26.12.23

धर्म का बहुविकल्पीय होना जरूरी है..!

*धर्म का बहुविकल्पीय होना जरूरी है*
*गिरीश मुकुल*
    धर्म अगर विकल्पों से युक्त ना हो तो उसे धर्म कहना ठीक नहीं है। धर्म का सनातन स्वरूप यही है। या कहिए सनातन धर्म की विशेषता भी यही है। हम धर्म को परिभाषित करने और समझने के लिए बहुतेरे  कोणों उपयोग और अंत में यह कह देते हैं कि-" भारत मैं पूजा पाठ का पाखंड फैला रखा है ब्राह्मणों ने।
  सनातन धर्म को केवल  पूजा पाठ एवं कर्मकांड से जोड़ना अल्प बुद्धि का परिचायक है। सनातन एक व्यवस्था है बहुविकल्पीय व्यवस्था है सनातन में नवदा-भक्ति का उल्लेख मिलता है।
श्रवण, कीर्तन,स्मरण, पादसेवन,अर्चन , वंदन , दास्य , सख्य  एवं आत्मनिवेदन - 
यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि जो हम रिचुअल्स अर्थात प्रक्रियाएं अपनाते हैं जिसे सामान्य रूप से कर्मकांड कहते हैं ही सनातन नहीं है बल्कि 9 प्रकार की उपरोक्त समस्त भक्ति सनातन व्यवस्था में वर्णित है।
   आप सभी समझ सकते हैं कि नवदा भक्ति से ब्रह्म तत्व की प्राप्ति संभव है।  बहुत से पंथों मतों और संप्रदायों संस्थापक द्वारा दिए गए निर्देशों का ही पालन होता है। जबकि सनातन धर्म में उपासना को भी बंधनों से अगर बांधा गया है तो देश काल परिस्थिति के अनुसार उपासना के विकल्प भी सुझाए गए हैं। एक व्यक्ति जिसे शिव की पूजा करने का तरीका नहीं मालूम तो वह शिव की आराधना मानस पूजा से कर सकता है। सनातन मुक्ति मार्ग सुझाता है, क्योंकि सनातन *पुनरपि जन्मं  पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे सनम* को मानता है अतः वह मुक्ति मार्ग को श्रेष्ठ मार्ग मानता है। इसके अलावा सनातन कर्मवाद की उपेक्षा नहीं करता। बल्कि *कर्म ही पूजा है..!* जैसे सिद्धांतों को सम्मान देता है।
    मालवा-निमाड़-भुवाणा क्षेत्र में एक लोकोक्ति है- *"फूल नि..फूल की पाखड़ी"* अर्थात फूल ना मिले तो वो उसकी पंखुड़ी से भी ईश्वर के प्रति अपनी भावना व्यक्त की जा सकती है।
सनातन व्यवस्था की मुखालफत करने वाले लोग यह नहीं जानते कि सनातन व्यवस्था में *स्वर्ग- नर्क की कल्पना* से ज्यादा महत्वपूर्ण है... साधक का मुमुक्षु होना। कोई भी जी इस बात की परिकल्पना नहीं करता कि उसे स्वर्ग के सुख का अनुभव हो बल्कि वह परिकल्पना करता है कि वह ईश्वर तत्व में विलीन हो जाए। ईश्वर अमूर्त है ईश्वर निर्गुण है ईश्वर एकात्मता का सर्वोच्च उदाहरण है। यह बौद्धिक मान्यता है। लौकिक मान्यता के अनुसार-" सनातन साधना को महत्व देता है।"
    ब्रह्म का स्मरण ब्रह्म की साधना से पहले आराधना और आत्म केंद्रीकरण के लिए साधक प्रारंभिक स्थिति में पूजा प्रणाली को प्रमुखता दी है। साधक पूजा प्रणाली में शुचिता और पवित्रता के साथ प्रविष्ट होता है। क्योंकि मनुष्य अथवा जीव का शरीर भाव और भौतिक स्वरूप में होता है अतः मनुष्य को शारीरिक अनुशासन के लिए शुचिता और पवित्रता के नियमित अभ्यास के लिए पूजा प्रणालियों का विकास किया गया। यह पूजा प्रणालियां देश काल परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील है। 
प्रणालियों में जड़ता तो बिल्कुल नहीं है। इस प्रणाली के कारण विभिन्न संप्रदाय एवं मत जन्म ले सकते हैं।
   मित्रों यह गलत है कि केवल ब्राम्हण सनातन का संवाहक है। कुछ विद्वानों ने धर्म और धार्मिक क्रियाओं की उपस्थिति को कुछ विद्वानों ने तो कुछ विद्वानों ने ब्राह्मणों को धर्म का केंद्र मानते हुए अपने-अपने मत रखकर समाज को भी ब्राह्मणों को विरोध का बिंदु बनाने की कोशिश की है।

