21.2.13

अधमुच्छड़ ज़ेलर जो आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.


175643_Chesapeake Bay Perfect Crab Cakes                     कई वर्षों से हमारी समझ में ये बात क्यों न आ रही है कि दुनिया बदल रही है. हम हैं कि अपने आप को एक ऐसी कमरिया से ढांप लिये है जिस पर कोई दूजा रंग चढ़ता ही नहीं. जब जब हमने समयानुसार खुद को बदलने की कोशिश की है या तो लोग   हँस दिये यानी हम खुद मिसफ़िट हैं बदलाव के लिये .   
शोले वाले अधमुच्छड़ज़ेलर और उनका  डायलाग याद है न ... "हम अंग्रेजों  के ज़माने के जेलर हैं "
                       अधमुच्छड़  ज़ेलर, आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.  सचाई यही है मित्रो, स्वयं को न बदलने वालों के साथ निर्वात (वैक्यूम) ही  रहता है. 
                             इस दृश्य के कल्पनाकार एवम  लेखक की मंशा जो भी हो मुझे तो साफ़ तौर यह डायलाग आज़ भी किसी भी भौंथरे व्यक्तित्व को देखते आप हम दुहराया करते हैं. 
     आज़ भी आप हम असरानी साहब पर हँस  देते हैं. हँसिये सलीम जावेद  ने बड़ी समझदारी और चतुराई  से कलम का प्रयोग किया  ( जो 90 % दर्शकों के श्रवण- ज़ायके से वे वाक़िफ़ थे ) और असरानी साहब से कहलवाया. 
   न न आप गलत सोच रहे हैं  अधमुच्छड़  ज़ेलर की खिल्ली उड़ा रहा हूं !! न भई न मैं तो ये बता रहें हैं असली सुदृढ़ व्यक्तियों  का आज़कल टोटा पड़ गया है . सारे चेहरे नक़ली नक़ली से नज़र आते हैं. बाह्य पर्यावरण के कृत्रिम बदलावों का परिणाम इतना गहरा असर छोड़ रहा है कि आपको ठीक से पहचान नहीं पा रहा होगा कोई. जिसे देखो परिवर्तित रूप में मिलेगा. कल हमारे घर के कर्मकांडी संस्कार कराने वाला पंडित जब साउथ एवेन्यू मॉल में मिला अव्वल तो मै चीन्ह न पाया जब उसे पहचाना तो वो  मुझसे सुरक्षित दूरी बनाते हुए निकल गया हां  उसकी तरफ़ से शुद्ध आधुनिक स्टाइलिश अभिवादन अवश्य आया मुझ तक . 
     हम सब पंडिज्जी की तरह के ही तो हैं सामान्यत: एक आभासी एहसास के पीछे भागने वाले सर्च इंजन बन चुके हैं .हमारी सोच मौलिक नहीं रह गई मौलिक चिंतन की खिड़कियां बंद हो चुकीं हैं. अब तो हम कुछेक नाम याद रख लेते हैं इतना ही नहीं जलियांवाला बाग के बारे में हमारी पौध तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के आने से जान सकी .यूं  तो इस अति आधुनिक समाज की कमसिन पौध खूब जानती है कि किस स्मार्ट फ़ोन की कीमत क्या है, किस बाडी स्प्रे से विपरीत लिंग आकर्षित होगा या होगी, छोटे कदम रखने के मायने क्या है.मां बाप को एहसास भी न होगा कि  रोडीज़ में कैसी अश्लील बात कही थी उस लड़की ने जिसे म्यूट किया.  अब  आप बताएं आप सरकार पुलिस, व्यवस्था, भारत राजनीति को कोसते ही रहेंगे या एक बार अधमुच्छड़  ज़ेलर बन के बच्चों पर पैनी नज़र रखेंगे. मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा करेगा हवा में लिख रहा हूं.. शायद एकाध कोई तो होगा जो जो समझेगा इस मिसफ़िट से लगने वाले एहसास को.
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18.2.13

अमिताभ बच्चन पर आरोप है कि उनने स्तर मैंटेन नहीं किया ..?

