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26.6.11

वीरांगनाएं हीं तो हैं सशक्ति करण का सर्वोच्च उदाहरण

एक  बार  फिर  मिला  मौका मुझे माता गुज़री कालेज में बेटियों से सशक्तिकरण के परिपेक्ष्य में संवाद करने का.अधिकांश चेहरे अवाक से देख रहे थे तब जब मैंने बताया कि भारतीय नारियां इतिहास में कभी  भी  कमजोर न थीं वीरांगनाएं हीं तो  हैं सशक्ति करण का सर्वोच्च उदाहरण हमारे पास आत्म चिंतन  के लिये एक समृद्ध इतिहास तो है. झांसी की रानी लक्ष्मी बाई,जबलपुर की रानी दुर्गावति, और डिण्डौरी में शहीद हुई रानी अवंती बाई ने मुगलों एवम अंग्रेजों को छटी का दूध याद दिलाया. क्यों तलाशें हम पश्चिम से सशक्ति करण के तरीके... जो जानना है वो हमारे इतिहास में है तो. 
             

12.6.11

नई दुनिया ने दिया डाक्टर विजय तिवारी किसलय को "जबलपुर-साहित्य रत्न"


यशस्वी ब्लागर डाक्टर विजय तिवारीकिसलय का चयन  "जबलपुर-साहित्य रत्न" के लिये प्रथम पांच में जूरी द्वारा किया गया है. यह ब्लागजगत के लिये गौरव की बात होगी अगर उनको सम्मान प्राप्त होता है. आपसे विनत अनुरोध है कि उनको अपना एक बहुमूल्य वोट देकर डा० तिवारी को सहयोग करें   सभी स्नेही जनों ने किसलय जी को वोट किया और डाक्टर विजय तिवारी को हासिल हुआ वो सम्मान जिसे पाना एक गौरव पूर्ण घटना है किसलय जी के लिये समूचे ब्लाग जगत के लिये . 


डाक्टर किसलय जी को बीसियों प्रस्तावों में से श्रेष्ठ पांच में चुना था नई दुनिया जबलपुर ने जिसमें शामिल थे वयोवृद्ध साहित्यकार चिंतक श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी, रंगकर्मी साहित्यकार श्रीमति साधना उपाध्याय, कथाकार श्री राजेंद्र दानी, एवम श्रीयुत गार्गी शरण मिश्र जिनका स्नेह श्री किसलय को प्राप्त है.  

कौन हैं किसलय जी 
  जन्म तिथि 05फरवरी 1958 को महाकवि राजशेखर की राजधानी तेवर जबलपुर   में जन्में किसलय जी की शिक्षा एम. . (समाज शास्त्र ), भारतीय विद्या भवन मुंबई से पी. जी. डिप्लोमा इन जर्नलिज़्म, इले. होम्योपैथी    स्नातक, कंप्यूटर की बेसिक शिक्षा.प्राप्त कर चुके हैं.                            

           दशकों से आकाशवाणी  एवं टी. वी. चेनलों पर लगातार प्रसारण. एवं काव्यगोष्ठी का संचालन. ,  कहानी पाठ तथा समीक्षा गोष्ठियों का आयोजन करने वाली संस्था 'कहानी मंच जबलपुर' के संस्थापक सदस्य. साथ ही पाँच वर्ष तक लगातार पढ़ी गयीं कहानियों के 5 वार्षिक संकलनों के प्रकाशन का सहदायित्व निर्वहन.,मध्य प्रदेश लेखक संघ जबलपुर के संस्थापक सदस्य. जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार स्व. हीरा लाल गुप्त की स्मृति एवं पत्रकारिता सम्मान समारोह का सन 1997 से   लगातार आयोजन-सहयोगी, स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय लगभग दो दर्जन पुस्तकों की समीक्षा, विभिन्न एकल, अनियमित तथा नियमित पत्रिकाओं का संपादन. साहित्यिक गोष्ठियों में सहभागिता एवं संचालन. अंतरराष्ट्रीय अंतरजाल (इंटरनेट) के ब्लागरों में सम्मानजनक स्थिति.
डॉ. काशीनाथ सिंह, डॉ. श्रीराम परिहार, प्रो.ज्ञान रंजन, आचार्य भगवत दुबे सहित ख्यातिलब्ध साहित्यकारों का सानिध्य पाने वाले किसलय जी हिन्दी काव्याधारा की दुर्लभ काव्यविधा "आद्याक्षरी" में लगातार लेखन कर रहे हैं.  
                       विजय के अभिन्न मित्र वसंत मिश्रा,राजीव गुप्ता,राजेश पाठक, रमाकांत ताम्रकार, डा०रमेश सैनी,कुंवर प्रेमिल, डा० संध्या जैन ’श्रुति’,अरुण यादव, द्वारका गुप्त, के लिये यह खबर जहां उत्साह जनक थी वहीं ब्लागर समीर लाल , ललित शर्मा,बवाल सहित सभी ब्लागर्स की ओर से  बधाईयां

