31.5.10
29.5.10
26.5.10
मज़ाक मज़ाक में एक पोस्ट
ब्लागजगत में समझौतावादी लक्षण दिखाई दे रहे हैं..डी. के. साहब की यह पोस्ट उकसाती नज़र आ रही है हा हा हा .....गोदियाल सा’ब ने बीज बो दिया ...ही...ही....ही....? पी. डी सा’ब अभी हम सब ने [यह शब्द नवीन प्रतिस्थापित है ]सुबह सुबह आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डे जी के स्वास्थ्य की मंगल कामना की है और यह अपेक्षा ............ बात कुछ हज़म नहीं हुई. वैसे इस तरह के आह्वान की ज़रूरत क्यों आन पड़ी पी.डी. सा’ब. सच मानिये कोई भी इस तरह की कल्पना लेकर ब्लागिंग के लिये नहीं आता बस वह आता है लिखने के वास्ते और दिशा तय कर देतें हैं हम लोग जो पहले से मैदान में डटें हैं. ब्लाग पर वानरी हड़्कम्प का न होना चिन्ता का विषय नहीं भले ही मज़ाक में में चिंता व्यक्त की गई हो.
आपकी मज़ाहिया प्रतिटिप्पणी के गहरे अर्थ हैं:-पं.डी.के.शर्मा"वत्स", @सुरेश चिपलूनकर जी,भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ति कुछ असहनीय सी होने लगी है :-) यह टिप्पणी मनुष्य के अंतस में बसे एक सत्य को उज़ागर करती है........
युद्ध की प्रतीक्षा शांति से अधिक की जाती है.हर व्यक्ति इसमें शामिल होता है जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार है :-
रिठेल : "आपने" की जगह हम सबने प्रतिस्थापित किया है आपका कोई फ़ोन नम्बर नहीं है कोई बात नहीं यहीं बता दीजिये डी.के. सा’ब इस पोस्ट को लिंक करने में आपत्ती हो तो अवश्य लिन्क पृथक कर दूं !
आपकी मज़ाहिया प्रतिटिप्पणी के गहरे अर्थ हैं:-पं.डी.के.शर्मा"वत्स", @सुरेश चिपलूनकर जी,भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ति कुछ असहनीय सी होने लगी है :-) यह टिप्पणी मनुष्य के अंतस में बसे एक सत्य को उज़ागर करती है........
युद्ध की प्रतीक्षा शांति से अधिक की जाती है.हर व्यक्ति इसमें शामिल होता है जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार है :-
- वीर:- कुछ लोग शामिल होना चाहते है,और हो भी जाते हम. उनको मैं वीर की श्रेणी में रखने की गुस्ताख़ी कर रहा हूं. इनकी संख्या बहुत नहीं है.
- धीर:- वो जो शामिल नहीं किंतु युद्ध के दु:खद परिणामों को युद्ध की आहट आते ही दूर से अनुमानते हैं. बता भी देते हैं सजग करतें हैं .....इनकी संख्या इक्का-दुक्का ही तो है.
- नीर:- निरंतर युद्ध की कामना में रत व्यक्ति जो सिर्फ दो पक्षों में युद्ध कराना एवं देखना चाहतें हैं ...... फ़िर सामने सामने विजेता के पक्ष में परोक्ष रूप से पराजित के सम्पर्क में रहतें हैं. इन लोगों का प्रतिशत सर्वाधिक है.
रिठेल : "आपने" की जगह हम सबने प्रतिस्थापित किया है आपका कोई फ़ोन नम्बर नहीं है कोई बात नहीं यहीं बता दीजिये डी.के. सा’ब इस पोस्ट को लिंक करने में आपत्ती हो तो अवश्य लिन्क पृथक कर दूं !
24.5.10
आंचल के आंचल का अमिय
ड्राईंग रूम दीवारों दाग बना रही अपनी बेटी को चाक देते वक्त आंचल ने सोचा न था कि अनिमेष उसे अचानक रोक देगा , अनिमेष का मत था कि घर को सुन्दर सज़ा रहने दो आने जाने वाले लोग क्या कहेंगे ?
”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ”
"भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को "
"हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?"
अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था किन्तु वक्त नहीं तनु बिटिया के पेट में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी आंचल !
तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष की मज़बूरी थी सो आज़ उसने अपनी बिटिया को मां के रूप में वक्त देना शुरु कर दिया.