आप ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि ब्राह्मण सनातन का एक हिस्सा है उसे उसके दायित्व शॉप पर गए हैं। वर्ण व्यवस्था में भी यही है और वह प्रक्रियाओं के निष्पादन में सहायता करता है जिस तरह से आज न्यायालय में वकील जो  न्यायालय की संपूर्ण कार्य प्रणाली को जानता है उसे कोर्ट कचहरी में मदद हेतु आने की अनुमति दी जाती है। अन्य वर्णों पर भी यही फॉर्मूला लागू होता है।
   प्रगतिशील विचारक तथा तथाकथित बुद्धिजीवी अपने प्रभाव को विस्तारित करने के लिए ब्राह्मण शब्द का विरोध करते हुए अपने मत का प्रवर्तन एवं उसका विस्तार करते हैं। और  प्रवर्तन तथा विस्तार की प्रक्रिया जिन मंतव्यों प्रयोग करते हैं वह सामाजिक विघटन की आधारशिला है।
  आयातित विचारधारा का उद्देश्य है लोगों को वर्गीकृत करो, वर्गों को उत्तेजित करो, समाज में विघटन पैदा करो। पिछले दिनों दिल्ली के एक मंत्री राजेंद्र गौतम ने सार्वजनिक रूप ने  सनातन अर्थात वर्तमान शब्दों में हिंदुत्व के विरुद्ध शपथ दिलाते हुए लोगों को सनातन मान्यताओं के परित्याग की शपथ दिलाई है।
  यह घटना केवल दिल्ली में ही नहीं देखी गई बल्कि छोटे-छोटे शहरों कस्बों यहां तक कि गांवों में भी तेजी से विस्तारित हो रही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि मेरे जिले के पास के एक जिले से कुछ लोग एक गांव में जाकर एक जाति विशेष को एकत्र करते हैं जिसे भी दलित मानते हैं यद्यपि हम नहीं । जाति समूह के सामने सनातन की कमियों को उजागर करते हुए भ्रामक जानकारियां देते हैं। और बाद में श्री राजेंद्र गौतम की तरह ही आस्था के केंद्र में परिवर्तन की शपथ दिलाते हैं। सौभाग्य वश समूचा समूह उत्तेजित होकर उन का परित्याग कर देता है।
   कुल मिलाकर सनातन धर्म की विशेषताओं को किनारे रखकर वातावरण निर्माण किया जा रहा है। और अपने मंतव्य तथा मतों को स्थापित करने की अनाधिकृत कोशिश राष्ट्रीय एकात्मता आपको छिन्न-भिन्न करने पर आमादा है। एक बौद्धिक आंदोलन की आवश्यकता है जो वास्तविक पंथनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करें। और इसका तरीका है नकारात्मक विचार प्रवाह पर रोक लगाना।


25.12.23

इतिहास पुरुष राजाधिराज श्री राम - मेरी नई ऐतिहासिक पुस्तक


   भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक दृश्य को  सामने लाने की आवश्यकता है।
  देशकाल स्थिति के अनुसार उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से इतिहास को संयोजित किया जाता है। प्राचीन विश्व में इतिहास को सजाने के लिए, तथा वर्तमान में तत्कालीन परिस्थितियों को जानने के लिए पुरावशेष, शिलालेख, ताम्रपत्र,लौहपत्र, स्वर्णपत्र, रजतपत्र, सिक्के, लिखे हुए दस्तावेज, गुफा चित्र आदि का उपयोग किया जाता है।
मेरा यह मानना है कि -"इस तरह के ऐतिहासिक प्रमाण केवल लगभग चार या पांच हज़ार वर्ष पूर्व तक सुरक्षित रहते हैं!"
  परिवर्तनशील विश्व में जो भी कुछ कथाओं में अंकित होता है उसे ऐसे साक्ष्यों के अभाव में मिथक कह दिया जाता है।"
   भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में भी श्रुत की परंपरा रही है। जो वंशानुगत आने वाली पीढ़ियों को संसूचित की जाती रही है। श्रुत परंपरा में एक समस्या होती है वह यह कि-"ऐतिहासिक घटनाक्रमों की सूचना संवाहक उसमें परिवर्तन जानबूझकर अथवा अनजाने में कर देते हैं।"
जिसका दूरगामी परिणाम होता है। भगवान श्री रामचंद्र के साथ यही घटनाक्रम हुआ है। भगवान श्री रामचंद्र इतिहास पुरुष थे जिन्हें काल्पनिक साबित किया गया था।
यहां  स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि - "श्री राम एवं श्री कृष्ण, न तो मिथक थे न ही काल्पनिक लोक- कथाओं के नायक !"
  बल्कि वे भारत के इतिहास का हिस्सा भी रहे हैं।
  इतिहास के राम कालीन समय में तथा कालांतर में भारत का प्राचीन इतिहास काव्य के लिखा जाता था। कविताओं का अपना अलग सौंदर्य होता है, जिसे कवियों ने अपने-अपने ढंग से राम और कृष्ण की कथाओं में समावेशित किया था। इसका अर्थ कालांतर में यह नहीं लगना चाहिए कि -"श्रीराम और श्री कृष्ण इतिहास का हिस्सा न थे।"
प्राचीन  भारतीय इतिहास को आयातित विचारधारा की स्थापना करने वाले तथा उसमें सहयोग करने वाले भारतीय विद्वानों  ने इतिहास को अपनी ऐनक से वैसा देखा है जैसा भी देखना चाहते थे। भारत से घृणा करने वाले चर्चिल तो भारत को केवल सभ्यता एवं संस्कृति विहीन भू भाग मानते थे।
श्री हिंद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित मेरी पूर्व कृति में सब कुछ स्पष्ट है। कृति का स्मरण होगा ही तथापि पुन:स्मरण दिलाना चाहता हूं कृति का नाम है *भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 वर्ष ईसा पूर्व* ।
  वर्तमान  युग के समाज को प्रमाणों की जरूरत है...!
  मेरे एक वरिष्ठ मित्र आदरणीय वेद वीर आर्य ने एक तरीका खोज निकाला है। उन्होंने नक्षत्रों की पूर्व कालीन स्थिति को ईसा के पूर्व के कालावधियों में में स्थापित कर दिया तथा साहित्य में उपलब्ध विवरण जैसे राम का जन्म, विवाह, वन गमन, रावण वध, की ग्रह गोचर की परिस्थितियों के साथ समेकन   कर तिथियों का निर्धारण किया है ।
श्रीराम, श्रीकृष्ण , ही नहीं बल्कि रेस लीडर ब्रह्मा, पूर्व वैदिक काल से मध्ययुगीन भारत के  कालानुक्रम में संयोजित किया है।
  भारतीय नक्षत्र गणना प्रणाली बहुत पुरानी है। प्राचीन लेखक कवि साहित्यकार समकालीन परिस्थितियों की पुष्टि के लिए नक्षत्र की स्थिति का उल्लेख किया करते थे। जिसके आधार पर आज के दौर में हम धार्मिक संकल्पों मानते हैं जैसे रामनवमी विजयदशमी दीपावली इत्यादि।
   प्रभु श्री राम की कृपा एवं वीर हनुमान द्वारा प्रदत्त साहस से यह कृति आपके समक्ष प्रस्तुत है।
   अपने स्वर्गीय माता-पिता गुरु और ब्रह्म के कार्य को संपादित करने का साहस, क्षमता एवं दक्षता मुझ में नहीं है। अपने कर्मठ अग्रज श्री हरीश एवं श्री सतीश जी की प्रेरणा से जो लिखा है वह सत्य है कि~ "भगवान श्री राम काल्पनिक नहीं बल्कि इस भारत भूमि पर अवतरित हुए थे। वे केवल मर्यादा पुरुषोत्तम राम न थे बल्कि वे चक्रवर्ती राजाधिराज श्री राम भी थे।"
  "ॐ श्री रामकृष्ण हरि:" 