  प्रकाशन :-  काव्य संग्रह " किसलय के काव्य सुमन " का सन 2001 में प्रकाशन. गद्य-पद्य  की 2 पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य
 हिन्दी व्याकरण पर सतत कार्य एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार - प्रसार हेतु संकल्पित.
श्री किसलय जी  स्वतन्त्र पत्रकारिता एवं साहित्य लेखन के चलते लगभग 35 वर्ष से प्रकाशन. कविताओं, कहानियों, लघुकथाओं, आलेखों, समीक्षाओं का सतत् लेखन के लिये प्रतिबद्ध हैं
ब्लागलेखन :- "हिन्दी साहित्य संगम" अंतराजालीय ब्लाग पर नियमित लेखन एवं हिन्दी साहित्य संगमके संस्था के द्वारा लगातार औचक रूप से साहित्यिक गोष्ठियां करने का करिश्मा कर देते हैं विजय भाई.       
अन्य:-  धर्मार्थ इले. होम्योपैथी चिकित्सा का सीमित संचालन. सामाजिक संस्थाओं एवं निजी तौर पर समाज सेवा. विदेशी डाक टिकटों का संग्रह, नवीन टेक्नोलॉजी एवं वैश्विक घटनाओं की जानकारी में रूचि. बाह्य आडंबर, साहित्यिक खेमेबाजी, साहित्य वर्ग विभाजन (जैसे छायावाद, प्रगतिशील, दलित साहित्य आदि)   से परहेज. क्योंकि साहित्य साहित्य होता है.
संप्रति म. प्र. पॉवर जनरेटिंग कंपनी लिमि. जबलपुर के वित्त एवं लेखा विभाग में कार्यालय सहायक.
सम्पर्क:-
 विजय तिवारी " किसलय
'विसुलोक', 2419 मधुवन कालोनी,
विद्युत उपकेन्द्र के आगे, उखरी रोड,
बल्देव बाग, जबलपुर. 482002.
मोबाईल क्रमांक: 094 253 253 53.

15.5.11

बिना छींटॆ-बौछार के रवि रतलामी जी एक समारोह में मुख्य अतिथि जबलपुर आए

अविनाश वाचस्पति
जे का हो गया कह रहे थे कि आप कनाट-प्लेस पे दूकान लेंगें
यह चित्र  राजे_शा  जी के ब्लाग पर है
उनका ब्लाग है "कौन कहता है हंसना मना है..?"
हैं  
मित्रो, मित्राणियो.. 
                 सब को हमारी राम राम वंचना जी . कल रात जब नेट खोला तो रवि रतलामी जी का मेल बांच के खुशी हुई.. समझ तो हम सवेरे ही गये थे जब गौर दादा जी ने अपनी मुंडेर वाला कौआ जो उनके घर की तरफ़ मुंह करके कांव कांव किये जा रहा था को डपट के भगा दिया. और वो कौआ हमारे घर पे आय के कांव कांव करने लगा. हम बोले श्रीमति जी से -’देखो, तुम्हारे मैके का संदेशा लेके आ गया ..!
श्रीमति जी किचिन से बोलीं- ”न, वो आपके किसी ब्लागर मित्र के आने की खबर लाया है. चाय पिओगे, नहा धो लो शनिवार की छुट्टी है हफ़्ते भर की....
अब बताओ भला , ऐसा बो्ल गईं गोया नहाना मेरा साप्ताहिक कार्यक्रम हो. हम चुप रहे सोचा सुबह से उलझे तो शाम तक पता नहीं का गत बने...?
खैर कन्फ़र्म हुआ कि रवि रतलामी ही की गाड़ी विलम्ब से किंतु जबलपुर आ ही गई. उस गाडी़ में बिना छींटॆ-बौछार के रवि भैया  एक समारोह में बतौर प्रशिक्षक एवम मुख्य अतिथि पधार चुके हैं. आपस में कानाफ़ूसी कर हमने टाईम सेट किया शाम चार बजे से साढ़े छै: बजे तक चले कार्यक्रम में हम शहीद-स्मारक प्रेक्षागार में  डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" के साथ शामिल हुए जिसे  विजय जी ने अपने थ्री जी सेल फ़ोन से लाइव किया
और प्रोग्राम से फ़ारिग होके हम रवि जी का अपहरण आयोजकों की अनुमति सहमति से कर लिया. और फ़िर देखिये ये सब हुआ यहां