जब वीमेन्स-क्लब-मीटिंग से आंचल जब लौटी तो देखा बिटिया माचिस की तीलियों से A ,B ,C ,D , लिख रही है,
किसने बताया बेटे ?
पप्पा ने
गुड
__________________________________________
समय का चक्र आगे चला चलना ही था . तनु के विकास का चक्र रुका नहीं . चाईल्ड सायकोलाज़ी पर धुआंधार भाषण दे रही आंचल की बेटी तनु अपने लेक्चर में पप्पा के बताये तरीकों का ज़िक्र कर रही थी पूरे भाषण में कहीं भी अपने अवदान का जिक्र न पाकर हताश आंचल के मन की अकुलाहट अनिमेष खूब भली भाँती पढ़ चुके था. सभा के बाद तनु से मिलते ही बोले ''बेटे, माम कितनी खुश है तुम्हारी तरक्की से फिर आंचल के कांधे पर हाथ रखके जोर से बोले :-''वाह, माँ हो तो तुम्हारे जैसी जिसने सब कुछ सिखाया और श्रेय मुझे दिला दिया.'' पिता का यह वाक्य आँचल के अंतस में उतारा झट माम से लिपट गई लोग भी आँचल की और सम्मान से देख रहे थे.
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”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ”
"भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को "
"हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?"
अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था किन्तु वक्त नहीं तनु बिटिया के पेट में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी आंचल !
तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष की मज़बूरी थी सो आज़ उसने अपनी बिटिया को मां के रूप में वक्त देना शुरु कर दिया.
जब वीमेन्स-क्लब-मीटिंग से आंचल जब लौटी तो देखा बिटिया माचिस की तीलियों से A ,B ,C ,D , लिख रही है,
किसने बताया बेटे ?
पप्पा ने
गुड
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समय का चक्र आगे चला चलना ही था . तनु के विकास का चक्र रुका नहीं . चाईल्ड सायकोलाज़ी पर धुआंधार भाषण दे रही आंचल की बेटी तनु अपने लेक्चर में पप्पा के बताये तरीकों का ज़िक्र कर रही थी पूरे भाषण में कहीं भी अपने अवदान का जिक्र न पाकर हताश आंचल के मन की अकुलाहट अनिमेष खूब भली भाँती पढ़ चुके था. सभा के बाद तनु से मिलते ही बोले ''बेटे, माम कितनी खुश है तुम्हारी तरक्की से फिर आंचल के कांधे पर हाथ रखके जोर से बोले :-''वाह, माँ हो तो तुम्हारे जैसी जिसने सब कुछ सिखाया और श्रेय मुझे दिला दिया.'' पिता का यह वाक्य आँचल के अंतस में उतारा झट माम से लिपट गई लोग भी आँचल की और सम्मान से देख रहे थे.
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23.5.10
बी.बी.सी. पर देखिये
मंगलौर हादसे के शिकार एवम विमान पर न चढ़ पाने वाले यात्रीयों की सूची बी. बी. सी . द्वारा जारी की गई है
- हर्षिनी पूंजा
- एरों जोएल फर्नांडीज
- निहा इम्तियाज़
- टी.वी. भास्करन
- कोमलवैली एलिंकील
- नारायण कंथव राव
- वाणी नारायण राव
- वैष्णवी नारायण राव
- मोहम्मद इश्क रफ़ीक अहमद
- हसन अब्बा अबूबकर
- हिबा अज़ीना (बच्चा)
- मुशीना (बच्चा)
- हाइफ़ा हशा (नवजात बच्ची)
- जोएनरिचर्ड सलदन्हा
- उमर फ़ारूक मुहम्मद
- शाहिदा नुशरथर
- ज़ीशान अब्दुल रहमान
- कन्नुर जुलेखा बानो
- नज़ीमा मुहम्मद अशरफ
- सत्यनारायण बलाकुर्या
- सुजाता राव
- फतीमामेहजान शफक़त
- रशद शफ़कत महमूद (नवजात बच्चा)
- खदर अम्मांगोद मुहम्मद शफी
- सुहैब मुहमम्द नासिर (बच्चा)
