21.6.13

बाढ़ भी एक उत्पाद है...?

सुश्री शैफ़ाली पाण्डे
                 केदारनाथ आपदा पर  न्यू मीडिया के ब्लागिंग वाले भाग के महारथी  श्री अनूप शुक्ला ने अपने ब्लाग फ़ुरसतिया”  पर जो लिखा उसे चैनल के  चैनल गुरु अपने चेलों को बाढ़ की रिपोर्टिंग के तरीके सिखा रहे हैं. वे बता रहे हैं:-"किसी भी अन्य न्यूज की तरह चैनलों के लिये बाढ़ भी एक सूचना है. एक घटना है. एक उत्पाद है. अगर कहीं बाढ़ आती है तो अपन को यह देखना है कि कितने प्रभावी तरीके से इसको कवर करते हैं."-
     अनूप शुक्ला जी आप जानते हैं न –“ खबरिया चैनल्स की अपनी मज़बूरी है. जनता जल्दी खबर चाहती है.  खबर जो सूचना है जो बिकती है.. पोतड़ों.. साबुन... पर्फ़्यूम के मादक विग्यापनों के साथ सब चाहते हैं.. देखना किसी का मरना, किसी का तड़पना,किसी का किसी को गरियाना तो  किसी का गिरना, ऐसा मानते हैं खबरिया चैनल.
                                      एग्रेसिव मीडिया वृत्ति का ये एक उदाहरण है. कुछ हद तक सचाई भी है.. खबरिया चैनल्स इस बारे में एक मत हैं.. कि लोगों को जितना नैगेटिव दिखाओ उतना ही तरक्क़ी होगी..?
                                    मेरे परिचित मित्र कहते हैं- “रात पौने नौ की न्यूज़ का दौर चुक गया है.अब तो दिन भर नैगेटिविटी को विस्तार देतीं खबरें..बताईये इन पर समय क्यों खराब करूं..?”
                                 अभी एक मित्र ने ये कहा है आने वाले दिनों में ऐसा कहने वालों के प्रतिशत में इज़ाफ़ा होना तय है. भाई इन्दीवर का मानना है कि - सच दिखाने की हड़बड़ी में ढेरों झूठ और ग़लतियां.. गलतियां इस लिये भी होतीं हैं -क्योंकि, इनको सबसे तेज़ और सबसे अच्छा साबित करने का ज़ुनून होता है. 
                                                  विश्व में जो भी कुछ होता है उसका ठीकरा सदैव सरकार अथवा ऐसी किसी भी संस्था के सर पर फ़ोड़ना कौन सा न्याय है.अपने देश के लोगों पर बादलों को फ़टवाना किस देश की सरकार को आता है. आप ही बताएं . एक न्यूज़ चैनल अपने संवाददाता की तारीफ़ कर रहा था कि वो 20 .6.13 को सफ़लता पूर्वक उस क्षेत्र तक पहुंचा जहां से तस्वीरें लाइव की जा सकी और दूसरी ओर  रेस्क्यू दल से अपेक्षा की जा रही थी कि सारा काम चटपट निपटाया जावे.वही संवाददाता महोदय पीढित  से यह  पूछ रहे थे-’कोई, सरकारी अधिकारी ने आपसे सम्पर्क किया अबतक....गोया, संवाददाता महोदय,की नज़र में  अधिकारी भगवान है  उफ़्फ़ ये बौनी सोच के साथ अपने चैनल को जनता के बीच पापुलर बनाए रखने के लिये पनाए जाने वाले हथकण्डों को ध्यान से देखिये.. आपको इसका व्यवसायिक पहलू साफ़ नज़र आएगा.
                      सुधि पाठको, किस चैनल ने कितने हैलीकापटर भेजे.. किसने कितना सहयोग किया सामने आ जाएगा सरकार की आलोचना करने का वक़्त नहीं है.. ये आपदा है जो जबलपुर में भी आ सकती है जलन्धर में भी कौन जाने इस लेख को पूरा कर पाता हूं कि नहीं प्राकृतिक आपदा किसी भी रूप में आ सकती है कभी भी कहीं भी..  जो भी हुआ दुखद और दर्दनाक था.प्राकृतिक आपदा के लिये दोषी की तलाश  कोई बुद्धिमानी का काम नहीं. बल्कि भावातिरेक का परिणाम साथ ही साथ व्यापारिक बुद्धि का प्रयोग. 


      

12.6.13

अब अन्ना हाशिये पर हैं.......?