175643_Chesapeake Bay Perfect Crab Cakesबीमार हूं सोचा आराम करते  करते सदी के महानायक यानी  अमिता-अच्चन- और रुखसाना सुल्ताना की बिटिया अमृता सिंह  अभीनीत फ़िल्म देख डालूं जी हां पड़े पड़े  मैने फ़िलम देखी  बादल-मोती वाली फ़िलम देखी नाम याद आया न हां वही 1985 में जिसे मनमोहन देसाई ने बनाई थी    मर्द    जिसको दर्द नहीं होता ..बादल यानी सफ़ेद घोड़ा जो अमिताभ को अनाथाश्रम से लेकर भागता है वही अमिताभ जब जवान यानी बीसपच्चीस बरस का होने तक युवा  ही पाया . 
          मित्रो हिंदी फ़िल्मो  को आस्कर में इसी वज़ह से पुरस्कार देना चाहिये.. पल पल पर ग़लतियां करने वाली फ़िल्में.. श्रेणी में  सदी का महानायक कहे जाने  का दर्ज़ा अमिताभ बच्चन जी को ऐसी ही फ़िल्मों के ज़रिये मिला. 
OEM parts 120x240     उस दौर की फ़िल्में  ऐसी ही ग़लतियों से अटी पड़ीं हुआ करतीं थीं. भोले भाले दर्शकों की जेब से पैसे निकलवाने और टाकीज़ों में चिल्लर फ़िंकवाने अथवा  दर्शकों की तालियां बजवाने के गुंताड़े में लगे ऐसे निर्माताऒं ने  भारत को कुछ दिया होगा.आप सबकी तरह ही  मैं बेशक अमिताभ की अभिनय क्षमता फ़ैन हूं.. अदभुत सम्मोहन है उनमें आज़ भी पर आनंद 1971   मिली (1975 )अदालत (1977) मंज़िल  (1979) जैसी फ़िल्मों के बाद  फ़ूहड़ एवम बेतुकी फ़िल्मों में अभिनय कर अमिताभ से पैसों के लिये अभिनय करवाया ऐसा मेरा निजी विचार है. अमिताभ पर यह आरोप गलत नहीं कि एक समय ऐसा आया था जबकि उन्हौंने  फ़िल्म चयन में  उनने  अपना स्तर मैंटेंन नहीं रखा. जबकि आमिर खान जो स्वयम निर्माता निर्देशक भी हैं उनका एक स्तर है. वो जो भी विषय उठाते हैं.   अनूठा होता है. ज़रूरी होता है. 
                                 यही एक बात अमिताभ को महानायक के खिताब से दूर करतें हैं. निर्माता-निर्देशकों को पैसों से मतलब अमिताभ जी जैसे प्रतिभावान क्षमता वान कलाकारों की अपनी ज़रूरतें होतीं हैं. कुल मिला कर शो-बिज़नेस के लिये हीरो की लोकप्रियता ( राजेश खन्ना दिलीप कुमार और आज़ आज़ के दौर में सलमान खान ) चाहिये. विषय तो सामान्य रूप से निर्माता निर्देशकों के पास होते नहीं पस किसी फ़ार्मूले पर फ़िल बनाया करते हैं.. वही फ़ूहड़ हास्य देह दर्शन, अथवा वर्जित विषय पर फ़िल्म बनाना  इनकी आदत सी हो चुकी है. वैसे ये मेरे अपने विचार है आप असहमत भी हो सकते हैं मुझे जो कहना था कह दिया.  


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16.2.13

महिला सशक्तिकरण सह सुशासन सम्मेलन में शिवराज सिंह ने खोला पिटारा

·                     प्रदेश के हर विकास खंड में अंग्रेजी माध्यम की स्कूल होंगे.
·                     विदेश जाने वाले विद्यार्थियों को 15 लाख की राशि ब्याज मुक्त लोन
·                     एक बेटी वाले परिवार को पेंशन मिलेगी
·                     डिंडोरी शहपुरा नगरीय क्षेत्र की विकास गतिविधियों के लिये 11 करोड़ की राशि दी   
         जावेगी
·                     महिला बाल विकास विभाग अंतर्गत शहपुरा एवम डिंडोरी में बहुउद्देश्यीय भवन बनेंगे.
·                     वाहन-चालन प्रशिक्षण,मोर डुबुलिया कार्यक्रम नवाचारों की मिक्तकंठ सराहना की
बेटी-बचाओ अभियान एवम बाल विवाह रोकथाम को गति देने किया आह्वान 

