19.5.10

मेरी प्रतिमा की स्थापना

http://www.imagesofasia.com/html/india/images/large/road-sweeper.jpgबात पिछले जन्म की है. मैं नगर पालिका में मेहतर-मुकद्दम था.पांच वार्ड मेरे नियंत्रण में साफ़ सुथरे हुआ करते थे. लोगों से मधुर सम्बंध यानी जब वे गरियाते तो हओ भियाजी कह के उनका आदर करता. सदाचारी होने की वज़ह से लोग भी कल्लू मेहतर का यानी मेरा मान करने लगे.इसका एक और कारण ये था कि मैने सरकारी खज़ाना लूटने वाले एक अपराधी से पैसा बरामद कराया पूरा धन सरकार के अफ़सरों को वापस कराया . इधर परिवार में मैं और दुखिया बाई  ही थे. मेरी  पहली पत्नी दुखिया बाई से हमको कोई संतान न थी सो दूसरी ब्याहने की ज़िद करती थी दुखिया. उसके  आगे अपने राम की एक न चली. सो दुखिया  की एक रिश्तेदारिन को घर बिठाया. यानि दो से तीन तीन से चार होने में बस नौ माह लगे. दुखिया बाई का दु:ख मानों कोसों दूर हो गया. नवजात शिशु को स्नेह की दोहरी छांह मिली. घर में खुशहाली जीवंत खेतों की मानिंद मुस्कुरा रही थी. ग़रीब का सुख फ़ूस के  तापने से इतर क्या हो सकता है. भारतीय गंदगी को साफ़ करते कराते टी.बी. का शिकार हो गये हम. और अचानक गांधी जयंती को हमारी मौत हो गई.  ब्राह्मणों-बनियों-ठाकुरों-लोधियों  की चाकरी करते कराते पचास की उमर में मरना मुझे समझ न आया यम लोक में  हिसाब किताब जारी था. यमराज ने जब मेरे जीवन का हिसाब किया तो पांच बरस पहले मुझे ज़मीन से लाने वाले यमदूत को सस्पैन्ड किया दूसरे वापसे लेके गये तो पता चला कि देह का क्रिया कर्म सम्पन्न हो चुका था. मामला यमराज़ के हाथ से निकल कर विष्णु जी के पास गया. भगवान बोले:-”ग़लती तो चित्र गुप्त की भी है जो मेमो पर साफ़-साफ़ कल्लू देवधर की जगह कल्लू मेहतर लिखे हैं अब कल्लू देवधर पांच साल बाद मरेगा.रहा सवाल कल्लू मेहतर का तो दस साल राजसी ठाठ बाट से स्वर्ग में रखा जाये.”
मैं:-”सरकार, मुझे, यदा कदा घर परिवार को देखने की अनुमति मिले.”
भगवान बोले:-कल्लू जी आपने सदा सत्य और सादगी का  जीवन जिया है आपको पूरी सुविधा दी जावेगी.
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उपरोक्त चित्र गूगल बाबा की मदद से मिले हैं प्रथम प्रस्तोताओ का अग्रिम  आभार 

एक दिन गांव-घर की यादों ने डेरा जमाया . सो स्वर्ग के प्रबंधक देव से आज्ञा लेकर हम पृथ्वी लोक पहुंचे.वहां देखा तो  बहुत उम्दा तरीके से बेटे की परवरिश दोनों माताएं कर रहीं थीं. मेरी पत्नीयों में गहरी आत्मीयता न सौतिया डाह तब थी न अब मुझे उसकी परवरिश पर कोई गलत फहमी न थी. मरते वक्त 10 बरस का बेटा  था अब दिन दूना बढ़ता देख मन खुश था. स्वर्ग से नियमित आता देखता और वापस वहीं  स्वर्ग में ....यह क्रम बरसों चला. अबकी यात्रा में पता चला कि मेरे बेटे का वोटर-कार्ड बन चुका है. अपनी समाज  में पढ़ा-लिखा होने के कारण  उसे नगर पालिका का अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा जीता भी. मेरा सीना फ़ूल के कुप्पा था . 
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जीवन भर कूड़ा करकट गंदगी मैला साफ़ करने में जीवन बीता आज़ बेते को उंचे ओहदे पे देख मन खुश हुआ. सो पालिका की पहली मीटिंग में प्रभू की विशेष अनुमति से पहुंचा. मीटिंग में सी०ई०ओ० ने प्रस्तावित किया कि 
सर, चौराहों के विकास के लिये धन मिला है क्यों न किसी महा पुरुष की मूर्ती भी स्थापित की जावे ?
सदन में काना फ़ूसी हुई पार्षद सेठ दौलत राम ने कहा:- ”सभासदो,मैं साहब के प्रस्ताव से सहमत हूं मूर्ती लगाई जाए " पार्षद जगन ने कहा :”हर चौक  पे गांधी,नेहरू,सरदार पटैल,लक्ष्मी बाई की मूर्ती लगी है. अब किसकी लगाओगे ?
भी मैं यह बताने कि अब किसी मज़दूर की तस्वीर लगाओ पुत्र के मानस में गया . मुझे देखते ही वो चीख पढ़ा ”दादू जी”
लोगों ने सोचा पुत्र "मेरी प्रतिमा की बात कर रहा है. बहुमत से सबने प्रस्ताव पास कर दिया."
पार्षद सेठ दौलत राम की लग बैठी मार्बल का व्यापारी ठहरा सी०ई०ओ० को सेट किया आनन-फ़ानन  टैंडर निकाले आदेश जारी हुए. मूर्ती दो माह बाद आनी थी. 
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दो माह बाद 
मन में उछाह लिये कल्लू राम चौक मैं पहुंचा तो मूर्ति का मुंह किधर हो इस पर अधिकारी बतिया रहे थे. परिषद के नेता भी थे .... सारे लोग एक राय थे की मेरी मूर्ती का चेहरा न तो पालिका की तरफ़ हो न ही पैट्रोल पम्प की तरफ़, न सर्राफ़ा और अनाज़ मंडी की ओर, बस हो तो  पान वाले की दूकान की तरफ़ . जहां डण्डी मारों के ठेले लगे हैं. दलील ये दी जा रही थी ... कल्लू जी अव्वल-दर्ज़े के ईमानदार थे. आम आदमी अगर ईमानदार हो जाए तो दुनिया काया कल्प हो जाएगा ..... एक आदमी कह रहा था:”साले रेहड़ी वाले रोज़ डण्डी मारते है, पान वाला नकली कत्था यूज़ करता है, गोलू मोची नकली पालिश वापरता है इनको सुधारने की ज़रूरत है.!”