- बीबी सरां (बच्चा)
- नबीहा मुहम्मद नासिर (बच्चा)
- मुहम्मद अशरफ
- मैमूना अशरफ
- अशहाज़ अब्दुल्ला (बच्चा)
- आएशा अफशीं (बच्चा)
- पल्लवी शकुंतला लोबो
- वेनीशनिकोला लोबो (बच्चा)
- वैशालीफ्लायड लोबो (बच्चा)
- के.एम. अब्दुल्ला
- मर्विन डीसूज़ा (सवार नहीं हो पाए)
- रोस्ली शिबू
- गोडविना थॉमस (बच्चा)
- ग्लोरिया थॉमस (बच्चा)
- भागली प्रभाकर
- कमांडम कुनहाब्दुल्ला
- शशिकांत पूंजा
- मणिरेखा पूंजा
- अब्दुलबार दामुदी (बच्चा)
- महेश शेट्टी
- मुहम्मद नासिर
- अनवर सादिक
- हसन कुट्टी
- जोएल प्रताप डीसूज़ा
- अरुण कुमार शेट्टी
- वसंत शेट्टी (सवार नहीं हो पाए)
- अब्दुल समद
- प्रसादंद मांजरेकर
- कृष्णन कोली कुन्नू
- मुलाचेरी बालाकृष्णन
- शांतिओलीवेरा
- चेतना मुकेश कुमार
- थ्रेसियाम्मा फिलिप (सवार नहीं हो पाए)
- मुहम्मद अशफ़क (सवार नहीं हो पाए)
- हुस्ना फरहीन (सवार नहीं हो पाए)
- अहमद नौशाद अब्बू
- राजन पुलिकोदान
- जयप्रकाश देवडीगा
- जयराम कोटियां
- चित्रा जयराम
- राहुल जयराम (बच्चा)
- प्रभावती करकेरा
- अशिता बोलर
- अक्षय बोलर
- सुरेश कुंदर
- संजीव बबन्ना हेगड़े (सवार नहीं हो पाए)
- सोमन नारायणी
- जी.के. प्रदीप
- कलिंगलअबुल्लाह
- थलंगारा इब्राहिम खलील
- लुइसकार्लो विंसेट गेरारो (सवार नहीं हो पाए)
- नाज़िया अफरीन
- मुहम्मद अबनरुकनुद्दीन (बच्चा)
- मुहम्मद रफ़ी बेलियापुरा
- अब्दुल्ला मुहम्मद
- इब्राहिम साहेब
- समीना साहेब
- इसम इब्राहिम
- रिदा इब्राहिम (बच्चा)
- पेरमबला मुहम्मद
- शिवकुमार नागराज
- मीनू गुप्ता
- के.के. शेट्टी
- गंगधरण नायर
- प्रभात कुमार अट्टावर
- सतीशा शेट्टी
- इरशाद अहमद
- नेहा परवीन
- अफन अहमद (नवजात बच्चा)
- समीर बेरां मोइदीन
- अब्दुरनाज़िर अविंजा
- रिजू जॉन
- सबरीना नसरिंनहक
- स्टीव रीगो (सवार नहीं हो पाए)
- महमूदा अब्दुल्ला कन्याना
- अलताफ अहमद मौलाना
- लोकेशअसादनंदा बेलचाडा
- हमीद पूकायम
- के.पी. मयनकुट्टी
- विपिन कुट्टूर
- किशोर कुमार कुडपा पुजारी
- के. चांदकुट्टी नायर
- एन.एम. भरतम
- अब्दुल अज़ीज़ अंचिकट्टा
- उमाशां विजयन
- केविन सेकीरा
- रेशमां संतोष राय
- नालंदशान संतोष राय (बच्चा)
- विहा संतोष राय (नवजात बच्चा)
- वामन प्रभु
- गणेश प्रभु
- क़ाज़ी अब्दुल सलाम
- क़ाज़ी जु़लेखा खुद्दूश
- जैक्सन पेरीरा
- महमीद इस्माइल
- नवीन कुमार
- संजय कुमार महाबल
- महेंद्र कोदंकी
- इंदुमती नायक
- विजेश कोवल
- रामकृष्ण नायक
- अजेश मोत्ताथिल
- नाविद इब्राहिम
- इग्नाशियस डीसूज़ा
- सुकुमार कुझियामकोत्तूचल
- के.एम. अब्दुल बशीर
- मोहिद्दीन फराहसुस्मन
- माहिम मोहमम्दपल्ली
- के.ए. मोहम्मद अशरफ
- मुहम्मद उस्मान
- कुन्हीकन्नन चांदू (सवार नहीं हो पाए)
- नवीन वाल्टर फर्नांडीज़
- सरिताफिलोमीना डीसूज़ा
- उल्लास डीसिल्वा
- मन्नापदुपुअशरफ अब्दुल
- शफधराली शेख
- महेश शेट्टी
- अब्दुल हरीश कोप्पलमहाउस
- अब्दुल जेब्रान
- परमबत कुन्ही कृष्णन
- प्रभाकरन प्राचीकरण
- नेक्करइब्राहिम इस्माइल
- मेल्विन किरण मेनेंजीस
- सिद्दीक़ी चुरीसुलेमान
- पुत्तुरइस्माइस अब्दुल्ला
- सोमाशेखर पोत्यल श्रीनिवास
- लोकेश नारायणन
- लोलिता दियास
- लिली डियास
- प्रवीन सुंदर
- हिल्दा डीसूज़ा
- प्रदीप दीपानिवास
- डेनिस सल्दन्हा
- एशटॉन सल्दन्हा (बच्चा)