जबलपुर के अखबारों में छाए  रवि रतलामी जी "गिरीश बिल्लोरे का ब्लाग "पर कतरनें मौज़ूद हैं.

6.5.11

इस यश को सहने की शक्ति देना प्रभू


 सम्मान  के यश को दुगना करने की रीत निभाई जबलपुर के स्नेहीजनों नें  किस किस का आभार कहूं कैसे कहूं स्तब्ध हूं. जी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दीवारें पोतने का काम करते हैं, उन पुताई करने वालों का भी आभारी हूं उनसे न तो मुझे गुरेज़ है न ही उनके लिये मेरे मन में कोई नकारात्मक भाव शुभचिंतकों का आभारी हू.........!!

23.4.11

बवाल के स्वरों में सुनिये गीत " कुछ झन झन झन था"

लुकमान चाचा 


बवाल हिंदवी यानी एक सम्पूर्ण कलाकार यानी एकदम पूरा का पूरा बवाल जब मंच पर आये तो समझिये लोग एक पल भी ऐसे बवाल से दूर न होने की क़सम खा लेते हैं. विनोबा-भावे ने  जबलपुर को सैंत में न दिया ये नाम एक बानगी तो देखिये....


लाल और बवाल ब्लाग से साभार  



वाल एक ऐसे उस्ताद का शागिर्द है जिनने उर्दू -कव्वाली कव्वाली से उर्दू का एकाधिकार समाप्त किया.हिंदी कविताओं गीतों को प्रवेश दिलाया था कवाली-शैली की गायकी में. बवाल के गुरु स्वर्गीय लुकमा जो गंधर्व से कम न थे. हम लोगों में  गज़ब की दीवानगी थी चच्चा के लिये...देर रात तक उनको सुनना उनकी महफ़िल सजाना एक ज़ुनून था.. फ़िल्मी हल्के फ़ुल्के संगीत से निज़ात दिलाती चचा की महफ़िल की बात कैसे बयां करूं गूंगा हो गया हूं..गुड़ मुंह में लिये   
आप सोच रहें हैं न कौन लुकमान कैसा लुकमान कहाँ  का लुकमान जी हाँ इन सभी सवालों का ज़वाब उस दौर में लुकमान ने दे दिया था जब  उनने पहली बार भरत-चरित गाया. और हाँ तब भी तब भी जब गाया होगा ''माटी की गागरिया '' या मस्त चला इस मस्ती से थोड़ी-थोड़ी मस्ती ले लो   (आगे देखिये यहां चचा लुक़मान के बारे में)


10.4.11

कादम्बिनी अप्रेल 2011 में वेबकास्टिंग पर श्री पियूष पाण्डॆ

कादम्बिनी के अप्रेल 2011 अंक के पृष्ट क्रमांक 72-73 पर श्री पीयूष पाण्डे का आलेख "आया ज़माना वेवकास्टिंग का में हम शौकिया वेबकास्टर्स को उत्साहित किया है. "
हिंदी ब्लागर्स के बीच  हमको वेबकास्टिंग के ज़रिये आपसी संवाद में सहजता का अनुभव हुआ है. इस तकनीक़ी का उपयोग प्रथम बार खटीमा ब्लागर्स मीट को लाईव कर हमने किया अच्छा अनुभव था. अब तो कई ब्लागर्स वेबकास्टिंग का सार्थक प्रयोग कर रहे हैं. उमनें मैं प्रमुखता से डा० विजय तिवारी किसलय और श्रीमति अर्चना चावजी के नामों ज़िक्र करना चाहूंगा.  जिनने मेरे बाद इस तकनीकी के ज़रिये खूब काम किया.
ब्लाग इन मीडिया (यश भारत की )
खटीमा के आयोजन को लाइव वेबकास्ट करने के बाद मैं और पद्म सिंह अविनाश वाचस्पति की सहायता से तय शुदा कार्यक्रम के मुताबिक दिल्ली में 30 अप्रेल  2011 को होने वाले ब्लागर्स के लिय सम्मान-आयोजन का लाईव प्रसारण करने जा रहें है. आप घर बैठे इस आयोजन का आनंद लीजिये. ये वादा है कि  पूर्व के प्रसारणों की कमियों को दूर कर लिया जावेगा .
आयोजकों से वार्ता :-

