13.3.10

पॉडकास्ट कांफ्रेंस : अदा जी, दीपक मशाल और मैं

महफूज़  मियाँ  का  एकाएक गायब  होना फिर जबलपुर में अवतरित होना अपने आप में एक चमत्कारिक घटना रही है. इन सब बातों को लेकर एक अन्तराष्ट्रीय संवाद हुआ जिसमें ''बेचारे-कुंवारे हिन्दी ब्लागर्स की दशा और दिशा'' पर भी विमर्श किया गया अदा जी जो जो कविता का डब्बा यानी  ''काव्य-मंजूषा'' की मालकिन हैं तथा स्याही और कागज़ के मालिक दीपक मशाल से मेरी बात हुई
क्या खूब पायी थी उसने अदा,
ख्वाब तोड़े कई आंधिओं की तरह.
कतरे गए कई परिंदों के पर,
सबको खेला था वो बाजियों की तरह.
हौसला नाम से रब के देता रहा,
औ फैसला कर गया काजिओं की तरह.
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अनुराग शर्मा जी के स्वर में सुनिए कहानी
 यहाँ हिंद-युग्म के आवाज़ पर 
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11.3.10

गुमशुदा की तलाश

ये हैं श्रीमान महफूज़ अली उम्र बहुत कमसिन 
 इन की तलाश में
गायब हैं ब्लागिंग नहीं कर रहे हैं कई दिनों से इनका फोन भी नहीं लग रहा है खोजी उड़न-तश्तरी तक   ने 
हाथ खड़े कर दिए 
तब ब्रिगेड का एक जत्था रवाना किया गया है 
जल मार्ग से 

10.3.10

एक भोर जो बदल देती है सोचने का अंदाज़

महिता आरक्षण बिल के पारित होने का हर्ष इस  कविता  में आज की भोर का  अभिवादन करती हिन्दुस्तान की आधी आबादी को हार्दिक शुभ कामनाएँ   
http://www.bhaskar.com/2010/03/08/images/woman21.jpg
एक भोर
जो
बदल देती है
सोचने का अंदाज़
जब ले आती है साथ 

अपने
परिवर्तन के   सन्देश
प्रतिबंधित/विलंबित स्वपनों को 

देखने के आदेश
सच
कितनी
 बाधाएं आतीं हैं
सांस लेने के अधिकार को अनुमति मिलने में ?

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आज शक्ति को शक्ति मिल ही गई हाँ
आज की भोर अखबारों के माथे पर
हमारी जीत का गीत लिख कर लाई है

हमारी सोच ने नई उंचाइयाँ  पाई  हैं !
मन  कहता है.........
अभी तो ये ............................

 

   [चित्र साभार चित्र एक :दैनिक भास्कर ]