22.11.23

Comfort Zone

कंफर्ट जोन का सामान्य सा अर्थ यह होता है कि कोई भी व्यक्ति जो आसन्न परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने की स्थिति में नहीं होता, अर्थात वह शक्ति विहीन हो जाता है।        किसी भी तरह से वह अपने आप को सुरक्षित रखने की और उसे चुनौती से दूर रहने या बचने की कोशिश करता है।
    सफल वे लोग ही होते हैं जो अपने कंफर्ट जोन से बाहर हो जाते हैं। कंफर्ट जोन से बाहर आने के लिए रिस्क लेने की जरूरत है। परंतु रिस्क लेने के परिणाम और रिस्क लेने की प्रक्रिया से होने वाले नुकसान का गुणा भाग करते हुए लोग अक्सर रिस्क उठाने नहीं चाहते कुल मिलाकर भी अपने कंफर्ट जोन में रहना चाहते हैं।
रिस्क न लेने की आदत कंफर्ट जोन में बनी रहने की प्रवृत्ति की प्रथम सूचना है। भले ही किसी को कुछ हासिल ना हो परंतु वह अपने कंफर्ट जोन को छोड़ना नहीं चाहता। उसे मालूम है कि यदि हम रिस्क नहीं लेंगे तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा जीतते केवल रिस्क उठाने वाले हैं No risk no gain के सिद्धांत पर चलने वाले लोगों की संख्या अगर बढ़ जाती है तो किसी भी देश के विकास की संभावना शून्य समझिए।
    हाथी को सुई के छेद से निकाला जा सकता है,गधे को ज्ञानी बनाया जा सकता है, फरवरी 30 दिन की हो सकती है यानी हर कुछ जो असंभव है संभव हो सकता है परंतु कंफर्ट जोन में रहने वालों को कंफर्ट जोन से बाहर निकलना सबसे मुश्किल मामला होता है।
    हम लोग अपने अपने सेगमेंट में जीते हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन सिग्मेंट में भी लोग अपनी सीमाओं में ही जीवन यापन करते हैं।
  जनसामान्य को सुबह उठना रोजगार करने या दफ्तर जाना दफ्तर में अपने पसंदीदा पैटर्न का कार्य करना शाम को वापस आना और एक तयशुदा तरीके से जीवन को जीने की आदत है। वे ऐसा ही  करते हैं।
  अगर इससे जीवन कम से हटके कोई स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो मानसिक और शारीरिक रूप से तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। यानी कोई भी अपने कंफर्ट जोन से निकलना नहीं चाहता।
   यूँ समझिए कि कंफर्ट जोन जाड़े की सर्द रात में रजाई के मानिंद है.. जिसके भीतर बने रहने का एहसास सभी को पसंद है।
  ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच विश्व कप क्रिकेट में भारत की पराजय पर लोग विचलित हो गए अब आप सोचेंगे कि यहां कंफर्ट जोन का मामला नहीं है..!
   दर्शकों और क्रिकेट प्रेमियों का कंफर्ट जोन जीत है ....
"दर्शक और क्रिकेट प्रेमी" खिलाड़ी-भावना वाले कंफर्ट जोन में रहना नहीं चाहते ..!
   यह तो खेल की बात हुई आप देखेंगे कि अगर आपके व्यक्तित्व में सबसे मिलने जुलने तथा बातचीत करने का अभ्यास है और एक दिन आप चुपचाप रहे तो लोग आपसे परेशान हो जाएंगे..!    लोगों की परेशानी की वजह है आपकी चुप्पी है आपका अभ्यास मिलने जुलने का है लोगों से बातें करने का है ऐसी स्थिति में आपकी खामोशी लोगों को उनके कंफर्ट जोन यानी आपकी बातचीत करने मिलने जुलने की आदत से बाहर निकलती है और वे विचलित भी हो जाते हैं।
   कुल मिलाकर यही विचलन मानसिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचता है।
हम सरकारी लोगों  की ड्यूटी अक्सर चुनाव में या किसी आकस्मिक कार्य में लगा दी जाती है। हम  में से अधिकांश लोग चुनावी ड्यूटी से  घबराते हैं।
आकस्मिक परिस्थितियों और कार्यों से घबराने वाले लोग एक ऐसे कंफर्ट जोन में रहते हैं जहां कोई रिस्क नहीं है . ..! अधिसंख्यक लोगों को एक फॉर्मेट में काम करने का अभ्यास होता है।
  आकस्मिक रूप से चुनाव ड्यूटी लगने पर लोग घबरा जाते हैं तनाव ग्रस्त भी तो हो जाते हैं।
  ड्यूटी लगते ही उनकी कोशिश रहती है कि उनका नाम किसी भी तरह से चुनाव की ड्यूटी से कट जाए।
     मैंने देखा है कि कई लोग  अपने आप को अपने ऑफिस के लिए अति महत्वपूर्ण साबित करता है भले ही ऑफिस में एक फाइल भी न चलाते हों ।  कोई अपने परिवार को अथवा स्वयं को बीमार घोषित कर देते हैं । कई बार तो ऐसे ऐसे बहाने बनाते हैं जिन्हें सुनकर आपको लगेगा दुनिया का सबसे बड़ा दुख दर्द इन्हीं लोगों के हिस्से में आया है। कुछ लोग तो अपने मां-बाप भाई बहन को बीमार कर देते हैं भले ही वे अपने परिजनों के साथ 1 मिनट भी न बैठते हों या उनकी जरा भी सेवा करते हों।
    सरकार और व्यवस्था के कार्यों की नकारात्मक समीक्षा करने वाले लोग अक्सर अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के लिए बेहद संवेदित रहते हैं जबकि वे  अपनी प्रजातंत्र  के लिए नैतिक दायित्वों को ताक में रख देते हैं हैं।
Such people can never do anything for the country who are only conscious of their rights. इन लोगों को  राष्ट्र के प्रति कर्तव्य के बारे में समझना सोचना चाहिए।
   कंफर्ट जोन में रहने वालों को एक ही संदेश है कि वह कंफर्ट जोन से बाहर निकले बाहर लाखों जैकपोट उनका इंतजार कर रहे हैं ।
 
  
 













29.9.23

गुज़रात का गरबा विश्व-व्यापी हो गया

 



जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर


`गुजरात के व्यापारियों एवं प्रवासियों  ने सम्पूर्ण भारत ही नहीं बल्कि  विश्व को अपनी संस्कृति से परिचित कराया इतना ही नहीं  उसे  सर्व प्रिय भी बना दिया.

गरबा गुजरात से निकल कर भारत के सुदूर प्रान्तों तथा विश्व के उन देशों तक जा पहुंचा है जहाँ भी गुजराती परिवार जा बसे हैं , 

एक  महिला मित्र प्रीती गुजरात सूरत से हैं उनको मैंने कभी न तो देखा किंतु   कला रुझान को परख कर पहले आरकुट फिर फेसबुक पर  मित्र बन गयीं हैं ,वे मुझसे अक्सर गुजरात के  सूरत, गांधीनगर, भरूच, आदि के बारे में अच्छी जानकारियाँ देतीं है . मेरे   विशेष आग्रह पर मुझे सूरत में   हुए गरबे का फोटो सहजता से भेज दिए .

एक लेखिका  गायत्री शर्मा बतातीं हैं कि  "गरबों की शान पारंपरिक पोशाकों से  चार-गुनी हो जाती है. इनमें महिलाओं के लिए चणिया-चोली और पुरुषों के लिए  केडि़या" गरबा आयोजनों में देखी जा सकती  है।

आवारा बंजारा ब्लॉग  पर प्रकाशित  पोस्ट गरबा का जलवा  में लेखक ने स्पष्ट किया है :-" गुजरात नौवीं शताब्दी में चार भागों में बंटा हुआ था, सौराष्ट्र, कच्छ, आनर्ता (उत्तरी गुजरात) और लाट ( दक्षिणी गुजरात)। इन सभी हिस्सों के अलग अलग लोकनृत्य लोक नृत्यों  गरबा, लास्या, रासलीला, डाँडिया रास, दीपक नृत्य, पणिहारी, टिप्पनी और झकोलिया की मौजूदगी गुजरात के सांस्कृतिक वैभव को मज़बूती प्रदान करती है । 

अब सवाल यह उठता है कि करीब करीब मिलती जुलती शैली के बावजूद  सिर्फ़ गरबा या डांडिया की ही नेशनल या इंटरनेशनल छवि क्यों बनी। शायद इसके पीछे इसका – गरबे के आकर्षक परिधान एवं नवरात्री पूजा-पर्व है।"

एक दूसरा  सच यह भी है कि- व्यवसायिता का तत्व गरबा को प्रसिद्द कर रहा है. फिल्मों में गरबे को , एवं चणिया-चोली केडि़या के आकर्षक उत्सवी परिधान की मार्केटिंग रणनीति ने गरबे  को वैश्विक बना दिया है.”