 मैं अन्ना के आंदोलन की वैचारिक पृष्ट भूमि से प्रभावित था पर किसी फ़ंतासी का शिकार नहीं भ्रष्टाचार से ऊबी तरसी जनमेदनी को भारत के एक कोने से उठी आवाज़ का सहारा मिला वो थी अन्ना की आवाज़ जो एक समूह के साथ उभरी इस आवाज़ को "लगातार-चैनल्स खासकर निजी खबरिया चैनल्स पर " जन जन तक पहुंचाया . न्यू मीडिया भी पीछे न था इस मामले में.  जब यह आंदोलन एक विस्मयकारी मोड़ पर आ आया  तब कुछ सवाल सालने लगे हैं. पहला सवाल   तुषार गांधी ने उठाया  जिस पर गौर   कि अन्ना और बापू के अनशन में फ़र्क़ है कि नहीं यदि है तो क्या और कितना इस बात पतासाज़ी की जाए. तुषार जी के कथन को न तो ग़लत कह सका  और न ही पूरा सच . ग़लत इस वज़ह से नहीं कि.. अन्ना एक "भाववाचक-संज्ञा" से जूझने को कह रहें हैं. जबकि बापू ने समूहवाचक संज्ञा से जूझने को कहा था. हालांकि दौनों का एक लक्ष्य है "मुक्ति" मुक्ति जिसके लिये भारतीय आध्यात्मिक चिंतन एवम दर्शन  सदियों से प्रयासरत है . तुषार क्या कहना चाह रहें हैं इसे उनके इस कथन से समझना होगा  उन्हौने ( तुषार गांधी ने) कहा था - महात्मा गांधी यहां तक स्थिति को पहुंचने ही नहीं देते । क्योंकि वो बीमारी को जड़ पकड़ने से पहले ही खत्म कर देते थे। वो होते तो हालात इतने नहीं खराब होते जैसे कि आज हो गये हैं। " 
      यह कथन पूर्ण सत्य  इस कारण से नहीं माना जा सकता क्योंकि  गाँधी  दौर आज से अलग था ।
मेरे एक मित्र ने सवाल उठाया था कि - "क्या,लोकतंत्र के मायने बदलने लगे हैं..?"
                               जनता विश्वास खो चुकी है.. सचाई को झुकना होता है. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां कोई भी अंतरात्मा की आवाज़ पर हाथ उठाने से क़तराता है.तो अंतरात्माएं घबराई हुईं हैं..?
            इसके उत्तर में कहूंगा  आप लोग  बस एकाध पंचायती-मीटिंग में हो आइये सब समझ जाएंगें. आप.जी लोकतंत्र का मायना ही नहीं पूरा स्वरूप बदल ही गया है.. इस कारण अब सियासी आईकान खोजे नहीं मिलते . सब के हाथों मे, घण्टियां हैं पर   "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे..?" इस तरह की विवषताओं की बेढ़ियों जकड़ा आम-आदमी उसके पीछे है जिसके हाथ में घंटी है और वो बिल्ली के गले में घंटी बाधने वाले को तलाश रहा है.
   अगर स्वप्न में भी कोई ऐसा व्यक्तित्व नज़र आ जाता है जो बिल्ली के गले में घंटी बांधने में का सामर्थ्य रखता हो  तो उसी आभासी चेहरे  की तरफ़ भाग रहा नज़र आता है समूह ... अन्ना के आव्हान पर  स्थिति यही थी . लोग ये देखे बिना कि अन्ना के आसपास का पर्यावरण कैसा है टूट पड़े 
ऐसे में भय था कि आंदोलन के मूल्यों की रक्षा करना बहुत कठिन हो जाता है. 
           एस एम एस पर जारी अन्ना के  निर्देश आपकी नज़र अवश्य गई होगी. मेरी नज़र में सांसद के निवास पर जहां सांसद व्यक्तिगत-स्वतंत्रता के साथ निवास रत है पर धरना देना किसी के व्यक्तिगत-स्वतंत्रता के अधिकार में बाधा का उदाहरण है.ऐसा तरीक़ा गांधियन नहीं था . इसके बज़ाए आग्रह युक्त ख़त सांसदों को सौंपा जा सकता था.. अगर ऐसी घटनाएं होतीं रहेंगी तो तय है "तुषार गांधी" की बात की पुष्टि होती चली जाएगी. मुझे अन्ना ने आकर्षित किया है वे वाक़ई बहुत सटीक बात कह रहें हैं समय चाहता भी यही है.  भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिये समवेत होना सिखा दिया अन्ना ने.
      अन्ना के आंदोलन का एक पहलू यह भी उभर के आ आया कि  लोग "भ्रष्टाचार से निज़ात पाने खुद के भ्रष्ट आचरणों से निज़ात पाने के लिये कोई कसम नहीं ले रहे थे  केवल संस्थागत भ्रष्टाचार का ही  स्कैच जारी करते नज़र आ रहे थे .
               लोग स्वयम के सुख लिये जितना भ्रष्ट आचरण करतें हैं उस बात का चिंतन भी ज़रूरी है. जिसका इस आंदोलन में सर्वथा अभाव देखा जा रहा था .यानी दूसरे का भ्रष्ट आचरण रोको खुद पर मौन रहो . देखना होगा कितने लोग अपना पारिश्रमिक चैक से या नक़द लेते हैं मेरा संकेत साफ़ है मेरे एक आलेख में ऐसे व्यक्तित्व के बारे में मैं लिख चुका हूं. साथ ही ऐसे कितने लोग होंगे जिनने बिजली की चोरी नहीं की है., ऐसे कितने लोग हैं जो अपने संस्थान का इंटरनेट तथा स्टेशनरी  व्यक्तिगत कार्यों के लिये प्रयोग में लातें हैं. ऐसे कितने लोग हैं जो अपनी आय छिपाते हैं. अन्ना जी सच ऐसे लोग भी  आपकी भीड़ में थे.  सबसे पहला काम व्यक्तिगत-आचरण में सुधार की बात सिखाना आपका प्राथमिक दायित्व था. यही मेरा सुझाव है उनके लिये है जो सफ़ेद टोपी लगा के कह रहे थे कि –“ मैं  अन्ना हूं  मैं भी अन्ना हूं..!!
                 स्मरण हो कि  मैने अपने एक लेख में कहा था कि  एक लेखक  के रूप में मेरी भावनाएं मैं पेश कर रहा हूं ताक़ि आपके संकल्प पूरे हों और हमारे सपने..!! मैं आंदोलन की वैचारिक पृष्ट भूमि से प्रभावित हूं पर किसी फ़ंतासी का शिकार नहीं हूं.  
    जिस बात का डर था सबको वही हुआ कि  अब अन्ना हाशिये पर हैं.......?  

10.6.13

मेरा डाक टिकट (पुनर्प्रकाशन्)

