कंफर्ट जोन का सामान्य सा अर्थ यह होता है कि कोई भी व्यक्ति जो आसन्न परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने की स्थिति में नहीं होता, अर्थात वह शक्ति विहीन हो जाता है। किसी भी तरह से वह अपने आप को सुरक्षित रखने की और उसे चुनौती से दूर रहने या बचने की कोशिश करता है।
सफल वे लोग ही होते हैं जो अपने कंफर्ट जोन से बाहर हो जाते हैं। कंफर्ट जोन से बाहर आने के लिए रिस्क लेने की जरूरत है। परंतु रिस्क लेने के परिणाम और रिस्क लेने की प्रक्रिया से होने वाले नुकसान का गुणा भाग करते हुए लोग अक्सर रिस्क उठाने नहीं चाहते कुल मिलाकर भी अपने कंफर्ट जोन में रहना चाहते हैं।
रिस्क न लेने की आदत कंफर्ट जोन में बनी रहने की प्रवृत्ति की प्रथम सूचना है। भले ही किसी को कुछ हासिल ना हो परंतु वह अपने कंफर्ट जोन को छोड़ना नहीं चाहता। उसे मालूम है कि यदि हम रिस्क नहीं लेंगे तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा जीतते केवल रिस्क उठाने वाले हैं No risk no gain के सिद्धांत पर चलने वाले लोगों की संख्या अगर बढ़ जाती है तो किसी भी देश के विकास की संभावना शून्य समझिए।
हाथी को सुई के छेद से निकाला जा सकता है,गधे को ज्ञानी बनाया जा सकता है, फरवरी 30 दिन की हो सकती है यानी हर कुछ जो असंभव है संभव हो सकता है परंतु कंफर्ट जोन में रहने वालों को कंफर्ट जोन से बाहर निकलना सबसे मुश्किल मामला होता है।
हम लोग अपने अपने सेगमेंट में जीते हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन सिग्मेंट में भी लोग अपनी सीमाओं में ही जीवन यापन करते हैं।
जनसामान्य को सुबह उठना रोजगार करने या दफ्तर जाना दफ्तर में अपने पसंदीदा पैटर्न का कार्य करना शाम को वापस आना और एक तयशुदा तरीके से जीवन को जीने की आदत है। वे ऐसा ही करते हैं।
अगर इससे जीवन कम से हटके कोई स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो मानसिक और शारीरिक रूप से तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। यानी कोई भी अपने कंफर्ट जोन से निकलना नहीं चाहता।
यूँ समझिए कि कंफर्ट जोन जाड़े की सर्द रात में रजाई के मानिंद है.. जिसके भीतर बने रहने का एहसास सभी को पसंद है।
ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच विश्व कप क्रिकेट में भारत की पराजय पर लोग विचलित हो गए अब आप सोचेंगे कि यहां कंफर्ट जोन का मामला नहीं है..!
दर्शकों और क्रिकेट प्रेमियों का कंफर्ट जोन जीत है ....
"दर्शक और क्रिकेट प्रेमी" खिलाड़ी-भावना वाले कंफर्ट जोन में रहना नहीं चाहते ..!