  1. श्री रवीन्द्र प्रभात 
  2. डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल, सचिव, हिंदी साहित्य निकेतन,



सभी वेबकास्टर का कादम्बिनी एवम पियूष जी
को साधुवाद एवम आभार 

9.4.11

कुमार विश्वास का सच : समापन किश्त


मार विश्वास ने  जबलपुर में जो हरक़त की वो ओछी थी इसमें कोई दो मत नहीं. पहली पोस्ट के के बाद जिस तरह सुधि जन सामने आए वो एक अलग अनुभव है. 
ब्लागजगत ने क्या कहा देखिये आप  स्वयं
पद्मसिंह:-एक पगली लड़की को लेकर युवा मन को दीवाना बनाने की बाजीगरी में सिद्ध हस्त हैं कुमार विश्वास जी....गन्दा है पर धंदा है ये
अनूप शुक्ल : कुमार विश्वास के बारे में सम्यक विश्लेषण के लिये यह पोस्ट देखिये:


http://amrendrablog.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

डाक्टर अजित गुप्ता:-मैंने उनके कारनामें अमेरिका में देखे हैं। आज का समाज किस ओर जा रहा है यह उनकी लोकप्रियता से ज्ञात होता है।
डा० शरद सिंह :- कुमार विश्वास जी को हार्दिक बधाई।
नुक्‍कड़ :-कुमार भी विश्‍वास भी ?
Er. सत्यम शिवम आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
अमित के. सागर याद है कि आपने आयोजन के पारिश्रमिक को लेकर क्या कहा था उसका खुलासा कर ही दूंगा आयकर विभाग को भी तो पता चले प्रोफ़ेसर साहब ?"


उक्त सन्दर्भ में जानने को अतिउत्सुक हूँ. शेष जो कमेंट्स पढने को मिली हैं...फिर तो और भी...और भी कुछ इन के बारे में!
*-*
कवियों को भी ऐसा हो सच गर,
तो आना चाहिए बाहर हर कीमत पर
कहते हैं कि कवि तो दिल से रोटी बना खाता है
फिर कविता से भला कारोबार कैसे कर पाता है?
*-*

बवाल एक अजीबोग़रीब मंज़र कल रात देखने को मिलता है :-


एक यूथ आईकॉन नामक व्यक्ति बड़ी तन्मयता से ओल्डों की धज्जियाँ उड़ाता जा रहा है;
परम आदरणीय अन्ना हजारे जी को जबरन अपने झंडे तले ला रहा है;
अपने आपको इलाहाबादी अदब की प्रचारगाह बतला रहा है और बच्चन साहब को जड़ से भुलवा रहा है;
अपने एकदम सामने बैठे हुए स्थानीय बुज़ुर्ग नेताओं, मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष आदि पर तबियत से अपने हलाहली शब्दवाण चला रहा है;
विनोबा बाबा की प्रिय संस्कारधानी के मँच पर खड़ा या कह सकते हैं सिरचढ़ा होकर, कहता जा रहा है कि मैं उपहास नहीं, परिहास करता हूँ और उपहास ही करता जा रहा है;
जमूरों का स्व्यंभू उस्ताद बनकर अपने हर वाक्य पर ज़बरदस्ती तालियाँ पिटवा रहा है;
(इतनी तालियाँ अपनी ही एक-दूसरी हथेलियों पर पीटने से बेहतर था कि तालियाँ पिटवाने वाले के सर पर बजा दी जातीं, जिससे उसे लगातर ये सुनाई देतीं जातीं और उसे बार आग्रह करने की ज़हमत न उठाना पड़ती, समय भी बचता और ............. ख़ैर)
उसे जाकर कोई कह दे भाई के,
मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं, 
सिर्फ़ बकरी के प्यारे बच्चे के मुँह से ही कर्णप्रिय लगती है, आदमी के (दंभी) मुँह से नहीं।
शेष टिप्पणी अगले अगले आलेख की अगली किस्त में......
---जय हिंद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...बढ़िया प्रस्तुति!कुमार विश्वास जी को हार्दिक बधाई।
भारतीय नागरिक ओह!
विजय तिवारी " किसलय " संस्कारों का सन्देश देने वाली संस्कारधानी जबलपुर में विगत ७ मार्च को एक कमउम्र और ओछी अक्ल के बड़बोले लड़के ने असाहित्यिक उत्पात से जबलपुर के प्रबुद्ध वर्ग और नारी शक्ति को पीड़ित कर स्वयं को शर्मसार करते हुए माँ सरस्वती की प्रदत्त प्रतिभा का भी दुरूपयोग किया है. टीनएज़र्स की तालियाँ बटोरने के चक्कर में वरिष्ठ नेताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं कलाप्रेमियों की खिल्लियाँ उड़ाना कविकर्म कदापि कहीं हो सकता... निश्चित रूप से ये किसी के माँ- बाप तो नहीं सिखाते फिर किसके दिए संस्कारों का विकृत स्वरूप कहा जाएगा. 