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि जिन दम्पतियों के केवल बेटी हैं उन्हें वृद्धावस्था पेंशन दिये जाने की योजना प्रारंभ की जायेगी। मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में 65 साल से अधिक उम्र के वृद्ध की देखभाल के लिए एक व्यक्ति साथ में जायेगा उसका व्यय भी म.प्र. शासन द्वारा वहन किया जायेगा। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज डिण्डौरी जिले के शहपुरा में महिला सशक्तिकरण सह सुशासन सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने शहपुरा नगर पंचायत के विभिन्न वार्डो में सीमेन्ट क्रांकीट रोड और नाली निर्माण के लिए 2 करोड़ रूपये और डिण्डौरी नगर पंचायत में विकास कार्यो के लिए 9 करोड़ रूपये मुख्यमंत्री अधोसंरचना विकास योजना के तहत स्वीकृत किये जाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि शहपुरा में पंजीयन कार्यालय स्थापना, की जायेगी। शहपुरा महाविद्यालय में विज्ञान एवं कामर्स की कक्षायें, शहपुरा में लायब्रेरी, डिण्डौरी जिले में 4 राजस्व मोबाइल कोर्ट, महिला बाल विकास विभाग के बहुउद्देशीय भवन निर्माण की घोषणा की. साथ ही गाड़ासरई में महाविद्यालय प्रारंभ किये जाने की मांग पूरी की.   मुख्यमंत्री ने शहपुरा पॅहुचने पर जिले के नवाचार मोरे डुबलिया के अंतर्गत महिला सशक्तिकरण का दीप प्रज्जवलित कर 21 गर्भवती महिलाओं की गोदभराई कार्यक्रम में सम्मिलित हुये तथा प्रोजेक्ट परिवर्तन के तहत वाहन चालन प्रशिक्षण प्राप्त 40 बालिकाओं एवं महिलाओं को वाहन चालक लायसेंस के साथ शासन की विभिन्न विभागीय योजनाओं से लाभान्वित हितग्राहियों को अनुदान राशि के चैक एवं सामग्री का वितरण किया सम्मेलन को संबोधित करते हुये मुख्यमंत्री श्री सिंह ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं को सशक्त बनाकर राजनीति की दिशा बदलने की कोशिश है। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को जनता के सेवक के रूप में कार्य करना चाहिए। विकास को आन्दोलन बनाना, जनता के कल्याण के लिए कार्य करना और सभी के सहयोग से गरीबी मिटाना सरकार का संकल्प है। मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश में अधिकांश वन में बसे लोगों को वनाधिकार पत्र दिये जा चुके हैं और अभी भी वन में काबिज व्यक्तियों को हथया नहीं जायेगा बल्कि उनके वनाधिकार पत्र बनाये जायेगे। लोक तंत्र में विकास पंक्ति में खड़े अन्तिम व्यक्ति का विकास प्रदेश का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि गरीब व्यक्ति के आवास की समस्या हल होगी और जो गरीब आवास भूमि में काबिज है उन्हें आवास से वंचित नहीं किया जायेगा बल्कि पट्टे जारी किये जायेंगे। उन्होंने निःशुल्क पाठ्य-पुस्तक वितरण, गणवेश, निःशुल्क साइकिल वितरण जैसी योजनाओं की जानकारी देते हुये कहा कि प्रत्येक अनुसूचित जन जाति विकासखंडों में एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल खोला जायेगा। इसी प्रकार प्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय खोलकर इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में कराई जायेगी। विदेश में जाकर शिक्षा ग्रहण करने वाले बेटे-बेटी को 15 लाख देकर पढ़ाया जायेगा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के लिए बैक ऋण की गारंटी सरकार लेगी। विद्यार्थी की नौकरी लगने के 6 माह बाद उसे मूलधन भी किश्त में लौटाने की सुविधा दी जायेगी तथा ब्याज भी राज्य सरकार भरेगी। इसी प्रकार गरीबों को अपना काम-धंधा शुरू करने के लिए 50 हजार तक के बैंक ऋण की गारंटी मुख्यमंत्री ग्राम स्वरोजगार योजना के स्वरोजगार योजना के तहत सरकार लेगी और 5 वर्ष तक ब्याज भी देगी। 
    मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि किसान पंचायत में तय किया गया है कि किसान का बिजली बिल हर महीने नहीं आयेगा। बल्कि किसान को एक हार्स पावर बिजली के 12 सौ रूपये वार्षिक जमा करने होंगे शेष राशि शासन देगा। किसान के पिछले बिल का बकाया सरचार्च भी माफ होगा और जो मूल बचेगा उसकी भी आधी राशि सरकार देगी। शेष राशि किसान को आसान किश्तों में भुगतान करना होगी। किसान की उपज खरीदने के लिए गेहूँ का समर्थन मूल्य 15 सौ रूपये किया जायेगा। कार्यक्रम को  राज्य सभा सदस्य सांसद श्री फगगन सिंह कुलस्ते ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री श्री देवसिंह सैयाम सहित जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक एवं बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने वनवासी सेवा मंडल की स्मारिका का विमोचन भी किया ।  कलेक्टर श्री मदन कुमार, एस.पी.श्री आर. के. अरूसिया, केनेतृत्व में प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्थाएं इस कार्यक्रम की विशेषता रही .ए.डी.एम. श्री अवधेश प्रताप सिंह, एस.डी.एम. डिंडोरी श्री परस्ते,  एस.डी.एम.शहपुरा श्री केरकेट्टा, महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी "रिछारिया" श्री एस. सी.करवड़े,गिरीश बिल्लोरे, मनमोहन कुशराम, उदयवती तेक़ाम, के अलावा समस्त विभाग के अधिकारी कर्मचारीयों ने मिलकर इस कार्यक्रम को प्रभाव शाली बनाया. डी.आई.जी. जबलपुर संभाग, तथा संयुक्त संचालक बाल विकास सेवाएं, श्री एस. सी चौबे, सम्भागीय उप संचालक श्रीमति शालिनी तिवारी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही है. दिन भर चले इस आयोजन के प्रारंभ में महिलाओं के लिये विभिन्न विभागों द्वारा चलाये जा रहे क्ल्याणकारी कार्यक्रमों की जानकारी दी गई. कार्यक्रम का संचालन सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्री श्रोत्रीय एवम गिरीश बिल्लोरे बाल विकास परियोजना अधिकारी ने किया गया.

