आपकी मज़ाहिया प्रतिटिप्पणी के गहरे अर्थ हैं:-पं.डी.के.शर्मा"वत्स", @सुरेश चिपलूनकर जी,भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ति कुछ असहनीय सी होने लगी है :-) यह टिप्पणी मनुष्य के अंतस में बसे एक सत्य को उज़ागर करती है........
युद्ध की प्रतीक्षा शांति से अधिक की जाती है.हर व्यक्ति इसमें शामिल होता है जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार है :-
- वीर:- कुछ लोग शामिल होना चाहते है,और हो भी जाते हम. उनको मैं वीर की श्रेणी में रखने की गुस्ताख़ी कर रहा हूं. इनकी संख्या बहुत नहीं है.
- धीर:- वो जो शामिल नहीं किंतु युद्ध के दु:खद परिणामों को युद्ध की आहट आते ही दूर से अनुमानते हैं. बता भी देते हैं सजग करतें हैं .....इनकी संख्या इक्का-दुक्का ही तो है.
- नीर:- निरंतर युद्ध की कामना में रत व्यक्ति जो सिर्फ दो पक्षों में युद्ध कराना एवं देखना चाहतें हैं ...... फ़िर सामने सामने विजेता के पक्ष में परोक्ष रूप से पराजित के सम्पर्क में रहतें हैं. इन लोगों का प्रतिशत सर्वाधिक है.
रिठेल : "आपने" की जगह हम सबने प्रतिस्थापित किया है आपका कोई फ़ोन नम्बर नहीं है कोई बात नहीं यहीं बता दीजिये डी.के. सा’ब इस पोस्ट को लिंक करने में आपत्ती हो तो अवश्य लिन्क पृथक कर दूं !