यह तो खेल की बात हुई आप देखेंगे कि अगर आपके व्यक्तित्व में सबसे मिलने जुलने तथा बातचीत करने का अभ्यास है और एक दिन आप चुपचाप रहे तो लोग आपसे परेशान हो जाएंगे..! लोगों की परेशानी की वजह है आपकी चुप्पी है आपका अभ्यास मिलने जुलने का है लोगों से बातें करने का है ऐसी स्थिति में आपकी खामोशी लोगों को उनके कंफर्ट जोन यानी आपकी बातचीत करने मिलने जुलने की आदत से बाहर निकलती है और वे विचलित भी हो जाते हैं।
कुल मिलाकर यही विचलन मानसिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचता है।
हम सरकारी लोगों की ड्यूटी अक्सर चुनाव में या किसी आकस्मिक कार्य में लगा दी जाती है। हम में से अधिकांश लोग चुनावी ड्यूटी से घबराते हैं।
आकस्मिक परिस्थितियों और कार्यों से घबराने वाले लोग एक ऐसे कंफर्ट जोन में रहते हैं जहां कोई रिस्क नहीं है . ..! अधिसंख्यक लोगों को एक फॉर्मेट में काम करने का अभ्यास होता है।
आकस्मिक रूप से चुनाव ड्यूटी लगने पर लोग घबरा जाते हैं तनाव ग्रस्त भी तो हो जाते हैं।
ड्यूटी लगते ही उनकी कोशिश रहती है कि उनका नाम किसी भी तरह से चुनाव की ड्यूटी से कट जाए।
मैंने देखा है कि कई लोग अपने आप को अपने ऑफिस के लिए अति महत्वपूर्ण साबित करता है भले ही ऑफिस में एक फाइल भी न चलाते हों । कोई अपने परिवार को अथवा स्वयं को बीमार घोषित कर देते हैं । कई बार तो ऐसे ऐसे बहाने बनाते हैं जिन्हें सुनकर आपको लगेगा दुनिया का सबसे बड़ा दुख दर्द इन्हीं लोगों के हिस्से में आया है। कुछ लोग तो अपने मां-बाप भाई बहन को बीमार कर देते हैं भले ही वे अपने परिजनों के साथ 1 मिनट भी न बैठते हों या उनकी जरा भी सेवा करते हों।
सरकार और व्यवस्था के कार्यों की नकारात्मक समीक्षा करने वाले लोग अक्सर अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के लिए बेहद संवेदित रहते हैं जबकि वे अपनी प्रजातंत्र के लिए नैतिक दायित्वों को ताक में रख देते हैं हैं।
Such people can never do anything for the country who are only conscious of their rights. इन लोगों को राष्ट्र के प्रति कर्तव्य के बारे में समझना सोचना चाहिए।
कंफर्ट जोन में रहने वालों को एक ही संदेश है कि वह कंफर्ट जोन से बाहर निकले बाहर लाखों जैकपोट उनका इंतजार कर रहे हैं ।
सफल वे लोग ही होते हैं जो अपने कंफर्ट जोन से बाहर हो जाते हैं। कंफर्ट जोन से बाहर आने के लिए रिस्क लेने की जरूरत है। परंतु रिस्क लेने के परिणाम और रिस्क लेने की प्रक्रिया से होने वाले नुकसान का गुणा भाग करते हुए लोग अक्सर रिस्क उठाने नहीं चाहते कुल मिलाकर भी अपने कंफर्ट जोन में रहना चाहते हैं।
रिस्क न लेने की आदत कंफर्ट जोन में बनी रहने की प्रवृत्ति की प्रथम सूचना है। भले ही किसी को कुछ हासिल ना हो परंतु वह अपने कंफर्ट जोन को छोड़ना नहीं चाहता। उसे मालूम है कि यदि हम रिस्क नहीं लेंगे तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा जीतते केवल रिस्क उठाने वाले हैं No risk no gain के सिद्धांत पर चलने वाले लोगों की संख्या अगर बढ़ जाती है तो किसी भी देश के विकास की संभावना शून्य समझिए।
हाथी को सुई के छेद से निकाला जा सकता है,गधे को ज्ञानी बनाया जा सकता है, फरवरी 30 दिन की हो सकती है यानी हर कुछ जो असंभव है संभव हो सकता है परंतु कंफर्ट जोन में रहने वालों को कंफर्ट जोन से बाहर निकलना सबसे मुश्किल मामला होता है।
हम लोग अपने अपने सेगमेंट में जीते हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन सिग्मेंट में भी लोग अपनी सीमाओं में ही जीवन यापन करते हैं।
जनसामान्य को सुबह उठना रोजगार करने या दफ्तर जाना दफ्तर में अपने पसंदीदा पैटर्न का कार्य करना शाम को वापस आना और एक तयशुदा तरीके से जीवन को जीने की आदत है। वे ऐसा ही करते हैं।
अगर इससे जीवन कम से हटके कोई स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो मानसिक और शारीरिक रूप से तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। यानी कोई भी अपने कंफर्ट जोन से निकलना नहीं चाहता।
यूँ समझिए कि कंफर्ट जोन जाड़े की सर्द रात में रजाई के मानिंद है.. जिसके भीतर बने रहने का एहसास सभी को पसंद है।
ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच विश्व कप क्रिकेट में भारत की पराजय पर लोग विचलित हो गए अब आप सोचेंगे कि यहां कंफर्ट जोन का मामला नहीं है..!