                   
इस स्टैम्प के रचयिता हैं
 ब्ला० गिरीश के अभिन्न मित्र
राजीव तनेजा
वो दिन आ ही गया जब मैं हवा में उड़ते हुए
अपना जीवन-वृत देख रहा था..
               मुद्दतों से मन में इस बात की ख्वाहिश रही कि अपने को जानने वालों की तादात कल्लू को जानने वालों से ज़्यादा और जब मैं उस दुनियां में जाऊं तब लोग मेरा पोर्ट्फ़ोलिओ देख देख के आहें भरें मेरी स्मृति में विशेष दिवस का आयोजन हो. यानी कुल मिला कर जो भी हो मेरे लिये हो सब लोग मेरे कर्मों कुकर्मों को सुकर्मों की ज़िल्द में सज़ा कर बढ़ा चढ़ा कर,मेरी तारीफ़ करें मेरी याद में लोग आंखें सुजा सुजा कर रोयें.. सरकार मेरे नाम से गली,कुलिया,चबूतरा, आदी जो भी चाहे बनवाए. 
जैसे....?
जैसे ! क्या जैसे..! अरे भैये ऐसे "सैकड़ों" उदाहरण हैं दुनियां में , सच्ची में .बस भाइये तुम इत्ता ध्यान रखना कि.. किसी नाले-नाली को मेरा नाम न दिया जाये. 
       और वो शुभ घड़ी आ ही गई.उधर जैसे ही गैस सिलेंडर के दाम बढ़े इधर अपना बी.पी. और अपन न चाह के भी चटक गए. घर में कुहराम, बाहर लोगों की भीड़,कोई मुझे बाडी तो कोई लाश, तो साहित्यकार मित्र पार्थिव-देह कह रहे थे. बाहर आफ़िस वाला एक बाबू बार बार फ़ोन पे नहीं हां, तीन-बजे के बाद मट्टी उठेगी की सूचनाएं दे रहा था. हम हवा में लटके सब कार्रवाई देख रए थे.जात्रा निकली  जला-ताप के लोग अपने धाम में पहुंचे. शोक-सभाओं में किसी ने प्रस्ताव दिया 
"गिरीश जी की अंतिम इच्छा के मुताबिक हम सरकार से उनकी स्मृति में गेट नम्बर चार की रास्ता को उनका नाम दे दे"
दूसरे ने कहा न डाक टिकट जारी करे,
तीसरे ने हां में हां मिलाई फ़िर सब ने हां में हां ऐसी मिलाई जैसे पीने वाले सोडे में वाइन मिलाते हैं..और एक प्रस्ताव कलेक्टर के ज़रिये सरकार को भेजना तय हुआ.
              कलैक्टर साब को जो समूह ग्यापन सौंपने गया उसने जब हमारे गुणों का बखान किया तो "आल-माइटी सा’ब" को भी मज़बूरन हां में हां मिलानी पड़ी. पेपर बाज़ी हुई सवा महीना बीतते बीतते सी एम साब ने गली पर लिखवा दिया "गिरीश बिल्लोरे मार्ग" केंद्र सरकार ने डाक टिकट जारी किया. हम बहुत खुश हुए.हमारी आत्मा मुक्ति की ओर भाग रही थी कि उसने मुड़ के देखा .. इस पत्थर पर हमने गोलू भैया के कुत्ते को "शंका निवारते" देखा तो सन्न रह गये. सोचा डाकघर और देख आवें सो पोस्ट आफ़िस में ससुरे डाक-कर्मी गांधी जी वाले ख़तों पे तो  तो सही साट ठप्पा लगाय रहे थे .  जिंदगी भर सादा जीवन उच्च विचार वाले हम एकाध दोस्त ही जानतें हैं हमारी चारित्रिक विशेषताएं पर मुए डाक कर्मी  लैटर पे बेतहाशा काली स्याही पोत रहे थे.. पूरा मुंह काला किये पड़े थे. अब बताओ हज़ूर तुम्हारे मन में ऐसी इच्छा तो नईं है.. होय तो कान पकड़ लो.. मूर्ती तो क़तई न लगवाना.. वरना


       आकाश का कौआ तो दीवाना है क्या जाने
         किस सर को छोड़ना है, किस सर पे छोड़ना है..?   

8.6.13

मूंछ्मुंडन क्रिया का दार्शनिक पक्ष

                                
जागरण से साभार 

                                  *गिरीश बिल्लोरे”मुकुल”

  मुहल्ले वाले नत्थू लाल जी के घर से निकले एक व्यक्ति को हम घूर घूर के देखे जा रये थे पर समझ न पाए कि कौन हैं.. दिमाग पे ज़ोर जबरिया पिल पड़े कि भाई दिमाग याद दिला याद दिला तब भी याद न आया तो हमने भी हार न मानी हम समझे कदाचित मैन्यूफ़ेक्चरिंग डिफ़ेक्ट की वज़ह से  से हमारा दिमाग घुटने पे न आ गया होगा सो  अपना  घुटना खुजा  खुजा खूना खच्चर कर लिया पर याद न दिलाया कि नत्थू भाई के घर से निकला व्यक्ति कौन है. पर हमारा दिमाग भी अजीब था सामान्यत: घुटने तक  जाता था पर अब किधर खो गया राम जाने ?
                            पर बार बार मन कहे जा रहा था- यार, तुमने इसे कहीं देखा है. .? पर दिमाग ने एक न सुनी न ही बताया कि नत्थूलाल के घर से निकला व्यक्ति कौन है. ?
                              सोच ही रहा था कि  व्यक्ति नज़दीक आया तब जाके समझ आया कि ये तो अपने नत्थूलाल जी हैं. बेवज़ह दिमाग को कोसा. जित्ता है कभी काम आता मुझे डर है कि कहीं मेरा दिमाग  अब मुझसे नाराज़ न हो जाए. इसी भय के बीच नत्थूलाल जी के नज़दीक आते ही हमने पूछा- क्या हाल है नत्थू भाई..और  जे मूंछ..
नत्थू जी - अरे मूंछ का क्या.. घर की खेती है... वो भी बारामासी दो तीन दिन में आ जाएगी..        
हम - तो वज़न कम करना था हो गया दस बीस ग्राम ?
नत्थू जी - का भाई तुम भी मेरी मूंछ का इत्ता कम वज़न आंका ?
हम - नत्थू जी बुरा न मानो हम तो आपको सौ खरब का आपकी मूंछों को सौ अरब की मूंछैं मानते हैं.. पर जिस नंगे  देश में जहां जुआ-सट्टे के दम पे नोट लगाए जाते हों उधर आपकी मूंछ कीमत कौन लगाएगा . इधर तो महाराणा परताप की हालत भी तुमाए जैसी ही हो जाती . खैर " मूंछ बिना नर पूंछ बिना खर "  ज़रा ठीक नईं लगते खैर अब आपने कटवा ली तो कटवाली पर एक बात कहूं कुछ दिन घर के बाहर ज़्यादा मत घूमों..
नत्थू जी - अरे, आप बाहर से घर में जाने को बोल रये हो घर जाता हूं तो आपकी बहू बोलती है पता नईं कैसा कैसा लगता है.. घर में अजीब सा चेहरा लिये घुसे रहते हो.. बच्चा भी डरा डरा रहता है.. घूम फ़िर आओ. ज़्यादा घर में रहे तो हम मायके चले जायेंगे. ये अलग बात है कि वे ऐसा कभी करतीं नहीं कि हमारा भी पंद्रा अगस्त टाइप का एक दिन आए ..
                             नत्थू न घर के रहे न बाहर के दफ़्तर पहुंचे तो बस छोटे कर्मचारी सबसे पीछे वाले कमरे में फ़ुसफ़ुसियाने लगे.. बड़े बाबू टाइप के लोग साहब की मूंछ से असमयिक बिछोह बर्दाश्त न कर सके. उस दिन आफ़िस में कोई काम न हो सका. महिला कर्मचारीयों के कक्ष से -" आ .. जे का कर लिया 
अच्छा नईं किया साब ने" जैसे डायलाग सुनाई दे रहे थे. 
     सबसे चुहलबाज़ बाबू बोला - का साब, हम समझे आप पप्पू का मुंडन करवाओगे जे का आपने तो !
  नत्थू जी के मित्र फ़त्ते लाल भी उन पर छीटाकशी करने न चूके बावज़ूद इसके कि वे स्वयं मूंछ विहीन नर हैं.. 
 इस कहानी का अर्थ कुछ भी नहीं ऐसा सबके साथ होता है.. होता रहेगा किसी न किसी कारण जीवन में मूंछ मुडवाना ही होता है. लोगों के ताने भी सुनने होते हैं.. मुछमुड़े पति को पत्नियां धमकातीं हैं कि वे मूंछ न कटवाएं वरना वे मायके चली जाएंगी... वास्तव में जातीं नहीं हैं. पर मूंछ्मुंडन क्रिया का दार्शनिक पक्ष ये है कि "लोग जैसा आपको देखना चाहते हैं वैसे ही उनको दिखना चाहिये वरना दुनियां करे सवाल तो क्या ज़वाब दें "
      मित्रो मेरे मन में एक कविता बार बार हिलोर ले रही है देखिये
        प्राणपण से प्यार दो
            मूंछ को संवार लो !
              बढ़ाओ मूंछ इतनी तुम
                 कि वक़्त पे उधार दो..!!
      मूंछ संस्कृति का अंग
          रखते हैं सदा मलंग !
             मुछमुंडे बोलो मीत
                कभी जमा सके हैं रंग !!
         मुछ्मुण्डा देख के
           हैं भागतीं कुमारियां !
               ऐसा पति मिल जाए
                  तो सिसकतीं हैं नारियां..!!
         मूंछ मत कटाइये
            संस्कृति बचाईये !
               मुछंदरों की फ़ौज़ के
                  आंकड़े  बढाइये !!