दूसरी ओर अंधाधुंध व्यवसायिकता से नाराज  ब्लॉग लेखक संजीत भाई की पोस्ट में गरबे की व्यावसायिकता से दूर रखने की वकालत की गई है. 

ब्लॉग पोस्ट पर  भाई संजय पटेल की  टिप्पणी उल्लेखनीय है कि  "संजीत भाई;गरबा अपनी गरिमा और लोक-संवेदना खो चुका है । उनका कहना है कि मैने तक़रीबन बीस बरस तक मेरे शहर के दो प्रीमियम आयोजनो में बतौर एंकर शिरक़त की . अब दिल खट्टा हो गया है. सारा तामझाम कमर्शियल दायरों में सिमटा हुआ लगता  है. पैसे का बोलबाला है इस पूरे खेल में और धंधे साधे जा रहे हैं.'' 

संजय जी की टिप्पणी एक हद तक सही किंतु मैं थोडा सा अलग  सोच रहा हूँ कि व्यवसायिकता में बुराई क्या अगर गुजराती परिधान लोकप्रिय हो रहें है , 

गरबा ही नहीं गिद्दा,भांगडा,बिहू,लावनी,सभी को सम्पूर्ण भारत ने सामूहिक रूप से स्वीकारा है केवल गरबा ही नहीं ये अलग बात है कि गरबा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के सहारे सबसे आगे हो गया ।

इन दिनों अखबार  समूहों  ने भी  गरबे को गुजरात से बाहर अन्य प्रान्तों तक ले जाने की सफल-कोशिश की हैं । 

इंदौर के  गरबा दल की 2008 में  , मस्कट में हुई प्रस्तुति गज़ब थी. . अब कनाडा, बेल्जियम, यूएसए, सहित विश्व के कई देशों में लोकप्रिय हुआ  तो यह भारत के लिए गर्व की बात है ।

सुना है कि- अब तो गरबे के लिए महिला साथी की व्यवस्था भी फीस देकर प्राप्त की जाने लगी है. ।

संजय पटेल जी की शिकायत जायज है. वे गुजराती हैं तथा  गरबे के बदले  स्वरुप से नाराज हैं उनका मत है कि- "चौराहों पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स, गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी करवाते नौजवान,  देर रात को गरबे के बाद (तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ों के साथ जुगलबंदी करते चिल्लाते नौजवान, घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती कमसिन-जवान बेटियाँ इसके अलावा गरबे  के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली, इवेंट मैनेजमेंट के चोचले,  रोज़ अख़बारों में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें, देर रात गरबे से लौटती हुड़दंग मचाती नौजवान पीढी और तो और  डीजे की  कानफ़ोडू आवाज़ें जिनमें से  गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम है. मुम्बईया  फ़िल्मी स्टाइल का संगीत,  बेसुरा संगीत संजय पटेल जी की नाराज़गी की मूल वज़ह है. 

गरबे  के नाम पर बेतहाशा भीड़ से ट्रैफिक जाम,  ...लोगों के लिए कष्ट देने वाला साबित हुआ है.

 रिहायशी इलाक़ों के मजमें धूल,ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण बीमारों, शिशुओं,नव-प्रसूताओं को तकलीफ़ देता है. उस पर नेतागिरी के जलवे । मानों जनसमर्थन जुटाने  के लिये एक राह  खुल गई हो 

नवरात्रों में देवी की आराधना प्रमुख है .अब यह भक्ति-आराधना आयोजनों की चमक-दमक के बीच खो सी गई है.  

इसी तरह के पॉडकास्ट सुनने के लिए आपने चैनल को सबस्क्राइब तो कर लिया होगा यदि नहीं तो तुरंत सबस्क्राइब, शेयर और टिप्पणी ज़रूर कीजिये. धन्यवाद

न्यूयार्क के ब्लॉगर भाई चंद्रेश जी ने इसे अपने ब्लॉग Chandresh's IACAW Blog (The Original Chandresh), गरबा शीर्षक से पोष्ट छापी है जो देखने लायक है कि न्यूयार्क के भारत वंशी गरबा के लिए कितने उत्साही हैं