दर्शकों और क्रिकेट प्रेमियों का कंफर्ट जोन जीत है ....
"दर्शक और क्रिकेट प्रेमी" खिलाड़ी-भावना वाले कंफर्ट जोन में रहना नहीं चाहते ..!
यह तो खेल की बात हुई आप देखेंगे कि अगर आपके व्यक्तित्व में सबसे मिलने जुलने तथा बातचीत करने का अभ्यास है और एक दिन आप चुपचाप रहे तो लोग आपसे परेशान हो जाएंगे..! लोगों की परेशानी की वजह है आपकी चुप्पी है आपका अभ्यास मिलने जुलने का है लोगों से बातें करने का है ऐसी स्थिति में आपकी खामोशी लोगों को उनके कंफर्ट जोन यानी आपकी बातचीत करने मिलने जुलने की आदत से बाहर निकलती है और वे विचलित भी हो जाते हैं।
कुल मिलाकर यही विचलन मानसिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचता है।
हम सरकारी लोगों की ड्यूटी अक्सर चुनाव में या किसी आकस्मिक कार्य में लगा दी जाती है। हम में से अधिकांश लोग चुनावी ड्यूटी से घबराते हैं।
आकस्मिक परिस्थितियों और कार्यों से घबराने वाले लोग एक ऐसे कंफर्ट जोन में रहते हैं जहां कोई रिस्क नहीं है . ..! अधिसंख्यक लोगों को एक फॉर्मेट में काम करने का अभ्यास होता है।
आकस्मिक रूप से चुनाव ड्यूटी लगने पर लोग घबरा जाते हैं तनाव ग्रस्त भी तो हो जाते हैं।
ड्यूटी लगते ही उनकी कोशिश रहती है कि उनका नाम किसी भी तरह से चुनाव की ड्यूटी से कट जाए।
मैंने देखा है कि कई लोग अपने आप को अपने ऑफिस के लिए अति महत्वपूर्ण साबित करता है भले ही ऑफिस में एक फाइल भी न चलाते हों । कोई अपने परिवार को अथवा स्वयं को बीमार घोषित कर देते हैं । कई बार तो ऐसे ऐसे बहाने बनाते हैं जिन्हें सुनकर आपको लगेगा दुनिया का सबसे बड़ा दुख दर्द इन्हीं लोगों के हिस्से में आया है। कुछ लोग तो अपने मां-बाप भाई बहन को बीमार कर देते हैं भले ही वे अपने परिजनों के साथ 1 मिनट भी न बैठते हों या उनकी जरा भी सेवा करते हों।
सरकार और व्यवस्था के कार्यों की नकारात्मक समीक्षा करने वाले लोग अक्सर अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के लिए बेहद संवेदित रहते हैं जबकि वे अपनी प्रजातंत्र के लिए नैतिक दायित्वों को ताक में रख देते हैं हैं।
Such people can never do anything for the country who are only conscious of their rights. इन लोगों को राष्ट्र के प्रति कर्तव्य के बारे में समझना सोचना चाहिए।
कंफर्ट जोन में रहने वालों को एक ही संदेश है कि वह कंफर्ट जोन से बाहर निकले बाहर लाखों जैकपोट उनका इंतजार कर रहे हैं ।