                       

5.6.13

मैं और मेरी इनकम्प्लीट फैमिली .....शेफाली पाण्डे

मैं और मेरी इनकम्प्लीट फैमिली .....कुमाउँनी चेली

  जिस तरह भारत वर्ष में ज़िंदा रहने के लिए विवाह करना जितना अनिवार्य  है,  ठीक उसी प्रकार विवाह होने के उपरान्त बच्चा पैदा करना उतना ही अनिवार्य है । आपको कोई कुंवारा रहने नहीं देगा और शादी के बाद बिना बच्चे के जीने नहीं देगा । 
इधर विगत कुछ वर्षों से समाज में दो तरह के लोग आपसे टकराते हैं, एक वे हैं जो पहली संतान के विषय में बेधड़क होकर कहते हैं '' पहला  बच्चा कोई भी हो चलेगा ।'' कोई भी से मतलब यह ना निकाला जाए कि चूहा, बिल्ली या कोई भी जानवर पैदा हो जाए और ये उसे अपना लेंगे । कोई भी का मतलब यहाँ लड़की से होता है ।  ये बहुत बड़े दिल वाले होते हैं । ऐसे लोगों की वजह से ही शायद संसार में लड़कियों का जन्म हो पाता है  । 
दूसरे  वे लोग हैं जो ज़िंदगी में किसी भी प्रकार का रिस्क नहीं लेते ।'' पहला तो लड़का ही होना चाहिए, दूसरा चाहे कोई भी हो जाए ''  यहाँ भी कोई भी का  मतलब कीड़ा - मकौड़ा, पक्षी या जानवर नहीं बल्कि लडकी से ही है । ऐसे लोग शुरू में भले ही परेशान हो लें लेकिन बाद में स्वयं को सुखी महसूस करते हैं । 
ये दूसरी तरह के लोग बड़े ही स्मार्ट किस्म के होते हैं । इधर स्त्री ने गर्भधारण किया नहीं उधर ये अल्ट्रा साउंड सेंटरों की खोज में आकाश - पाताल एक कर देते हैं । इन सेंटरों में, जहाँ बाहर से बड़े - बड़े अक्षरों में लिखा होता है '' गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण करना कानूनन अपराध है '' और अन्दर सब जगह अलिखित रूप से लिखा रहता है '' यहाँ ये अपराध इत्ते रुपयों में खुशी - खुशी किया जाता है '' । 
अगर आपकी पहली लडकी है और आप दूसरी संतान की इच्छा रखती हैं और कई साल बाद दोबारा गर्भधारण करतीं हैं तो समाज में बड़ी ही विचित्र परिस्थितियाँ जन्म लेने लगती हैं । आपसे मिलने आने वाली आपकी हर मित्र, रिश्तेदार या किसी भी पड़ोसी महिला को जाने किस गुप्त विधि से यह पता होता है कि आपके गर्भ में निश्चित रूप से लड़का है । सिर्फ आपको ही नहीं पता होता बाकी सबको पता  होता है । कह सकते हैं '' जाने तो बस एक गुल ही ना जाने, बाग़ तो सारा जाने है ''। आप उन्हें कितना ही यकीन दिलाने की कोशिश करें कि वाकई आपको बच्चे का लिंग नहीं पता या आपने डॉक्टर पूछने की ज़रुरत ही नहीं समझी है, उन्हें किसी भी सूरत में यकीन नहीं होता है । आपकी हर कोशिश को काटने के यन्त्र इनके पास मौजूद रहते हैं । 
वे फ़ौरन पूछती हैं '' अल्ट्रा साउंड नहीं करवाया क्या ?'' आप कहेंगी '' सात या आठ बार करवाया है ,'' '' तब झूठ क्यूँ बोल रही हो कि नहीं पता '' अगर आप कहती हैं '' वह तो  बस बच्चे की ग्रोथ जानने के लिए डॉक्टर ने करवाए थे ''। किसी भी सूरत में वे इस बात को नहीं मानतीं कि अल्ट्रा साउंड गर्भ में पल रहे शिशु का विकास देखने के लिए भी किया जाता है । वे चुनौती देने लगतीं हैं '' हम भी देख लेंगे जब लड़का होगा, अभी देखो कितनी एक्टिंग कर रही है, जैसे की हमें कुछ पता नहीं ।  इतने साल बाद क्यों याद आई दूसरे बच्चे की ''। कैसी आश्चर्य की बात है कि वे आपसे ज्यादा बेसब्री से आपके होने वाले बच्चे का इंतज़ार करने लगतीं हैं कि लड़का हो और वे आपसे खुलेआम कह सकें '' हमने तो पहले ही कहा था, ऐसा कौन बेवकूफ होगा जिसकी पहली लडकी हो और उसने दूसरे बच्चे का लिंग नहीं पता किया हो ''। 
तब आपको अपने आस - पास के अनेक लोग याद आने लग जाते हैं, जिनकी पहली संतान लड़की है और जो साल में दो - तीन बार प्राइवेट नर्सिंग होम्स के चक्कर काटते हैं और शिकायत करते हैं '' बहुत परेशान हैं, पता नहीं क्या हो गया, दूसरा बच्चा नहीं हो रहा, कितना ही इलाज करा लिया '' अगर आप उन्हें किसी इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट का पता बताती हैं तो वे आपकी बात पर बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं । यह बाद में पता चलता है कि  दरअसल इलाज से उनका मतलब गर्भपात से और दूसरे बच्चे से उनका मतलब सिर्फ और सिर्फ लड़के से होता है, जो ना जाने कितनी गर्भपात के बाद भी पैदा होने का नाम ही नहीं लेता । धर्म संकट शायद इसे ही कहते हैं कि परिवार भी छोटा रखना है और फैमिली भी कम्प्लीट होनी चाहिए । ये वही पहले प्रकार के लोग होते हैं जो कहते थे '' पहला कुछ भी चलेगा ''। अब ये लोग अपने पुराने निर्णय पर पछताते और हाथ मलते हैं कि काश ! पहली बार में ही लिंग का पता कर लिया होता । 
इधर आपके पेट का आकार बढ़ने लगता है और उधर आपके आस - पास समाज में मौजूद कई तरह की चलती - फिरती अल्ट्रा साउंड मशीनें सक्रिय होने लगती हैं । कोई आपके पेट का आकार देखकर लड़का पैदा होने की भविष्यवाणी करेगी तो कोई चेहरे की रंगत देखकर । कोई आपसे कैटवॉक करवाके  आपके चलने के अंदाज़ से जान लेती है तो कोई पहली लड़की के सिर के बालों के बीचों - बीच में पड़ने वाले भंवर को देखकर अनुमान लगा लेती है । एक आध मशीनें तो इतनी ज्यादा बेतकल्लुफ हो जाती हैं कि आपकी नाभि का आकार तक देख लेती हैं, उनके अनुसार  इसके संकुचन की दिशा से एकदम सटीक अंदाज़ा लगाया जा सकता है । गौर करने वाली बात ये होती है कि सारी की सारी भविष्यवाणियाँ सिर्फ लड़के के लिए होती हैं । मौसम वैज्ञानिकों ने शायद इस बाद का अध्ययन नहीं किया होगा कि लड़का होने का भी एक मौसम होता है जिसके द्वारा ये मशीनें आने वाले बच्चे के लिंग का पूर्वानुमान कर लेती हैं । खट्टा या  मीठा खाने की इच्छा उगलवाकर हर दूसरी औरत भविष्यवक्ता होने का दावा पेश कर देती है । 

