दावली जब पूरा कथन बनती कथन जब पूरा भाषण बनते तो पांव पांव घर लौटते पूरा भाषण मानस पर अंकित हो जाता था. ऐसा लगता था कि किसी राजनीतिग्य को नहीं किसी विचारक को सुन कर लौट रहा हूं. अस्तु कर्म अनुशीलन और चिंतन से ओतप्रोत अभिव्यक्ति का सम्मोहन नमो ने बिखेरा और इसी फ़ोर्स ने एक विजय हासिल की है... आप मेरी राय से असहमत भी हो सकते हैं .. पर मेरी तो यही राय है.

बता दो.. शून्य का विस्फ़ोट हूं..!!

दूरूह पथचारी 
तुम्हारे पांवों के छालों की कीमत
अजेय दुर्ग को भेदने की हिम्मत 
को नमन... !!
निशीथ-किरणों से भोर तक 
उजाला देखने की उत्कंठा ….!
सटीक निशाने के लिये तनी प्रत्यंचा ...!!
महासमर में नीचपथो से ऊंची आसंदी
तक की जात्रा में लाखों लाख

विश्वासी जयघोष आकाश में 
हलचल को जन्म देती
यह हरकत जड़-चेतन सभी ने देखी है
तुम्हारी विजय विधाता की लेखी है.. 
उठो.. हुंकारो... पर संवारो भी 
एक निर्वात को सच्ची सेवा से भरो
जनतंत्र और जन कराह को आह को 
वाह में बदलो...
**********
सुनो,
कूड़ेदान से भोजन निकालते बचपन 
रूखे बालों वाले अकिंचन. 
रेत मिट्टी मे सना मजूरा 
नर्मदा तट पर बजाता सूर बजाता तमूरा
सब के सब
तुम्हारी ओर टकटकी बांधे
अपलक निहार रहे हैं....
धोखा तो न दोगे 
यही विचार रहे है...!
कुछ मौन है
पर अंतस से पुकार रहे हैं..
सुना तुमने...
वो मोमिन है.. 
वो खिस्त है.. 
वो हिंदू है...
उसे एहसास दिला दो पहली बार कि 
वो भारतीय है... 
नको हिस्सों हिस्सों मे प्यार मत देना
प्यार की पोटली एक साथ सामने सबके रख देना 
शायद मां ने तुम्हारे सर पर हाथ फ़ेर
यही कहा था .. है न.. 
चलो... अब सैकड़ों संकटों के चक्रव्यूह को भेदो..
तुम्हारी मां ने यही तो कहा था है न..!!
मां सोई न थी जब तुम गर्भस्त थे..
तुमने सुना था न.. व्यूह-भेदन तरीका
तभी तो कुछ द्वारों को पल में नेस्तनाबूत कर दिया तुमने
विश्व हतप्रभ है...
कौन हो तुम ?
जानना चाहता है.. 
बता दो.. शून्य का विस्फ़ोट हूं
जो बदल देगा... अतीत का दर्दीला मंज़र...
तुम जो विश्वास हो
बता दो विश्व को ...
कौन हो तुम.... !!
कह दो कि -पुनर्जन्म हूं.. शेर के दांत गिनने वाले का....
***********
चलना ही होगा तुमको 
कभी तेज़ कभी मंथर
सहना भी होगा तुमको 
कभी बाहर कभी अंदर
पर 
याद रखो
जो जीता वही तो है सिकंदर 
·        गिरीश बिल्लोरे मुकुल


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