- मंथुर हुसैनार
- रामा सतीश
- मुहम्मद बशीर
- अबूबाकेर सिद्दीकी
- मुहम्मद उस्मान
- शैलेष राव ब्रह्मावरा
- मुहम्मद जियाद
- समीना अब्दुल करीम
- ज़ैनब मुहम्मद ज़ियाद (बच्चा)
- मुहम्मद सुबैर ज़ियाद (बच्चा)
विस्तार से जानने के लिये इन लिन्क्स को देखिये
22.5.10
“कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये !“
कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये एन डी टी वी की इस एक्सक्लूजिव रिपोर्ट अवश्य देखिये :-'' कमी की कीमत '' भारत के संदर्भ में यह अब तक की सबसे प्रभावशाली जन चेतना फैलाने वाली इस रिपोर्ट में. कुपोषण को लेकर जो बात कही गई है उसका वास्ता हम से है और हो भी क्यों न एक अरब हो रहे होने जा रहे हम लोगों के कल की तस्वीर साफ़ सुन्दर और ताज़ी हो...... मित्रो शब्दों नारों से नहीं भारत की तस्वीर बदलेगी हमारी सोच को आकार देने से.....! साथियो हाथ बढ़ाने की ज़रूरत है....आपको क्या करना है..............
- कच्ची उम्र में सामाजिक सम्मान रीतियों के नाम पर बालिकाओं के विवाह रोकें
- हर मां को चिकित्सक की देखरेख में सुरक्षित प्रसव के लिये प्रेरित करें सहयोग करें
- बेटियों में होने वाली खून की कमी को रोकें
- गर्भवति महिला को आयरन के उपयोग की प्रेरणा दें
- शिशु को कम से कम चार माह तक सिर्फ़ माता के दूध की सलाह दी जाये
- बच्चे को कम से कम पांच बार भोजन
- स्वच्छता
- जन्म में अन्तर
- सूक्ष्म-पोषक तत्व के प्रयोग पर बल
19.5.10
मेरी प्रतिमा की स्थापना
बात पिछले जन्म की है. मैं नगर पालिका में मेहतर-मुकद्दम था.पांच वार्ड मेरे नियंत्रण में साफ़ सुथरे हुआ करते थे. लोगों से मधुर सम्बंध यानी जब वे गरियाते तो हओ भियाजी कह के उनका आदर करता. सदाचारी होने की वज़ह से लोग भी कल्लू मेहतर का यानी मेरा मान करने लगे.इसका एक और कारण ये था कि मैने सरकारी खज़ाना लूटने वाले एक अपराधी से पैसा बरामद कराया पूरा धन सरकार के अफ़सरों को वापस कराया . इधर परिवार में मैं और दुखिया बाई ही थे. मेरी पहली पत्नी दुखिया बाई से हमको कोई संतान न थी सो दूसरी ब्याहने की ज़िद करती थी दुखिया. उसके आगे अपने राम की एक न चली. सो दुखिया की एक रिश्तेदारिन को घर बिठाया. यानि दो से तीन तीन से चार होने में बस नौ माह लगे. दुखिया बाई का दु:ख मानों कोसों दूर हो गया. नवजात शिशु को स्नेह की दोहरी छांह मिली. घर में खुशहाली जीवंत खेतों की मानिंद मुस्कुरा रही थी. ग़रीब का सुख फ़ूस के तापने से इतर क्या हो सकता है. भारतीय गंदगी को साफ़ करते कराते टी.बी. का शिकार हो गये हम. और अचानक गांधी जयंती को हमारी मौत हो गई. ब्राह्मणों-बनियों-ठाकुरों-लोधियों की चाकरी करते कराते पचास की उमर में मरना मुझे समझ न आया यम लोक में हिसाब किताब जारी था. यमराज ने जब मेरे जीवन का हिसाब किया तो पांच बरस पहले मुझे ज़मीन से लाने वाले यमदूत को सस्पैन्ड किया दूसरे वापसे लेके गये तो पता चला कि देह का क्रिया कर्म सम्पन्न हो चुका था. मामला यमराज़ के हाथ से निकल कर विष्णु जी के पास गया. भगवान बोले:-”ग़लती तो चित्र गुप्त की भी है जो मेमो पर साफ़-साफ़ कल्लू देवधर की जगह कल्लू मेहतर लिखे हैं अब कल्लू देवधर पांच साल बाद मरेगा.रहा सवाल कल्लू मेहतर का तो दस साल राजसी ठाठ बाट से स्वर्ग में रखा जाये.”