अगर इन मशीनों के सामने आपके मुंह से निकल गया '' लडकी भी तो हो सकती है '' फ़ौरन आपके मुंह पर हाथ रख दिया जाएगा '' शुभ - शुभ बोलते हैं  । ऐसा नहीं कहते । कहते हैं दिन भर के चौबीस घंटे में से एक बार माँ सरस्वती जुबान पर बैठती है, अतः इन दिनों हमेशा  शुभ - शुभ बोलना चाहिए ''। माँ सरस्वती ! आप सब सुनतीं हैं ना ?
जैसे - जैसे आपके दिन बढ़ते जाते हैं आपकी  शुभचिंतक महिलाएं, जो आपकी बेहद करीबी होती हैं, जिन्हें आप तर्क के द्वारा नहीं हरा सकती हैं,  आपके घर में तरह - तरह के श्लोक, भांति - भांति  के भगवानों  की स्तुति, चालीस प्रकार की चालीसाएँ, सैकड़ों प्रकार के सहस्त्रनामों की फोटोकॉपी पहुँचाने में जुट जाते हैं । इन सब का एक ही निचोड़ होता है कि इन सबके द्वारा आपको अवश्य ही पुत्र रत्न प्राप्त होगा । आपके सिरहाने मन्त्र चिपका दिए जाते हैं , ताकि आप सुबह - शाम, दिन - रात उक्त मन्त्र का जाप करते रहें । ऐसे बाबाओं के पते जिनके आशीर्वाद से सिर्फ लड़का ही होता है, आपके हाथ में छोटी सी पुर्ची बनाकर थमा  दिए जाते हैं । गंडे , ताबीज लौकेट से अलमारियां भरने लगती हैं । इनके भोलेपन पर तरस भी आता है । अगर आप कह बैठेंगी कि  '' बच्चे का लिंग तो कब के बन चुका होगा अब क्या फायदा इन्हें जापने का ''। तब भी ये हार नहीं मानतीं और कहती हैं ''चमत्कार भी तो कोई चीज़ होती है ''। इस चमत्कार को वाकई नमस्कार करने का मन करता है ।
              कभी - कभी आप सोचने लग जाती हैं कि शायद लोग झूठ बोलते हैं या दुनिया की सारी रिसर्चें फर्जी होती होंगी, जो ये कहती हैं कि बच्चा गर्भ में सब कुछ सुनता है, महसूस करता है । इतनी साजिशों को जानने के बाद तो कोई भी लडकी भगवान् को अर्जी देकर गर्भ में ही अपना लिंग परिवर्तन करवा ले। इतने षड्यंत्र इसी पृथ्वी पर रचे जातीं हैं ताकि दूसरी लडकी पैदा ना हो पाए, उस पर भी लडकियां पैदा हो ही जाती हैं । लड़कियों के अन्दर वाकई बहुत जीजीविषा होती है । 
               अगर आपकी डॉक्टर से आपकी आत्मीयता स्थापित हो गयी गई है, जो कि पर्याप्त महँगा इलाज करवाने की मजबूरी के कारण हो ही जाती है, तो वह भी आपको हिंट देने से पीछे नहीं हटेगी । तीसरे महीने के अल्ट्रा साउंड के बाद वह हँसते - हँसते कह ही देती है '' लड़का भी ज़रूरी है आजकल । करिश्मा कपूर को देख लो, इतने साल बाद हुआ ना बेटा '' इसी तरह से दो - तीन और अभिनेत्रियों के नाम वह आपके सामने रखती है । वह चाहती है की आप बच्चे का लिंग पूछे और वह अपनी फीस बताए । आप नहीं पूछतीं तो वह मन मसोस कर चुप हो जाती है ।  
               अनुमानों की बारिश के जी भर के बरसने के बाद आपका नौ महीने का समय पूरा हो जाता है । अस्पताल जाने की तैयारियां पूरी कर ली जातीं हैं । एक बार फिर आपके द्वारा लगाई गयी अटैची को दोबारा खोल कर रखे गए कपड़ों के आधार पर बच्चे का लिंग जानने की अंतिम कोशिश की जाती है । अगर आप आधे कपडे लड़के के रखतीं हैं, और आधे लड़कियों के, तो ही इनके दिल को तसल्ली होती है कि वाकई आप सच बोल रहीं थीं । फिर अस्पताल जाने तक सांत्वना देने का अनवरत क्रम चलता रहता है '' सब अच्छा होगा , देखना पक्का लड़का ही होगा ''। 
              ऑपरेशन की टेबल पर ले जाने से पाहिले आपका चेकअप डा.की असिस्टेंट के द्वारा किया जाता है । वह पूछती है ''पहला बच्चा क्या है ?''आप उत्तर देती हैं  '' बेटी है'' फिर उसका जवाब आता है ''एक लडकी है, दूसरा लड़का हो जाता तो फैमिली कम्प्लीट हो जाती ''। उसी डा., जिसके यहाँ घुसते ही बड़े - बड़े अक्षरों में लिखा हुआ टंगा रहता  है '' आप जिस डा.से परामर्श के लिए कतार में बैठे हैं वह भी किसी की बेटी है, अतः गर्भस्थ शिशु लड़का है या लडकी यह पूछने से पहले सोचें ''। 
             आपके ताबूत में आख़िरी कील तब लगती है जब डा. द्वारा आपका पेट चीर के बच्चे को बाहर निकाला जाता है और बताया जाता है '' बधाई हो, लक्ष्मी आई है'' । फिर तुरंत दूसरा प्रश्न गोली की तरह छूटता है  ''पहला बच्चा क्या है आपका ? '' आप एनस्थीसिया का इंजेक्शन लगा होने के कारण अर्धनिद्रा में होती हैं और धीमे से कहतीं हैं '' बेटी है '' वो सुनती हैं '' बेटा है '' और सुनकर कहती हैं '' एक बेटा और एक बेटी हो गए। चलो फैमिली कम्प्लीट हो गयी'' । कम्प्लीट सुनते ही आपकी सुप्त हो गयी चेतना वापिस आ जाती है । आप कहतीं हैं '' बेटी है पहली '' वो तुरंत बात पलट देती हैं '' कोई बात नहीं, आजकल  तो लड़का -लडकी सब बराबर हैं , फिर भी अगर इच्छा होगी तो दो साल बाद आ जाना ''। यह सुनते ही वापिस आई हुई चेतना फिर से लुप्त हो जाती है । 
                      ऑपरेशन के बाद आपको कमरे में शिफ्ट किया जाता है । आपके साथ  मौजूद घरवालों को कोई बधाई का एक शब्द तक नहीं कहता । आपके पति के  द्वारा तैयार किये गए सौ - सौ के नोट जेब में ही फड़फड़ाते रह जाते हैं । अस्पताल का कोई भी कर्मचारी शगुन नहीं मांगने आता । सफाई करने वाली बेहद गरीब औरत भी इतनी स्वाभिमानी निकलती है कि आपके घर में दूसरी लडकी होने के बोझ को जानकार आपसे एक पैसा भी नहीं मांगती । वहीँ  दूसरी और आपके बगल के कमरे में लड़का हुआ होता है और वहां मांगने वालों का तांता लगा हुआ होता है । अस्पताल के सभी कर्मचारी वहां से वसूली करके आते हैं । इधर आपके द्वारा सबसे महंगी दूकान से मंगवाई गयी मिठाइयां पड़े -पड़े सूख जाती हैं । ऐसा लगता है जैसे पूरा अस्पताल एकाएक डाई बिटीज़ की गिरफ्त में आ गया हो । पेट की ताज़ा - ताज़ा सिलाई से उठने वाला दर्द पीड़ा नहीं देता लेकिन अब दिल पर लगे हुए घाव एकाएक टीस देने लगते हैं । आपको लगता है जैसे ज़माना फिर से सौ बरस पीछे चला गया । 
                     आप घर आती हैं । अब तक सबको खबर हो चुकी होती है । लोग आने लगते हैं । बधाई के शब्द सांत्वना की चाशनी में लपेट कर आपके सामने परोसे जाते हैं । बहाने - बहाने से आपकी आँखों में झांका जाता हैं कि कहीं से तो शायद एक कतरा दुःख का गिरे तो वे लपक लें और अपने सांत्वना के शब्द जो उन्होंने बीते कई दिनों से सहेज रखें हैं, आपके सामने उगल दें । आपके कंधे पर अपना हाथ रखकर दुःख प्रकट करें । अगर आप ऐसा कुछ भी नहीं करतीं तब भी वे रह नहीं पातीं , बैचैन होकर अपने दिल की बात कह ही डालतीं हैं, '' कोई बात नहीं, अगली बार लड़का हो जाएगा, अभी कौन सी उम्र चली गयी है । तीन ऑपरेशन तो आजकल साधारण बात हैं '' आप अगर कह दें '' तीसरी बार की क्या गारंटी है की लड़का ही होगा '' वे कहती हैं '' नहीं अबकी ज़रूर लड़का होगा '' ऐसे कई उदाहरण आपके सामने फिर से प्रस्तुत किये जाते हैं, जिसमे तीसरी बार में जाकर लड़का हुआ ।  इस दृढ़ विश्वास पर कौन ना कुर्बान हो जाए  । 
               आपके गले में बहादुरी का तमगा पहनाया जाता है । आप हिम्मती ठहराई जाती हैं । हकीकत में देखा जाए तो आप बहुत कमज़ोर किस्म की होतीं हैं ।   ह्रदय बहुत नाज़ुक होता है । गलत काम पर करने पर उपरवाले से डरतीं हैं । हिम्मती तो वे होतीं हैं जो साल में दो बार गर्भपात करवाती हैं, शरीर पर इतना ज़ुल्म सहती हैं, और चूं भी नहीं करतीं । कर्म प्रधान होने के कारण ना भाग्य से और ना ही भगवान् से डरतीं हैं ।  
 