13.2.13

उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी .


             सच बताएं आज का वैलेंटाइन हमको सूट नहीं किया अखबार में राशिफ़ल वाले कालम में यही तो लिखा था . सुबह सवेरे हमारी शरीक़े-हयात ने हमसे कहा उपर गमलों से कुछ फ़ूल तोड़ लाएं . राजीव तनेजा जी की तरह हमने वी आर द बेस्ट कपल बने रहने के लिये उनकी हरेक बात मानने की कसम खाई थी. सो बस छत पर जा पहुंचे. जहां हमारे  बाबूजी ने बहुत खूबसूरत बगीचा लगवाया है.  हमने उसी बगीचे से खूब सारे फ़ूल तोड़े सीढ़ीयों से उतर ही रहे थे कि बाजू वाले घर  में  वाली गुजराती परिवार की  सलोनी भाभी ने देखा बोली:- अरे वाह, इतने गुलाब..किस लिये ले जा रहें हैं ?
 जी, पूजा के लिये ले जा रहा हूं...?
वो हमारे भोंदूपने पे ठिलठिला के हंस दीं बोली :- भाई साब, बड़े भोले हो या हमको मूर्ख समझते हो. 
हम:-"न भाभी सच पूजा के लिये ही हैं ! यक़ीन कीजिये " 
हां हां पूजा के लिये ही तो ले जाओगे कोई राखी के लिये थोड़े न ले जाओगे ...
अर्र भाभी सा’ब, आप भी हमारी श्रीमति जी पूजा कर रहीं हैं उनके लिये ही लाया हूं. 
ओह समझी मुझे लगा कि आप प्यारी सी भाभी को फ़ूल देने के बज़ाय किसी पूजा को .... मुहल्ले में पूजाओं की कमीं है क्या.. ?
हम - अरे भाभी जी, हम ऐसे नहीं हैं.. जी.. 
सलोनी भाभी: अच्छा..? तो ठीक है एक मुझे भी दे दीजिये ..हंसते हुए बोलीं  पूजा के लिये 
फ़िर लौट के आती हूं.. दीजिये न ज़ल्दी दीजिये  हमने जैसे ही उनको गुलाब पक़ड़ाया वे फ़ुर्ती में निकल पड़ीं   इसी बीच हमारी बीवी जी दरवाजे तक आ चुकीं थीं  उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी . और फ़िर क्या दिन भर जारी जंग. भगवान का आभारी हूं कि  श्रीमती जी को  सही समय पर बेलन न मिला वर्ना वेलेनटाइन डे को बेलन ट्राईंग डे में तब्दील होने में देर न होती. सुबह की झगड़ा रात का पानी देर तक चलता है. हमारी समस्या भी  तब जाकर हल हुई  जब सलोनी भाभी ये बताने घर आई की हमारी ननद पूजा ने आपके घर का गुलाब अमय को दे दिया दुआ कीजिये दौनों की जोड़ी पक्की हो जाए आज़ वैलेंटाइन डे है न 
 मैं भाई साब से बाबूजी की बगिया का  गुलाब ले गई थी पूजा के लिये.पूजा ने अमय को दिया. 
श्रीमति जी का क्रोध शांत हुआ हम ठहरे कवि किसी का एहसान पास नहीं रखते एक कविता भेंट कर दी उनको

प्रीत का पावन महीनाऔर तुम्हारा व्यस्त रहनाबताओ प्रिय और कब तकपड़ेगा मुझको ये सहना ?

चेतना में तुम ही तुम हो
संवेदना में भी तो तुम हो !
तुम पहनो या न पहनो
तुम्हारी मुस्कान गहना !!

