केवल सुव्यवस्था न संदेश भी तो है |
बच्चों की भाषा बोलना और समझना ज़रूरी है |
मध्य-प्रदेश में कुपोषण से निज़ात पाने एक ऐसी अनोखी कार्ययोजना सामने आई है जिसने एक रास्ता दिखा दिया कि कुपोषण निवारण के लिये परिवारों को पोषण के महत्व, उसके तरीक़ों कि किस तरह से कुपोषण का शमन किया जा सकता है. बाल विकास सेवाओं के मिशन मोड में आने के बाद मध्य-प्रदेश की सरकार ने जिस तरह से मार्च महीने की पहली से बारहवीं तारीख तक स्नेह-शिविरों का आयोजन किया उससे चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. विभागीय दावों के अनुरूप 01 मार्च 2012 से 12 मार्च 2012 तक अत्यधिक कम वज़न वाले बच्चों के वज़न में 200 ग्राम का न्यूनतम इज़ाफ़ा होना था किंतु 40% बच्चों का इस अवधि में वज़न उससे कहीं अधिक यानी 400 ग्राम तक का वज़न बढ़ा जो एक चौंकने वाला परिणाम है. . व्यवस्था के खिलाफ़ आदतन वाकविलास करते रहने वाले लोग अथवा नैगेटिव सोच वालों के लिये यह कहानी आवश्यक है ....
मध्य-प्रदेश का आखिरी जिला डिंडोरी छत्तीसगढ़ के एकदम नज़दीक है. आर्थिक गतिविधियों का अभाव यहां के लोगों को "आर्थिक-प्रवास" के लिये बाहर भेजता है घर के घर खाली हो जाते हैं. म.प्र., छत्तीसगढ़, मुम्बई, दिल्ली, यहां तक कि पंजाब हरियाणा तक के लिये इनके प्रवास होते हैं. गांव में रह जाते हैं नन्हे-मुन्ने अगर उनके घर में कोई सम्हालने वाला हुआ तो. सरकार यहीं से उनकी सेवा का ज़िम्मा उठाती है
हां, इसी घर में कम वज़न वाला बच्चा रहता है. |
कुपोषण के संदर्भ में आठ बरस पूर्व की घटना का स्मरण करना चाहूंगा कि पूर्व मेरे एक पत्रकार जी ने मुझ पर सवालों की बौछार कर दी उनने अपने बेहतर किताबी एवम खबरिया मालूमात के आधार पर मुझे कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की . मेरे पास उनके सवालों का ज़वाब न था. मध्यप्रदेश के जबलपुर में तैनाती थी मेरी लगभग 28 वार्डों की मलिन बस्तियों में चल रहे मात्र 215 आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिये कुपोषण से जूझना हर केंद्र को एक हज़ार के आसपास की आबादी देखनी होती थी . रिक्शे वालों, मज़दूरों के घरों में ही नहीं निम्न एवं सीमांत मध्य-वर्ग के परिवारों में बाल-पोषण आदतों के प्रति उदासीनता तब ज़ोरों पर थी. साफ़ पानी, खानपान से ज़्यादा धन का अनावश्यक कार्यों में प्रयोग करना शहरी एवम ग्रामीण बस्तियों में समान रूप से मौज़ूद था भी और है भी . पत्रकार भाई को खुला न्यौता दिया कि आप- मेरा पार्ट देखने किसी भी बस्ती में चलें चुनौती भी है कि मेरा पार्ट उतना बुरा न होगा जितना कि आप समझ रहें हैं.. शीतलामाई क्षेत्र को मित्र ने स्वयं चुना . नियत तिथि और समय पर हम मौज़ूद थे हमने साथ साथ घर घर का दौरा किया . सवाल पूछे गए अगली सुबह के अखबार में एक बड़ी स्पेशल रिपोर्ट “ उनकी प्राथमिकता शराब है बच्चे नहीं...!” शीर्षक से छपी . निष्कर्ष था अपनी आमदनी एक रुपए का 15% हिस्सा भी बच्चों पर खर्च नहीं करते लोग. लोगों की स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा को दोयम मानतें हैं. प्रसव के दौरान आयरन गोलियां न लेना, उत्सव प्रवास शराब पर अधिक धन व्यय करना कुपोषण का कारण साबित हुआ . साबित ये भी हुआ कि खान पान की आदतों में भ्रांतियां एवम खानपान के तरीकों में अनियमितता अटी पड़ीं हैं. बच्चे बार बार बीमार होते हैं.. पर पानी अनुपचारित ही पिलाया जाता है.
छै बरस पहले मीडिया ने कुपोषण जनित बाल एवम शिशु मृत्यु पर आधारित समाचारों को प्रकाशित किया उच्च न्यायालय जबलपुर पीठ ने भी इस संबंध में सरकार से जवाब तलब किया फलत: स्वास्थ्य एवम बाल विकास सेवा विभाग ने अपनी पड़ताल तेज़ की .
स्थल भ्रमणों से स्पष्ट हुआ कि लोग बच्चों एवम उनकी माताओं के पोषण एवम स्वास्थ्य को लेकर अत्यधिक उदासीन थे .