27.9.23

आर एल वी का परीक्षण कर इसरो ने भारत को गौरवान्वित किया था


* चंद्रयान 3 लॉन्चिंग के पहले आर एल वी का परीक्षण कर इसरो ने भारत को गौरवान्वित किया*
*गिरीश बिल्लौरे मुकुल*
इन दिनों chandrayaan-3 चर्चा में है इसके पूर्व सबसे कम खर्च पर मंगल की भूमि पर यान पहुंचाकर इसरो ने विश्व को चकित कर दिया था। आप भी चकित हो जाएंगे यह जानकर कि एक और कारण है जो इसरो को यशस्वी बनाता है । जी हां
2 अप्रैल 2023 प्रातः 7:15 पर इसरो ने एक प्रयोग किया।  जो री यूजेबल लॉन्च व्हीकल RLV के नाम से जाना जाता है, को सफलतापूर्वक आकाश से जमीन पर उतारा। यद्यपि इस तरह का प्रयोग एलन मस्क ने नासा के सहयोग से 2018 में कर दिया था।
  भारत के इसरो ने यह प्रयोग इस उद्देश्य से किया है ताकि  भारत द्वारा भेजे गए एसएलवी रॉकेट का कचरा अंतरिक्ष में बेकार न जाए। भारत के इसरो ने   एक प्रोटोटाइप लॉन्चिंग व्हीकल को कर्नाटक के चित्रदुर्ग नामक स्थान से 2 अप्रैल 2023 प्रातः 7:15 पर आकाश में चिनूक हेलीकॉप्टर के माध्यम से भेजा। यह प्रयोग  डीआरडीओ भारतीय एयर फोर्स कब संयुक्त प्रयोग था।
  आपने चंद्रयान में दो साइड बूस्टर देखे होंगे इन बूस्टर्स का कार्य है मुख्य रॉकेट एवम उस पर लगे यंत्र को आकाश में  निर्धारित स्थान तक भेजा जाना। वर्तमान में ये केवल एक बार प्रयोग में लाए जा सकते हैं।  इसके बाद इन बूस्टर्स को अंतरिक्ष में कचरे के रूप में बिखर जाना होता है।
    हाल के दिनों में विश्व के 12 प्रक्षेपण स्टेशन इस चिंता से परेशान है कि अंतरिक्ष कुछ ही वर्षों में सैटेलाइट भेजने अथवा अन्य ग्रहों पर अपने रोवर लैंडर भेजने तथा अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों से कचरा घर बन जाएगा। इससे अन्य कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होना स्वभाविक होंगी।
   भारतीय वैदिक दर्शन स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस क्रम में नासा के बाद इसरो ने प्रोटोटाइप को आकाश में लगभग 5 किलोमीटर ऊंचाई पर भेजकर वापस जमीन पर गिराया फिर ये प्रोटोटाइप अपने प्रयोग स्थल पर सीधा वापस आता है । कंप्यूटर कमांड के सहारे इस प्रोटोटाइप को प्रयोग स्थल के रनवे पर उतारा गया। इसकी स्पीड कम करने के लिए पैराशूट का भी उपयोग किया गया। इसरो प्रयास में है कि भविष्य में इस तरह के यान बनाए जाएं जो मूल रॉकेट को सपोर्ट करके वापस भूमि पर लौटे और उनका पुन: उपयोग किया जा सके
भविष्य में भारत का इसरो निश्चित रूप से कम खर्च में ऐसे बूस्टर व्हीकल जिन्हें री यूजेबल लॉन्चिंग व्हीकल RLV बनाने में सफल होने वाला देश बन सकता है। इस दिशा में अमेरिका की नासा तथा चीन की स्पेस एजेंसी भी कार्य कर रही है।

रेवा टी वी के लिए सिमरन जी द्वारा मेरा साक्षात्कार

 