कई रसूखदारों को एक पल और बैठना गवारा नहीं हुआ और वे उठकर बिना कुछ कहे सिर्फ इस लिए चले गए कि मेहमान की गलतियों को भी एक बार माफ़ करना संस्कारधानी के संस्कार हैं. महिलायें द्विअर्थी बातों से सिर छुपाती रहीं. आयोजकों को इसका अंदाजा हो या न हो लेकिन श्रोताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग भविष्य में करारा जवाब जरूर देगा. स्वयं जिनसे शिक्षित हुए उन ही शिक्षकों को मनहूसियत का सिला देना हर आम आदमी बदतमीजी के अलावा कुछ और नहीं कहेगा . इस से तो अच्छा ये होता कि आमंत्रण पत्र पर केप्सन होता कि केवल बेवकूफों और तालियाँ बजाने वाले "विशेष वर्ग" हेतु. 

विश्वास को खोकर भला कोई सफल हुआ है? अपने ही श्रोताओं का मजाक उड़ाने वाले को कोई कब तक झेलेगा, काश कभी वो स्थिति न आये कि कोई मंच पर ही आकर नीतिगत फैसला कर दे. 
__________________
अपने कार्यक्रम के दौरान कुमार विश्वास ने जो मंचीय अपराध किये वे ये रहे  
  1. मध्य-प्रदेश के माननीय विधान-सभा अध्यक्ष मान० ईश्वर दास जी रोहाणी के आगमन पर अपमान जनक टिप्पणी 
  2. श्री अलबेला खत्री जी का नाम आयोजकों पर दवाब डाल के कार्ड से हटवाया. और जब वे उड़ीसा के लम्बे सफ़र के बाद जबलपुर में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो उनको "अभद्रता पूर्वक "अलबेला अलबेला का संबोधन करना.
  3. टीनएज़र्स की तालियाँ बटोरने के चक्कर में वरिष्ठ नेताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं कलाप्रेमियों की खिल्लियाँ उड़ाना कविकर्म कदापि कहीं हो सकता... निश्चित रूप से ये किसी के माँ- बाप तो नहीं सिखाते फिर किसके दिए संस्कारों का विकृत स्वरूप कहा जाएगा. 
  4. भारतीय प्रेम को पाश्चात्य सेक्स से तुलना करने वाला रटा हुया जुमला
  5. इटारसी म०प्र० के कवि राजेंद्र मालवीय की कविता को अपने साथ हुई घटना के रूप में व्यक्त करना
  6. वयोवृद्ध  श्रीयुत रोहाणी जी के समक्ष स्वल्पहार रखते समय अभद्रता पूर्वक कटाक्ष करना. 
  7. उनके प्रस्थान के समय अभद्रता पूर्वक इशारे  करना.
  8. कुछ दिनों पूर्व मुझसे एक अन्य कार्यक्रम के आयोजन के बारे मेरे द्वारा फ़ोन पर  संपर्क करने पर कहा जाना "बिल्लोरे जी,एक लाख लूंगा, किराया भाड़ा अलग से वो भी टेक्स मुक्त तरीके से  " (आयकर विभाग ध्यान दे तो कृपा होगी.)अब आप ही निर्णय कीजिये आज़ देश भर के लिये जूझने वाले संत अन्ना-हजारे के साथ "जंतर-मंतर पर खड़े होने वाले बच्चों को रिझाने बहकाने वाले नकारात्मक उर्जा का संचार कर देने वाले भाई कुमार विश्वाश दोहरा चरित्र देश को किधर ले जा रहा है. " 
सच को सुन कर युवा साथी भौंचक अवश्य होंगे. किंतु यही है कुमार साहब का सच. वैसे तो कई सच हैं जो लोग "कौन किस्सा बढ़ाए ! " वाली मानसिकता की वज़ह से या कि सदाचार की वज़ह से कहते नहीं. 
वैसे हम साहित्य प्रेमियों की नज़र में यह व्यक्तित्व अतिशय कुंठित एवम "अपनी स्थापना के लिये कुछ भी करने वाला साबित हुआ है." जिसे यह शऊर भी नहीं कि "संवैधानिक पदधारियों से कैसा बर्ताव किया जाता है....? "
मेरी नज़र में "कुमार विश्वास" गांव में आये उस मदारी से बढ़कर नहीं जिसका हम भी बचपन में इंतज़ार करते थे . 
अंत में छोटे बच्चे की तरह समझाईश कुछ यूं :-

