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शुक्रवार, जून 21, 2013

बाढ़ भी एक उत्पाद है...?

सुश्री शैफ़ाली पाण्डे
                 केदारनाथ आपदा पर  न्यू मीडिया के ब्लागिंग वाले भाग के महारथी  श्री अनूप शुक्ला ने अपने ब्लाग फ़ुरसतिया”  पर जो लिखा उसे चैनल के  चैनल गुरु अपने चेलों को बाढ़ की रिपोर्टिंग के तरीके सिखा रहे हैं. वे बता रहे हैं:-"किसी भी अन्य न्यूज की तरह चैनलों के लिये बाढ़ भी एक सूचना है. एक घटना है. एक उत्पाद है. अगर कहीं बाढ़ आती है तो अपन को यह देखना है कि कितने प्रभावी तरीके से इसको कवर करते हैं."-
     अनूप शुक्ला जी आप जानते हैं न –“ खबरिया चैनल्स की अपनी मज़बूरी है. जनता जल्दी खबर चाहती है.  खबर जो सूचना है जो बिकती है.. पोतड़ों.. साबुन... पर्फ़्यूम के मादक विग्यापनों के साथ सब चाहते हैं.. देखना किसी का मरना, किसी का तड़पना,किसी का किसी को गरियाना तो  किसी का गिरना, ऐसा मानते हैं खबरिया चैनल.
                                      एग्रेसिव मीडिया वृत्ति का ये एक उदाहरण है. कुछ हद तक सचाई भी है.. खबरिया चैनल्स इस बारे में एक मत हैं.. कि लोगों को जितना नैगेटिव दिखाओ उतना ही तरक्क़ी होगी..?
                                    मेरे परिचित मित्र कहते हैं- “रात पौने नौ की न्यूज़ का दौर चुक गया है.अब तो दिन भर नैगेटिविटी को विस्तार देतीं खबरें..बताईये इन पर समय क्यों खराब करूं..?”
                                 अभी एक मित्र ने ये कहा है आने वाले दिनों में ऐसा कहने वालों के प्रतिशत में इज़ाफ़ा होना तय है. भाई इन्दीवर का मानना है कि - सच दिखाने की हड़बड़ी में ढेरों झूठ और ग़लतियां.. गलतियां इस लिये भी होतीं हैं -क्योंकि, इनको सबसे तेज़ और सबसे अच्छा साबित करने का ज़ुनून होता है. 
                                                  विश्व में जो भी कुछ होता है उसका ठीकरा सदैव सरकार अथवा ऐसी किसी भी संस्था के सर पर फ़ोड़ना कौन सा न्याय है.अपने देश के लोगों पर बादलों को फ़टवाना किस देश की सरकार को आता है. आप ही बताएं . एक न्यूज़ चैनल अपने संवाददाता की तारीफ़ कर रहा था कि वो 20 .6.13 को सफ़लता पूर्वक उस क्षेत्र तक पहुंचा जहां से तस्वीरें लाइव की जा सकी और दूसरी ओर  रेस्क्यू दल से अपेक्षा की जा रही थी कि सारा काम चटपट निपटाया जावे.वही संवाददाता महोदय पीढित  से यह  पूछ रहे थे-’कोई, सरकारी अधिकारी ने आपसे सम्पर्क किया अबतक....गोया, संवाददाता महोदय,की नज़र में  अधिकारी भगवान है  उफ़्फ़ ये बौनी सोच के साथ अपने चैनल को जनता के बीच पापुलर बनाए रखने के लिये पनाए जाने वाले हथकण्डों को ध्यान से देखिये.. आपको इसका व्यवसायिक पहलू साफ़ नज़र आएगा.
                      सुधि पाठको, किस चैनल ने कितने हैलीकापटर भेजे.. किसने कितना सहयोग किया सामने आ जाएगा सरकार की आलोचना करने का वक़्त नहीं है.. ये आपदा है जो जबलपुर में भी आ सकती है जलन्धर में भी कौन जाने इस लेख को पूरा कर पाता हूं कि नहीं प्राकृतिक आपदा किसी भी रूप में आ सकती है कभी भी कहीं भी..  जो भी हुआ दुखद और दर्दनाक था.प्राकृतिक आपदा के लिये दोषी की तलाश  कोई बुद्धिमानी का काम नहीं. बल्कि भावातिरेक का परिणाम साथ ही साथ व्यापारिक बुद्धि का प्रयोग. 


      

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