भारतीय सियासी तस्वीर बदलते ही पड़ौसी देशों में हलचल
स्वभाविक थी. हुई भी... बीबीसी की मानें तो पाकिस्तानी
अखबारों ने उछलकूद मचानी शुरू कर दी है. मोदी को कट्टरपंथी बताते हुए कट्टरपंथी
राष्ट्र पाकिस्तान का मीडिया आधी रोटी में दाल लेकर कूदता फ़ांदता नज़र आ रहा है. मोदी
विजय पर पाकिस्तानी मीडिया बेचैन ही है.. अखबारों को चिंता है कि –“ कहीं मोदी
सरकार 370,राम मंदिर निर्माण, कामन सिविल कोड पर
क़दम न उठाए ”
अखबार अपने आलेखों
में सूचित करते नज़र आते हैं कि “मोदी ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा है..!” यानी सिर्फ़
विकास की बात करें ... तो ठीक ही है.. !
पाकिस्तान जो भारत जैसे वास्तविक
प्रजातंत्र से कोसों दूर की चिंता बेमानी और अर्थहीन प्रतीत होती है. उम्मत अखबार
ने तो सीमा पार करते हुए मोदी को कसाई का
दर्ज़ा दे रहा है. इसे पाक़िस्तानी प्रिंट मीडिया की कुंठा-ग्रस्तता एवम हीनभावना से
ग्रस्तता के पक़्क़े सबूत मिल रहे हैं.
नवाए-वक़्त
को कश्मीर मुद्दे पर चचा चीन की याद आ रही है. भारत इस मुद्दे पर न तो कभी सहमत था
न ही होगा.
पाक़िस्तानी मीडिया को भारत में मुस्लिमों
की सही दशा का अंदाज़ा नहीं है. तभी तो आधी अधूरी सूचनाओं पर आलेख रच देते हैं. भारत
के मुसलमान पाकिस्तान की तुलना में अधिक खुश एवम खुशहाल हैं. किसी भी देश को
भारतीय जनता के निर्णय पर अंगुली उठाने का न तो हक़ है न ही उनके मीडिया को . ज़रूरत
तो अब इस बात की है कि भारत में विकास को देखें उसका अनुसरण करें.. और अपने अपनी
आवाम को खुश रखें.
इस सबसे पहले पाक़िस्तान का मीडिया ये देखे कि किस तरह उनका देश किसका कितना आदर करता है. वहां आराधना स्थलों को कितना सुरक्षित रखा जाता है. पाकिस्तान से पलायन चाहने वाले अल्प-संख्यक परिवारों की कम नहीं है
सहअस्तित्व की अवधारणा पडौसी का सर्वश्रेष्ठ धर्म है ...!!पाकिस्तान को ये मानना ही होगा.