लबों का थोड़ा सा खुलना
पलक का हौले से गिरना
समझ लेता हूं प्रिया तुम
चाहती हो क्या है कहना !!

मदालस हैं स्वर तुम्हारे
सहज हो  जब जब उचारे !
तुम्हारी सखियां हैं चंचल
उनसे तुम कुछ भी न कहना

10.2.13

एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का..

        जाने कितने चूल्हे जलाता है पान .. कटक.. कलकतिया..बंगला. सोहागपुरी.. नागपुरी.बनारसी पानकिमाम.. रत्ना तीन सौ भुनी सुपारी और रगड़े वाला पान.. ऊपर गोरी का मकान नीचे पान की दुकान वाला पान जी हां मैं उसी पान की बात कर रहा हूं   जो नये पुराने रोजिया मिलने वाले दोस्तों को श्याम टाकीज़करम चंद चौकमालवीय चौक अधारताल घमापुररांझीइनकमटेक्स आफ़िस के सामने रसल-चौकप्रभू-वंदना टाकीज़ गोरखपुरग्वारीघाटयानी हर खास - ओ- आम ज़गह पर मिलता है. जबलपुर की शान पहचान है पान..!! 
एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का.. जबलपुर  वाले रात आठ के बाद पान की दूक़ान पर अक्सर यही तो कहते हैं.. बड्डा हम जेई सुन के बड़े हुए और अब पान की दूकान में जाके जेई बोलते  हैं
     कॉलेज़ के ज़माने से  हम पान चबाने का शौक रखते हैं. चोरी चकारी से हमने पान में रगड़ा खाना शुरु किया. डी.एन.जैन कालेज़ में पढ़ने के दौर से अब तक  हमने जाने कितने पान चबाए   हैं हमें तो याद नहीं.. याद करके भी क्या करेंगें. हम को  तो यह भी याद नहीं कि  पान भंडारों पर हमारी  कितने पानों की उधारी बाक़ी है. वे भी हमको टोकते नहीं  काहे टोकेंगें टोके होते तो हम जाते उधर नहीं न बात जेई तो है कि पान वाला किसी को टोकता नहीं. उस दौर में जब हम कम उम्र वाले नौ सिखिया पान प्रेमी जबलपुरिया बने तब पान के रेट थे  चौअन्नी में कटक, पचास का बनारसी सोहागपुरीपचहत्तर का नागपुरी मिलता था. जैसे ही एक रुपये का हुआ तो बज़ट बिगड़ना स्वाभाविक था.बिगड़ते बजट में उधारी होना भी स्वभाविक था और कभी नक़द कभी उधारी में पान की आपूर्ति जारी रही. खैर पान में औषध गुण  के बारे में पढ़ा-सुना था सो हम पान खाते रहे किंतु आगे कब  रगड़ा  यानि   तंबाखू  इसमें शामिल हो गया हमें ये भी याद नहीं. कई दिनों यानी साल डेढ़ साल तक चोरी छिपे तम्बाकू खाते रहे. इसकी भनक  एक दिन  मां को लगी.  तम्बाखू खाने का लायसेंस हम तब हासिल कर पाए जब एक दिन तम्बाखू सेवन के सारे प्रूफ़ सहित बड़ी दीदी ने हमको रंगे हाथ तम्बाखू रगड़ते  धर दबोचा  खूब   लानत मलानत हुई हमारी. परंतु फ़िर उम्र का लिहाज़ करते हुए  घर की परम्परा अनुसार हमको भी  तम्बाखू सेवन का लायसेंस अघोषित रूप से इस सलाह के साथ मिला कि  ”  बहुत  कम खाना..समझे !