मैं:-”सरकार, मुझे, यदा कदा घर परिवार को देखने की अनुमति मिले.”भगवान बोले:-कल्लू जी आपने सदा सत्य और सादगी का जीवन जिया है आपको पूरी सुविधा दी जावेगी.
उपरोक्त चित्र गूगल बाबा की मदद से मिले हैं प्रथम प्रस्तोताओ का अग्रिम आभार
एक दिन गांव-घर की यादों ने डेरा जमाया . सो स्वर्ग के प्रबंधक देव से आज्ञा लेकर हम पृथ्वी लोक पहुंचे.वहां देखा तो बहुत उम्दा तरीके से बेटे की परवरिश दोनों माताएं कर रहीं थीं. मेरी पत्नीयों में गहरी आत्मीयता न सौतिया डाह तब थी न अब मुझे उसकी परवरिश पर कोई गलत फहमी न थी. मरते वक्त 10 बरस का बेटा था अब दिन दूना बढ़ता देख मन खुश था. स्वर्ग से नियमित आता देखता और वापस वहीं स्वर्ग में ....यह क्रम बरसों चला. अबकी यात्रा में पता चला कि मेरे बेटे का वोटर-कार्ड बन चुका है. अपनी समाज में पढ़ा-लिखा होने के कारण उसे नगर पालिका का अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा जीता भी. मेरा सीना फ़ूल के कुप्पा था .
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जीवन भर कूड़ा करकट गंदगी मैला साफ़ करने में जीवन बीता आज़ बेते को उंचे ओहदे पे देख मन खुश हुआ. सो पालिका की पहली मीटिंग में प्रभू की विशेष अनुमति से पहुंचा. मीटिंग में सी०ई०ओ० ने प्रस्तावित किया कि
सर, चौराहों के विकास के लिये धन मिला है क्यों न किसी महा पुरुष की मूर्ती भी स्थापित की जावे ?
सदन में काना फ़ूसी हुई पार्षद सेठ दौलत राम ने कहा:- ”सभासदो,मैं साहब के प्रस्ताव से सहमत हूं मूर्ती लगाई जाए " पार्षद जगन ने कहा :”हर चौक पे गांधी,नेहरू,सरदार पटैल,लक्ष्मी बाई की मूर्ती लगी है. अब किसकी लगाओगे ?
भी मैं यह बताने कि अब किसी मज़दूर की तस्वीर लगाओ पुत्र के मानस में गया . मुझे देखते ही वो चीख पढ़ा ”दादू जी”
लोगों ने सोचा पुत्र "मेरी प्रतिमा की बात कर रहा है. बहुमत से सबने प्रस्ताव पास कर दिया."
पार्षद सेठ दौलत राम की लग बैठी मार्बल का व्यापारी ठहरा सी०ई०ओ० को सेट किया आनन-फ़ानन टैंडर निकाले आदेश जारी हुए. मूर्ती दो माह बाद आनी थी.
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दो माह बाद
मन में उछाह लिये कल्लू राम चौक मैं पहुंचा तो मूर्ति का मुंह किधर हो इस पर अधिकारी बतिया रहे थे. परिषद के नेता भी थे .... सारे लोग एक राय थे की मेरी मूर्ती का चेहरा न तो पालिका की तरफ़ हो न ही पैट्रोल पम्प की तरफ़, न सर्राफ़ा और अनाज़ मंडी की ओर, बस हो तो पान वाले की दूकान की तरफ़ . जहां डण्डी मारों के ठेले लगे हैं. दलील ये दी जा रही थी ... कल्लू जी अव्वल-दर्ज़े के ईमानदार थे. आम आदमी अगर ईमानदार हो जाए तो दुनिया काया कल्प हो जाएगा ..... एक आदमी कह रहा था:”साले रेहड़ी वाले रोज़ डण्डी मारते है, पान वाला नकली कत्था यूज़ करता है, गोलू मोची नकली पालिश वापरता है इनको सुधारने की ज़रूरत है.!”