आज पोडकास्ट ? सॉरी कल आज तो ये देखिये

जिधर शामें बदन पे फफोले उगातीं हैं

जे जो आप आदमी देख रए हो न उस शहर से आया है जिधर शामें बदन पे फफोले उगातीं हैं सूरज शोलों सा इनके ही शहर से और तो और ठीक इनके मकान के ऊपर से निकलता है. तभी देखोन्ना............इनका चेहरा झुलसा हुआ आग उगलता नज़र आ रिया है. सारे नकारात्मक विचार इनकी पाज़िटीविटी जला के ख़ाक ख़ाक कर चुकें हैं ! गोया ये ये नहीं सोई हुई आग को अपने में समोए गोबर के उपले से नज़र आ रहे हैं .
कुंठा की खुली दूकान से ये महाशय अल सुबह से कोसन मन्त्र का जाप करतें हैं . तब कहीं कदम ताल या पदचाप करतें हैं .
जी हाँ ...!! ज़मूरे खेल बताएगा
बताउंगा उस्ताद
इस आदमीं की जात सबको बताएगा ?
बताउंगा...!
कुछ छिपाएगा....?
न उस्ताद न
तो बता ........ आज ये कितनों की निंदा करके आया है ..?
उस्ताद............आज तो जे उपासा है...! देखो न चेहरा उदास और रुआंसा है......!!
हाँ ये बात तो है पर ऐसा क्यों है....!
उस्ताद इसकी बीवी का भाई इसके घर आया था बीवी को ले गया आज ये घर में अकेला था मन बहलाने बाजीगरी देखने आ गया...!
नहीं मूर्ख ज़मूरे ये अपनी बाजीगरी कला का पेंच निकालेगा
उस्ताद बड़े पहुंचे हुए हो ......ये सही बात कैसे जानी ...
बताता हूँ पहले पिला दे पानी ..........
किसे......उस्ताद ........ इसे की तुमको ....?
उस्ताद रिसियाने का अभिनय करने लगा इस नकली झगडे को असल का समझ वो नकारात्मक उर्जावान व्यक्ति बाजीगरी के लिए बीच घेरे में आ गया . निंदा के मधुर वचन फूट पड़े उसके मुँह से ... ज़मूरों की जात पे वो तहरीर पढ़ी की सारे सन्न रह गए .......
"बाजीगर भाई, तेरा जे जो ज़मूरा है इसकी वफादारी का इम्तहान लेता हूँ तुझे कोई एतराज़ तो नहीं ?"
"न,भाई ......... बिलकुल नईं मेरा ज़मूरा है "
बोल ज़मूरे तू तरक्की चाहता है.....?
हाँ !
क्या करेगा !
बड़ा बाजीगर बनूँगा.....!
उस्ताद से भी बड़ा ....?
हाँ उस्ताद से भी बड़ा तभी तो उस्ताद का नाम अमर रहेगा ...?
"तू उस्ताद का नाम अमर करेगा ?"
हाँ,करूंगा
कब
जब मैं उस्ताद बन जाऊंगा और कब ?
तू उस्ताद कितने समय में बनेगा
जितना ज़ल्दी भगवान वो समय लाएगा ?
इसका अर्थ समझे उस्ताद ....?
फिर दूर ले जाकर उस्ताद के कानों में ज़मूरे के कथन का अर्थ समझाया .... उस्ताद उसकी बात सुन कर सन्न रह गया
"मित्रो बताइए उस्ताद के कानों में ज़मूरे ने क्या कहा होगा....?"

9.3.10

स्त्री-विमर्श के लिए वास्तविक-विषय वस्तु को खोजें इस चर्चा में

[P7030130.JPG]
शिखा वार्ष्णेय जी से आज  भारतीय एवं पश्चिमी परिवेश में  हुई बातचीत से यह तय हो गया है की स्त्री-विमर्श की विषय वस्तु जो आजकल संचार माध्यमों पर हावी है वो कदापि उपयुक्त नहीं है. आज उनके ब्लॉग स्पंदन पर जो कविता है उसमें जो भी कुछ शामिल है वो है उंचाइयो की तलाश और खुली हवा की अपेक्षा.
बंद खिड़की के पीछे खड़ी वो,
सोच रही थी कि खोले पाट खिड़की के,
आने दे ताज़े हवा के झोंके को,
छूने दे अपना तन सुनहरी धूप को.
उसे भी हक़ है इस
आसमान की ऊँचाइयों को नापने का,
खुली राहों में अपने ,
अस्तित्व की राह तलाशने का,[आगे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये  ]
           शिखा वार्ष्णेय जी के अंतस में पल रही कवयत्री का दर्शन देखिये उनकी ही इन पंक्तियों  में
अपने लिए उठे ये हाथ , तो शिखा! क्या बात हुई
होगी दुआ कुबूल, जो कर किसी बेबस के वास्ते
आइये स्त्री-विमर्श के लिए वास्तविक-विषय वस्तु को खोजें इस चर्चा में 
 
इस तरह मनाया हमने गाँव में जाकर महिला दिवस

8.3.10

अदा जी ने ले ही लिया इंटरव्यू हमारा

आज सुबह  सवेरे  ललित जी पाबला जी से प्राप्त  स्नेहिल शुभ कामनाएँ और शाम की आहट के साथ पाबला जी के  ब्लॉग एवं +९१९८७०८०७०७० एस एम एस के ज़रिये सूचना के प्रकाशित एवं प्रचारित होते ही कि आज मेरे विवाह की साल गिरह है ढ़ेरो शुभ-कामनाएँ अंतरजाल की दुनियाँ से प्राप्त हुईं सभी का शुक्रिया अदा जी ने मुझे पकढ़ ही लिया और ले ही लिया इंटरव्यू हमारा  
साथ ही इन स्नेही मित्रों को मित्रानियों /पूज्यों के प्रति कृतज्ञता 
राज भाटिय़ा दादाजी , 'अदा जी    सिद्धार्थ जोशी जी   
praween trivedi ji

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अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...