27.8.23

ईश्वर का आंसू : हीरा

#Diamond #Gods, #tears , #Greek #Civilization, ,
हीरा एक ऐसा कार्बनिक पदार्थ है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से बहुमूल्य रत्न होने के दर्जे पर सदियों से कायम है। प्राचीन यूनानी सभ्यता ने हीरे को उसकी पवित्रता को और उसकी सुंदरता को देखते हुए ईश्वर के आंसू तक की उपमा दे दी है ।
    विश्व में भारत और ब्राज़ील के अलावा अमेरिका में भी हीरे का प्राकृतिक एवं कृत्रिम उत्पादन किया जाता है।
भारत के गोलकुंडा में सबसे पहले हीरे की खोज की गई थी और वह भी 4000 वर्ष पूर्व। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान  ही भारत भारत का कोहिनूर हीरा ब्रिटिश खजाने में जा पहुंचा था। जी हां मैं उसी कोहिनूर हीरे की बात कर रहा हूं जो महारानी के मुकुट  में लगा हुआ है वह हीरा गोलकुंडा की खदान से ही हासिल किया गया था। भारत में उड़ीसा छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हीरे की मौजूदगी है। सबसे ज्यादा मात्रा में इस रत्न की मौजूदगी मध्य प्रदेश में है। अगर बक्सवाह कि हीरा खदानों ने काम करना शुरू कर दिया तो विश्व में भारत हीरा उत्पादन में श्रेष्ठ  स्थान पर होगा। एक अनुमान के मुताबिक रुपए 1550 करोड़ वार्षिक राजस्व आय का स्रोत होगी यह परियोजना।
    हीरे को यूनान सभ्यता के लोग ईश्वर के आंसू कहा करते थे और आज भी यही माना जाता है। पिछले कुछ दिनों से ईश्वर के इन आंसुओं की कहानी मध्यप्रदेश में लिखी जा रही है। हालांकि यह कहानी 20 साल पहले शुरू हुई थी और 2014 से 2016 तक चला  इसका मध्यातर ,  2017 के बाद से इस डायमंड स्टोरी का दूसरा भाग शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं धरना प्रदर्शन पर्यावरण के मुद्दे वन्य जीव संरक्षण जैसे कंटेंट इसमें सम्मिलित हो रहे हैं। कुल मिला के संपूर्ण फीचर फिल्म सरकार की मंशा को देखकर लगता है वर्ष 2022 तक इस फिल्म का संपन्न हो जाने की संभावना है। छतरपुर जिले की बकस्वाहा विकासखंड में 62.64 हेक्टेयर जमीन किंबरलाइट चट्टाने मौजूद है और जहां यह चट्टानें मौजूद होती हैं वहां हीरे की मौजूदगी अवश्यंभावी होती है। इन चट्टानों से हीरा निकालने के लिए लगभग 382 हेक्टेयर जमीन उपयोग में लाई जाएगी।.
   किंबरलाइट चट्टानों की पहचान आज से लगभग 21 वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलियन कंपनी द्वारा की गई थी। कहते हैं कि 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे बक्सवाहा के जंगलों से निकलेंगे ।
   शासकीय सर्वेक्षण के अनुसार 215875 पेड़ बक्सवाहा के जंगलों में मौजूद है।
पन्ना में उपलब्ध 22 लाख कैरेट हीरे में से 13 लाख कैरेट हीरे निकाल लिए गए हैं तथा कुल 9 लाख  कैरेट हीरे अभी शेष है उन्हें नाम और वर्तमान में बक्सवाहा के जंगल में अनुमानित हीरे इस खनन की तुलना में 15 गुना अधिक होगी।
  buxwaha बक्सवाह  की हीरा खदानों से हीरा निकालने के लिए ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो को 2006 में टेंडर दिया हुआ था और इस कंपनी ने 14 साल पहले इस टैंडर को हासिल किया लगभग 90 मिलियन रुपए खर्च भी किए। कंपनी को प्रदेश सरकार ने 934 हेक्टर जमीन पर काम करने का ठेका दिया था। जबकि रियो टिंटो के द्वारा काम समेटने के बाद 62.64 हेक्टेयर भूमि से हीरे निकालने के लिए 382 हेक्टेयर जंगल को साफ करना पड़ेगा। जैसा पूर्व में बताया है कि उक्त क्षेत्र में 215875 वृक्षों को काटा जाएगा यदि यह क्षेत्र 934 सेक्टर होता तो इसका तीन से चार गुना अधिक वृक्षों को काटना आवश्यक हो जाता । मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के इन ज़िलों  जैसे पन्ना और छतरपुर में पानी की उपलब्धता की कमी रही है जिसकी पूर्ति के लिए अस्थाई और कृत्रिम तालाब बनाने की व्यवस्था कंपनी द्वारा की जावेगी।
   वर्तमान में हीरा खनन करने के लिए आदित्य बिरला ग्रुप ने 50 साल के लिए बक्सवाहा के 382 हेक्टेयर जंगल में काम करने का टेंडर हासिल किया है। आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी  एक्सेल माइनिंग कंपनी द्वारा प्रस्तावित परियोजना में कार्य किया जाएगा।
