यह कथन पूर्ण सत्य इस कारण से नहीं माना जा सकता क्योंकि गाँधी दौर आज से अलग था ।
मेरे एक मित्र ने सवाल उठाया था कि - "क्या,लोकतंत्र के मायने बदलने लगे हैं..?"
जनता विश्वास खो चुकी है.. सचाई को झुकना होता है. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां कोई भी अंतरात्मा की आवाज़ पर हाथ उठाने से क़तराता है.तो अंतरात्माएं घबराई हुईं हैं..?
मेरे एक मित्र ने सवाल उठाया था कि - "क्या,लोकतंत्र के मायने बदलने लगे हैं..?"
जनता विश्वास खो चुकी है.. सचाई को झुकना होता है. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां कोई भी अंतरात्मा की आवाज़ पर हाथ उठाने से क़तराता है.तो अंतरात्माएं घबराई हुईं हैं..?
इसके उत्तर में कहूंगा आप लोग बस एकाध पंचायती-मीटिंग में हो आइये सब समझ जाएंगें. आप.जी लोकतंत्र का
मायना ही नहीं पूरा स्वरूप बदल ही गया है.. इस कारण अब सियासी आईकान खोजे नहीं मिलते . सब के हाथों मे, घण्टियां हैं पर "बिल्ली के गले में घंटी कौन
बांधे..?" इस तरह की विवषताओं की बेढ़ियों जकड़ा
आम-आदमी उसके पीछे है जिसके हाथ में घंटी है और वो बिल्ली के गले में घंटी बाधने
वाले को तलाश रहा है.
अगर स्वप्न में भी कोई ऐसा
व्यक्तित्व नज़र आ जाता है जो बिल्ली के गले में घंटी बांधने में का सामर्थ्य रखता हो तो उसी आभासी चेहरे की तरफ़ भाग रहा नज़र आता है समूह ... अन्ना के आव्हान पर स्थिति यही थी . लोग ये देखे बिना कि अन्ना के आसपास का पर्यावरण कैसा है टूट पड़े
ऐसे में भय था कि आंदोलन के मूल्यों की रक्षा करना बहुत कठिन हो जाता है.
ऐसे में भय था कि आंदोलन के मूल्यों की रक्षा करना बहुत कठिन हो जाता है.
एस एम एस पर जारी अन्ना के
निर्देश आपकी नज़र अवश्य गई होगी. मेरी नज़र में सांसद के निवास पर जहां
सांसद व्यक्तिगत-स्वतंत्रता के साथ निवास रत है पर धरना देना किसी के व्यक्तिगत-स्वतंत्रता के अधिकार में बाधा का उदाहरण है.ऐसा तरीक़ा गांधियन नहीं था . इसके बज़ाए
आग्रह युक्त ख़त सांसदों को सौंपा जा सकता था.. अगर ऐसी घटनाएं होतीं रहेंगी तो तय
है "तुषार गांधी" की बात की पुष्टि होती चली जाएगी. मुझे अन्ना ने
आकर्षित किया है वे वाक़ई बहुत सटीक बात कह रहें हैं समय चाहता भी यही है.
भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिये समवेत होना सिखा दिया अन्ना ने.
अन्ना के आंदोलन का एक
पहलू यह भी उभर के आ आया कि लोग
"भ्रष्टाचार से निज़ात पाने खुद के भ्रष्ट आचरणों से निज़ात पाने के लिये कोई
कसम नहीं ले रहे थे केवल संस्थागत
भ्रष्टाचार का ही स्कैच जारी करते नज़र आ
रहे थे .
लोग स्वयम
के सुख लिये जितना भ्रष्ट आचरण करतें हैं उस बात का चिंतन भी ज़रूरी है. जिसका इस
आंदोलन में सर्वथा अभाव देखा जा रहा था .यानी दूसरे का भ्रष्ट आचरण रोको खुद पर मौन रहो . देखना होगा
कितने लोग अपना पारिश्रमिक चैक से या नक़द लेते हैं मेरा संकेत साफ़ है मेरे एक
आलेख में ऐसे व्यक्तित्व के बारे में मैं लिख चुका हूं. साथ ही ऐसे कितने लोग
होंगे जिनने बिजली की चोरी नहीं की है., ऐसे कितने लोग हैं
जो अपने संस्थान का इंटरनेट तथा स्टेशनरी व्यक्तिगत कार्यों के लिये प्रयोग
में लातें हैं. ऐसे कितने लोग हैं जो अपनी आय छिपाते हैं. अन्ना जी सच ऐसे लोग भी आपकी भीड़ में थे. सबसे पहला काम व्यक्तिगत-आचरण में सुधार की बात
सिखाना आपका प्राथमिक दायित्व था. यही मेरा सुझाव है उनके लिये है जो सफ़ेद टोपी
लगा के कह रहे थे कि –“ मैं अन्ना हूं मैं भी अन्ना हूं..!!
स्मरण हो कि मैने अपने एक लेख में कहा था कि एक लेखक के रूप में मेरी भावनाएं मैं पेश
कर रहा हूं ताक़ि आपके संकल्प पूरे हों और हमारे सपने..!! मैं आंदोलन की वैचारिक
पृष्ट भूमि से प्रभावित हूं पर किसी फ़ंतासी का शिकार नहीं हूं.
जिस बात का डर था सबको वही हुआ कि अब अन्ना हाशिये पर हैं.......?