            अब मालवीय चौक वाले पान प्रदाता हमको मीठा पत्ता, हल्का रगड़ा, लौंग लायची बिना पिपर मिंट वाला पान बिना कहे पेश करने लगे. पान खाने के लिये हमने भी कई जगह नियत कर लीं थी विजेता पान भंडार, मालवीय चौक की चुनिंदा दुक़ाने, आशीर्वाद मार्केट के सामने नाले पर बनी दुक़ानों में से नाम याद नहीं शायद संजू की दुक़ान, मछरहाई वाले हिलडुल भैया,रेल्वे स्टेशन, डिलाइटयानी इन जगहों पर हमारी पसंद का पान उपलब्ध हो जाता था. कईयों को तो आज़ भी याद है. याददाश्त के मामले में जबलपुर के पान वालों का ज़वाब नहीं. आप हम भले सत्रह से उन्नीस तक के पहाड़े आज तक याद न कर पाए हों. पर उनको सब याद  रहता है
     शहर के नामी गिरामियों को ब्रांडेड पान खाने का शौक है.  नामचीन लोग जब अपने चिलमचियों को पान लाने का आदेश देते तो कुछ यूं कहते 
काय..रे,
बोलो भैय्या
जा मुन्ना कने जाके बोलना भैया के पान
      कौन भैया ! कैसा पान खाते हैं भैया !! इस चिलमची के आक़ा की च्वाइस  मुन्ना को मालूम है. नागपत्ती के व्यापारी मुन्ना या शंकर मेधावी होने पर हमको कोई शक नहीं वे भेजे गये चिलमची को एक झलक देखते और समझ जाते कि ये डा. सुधीर तिवारी का नौकर है इसको किस प्रकार का पान देना है. कितने पान भेजना है. चिलमची भी मुट्ठी के नोट बिना गिने  दूकान में रखता पान वाले भैया भी बिना गिने उसे गल्ले में समाहित कर देते यानी विश्वास की अनूठी मिसाल .. पूरा ट्रांजक्शन बिना किसी शक-ओ-शुबहा के ईमानदारी से भरा होता.   जब नौकरी शुदा हुए तो लखनऊ ट्रेनिंग कालेज से छुट्टी वाले दिन बारादरी जाकर मगही पान खाते थे पूरा हफ़्ता इस मौके का इंतज़ार किया करते थे हम गोविंद सिंह शाक्या जी को तो मगही पान का जोड़ा इत्ता भाता था के दो दिन की खुराक संग साथ धर लाते थे । 
पान वाला :- काय तुमने टी वी ले लओ ?
हम :- सबसे पहले और तुमने ?
पान वाला :- लेना है दो !
हम :- काय..! टीवी और दो पगला गए का ?
पान वाला :- पगलाओगे आप सब देखना ..
              तीसरे दिन भाई ने बताया कि उसने घर में भी एक टीवी लगवा लिया . दूकान वाली टी वी रंगीन हो तो उसपे रंगीन स्क्रीन अलग से फिट थी. मस्त दूरदर्शन दिखाता जिसके घर में टीवी न थे वो देर रात तक सुपर मार्केट के सामने पान चबाते टीवी देखते थे . सलमा सुलतान, मंजरी सहाय, पेन खोंसने वाले शम्मी नारंग तक अवश्य देखते . तब रिमोट न था सो पान वाले भैया की टीवी का बटन कत्थे से कत्थई हो गया था . दोनों  टीवी का पैसा पान की अनायास बढ़ी बिक्री से तीन चार महीने में वापस . उसकी देखा देखी कई सारे पान शाप पे टीवी लग गए थे .
          पान की दूकान पे अब सियासी और देश विदेश में हो रही तरक्की और  संचार योजनाओं पर चर्चा आम हो गई थीं.
         दूरदर्शन पान की दूकान और ग्राहक तीनों के मध्य  एक दीर्घकालिक नाता स्थापित हो गया. कुल मिला के जबलपुरिया बदलाव के इस संस्मरण को लिख कर मन बेहद भावुक इस लिए हो रहा है कि अब न तो हम मालवीय चौक जा पाते न सुपर मार्केट ..... नेट पे आप सबको संस्मरण सुनाने लायक रह गए है .......