मूर्ती का अनावरण होने तक मैं वहीं रुका. एक दिन सोचा इसमें रुक जाऊं. देखा आज़ पान वाला,रेहड़ी वाला, मोची सब पूरी ईमान दारी से व्यापार कर रहे हैं............. बाक़ी लोग......बाकी लोग ....... आगे आप सब समझदार है सोने में मिलावट, पालिका में घूस, पैट्रोल पम्प पर कम तौल, अनाज़ में ..........यानी मेरी मूर्ती से पसीना सा निकलने लगा आंखों से आंसू .... तभी एक कौआ मेरे सर पर..............बीट कर गया
18.5.10
गिरीश का खुला खत कुंठितों के नाम
प्रिय
कुंठावानों
आपका जितना भी ज्ञान था कुंठा की क्यारियों में रोप आये हैं. आपके बारे कहा जाता है कि -”उनके पास अब तो शब्द भी चुक गये हैं . गाली गुफ़्तार एवम शारीरिक अक्षमता तक पर टिप्पणी करने लगे हैं.”
आप के सर पर जिन लोगों का हाथ है वे स्वयम कुंठा के सागर में हिलोरें लेतें हैं.आप को ब्लाग पर गलीच शब्दों का स्तेमाल करने का कोई अधिकार न था न है. जब किसी विवाद में खुद को फंसे देखते है तुरंत ही मित्रवत पोस्ट लिखने का दावा करवाते है, इन रीढ़ हीनों का वैयक्तिक-चरित्र क्या होगा ? यह सब जान-समझ सकतें है, विवाद जो नहीं था दिनेश जी यदी यह सत्य है तो सब सोच रहे हैं कि यकीनन ये सब कुछ आपसी मिली-भगत थी. जो लोग मौज लेने के लिये किया करतें हैं......?वैसे यह स्वयं लेखक कहते तो गले उतरती ...! समकाल पर आई यह पोस्ट वास्तव में लीपा पोती का एक असफ़ल प्रयास है. इस आरोप को मैं अंगद की तरह पुष्ट मान रहा हूं. वैसे तो देशनामा पर स्पष्ट संकेत मिल गये होंगे. ट्राल किस्म के लोगों को समझ लेना चाहिये. कि ब्लागिंग भी सरस्वती साधना ही तो है. वर्ना हम तो यही गाते रहेंगे
कुंठावानों
आपका जितना भी ज्ञान था कुंठा की क्यारियों में रोप आये हैं. आपके बारे कहा जाता है कि -”उनके पास अब तो शब्द भी चुक गये हैं . गाली गुफ़्तार एवम शारीरिक अक्षमता तक पर टिप्पणी करने लगे हैं.”
आप के सर पर जिन लोगों का हाथ है वे स्वयम कुंठा के सागर में हिलोरें लेतें हैं.आप को ब्लाग पर गलीच शब्दों का स्तेमाल करने का कोई अधिकार न था न है. जब किसी विवाद में खुद को फंसे देखते है तुरंत ही मित्रवत पोस्ट लिखने का दावा करवाते है, इन रीढ़ हीनों का वैयक्तिक-चरित्र क्या होगा ? यह सब जान-समझ सकतें है, विवाद जो नहीं था दिनेश जी यदी यह सत्य है तो सब सोच रहे हैं कि यकीनन ये सब कुछ आपसी मिली-भगत थी. जो लोग मौज लेने के लिये किया करतें हैं......?वैसे यह स्वयं लेखक कहते तो गले उतरती ...! समकाल पर आई यह पोस्ट वास्तव में लीपा पोती का एक असफ़ल प्रयास है. इस आरोप को मैं अंगद की तरह पुष्ट मान रहा हूं. वैसे तो देशनामा पर स्पष्ट संकेत मिल गये होंगे. ट्राल किस्म के लोगों को समझ लेना चाहिये. कि ब्लागिंग भी सरस्वती साधना ही तो है. वर्ना हम तो यही गाते रहेंगे