 घर में ऐसी कई महिलाएं कई दिनों तक आतीं रहतीं हैं, आप इन्हें चाय पिलाती हैं और ये आपको लड़के की अनिवार्यता के विषय में लेक्चर पिलातीं  हैं । इनमें से कई महिलाएं एक ही शहर में अपने सास और ससुर से अलग घर लेकर रहती है । कई के सास - ससुर बुढापे में अपना खाना आप ही बनाते हैं । इकलौते  लड़के हाल - चाल पूछने तक नहीं जाते । लड़का ना हो पाने की सांत्वना तो वह भी देती जो है रोज़ मौका ढूंढती है और पहला मौक़ा लगते ही सास - ससुर से  अलग हो जाना चाहती है । सबसे ज्यादा अफ़सोस तब होता है जब वह भी आपको पुत्र के ज़रूरी होने की बात कहती है, जिसका खुद का लड़का साल में छह महीने मानसिक अस्पताल में भर्ती रहता  है । जब घर में रहता है उसे आए - दिन मारता रहता है । पति बीस साल पहले घर छोड़ कर चला गया था, जिंदा भी है या मर गया उसे नहीं मालूम, लेकिन वह उसके नाम के सिन्दूर से मांग भरना एक दिन भी नहीं छोडती है ।       
 इसके कई दिन बाद तक कई तरह के रहस्योद्घाटन आपके सामने होते रहते हैं, जिनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं .......
                   दूसरी लडकी होने का मतलब है आपका पढ़ा - लिखा होना बेकार है । पढ़े - लिखे लोग ऐसी गलती नहीं करते । अब भुगतो सारी ज़िंदगी दूसरी लड़की को । आपसे तो अच्छे कम पढ़े - लिखे लोग होते हैं । धिक्कार है आपकी डिग्रियों को । इनको पहली फुर्सत में आग लगा देनी चाहिए । 
                  दूसरी लड़की पूर्वजों के अभिशाप की वजह से होती है । अगर आपने अपने अपने माँ  - बाप की इच्छा के विरूद्ध विवाह किया है तो भगवान् आपको दंडस्वरूप दो लड़कियां देता है । 
                 लड़कों की उत्पत्ति अनिवार्य रूप से जबकि लड़कियों की उत्पत्ति अपने कन्यादान के शौक को पूरा करने के लिए होनी चाहिए । जो कन्यादान करता है वह अपनी  सारी ज़िंदगी किसी भी भिखारी या मांगने वाले को कुछ भी न दे तो भी चलेगा । उपरवाला उसे कोई सजा नहीं देता क्यूंकि वह भविष्य में कन्यादान नाम का महादान करेगा  । 
                बाज़ार में सुन्दर - सुन्दर कपडे सिर्फ़ लड़कियों के लिए मिलते हैं, इसलिए एक लडकी तो होनी ही चाहिए । बाज़ार में लड़कियों के डिज़ाईनर कपडे नहीं मिलते तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हालत कितनी खराब होती । 
               लडकियां भाई को राखी बाँधने के काम आती हैं । अच्छा हुआ कि भारतवर्ष में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है । सोचिये, अगर भारतवर्ष त्योहारों का देश ना होता तो कितनी बुरी दशा होती लिंगानुपात की ।
              अगर पहली लडकी हो तो दूसरी बार भगवान् पर भूल कर भी भरोसा नहीं करना चाहिए । हाँ,  लिंग परीक्षण करवाने के उपरान्त गर्भपात सही - सलामत हो जाए इसके लिए भगवान् को हाथ ज़रूर जोड़कर जाना चाहिए । 
         फैमिली हर हाल में कम्प्लीट होनी चाहिए, इसके लिए गर्भपातों की संख्या याद करना बंद कर देना चहिए । 
               ''कम्प्लीट फैमिली'' का मतलब सिर्फ चार लोग '' माँ, बाप एक लड़का एक लडकी होता है  '' । 
कम्प्लीट फैमिली में दादा - दादी, चाचा - चाची, ताऊ - ताई , बुआ या कहें कि किसी भी प्रकार का कोई रिश्ता नहीं आता ।       
इस लेख की प्रेरणा स्रोत,  मेरी दूसरी बेटी को आज पूरे दो साल हो गए । जी भर के अपना आशीर्वाद और शुभकामनाएँ दीजिये
 