   बक्सवाहा की खदानों में काम करने के लिए 15.9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत प्रतिदिन होगी जबकि बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी का अभाव सदा से ही रहा है। इस संबंध में कंपनी क्या व्यवस्था करती है यह आने वाला भविष्य ही बताएगा। पेड़ों के कटने के बाद वैकल्पिक व्यवस्थाएं क्या है इस पर भी सवालों का उत्तर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लंबित याचिका के माध्यम से प्राप्त हो ही जाएगा। अन्य परिस्थितियों के असामान्य ना होने की स्थिति में इस परियोजना की विधिवत शुरुआत 2022 तक संभावित है।  पर्यावरणविद यह मानते हैं कि प्राकृतिक वनों के काटने के बाद इस क्षेत्र में मौजूदा वाटर टेबल का स्तर गिर जाएगा। साथ ही वन्यजीवों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस संबंध में पर्यावरणविद और स्थानीय युवा सोशल मीडिया खास तौर पर ट्विटर पर अभियान चला रहे हैं। जबकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बक्सवाहा से संबंधित डीएफओ का कहना है कि-" इस परियोजना से स्थानीय लोगों को रोजगार की उम्मीदें बढ़ी है वे इस परियोजना का विरोध नहीं करते।"
    एक्टिविस्टस द्वारा लगातार पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रतीकात्मक आंदोलन शुरू कर दिए गए हैं। 
हीरे को तापमान गायब कर सकता है ? 
    हीरे के बारे में कहा जाता है कि अगर इसे ओवन में रखकर 763 डिग्री पर गर्म किया जाए तो हीरा गायब हो सकता है। क्योंकि हीरा एक कार्बनिक पदार्थ है जो ऑक्सीजन की मौजूदगी में अपना अस्तित्व खो देता है
 वैसे ऐसी रिस्क कोई नहीं लेगा। हीरे के मालिक होने का एहसास ही अद्भुत होता है।
ग्रेट डायमंड इन द वर्ल्ड - जब हीरे का एक कण अर्थात उसका सबसे छोटा टुकड़ा भी मूल्यवान होता है तब ग्रेड डायमंड कितने बहुमूल्य होंगे इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। कहते हैं कि दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील की खदानों से विश्व के महानतम हीरों को निकाला और तराशा गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कलिनन हीरा (Cullinan Diamond) है जो 1905 में दक्षिण अफ्रीका की खदान से निकाला गया। 3106 कैरेट से अधिक भार का है जो ब्रिटेन के राजघराने की संपत्ति के रूप में उनके संग्रहालय में रखा है ।
तक ढूंढ़ा गया दुनिया का सबसे दूसरा बड़ा अपरिष्कृत हीरा 1758 कैरेट का हीरा  सेवेलो डायमंड (Sewelo Diamond) । जिसका अर्थ है दुर्लभ खोज।
    औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश राजघराने को यह भ्रम था कि भारत का कोहिनूर हीरा अगर क्राउन में लगा दिया जाए तो ब्रिटिश शासन का सूर्यास्त कभी नहीं होगा। बात सही की थी कि सूर्योदय ब्रिटिश उपनिवेश में कहीं ना कहीं होता रहता था । परंतु राजघराने में यह मिथक उनकी राजशाही के अंत ना होने के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। और महारानी ने अपने मुकुट पर कोहिनूर जड़वा लिया ।
   भारत का एक सबसे अधिक वजन वाला हीरा ग्रेट मुगल गोलकुंडा की खान से 1650 में  प्राप्त हुआ। जिसका वजन 787 कैरेट का था ।
  इस हीरे का आज तक पता नहीं है कि यह हीरा किस राजघराने में है एक अन्य हीरा जिसे अहमदाबाद डायमंड का नाम दिया गया जो पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर 1626 में बाबर ने प्राप्त किया था। इस दुर्लभ हीरे की अंतिम नीलामी 1990  में लंदन के क्रिस्ले ऑक्सन हाउस हुई थी।
द रिजेंट नामक डायमंड, सन 1702 में गोलकुंडा की खदान से मिला हीरा 410 कैरेट के वजन का था। कालांतर में यह हीरा नेपोलियन बोना पार्ट  ने हासिल किया। यह हीरा अब 150 कैरेट का हो गया है जिसे पेरिस के लेवोरे म्यूजियम में रखा गया है।
  विकी पीडिया में दर्ज जानकारी के अनुसार  ब्रोलिटी ऑफ इंडिया का वज़न 90.8 कैरेट था।  ब्रोलिटी कोहिनूर से भी पुराना  है, 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी ने खरीदा। आज यह कहाँ है कोई नहीं जानता। एक और गुमनाम हीरा 200 कैरेट  ओरलोव है  जिसे १८वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिर की एक मूर्ति की आंख से फ्रांस के व्यापारी ने चुराया था। कुछ गुमनाम भारतीय हीरे: ग्रेट मुगल (280 कैरेट), ओरलोव (200 कैरेट), द रिजेंट (140 कैरेट), ब्रोलिटी ऑफ इंडिया (90.8 कैरेट), अहमदाबाद डायमंड (78.8 कैरेट), द ब्लू होप (45.52 कैरेट), आगरा डायमंड (32.2 कैरेट), द नेपाल (78.41) आदि का नाम शामिल है ।