अगर तू गीत गाता है तो बस तू गीत गाता चल
टोटकों से निकल बाहर खुद को आज़माता चल
तेरी ताक़त तेरी शोहरत नही,तेरी वफ़ादारी-
सब से मत बना रिश्ते बना तो फ़िर निभाता चल.

21.3.11

मेरे मुहल्ले मे आये थे अमिताभ बच्चन जी

ग्वारीघाट की शाम कोशिश थी कि सबसे पहले माई को गुलाल अर्पण करूं  कल 19 मार्च 2011 की तस्वीर है
उसपार होली के लिये सज़ा संवरा गुरुद्वारा 

इस पार चिन्मय शुभम गोलू भैया के साथ दीप दान की जुगत लगा रहे थे
आज तो गज़ब ही हो गया हमारी सुबह देर रात तक मोहल्ले में व्यस्त रहने की वज़ह से 

अरे क्या सजल अमिताभ बच्चन जी से लम्बा है इस साल इसके हाथ  पीले करना है
मिलें या लिखें आपका नाम व पता किसी को नही बताऊंगा 
वैसे उज्जवल भी लाइन में लगा . जो रह जाए बाद में ट्राय करते रहना 
वैसे शादी तो करेंगे पर बेचेंगे नहीं  हम इन को 

गौर दादा जी को तिलक लगाते अमिताभ बच्चन 

और फ़िर फ़ोटो खिचवा ही लिया लम्बू जी ने
सच आज़ आये थे अमिताभ जी जबलपुर 
मुहल्ले में टोली का घूमना एक मज़ेदार और अनोखा पहलू है आज़ फ़िर एक बार मलय जी की लायब्रेरी को देखने का मौका मिला 


मलय जी,बाबूजी,मिश्रा जी, वर्मा जी, सभी तो थे साथ साथ 

कविवर मलय का ये अदभुत चित्र


जी भूल ही गया था भतीजा चिन्मय बच्चों मे खोजे न मिल रहा था आज़, 

जाने  क्या खोजतीं आखैं वर्मा जी की राख का ढेर है शोला है न चिंगारी है..
 कल रात जली हुई राख बनी होलिका के पास खड़े  नायडू भैया जेब में हाथ डाले विचार मग्न  यही गुनगुना रहे हैं 

मेरे परियोजना अधिकारी मित्रों में सबसे इन्नोसेंट 
         "दीपेन्द्र है जिनको दीपू कहता हूं"
मनीष शर्मा के क्या कहने
हमारे ग्रुप के सबसे शातिर लगता है किंतु है नही
जी पुनीत यानि गिलबिल

ये है मनीष सेठ खूब हंसा रहे थे  जज़ूर कोई दर्द था जिसे छिपा रहे थे

ये अपन साफ़्ट ड्रिंक पी रहे थे तब की फ़ोटो 

ये भी अपन ही हैं 

दीपेंद्र भाई एक दम मस्त ड्रायवर 


गिलबिल और शर्मा जी 

सेठ जिनको फ़त्ते कहो कोई हर्ज़ नहीं

Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...