15.1.10

शहर जबलपुर की शान लुकमान





 [Chacha01.jpg]
जी अब इस शहर में आइनों की कमीं को देख के मलाल होता है की क्यों लुकमान नहीं हैं साथ . बवाल हों या समीर लाल  चचा   लुकमान  थे  ही ऐसे . गोया अल्लाह ने लुकमान के लिबास में एक फ़रिश्ता भेजा था इस ज़मीं पर....जिसे मैंने छुआ था उनके चरण स्पर्श कर.  दादा लुकमान की याद किसे नहीं आती . सच मेरा तो रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया था .....27 जुलाई 2002 का वो दिन जब लुकमान जी ने शहर जबलपुर से शरीरी रिश्ता तोडा ........ वे जेहन से दूर कभी हो भी नहीं सकते . जाने किस माटी के बने थे जिसने देखा-सुना लट्टू हो गया . इस अद्भुत गंगो-जमुनी गायन प्रतिभा को उजागर किया पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने , इस बिन्दु पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहन शशि का कहना है:-"भवानी दादा के आशीर्वाद से लुकमान का बेलौस सुर-साधक होना सम्भव हो सका धर्म गुरुओं ने भी लुकमान की कव्वालियाँ सुनी"शशि जी ने आगे बताया -"लुकमान सिर्फ़ लुकमान थे (शशि जी ने उनमें नकलीपन कभी नहीं देखा) वे मानस पुत्र थे भवानी दादा के " १४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) को जन्मा यह देवपुत्र जन्म से मोमिन,था किंतु साम्प्रदायिक सदभाव का मूर्त-स्वरुप था उनका व्यक्तित्व. सिया-चरित,भरत-चरित, मैं मस्त चला हूँ मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो , माटी की गागरिया , जैसे गीत बिना किसी लुकमानी महफ़िल का पूरा होना सम्भव ही नहीं होता था।लुकमान साहब को अगर साम्प्रदायिक सौहार्द का स्तम्भ कहें तो कम न होगा। भरत चरित सुन के कितनी पलकें भीगीं किसे मालूम ? मुझे याद है कविवर रामकिशोर अग्रवाल कृत भरत चरित्र, सिया चरित,सुनने वालों की पलकें अक्सर भीग जातीं मैंने देखीं हैं . साधना उपाध्याय,मोहन शशि,स्वयं रामकिशोर अग्रवाल "मनोज", ओंकार तिवारी,रासबिहारी पांडे , बाबू लाल ठाकुर मास्साब, डाक्टर सुधीर तिवारी,और यदि लिखने बैठूं तो एक लम्बी लिस्ट है जिसे लिखना लाजिमी नहीं है.लुकमान  का चचा के साथी एक बवाल दूजा डुलकिया कुबेर ,शेषाद्री एक बाजा यानी बैंजो ,और पेटी जिसे खुद चचा बजाते थे. चचा विश्व के लिए मिसाल थे हिन्दू मुसलमान ईसाई सभी चचा  की गायकी मुरीद कुल मिला ले कट्टर पंथियों के गाल पे करारा तमाचा थे लुकमान.
_________________________________________________
श्रीमती जी के साथ एक बार साहित्यिक कार्यक्रम में चचा से मिला चरण स्पर्श किया श्रीमती जी ने अनमने भाव से नमस्कार किया किन्तु ज्यों हीं उनके मुख से सिया चरित सुना तो बस गोया मन उनका कंचन सा हो गया मानो कार्यक्रम की समाप्ति पर सुलभा ने सबसे पहले चरण स्पर्श किये. हम जो चचा के चरण-स्पर्श से इतने सफल हो गए तो वे कितने सफल न हुए होंगे जिनने चचा के अंतस को स्पर्श किया होगा.
________________________________________________
आप सोच रहें हैं न कौन लुकमान कैसा लुकमान कहाँ  का लुकमान जी हाँ इन सभी सवालों का ज़वाब उस दौर में लुकमान ने दे दिया था जब  उनने पहली बार भरत-चरित गाया. और हाँ तब भी तब भी जब गाया होगा ''माटी की गागरिया '' या मस्त चला इस मस्ती से थोड़ी-थोड़ी मस्ती ले लो 
________________________________________________
मैं इस कोशिश में हूँ कि चचा के गाये गीत आप तक शीघ्र लाऊं यदि बवाल ने मदद की तो ये संभव होगा
________________________________________________
पंडित लुकमान भाईजान हो विनत श्रद्धांजलियां
समाचार कतरन पत्रिका जबलपुर से साभार {यद्यपि आज सामग्री इस लिंक पर नहीं है }
_________________________________________________________
मेरा फोटो
प्रीती का आज का सबसे सामयिक आलेख  भी देखिये
[anilPUSADKAR.jpg]
इनके आलेख को तो सब देख ही रहे हैं है न ब्लागवाणी पर टाप-ओ-टाप
चल रिया है
निवाले छीनने वाले सर्वत्र हैं यहाँ भी  फिर भी झारखंड का एक चटके में नज़ारा भी ज़रूरी है 

10 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

लुकमान चचा के बारे में और भी जानने की इच्छा है।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सादर अभिवादन
सर जल्द ही चचा के आडियो वीडियो पेश करने की कोशिश करूंगा

Pawan Meraj ने कहा…

mere dil me bhi vahi chahat hai ki lukmaan chacha ke bare me or janu

बवाल ने कहा…

वाह वाह भाई मुकुल जी,
हम अपना दिल आपके कने भिजवा रहे हैं। उसे अब आप ही संभालिएगा, क्योंकि उसे आप जीत चुके हैं यह पोस्ट लिखकर।
बाक़ी बचे हम, तो हमें भरोसा है कि अपने इस दोस्त को ज़िंदा रखने के लिए आप हमारे उस नामुराद दिल को बख़ूबी संभाल के रखेंगे।
चचा की बड़ी याद आ रही है कल से ही। आदरणीय दिनेशजी को भी हम अपना उस्ताद मानते हैं। काश, कभी उनके चरण स्पर्श का भी मौका मिले।

Udan Tashtari ने कहा…

चचा की याद दिला दई, महाराज!! क्या दिन थे बॉस ...मोती बाड़े में उनका जो रंग जमता था रात भर.

बहुत आभार इस पोस्ट को लाने का.

जय हो!!

चचा की याद को शत शत नमन!!

बवाल को पकड़ कर रिकार्डिंग करवाईये!!

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

समीर भाई आज बवाल ने खूब रुलाया सच अब जाके मन हल्का हो रहा है जे सच्ची में जब लईपुर में होता बवाल की आखों का अश्रु मुकुल की पलक भिगोता है वरना देक्खो न कित्ते बड्डे-बड्डे ''बड्डे '' हैं दुनिया ज़हान में कौन किसका आंसू ढ़ोताहै

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

चचा के लिये आप लोगो की श्रद्धा से ही समझ आ रही है कि चचा लुकमान बहुत ही सम्माननिय सख्शियत थे, उनके बारे में विस्तार से जानने की इच्छा प्रब्ल हो रही है.

रामराम.

समयचक्र ने कहा…

चाचा लुकमान को नमन करता हूँ. उनकी रचनाये आज भी दिल को छू जाती है . मै बहुत छोटा था तत्समय उनसे मिलाने का मौका मिला है . दीक्षितपुरा जबलपुर में उनकी कव्वाली सुनने का अवसर मिला है .

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

मिश्र जी
ताऊ का प्रस्ताव कार्य योग्य है
सहयोग कीजिये

संजय भास्‍कर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...