29.5.13

नक्सलवाद आतंकवाद का सहोदर ..

                                                   बेशक़ इनको   माओत्से तुंग की आत्मा कोस रही होगी .... नक्सली हिंसक प्रवृत्ति के ध्वज वाहकों को.क्योंकि वे कायर न थे ऐसा ब्रजेश त्रिपाठी जी ने अपने ब्लाग पर दरभा - दर्भ और डर के दंश शीर्षक से लिखे आलेख में लिखा है. 
                       कोसे न कोसे नक्सलवाद के पुरोधाओं को समझाना  अब ज़रूरी हो गया है कि "भारत भारत है यहां माओ के फ़लसफ़े को कोई स्थान नहीं..!!"
                  पर अब सवाल यह है कि लाल खाल पहने इन आतंकियों अंत कैसे होगा . इनके सफ़ाए के लिये किस तकनीकि का प्रयोग किया जाए कि भोले भाले आदिवासियों जिनका इस्तेमाल यह कायर समूह बतौर ढाल करता है को बिना हानि पहुंचाए समस्या का अंत हो. 
          नक्सलवाद को विस्तार मिलने की सीधी वज़ह ये है कि उनके द्वारा सबसे पहले गतिविधि क्षेत्र के वाशिंदों के मानस पर अपने आप को अंकित किया.. उनसे बेहतर संवाद सेतु बनते ही उनमें एक भय का वातावरण भी बना दिया ताकि वे ( क्षेत्र के वाशिंदे ) भयाधारित प्रीति से सम्बद्ध रहें. 
                                              यह कारण आप सब जानते हैं. यह कोई नई बात नहीं है.. सवाल अब यह है कि - "नक्सलवाद की ज़रूरत क्यों है.?"  भारत में इसकी क़दापि ज़रूरत नहीं है ये सत्य तो स्वयं नक्सलवादी भी समझते होंगे. पर क्यों इस विचारधारा को बलपूर्वक ज़िन्दा रखने की कोशिशें जारी हैं. ?  दर्भा घाटी कांड की वज़ह बताने वाले नक्सली ऐसा कोई कारण न बता पाए जिसे Provoke की श्रेणी में रखा जावे. 
        वास्तव में देखा जाए तो अब केवल विचारधाराएं बर्चस्व की लड़ाई का कारक बन चुकीं हैं. धर्माधारित आतंक, भाषा क्षेत्र वर्ग सम्प्रदाय आधारित आत्ममुग्धता, किसी भी हिंसक गतिविधि को जन्म देने के कारक हैं. इसमें लोककल्याण का भाव किसी भी एंगल से नज़र नहीं आ रहा. 
BLOG IN MEDIA
          संकेतों को अधिक स्पष्ट करना आवश्यक नहीं आप सब जानतें हैं कि-"आतंकी समूह की तरह नक्सली भी केवल किसी पेशेवर अपराधिओं की तरह काम करने लगे हैं. !" 
         नक्सलवाद के अलावा भावनाओं को भड़काने का काम हर जगह हो रहा है लोग बेलगाम बोल रहे हैं.. कुंठाएं बो रहे हैं. तिल को ताड़ बना रहे हैं और युद्ध में झौंक रहे हैं आम मानस को.. जो प्लेन और दाग हीन है. बस भाषा, सम्प्रदाय, जाति, क्षेत्र आधारित आतंक के बीज हर जगह बोना आज का मुख्य शगल है. 
लोग बेतहाशा बोलते जा रहे हैं
बोल पाते हैं क्योंकि बोलना आता है
भीड़ में/अकेले 
अधकचरे चिंतन के साथ 
कुंठा बोते लोग 
पर जानते नहीं आस्थाएं बोलतीं नहीं
उभरतीं हैं.. 
सूखे ठूंठ पर 
बारिश की बूंदे पड़तीं हैं 
तब होता है कोई नवांकुरण..
यही तो है आस्था का प्रकरण..!!
आस्था बोलती नहीं 
अंकुरित होती है कहीं भी कभी भी  
        इस विमर्श के दौरान मेरा मन बार बार कह रहा है कि यह भी कह दूं.. "चलो बासे सड़े गले विचारों को चिंतन की कसौटी पर परख कर मानस से परे हटाऎं.. एक नया विश्व बनाएं "
                    ऐसा न होने पर हम कबीलों वाले दौर में चले जाएंगे..  
      