8.2.13

पता नहीं बांछैं होतीं कहां हैं पर खिल ज़रूर जातीं हैं

पुरातत्व विषाधारित ब्लाग लेखक ललित शर्मा की
प्रसन्नता का अर्थ मूंछों  के विस्तार से झलकी तो लगा कि
बांछैं यानी मूंछ 


हर कोई  कहता फ़िरता है भई क्या बात है मज़ा आ गया उसे उसने सुना और उसकी बांछैं खिल गईं.
       "बांछैं" शब्द का अर्थ पूछियेगा तो अच्छे अच्छों के होश उड़ जाते हैं . अर्थ तो हमको भी नहीं मालूम रागदरबारी  का एक  सँवाद जो हमारे तक हमारे श्री लाल शुक्ल जी ने  व्हाया  मित्र मनीष शर्मा के भेजा की " बाछैं शरीर के किस भाग में पाई जातीं हैं. पर इस बात से सहमत नज़र आते हैं कि बाछैं खिलती अवश्य हैं.  यानी कि जब वो नहीं जानते तो किसी और के जानने का सवाल ही नहीं खड़ा होता ". 

इसका अर्थ तपासने जब हम गूगल बाबा के पास गये तो हिंदी में लिख के सर्च करने पर गूगल बाबा ने हमको ठैंगा दिखा दिया. तब हमने प्रसन्नता के लिये इमेज सर्च  की तो पाया कि पुरातत्व विषाधारित ब्लाग लेखक ललित शर्मा  किन्ही महाशय के साथ हंस रहें हैं. तो हम समझ गये कि बांछौं का अर्थ मूंछ होता है . किंतु दूसरे ही छण याद आया कि पल्लवी मैडम एक बार  कह रहीं थीं कि खबर सुन कर हम सारी महिलाओं की बांछैं खिलनी हीं थीं . तो झट हमने खुद की अग्यानता पर माथा पीटा कि उनके मूंछ किधर होतीं है ? बताओ भला .. सही है न.
      तो फ़िर कहां होतीं हैं बाछैं जो खिलतीं हैं. तभी याद आया  कि मकान मालिकिन का कुत्ता हमारे भयवश उसको दुलारने पर दुम हिला रहा था और उसके कान भी खड़े हो रहे थे . कान खड़े होना बांछैं खिलने से इतर मामला निकला. हैरान हूं मेरे फ़ेसबुकिया दोस्तों में से एक और शर्मा जी बोले - बाछैं यानी बांहैं ही बांछैं हैंमुझे लगता है....बाछैं शारीर के दोनों ओर पाई जाती है.जिन्हें हम बाहे भी कहते है. और फ़िर सवाल दागा - क्या यह सही ?  तो राजीव तनेजा साहब फ़रमा रहे हैं कि - खुशी के मारे चेहरे पर पड़ने वाली लकीरें .. अब बताइये कभी लक़ीरें भी खिलती हैं.. 
 तो फ़िर कहां होतीं हैं बाछैं जो खिलतीं हैं.
        चलिये छोड़िये भी बांछैं जहां भी हों उससे क्या लेना देना . ..  प्रसन्नता की सूचना देने खिलतीं हैं जिसका सीधा सीधा ताल्लुक आपकी भाव भंगिमा आवर आंतरिक उछाह  से है  और उससे भी  आगे प्रसन्नता की नातेदारी  हमारे स्वास्थ्य से  है. प्रसन्नता आयु-वर्धक  होती है उसके पहले प्रसन्नता  काया को रोग हीन बनाती है. 
                                             प्रसन्नता ईश्वर सानिध्य है. ईश्वर का सानिध्य कौन नहीं चाहेगा. यक़ीनन सभी अपने इर्द गिर्द ईश्वर के अभिरक्षक कवच को महसूस करते हैं. पर खुश कितने लोग रहते हैं इसका आंकलन करने पर पता चलता है कि खुशी के रूप में ईश्वर के सानिध्य का एहसास बहुत ही कम लोग कर पाते हैं कारण यह है कि लोग दूसरों की बाछैं खिलना अब बर्दाश्त नहीं करते. आज़ हर किसी की प्रसन्नता पर ग्रहण लग गया है. एक दौर था कि लोग गांव खेडे़ में, शहरों की गलियों में एक विशाल पारिवारिक भाव के साथ जीते थे. पर अब अंतरंग मित्र भी आपकी प्रसन्नता का सबसे बड़ा दुश्मन है इस बात का एहसास आप कई मर्तबा कर चुके होंगे. मित्रों की बात चली तो अपने कुछ अनुभव से बताना चाहता हूं कि -अक्सर सबसे करीब वाला आपके चेहरे से कब मुस्कुराहट चुरा ले जाए आपको एहसास नहीं हो पाएगा. और अचानक आप अपना सब कुछ खो बैठेंगे. कभी कभी तो बात घोर अवसाद तक ले जा सकती है. इतना अवसाद कि आप आत्महंता भी बन सकते हैं. 
                                                              तनाव देने की प्रवृत्ति वाले लोग अक्सर एक जुमला दुहराते हैं " टेंशन लेने का नईं देने का ..क्या बोला देने का..!!" - जब सारे के सारे लोग इस फ़लसफ़े को अपनातें तो तय है कि आत्म-हत्याओं, अपराधों, अत्याचारों में इज़ाफ़ा ही होगा. क्या आपको  प्रसन्नता ईश्वर सानिध्य नहीं चाहिये वह भी लौकिक जीवन में चाहिये न तो फ़िर प्रसन्न रही मन को अकारण ही प्रसन्न रखिये और जीवन का सफ़ल प्रबंधन कीजिये. क्योंकि तनाव न तो लेने की वस्तु है न देने की ...... बस खोजते रहिये बांछों के खिलने के अर्थ और इस खोजबीन में प्रसन्नता का मार्ग प्रशस्त  कीजिये  हमारे अंतस की यही तो उर्जा है जो जीने का मक़सद बताती है. 