हीरो की तराशी :- बहुमूल्य रत्न हीरा कुशल कारीगरों द्वारा तराशा जाता है। विश्व के 90% हीरो की तराशी का काम जयपुर में ही होता है।
हीरे का सौंदर्य और उसकी पवित्रता के कारण लोगों में लालच का होना स्वावभाविक हो जाता। धरती के लगभग आधे गोले पर साम्राज्य होने के बावजूद ब्रिटेन की महारानी में कोहिनूर का लालच कर बैठीं । दूसरी ओर  मिस्टर चौकसी इस रत्न के धंधे में अपनी नैतिकता खो बैठा। अखंड भारत से लेकर मध्यकाल और स्वतंत्रता के पूर्व तक के भारत में कोहिनूर के कितने तबादले हुए इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
    आज से लगभग 10 वर्ष पहले मेरे मित्र  कुशल गोलछा जी ने मुझे एक डायमंड दिया और कहा कि इसे आप खरीदिए । उस जमाने में लगभग ₹30000 की कीमत का वह डायमंड मेरी क्रय क्षमता से कई गुना अधिक था। मेरे कॉमन मित्र श्री धर्मेंद्र जैन से मैंने उसे खरीदने मैं असमर्थता दिखाइए। श्री गोलछा ने कहा आप हजार या पांच सौ देते रहिए पर आप यह हीरा पहने रहिये।
    परंतु बिना लालच किए मात्र 1 महीने लगभग हीरे 18 कैरेट सोने की  अंगूठी जड़ा हीरा मुझे आज भी याद आ रहा है। दो-तीन साल पहले जब कुशल जी से उस हीरे के वर्तमान मूल्य पर चर्चा हुई  तब उनने कहा था- अब उस हीरे की कीमत कम से कम ₹100000 तो होना ही चाहिए। आपको ले लेना था इसमें कोई शक नहीं कि हीरा सदा के लिए होता है आज भी वह हीरा याद आता है परंतु हीरे के बारे में मेरा हमेशा से एक ही नजरिया रहा है कि उसकी पवित्रता बेईमान बना देती है, और यह सब ऐतिहासिक रूप से सत्य है।

Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...