इस तथ्य की पुष्टि के लिये विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त संचालक श्री हरीश अग्रवाल के खालवा विज़िट के घटना क्रम का उल्लेख आवश्यक हो गया है जिनका उल्लेख करते हुए वे हम सबको बैठकों कहा करते थे कि “अतिरिक्त आहार खिलाना खालवा के लोगों ने तब उनको बताया था कि – “हमारे बच्चे फ़िर पैदा हो सकते हैं किंतु अगर हमने बैल खो दिये तो हमारा पालन हार कौन होगा. हम दूसरा बैल कैसे खरीदेंगे हम ग़रीब हैं.. हम आपके किसी भी केंद्र में न बच्चे को भेज सकते न ही हमारे परिवार से कोई जा सकता”
असामयिक मौत की कगार पर बैठे बच्चे के पिता ने कहा – कि हम आपको समय दे ही नहीं सकते हमारी प्राथमिकता आय अर्जित करना है .
सरपंच का कथन तो और भी विष्मयकारी लगा उनको – “आप चालीस बच्चों की बात कर रहें हैं पिछले साल तो अस्सी बच्चे मरे थे. ”.. इन उद्दहरणों का हवाला देते हुए श्री अग्रवाल कहा करते थे – कि सामुदायिक सोच को बदलो संकल्प लो तो सही सुविधा देने के साथ सोच बदलने संकल्प लेना ही होगा.
इन सभी परिस्थियों पर न केवल भारत सरकार की नज़र है. बल्कि मध्यप्रदेश सरकार के बाल विकास संचालनालय की सूक्ष्म अनवेषी अधिकारी श्रीमति नीलम शम्मी राव ने सुपोषण स्नेह शिविरों की छै माही कार्ययोजना तैयार की है. छै माह तक चलने इस कार्यक्रम की शुरुआत होती है स्नेह शिविर से. जो चार या उससे अधिक अति कम वज़न के बच्चों के लिये एक ऐसे स्थान पर लगाए जाते हैं हैं जहां परिस्थितियां शिविर लगाने अनुकूल हो.
बच्चों को उनकी माताओं के साथ बुलवाया जाता है. प्रात: दस बजे से शाम पांच बजे तक बच्चों के तीन बार आहार दिया जाता है. दिन भर महिलाओं को मनोरंजक गतिविधियों के साथ साथ पोषण शिक्षा दी जाती है. बच्चों के बढ़ते हुए वज़न को देख कर और अधिक उत्साहित होती हैं महिलाएं.
प्रमुख सचिव महिला बाल विकास श्री बी आर नायडू आशांवित ही नहीं बल्कि परिणामों से खुश हैं पर उनकी चिंता ये है कि – अगले छै माह तक सिलसिला जारी रहे तो
स्नेह शिविर के अच्छे परिणाम देने वाले जिले डिंडोरी और कटनी में क्या हुआ
जाकर पोषण सन्देश देना बेहद ज़रूरी है. संदेश देने वालों की योग्यता को परखने . मानिटरिंग करने आए राकेश जी अतिप्रसन्न इस लिये हुए क्योंकि हमारी श्रीमति दीप्ति पाराशर "पोषण सहयोगिनी" के ज्ञान स्तर में कोई कमी न थी . सुपरवाईज़र कौतिका को सब कुछ मालूम था कि बिना सिखाए कुछ भी संभव नहीं है.
लाल सूट में बैठी जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी ने मुख्यालय से आए श्री आनंद स्वरूप शिवहरे को जो बताया उससे साफ़ हो गया कि चयन एवम प्रशिक्षण में योग्यता को महत्व दिया था.
मुख्यालय के दल ने किया परीक्षण |
बारीक पड़ताल के बाद निरीक्षण एवम मूल्यांकन पर आने वाली टीम ने पाया कि वाक़ई 15 में से 03 बच्चे तीस दिन में ही कुपोषण से मुक्ति पा गए. 11 बच्चों को नियमित रूप से वज़न बढ़ा है. जबकि गम्भीर कुपोषण श्रेणी के मात्र 8 बच्चे शेष हैं जो अगस्त-सितम्बर 2014 तक कुपोषण की ज़द से बाहर आ ही जाएंगें. ऐसा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमति पुष्पा श्रीवास का मानना है.
इस क्रम में कटनी जिले की बहोरीबंद बाल विकास परियोजना के इंचार्ज सतीष पटेल ने बताया कि हमने 09 शिविरों में 102 बच्चों को जोड़ा जिनमें से 82% बच्चों का वज़न 200 ग्राम से 400 ग्राम तक बढ़ा शेष बच्चों का वज़न बढ़ेगा और वे अगले छै माह में खतरे से बाहर वाली सीमा रेखा में अवश्य आएंगे.
अच्छे परिणाम से प्रेरित हुई चंद्रावती
बहोरीबंद परियोजना के नैगवां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता चंद्रवती गौड़ ने स्वप्रेरणा से अपने केंद्र ग्राम को स्नेहशिविर लगा कर सुपोषित कर दिया है . वे चाहतीं हैं कि अब जो तीन बच्चे मध्यम कम वज़न की श्रेणी में हैं को सामान्य वज़न श्रेणी में ले आया जावे .
चलिये देखें इधर का दृश्य
अनौपचारिक शिक्षा : ग्राम संगवा में