मूर्ती का अनावरण होने तक मैं वहीं रुका. एक दिन सोचा इसमें रुक जाऊं. देखा आज़ पान वाला,रेहड़ी वाला, मोची सब पूरी ईमान दारी से व्यापार कर रहे हैं............. बाक़ी लोग......बाकी लोग ....... आगे आप सब समझदार है सोने में मिलावट, पालिका में घूस, पैट्रोल पम्प पर कम तौल, अनाज़ में ..........यानी मेरी मूर्ती से पसीना सा निकलने लगा आंखों से आंसू .... तभी एक कौआ मेरे सर पर..............बीट कर गया

17 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सुबह आकर पढ़ता हूं दिलचस्‍प लग रही है पोस्‍ट। अभी तो सोना लूटने जा रहा हूं। डकैत नहीं हूं भाई, गिरीश जी जानते हैं। वे छोड़ते हैं तभी तो मैं लूट पाता हूं। हिसाब किताब सुबह करेंगे।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

हा हा हा अविनाश भैया मज़ा आयेगा आपको

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

जी अवश्य

राजीव तनेजा ने कहा…

बहुत ही बढ़िया रचना

महामूर्खराज ने कहा…

sundar aur sarthak

राम त्यागी ने कहा…

कल्लू मेहतर का फोटो सही झकास लगा रखा है. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना लगी. ऊपर से नीचे तक पड़ने में मजा आया. पर ऐसा लगा की आप लिखते लिखते कहानी के अंत के साथ थोडा अन्याय कर गए....पता नहीं ऐसा लग रहा है की अंत और भी रोचक हो सकता था जैसी की शेष कहानी. एक बार और पडूंगा वैसे ....
कुल मिलकर बहुत मजा आया पढ़ने में.

M VERMA ने कहा…

दूसरी बीबी से पहली वाली अच्छी लगी. बोल आये होते बच्चे को यूँ नंगा न छोड़ा करे.
कौआ बीट क्यों कर गया, बोर्ड नहीं लगा था कि किसी के सिर पर बीट करना मना है
मस्त पोस्ट

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपकी इस बात से पूर्ण सहमत की हम ईमानदार हो जाये तो बहुत कुछ बदल जाये, अच्‍छी प्रेरण मिली पोस्‍ट से।

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! प्रिंट करके फिर पढ़ूंगा...सच में. :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

दुसरे वाली बहुत अच्छी लगी जी,लेकिन ज्यादा साथ ना दे सके, आप की कहानी बहुत अच्छी लगी, अभी तक अगर भटक रहे हो तो एक दिन इन भोले भाले मनमोहन की भी भोलगी को देख आओ, ओर हम सब को बताओ जी,

Gyan Darpan ने कहा…

कई दिनों बाद कोई ब्लॉग पोस्ट पढने में मजा आया है |
शुभकामनाए |

बवाल ने कहा…

वाह वाह क्या लिखते हो गिरीश भाई। टंकी से उतरने के बाद वाक़ई लोग ग़ज़ब की बातें कहते हैं। ज़िंदगी का यह तुलनात्मक नज़रिया बहुत उम्दा लगा। प्रतिमा वो बीट-प्रूफ़ बनवाया जाए। हा हा।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

बहुत ही सटीक लिखा.. दिल खुश हो गया ऐसा लेखन पढ़कर..

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शेखावत जी आभारी हूं
बवाल टंकी साफ़ कर दी मैने बहुत कीड़े हो गये थे..!
बताओ पावन-नदियों से आने वाला पानी भी शुद्ध नहीं रहा...?

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

शुक्रिया दीपक भाई

Archana Chaoji ने कहा…

बस !!! इसीलिए मै चाहती हूँ --कभी भी किसी की प्रतिमा न लगाई जाए ---एक तो सर्दी,गर्मी, बारिश में मुस्कुराते खडे रहो और पता नही कब ,कौन ????

हर्षिता ने कहा…

रोचक एवं व्यंग्यात्मक लेख पढकर मजा आ गया,धन्यवाद गिरीश जी।

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