खुश दीप भाई का तो अंदाज़ निराला था एक दो तीन में सबको ब्रहाण्ड दिखा गये पता नहीं के वो लोग कितना समझे
इन दिनों लोग लोकेषणा से ग्रसित ज़्यादा नज़र आ रहे हैं. समीरलाल और अनूप शुक्ल के के बारे में जो पोस्ट पाण्डे जी ने पेश की वो बस एक उनका व्यक्तिगत एहसास था न कि उससे ब्लागिंग का कोई लेना देना था किन्तु ब्लाग पर थी तो मैने कुछ सवाल किये ज्ञानदत्त जी से गलती हुई है और ज्ञानदत्त जी बनाम ..? पर जो सिर्फ़ सवाल थे गालियां कदापि नहीं..... फ़िर जो किया गया {उनके द्वारा ही कहूंगा }बेहद घटिया जिसमें अश्लील गालिया तक थीं . यदि वे जागरूक एवम शांति पसंद ब्लागर होने का दावा करते हैं तो उस बेनामी को तपाक से ज़वाब देते रोकते लेकिन उनने ये न कर मौन स्वीकृति दी.हमारे सवाल साफ़ है - क्या मानसिक हलचल पर आई पोस्ट उचित थी
- क्या समीक्षा इसे कहते हैं
- क्या बेनामींयों को जो गलीच भाषा का प्रयोग करतें हैं को इग्नोर करें
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इनका आभार
सूर्यकान्त गुप्ता
महेन्द्र मिश्र
ललित शर्मा ने कहा…
योगेन्द्र मौदगिल
girish pankaj
राज भाटिय़ा
राजीव तनेजा
बवाल
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
- ललित शर्मा
अन्तर सोहिल
साथ ही इन मित्रों स्नेही जनो का आभार आनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी.यशवन्त मेहता "यश",नीरज रोहिल्ला, मिथिलेश दुबे,'अदा', राजकुमार सोनी, नरेश सोनी,जी.के. अवधिया, एम.वर्मा ,अजय कुमार झा, महेन्द्र मिश्र,राधे, अन्तर सोहिल,शिखा वार्ष्णेय , डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,विजय तिवारी 'किसलय ', 'उदय', सुलभ § सतरंगी,कविता रावत,राज भाटिय़ा,संजीत त्रिपाठी ,शरद कोकास, उन्मुक्त,Kumar Jaljala, हर्षिता,बवाल,
ललित भाई की पोस्ट ने मन में उछाह वापसी की तो श्याम भाई ने भी खूब हंसाया सो मित्रो मै लौट आया अमरकंटक से अपनी बहन शोभना के स्नेह से अभीभूत हूं.
अन्त में समीर जी को बता दूं इग्नोर करना ऐसी भयानक स्थितियों का मार्ग देना है. इग्नोरेन्स की सीमा होनी चाहिये
मित्र दीपक मशाल का विशेष आभार जिन्हौने मन को बेहद हल्का किया. गत रात्री जब इन्हौने हां न भरवाली तब तक हटे नहीं जी टाक से फ़िर ब्लाग पर सन्देश जारी किया मेरी वापसी का मिथलेश ने तो बेलन से पिटवाने का इंतज़ाम कर दिया था.....हा हा
अविनाश भैया सच आपकी बात को कैसे टालूं सोच रहा था वापस आ गया
अविनाश भैया सच आपकी बात को कैसे टालूं सोच रहा था वापस आ गया
14.5.10
अब विदा दीजिये
बहुत अच्छा लगता है मिलना मिलते रहना
किन्तु
यह भी सत्य है कि
अपनी ज़मीं तलाशते
लोग
जिनको भ्रम है कि वे नियंता हैं
चीर देतें हैं
लोगो के सीने
कलेजों निकालने
फ़िर उसे खुद गिद्ध की तरह चीख-चीख के खाते हैं
खिलाते हैं अपनों को
शुक्रिया साथियो
तब अवकाश ज़रूरी
जब तक कि गिद्दों का जमवाड़ा है ?