                

28.5.13

Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Maharaj Shri Swami Vishvadewanand took Samadhi on 7th May 2013.By Swami Anantbodh Chaitany ji

Born in virtuous and sacred Brahman family on 12-12-1949, he showed signs of fervor towards spirituality during his childhood. He read many Vedic scriptures in his childhood which progressively developed in him a resolve to lead a Sanyasi’s (A life of renunciation) life for the welfare of mankind. Pujya Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Maharaj Shri Swami Vishvadewanand Guriji was initiated into an order of Sanyasis of Adi Shankaracharya, by one of the greatest saints revered Pujya Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Swami Shri Atulananda Puriji (Vedant keshari). He studied M.A.in English,Acharya in Darshan , Vedas, Upanishads, Yoga and other ancient scriptures under the guidance of great saints ofIndia. Following Vedic tradition of Great Sanyas Ashram Elise Bridg Ahemdabad and the land of scholars the great tradition of Govind Math, Varanasi, he spent many years of life in intense penance and Sadhana (spiritual practices for self realization) at many places in Himalayas including, Punjab, Gujarat forests Haridwar and Varanasi and on the banks of river Ganges.

 In order to understand the plight of people and possible solutions for dispelling ignorance, he went on a pilgrimage to all the holy places in different parts of India. Later, he went for world tour to share his knowledge to people throughout the world. Guided by divine within, supported by Vedic knowledge and rich experiences of spirituality, he developed a very broad vision to serve the society based on the greatest dictum “Vasudev Kutumbkam” meaning “the whole world is one family of divine”. That’s why he is The Founder of Visva Kalyan Foundation in Haridwar.


The saints of the Sanatan Dharma (Hindu Society) and a leading organization of millions of sadhus, the SHRI PANCHAYATI MAHANIRVANI AKHADA had designated him as PRIME SAINT in 1985 at the Haridwar Maha Kumbh. He has then been appointed as ACHARYA MAHAMANDLESHWAR i.e. the leader of all the saints of SHRI PANCHAYATI MAHANIRVANI AKHADA. As the Acharya Mahamandleshwar of the Akhada, Maharaj Shri is Chairman of various Ashrams situated at Haridwar, Varanasi, Kolkata and Ahmedabad etc.Maharaj Shri established The First Shri Yantra Mandir of world made by stone. This temple is situated in Kankhal, Haridwar , Uttrakhanda(Himalyas) India.

 Pujya Maharaj Shri has now been delivering religious discourses for the last thirty years, as a preacher of the Sanatan Dharma. In India, Pujya Maharaj Shri attracts huge audiences. His simple, scientific and interesting presentation of the philosophy is so powerful that it has changed the lives of thousands of people. He often tours outside India as well. He has inspired thousands of people in Singapore, Malaysia and England, Canada , America where his visit is always anxiously awaited. Pujya Maharaj Shri visited USA several times and evoked a tremendous response in every city that he visited.
 His lectures cover the teachings of the Vedas, Upanishads, Bhagavatam, Puranas, Bhagavad Geeta, Ramayana, and other Eastern and Western philosophies. Like the true disciple of a true master, Pujya Maharaj Shri masterfully quotes from scriptures of different religions that have the ability to satisfy even the most discerning of knowledge seekers. He also reveals the simple and straightforward way of God-realization which can be practiced by anyone. Another special feature about his lectures is that he establishes every spiritual truth through scriptural quotations, irrefutable logic and humorous real-life illustrations. His wisdom filled anecdotes, humorous stories and clarity has the audience both enthralled and entertained for the entire duration of his lecture! Pujya Maharaj Shri’s warmth and humility touch all those who have the fortune to have his association. In fact, his very presence radiates Grace and Bliss.
 Pujya Maharaj Shri is a Great Philosopher – a great thinker. Science is not the end for him. Science can only create a better world bereft of poverty, illness and unfair disparities. He thinks beyond science. He creates a world of universal oneness – integrated with religion, science and art. He is the ‘confluence’ in which many streams converge and reflect an individual’s quest for meaning.

Pujya Maharaj Shri is a honorable member of the Vishva Hindu Prishad. Maharaj Shri was honored by Chief guest of Rashtriya Savayam Sevak Sangh (R.S.S.) many times.

 Pujya Maharaj Shri’s aims at creating men of wisdom, science, art and religion. He believes – a realized wise human being only can form a beautiful heavenly world. He leads his disciples to the path of peace and salvation, weaning them away from worldly delusions. He links spirituality with social responsibility and world peace. Pujya Maharaj Shri has made people more responsible towards others to make the world a place where all can live together peacefully and where strife, tension, evil, inequality, intolerance do not exist. For him, universe is a complete family.

Pujya Maharaj Shri seems unaffected by this incredible list of accomplishments and remains a pious child of God, owning nothing, draped in saffron robes, living a life of true renunciation. His days in Haridwar are spent offering service to those around him. Thousands travel from America, Europe and England as well as from all over India, simply to sit in his presence, to receive his”darshan.”To them, the journey is an inconsequential price to pay for the priceless gift of his satsang.

                                        Millions of seekers / devotees are doing spiritual practice under the divine guidance of Pujya Maharaj Shri the world over. They are finding themselves more energetic and spiritually they are feeling enlightened.
Pujya Maharaj Shri took Samadhi on 7th May 2013.
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