3.2.13

इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत

इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तकाज़ा है बहुत
इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत !
                         बहुत उम्दा कहा है कृष्ण बिहारी नूर ने. एक अदद  बेचारा  दिमाग उस पर बाहरी वाहियाद बातों का दबाव तो ऐसा होना लाज़िमी भी है. आज़ का आदमी फ़ैंटेसी में जी रहा है वो खुद को धर्मराज और दूसरों को चोर मानता है. 
 इस बात को नक़ारना नामुमक़िन है. किसी से किसी को कुछ भी लेना देना न हो फ़िर भी अपेक्षाएं उफ़्फ़ यूं कि गोया आपस में एक दूसरे के बहुत बड़ा लेन-देन बाक़ी है गोया. कल दफ़्तर पहुंचते ही एक बीसेक बरस का नौजवान हमारे कमरे में तांक झांक कर रहा था पर हमें मीटिंग लेता देख वापस जाने लगा.  हमने सोचा इस युवक को हमारी ज़रूरत है सो बस हमने उसे बुला लिया. बिना दुआ सलाम किये लगभग टिर्राते हुए युवक ने सामने  हमारे सामने टेबल के उस पार वाली कुर्सी पर  अपना दक्षिणावर्त्य टिका दिया. हाथ से एक मैगजीन निकाली बिना कुछ कहे हमारे सामने पटक दी.
                 हमने सोचा चलो छोटी सी जगह में  कोई तो है जो मैगजीन लाएगा हमारी अध्ययन वृत्ति के लिये . 
                पहला पन्ना पलटते ही हमें उस मैगज़ीन का पीलापन साफ़ दिखाई देने लगा. युवक  ने  
बताया कि मैगजीन का लोकल करेस्पांडेस है.तो मुझे लगा कि  अगले कुछ पलों में ये मुझसे एड के नाम पर पैसे मांगेगा. हुआ भी ऐसा ही. हम भी पन्ने पलट कर उसे मैगज़ीन के रूप में मान्यता देने की ग़रज़ से उसमें "मैग्जीनिया तत्व" तलाश रहे थे. पर ऐसी पठन-सामग्री  हम खोज न सके   हक़ीकत में उस कथित  मैगज़ीन का हर पन्ना या तो किसी व्यक्ति विशेष की  अकारण तारीफ़ वाला था अथवा किसी को भ्रष्ट साबित कर रहा था. ऐसा लगा कि जिसकी तारीफ़ छपी है उसके जेब से कुछ निकला है जिसकी निंदा छपी उसके जेब से कुछ निकला नहीं. बस इसी की पुष्टि के लिये अचानक हमने उस युवक से पूछा- भई, ये मैगज़ीन है इसमें मैगज़ीन होने जैसी कोई बात नज़र नहीं आ रही है. ? हमारे सवाल पर भाई के तोते फुर्र हो गये. हमसे येन केन प्रकारेण सम्बंध बनाने की ग़रज से युवक पूछता है.. सर, सुना है आप लिखते हैं 
हां, सही सुना. तो
तो आप भी अपने लेख दीजिये ?
हां, मेरे ब्लाग से लिफ़्ट कर लिया करो. अलग से लिखने के लिये नोट लगेंगे, !
युवक बोला- सर, ये तो सम्भव नहीं. 
मैं- तो मैं भी छपास का भूखा नहीं. 
युवक- तो फ़िर सरकारी एड ही दे दिया कीजिये..!
मैं- क्यों, मुझे अधिकार नहीं हैं इसका. 
युवक- तो ये समाचार  देखिये.. कहते हुए उसने एक ऐसा  समाचार दिखाया जो किसी व्यक्ति  के   
दुर्गुणों की गाथा थी. जो युवक द्वारा भेजी गई थी छपी भी थी . 
          पत्रिका क्या मुझे तो पिस्टल नज़र आ रही थी वो क़िताब. दो वर्ना आपकी भी ... ये ही गत होगी. कमज़ोर दिलवाले डर जाते हैं. पर हम ठहरें जबलईपुर वाले हम भी बिंदास वक्तव्य जारी करते रहे 
          दाल गलती  न देख युवक खीज कर मुद्दे पे आया और बोला - तो तीन हज़ार की रसीद काट दूं.. 
मैने लगभग डपट दिया. तय है  उस युवक के लिये बुरा हो चुका हूं .. कल कुछ ज़रूर  होगा जो होगा उसके लिये  मैं ही ज़वाबदार रहूंगा तय है. बात निकली है  तो उसका दूर तलक़ जाना तय है, निकलने दीजिये बात है ही निकलते ही माउथ टू माउथ दूर तलक जावेगी ही. जाना भी चाहिये . ज़रूरी भी है कुछ खास चेहरे बेनाक़ाब करने का जोखिम उठाना ही है मुझे. वर्ना ये सत्यकथा मुझे सोने न देगी . 

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