अब विदा दीजिये कुछ अच्छा लगा तो आउंगा वरना अब अवकाश ले रहा हूं अब विदा ब्लागिंग
सबसे पहले श्रद्दा जैन पूर्णिमा बर्मन एवम समीर लाल जी से क्षमा याचना मैं आपके सिखाई ब्लागिंग में फ़ैली अराज़कता से क्षति ग्रस्त हुआ हूं किसी पर भी कभी भी आक्रमण करने वाले आताताईयों से बचने यही बेहतर रास्ता है
सबसे पहले श्रद्दा जैन पूर्णिमा बर्मन एवम समीर लाल जी से क्षमा याचना मैं आपके सिखाई ब्लागिंग में फ़ैली अराज़कता से क्षति ग्रस्त हुआ हूं किसी पर भी कभी भी आक्रमण करने वाले आताताईयों से बचने यही बेहतर रास्ता है
12.5.10
9.5.10
सिर्फ़ अपनी माता को ही सम्मान
जी हां मातृ दिवस पर आप सभी के बीच एक विचार बांटना चाहता हूं कि हम संकल्प लें कि सिर्फ़ अपनी माता को ही सम्मान दें अन्य किसी की माता के प्रति गुस्से में भी कोई अपशब्द न कहें और न ही कहने दें यही देखतें हैं हम अक्सर अक्सर आप सब भी देखते ही होंगे सुनते भी होंगे आप से अनुरोध है कि मातृ दिवस पर हरेक माता का सम्मान बनाने में हम क्रिया रूप में भी आगे आयें. अक्सर देखा गया कि चन्द सिक्को के पीछे सोनो ग्राफ़ी कर भ्रूण को जन्म लेने से रोकते हैं एक मां को ......जो ऐसा करते कराते हैं ऐसे लोगों को छोड़कर और जो किसी भी अन्य की माता का सम्मान नहीं करते उनको भी छोड़ कर सभी को मातृ दिवस की बधाईयां
7.5.10
श्री जब्बार ढाकवाला एवम मोहतरमा तरन्नुम का दुख़द निधन
मप्र के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री जब्बार ढाकवाला और उनकी पत्नी मोहतरमा तरन्नुम की शुक्रवार 7 मई 2010 को उत्तराखंड के पास जब वे उत्तर काशी से चंबा की ओर लौट रहे थे, अचानक उनकी कार गहरी खाई में गिर गई। एम.ए. एल-एल.बी. तक शिक्षित श्री ढाकवाला शेर—शायरी, उपन्यास व व्यंग्य लिखने के शौकीन थे। वे संचालक पिछड़ा वर्ग कल्याण,संचालक आयुर्वेद एवं होम्योपैथी,संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण,संचालक लघु उद्योग तथा बड़वानी कलेक्टर रहे है।जबलपुर में जब भी उनका निजी अथवा सरकारी प्रवास होता तो वे स्थानीय साहित्यकारों से अवश्य ही मिला करते थे . विगत वर्ष जबलपुर में 25/09/09 को :श्री जब्बार ढाकवाला साहब की सदारत में एक गोष्ठी का आयोजन "सव्यसाची-कला-ग्रुप'' की ओर से किया गया . श्री बर्नवाल,आयुध निर्माणी,उप-महाप्रबंधक,जबलपुर के आतिथ्य में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया थे.गिरीश बिल्लोरे मुकुल के संचालन में होटल कलचुरी जबलपुर में आयोजित कवि-गोष्ठी में इरफान "झांस्वी",सूरज राय सूरज,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",रमेश सैनी,एस ए सिद्दीकी, और विचारक सलिल समाधिया के साथ स्वयम ज़ब्बार साहब ने भी रचना पाठ किया
जिंदगी के हर लमहे का मज़ा लीजिये
यहाँ पर टेंसन की जेल में, उम्रकैद की सजा लीजिये
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यहाँ पर टेंसन की जेल में, उम्रकैद की सजा लीजिये
मूक अभिनय करते करते बोलने लगे हैं वो
सूत्रधार की उपेक्षा कर मुँह खोलने लगे हैं वो
तरक्की के नाम पर इतने धोखे खाए हैं कि
अपने रहनुमाओं के बीच के दिल टटोलने लगे हैं वो
मन में मेरे अदालत जिन्दा है
क्या करुँ अन्दर छिपा एक परिंदा है
नहाता तो हूँ नए नए हम्मामों में आज भी
गुनाह नहीं मगर जेहन शर्मिंदा है
सूत्रधार की उपेक्षा कर मुँह खोलने लगे हैं वो
तरक्की के नाम पर इतने धोखे खाए हैं कि
अपने रहनुमाओं के बीच के दिल टटोलने लगे हैं वो
मन में मेरे अदालत जिन्दा है
क्या करुँ अन्दर छिपा एक परिंदा है
नहाता तो हूँ नए नए हम्मामों में आज भी
गुनाह नहीं मगर जेहन शर्मिंदा है
आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री जब्बार ढाकवाला और मोहतरमा तरन्नुम के असामयिक निधन पर हम सब स्तब्ध हैं. हमारी श्रद्धांजलियां
4.5.10
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