लुकमान चाचा |
बवाल हिंदवी यानी एक सम्पूर्ण कलाकार यानी एकदम पूरा का पूरा बवाल जब मंच पर आये तो समझिये लोग एक पल भी ऐसे बवाल से दूर न होने की क़सम खा लेते हैं. विनोबा-भावे ने जबलपुर को सैंत में न दिया ये नाम एक बानगी तो देखिये....
लाल और बवाल ब्लाग से साभार |
बवाल एक ऐसे उस्ताद का शागिर्द है जिनने उर्दू -कव्वाली कव्वाली से उर्दू का एकाधिकार समाप्त किया.हिंदी कविताओं गीतों को प्रवेश दिलाया था कवाली-शैली की गायकी में. बवाल के गुरु स्वर्गीय लुकमान जो गंधर्व से कम न थे. हम लोगों में गज़ब की दीवानगी थी चच्चा के लिये...देर रात तक उनको सुनना उनकी महफ़िल सजाना एक ज़ुनून था.. फ़िल्मी हल्के फ़ुल्के संगीत से निज़ात दिलाती चचा की महफ़िल की बात कैसे बयां करूं गूंगा हो गया हूं..गुड़ मुंह में लिये
आप सोच रहें हैं न कौन लुकमान कैसा लुकमान कहाँ का लुकमान जी हाँ इन सभी सवालों का ज़वाब उस दौर में लुकमान ने दे दिया था जब उनने पहली बार भरत-चरित गाया. और हाँ तब भी तब भी जब गाया होगा ''माटी की गागरिया '' या मस्त चला इस मस्ती से थोड़ी-थोड़ी मस्ती ले लो (आगे देखिये यहां चचा लुक़मान के बारे में)
10 टिप्पणियां:
बड़े अच्छे गीत से परिचय कराया। आनन्द आ गया। लुकमान चाचा का पूर्ण परिचय दें।
नहीं खुला..
आनन्द आ गया।
बवाल हिंदवी जी के बारे में जान कर मन श्रद्धा से भर गया...
बवाल हिंदवी जी और उनके गुरु स्वर्गीय लुकमान जी को
सादर नमन..
ये तो आप सब लोगों की मोहब्बत है गिरीशजी, जो तहेदिल से हमारे उस्ताद को याद फ़रमाते हैं। सच कहा वो बहुत बहुत बहुत याद आते हैं।
आपका बहुत बहुत आभार हमारा गाना हमारे ब्लॉगर मित्रों को सुनवाने के लिए। यह गीत सन १९३९ में उस दौर में निकलने वाली एक पत्रिका में छपा था जिस पर डॉ. सुयोग पाठक जी और सचिन उपाध्याय जी ने यह धुन बनाई थी और नाचीज़ को इस मीठी धुन पर गाने का अवसर विविध भारती ने दिया।
नमस्कार।
jee
aabhaar
भाई साहब,
बहुत सुन्दर गीत सुनाया बवालजी का। ऐसा लगता है जैसे किशोर कुमार गा रहे हों। लोकमान जी की आवाज का भराव भी महसूस होता है उनकी की आवाज में। प्रोननसियेशन कितना बढ़िया है। लोकमान जी को कौन भूल सकता है भला। मोदी बाड़े सदर में हमने भी उन्हें सुना है। बवाल जी को भी एक बार नागपुर में सुना है पिछले साल दिसम्बर में रेल्वे कालोनी के एक कार्यक्रम में। सुनने वालों को बाँध के रख दिया था जैसे। रात के ढाइ बजे तक गाया था उन्होंने।
बवाल साहब को आज पहली बार सुना और यकीन मानिये उनके हुनर का दीवाना हो गया...गाने की शैली अदायगी सब कुछ...उफ़ यूँ माँ...दिल करता है के वो गएँ और हम आँख बंद किये उन्हें सुनते रहें...सुनते रहें...सुनते रहें...अद्भुत...वाह...
नीरज
जी नीरज़ जी अभी तो बानगी दिखाई है
ज़ल्द ही सिलसिला आगे होगा
बहुत सुन्दर गीत..धन्यवाद..
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